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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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komaalrani

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इन्तजार


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अगले दिन मैं भाभी के घर नहीं जा पाई, हां उसको आने का बुलौवा मैंने जरूर भेजा था, मुझे ‘पढ़ाई’ में कुछ हेल्प करने के लिये।


शाम से ही मैं बेचैन थी, क्या पहनूं, क्या न पहनूं… कब तक आयेगा वो या कहीं ना आये? मैंने कई ड्रेसेज निकालकर पलंग पर रखीं, टाइट जीन्स, टाप, शर्ट स्कर्ट, सलवार सूट…

लेकिन फिर कुछ सोचके मैं मुश्कुराई और अपनी एक पुरानी फ्राक जिसे मैंने साल भर पहले से पहनना छोड़ दिया था, निकाली, पिंक कलर की। फ्राक थोड़ी, सच कहूं तो काफी टाइट थी।

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मेरे उभार खुलकर पता चल रहे थे और जिस तरह से कल वह उन्हें घूर रहा था, मुझे लगा कि कुछ तो उसकी नजरों की प्यास बुझा दूं।



मेरी पिछली बर्थ-डे पर भाभी ने मुझे कुछ ‘नाटी’ ब्रा पैंटी का सेट गिफ्ट किया था, उसमें से मैंने एक लेसी पतली पैंटी और लेसी हाफ ब्रा निकाली। जब मैंने अपने को शीशे में देखा तो एकदम पता चल रहा था कि मेरे उभार टाइट फ्राक से बर्स्ट कर रहे थे।



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मुश्कुराते हुए मैंने हाथ डालकर थोड़ी अपनी ब्रा को एड्जस्ट किया और अब मेरे निपल ब्रा से बाहर थे और खुलकर मेरी फ्राक से रगड़ खा रहे थे।

नीचे भी मेरी दूधिया जांघें खुलकर दिख रही थीं। मैंने हल्की सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली। बाहर घंटी बजी तो मैं बड़े जोर से बाहर निकली, पर वह दूध वाला था।



अब मैं इंतजार में बेचैन हो रही थी, आयेगा, नहीं आयेगा?

सामने रखे गुलदस्ते में से फूल निकालकर उसकी एक-एक पंखुड़ियां मैं, लव मी, लव मी नाट के अंदाज में तोड़ती रही। अचानक मैंने मुड़कर देखा तो वह खड़ा था, और मेरी बेचैनी निहार रहा था।

मुझे देखते ही वह मुश्कुराने लगा। पेस्टल टी-शर्ट और टाइट जींस में वह बहुत डैशिंग और खूबसूरत लगा रहा था।

उसे देखते ही मैं खड़ी हो गई और मुश्कुराकर बोली- “हे तुम कब?”

वो- “अभी…”

मैं उसे चुपचाप निहार रही थी। वह सामने पलंग पर बैठ गया।

मैं बोली- “तुम्हारी ड्रेस बहुत अच्छी है…”



“और ड्रेस के अंदर जो है… पहनने वाला…”

आज वह भी बोल रहा था।

मैं भी उसी अंदाज में बोली-


“वो भी बहुत अच्छा है। लेकिन जितना दिखेगा तारीफ तो उतने की होगी ना। बाकी का तो सिर्फ अंदाज लग सकता है…” मैं हँसकर बोली।

उसकी निगाह, मेरी फ्राक के अंदर कबूतरों पर चिपकी थी। मैंने अपने हाथ उनके नीचे रखकर इस तरह क्रास किया की वह और उभरकर सामने आ गये।


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कबूतरों की चोंच मेरी फ्राक से रगड़ खा रही थी और साफ-साफ दिख रही थी। मैंने अपनी जांघें क्रास कर रखीं थीं। उसका असर उसके जीन्स पर हो रहा था।

“क्या पढ़ना है तुमको, तुम कह रही थी ना… कुछ पूछना है ना तुमको?” वह बोला।
“जो तुम पढ़ाओ… लेकिन नहीं आयेगा तो मारोगे तो नहीं…” उसकी आँखों में आँखें डालकर शरारत से मैंने पूछा।

“मार भी सकता हूं… बात नहीं मानोगी तो?” आज वह भी मूड में लगा रहा था।

मैंने अब थोड़ी अपनी जांघें फैलायीं और बोली-


“देखो मैं भी कितनी बुद्धू हूं… तुमसे पानी तक नहीं पूछा और पढ़ाई की बात शुरू कर दी। लेकिन सब तुम्हारी गलती है, जब तुम पास में रहते हो ना तब मैं सब कुछ भूल जाती हूं…” आँख नचाती हुई मैं बोली।


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“अच्छा जी… भूलें आप और गलती मेरी… ये अच्छी बात है…”



अब तक मेरी जांघें काफी फैल चुकी थीं और अब उसकी निगाहें वहीं खेल रहीं थीं।



उठते हुए मैं शोख अदा से बोली-

“और क्या लड़कियां कुछ भी करें, गलती तो लड़कों की ही होती है, आखिर लड़की होने का फिर फायदा क्या हुआ?”

