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Erotica सोलवां सावन

snidgha12

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ऐ जिज्जी, सब दोस हमरा हि नहीं तुहरे लल्ला जी के :love3: छुटकु जी )==O का भी है जोन हमरी ऐसि तैसी कर देता है

अउर का कहैं अब जब तक दो तीन बार खुदाई ना हुई जाए मन ही नहीं मानता न उनका न हमारा

अउर का कहैं सब दोस उनकि भौजि का है उनको ऐसा बैल बनाके हमरे खेत में छोड़ दिया
 
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komaalrani

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ऐ जिज्जी, सब दोस हमरा हि नहीं तुहरे लल्ला जी के :love3: छुटकु जी )==O का भी है जोन हमरी ऐसि तैसी कर देता है

अउर का कहैं अब जब तक दो तीन बार खुदाई ना हुई जाए मन ही नहीं मानता न उनका न हमारा

अउर का कहैं सब दोस उनकि भौजि का है उनको ऐसा बैल बनाके हमरे खेत में छोड़ दिया
बैल नहीं सांड़,.... :love1::love1:
 

komaalrani

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बीत गए गाँव के दिन

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सिर्फ कामिनी भाभी ही नहीं, सभी भाभियों ने कुछ-कुछ सिखाया, चमेली भाभी और गुलबिया ने तो मुझे एकदम पक्की चूत चटोरी बना दिया, चाहे कोई प्रौढ़ा हो या नई बछेड़ी, बस चार-पांच मिनट में कैसे झड़ा देना है। और सिर्फ चूत नहीं, पिछवाड़े का भी स्वाद लेना मुझे गुलबिया ने अच्छी तरह सिखा पढ़ा दिया था, अंदर तक जीभ डाल-डाल के खरोंचने की कला,

और फिर गाँव की गारी, एक से एक, इसके पहले घर पे भाभियां मुझे घेर लेती थीं और शुद्ध नान वेज गारी दे दे के, लेकिन अब एक तो मैं ऐसी गारी का न बुरा मानूंगी बल्की उससे भी खतरनाक खुली गारी से उनका जवाब दूंगी।

दिन भर मौज मस्ती, गाँव की हर गली पगड़न्ड़ी मैंने देख ली थी। गन्ने के खेत हों, अमराई हो, अरहर के खेत हों, नदी का किनारा हो, शुरू-शुरू में चन्दा के साथ, लेकिन अब तो कभी अकेले तो कभी गुलबिया तो कभी चन्दा के साथ।


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किसी गाँव के लौंडे को मैंने मना नहीं किया जोबन दान को। एक बार तो सरपत के झुण्ड के पास एक मिला, कई दिन से तड़प रहा था बेचारा। बस वहीं मेड़ के पास।


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एक ने तो आम की टहनी पे झुका के ही एकदम खुलेआम, एक ने बँसवाड़ी में।

जब भी लौटती तो चम्पा भाभी जरूर चेक करती- “आगे-पीछे दोनों ओर से सड़का टपक रहा है की नहीं?”

मैंने कभी उनको निराश नहीं किया। तीन-चार से कम तो कभी नहीं।


शाम को हम लोग अमराई में झूला झुलने जाते, और वहां जम के भाभियों के साथ सहेलियों के साथ मस्ती।



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कई बार जब रात का ‘कुछ प्रोग्राम’ होता तो मैं भौजाइयों के साथ लौट आती वरना फिर अपनी सहेलियों के साथ ‘शिकार’ पे।

रात का प्रोग्राम अजय के साथ ही होता, जब होता। वैसे भी इस वाले आँगन की साइड में मैं अकेले ही सोती थी, भाभी रोज चम्पा भाभी के साथ।

ज्यादा नहीं दो दिन अजय रहा पूरी रात और एक दिन वो सुनील को भी ले आया। जिस रोज आना था उसके पहले वाली रात को हमारे ही घर पे रतजगा हुआ, खूब मजा आया। पहले तो सोहर फिर जम के गारी। रात भर पानी भी बरस रहा था, कोई जा भी नहीं सकता था वापस।

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और बाद में जोड़ी बना बना के, ननद लड़का बनती और भौजाइयां, दुल्हन उसकी, फिर सारे आसान सबके सामने।



