सुबह मेरी नींद खुली तो पद्मिनी अपने बिस्तर पर नहीं थी शायद वो बाथ रूम में थी कुछ देर में कुछ ही देर बाद पद्मिनी कमरे में आ गई और पलंग के पास आकर खड़ी हो गई।
मैं भी अपने पैर नीचे लटका कर बैठ गया और उसकी कमर में हाथ डाल उसके नितम्बों को सहलाता हुआ उसे अपनी गोद में बैठा लिया।
वो मेरी तरफ मुँह करके बैठी थी.. उसकी मांसल जांघें मेरी जाँघों पर चढ़ी हुई थीं।
मैंने उसके दोनों दूध थाम लिए और उसकी गर्दन को चूमते हुए गालों को काट लिया और फिर उसका निचला होंठ अपने होंठों से दबा के चूसने लगा।
वो कोई विरोध नहीं कर रही थी.. शायद इस शादी के माहौल को वो भी जी भर के भोगना चाहती थी।
जल्दी ही उसने अपनी बाँहों का हार मेरे गले में पहना दिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में धकेलने लगी।
मैंने भी उसकी चूत को नाइटी के ऊपर से ही सहलाना शुरू किया और उसकी जीभ अपने मुँह में ले ली। उसने चड्डी नहीं पहनी थी.. इसलिए उसकी चूत की तपिश मेरी हथेली को गरम कर रही थी।
हमारा प्रगाढ़ चुम्बन काफी देर तक चला.. हमारी साँसें फूलने लगीं.. तो रुकना पड़ा।
वो उठकर खड़ी हो गई.. उसकी साँसों के साथ-साथ उसके भारी स्तन ऊपर-नीचे हो रहे थे। उसकी आँखों में वासना के गुलाबी डोरे तैरने लगे थे और उसका मुँह अभी भी खुला हुआ था।उसका पूरा बदन जैसे पुकार-पुकार कर कह रहा था कि उठो और दबोच लो मुझे.. और मसल डालो.. रौंद डालो मुझे.. बेरहमी से..
तभी उसने अपना एक पैर पलंग पर रख दिया.. उसकी जांघ मेरे गाल से छूने लगी और उसकी चूत मेरे मुँह के ठीक सामने थी.. लेकिन ढंकी हुई। मैंने उसकी नाइटी उसकी चिकनी जांघ पर से ऊपर सरका दी और चूत को उघाड़ने लगा.. लेकिन उसने नाइटी पकड़ ली और मुस्कुराते हुए इंकार में गर्दन हिला दी और मुझे अंगूठा दिखाती हुई दूर हट गई।
मैंने उसे फिर से पकड़ लिया और बेसब्री से यहाँ-वहाँ चूमने लगा, वो मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी।
मैंने भी उसकी नाइटी सामने से खोल दी और उसकी नंगी चूचियाँ दबोच लीं और उसके होंठों का रस फिर से पीने लगा।
उसके होंठ चूसते हुए ही
मेरा लण्ड स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह से उछला और उसके पेट से जा टकराया। तभी पद्मिनी ने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया.. इसके साथ ही अपनी नाइटी भी फुर्ती से उतार कर फर्श पर फेंक दी।
अब वो मेरे सामने नंगी खड़ी थी.. उसकी नज़र मेरे लण्ड पर थी.. फिर वो धीरे-धीरे अदा से चलती हुई आई और मेरे पास बैठ गई।
मैंने उसे पकड़ कर अपने करीब चित्त लिटा लिया और मैं खुद उठ कर बैठ गया।
मैं कुछ देर उसका नंगा बदन जी भर के देखना चाहता था।
