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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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Bahut bahut dhanyawaad apka komal Ji, is pathak ki baat ka man rakhne ke liye
aap bhi to meri baat ka maan rakhte hain har post par comment dete hain, post chahe jaisi ho taarif karte hain,... thanks soooooooooo much.
 
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komaalrani

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Dil khush kar diya komal Ji apne. 19-20 nhi, is baar 25 wale se mukabla hai Guddi ka,
Ekdam sahi kaha aapne,... abhi mukabale ki taiyaari chal rahi hai , sote sher ko pahle jagaya jaa raha hai , ....shikar khud sher ke paas jaa raha hai
 

komaalrani

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हर बार रविन्द्र टीज होकर रह जाता था...
और काफी कुछ पाठक की कल्पनाओं पर आप छोड़ देती थीं...
इस बार रविन्द्र का किस्सा कुछ विस्तार से...
बल्कि कहानी के शुरू में चंदा ने भी कुछ फरमाइश की थी गुड्डी से रविन्द्र के लिए...
अगर कहानी वहाँ तक जाए तो सोने पे सुहागा..
बहुत बहुत धन्यवाद , देखिये मामला कहाँ तक बढ़ता है, राखी भी नजदीक है
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
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***** *****सत्तावनवीं फुहार - शहर में राखी, रविन्द मेरा कजिन


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जब मैं घर पहुँची तो बहुत देर हो चुकी थी, इसलिये मैं अपने घर पे ही उतर गई। अगले दिन मैंने सुबह से ही तय कर लिया था, भाभी के घर जाने को। सावन की पूनो में अब तीन दिन बचे थे। और उसका बहाना भी मिल गया। जब स्कूल की छुट्टी हुई, तो तेज बारिश हो रही थी। और भाभी का घर पास ही था।

वैसे भी दिन भर बजाय पढ़ाई के मेरा मन रवीन्द्र में, चन्दा ने उसके बारें में जो बताया था, बस वही सब बातें दिमाग में घूमती रहीं। भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गई। मेरे स्कूल की यूनीफार्म, सफेद ब्लाउज और नेवी ब्लू स्कर्ट है।


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और भाभी के गाँव से आकर मैंने देखा कि मेरा ब्लाउज कुछ ज्यादा ही तंग हो गया है। भाभी के घर तक पहुँचते-पहुँचते भी मैं अच्छी तरह भीग गई, खास कर मेरा सफेद ब्लाउज, और यहां तक की तर होकर मेरी सफेद लेसी टीन ब्रा भी गीली हो गई थी।

भाभी किचेन में नाश्ता बना रहीं थीं और साथ ही साथ खुले दरवाजे से झांक कर टीवी पर दिन में आ रहा सास बहू का रिपीट भी देख रही थीं। मैंने भाभी से पूछा-

“ये दिन में आप इस तरह… सास बहू देख रही हैं… रात में नहीं देखा क्या? और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं?”

भाभी हँसकर बोलीं-

“रात में तो 9:00 बजे के पहले ही पति पत्नी चालू हो जाता है तो सास बहू कैसे देखूं? तेरे बड़े भैया आजकल ओवरटाइम करा रहे हैं। मैं इतने दिन सावन में गैर हाजिर जो थी। आजकल हम लोग रात में 8:00 बजे तक खाना खा लेते हैं और उसके बाद रवीन्द्र पढ़ने, अपने कमरे में ऊपर चला आता है, और मेरे कमरे में, तुम्हारे बड़े भैया मेरे ऊपर आ जाते हैं…”

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“और ये नाश्ता किसके लिये बना रही हैं?” मुझसे नहीं रहा गया।


“रवीन्द्र के लिये… आज उसकी सुबह से क्लास थी बिना खाये ही चला गया था आते ही भूख-भूख चिल्लायेगा…”

मैंने उनके हाथ से चमचा छीनते हुये कहा- “तो ठीक है भाभी नाश्ता मैं बना देती हूं। और आप जाकर टीवी देखिये…”

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“ठीक है, वैसे भी मेरे देवर की भूख तुम्हें मिटानी है…” हँसते हुए, भाभी हट आईं।

“चलिये… भाभी आपको तो हर वक्त मजाक सूझता है…” झेंपते हुये मैंने बनावटी गुस्से से कहा।


“मन मन भावे… और हां नाश्ते में उसे फल पसंद हैं तो अपने ये लाल सेब जरूर खिला देना…”


