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Erotica सोलवां सावन

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
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***** *****छप्पनवीं फुहार - बचे हुए दिन


Girl-anuka-4d75c3dad54c3dd58950932abe0f8891.jpg


गाँव में दिन कपूर की तरह, पंख लगाकर उड़ गए। पता ही नहीं चलता था कब सुबह हुई कब शाम ढली। रोज मुँह अंधेरे, भिनसारे जब भोर का तारा अभी आसमान में ही रहता, प्रत्यूषा भी अपने नन्हे-नन्हे पग धरते नहीं आ पाती उस समय, खड़बड़-खड़बड़… कभी मेरी नींद खुल जाती, कभी नहीं भी खुलती।



मैंने बताया था न मेरा कमरा घर के पिछवाड़े वाली साइड में, कच्चे आँगन के पास था। कमरा क्या एक छोटी सी कुठरिया, जिसमें एक रोशनदान, एक खिड़की और एक ऐसा छोटा सा दरवाजा भी था (एकदम खिड़की की ही तरह) जो बाहर खुलता था और उसी के पास में ही गाय भैंसों के बाँधने की जगह। सुबह-सुबह वहीं बंसती आकर नाद साफ करना, चारा डालना, गाय भैंस दुहने से लेकर उनका सारा काम करती थी। उसी की खड़बड़, और उसके बाद सीधे मेरे पास।



मुँह अँधेरे, भिनसारे, मैं अक्सर जाग कर भी सोने का नाटक करती पर बसन्ती भौजी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। सुबह-सुबह, निखारे मुँह, घल-घल घल-घल, सुनहरी शराब की धार।



मैं थोड़ा नाटक करती, नखड़ा करती, लेकिन ये बात मुझे भी मालूम थी और बसन्ती भौजी को कि ये सिर्फ नाटक है। और जब मैं देर से उठकर, मंजन करके रसोई में पहुँचती तो हर बार चम्पा भाभी कभी इशारे से छेड़ती तो कभी साफ-साफ पूछती जरूर, लेकिन भाभी के सामने नहीं।



और अगर कभी भाभी आ भी गई तो वो और बसन्ती उनसे बस यही कहती की- “तेरी ननद को शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बना के भेजेंगे हम…”



नमकीन तो पता नहीं, लेकिन वजन मेरा जरूर बढ़ गया था, कपड़े सब टाइट हो गए थे। इतने प्यार दुलार से चम्पा भाभी, भाभी की माँ, कभी मनुहार से तो कभी जबरदस्ती, खूब मक्खन डाला हुआ दूध का बड़ा सा ग्लास जरूर पिलातीं, उसके बाद जबरदस्त नाश्ता भी।


मैं कभी कहती की मेरे कपड़े टाइट हो गए हैं, वजन बढ़ गया है तो चम्पा भाभी का स्टैण्डर्ड जवाब था- “अरे ननद रानी, वजन बढ़ रहा है लेकिन सही जगह पे…” और मेरे उभारों को सबके सामने मसल देतीं।

मेरी भाभी भी उनका ही साथ देतीं कहतीं- “अरे टाइट, टाइट कर रही हो, वापस चलोगी न तो मिलेगा मेरा देवर रविन्द्र, उससे ढीला करवा दूंगी…”

मेरी आँखों के सामने रवींद्र की शक्ल घूम जाती और चन्दा की बात- “गाँव में जितने लौंडे हैं न, रवींद्र का उन सबसे 20 नहीं 22 है…”

(एक बार जब वह मेरे यहां आई थी तो उसने रवींद्र ‘का देखा’ था कभी बाथरूम में)।

सिर्फ घर में ही नहीं बाहर भी भाभियों का इतना प्यार दुलार मिला की, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी।



कामिनी भाभी की तो बात ही अलग थी, मेरा उनका अलग ही रिश्ता था, उन्होंने तो मुझे अपनी सगी ननद मान लिया था (सच में उनकी सगी क्या चचेरी, मौसेरी, फुफेरी ननद भी नहीं थी इसलिए ननद का अपना सब शौक वो मुझसे ही पूरा करती थी।)