और उठते हुए जैसे मैं उससे टकरा गई, मैं कुछ लड़खड़ा गई।

उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था। जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।
 

komaalrani

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सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…



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उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था। जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।


लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली।

“और पूरी… कब होगी?” आज चिड़िया चहकने लगी थी।

पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा?”


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फिर खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…”

“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…”

उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…”



मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी।

“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं।

वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी।

“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…”

उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये।
“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है?” प्रशंसा से वो बोला।

“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली।

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“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कियों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था।

पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी। मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो? क्या चेंज होता है? साफ-साफ बताओ ना…”



“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था

मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते हैं, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”

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तब तक आवाज आई खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई। झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले। कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नजारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं।

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“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
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सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…



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उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था। जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।


लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली।

“और पूरी… कब होगी?” आज चिड़िया चहकने लगी थी।

पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा?”


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फिर खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…”

“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…”

उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…”



मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी।

“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं।

वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी।

“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…”

उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये।
“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है?” प्रशंसा से वो बोला।

“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली।

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“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कियों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था।

पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी। मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो? क्या चेंज होता है? साफ-साफ बताओ ना…”



“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था

मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते हैं, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”

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तब तक आवाज आई खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई। झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले। कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नजारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं।

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“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”
Student padha rahi hai ya teacher, secondary sexual characters?Very madak, kamuk update sis👌👌👌
:applause: :applause: :applause:
 

komaalrani

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Student padha rahi hai ya teacher, secondary sexual characters?Very madak, kamuk update sis👌👌👌
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Thanks STUDENT dikha rahi ...
 
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सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…



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उसने मुझे पकड़ने की कोशिश की, उसमें उसके हाथ मेरे उभारों से टकरा गये। वह हाथ हटाता, उसके पहले ही जैसे सहारा लेने के लिये, मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने उभारों पर हल्के से दबा दिया। कमरे से बाहर निकलते समय मैंने तिरछी निगाहों से देखा कि उसका तंबू तन गया था। जब मैं पानी लेकर लौटी तो वह अपने उभार को छिपाने के लिये टांगों पर टांगें क्रास करके बैठा था।


लो पियो, थोड़ी गरमी शांत हो जायेगी…” उसके हाथ में पानी पकड़ाते हुए मैं बोली।

“और पूरी… कब होगी?” आज चिड़िया चहकने लगी थी।

पर मैं क्यों चुप रहती- “होगी… जल्द ही जब जमकर बारिश होगी। बादल तो उमड़ घुमड़ रहे हैं… बिना बारिश के सावन का क्या मजा?”


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फिर खिड़की के बाहर देखते हुए मैंने कहा- “और हां तुम्हें खाना खाकर जाना होगा…”

“नहीं नहीं… मुझे खाना नहीं…”

उसकी बात काटकर मैं बोली- “अब तुम्हें मेरी बात मानने की आदत डालनी चाहिये। तुम सीधे से नहीं खाओगे तो मैं जबर्दस्ती खिलाऊँगी…”



मैंने बायोलाजी की किताब खोल ली थी।

“ये एन्डोक्राइन ग्लैंड वाला… जरा एक बार समझा दो… तुम एक बार कोई चीज समझा देते हो ना तो फिर मैं कभी नहीं भूलती…” अब मैं उससे एकदम सटकर बैठी थी। हमारी जांघें टकरा रहीं थीं।

वो समझाने लगा पर मेरा ध्यान तो कहीं और था। उसके हाथ की मसल्स, पावर, रेशमी आवाज तो सीधे मेरी जांघों के बीच उतर रही थी, उसके बगल में बैठकर ही मैं गीली हो रही थी।