ये कहकर उन्होंने मेरे गुलाबी गालों पर कस के चिकोटी काटी और अपने कमरे में चल दीं।

भाभी के मजाक से मुझे आइडिया मिल गया और चम्पा भाभी का बताया हुआ श्योर शाट फार्मूला याद आ गया।


मैंने फ्रिज खोलकर देखा तो वहां दशहरी आम रखे थे। मैंने उसकी लंबी-लंबी फांकें काटी और प्लेट में रख ली

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और उसमें से एक निकालकर, (मैंने भाभी के कमरे की ओर देखा वो, सास बहू में मशगूल थीं) अपनी स्कर्ट उठाकर, पैंटीं सरकाकर, चूत की दोनों फांकें फैलाकर उसके अंदर रख ली और चूत कसकर भींच लिया।


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नाश्ता बनाते समय मुझे चन्दा ने जो-जो बातें रवीन्द्र के बारें में बताई थीं याद आ रही थीं,चंदा से गाँव का कोई लौंडा बचा नहीं था यहाँ तक की भरौटी के लौंडो से भी वो कितनी ही बार चुदी थी , तब भी उसने मुझसे पहले दिन ही बोला था की रविंद्र का उन सबसे बीस नहीं पच्चीस होगा और वो मेरा दीवाना भी है , बस सीधा है , लजाता है इसलिए बोलता नहीं ” और न जाने कैसे मेरा हाथ पैंटी के ऊपर से रगड़ रहा था और थोड़ी ही देर में मैं अच्छी तरह गीली हो गई। नाश्ता बनाकर मैंने तैयार किया ही था कि मुझे रवीन्द्र के आने की आहट सुनायी दी।

वह सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वहीं से उसने आवाज लगाई- “भाभी मुझे भूख लगी है…”

भाभी ने कमरे में से झांक कर देखा। मैंने इशारे से उन्हें बताया की नाश्ता तैयार है और मैं ले जा रही हूं।

जब मैं सीढ़ी पर ऊपर नाश्ता लेकर जा रही थी, तभी मुझे ‘कुछ’ याद आया और वहीं स्कर्ट उठाकर आम की फांक मैंने बाहर निकाली। वह मेरे रस से अच्छी तरह गीली हो गई थी। मैंने उसको उठाकर प्लेट में अलग से रख लिया। बिना दरवाजे पर नाक किये मैं अंदर घुस गई।


वो सिर्फ पाजामे में था, पैंट उसकी पलंग पर थी और बनयाइन वो पहनने जा रहा था।
Aam ki fank ke liye kya jagah dhundi hai, kesi swadisht bana di hai Ravinder ke liye.Madak update 👌👌👌
:applause:
 

komaalrani

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Aam ki fank ke liye kya jagah dhundi hai, kesi swadisht bana di hai Ravinder ke liye.Madak update 👌👌👌
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sure shot kaam karata hai ,Bengali baba ke jaado aur vashikaran mantr se bhi pakka asar hota hai is trick ka kabhi try karke dekh lijiyegaa sacchi
 

komaalrani

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आपकी जादुई लेखनी को शत-शत नमन...
🙏🙏🙏🙏:thank_you::thank_you::thanks::thanks:
 

komaalrani

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आम रस- काम रस




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“मन मन भावे… और हां नाश्ते में उसे फल पसंद हैं तो अपने ये लाल सेब जरूर खिला देना…”

ये कहकर उन्होंने मेरे गुलाबी गालों पर कस के चिकोटी काटी और अपने कमरे में चल दीं।

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भाभी के मजाक से मुझे आइडिया मिल गया और चम्पा भाभी का बताया हुआ श्योर शाट फार्मूला याद आ गया। मैंने फ्रिज खोलकर देखा तो वहां दशहरी आम रखे थे। मैंने उसकी लंबी-लंबी फांकें काटी और प्लेट में रख ली और उसमें से एक निकालकर,



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(मैंने भाभी के कमरे की ओर देखा वो, सास बहू में मशगूल थीं) अपनी स्कर्ट उठाकर, पैंटीं सरकाकर, चूत की दोनों फांकें फैलाकर उसके अंदर रख ली और चूत कसकर भींच लिया।

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नाश्ता बनाते समय मुझे चन्दा ने जो-जो बातें रवीन्द्र के बारें में बताई थीं याद आ रही थीं और न जाने कैसे मेरा हाथ पैंटी के ऊपर से रगड़ रहा था और थोड़ी ही देर में मैं अच्छी तरह गीली हो गई। नाश्ता बनाकर मैंने तैयार किया ही था कि मुझे रवीन्द्र के आने की आहट सुनायी दी।

