बरमूडा ट्राइंगल की पहेली अपनी जगह है , यहां से बचकर निकलना अवश्य ही बहुत मुश्किल काम है लेकिन , जहाज का कैप्टन ही गलत डिसिजन लेने लगे , खतरे का सही आकलन न कर पाए तब कैप्टन पर सवालिया निशान खड़ा होता ही है ।
सुयश साहब ने खतरे की गंभीरता का सही आकलन नही किया । चाहे किसी मानव के करतूत से हो , या फिर चाहे कुदरत का इशारा रहा हो , जहाज बार-बार आइलैंड के करीब ही नजर आती थी । या यूं कहें , जहाज ने अपनी मंजिल स्वयं ढूंढ ली थी ।
लेकिन अफसोस कैप्टन साहब की जिद , हठधर्मिता की वजह से जहाज को आइलैंड की पहुंच से दूर कर दिया गया , बल्कि कई बार दूर किया गया ।
अगर समंदर मे घनघोर तुफान नही आया होता तो जो कुछ लोग बच गए हैं वह भी शायद बच न पाते । बहुत समय बर्बाद किया कैप्टन साहब ने । अगर पहले ही इस जहाज का रूख आइलैंड की ओर कर दिया गया होता तो शायद सभी की जान बच गई होती । न ही तुफान का सामना करना होता , न ही बिजली जहाज पर गिरी होती और न ही जहाज पर आग लगी होती ।
राइटर साहब कैप्टन साहब का लाख बचाव करें , लाख उसकी वकालत करें , मगर इन सभी लोगों की मौत का जिम्मेदार अगर कोई है तो वह सुयश साहब ही है ।