एक बार मेरी जोड़ी चमेली भाभी के साथ बनी तो एक बार बंसती के साथ। चम्पा भाभी ने चन्दा को खूब रगड़ा लेकिन सबसे ज्यादा मजा आया कामिनी भाभी और मेरी भाभी की जोड़ी में।



लेकिन सुबह होते ही पता चला की आज जाना है। मन एकदम नहीं कर रहा था लेकिन अब कालेज खुलने का टाइम हो गया था।
 

komaalrani

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***** *****वापसी की बेला


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दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। मेरा तो वापस जाने का मन नहीं कर रहा था।

पर भाभी बोलीं कि रक्षाबंधन में सिर्फ चार दिन बचे हैं। और मैं उनके पति और देवर की इकलौती बहन थी, और मुश्कुराकर चिढ़ाया- “और बाकी सावन वहां बरस जायेगा, वहां भी तुम्हारा कोई इंतजार कर रहा है…”

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मुश्कुराकर, जोबन उभारकर मैं बोली- “अरे डरता कौन है भाभी…”
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जिस दिन वापस जाना था, मैं सुबह से व्यस्त थी। सामान रखना, मिलने के लिये मेरी सारी सहेलियां आ रहीं थी और भाभियां। फिर भाभी मुन्ने को लेकर पहली बार मायके से वापस जा रही थीं, उसके रीत रिवाज… पता ही नहीं चला कि कैसे समय बीत गया।



चलने के समय के थोड़ी देर पहले ही चन्दा ने आकर मेरे कान में कुछ कहा।

मैंने भाभी से कहा कि- “मैं अपनी कुछ सहेलियों से मिलकर वापस आती हूं…”


भाभी बोलीं- “जल्दी आना, बस आधे घंटे में बस आ जायेगी…”

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चन्दा मेरा हाथ खींचकर ले जाते हुए बोली- “हाँ, बस इसको आधे घंटे में वापस ले आऊँगी, देर नहीं होगी…” कहकर मुझे भगाते हुए वह पास के बगीचे में एक कमरे में ले गई।


वहां अजय, रवी और दिनेश के साथ-साथ गीता भी थी और मुझको देखकर सब मुश्कुरा पड़े।

तीनों के पाजामें में तने तंबू और उनकी मुश्कुराहट को देखकर मैं उनका इरादा समझ गई। तब तक चन्दा ने दरवाजे की सांकल बंद कर दी।

मैं- “हे नहीं… अभी टाइम नहीं है, तुम तीनों के साथ। आधे घंटे में बस पकड़नी है…”



अजय शरारत से बोला- “तो क्या हुआ? आधे घंटे बहुत होते हैं, अब तुम कित्ते दिन बाद मिलोगी?”

“अरे दो महीने बाद… कातिक में तो आना ही है इसे… अच्छा चलो… आधे घंटें में किसके साथ?”

चन्दा ने समझाया।

दिनेश का नंबर लगा।



आज मैं वही टाप और स्कर्ट पहने थी, जिसे पहनकर मैं शहर से आई थी। कुछ खाने पीने से और उससे भी बढ़कर, कुछ मेरे यारों कि मेहनत से मेरे जोबन और गदरा गये थे, उभरकर टाप को फाड़ रहे थे। वही हाल मेरे चूतड़ों ने स्कर्ट का किया था।


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दिनेश ने कुछ अजय और रवी से बात की और तीनों अर्थ-पूर्ण ढंग से मुश्कुरा रहे थे। दिनेश पाजामा खोल के लेट गया, उसका कुतुब मीनार हवा में खड़ा था। मैं समझ गई वह क्या चाहता है।
 
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आखिरी दांव

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दिनेश का नंबर लगा।



आज मैं वही टाप और स्कर्ट पहने थी, जिसे पहनकर मैं शहर से आई थी। कुछ खाने पीने से और उससे भी बढ़कर, कुछ मेरे यारों कि मेहनत से मेरे जोबन और गदरा गये थे, उभरकर टाप को फाड़ रहे थे। वही हाल मेरे चूतड़ों ने स्कर्ट का किया था।



दिनेश ने कुछ अजय और रवी से बात की और तीनों अर्थ-पूर्ण ढंग से मुश्कुरा रहे थे। दिनेश पाजामा खोल के लेट गया, उसका कुतुब मीनार हवा में खड़ा था। मैं समझ गई वह क्या चाहता है।