वह सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वहीं से उसने आवाज लगाई-

“भाभी मुझे भूख लगी है…”


भाभी ने कमरे में से झांक कर देखा।

मैंने इशारे से उन्हें बताया की नाश्ता तैयार है और मैं ले जा रही हूं। जब मैं सीढ़ी पर ऊपर नाश्ता लेकर जा रही थी, तभी मुझे ‘कुछ’ याद आया और वहीं स्कर्ट उठाकर आम की फांक मैंने बाहर निकाली। वह मेरे रस से अच्छी तरह गीली हो गई थी। मैंने उसको उठाकर प्लेट में अलग से रख लिया। बिना दरवाजे पर नाक किये मैं अंदर घुस गई।


वो सिर्फ पाजामे में था, पैंट उसकी पलंग पर थी और बनयाइन वो पहनने जा रहा था।

मैंने पहली बार उसको इस तरह देखा था, क्या मसल्स थीं, कमर जितनी पतली सीना उतना ही चौड़ा, एकदम ‘वी’ की तरह…

और वह भी गीले हो चुके मेरे उभारों से अच्छी तरह चिपके ब्लाउज, जिससे न सिर्फ मेरे उभार ही बल्की चूचुक तक साफ दिख रहे थे, घूर रहा था।


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थोड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे के देह का दृष्टि रस-पान करते रहे।

फिर अचानक वो बोला-

“तुम… नाश्ता लेकर… भाभी कहां हैं?”

लेकिन अभी भी उसकी निगाहें मेरे किशोर उभारों पर चिपकी थीं।

मैं उसके बगल में सटकर जानबूझ कर बैठ गई और अपनी तिरछी मुश्कान के साथ पूछा-

“क्यों भाभी ही करा सकती हैं नाश्ता, मैं नहीं करा सकती? मेरे अंदर कोई कमी है?”

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कहकर मैंने नाश्ते की प्लेट सामने मेज पर रख दी थी।


उसने भी बनयाइन पहन ली थी।


मैंने उसकी चड्ढी और पैंट उठाया और खूंटी पर टांग दिया-


“तो लो ना… मेरे हाथ से कर लो…”

और मैंने सबसे पहले वो फांक जो मैंने ‘वहां’ रखी थी, उसे प्लेट से उठाकर अपने हाथ से उसके होंठों पर लगाया।

उसने आपसे मुँह में ले लिया और थोड़ी देर चूसने खाने के बाद बोला- “इसमें थोड़ा अलग किस्म का रस है…”

मैं अपने होंठों पर जीभ फिराती, उसे दिखाकर बोली- “हाँ हाँ होगा, क्यों नहीं मेरा रस है…”

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“तुम्हारा रस… क्या मतलब?” चौंक कर वो बोला।

“मेरा मतलब… कि मैंने अपने हाथ से खिलाया है इसलिये मेरा रस तो होगा ना…” बात बनाती मुश्कुराती मैं बोली।


फिर मैंने आम की एक दूसरी फांक उठा ली थी और उसके टिप को अपने गुलाबी होंठों से रगड़ रही थी, फिर उसे दिखाते हुए मैंने उसका टिप अपने होंठों के बीच गड़प लिया और उसे चूसने लगी।

उसकी निगाहें मेरे होंठों पर अटकी हुईं थीं।

“लो खाओ ना… इसमें भी मेरा रस है…”



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और जब तक वह समझे समझे मैंने उसे निकालकर उसके होंठों के बीच घुसेड़ दिया।

वो क्या मना कर सकता था? अब मैंने खड़ी होकर एक कस के रसदार अंगड़ाई ली, मेरे कबूतर और खड़े हो गये थे और उसकी चोंच तो तनकर मेरे ब्लाउज फाड़े दे रहे थे।


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एक बार फिर उसकी निगाह वहीं पे गई और जब मैंने उसकी निगाहों की ओर देखकर मुश्कुरा दिया तो वह समझ आया की चोरी पकड़ी गई।

उसने निगाहें नीची कर लीं और कहने लगा-

“तुम बदल गई हो… बड़ी वैसी लगने लगी हो…”

“कैसी… खराब?” मैं बोली।

“नहीं मेरा मतलब है… कैसे बताऊँ? वैसी… एकदम बदली बदली…”


