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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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बारहवीं फुहार

मजा रतजगे का

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मामला एकदम गरम हो गया था। मैंने चंदा का हाथ दबा के कहा, अब खत्म होने वाला है क्या।



मुस्कराकर , उसने मेरे गाल के डिम्पल पे जोर से चिकोटी काट ली और बोला , " जानू अभी तो शुरू हुआ है , जब तक तुझे नंगा न नचाया तब तक , .... "



लेकिन उसकी बात बीच में रह गयी। कुछ हंगामा शुरू हो गया था। पीछे वाले कमरे से कोई पंडित जी से आये थे और बसंती उनके पीछे पड़ी थी।



धोती , लंबा ढीला कुर्ता , माथे पे चन्दन का टीका , गले में माला और एक झोला।



बसंती पीछे पड़ी थी पंडित जी के , " अरे तनी एनकर धोतियाँ उठाय के देखा। "



मैंने चंदा से हलके से पूछा,इ कौन है , और जवाब पूरबी ने दिया ,



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" जरा ध्यान से देखो पता चल जाएगा। "



और सच में उनकी आवाज और हंसी ने सारा राज खोल दिया , कामिनी भाभी थीं , पंडित ,ज्योतिषी बन के आई थीं।



और अपनी किसी ननद का हाथ देख रही थीं , किसी की कुंडली बिचार रही थीं और उसकी सब पोल पट्टी खोल रही थीं।



तब तक उनकी निगाह मेरी ओर पड़ी , और मेरी भाभी ने मुस्कराकर उन्हें बुलाया और बोला ,



" ये मेरी ननद है ,सावन में आई है अपनी ताल पोखरी भरवाने , मेरे साथ। "



कामिनी भाभी को तो बस यही मौक़ा चाहिए था। जैसे ही वो मेरे पास बैठीं , भाभी ने फिर पुछा ,


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" पंडित जी ज़रा ठीक से देखियेगा , इसकी अभी फटी की नहीं और कौन कौन चढ़ेगा इस के ऊपर। "



कामिनी भाभी ने मेरी कलाई कस के पकड़ी और हाथ को खूब ध्यान से देखा , और उनकी आँखों ने जब झाँक के मेरी आँखों में देखा तो मैं समझ गयी आज मेरी पोल पट्टी खुलने वाली है।

कल रात अजय के साथ , आज पहले सुबह गन्ने के खेत में सुनील के साथ , फिर शाम को अमराई में चंदा के साथ , सुनील और रवि दोनों ने मिल कर , हचक हचक कर मेरी ली थी , अभी तक मेरी बुलबुल परपरा रही थी।



मेरी आँखों ने कुछ गुजारिश की और उनकी चुलबुली आँखों ने मांग लिया लेकिन इस बात के साथ की , बच्ची इसकी कीमत वसूलूंगी ,वो भी सूद ब्याज के साथ।



और फिर अपनी तोप उन्होंने मेरी भाभी की ओर मोड़ दी,



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" ये मस्त माल , चिकने गाल तुम्हारी ननद है की भौजाई? ऐसा मस्त जोबन , तुम्हारे तो सारे भैया इसके ऊपर चढ़ाई करेंगे। ये सिर्फ तुम्हारी नहीं सारे गाँव की भौजाई बनेगी। किसी को मना नहीं करेगी , लेकिन और ज्यादा साफ़ पता करने के लिए , मुझे इसका हाथ नहीं पैर देखना होगा तब असली हाल पता चलेगा इसकी ताल तलैया का। "



और जब तक मैं सम्ह्लू सम्ह्लू , ना ना करूँ , बसंती और पूरबी दोनों मेरे ठीक पीछे , घात लगाये , दोनों ने कसके मेरे हाथ जकड के पीछे खींच लिए और अब मैं गिर गयी थी ,हिल भी नहीं सकती थी।



और पंडित बनी कामिनी भाभी लहीम शहीम , उनकी खेली खायी ननदे उनसे पार नहीं पा सकती थीं ,मैं तो नयी बछेड़ी थी ,



जैसे कोई चोदने के लिए टाँगे उठाये , एकदम उसी तरह से , …



मैं छटपटा रही थी ,मचल रही थी ,लेकिन , और सारी भाभियों , ननदों का शोर गूँज रहा था था , पूरा पूरा खोलो।



अपने आप लहंगा सरक के मेरी गोरी गोरी केले के तने ऐसी चिकनी जाँघों तक आ गया था , और गाँव में चड्ढी बनयायिन पहनने का रिवाज तो था नहीं , तो मैंने भी ब्रा पैंटी पहनना छोड़ दिया था।