अब वो मेरे सामने वो नंगी लेटी साक्षात रति की प्रतिमूर्ति लग रही थी। उसके गदराये बदन की कशिश में एक अजीब सी मादकता थी.. जो देखने वाले को पहली ही झलक में दीवाना करके रख दे। उसके सौन्दर्य में कमनीयता नहीं.. वरन एक परिपक्व कामुक स्त्री का सा भाव झलकता था।
उसके पहाड़ जैसे स्तन चैलेंज देने की सी मुद्रा में खड़े थे कि आओ हमें विजित कर सको तो कर लो.. उसका सपाट पेट.. दक्षिण की तरफ नाभि.. भी किसी गहरे कूप की तरह गंभीर लग रही थी..।
उसके और नीचे कदली जाँघों के मध्य उसकी चूत.. उसका तो रूप-रंग.. आकार-प्रकार.. . वो कमसिन सी मासूम चूत , उसकी फांकों पर गुलाबी रंगत
पद्मिनी की चूत के लब अब पहले की तरह आपस में सटे नहीं रह गए थे.. एक-दूसरे से छितरा गए थे.. और उनके बीच लगभग एक अंगुल जितना फासला हो गया था.. जिनके बीच से भीतर की चुकंदर के रंग की ललाई झाँक रही थी।
चूत का चीरा भी काफी लम्बा हो गया था.. जिसके उपरी सिरे पर स्थित एक डेढ़ अंगुल बड़ा दाना चूत के उग्र स्वभाव की घोषणा कर रहा था।
ये सब लक्षण बता रहे थे कि मेरे से वो किस कदर चुदी होगी।
मैं मंत्रमुग्ध सा उसका रूप परिवर्तन निहार रहा था कि तभी उसने मुझे टोक दिया।
‘क्या देख रहे हो पापा?’
‘देख रहा हूँ कि तू कितना खिल गई है.. निखर गई है.. …’ मैं तारीफ़ भरे स्वर में बोला।
‘मुझे .. कली से फूल बनाने वाले तो आप ही हो.. मुझे लड़की से औरत बनाने वाला तो वो खड़ा है आपके पेट के नीचे..’
वो मेरी आँखों में झांकती हुई बोली और मेरा लण्ड पकड़ लिया।
मैं मुस्कुराया और झुक कर उसे चूमने लगा और हाथ बढ़ा कर उसकी चूत पर रख दिया। चूत पर बहुत ही छोटी-छोटी झांटें थीं.. .. मैं उन्हें सहलाने लगा।
वो कुनमुनाई और मेरी गोद में सिर रख कर मेरे खड़े लण्ड से गाल सटा कर लेट गई। मैं अपने लण्ड पर उसके गाल की तपिश महसूस कर रहा था। फिर वो धीरे-धीरे अपना सिर दायें-बायें हिलाने लगी.. जिससे मेरा लण्ड भी साथ उसके गाल से टकराता हुआ डोलने लगा।
मैंने भी पद्मिनी का हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसके हाथों में मेहंदी रची हुई थी. जो शायद शादी में दौरान उसने लगायी होगी . मैंने उसका हाथ चूम लिया और उसकी उँगलियाँ चूसने लगा।
उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा और मेरे लण्ड की तरफ करवट ले ली और मेरे लण्ड को गौर से देखने लगी।
‘क्या देख रही हो पद्मिनी ..?’ मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा।
उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा और ‘कुछ नहीं…’ के अंदाज़ से सिर हिला दिया।
फिर उसने मेरे मुँह से अपनी उँगलियाँ निकाल लीं और वो उँगलियाँ मेरे लण्ड पर लपेट दीं.. ठीक मेरी झांटों के पास से..॥ उसके मेहंदी रचे गोरे नाजुक हाथ में खड़ा लण्ड..