मैंने बताया था न की उनके पिताजी मशहूर वैद्य थे और उनसे कामिनी भाभी ने जड़ी बूटी का ज्ञान ऐसा हासिल किया था की, बड़े डाक्टर हकीम फेल। खासतौर से लड़कियों औरतों की ‘खास परेशानी’ के मामले में। लड़का पैदा करना हो, न पैदा करना हो, पीरियड्स नहीं आते हों, या लेट करना हो, सब कुछ। और जो चीजें उन्होंने आज तक न किसी को बताई, न दी, वो अपना सारा खजाना मुझे दे दिया उन्होंने।

कुछ किशमिश दिखाई थी (चलने के पहले एक बड़ी बोतल दे दी थी मुझे उसकी) जो चार-चार अमावस की रात में सिद्ध की जाती थी, तमाम तरह की भस्म के साथ, स्वर्ण भस्म, शिलाजीत अश्वगन्धा सब कुछ, बस एक किशमिश भी किसी तरह खिला दो, जिसका खड़ा भी न होता उसका रात भर खड़ा रहेगा, एकदम सांड बन जायेगा। और अगर कहीं पूनम की रात को खिला दो तो न सिर्फ रात भर चढ़ा रहेगा बल्की जिंदगी भर दुम हिलाता घूमेगा।



अगली पूनम तो रक्षाबंधन की पड़ने वाली थी और मैंने तय कर लिया था उसका इश्तेमाल किसके ऊपर करूंगी।



ट्रेनिंग देने के मामले में भी, लड़कों को कैसे पटाया जाया रिझाया जाय से लेकर असली काम कला तक। बड़ा से बड़ा हथियार मुँह में कैसे लेकर चूस सकते हैं? भले ही वो गले तक उतर जाय लेकिन बिना गैग हुए, चोक हुए, और सिर्फ मुँह के अंदर लेना ही नहीं बल्की चूसना, चाटना, चूस-चूस के झड़ा देना। हाँ, उनकी सख्त वार्निंग थी, पुरुष की देह से निकला कुछ भी हो उसे अंदर ही घोंटना। इससे यौवन और निखरता है।



इसी तरह से नट क्रैकर भी उन्होंने मुझे सीखाया था, चूत में लण्ड को दबा-दबा के सिकोड़ निचोड़ के झड़ा देने की कला। जब मर्द रात भर के मैथुन से थका हो, उस समय लड़की को कैसे कमान अपनी हाथ में लेनी चाहिए (और इन सबकी प्रक्टिकल ट्रेनिंग भी अपने सामने करायी, उनके पति, ओह्ह… मेरा मतलब भैया थे न। और प्रैक्टिस के लिए गाँव में लौंडों की लाइन लगी थी)
Very nice sis, 💕 start me to saf naam liye the tumne private parts ke, lekin baad me tum apne traditional rang(the best rang) me a gye the Komal sis,aur doctoron ko bhi fail kar diya,nanad ko jadi butiyan aur nut cracker sikhane ke chakkar me.Marvelous , adbhut updates Komal sis ji.👌👌👌
:applause: :applause: :applause: sorry sis agar Raji kuchh galat bol gyi ho to
 

komaalrani

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Very nice sis, 💕 start me to saf naam liye the tumne private parts ke, lekin baad me tum apne traditional rang(the best rang) me a gye the Komal sis,aur doctoron ko bhi fail kar diya,nanad ko jadi butiyan aur nut cracker sikhane ke chakkar me.Marvelous , adbhut updates Komal sis ji.👌👌👌
:applause: :applause: :applause: sorry sis agar Raji kuchh galat bol gyi ho to
:thank_you::thank_you:🙏🙏🙏🙏

bahoot bahoot thanks

aur aaj maine JORU ka Gulaam men bhi update post kar diya hai please have a look
 

komaalrani

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***** *****छप्पनवीं फुहार - बचे हुए दिन


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गाँव में दिन कपूर की तरह, पंख लगाकर उड़ गए। पता ही नहीं चलता था कब सुबह हुई कब शाम ढली। रोज मुँह अंधेरे, भिनसारे जब भोर का तारा अभी आसमान में ही रहता, प्रत्यूषा भी अपने नन्हे-नन्हे पग धरते नहीं आ पाती उस समय, खड़बड़-खड़बड़… कभी मेरी नींद खुल जाती, कभी नहीं भी खुलती।