“अच्छा, तो तुमने समझ लिया ना अब तुम एक ओर से बोलो…”

उसकी आवाज ने मुझे वापस ला दिया और मैंने सारे हार्मोन के नाम गिना दिये।
“तुम तो बहुत तेज हो… तो फिर तुम्हें क्या समझाना है?” प्रशंसा से वो बोला।

“फीमेल हार्मोन… उसका असर… मेरा मतलब है सेकंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर…” मैं ध्यान से उसकी ओर देखते हुए बोली।

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“वो तो बहुत सिम्पल है… मेरा मतलब जो बाडी में चेंज होता है… लड़कियों की…” अब वह कुछ घबड़ा रहा था।

पर मैं उसे ऐसे छोड़ने वाली नहीं थी। मुश्कुराहट दबाते हुए, मैं बोली- “वही तो? क्या चेंज होता है? साफ-साफ बताओ ना…”



“अरे वही जब लड़कियां बड़ी होती हैं तो उनके… तुम ये किताब में पढ़ लेना ना…” अब वह हार मान रहा था

मैं बोली- “अरे उतना तो मुझे भी मालूम है, सीने के उभार बड़े हो जाते हैं, नितंब और विकसित हो जाते हैं। बाल और जगहों पर भी…”

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तब तक आवाज आई खाना लगाने के लिये और मैं उठ गई। झुक कर नीचे के ड्राअर से मैंने कुछ एल्बम निकाले। कनखियों से मैंने देखा कि वह कैसे मेरी टीन चूचियों को ललचायी निगाह से निहार रहा है। कुछ देर और उसे जोबन का नजारा कराने के बाद, मैं उठी और मैंने एल्बम उसके हाथ में पकड़ा दिये। उसमें मेरी स्कूल की, पिकनिक, स्पोर्ट्स, नाच की फोटुयें थीं।

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“लो देखो, तब तक मैं खाना ले के आती हूं…”
Bahut mast khel chal raha hai, चुन्नू - चुन्नी ki bhi rakhi sath mei मन जाये तो मज़ा आ जाये
 

komaalrani

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Bahut mast khel chal raha hai, चुन्नू - चुन्नी ki bhi rakhi sath mei मन जाये तो मज़ा आ जाये
Thanks
 
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komaalrani

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***** *****अट्ठावनवीं फुहार - रविन्द्र

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किचेन में खाना बना था, मैंने सलाद बनाई और उसके लिये खास तौर पे गाजर की खीर।


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जब मैं खाना लेकर लौटी तो वह मेरी फोटुयें देखने में मगन था और उसके चेहरे से लग रहा था कि उसके ऊपर क्या बीत रही है। मैंने कुछ सोचके फ्राक की दो टाप बटन खोल लीं और उसके पास आकर टेबल पर खाना रखकर, झुक कर बोली-

“खाना पेश है…”

उसने निगाहें उठायीं तो सामने मेरे जोबन का क्लीवेज साफ-साफ दिख रहा था।

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“खा लूं?” अब वह भी द्विअर्थी ढंग से बोलने लगा था और उसकी आवाज में भूख साफ-साफ दिख रही थी।

मैंने भी उसी तरह जवाब दिया और बल्की उसके पास सटकर-


“और क्या? तुम्हारे लिये ही तो है, और सामने इतना रसभरा खाना हो और कोई भूखा रहे तो उसे तो बुद्धू ही कहेंगे ना?”


“इसमें तुमने क्या बनाया है?” बात बदलकर उसने पूछा।

“सलाद और गाजर की खीर, लो खाओ…”

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कहकर मैंने अपने हाथ से सलाद में से गाजर का एक पतला टुकड़ा निकाला और उसके मुँह पे लगा दिया। अपने हाथों से मैं उसे पूरी गाजर की सलाद खिलाकर ही मानी।


(बात यह थी कि मैं कामिनी भाभी का फार्मूला नहीं भूली थी, जब मैं उसके लिये पानी लेने गई थी, तभी मैंने किचेन से एक लंबा और मोटा लाल गाजर ले लिया था और कमरें में घुसने से पहले, पैंटी सरकाकर अंदर…


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और जितने देर मैं उसके पास बैठी रही, उसकी रसीली निगाहों से मैं गीली होती रही, वह वहीं और जब मैं खाना लगाने गई तो उसी गाजर की सलाद और खीर बना ली)।