फिर उसने दूसरे हाथ की उँगलियाँ भी ऊपर की तरफ लपेट दीं.. फिर पहले वाली उँगलियों को हटा कर लण्ड के अगले सिरे की तरफ लपेट दीं।
अब मेरा सुपाड़ा उसकी उँगलियों से छिप गया था। फिर उसने एक हाथ की मुट्ठी में लण्ड को पकड़ लिया
उसने विस्मय से मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी।
‘क्या हुआ.. तू कर क्या रही है..?’ मैंने अधीर होकर पूछा।नाप रही आपका.. मेरे उनसे तो आपका बहुत बड़ा और मोटा है.. उनका तो सिर्फ छः अंगुल का है और आपका बारह का.. मोटा भी दुगना है उनसे..’ वो बोली।
‘अरे.. जाने दे ये बात.. चल तू रेडी हो जा.. अब इसे अपनी चूत के भीतर ही नापना..’ मैंने हँसते हुए कहा।
‘इतनी जल्दी नहीं पापा.. थोड़ी देर रुको.. फिर कर लेना.. अभी निचे शादी के कार्यक्रम में चलते हे .. !’ वो बोली और मेरे लण्ड को पकड़ कर हिलाने लगी..
फिर उसने लण्ड की चमड़ी नीचे करके सुपाड़ा निकाल लिया.. फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरी तरफ देखने लगी।
मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि पद्मिनी इतनी बिंदास औरत बन चुकी थी।
उसने जीभ की नोक मेरे सुपाड़े पर चारों ओर घुमाई और बोली- लो.. बड़े पापा चूसती हूँ आपका ये..’
इतना कहकर उसने आधा लण्ड मुँह में ले लिया और पूरी तन्मयता के साथ चाट-चाट के चूसने लगी।
मैं तो जैसे निहाल हो गया और जैसे जन्नत में जा पहुँचा और उसके मुँह में पूरा लण्ड घुसाने लगा।
वो जिस सलीके और नफासत से लण्ड चूस रही थी.. उससे मैं हतप्रभ था।
बीच-बीच में वो लण्ड को बाहर निकालती और मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती और हिला-हिला कर फिर से मुँह में ले लेती..
‘ पद्मिनी .. इतना मस्ती से लण्ड चूसना कहाँ से सीख लिया तूने?’ मैंने पूछा।
‘क्या बताऊँ… पहले मुझे भी घिन आती थी.. इस पर मुँह लगाने में.. लेकिन आपको चुसवाने का बहुत शौक है..तो .. धीरे-धीरे मुझे भी चूसने में मज़ा आने लगा और अपनी चटवाने में भी.. पहले जब आप मेरी चाटते थे तो मुझे बहुत ही भद्दा लगता था.. लेकिन अब बहुत मज़ा आता है..’ वो शर्मा कर बोली और मेरा लण्ड चूसना जारी रखा।
मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था। मैं पालथी मार के बैठा था और वो मेरी गोद में सिर रख कर लण्ड चूस रही थी।
मैंने धीरे से अपने पैर खोले और उठ कर उस पर छा गया.. अब मेरा मुँह उसकी जाँघों के बीच में था.. लण्ड उसके मुँह में..
उसकी चूत का उभरा हुआ दाना जैसे मेरी जीभ की ही प्रतीक्षा कर रहा था.. मैंने हौले से उस पर जीभ रख दी और चाट लिया।
पद्मिनी के बदन ने झुरझुरी सी ली और उसकी जांघें मेरे सिर पर कस गईं और हाथ के नाखून मेरे नितम्बों में जोर से धंस गए।
उसकी खुली चूत में मेरी जीभ स्वतः ही गहराई तक उतर गई और लपर-लपर करने लगी। मेरे नथुनों में गरम मसाले जैसी गंध घुसती जा रही थी और मेरे मुँह का स्वाद खट्टा-खट्टा सा हो रहा था।
उसकी चूत से रस लगातार बह रहा था.. उधर पद्मिनी भी मेरे लण्ड को पूरे मनोयोग से चूस चाट रही थी.. उसके लार से भरे मुँह में मेरे लण्ड को गजब का मज़ा मिल रहा था।