मैंने झुक के अपनी पैंटी उतारी और स्कर्ट उठा के दोनों टांगें फैलाकर उसके ऊपर चढ़ गई। पर दिनेश का लण्ड खाली कुतुबमीनार की तरह लंबा ही नहीं बल्की खूब मोटा भी था। मैं अपनी चूत फैलाकर उसके सुपाड़े को रगड़ रही थी और वह अंदर नहीं घुस पा रहा था।



तभी चन्दा और गीता दोनों ने मेरे कंधे पे धक्का देना शुरू कर दिया और लण्ड मेरी चूत में समाने लगा। उसका मोटा लण्ड जैसे ही मेरी चूत की दीवारों को कसकर फैलाता, रगड़ता अंदर घुस रहा था, मैं मस्ती से पागल हो रही थी।



चन्दा और गीता का साथ देने के लिये, रवी भी आ आया और जल्द ही दिनेश का पूरा लण्ड इन तीनों ने घुसवा कर ही दम लिया। मस्ती में नीचे से दिनेश चूतड़ उठा रहा था और ऊपर से मैं। उसने मेरा टाप खोलकर मेरे फ्रंट ओपेन ब्रा के सब हुक खोल दिये और कस-कस के मेरी चूचियां मसलने लगा। ये देखके अजय और रवी की हालत और खराब हो रही थी।



चन्दा ने दिनेश को आँख मारी और उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैं उसकी चौड़ी छाती पर थी, वह अपनी बांहों में मुझे कस के भींचे था और वह मेरे जोबन का रस चूस रहा था।



तभी अजय ने अपना लण्ड पीछे से मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। मैंने बचने के लिये हिलने डुलने की कोशिश की, पर… दिनेश मुझे कस के पकड़े था और फिर उसका मोटा लंबा लण्ड भी जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। अजय ने मेरे दोनों चूतड़ फैलाकर कस के धक्का मारा और एक बार में ही उसका मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरा घुस गया।



“उयीइइ… उयीइइइइ…” मैं जोर से चीखी।



पर रवी पहले से तैयार था और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया। वह कस के मेरा सिर पकड़के ढकेल रहा था और अपना पूरा लण्ड मेरे मुँह में ठूंस के ही माना।



उधर अजय ने मेरी कसी गाण्ड में अपना लण्ड पेलना चालू रखा। रवी का लण्ड मेरे मुँह में होने से कोई आवाज भी नहीं निकाल पा रही थी।



उधर थोड़ी देर में ही अजय का लण्ड पूरी तरह मेरी गाण्ड में घुस आया और फिर उसने और दिनेश ने मिलकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। जब अजय गाण्ड से लण्ड निकालता, तो मुझे पकड़कर अपना चूतड़ उठाकर दिनेश पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल देता और फिर जब अजय जड़ तक अपना लण्ड डालकर मेरी गाण्ड मारता तो दिनेश बाहर निकाल लेता। लेकिन कुछ देर बाद, अजय और दिनेश एक साथ अपना लण्ड घुसेड़ने लगे।



मुझे लगा रहा था, जैसे कोई एक झिल्ली मेरी चूत और गाण्ड के बीच है और जिसे दोनों लण्ड रगड़ रहे हैं। मैं भी एक साथ तीन लण्ड का मजा ले रही थी। मैंने रवी के लण्ड को खूब कस-कस के चूसना शुरू किया और मेरी जीभ उसके लण्ड को कस के चाट रही थी। मेरी एक चूची अजय मसल रहा था और दूसरी दिनेश। तीनों ही तेजी से चोद रहे थे और मैं भी चूतड़ उछाल-उछालकर, सर हिला-हिलाकर इस चुदाई का मजा ले रही थी।



रवी सबसे पहले झड़ा और उसने कस के मेरा सर पकड़ रखा था जिससे मुझे उसका सारा वीर्य, निगलना पड़ा, पर वह इतना ज्यादा रुक-रुक कर झड़ रहा था कि मेरा पूरा मुँह उससे भर गया और कुछ मेरे गाल से होते हुए मेरे उभारों पर भी गिर गया।



तब तक पूरबी ने बाहर से आकर दरवाजा खटखटाया- “हे बस आ गई है, हार्न बजा रही है…”