कामिनी भाभी की उंगलिया ,जिस तरह मेरी खुली,उठी मखमली जाँघों पे रेंग रही थी ,चुभ रही थीं जैसे लग रहा था बिच्छू ने डंक मार दिया। जहरीली मस्ती से मेरी आँखे मुंद रही थीं बिना खोले , जांघे अपने आप फैल रही थीं।



और और , सब भाभियाँ लडकियां चिल्ला रही थीं।

पंडित बनी कामिनी भाभी का हाथ घुटनों से थोड़े आगे जाके रुक गया , और फिर एक झटके में लहंगा उठा के , अपना पूरा सर अंदर डाल के वो झांक रही थी , साथ में उनकी शैतान उँगलियाँ , अब आलमोस्ट मेरी बुलबुल के आसपास और एक झटके में उनकी तरजनी जहाँ ,वहां छू गयी , लगा करेंट जोर से।



पंडित जी ने जैसे लहंगा से सर बाहर निकाला , जोर से हल्ला हुआ , क्या देखा , किससे किससे चुदेगी ये बिन्नो।



थोड़ी देर मुस्कराने के बाद भाभी से वो बोलीं ,एक तो तेरा नंदोई है , …


फिर कुछ रुक कर , कब सब लोग जोर से हल्ला करने लगे तो वो बोली , भों भों।



मतलब जान के भी मेरी भाभी ने पूछा और कहा , पंडित जी मेरी एकलौती ननद है , खुल के बतालेकिन पंडित जी ने फिर एक चौपाया बनने का , डॉगी पोज का इशारा किया और भों भों।


जवाब चंपा भाभी , ( मेरी भाभी की भौजाई ) ने दिया ,


" अरे ई रॉकी , ( भाभी के यहाँ का कुत्ता ) से चुदवाई का "




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मतलब जान के भी मेरी भाभी ने पूछा और कहा , पंडित जी मेरी एकलौती ननद है , खुल के बतालेकिन पंडित जी ने फिर एक चौपाया बनने का , डॉगी पोज का इशारा किया और भों भों।

जवाब चंपा भाभी , ( मेरी भाभी की भौजाई ) ने दिया , " अरे ई रॉकी , ( भाभी के यहाँ का कुत्ता ) से चुदवाई का ".

पंडित जी बनी कामिनी भाभी ने हामी में सर हिलाया और ये भी बोला " ई बहुत जरूरी है , नहीं तो इसके ऊपर एक ग्रह का दोष है उ तबै शांत होगा जब ई कौन कुत्ता से चुदवायेगी। हाँ लेकिन ये सीधे से नहीं मानेगी , जोर जबरदस्ती करनी पड़ेगी। दूसरे , अबकी कातिक में ही जोग है। बस एक बार चुदवा लेगी फिर तो ,"

एक बार फिर चंपा भाभी मैदान में आ गयीं और हाल खुलासा बयान करने लगी ,

" अरे कोई बात नहीं ,दो तीन महीने की बात है। और बस , आँगन में जो चुल्ला लगा है न बस उसी में बाँध देंगे , जैसे बाकी कुतिया बांधते है , सांकल से , फिर तो रॉकी खुदै चाट चुट के इसकी चूत गरम कर देगा ,और एक बार जब उसका लंड घुस के , गाँठ लग गयी बस , फिर छोड़ देंगे उसको , … "

" अरे भाभी तब तो उसको घेररा घेररा के , पूरे घर में , " कजरी बोली।

" अरे घर में काहें पूरे गाँव में , रॉकी की गाँठ एक बार लग जाती है तो घंटे भर से पहले नहीं छूटती। " बसंती , जो भाभी के घर पे नाउन थी उसने जोड़ा।


" अरे एक दो बार ज्यादा दर्द होगा , फिर जहाँ मजा लग गया , फिर तो खुदे निहुर के रॉकी के आगे , " चम्पा भाभी ने मेरा गाल सहलाते बोला और जोड़ा मानलो चुदवाएगी ये कातिक में लकीन चूत तो अभी चटवा लो , उसकी खुरदुरी जीभ से बहुत मजा आएगा। "

और मेरी भाभी भी वो क्यों छोड़ती मौका , चंपा भाभी से बोलीं।

" अरे भाभी , इस बिचारी ने मना किया है , वो तो आई ही है चुदवाने चटवाने , और कातिक में दुबारा आ जाएगी। "