मैंने एक बार फिर अपने हाथ पीछे करके जोबन को कस के उभारा और हँस के बोली-

“तो क्या तुम्हारा मतलब है सेक्सी? तो बोलते क्यों नहीं? सिर्फ मैं नहीं बदली हूँ तुम भी बदल गये हो, तुम्हारी निगाहें भी…”


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मैं अब पाजामें में तने तंबू को देख रही थी।

उसने चड्ढी भी नहीं पहन रखी थी इसलिये साफ-साफ दिख रहा था। उसने मेरी निगाह पकड़ ली पर मैंने तब भी अपनी निगाह वहां से नहीं हटायी।

“मैं जरा बाथरूम होकर आता हूं…” वो बोला।

“तो क्या मैं चलूं…” मैं भी खड़ी हुई।

तो वो बोला- “नहीं बैठो ना…”



जैसे ही वह अंदर घुसा, मैं बोली- “ज्यादा टाइम मत लगाना नहीं तो मैं चली जाऊँगी…”



“नहीं नहीं…” वह अंदर से बोला।
 

Rajizexy

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sure shot kaam karata hai ,Bengali baba ke jaado aur vashikaran mantr se bhi pakka asar hota hai is trick ka kabhi try karke dekh lijiyegaa sacchi
Sis ajj to tum mazak ke mood me lag rahi ho .ha ha🥰
 

Rajizexy

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“मन मन भावे… और हां नाश्ते में उसे फल पसंद हैं तो अपने ये लाल सेब जरूर खिला देना…”

ये कहकर उन्होंने मेरे गुलाबी गालों पर कस के चिकोटी काटी और अपने कमरे में चल दीं।

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भाभी के मजाक से मुझे आइडिया मिल गया और चम्पा भाभी का बताया हुआ श्योर शाट फार्मूला याद आ गया। मैंने फ्रिज खोलकर देखा तो वहां दशहरी आम रखे थे। मैंने उसकी लंबी-लंबी फांकें काटी और प्लेट में रख ली और उसमें से एक निकालकर,



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(मैंने भाभी के कमरे की ओर देखा वो, सास बहू में मशगूल थीं) अपनी स्कर्ट उठाकर, पैंटीं सरकाकर, चूत की दोनों फांकें फैलाकर उसके अंदर रख ली और चूत कसकर भींच लिया।

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नाश्ता बनाते समय मुझे चन्दा ने जो-जो बातें रवीन्द्र के बारें में बताई थीं याद आ रही थीं और न जाने कैसे मेरा हाथ पैंटी के ऊपर से रगड़ रहा था और थोड़ी ही देर में मैं अच्छी तरह गीली हो गई। नाश्ता बनाकर मैंने तैयार किया ही था कि मुझे रवीन्द्र के आने की आहट सुनायी दी।

वह सीधा ऊपर अपने कमरे में चला गया। वहीं से उसने आवाज लगाई-


“भाभी मुझे भूख लगी है…”


भाभी ने कमरे में से झांक कर देखा।


मैंने इशारे से उन्हें बताया की नाश्ता तैयार है और मैं ले जा रही हूं। जब मैं सीढ़ी पर ऊपर नाश्ता लेकर जा रही थी, तभी मुझे ‘कुछ’ याद आया और वहीं स्कर्ट उठाकर आम की फांक मैंने बाहर निकाली। वह मेरे रस से अच्छी तरह गीली हो गई थी। मैंने उसको उठाकर प्लेट में अलग से रख लिया। बिना दरवाजे पर नाक किये मैं अंदर घुस गई।


वो सिर्फ पाजामे में था, पैंट उसकी पलंग पर थी और बनयाइन वो पहनने जा रहा था।

मैंने पहली बार उसको इस तरह देखा था, क्या मसल्स थीं, कमर जितनी पतली सीना उतना ही चौड़ा, एकदम ‘वी’ की तरह…

और वह भी गीले हो चुके मेरे उभारों से अच्छी तरह चिपके ब्लाउज, जिससे न सिर्फ मेरे उभार ही बल्की चूचुक तक साफ दिख रहे थे, घूर रहा था।


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थोड़ी देर तक हम दोनों एक दूसरे के देह का दृष्टि रस-पान करते रहे।

फिर अचानक वो बोला-

“तुम… नाश्ता लेकर… भाभी कहां हैं?”