मैं महसूस कर रहा था कि उसका मुखरस बह-बह कर मेरी जांघों को गीला कर उसके गले पर से बह रहा था।
फिर मैंने अपनी जीभ उसकी चूत से बाहर निकाली और अपनी दाड़ी उसकी बुर की गहराई में रगड़ने लगा। जैसे ही मेरी दाड़ी के एक अंगुल जितने छोटे-छोटे बालों की चुभन उसे अपनी चूत के अंदरूनी नाज़ुक हिस्सों में महसूस हुई और वो बेकाबू होकर कमर उछालने लगी।
‘आई…मत करो ऐसे…गुदगुदी होती है जोर से..’ वो हाँफती सी बोली।
दो मिनट में ही उसका धैर्य जवाब दे गया और वो मुझे हटा कर उठ खड़ी हुई।
मैंने देखा उसकी आँखें लाल-लाल हो गई थीं और होंठों से गर्दन तक लार की लकीर बह रही थी। उसके निप्पल कड़क हो गए थे.. उसकी चूत से बहता हुआ रस जाँघों से उतर कर घुटनों तक पहुँच रहा था और वो बहुत ही कामुक चुदासी निगाहों से मुझे देख रही थी।
‘आओ पापा..’ वो बोली और बिस्तर पर लेट कर अपनी टाँगें सीने की तरफ मोड़कर उठा दीं।
मेरे मुखरस और उसके खुद के रिसाव से गीली उसकी चूत.. सुबह की रौशनी में दमक उठी।
मैं उस मादक भग के सौन्दर्य को निहारता ही रह गया..
‘अब जल्दी से झंडा गाड़ दो पापा.. नहीं रहा जाता अब..’ पद्मिनी की पुकार सुन कर मैं जैसे होश में आया और झट से उसकी चूत के सामने बैठ गया और लण्ड का मत्था उसकी चूत के छेद पर रख कर उसके मम्मे दबोच लिए और उसके गाल काटने को झुका।
तभी पद्मिनी ने अपनी कमर जोर से ऊपर उछाली और मेरा लण्ड अपनी चूत में कैच कर लिया और अपनी बाँहों का घेरा मेरी पीठ पर कस दिया। इसी के साथ वो जल्दी-जल्दी अपनी कमर उठा-उठा कर लण्ड लीलने लगी।
मैं भी जोश में आ गया और पूरी ताकत से उसकी चूत मारने लगा।
पद्मिनी मंजे हुए खिलाड़ी की तरह चुद-चुद कर मेरा साथ निभा रही थी। मैं भी अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर निकालता और एक झटके में पूरा घुसा देता।
पद्मिनी भी ताल से ताल मिलाती हुई अपनी कमर चला रही थी। कमरे में ‘फचर… फचर…’ की आवाजें और उसकी कामुक ‘आहें.. कराहें..’ गूँज रही थीं।फाड़ डालो.. पापा.. आज इसे… बहुत सताती है ये.. मुझे.. आह…करो न जल्दी जल्दी… बहुत मज़ा दे रहे हो आप.. मैं आकाश से जब भी करती थी.. मुझे पता नहीं क्यों आपकी याद आती थी..आपकी चुदाई भूल ही नहीं पाती थी.. आह… ले लो अच्छी तरह से मेरी.. खूब हचक के चोदो मुझे..’ पद्मिनी कामुक औरत की तरह बोल रही थी और किलकारियाँ लेती हुई कमर उछाल रही थी। आह्ह्ह्ह पापा कितना मोटा और मस्त है आपका लंड .................. उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ पापा मैं तो आपकी गुलाम बन गयी हूँ.............अह्ह्ह क्या मस्त चुदाई करते हो पापा .............................प्रॉमिस करो अभी आकर भी करोगे ............................ प्रॉमिस करो ...........
मैं भी पूरी ताकत से उसे चोदे जा रहा था. मेने कहा . हाँ.......... रात में भी करूंगा तेरी चुदाई और रात में क्या पूरी रात करूंगा तेरी इस मस्त चूत की सेवा ................................... आहह्ह्ह कितनी मस्त चूत है मैं तो इस चूत किस रोज सेवा करूंगा ................................... नहीं छोडूंगा रोज चोदुंगा....... रोज चोदुंगा...........
