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***** *****पचपनवीं फुहार -
भरौटी के मजे
माँ ने दे दिया गुलबिया को इनाम-
“सुन, अभी ले जा न इसको अपने टोले में, जरा वहां का भी तो मजा ले ले। मैं सोने जा रही हूँ। भोर होने पर सारा गाँव देखेगा, उसके पहले…”
बस मैंने और गुलबिया ने खाली साड़ी टांग ली अपने देह के ऊपर,
जब मैं गुलबिया के साथ निकल रही थी, आसमान की स्याही हल्की पड़ रही थी। भरौटी पहुँचते-पहुँचते, आसमान में हल्की सी लाली दिख रही थी।
हम दोनों सीधे गुलबिया के घर में घुस गए।
उसका मर्द अपने काम के लिए निकल गया था, सिर्फ हमी दोनों थे। मैं बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर गई। लेकिन आधे घंटे भी नहीं सोई होऊँगी की गुलबिया ने जगा दिया।
आसमान में सूरज अभी बिंदी लगा रहा था।
एक बात अब मैं समझ गई हूँ, उस समय भी कुछ-कुछ अंदाज तो हो ही गया था। अगर किसी लौंडिया को रात भर जगा के रखो, और ऊपर से उसे झड़ने भी मत दो, तो बस एक तो मारे थकान के उसका विरोध एकदम कम हो जाएगा, और झड़ने के लिए भी वो एकदम बेचैन रहेगी।
और वही हुआ। पूरे दिन भर, भरौटी के लौंडों की लाइन,
शुरू से बताती हूँ।
थोड़ा फास्ट फारवर्ड करके, मुझे उठाते ही गुलबिया ने, मेरे आगे-पीछे एक सूखे कपड़े को उंगली में लपेट के अंदर की, सुनील और चुन्नू की सारी मलाई साफ कर दी। यानी एकदम सूखी।
और उसके साथ एक औरत थीं, गाँव के रिश्ते से जेठानी लगती थीं शायद, बस उम्र में गुलबिया से 1-2 साल ज्यादा होंगी, 26-27 साल की लेकिन हर बात में गुलबिया के टक्कर की, बल्की 20 ही होंगी।
अगवाड़े की सफाई गुलबिया ने की तो पिछवाड़े का जिम्मा उन्होंने लिया, गाण्ड मेरी एकदम सूखी कर दी। फिर वो बोलीं-
“रानी अब आयेगा मजा गाण्ड मराई का, जब पटक-पटक के लौंडे सूखी गाण्ड में पेलेंगे न, खूब परपरायेगी…”
लेकिन मैं कुछ बोलने की हालत में नहीं थी, रात भर की जागी, जमकर मेरी कुटाई हुई थी, एक पल भी न सो पाई थी, न एक बार भी झड़ी थी।
और उसके बाद उन्होंने गुलबिया के साथ मिल के जो मेरी हालत की थी, उस थकान के बाद भी एक बार फिर मेरी चूत में दोनों ने मिल के आग लगा दी। उंगली, जीभ औरतों के पास भी कम औजार नहीं होते पागल बनाने के लिए।
नीचे की मंजिल उन्होंने सम्हाली और ऊपर की गुलबिया ने।
पहले उन्होंने अपनी हथेली से मेरी गुलाबी सहेली को जाँघों के बीच रगड़ना शुरू किया, और मैं पागल हो गई। उसके साथ ही तर्जनी और अंगूठे के बीच मटर के दाने ऐसी मेरी भगनासा को जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। बस, पल भर में मैं पनिया गई। बुर बुरी तरह गीली हो गई।
और ऊपर ऊपर से दोनों कच्ची अमियों को चखना, काटना गुलबिया ने शुरू कर दिया। वो तो गाँव के लौंडों से भी ज्यादा मेरी कच्ची अमिया की दीवानी थी। कभी निपल चूसती तो कभी चूची पे ही कचकचा के दांत गड़ा देती।
इस दुहरे हमले का असर ये हुआ की मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गई, दोनों मिल के मुझे झड़ने के कगार पे ले जाती और फिर छोड़ देतीं।
रात भर मैं तड़पती रही थी, और सुबह से फिर वही। मस्ती से मेरी हालत खराब थी, बस मन कर रहा था दोनों कुछ भी करें, कुछ भी करें मुझे झड़ा दें। लेकिन अबकी जब मेरी देह कांपने लगी, मैं थरथराने लगी तो उसी समय दोनों रुक गईं।
मैं आँखें बंद किये सोच रही थी कि दोनों छिनार अब कुछ करेंगी, अब कुछ करेंगी लेकिन
हार कर जब मैंने आँखें खोली तो सामने एक लड़का था, खूब तगड़ा, मस्क्युलर और बस मेरी आँख खुलते ही उसने अपना छोटा सा लूंगी सा लिपटा कपड़ा हटा लिया।