लेकिन अभी भी उसकी निगाहें मेरे किशोर उभारों पर चिपकी थीं।

मैं उसके बगल में सटकर जानबूझ कर बैठ गई और अपनी तिरछी मुश्कान के साथ पूछा-


“क्यों भाभी ही करा सकती हैं नाश्ता, मैं नहीं करा सकती? मेरे अंदर कोई कमी है?”

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कहकर मैंने नाश्ते की प्लेट सामने मेज पर रख दी थी।


उसने भी बनयाइन पहन ली थी।


मैंने उसकी चड्ढी और पैंट उठाया और खूंटी पर टांग दिया-


“तो लो ना… मेरे हाथ से कर लो…”

और मैंने सबसे पहले वो फांक जो मैंने ‘वहां’ रखी थी, उसे प्लेट से उठाकर अपने हाथ से उसके होंठों पर लगाया।

उसने आपसे मुँह में ले लिया और थोड़ी देर चूसने खाने के बाद बोला- “इसमें थोड़ा अलग किस्म का रस है…”

मैं अपने होंठों पर जीभ फिराती, उसे दिखाकर बोली- “हाँ हाँ होगा, क्यों नहीं मेरा रस है…”

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“तुम्हारा रस… क्या मतलब?” चौंक कर वो बोला।

“मेरा मतलब… कि मैंने अपने हाथ से खिलाया है इसलिये मेरा रस तो होगा ना…” बात बनाती मुश्कुराती मैं बोली।


फिर मैंने आम की एक दूसरी फांक उठा ली थी और उसके टिप को अपने गुलाबी होंठों से रगड़ रही थी, फिर उसे दिखाते हुए मैंने उसका टिप अपने होंठों के बीच गड़प लिया और उसे चूसने लगी।

उसकी निगाहें मेरे होंठों पर अटकी हुईं थीं।

“लो खाओ ना… इसमें भी मेरा रस है…”



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और जब तक वह समझे समझे मैंने उसे निकालकर उसके होंठों के बीच घुसेड़ दिया।

वो क्या मना कर सकता था? अब मैंने खड़ी होकर एक कस के रसदार अंगड़ाई ली, मेरे कबूतर और खड़े हो गये थे और उसकी चोंच तो तनकर मेरे ब्लाउज फाड़े दे रहे थे।


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एक बार फिर उसकी निगाह वहीं पे गई और जब मैंने उसकी निगाहों की ओर देखकर मुश्कुरा दिया तो वह समझ आया की चोरी पकड़ी गई।

उसने निगाहें नीची कर लीं और कहने लगा-

“तुम बदल गई हो… बड़ी वैसी लगने लगी हो…”

“कैसी… खराब?” मैं बोली।

“नहीं मेरा मतलब है… कैसे बताऊँ? वैसी… एकदम बदली बदली…”


मैंने एक बार फिर अपने हाथ पीछे करके जोबन को कस के उभारा और हँस के बोली-


“तो क्या तुम्हारा मतलब है सेक्सी? तो बोलते क्यों नहीं? सिर्फ मैं नहीं बदली हूँ तुम भी बदल गये हो, तुम्हारी निगाहें भी…”


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मैं अब पाजामें में तने तंबू को देख रही थी।

उसने चड्ढी भी नहीं पहन रखी थी इसलिये साफ-साफ दिख रहा था। उसने मेरी निगाह पकड़ ली पर मैंने तब भी अपनी निगाह वहां से नहीं हटायी।

“मैं जरा बाथरूम होकर आता हूं…” वो बोला।

“तो क्या मैं चलूं…” मैं भी खड़ी हुई।

तो वो बोला- “नहीं बैठो ना…”



जैसे ही वह अंदर घुसा, मैं बोली- “ज्यादा टाइम मत लगाना नहीं तो मैं चली जाऊँगी…”



“नहीं नहीं…” वह अंदर से बोला।
Madak, erotic update 👌👌👌
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chodumahan

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ये आम और काम का तो गजब का तालमेल बनाया है...
अब तो रविंद्र का रस टपकेगा ही टपकेगा...
और गुड्डी भी तो भाभी के गांव से लटकों झटकों की जबरदस्त ट्रेनिंग लेकर आई है...
सारे तौर-तरीके आजमाईश कर सकती है...
लेकिन एकाध में हीं रविंद्र अपना नलका खड़ा करके अपना आम... नहीं-नहीं काम रस गुड्डी को अर्पण कर देगा...
 
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