सात-आठ मिनट बाद ही मुझे लगा कि अब मैं झड़ जाऊँगा।
‘ पद्मिनी .. मैं झड़ने वाला हूँ… बाहर निकालूँ क्या..’ मैं स्पीड से धक्के लगाता हुआ बोला।
‘बाहर नहीं.. मेरे भीतर ही झड़ जाओ बड़े पापा.. अपना बीज बो दो मेरी कोख में.. मैं भी बस आ ही रही हूँ.. एक मिनट में.. आह्ह.. बस आठ-दस धक्के करारे करारे और लगा दो आप..’ वो अधीर स्वर में बोली।
फिर मैंने उसके मम्मे कसके दबोच लिए और लण्ड को उसकी चूत में गोल-गोल मथानी की तरह घुमाने लगा.. कभी क्लॉक वाइज कभी.. एंटी क्लॉक वाइज.. और अपनी झांटों से उसके क्लिट को रगड़ता हुआ.. फुर्ती से उसे चोदने लगा। आआह्ह्ह्ह में गया ............................................. श्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह
पद्मिनी भी लंड के पानी निकलते ही चूत रस को छोड़ देती है और एक चीख के साथ मेरे से चिपक जाती है
म्म्म्मम्म्में गयी आआआआ...........................................आह्ह्हह्ह्ह्हह्ह
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पद्मिनी ने भी मुझे कसकर जकड़ लिया और अपनी जांघो से मेरी कमर कसके कस ली, उसकी चूत में स्पंदन होने लगे.. चूत की मांसपेशियां लण्ड को भींचने लगीं.. ताकि मेरे वीर्य के एक-एक बूँद निचुड़ जाए।
मैं भी गहरी-गहरी साँसें लेता हुआ उसके उरोजों के बीच सिर रख कर लेट गया।
मैंने मोबाइल में समय देखा तो सुबह के पांच बजकर दस मिनट हो रहे थे। मैं फिर से सोने की कोशिश करने लगा लेकिन नींद नहीं आई। रात्रि का अंतिम प्रहर समाप्ति पर था.. खुली खिड़की से ताजा हवा के झोंके आ रहे थे।
फागुन की हवा तो वैसे भी मदमस्त होती है.. ऊपर से जब कोई जवान छोरी नंगी होकर आपकी बाँहों में सो रही हो.. अंदाज कीजिए कि आपका क्या हाल हो सकता है।
वही हुआ.. लण्ड महाराज ने खड़े होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।
हम दोनों के नंगे बदन गुत्थम-गुत्था होकर लिपटे थे.. सहसा वो जगी और उसके बदन में हलचल हुई. उसने धीरे से मेरी हथेली.. जो उसके बायें वाले दूध को दबोचे थी.. हटा दी और मेरा पैर जो उसके ऊपर था.. उसे भी धीरे से हटा कर पलंग से उतर कर बाथरूम की तरफ चल दी। नाईट लैंप की मद्धिम रोशनी में मैं उसके मटकते हुए नितम्बों को देखता रहा और फिर वो दरवाजा खोल कर बाथरूम में जा घुसी।
कुछ ही क्षण बाद मुझे तेज़ सीटी बजने की आवाज़ आई.. पहले तो मुझे लगा कि होटल का चौकीदार गश्त पर होगा.. लेकिन नहीं.. मैंने फौरन से पहचाना ये पद्मिनी की ‘सू..सू..’ की आवाज थी.. जो उसकी चूत में से सीटी बजाती हुई निकल रही थी। कई लड़कियों की यह आवाज़ बहुत मीठी सीटी के बोलने जैसी होती है। इस वक्त वैसी ही ध्वनि पद्मिनी की चूत से निकल उस भोर को संगीतमय बना रही थी।