भरौटी के मजे
माँ ने दे दिया गुलबिया को इनाम-
“सुन, अभी ले जा न इसको अपने टोले में, जरा वहां का भी तो मजा ले ले। मैं सोने जा रही हूँ। भोर होने पर सारा गाँव देखेगा, उसके पहले…”
बस मैंने और गुलबिया ने खाली साड़ी टांग ली अपने देह के ऊपर,
जब मैं गुलबिया के साथ निकल रही थी, आसमान की स्याही हल्की पड़ रही थी। भरौटी पहुँचते-पहुँचते, आसमान में हल्की सी लाली दिख रही थी।
हम दोनों सीधे गुलबिया के घर में घुस गए।
उसका मर्द अपने काम के लिए निकल गया था, सिर्फ हमी दोनों थे। मैं बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर गई। लेकिन आधे घंटे भी नहीं सोई होऊँगी की गुलबिया ने जगा दिया।
आसमान में सूरज अभी बिंदी लगा रहा था।
एक बात अब मैं समझ गई हूँ, उस समय भी कुछ-कुछ अंदाज तो हो ही गया था। अगर किसी लौंडिया को रात भर जगा के रखो, और ऊपर से उसे झड़ने भी मत दो, तो बस एक तो मारे थकान के उसका विरोध एकदम कम हो जाएगा, और झड़ने के लिए भी वो एकदम बेचैन रहेगी।
और वही हुआ। पूरे दिन भर, भरौटी के लौंडों की लाइन,
शुरू से बताती हूँ।
थोड़ा फास्ट फारवर्ड करके, मुझे उठाते ही गुलबिया ने, मेरे आगे-पीछे एक सूखे कपड़े को उंगली में लपेट के अंदर की, सुनील और चुन्नू की सारी मलाई साफ कर दी। यानी एकदम सूखी।
और उसके साथ एक औरत थीं, गाँव के रिश्ते से जेठानी लगती थीं शायद, बस उम्र में गुलबिया से 1-2 साल ज्यादा होंगी, 26-27 साल की लेकिन हर बात में गुलबिया के टक्कर की, बल्की 20 ही होंगी।
अगवाड़े की सफाई गुलबिया ने की तो पिछवाड़े का जिम्मा उन्होंने लिया, गाण्ड मेरी एकदम सूखी कर दी। फिर वो बोलीं-
“रानी अब आयेगा मजा गाण्ड मराई का, जब पटक-पटक के लौंडे सूखी गाण्ड में पेलेंगे न, खूब परपरायेगी…”
लेकिन मैं कुछ बोलने की हालत में नहीं थी, रात भर की जागी, जमकर मेरी कुटाई हुई थी, एक पल भी न सो पाई थी, न एक बार भी झड़ी थी।
और उसके बाद उन्होंने गुलबिया के साथ मिल के जो मेरी हालत की थी, उस थकान के बाद भी एक बार फिर मेरी चूत में दोनों ने मिल के आग लगा दी। उंगली, जीभ औरतों के पास भी कम औजार नहीं होते पागल बनाने के लिए।
नीचे की मंजिल उन्होंने सम्हाली और ऊपर की गुलबिया ने।
पहले उन्होंने अपनी हथेली से मेरी गुलाबी सहेली को जाँघों के बीच रगड़ना शुरू किया, और मैं पागल हो गई। उसके साथ ही तर्जनी और अंगूठे के बीच मटर के दाने ऐसी मेरी भगनासा को जोर-जोर से रगड़ना शुरू कर दिया। बस, पल भर में मैं पनिया गई। बुर बुरी तरह गीली हो गई।
और ऊपर ऊपर से दोनों कच्ची अमियों को चखना, काटना गुलबिया ने शुरू कर दिया। वो तो गाँव के लौंडों से भी ज्यादा मेरी कच्ची अमिया की दीवानी थी। कभी निपल चूसती तो कभी चूची पे ही कचकचा के दांत गड़ा देती।
इस दुहरे हमले का असर ये हुआ की मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गई, दोनों मिल के मुझे झड़ने के कगार पे ले जाती और फिर छोड़ देतीं।
रात भर मैं तड़पती रही थी, और सुबह से फिर वही। मस्ती से मेरी हालत खराब थी, बस मन कर रहा था दोनों कुछ भी करें, कुछ भी करें मुझे झड़ा दें। लेकिन अबकी जब मेरी देह कांपने लगी, मैं थरथराने लगी तो उसी समय दोनों रुक गईं।
मैं आँखें बंद किये सोच रही थी कि दोनों छिनार अब कुछ करेंगी, अब कुछ करेंगी लेकिन
हार कर जब मैंने आँखें खोली तो सामने एक लड़का था, खूब तगड़ा, मस्क्युलर और बस मेरी आँख खुलते ही उसने अपना छोटा सा लूंगी सा लिपटा कपड़ा हटा लिया।