अजय और दिनेश अब और कस-कस के धक्के लगाने लगे। और मैं भी… मैं झड़ने लगी… मेरी चूत कस-कस के सिकुड़ रही थी और दिनेश और अजय दोनों एक साथ मेरी चूत और गाण्ड में झड़ रहे थे।



पूरबी ने फिर गुहार लगाई- “अरे देर हो रही है, भाभी बुला रही हैं…”

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दिनेश ने अपना लण्ड मुश्किल से मेरी चूत से बाहर निकाला। उसमें अभी भी काफी मसाला बचा था। रवी की जगह अब उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर रख दिया और मैं उसे गड़प कर गई।


और मेरे होंठों से छूते ही फिर वीर्य की एक बड़ी धार निकली जो मेरे मुँह को भरकर गालों पर आ गई। उसने अपना लण्ड बाहर निकालकर सुपाड़े को मेरे निपल पर लगाया कि वीर्य का एक बड़ा थक्का वहां गिर गया। बाकी उसने अपने लण्ड को मेरी चूचियों के बीच रगड़कर मेरी चूत का रस और अपने लण्ड का रस वहां साफ किया।

अजय ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाल लिया था और लग रहा था कि वह अभी भी झड़ रहा है। उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर सटा दिया।

मैं सोच रही थी कि… यह… अभी कहां से… क्या?



पर चन्दा मेरे सिर को दबाते बोली- “अरे ले-ले… ले-ले कसकर चूम ले, तेरे यार का लण्ड है…”


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मेरे भी मन में झूले का दृश्य याद आ गया, जब पहली बार उसने मेरी मारी थी, और उसी ने शुरूआत की थी इस मजे की। मैंने होंठ खोलकर उसे ले लिया और होंठों से चूसते हुए जीभ से उसका सुपाड़ा अच्छी तरह चाटने लगी। कुछ अलग सा अजीब सा स्वाद… मैंने आँखें बंद कर ली और जोर से चूसने चाटने लगी। अजय भी उंह्ह… उंह्ह… आह्ह… आह्ह… कर रहा था।



उसने जब अपने लण्ड को बाहर निकालकर दबाया तो वीर्य की एक बड़ी तेज धार मेरे गालों और जोबन पे पड़ गई। एक बार फिर उसको मैंने मुँह में लेकर जो भी कुछ बचा, लगा था, चाट चूट कर साफ कर लिया।



तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई- “हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला।



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मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…
 
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आखिरी दांव

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दिनेश का नंबर लगा।



आज मैं वही टाप और स्कर्ट पहने थी, जिसे पहनकर मैं शहर से आई थी। कुछ खाने पीने से और उससे भी बढ़कर, कुछ मेरे यारों कि मेहनत से मेरे जोबन और गदरा गये थे, उभरकर टाप को फाड़ रहे थे। वही हाल मेरे चूतड़ों ने स्कर्ट का किया था।



दिनेश ने कुछ अजय और रवी से बात की और तीनों अर्थ-पूर्ण ढंग से मुश्कुरा रहे थे। दिनेश पाजामा खोल के लेट गया, उसका कुतुब मीनार हवा में खड़ा था। मैं समझ गई वह क्या चाहता है।



मैंने झुक के अपनी पैंटी उतारी और स्कर्ट उठा के दोनों टांगें फैलाकर उसके ऊपर चढ़ गई। पर दिनेश का लण्ड खाली कुतुबमीनार की तरह लंबा ही नहीं बल्की खूब मोटा भी था। मैं अपनी चूत फैलाकर उसके सुपाड़े को रगड़ रही थी और वह अंदर नहीं घुस पा रहा था।



तभी चन्दा और गीता दोनों ने मेरे कंधे पे धक्का देना शुरू कर दिया और लण्ड मेरी चूत में समाने लगा। उसका मोटा लण्ड जैसे ही मेरी चूत की दीवारों को कसकर फैलाता, रगड़ता अंदर घुस रहा था, मैं मस्ती से पागल हो रही थी।



चन्दा और गीता का साथ देने के लिये, रवी भी आ आया और जल्द ही दिनेश का पूरा लण्ड इन तीनों ने घुसवा कर ही दम लिया। मस्ती में नीचे से दिनेश चूतड़ उठा रहा था और ऊपर से मैं। उसने मेरा टाप खोलकर मेरे फ्रंट ओपेन ब्रा के सब हुक खोल दिये और कस-कस के मेरी चूचियां मसलने लगा। ये देखके अजय और रवी की हालत और खराब हो रही थी।