मैंने बताया था न मेरा कमरा घर के पिछवाड़े वाली साइड में, कच्चे आँगन के पास था। कमरा क्या एक छोटी सी कुठरिया, जिसमें एक रोशनदान, एक खिड़की और एक ऐसा छोटा सा दरवाजा भी था (एकदम खिड़की की ही तरह) जो बाहर खुलता था और उसी के पास में ही गाय भैंसों के बाँधने की जगह। सुबह-सुबह वहीं बंसती आकर नाद साफ करना, चारा डालना, गाय भैंस दुहने से लेकर उनका सारा काम करती थी। उसी की खड़बड़, और उसके बाद सीधे मेरे पास।



मुँह अँधेरे, भिनसारे, मैं अक्सर जाग कर भी सोने का नाटक करती पर बसन्ती भौजी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। सुबह-सुबह, निखारे मुँह, घल-घल घल-घल, सुनहरी शराब की धार।



मैं थोड़ा नाटक करती, नखड़ा करती, लेकिन ये बात मुझे भी मालूम थी और बसन्ती भौजी को कि ये सिर्फ नाटक है। और जब मैं देर से उठकर, मंजन करके रसोई में पहुँचती तो हर बार चम्पा भाभी कभी इशारे से छेड़ती तो कभी साफ-साफ पूछती जरूर, लेकिन भाभी के सामने नहीं।



और अगर कभी भाभी आ भी गई तो वो और बसन्ती उनसे बस यही कहती की- “तेरी ननद को शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बना के भेजेंगे हम…”



नमकीन तो पता नहीं, लेकिन वजन मेरा जरूर बढ़ गया था, कपड़े सब टाइट हो गए थे। इतने प्यार दुलार से चम्पा भाभी, भाभी की माँ, कभी मनुहार से तो कभी जबरदस्ती, खूब मक्खन डाला हुआ दूध का बड़ा सा ग्लास जरूर पिलातीं, उसके बाद जबरदस्त नाश्ता भी।


मैं कभी कहती की मेरे कपड़े टाइट हो गए हैं, वजन बढ़ गया है तो चम्पा भाभी का स्टैण्डर्ड जवाब था- “अरे ननद रानी, वजन बढ़ रहा है लेकिन सही जगह पे…” और मेरे उभारों को सबके सामने मसल देतीं।

मेरी भाभी भी उनका ही साथ देतीं कहतीं- “अरे टाइट, टाइट कर रही हो, वापस चलोगी न तो मिलेगा मेरा देवर रविन्द्र, उससे ढीला करवा दूंगी…”

मेरी आँखों के सामने रवींद्र की शक्ल घूम जाती और चन्दा की बात- “गाँव में जितने लौंडे हैं न, रवींद्र का उन सबसे 20 नहीं 22 है…”

(एक बार जब वह मेरे यहां आई थी तो उसने रवींद्र ‘का देखा’ था कभी बाथरूम में)।

सिर्फ घर में ही नहीं बाहर भी भाभियों का इतना प्यार दुलार मिला की, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी।



कामिनी भाभी की तो बात ही अलग थी, मेरा उनका अलग ही रिश्ता था, उन्होंने तो मुझे अपनी सगी ननद मान लिया था (सच में उनकी सगी क्या चचेरी, मौसेरी, फुफेरी ननद भी नहीं थी इसलिए ननद का अपना सब शौक वो मुझसे ही पूरा करती थी।)

मैंने बताया था न की उनके पिताजी मशहूर वैद्य थे और उनसे कामिनी भाभी ने जड़ी बूटी का ज्ञान ऐसा हासिल किया था की, बड़े डाक्टर हकीम फेल। खासतौर से लड़कियों औरतों की ‘खास परेशानी’ के मामले में। लड़का पैदा करना हो, न पैदा करना हो, पीरियड्स नहीं आते हों, या लेट करना हो, सब कुछ। और जो चीजें उन्होंने आज तक न किसी को बताई, न दी, वो अपना सारा खजाना मुझे दे दिया उन्होंने।

कुछ किशमिश दिखाई थी (चलने के पहले एक बड़ी बोतल दे दी थी मुझे उसकी) जो चार-चार अमावस की रात में सिद्ध की जाती थी, तमाम तरह की भस्म के साथ, स्वर्ण भस्म, शिलाजीत अश्वगन्धा सब कुछ, बस एक किशमिश भी किसी तरह खिला दो, जिसका खड़ा भी न होता उसका रात भर खड़ा रहेगा, एकदम सांड बन जायेगा। और अगर कहीं पूनम की रात को खिला दो तो न सिर्फ रात भर चढ़ा रहेगा बल्की जिंदगी भर दुम हिलाता घूमेगा।