फिर उसकी चूत की सीटी बजते-बजते धीमी पड़ती चली गई.. फिर पानी की छपाक-छपाक.. शायद वो अपनी चूत धो रही थी। फिर कुल्ला करने जैसी आवाजें आईं और फिर जल्दी ही वो वापस आई और कुर्सी पर पड़े नैपकिन से अपनी चूत पोंछ कर वापस आकर लेट गई और मुझे चूम लिया। फिर मेरे सिर को अपने स्तनों के मध्य दबा लिया और मेरे सिर पर थपकी देने लगी और मैं पद्मिनी के ममता भरे वात्सल्य पूर्ण ह्रदय का स्पंदन महसूस करने लगा और अपनी आँखें मूँद लीं।
उधर मेरा लण्ड धीरे-धीरे अपने पूरे शवाब पर आ रहा था। जल्दी ही उसने पद्मिनी की जाँघों पर दस्तक देनी शुरू कर दी।
आप तो जानते ही हो कि सुबह-सुबह लण्ड स्वतः ही बिना किसी प्रेरणा के कई बार विकराल रूप धर लेता है और यदि पहलू में कोई नंगी हसीना हो तो वो कैसी धमा-चौकड़ी मचा सकता है.. इसका अंदाजा सहज ही लग सकता है।
पद्मिनी को भी लण्ड की चुभन महसूस हुई और उसने उसे टटोल कर देखा।
‘आप जाग रहे हो पापा?’
‘ऊं.. हूँ..’ मैं बोला और और उसके दायें दूध को मुँह में लेकर चुसकने लगा.. साथ ही उसकी जाँघों के बीच घुस कर लण्ड को उसकी चूत में घुसाने की जुगाड़ बैठाने लगा।
‘अरे ये क्या… अब दुबारा कुछ नहीं करना.. जल्दी उठो.. तैयार हो जाओ.. मैंने बात को टालने की कोशिश की.. क्योंकि उस हालत में बिस्तर छोड़ के जाना किसी सजा से कम नहीं था।
‘
‘।फिर मैंने पद्मिनी का हाथ पकड़ कर वापिस लण्ड पर रख लिया।
‘अब इसका क्या करूँ..’
‘नहीं मानोगे ना.. चलो एक बार घुसा के बाहर निकाल लो.. इसके आगे कुछ नहीं..’ वो बोली और अपनी टाँगे फैला कर चित्त लेट गई।
‘अपनी चूत खोल न.. अपने हाथों से..’ मैं बोला।
उसने थोड़ा गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपनी चूत पर दोनों हाथ रखकर उँगलियों से बुर के दोनों कपाट पूरी चौड़ाई में खोल दिए।
सुबह की रोशनी होने लगी थी.. खुली खिड़की से सुबह की सुनहरी धूप की पहली किरण सीधी आकर आरती की खुली चूत पर पड़ी।
ऐसा मनमोहक मनभावन नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था।
उसकी गोरी-गोरी उँगलियाँ चूत के द्वार खोले हुए लण्ड की प्रतीक्षारत थीं। उसकी चूत का छेद भी स्वतः खुल सा गया था और छोटी ऊँगली जाने लायक बड़ा सुराख दिखाई दे रहा था और उसकी आँखों में भी आमंत्रण का भाव था।
लड़की जब खुद अपने हाथों से अपनी चूत को खोल लेटी हो.. तो वो नज़ारा कितना दिलकश होता है.. ।
मैंने बिना देर किये लण्ड को उसकी चूत में एक ही बार में पूरा पेल दिया।सी…’ उसके मुख से निकला और वो मुझे अपने ऊपर से हटाने लगी।
‘अब हट भी जाओ पापा… टाइम कम है… सिर्फ घुसाने और निकालने की बात हुई थी! आपने घुसा दिया, अब निकालो और मुझे जाने दो!’ वो बोली।
लेकिन एक बार लण्ड चूत में जाने के बाद कौन बिना झड़े निकालता है, मैंने भी पद्मिनी की बात अनसुनी करते हुए उसे स्पीड से चोदना शुरू किया और लगभग बीस मिनट बाद उसकी चूत में अपना वीर्य भर कर अलग हट गया।