चन्दा ने दिनेश को आँख मारी और उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैं उसकी चौड़ी छाती पर थी, वह अपनी बांहों में मुझे कस के भींचे था और वह मेरे जोबन का रस चूस रहा था।



तभी अजय ने अपना लण्ड पीछे से मेरी गाण्ड के छेद पे लगाया। मैंने बचने के लिये हिलने डुलने की कोशिश की, पर… दिनेश मुझे कस के पकड़े था और फिर उसका मोटा लंबा लण्ड भी जड़ तक मेरी चूत में धंसा था। अजय ने मेरे दोनों चूतड़ फैलाकर कस के धक्का मारा और एक बार में ही उसका मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरा घुस गया।



“उयीइइ… उयीइइइइ…” मैं जोर से चीखी।



पर रवी पहले से तैयार था और उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया। वह कस के मेरा सिर पकड़के ढकेल रहा था और अपना पूरा लण्ड मेरे मुँह में ठूंस के ही माना।



उधर अजय ने मेरी कसी गाण्ड में अपना लण्ड पेलना चालू रखा। रवी का लण्ड मेरे मुँह में होने से कोई आवाज भी नहीं निकाल पा रही थी।



उधर थोड़ी देर में ही अजय का लण्ड पूरी तरह मेरी गाण्ड में घुस आया और फिर उसने और दिनेश ने मिलकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। जब अजय गाण्ड से लण्ड निकालता, तो मुझे पकड़कर अपना चूतड़ उठाकर दिनेश पूरा लण्ड मेरी चूत में डाल देता और फिर जब अजय जड़ तक अपना लण्ड डालकर मेरी गाण्ड मारता तो दिनेश बाहर निकाल लेता। लेकिन कुछ देर बाद, अजय और दिनेश एक साथ अपना लण्ड घुसेड़ने लगे।



मुझे लगा रहा था, जैसे कोई एक झिल्ली मेरी चूत और गाण्ड के बीच है और जिसे दोनों लण्ड रगड़ रहे हैं। मैं भी एक साथ तीन लण्ड का मजा ले रही थी। मैंने रवी के लण्ड को खूब कस-कस के चूसना शुरू किया और मेरी जीभ उसके लण्ड को कस के चाट रही थी। मेरी एक चूची अजय मसल रहा था और दूसरी दिनेश। तीनों ही तेजी से चोद रहे थे और मैं भी चूतड़ उछाल-उछालकर, सर हिला-हिलाकर इस चुदाई का मजा ले रही थी।



रवी सबसे पहले झड़ा और उसने कस के मेरा सर पकड़ रखा था जिससे मुझे उसका सारा वीर्य, निगलना पड़ा, पर वह इतना ज्यादा रुक-रुक कर झड़ रहा था कि मेरा पूरा मुँह उससे भर गया और कुछ मेरे गाल से होते हुए मेरे उभारों पर भी गिर गया।



तब तक पूरबी ने बाहर से आकर दरवाजा खटखटाया- “हे बस आ गई है, हार्न बजा रही है…”



अजय और दिनेश अब और कस-कस के धक्के लगाने लगे। और मैं भी… मैं झड़ने लगी… मेरी चूत कस-कस के सिकुड़ रही थी और दिनेश और अजय दोनों एक साथ मेरी चूत और गाण्ड में झड़ रहे थे।



पूरबी ने फिर गुहार लगाई- “अरे देर हो रही है, भाभी बुला रही हैं…”

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दिनेश ने अपना लण्ड मुश्किल से मेरी चूत से बाहर निकाला। उसमें अभी भी काफी मसाला बचा था। रवी की जगह अब उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर रख दिया और मैं उसे गड़प कर गई।


और मेरे होंठों से छूते ही फिर वीर्य की एक बड़ी धार निकली जो मेरे मुँह को भरकर गालों पर आ गई। उसने अपना लण्ड बाहर निकालकर सुपाड़े को मेरे निपल पर लगाया कि वीर्य का एक बड़ा थक्का वहां गिर गया। बाकी उसने अपने लण्ड को मेरी चूचियों के बीच रगड़कर मेरी चूत का रस और अपने लण्ड का रस वहां साफ किया।

अजय ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाल लिया था और लग रहा था कि वह अभी भी झड़ रहा है। उसने अपना लण्ड मेरे होंठों पर सटा दिया।

मैं सोच रही थी कि… यह… अभी कहां से… क्या?