जब उसने खाने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने रोक दिया, अपने हाथ से कौर उसके मुँह में ले गई-

“हे, जब मैं तुम्हारे पास हूँ तो तुम्हें हाथ इश्तेमाल करने की क्या जरूरत? मैं हूँ ना…”


वो मेरा असली मतलब समझ गया और मेरे हाथ से खाते हुए बोला-

“आगे से नहीं करूंगा…”

एक-दो कौर खिलाने के बाद एक कौर मैं उसके मुँह के पास लेजाकर हटा ली और खुद गड़प ली। उसने जब मेरी ओर घूरा तो मैं हँस के आँख नचाके बोली-

“अरे, मैं भी तो भूखी हूं…”
इस तरह छेड़छाड़ के साथ एक दूसरे के हाथों के रस के साथ खाकर खाना खतम किया। गाजर की खीर तो मैंने उसी पूरी खिलाई, यहां तक की उसने जीभ से कटोरी तक चाट ली।

“हाथ कहां साफ करूं?” वो बोला।


“बताती हूं…”
और उसके हाथ को मैंने पकड़ लिया और उसकी एक-एक उंगली मैंने चूस चाटकर साफ कर दी। मैं उसकी उंगली वैसे चाट रही थी जैसे कोई लड़की, किसी लड़के का लिंग। मैं उसके टिप को गुलाबी होंठों के बीच लेकर चूसती, फिर सारी उंगली गड़प कर लेती। उसे बाहर निकालकर मैं साईड को जीभ से चाटती। मेरी निगाहें उसके उभार की ओर थीं और उसकी हालत खराब हो रही थी।

जब मैं थाली लेकर उठने लगी तो वो बोला- कुछ बच गया है।

“कोई बात नहीं…” कहकर मैं सब कुछ हाथ से समेटकर चट कर गई और थाली लेकर चल दी।

“हे वो मेरा जूठा था…”

दरवाजे के पास से मुड़कर शोख अदा से, जीभ होंठ पर फिराते मैं बोली- “तो क्या हुआ, जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है। और था भी बड़ा स्वादिष्ट…”

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उन्नत कुच, पत्थर से कठोर,


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दरवाजे के पास से मुड़कर शोख अदा से, जीभ होंठ पर फिराते मैं बोली- “तो क्या हुआ, जूठा खाने से प्रेम बढ़ता है। और था भी बड़ा स्वादिष्ट…”

लौट कर मैंने हिंदी की एक किताब उठाई, बिहारी की, और उसमें से मैंने एक दोहा निकाला- “ये देखिये… उन्नत कुच, पत्थर से कठोर, उल्टे कटोरे की तरह… क्या मतलब है इसका?”



“ये… ये कहां से मिला? ये तुम्हारे कोर्स में तो नहीं है…” वो बोला।

“तो क्या हुआ? बिहारी तो कोर्स में हैं ना? मैंने सोचा की मूल पुस्तक पढ़नी चाहिये तो मैं लाइब्रेरी से ले आई, पर ये जो अर्थ लिखा है… वह भी समझ में नहीं आ रहा है, तुम्हें मालूम है तो ठीक, वरना मैं किसी और से पूछ लूंगी…”

“नहीं नहीं… किसी और से मत पूछना… इसका मतलब है की… नायक को नायिका के उन्नत कुच… जो पत्थर की तरह कठोर हैं, पसंद हैं… मतलब…”

मैं उससे और सट गई और साफ-साफ जोबन को उभारकर अदा से बोली- “खुलकर साफ-साफ बताओ ना…”

उसकी सांस मेरे सीने को देखकर तेज हो रही थी- “मतलब की नायक को नायिका के कुच, उसका सीना, सीने के उभार जो खूब…”

तब तक लाईट चली गई और मैंने उसके हाथ को अपने कंधे पे रख लिया, एकदम उभारों के पास खींच लिया और उसके चेहरे के पास चेहरे को लेजाकर मैंने धीरे से पूछा-


“अच्छा तुम बताओ, तुम्हें कैसी लड़की पसंद है? कोई तो होगी जो तुम्हें पसंद होगी?”