लेकिन तबतक पंडित बनी कामिनी भाभी ने , दुबारा लहंगे में हाथ घुसा दिया था और इस बार उनकी उँगलियों ने मेरी चुनमिया को खुल के सहला दिया।

किसी ने उनसे पूछ लिया , " क्यों पंडित जी , घास फूस है या चिक्कन मैदान। "

" एकदम मक्खन मलाई " और उन्होंने अपनी गदोरी से हलके से मेरी सहेली को दबा दिया।

मैं एकदम पानी पानी हो गयी , गनीमत था उन्होंने हाथ निकाल लिया और बोली ,

" सिंपो सिंपो "

" गदहा , अरे पंडित जी , इसकी गली के बाहर ही तो ८ -१० बंधे रहते हैं , मैंने तो देखा भी है इसको ,उनसे नैन मटक्का करते। "

दो चार भाभियों ने एक साथ मेरी भाभी को सराहा , ' बिन्नो बड़ी ताकत है तेरी ननद में , कुत्ता गदहा सब का ,… "

तब तक पंडित जी ने लहंगा थोड़ा और ऊपर सरका दिया , बस बित्ते भर मुश्किल से ऊपर सरकता तो खजाना दिख जाता , और अबकी न सिर्फ उनकी गदोरी जोर जोर से मेरी बुलबुल को सहला रही थी साथ में उनके अंगूठे ने क्लिट को जोर से दबा दिया।

बड़ी मुश्किल से मैं सिसकी रोकी।

और पंडित बनी कामिनी भाभी ने हाथ हटा दिया। उधर पीछे से बसंती और पूरबी ने भी मेरा हाथ छोड़ दिया। किसी तरह लहंगे को ठीक करती मैं बैठी।

और अब पंडित जी मेरी पूरी भविष्यवाणी बिचार रहे थे।

चम्पा भाभी से वो 'बोल रहे ' थे --

" अरे यहाँ तो ई तुम्हारे देवरों का मन रखेगी , लेकिन अपने मायके पहुँच के ( मेरी भाभी की ओर इशारा करके ) सबसे ज्यादा तो इनके देवर का भी मन रखेगी ,बिना नागा।"

" मतलब यहां इनकी भौजाई , और वहां देवरानी बनेगी " चम्पा भाभी और बाकी भाभियाँ हँसते खिलखिलाते बोलीं।

मेरी पता नहीं कब तक कामिनी भाभी रगड़ाई करती लेकिन एक भाभी ने , उन्हें पूरबी की ओर उकसा दिया।

" अरे पंडित जी तानी एकर पत्रा बिचारा , फागुन में ई ससुरे गयी गौने के बाद , और सावन लग गया अबहीं तक गाभिन नहीं हुयी। "

पंडित बनी कामिनी भाभी ने उसका आँचर एक झटके में हटा दिया , ( और अबकी पूरबी की दोनों कलाइयां मेंरे हाथ में थीं ) , थोड़ी देर पेट सहलाया और फिर एक झटके में हाथ पेटीकोट के अंदर।

हम सब समझ रहे थे की कामिनी भाभी का हाथ अंदर क्या कर रहा है , खूब शोर हो रहा था , पूरबी मजे ले रही थी लेकिन पैर पटक रही थी।

चार पांच मिनट खूब मजे लेने के बाद ' पंडित जी ' ने हाथ बाहर निकाला , और बड़ा सीरियस चेहरा बना के बोलीं ,

" बहुत मुश्किल है , कौनो योग नहीं लग रहा है। "

अब चम्पा भाभी भी सीरियस हो गयीं और पूछा , अरे पंडित जी का बात है , कतौ पाहुन में कुछ , एकरे मरद में कुछ कमी तो "

" अरे नहीं , उ तो बिना नागा , लेकिन गडबड दो है , एक तो इसके मर्द को गांड मारने का शौक बहुत है , चूत से ज्यादा ई गांड में लेती ही , दूसरे जब ई चुदवाती भी तो है खुदे ऊपर रहती है , खुद चढ़ के चोदती है , तो हमें तो डर है की कही इसका मरद ही न गाभिन हो जाय। "