पर चन्दा मेरे सिर को दबाते बोली- “अरे ले-ले… ले-ले कसकर चूम ले, तेरे यार का लण्ड है…”


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मेरे भी मन में झूले का दृश्य याद आ गया, जब पहली बार उसने मेरी मारी थी, और उसी ने शुरूआत की थी इस मजे की। मैंने होंठ खोलकर उसे ले लिया और होंठों से चूसते हुए जीभ से उसका सुपाड़ा अच्छी तरह चाटने लगी। कुछ अलग सा अजीब सा स्वाद… मैंने आँखें बंद कर ली और जोर से चूसने चाटने लगी। अजय भी उंह्ह… उंह्ह… आह्ह… आह्ह… कर रहा था।



उसने जब अपने लण्ड को बाहर निकालकर दबाया तो वीर्य की एक बड़ी तेज धार मेरे गालों और जोबन पे पड़ गई। एक बार फिर उसको मैंने मुँह में लेकर जो भी कुछ बचा, लगा था, चाट चूट कर साफ कर लिया।



तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई- “हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला।



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मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…
Lajawab Komal Ji, jaate jaate bhi mana nhi kiya kisi ko
 
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तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई- “हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला।

मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…”


मेरी गाण्ड और चूत दोनों में वीर्य भरा था और बस चूना ही चाहता था। चूची और गाल पे जो लगा था सो अलग। पूरबी ने मेरे गाल पर लगे, अजय और रवी के वीर्य को कसकर चेहरे पे रगड़ दिया और कहा- “तेरा गोरा रंग अब और चमकेगा…”

चन्दा और गीता ने जल्दी-जल्दी मेरा टाप बंद कर दिया पर उन नालायकों ने मेरी ब्रा को खुला ही रहने दिया और मेरे निपल पर लगे वीर्य को भी वैसे ही छोड़ दिया।

मैं जल्दी-जल्दी चलकर गई। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली।


राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था। मैं जब राकी को सहलाने लगी तो पीछे से किसी ने बोला- “अरे ज्यादा घबड़ाने की बात नहीं है, कातिक में तो ये फिर आयेगी…”

मैं मुश्कुराये बिना नहीं रह सकी।



ड्राइवर भी बगल के गाँव का था। वह भी बिना बोले नहीं रह सका, आखिर मैं उसके बहनोई की बहन जो थी। मुझे देखते हुए, द्विअर्थी ढंग से बोला- “मैंने इतनी देर से खड़ा कर रखा है…”

चमेली भाभी कैसे चुप रहतीं, उन्होंने तुरंत उसी स्टाइल में जवाब दिया-

“अरे खड़ा किया है तो क्या हुआ? आ तो गई हैं चढ़ने वाली, बैठाना दो घंटे तक…”

किसी ने कहा कि ये बहुत देर से हार्न बजा रहा था।

तो चम्पा भाभी मेरे गालों पर कस के चिकोटी काटतीं, बोलीं-

“अब इसका हार्न बजायेगा…”

सामान पहले ही रखा जा चुका था। मैं जाकर बस में बैठ गई, खिड़की के बगल में और बस चल दी। मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमराई, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने… वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा, सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था।


भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो?

तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा।


भाभी और मेरे पास सट गईं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं-

“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…”



मेरे चेहरे पर मुश्कान खिल उठी। मेरे सामने रवीन्द्र की शक्ल आ गई। मैंने भी भाभी के कंधे पे हाथ रखकर, मुश्कुराकर कहा-

“भाभी आपके भाइयों को देख लिया, अब देवर को भी देख लूंगी…”



तो ये रही मेरी भाभी के गाँव में आप बीती।



भाभी के देवर ने मेरे साथ क्या किया, या मैंने भाभी के देवर के साथ, ये तो मैं अपकी कल्पना पर छोड़ती हूँ
 