अगली पूनम तो रक्षाबंधन की पड़ने वाली थी और मैंने तय कर लिया था उसका इश्तेमाल किसके ऊपर करूंगी।



ट्रेनिंग देने के मामले में भी, लड़कों को कैसे पटाया जाया रिझाया जाय से लेकर असली काम कला तक। बड़ा से बड़ा हथियार मुँह में कैसे लेकर चूस सकते हैं? भले ही वो गले तक उतर जाय लेकिन बिना गैग हुए, चोक हुए, और सिर्फ मुँह के अंदर लेना ही नहीं बल्की चूसना, चाटना, चूस-चूस के झड़ा देना। हाँ, उनकी सख्त वार्निंग थी, पुरुष की देह से निकला कुछ भी हो उसे अंदर ही घोंटना। इससे यौवन और निखरता है।



इसी तरह से नट क्रैकर भी उन्होंने मुझे सीखाया था, चूत में लण्ड को दबा-दबा के सिकोड़ निचोड़ के झड़ा देने की कला। जब मर्द रात भर के मैथुन से थका हो, उस समय लड़की को कैसे कमान अपनी हाथ में लेनी चाहिए (और इन सबकी प्रक्टिकल ट्रेनिंग भी अपने सामने करायी, उनके पति, ओह्ह… मेरा मतलब भैया थे न। और प्रैक्टिस के लिए गाँव में लौंडों की लाइन लगी थी)
Aap yeh story khatam to the end to nahi kar rahi ho na. Please mt krna. Pichlie baar rakshabadhan or khtm hui thi, kahaani jaari rakhna aap, kabhi man nhi karta ki apki koi bhi story ka the end ho.
 
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मैंने बताया था न मेरा कमरा घर के पिछवाड़े वाली साइड में, कच्चे आँगन के पास था। कमरा क्या एक छोटी सी कुठरिया, जिसमें एक रोशनदान, एक खिड़की और एक ऐसा छोटा सा दरवाजा भी था (एकदम खिड़की की ही तरह) जो बाहर खुलता था और उसी के पास में ही गाय भैंसों के बाँधने की जगह। सुबह-सुबह वहीं बंसती आकर नाद साफ करना, चारा डालना, गाय भैंस दुहने से लेकर उनका सारा काम करती थी। उसी की खड़बड़, और उसके बाद सीधे मेरे पास।



मुँह अँधेरे, भिनसारे, मैं अक्सर जाग कर भी सोने का नाटक करती पर बसन्ती भौजी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। सुबह-सुबह, निखारे मुँह, घल-घल घल-घल, सुनहरी शराब की धार।



मैं थोड़ा नाटक करती, नखड़ा करती, लेकिन ये बात मुझे भी मालूम थी और बसन्ती भौजी को कि ये सिर्फ नाटक है। और जब मैं देर से उठकर, मंजन करके रसोई में पहुँचती तो हर बार चम्पा भाभी कभी इशारे से छेड़ती तो कभी साफ-साफ पूछती जरूर, लेकिन भाभी के सामने नहीं।



और अगर कभी भाभी आ भी गई तो वो और बसन्ती उनसे बस यही कहती की- “तेरी ननद को शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बना के भेजेंगे हम…”



नमकीन तो पता नहीं, लेकिन वजन मेरा जरूर बढ़ गया था, कपड़े सब टाइट हो गए थे। इतने प्यार दुलार से चम्पा भाभी, भाभी की माँ, कभी मनुहार से तो कभी जबरदस्ती, खूब मक्खन डाला हुआ दूध का बड़ा सा ग्लास जरूर पिलातीं, उसके बाद जबरदस्त नाश्ता भी।


मैं कभी कहती की मेरे कपड़े टाइट हो गए हैं, वजन बढ़ गया है तो चम्पा भाभी का स्टैण्डर्ड जवाब था- “अरे ननद रानी, वजन बढ़ रहा है लेकिन सही जगह पे…” और मेरे उभारों को सबके सामने मसल देतीं।

मेरी भाभी भी उनका ही साथ देतीं कहतीं- “अरे टाइट, टाइट कर रही हो, वापस चलोगी न तो मिलेगा मेरा देवर रविन्द्र, उससे ढीला करवा दूंगी…”

मेरी आँखों के सामने रवींद्र की शक्ल घूम जाती और चन्दा की बात- “गाँव में जितने लौंडे हैं न, रवींद्र का उन सबसे 20 नहीं 22 है…”