जोर का ठहाका लगा और इसमें सिर्फ भाभियाँ ही नहीं बल्कि लड़कियां भी शामिल थीं।

और इसी ठहाके के बीच एक दरोगा जी , आ गए।



और मैंने भी उन्हें पहचान लिया , जिस दिन हम लोग आये उसी दिन जब सोहर हो रहा था , तो वो आई थीं , मुन्ने को देखने और भाभी की माँ को खूब खुल के छेड़ रही थीं। रिश्ते में भाभी की बुआ लगती थीं , इसलिए भाभी की माँ उनकी भाभी हुईं तो फिर तो मजाक का ,

और अबकी उन्होंने फिर भाभी की माँ और चाची को ही टारगेट किया।

रतजगा में वैसे भी कोई शरम लिहाज , उमर का कोई बंधन नहीं था।

बल्कि बल्कि जो ज़रा बड़ी उमर की औरतें होती थीं , वो और खुल के मजाक , और बात चीत से ज्यादा हाथ पैर से , कपडे खोलने ,… और दरोगा जी ने यही किया ,

भाभी की माँ के ब्लाउज में सीधे हाथ डाल दिया , और उनका साथ भाभी की रिश्ते में लगने वाली दो भाभियाँ दे रही थीं , दोनों हाथ पकड़ के। ( बहुओं को भी मौक़ा मिलता था सास से मजा लेने का )
" साल्ली ,बेटीचोद , अभी तक तो अपनी बेटियों से धंधा कराती थी , चकला चलाती थी अब चोरी चकारी पे उत्तर आई , भोसड़ी वाली। तेरे गांड में डंडा डाल के मुंह से निकालूंगी , बोल कहाँ कहाँ से चोरी की , क्या चोरी की , "

भाभी की माँ भी अब रोल में आ गयी थीं , बोलने लगी , " नहीं दरोगा जी , कुछ नहीं चुराया। "

लेकिन उनकी रिश्ते की बहुएं ,नयी नवेली एकदम जोश में थी ,

" दरोगा जी ,ये ऐसे नहीं मानेगी , पुरानी खानदानी चोर है , नंगा झोरी लेनी पड़ेगी साली की। "

वो दोनों एक साथ बोलीं।

बुआ जी जो दरोगा की ड्रेस में थी , अपनी भौजाई के बलाउज में हाथ डाल के सबको दिखा के खूब कस कस के चूंची रगड़ मसल रही थी और फिर एक झटका मारा उन्होंने तो आधे से ज्यादा बटन ब्लाउज के टूट गए और गदराये गोरे बड़े बड़े जोबन दिखने लगे।

उन्होंने अपनी मुट्ठी खोली ( चंदा ने मेरे कान में बोला , देख इसमे से क्या क्या निकलेगा ) और सच में कुछ अंगूठियां , कान की बाली निकली।


उन्होंने सब को दिखाया और नए जवान 'सिपाहियों ' ( भाभी की माँ की बहुओं ) को ललकारा

" अरे ये तो नमूना है , साल्ल्ली ने अपनी गांड और भोंसड़े में बहुत छिपा रखा है , खोल साडी। "

जब तक वो सम्हलातीं , दोनों , सिपाहियों ने पीछे से उन्हें खींच के गिरा दिया और बुआ जी उर्फ़ दरोगा ने , साडी पूरी कमर तक।





भाभी की मातृभूमि के दर्शन सबको होगये ,खुलम खुल्ला और यही नहीं बुआ जी ने एक ऊँगली अंदर भी घुसेड़ दी , और उनकी दोनों बहुओं ने ब्लाउज की बाकी बटने भी खोलकर दोनों कबूतर बाहर।


फिर तो आधे घंटे में एकदम फ्री फॉर आल हो गया


बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी।

रात खत्म होने के कगार पे साढ़े तीन चार होने वाला था।


और तबतक एक 'लड़का ' आया , दुल्हन की तलाश में , और सब लोग अपनी अपनी हरकतें छोड़ के चुप चाप बैठ गए।


हाइट करीब मेरी ही रही होगी , गोरा रंग , तीखे नाक नक्श ,बड़ी बड़ी आँखे , भरे भरे गाल और पेंट शर्ट ,कोट पहने एक टोपी लगाए।

मैंने पहचाना नहीं , लेकिन टोपी भी उसकी लम्बे बाल जो मोड़ के खोंसे थे , मुश्किल से छुपा पा रही थी।
 
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शहरी माल की तलाश






हाइट करीब मेरी ही रही होगी , गोरा रंग , तीखे नाक नक्श ,बड़ी बड़ी आँखे , भरे भरे गाल और पेंट शर्ट ,कोट पहने एक टोपी लगाए।