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तब तक चन्दा ने सांकल खोल दी और पूरबी अंदर आ गई- “हे जल्दी चलो, बस खड़ी है, ड्राइवर हार्न बजाये जा रहा है…” उसने बोला।

मैंने बढ़कर अपनी पैंटी उठानी चाही तो पूरबी ने उसे उठा लिया और मुश्कुराते हुये बोली- “हे अब इसे पहनने, पोंछने का टाइम नहीं है बस तुम चल चलो…”


मेरी गाण्ड और चूत दोनों में वीर्य भरा था और बस चूना ही चाहता था। चूची और गाल पे जो लगा था सो अलग। पूरबी ने मेरे गाल पर लगे, अजय और रवी के वीर्य को कसकर चेहरे पे रगड़ दिया और कहा- “तेरा गोरा रंग अब और चमकेगा…”

चन्दा और गीता ने जल्दी-जल्दी मेरा टाप बंद कर दिया पर उन नालायकों ने मेरी ब्रा को खुला ही रहने दिया और मेरे निपल पर लगे वीर्य को भी वैसे ही छोड़ दिया।

मैं जल्दी-जल्दी चलकर गई। मेरे गालों पर तो लगा ही था, मेरा मुँह भी उन तीनों के रस से भरा था। बस खड़ी थी और ड्राइवर अभी भी हार्न बजा रहा था। मैं जल्दी-जल्दी सबसे मिली।


राकी भी आकर मेरे पैरों को चाट रहा था। मैं जब राकी को सहलाने लगी तो पीछे से किसी ने बोला- “अरे ज्यादा घबड़ाने की बात नहीं है, कातिक में तो ये फिर आयेगी…”

मैं मुश्कुराये बिना नहीं रह सकी।



ड्राइवर भी बगल के गाँव का था। वह भी बिना बोले नहीं रह सका, आखिर मैं उसके बहनोई की बहन जो थी। मुझे देखते हुए, द्विअर्थी ढंग से बोला- “मैंने इतनी देर से खड़ा कर रखा है…”

चमेली भाभी कैसे चुप रहतीं, उन्होंने तुरंत उसी स्टाइल में जवाब दिया-

“अरे खड़ा किया है तो क्या हुआ? आ तो गई हैं चढ़ने वाली, बैठाना दो घंटे तक…”

किसी ने कहा कि ये बहुत देर से हार्न बजा रहा था।

तो चम्पा भाभी मेरे गालों पर कस के चिकोटी काटतीं, बोलीं-


“अब इसका हार्न बजायेगा…”

सामान पहले ही रखा जा चुका था। मैं जाकर बस में बैठ गई, खिड़की के बगल में और बस चल दी। मैं देख रही थी, बाहर, खिड़की से, गुजरती हुई, अमराई, जहां हम झूला झूलने जाते थे और जहां रात में पहली बार अजय ने… वो गन्ने के खेत, मेले का मैदान, नदी का किनारा, सब पड़ रहे थे और पिक्चर के दृश्य की तरह सारा दृश्य एक-एक करके सामने आ रहा था।


भाभी ने पूछा- “क्यों क्या सोच रही हो?

तब तक एक झटका लगा और मेरी गाण्ड और चूत दोनों से वीर्य का एक टुकड़ा मेरे चूतड़ और जांघ पर फिसल पड़ा।


भाभी और मेरे पास सट गईं और मेरे गाल से गाल सटाकर बोलीं-

“घर चलो, वहां मेरा देवर इंतजार कर रहा होगा…”



मेरे चेहरे पर मुश्कान खिल उठी। मेरे सामने रवीन्द्र की शक्ल आ गई। मैंने भी भाभी के कंधे पे हाथ रखकर, मुश्कुराकर कहा-

“भाभी आपके भाइयों को देख लिया, अब देवर को भी देख लूंगी…”




तो ये रही मेरी भाभी के गाँव में आप बीती।



भाभी के देवर ने मेरे साथ क्या किया, या मैंने भाभी के देवर के साथ, ये तो मैं अपकी कल्पना पर छोड़ती हूँ
Nahi Komal Ji esa mat kariye pls. Ravindra wala is baar mt chhodo bich me. Maana Rocky to is forum ki vajah se nhi likh paai, par Ravindra ka to kr dijiye.
Apne is pathak ki yeh baat ka maan rakh lijiye
 

snidgha12

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:dquestion:
समाप्त...???
 
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