(एक बार जब वह मेरे यहां आई थी तो उसने रवींद्र ‘का देखा’ था कभी बाथरूम में)।

सिर्फ घर में ही नहीं बाहर भी भाभियों का इतना प्यार दुलार मिला की, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी।



कामिनी भाभी की तो बात ही अलग थी, मेरा उनका अलग ही रिश्ता था, उन्होंने तो मुझे अपनी सगी ननद मान लिया था (सच में उनकी सगी क्या चचेरी, मौसेरी, फुफेरी ननद भी नहीं थी इसलिए ननद का अपना सब शौक वो मुझसे ही पूरा करती थी।)

मैंने बताया था न की उनके पिताजी मशहूर वैद्य थे और उनसे कामिनी भाभी ने जड़ी बूटी का ज्ञान ऐसा हासिल किया था की, बड़े डाक्टर हकीम फेल। खासतौर से लड़कियों औरतों की ‘खास परेशानी’ के मामले में। लड़का पैदा करना हो, न पैदा करना हो, पीरियड्स नहीं आते हों, या लेट करना हो, सब कुछ। और जो चीजें उन्होंने आज तक न किसी को बताई, न दी, वो अपना सारा खजाना मुझे दे दिया उन्होंने।

कुछ किशमिश दिखाई थी (चलने के पहले एक बड़ी बोतल दे दी थी मुझे उसकी) जो चार-चार अमावस की रात में सिद्ध की जाती थी, तमाम तरह की भस्म के साथ, स्वर्ण भस्म, शिलाजीत अश्वगन्धा सब कुछ, बस एक किशमिश भी किसी तरह खिला दो, जिसका खड़ा भी न होता उसका रात भर खड़ा रहेगा, एकदम सांड बन जायेगा। और अगर कहीं पूनम की रात को खिला दो तो न सिर्फ रात भर चढ़ा रहेगा बल्की जिंदगी भर दुम हिलाता घूमेगा।



अगली पूनम तो रक्षाबंधन की पड़ने वाली थी और मैंने तय कर लिया था उसका इश्तेमाल किसके ऊपर करूंगी।



ट्रेनिंग देने के मामले में भी, लड़कों को कैसे पटाया जाया रिझाया जाय से लेकर असली काम कला तक। बड़ा से बड़ा हथियार मुँह में कैसे लेकर चूस सकते हैं? भले ही वो गले तक उतर जाय लेकिन बिना गैग हुए, चोक हुए, और सिर्फ मुँह के अंदर लेना ही नहीं बल्की चूसना, चाटना, चूस-चूस के झड़ा देना। हाँ, उनकी सख्त वार्निंग थी, पुरुष की देह से निकला कुछ भी हो उसे अंदर ही घोंटना। इससे यौवन और निखरता है।



इसी तरह से नट क्रैकर भी उन्होंने मुझे सीखाया था, चूत में लण्ड को दबा-दबा के सिकोड़ निचोड़ के झड़ा देने की कला। जब मर्द रात भर के मैथुन से थका हो, उस समय लड़की को कैसे कमान अपनी हाथ में लेनी चाहिए (और इन सबकी प्रक्टिकल ट्रेनिंग भी अपने सामने करायी, उनके पति, ओह्ह… मेरा मतलब भैया थे न। और प्रैक्टिस के लिए गाँव में लौंडों की लाइन लगी थी)
Mast build up ho raha hai😉
 
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Aap yeh story khatam to the end to nahi kar rahi ho na. Please mt krna. Pichlie baar rakshabadhan or khtm hui thi, kahaani jaari rakhna aap, kabhi man nhi karta ki apki koi bhi story ka the end ho.
How i wish, there were only a few more discerning readers like you, lovers of slow simmering sensuousness, but,...alas,... :verysad::verysad:
 
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Thanks Thanks and Thanks
 

snidgha12

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हमरी ३लखीया जिज्जी का बहुमान ,:love3:

आप अउर आपका लेखन कौशल तो नवलखा है ही, तो सारे थ्रेड नवलखा होइ जाएं ऐसी शुभकामनाएं:love2:
 
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komaalrani

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आप अउर आपका लेखन कौशल तो नवलखा है ही, तो सारे थ्रेड नवलखा होइ जाएं ऐसी शुभकामनाएं:love2:
:thanks::thanks:🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏:thanx:
 
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