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“हां पसंद है… है एक बहुत अच्छी है…”

मैंने उसके हाथ को अब और कस के खींच लिया था और अब वह सीधे मेरे उभार पर था। मेरे गाल उसके गाल से सटे हुए थे।

मैंने फिर पूछा- “बताओ ना कैसी है? कौन है? मैं भी तो जानूं…”

“है एक, तुम जानती हो उसको… बहुत सुंदर है, एकदम सेक्सी, प्यारी सी…” वह धीमे से बोला।

“अगर एक बार मिल जाय ना मुझको…” मैंने फुस्फुसाहट में कहा।

“क्यों, मिल जाय तो क्या करोगी?” मुश्कुराकर वह बोला।

“मुँह नोच लूंगी उसका… और क्या? लेकीन बड़ी किश्मत वाली होगी जिसे तुम चाहोगे…”

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“जलती हो उससे?” हँसकर वो बोला।

तभी हवा तेज चली और खिड़की, दरवाजे खड़खड़ होने लगे।

मैं उठकर गई और दोनों की सिटकनी लगाकर बंद कर दी। लौटकर बैठते समय, मैं उसके पैरों से फँस गई और गिरकर उसकी गोद में बैठ गई।


मैंने फिर उसका हाथ खींचकर अपने कंधे पर रख लिया और अपने उभार पर हल्के से दबा दिया।

“जलूंगी ही… अगर मैं उसकी जगह होती…” हल्के से मैं बोली और उसके हाथ को सीने पे हल्के से दबा दिया।
अबकी उसने भी मेरे उभार को हल्के से सहलाते हुए, मेरे गाल से गाल रगड़कर पूछा-

“अगर उसकी जगह तुम होती तो क्या करती?”

मैं भी अपने गुलाबी गालों से उसके गाल रगड़कर बोली-

“पहले मेरी तो इतनी किश्मत नहीं है… फिर करने को, वो तो शेर वाली बात होती, मिलने पर जो करेगा शेर ही करेगा, तो उसी तरह जो करते तुम ही करते। लेकिन तुम जो भी जितना भी जैसे भी करते, मैं सब करवा लेती… जरा भी चूं नहीं करती, पूर्ण समर्पण के साथ… लेकिन मैं इत्ती अच्छी नहीं हूँ कि तुम… मुझे…”

मैं अब खुल के बोली।



“नहीं… ये आज के बाद तुम कभी मत कहना ऐसा, तुमसे अच्छा कौन होगा?” वो बोला।



अब मैं समझ गई थी और मैं उसके दूसरे हाथ को अपने सीने के ऊपर ले गई और उसे वहां कस के दबाते हुए कहा- “अच्छा तो तुम्हें मेरी कसम… खुलकर बताओ ना उसके बारें में कितनी उमर है, कैसी लगती है?”
सोलहवां सावन है उसका और बड़ी सेक्सी है…”


तेज सांसों के साथ अब मेरा सीना तेजी से ऊपर-नीचे हो रहा था।
मैंने उसके दोनों हाथ अब कस के अपने सीने पे दबा लिये थे। और मैं बोली-


“और वह… तुम्हारे स्कूल में ही पढ़ती है, तुम्हारे क्लास में…” मुश्किल से वो बोला


अब मैंने कस के उसके हाथ अपने सीने पे अपने हाथ से भींच दिये।

वह भी अब खुलकर हल्के-हल्के मेरे रसीले जोबन दबा रहा था। उसका उत्तेजित लिंग लग रहा था कि, जीन्स फाड़ देगा। चन्दा की बात अब मुझे गलत लग रही थी। उसका उससे भी बड़ा लग रहा था जितना चन्दा ने बताया था।

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“और बोलो ना…” उसके खड़े लिंग को मैंने अपने नितंब से हल्के से दबाते हुये पूछा।

उसने अब बिना किसी हिचक के कस के मेरे दोनों रसीले जोबनों को दबाकर, मजा लेते हुए कहा-

“और वह इसी गली में रहती है…”


तब तक लाईट आ गई। हम दोनों उठ गये और मैंने सांकल खोल दी। जब वह जाते समय सबसे मिल रहा था तो उससे पूछा गया कि कल रक्षाबंधन में क्या प्रोग्राम है?


उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं आ सकती हूँ?

ठसके से मैं बोली- “जिसको राखी बंधवाना हो वो आये…”

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लेकिन मुझे डांट पड़ गई और तय ये हुआ कि कल मैं उसके घर जाऊँगी। मैंने उससे पूछा- उसे कैसी राखी पसंद है?

तो वो मेरी ओर देखकर शैतानी से बोला- “बड़ी-बड़ी…”
 

Luckyloda

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Bhut shandaar update bhabhi ji....... kya khana khilya h...???
 
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