मैंने पहचाना नहीं , लेकिन टोपी भी उसकी लम्बे बाल जो मोड़ के खोंसे थे , मुश्किल से छुपा पा रही थी।

थी तो कोई गाँव की लड़की , लेकिन एकदम लड़का। यहाँ तक की मूंछे भी जबरदस्त और बार वो अपने मूंछो पे हाथ ,

चंदा और पूरबी भी उसे गौर से देख रही थीं , पहचानने की कोशिश कर रही थीं , तब तक वो कजरी के पास जा के बैठ 'गया ' और उसके साथ उसकी भाभी भी थीं।

" अरे ये लड़का शहर से आया , सरकारी नौकरी है, ऊपर क आमदनी भी , लड़की देखे के लिए , … " भाभी उसकी बोल रही थीं लेकिन बसंती ने बात काटी।

" अरे ऊपर क ना , नीचे क बात बतावा , औजार केतना बड़ा हौ , खड़ा वडा होला की ना , कतो गंडुआ तो ना हौ। "



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वो लड़की वाले की ओर से हो गयी थी।


" अरे ठीक ९ महीना में सोहर होई। पक्का गारंटी। रात भर चूड़ी चुरुरमुरुर होई। "

'लड़के ' की भाभी ने बात सम्हालने की कोशिश की।


लेकिन लड़के ने कजरी को रिजेक्ट कर दिया।

उसकी आँखे गाँव की भौजाइयों , चाचियों ,मौसियों , बुआओ के बीच खिखिलाती , शोर मचाती दर्जनो लड़कियों के बीच कुछ तलाश कर रही थी।


इसी बीच , भाभियाँ भी , कोई उसे चिढ़ा रहां था , कोई अपनी किसी ननद का नाम सजेस्ट कर रहा था ,

पर वह सीधे मेरी भाभी के पास ,


इसी बीच चंदा और पूरबी जो मेरे साथ बैठी थीं , दोनों ने झट पहचान लिया , " अरे ई तो मंजुआ हो। एकदमै ,…

पता ये चला की वो जो भाभी उसके साथ थीं , शीला भाभी वो उनकी ममेरी बहन थी , और अपने को एकदम उस्ताद समझती थी , और चंदा और उसकी सहेलियों से उसकी ज्यादा नहीं पटती थी। बात कई थी , वो पास के एक छोटे से शहर की थी , लेकिन गाँव की लड़कियों , लड़कों को एकदम गंवार समझती थी। 'ऐसे वैसे 'मजाक का एकदम से बुरा मानती तो थी , पलट के बोल देती थीं मुझे ऐसी गँवारू बातें पसंद नहीं। पिछली बार जब वो आई एक दो लड़कों ने ( जिसमें सुनील भी शामिल था ) थोड़ा लाइन मारने की कोशिश की , तो बस एकदम से अल्फफ , और दस बातें सुना दी , गंवार ,तमीज नहीं और भी ,…

लेकिन कुछ उसमें ख़ास बात थी भी , जिससे लड़कों का मन डोलता था ,और वो था उसका गदराया जोबन। इस उम्र में भी खूब बड़ा बड़ा , उभरा ,मस्त एकदम जानमारु। और ऐसे टाइट कपडे पहन के चलती थी की , उभार कटाव सब पता चले. और साथ ही उसके चूतड़ , वो भी चूंचियो की तरह डबल साइज के। रंग तो एकदम गोरा था ही।


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पर जिस दिन से उसने सुनील को उल्टा सीधा बोला , उस दिन से चंदा और बाकी सभी गाँव की लडकियां एकदम जली भुनी। ये सब बातें पिछले साल जाड़े की थी , जब वो यहाँ आई थी।

जब तक उसने भाभी से बात करना शुरू किया , चंदा और पूरबी ने मुझे अच्छी तरह हाल खुलासा समझा दिया। और अब तो मैं भी उनके गोल की थी , और सुनील अजय तो अब मेरे भी,… भाभी भी 'उसके' पीछे पड़ी थीं ,

" कैसी लड़की चाहिए , देखने में , बाकी चीजों में , … "

" मुझे असल में ,एकदम शहर की , शहरी लड़की चाहिए , जो फैशनबल हो जींस स्कर्ट पहनती हो ,फरर फरर अंग्रेजी बोलती हो ,स्मार्ट हो " वो 'लड़का ' बोला ,

और साथ में उसके साथ अगुवाई कर रही , उसकी बहन और सबकी भाभी , शीला भाभी बोलीं।

" हमारा लड़का भी बहुत स्मार्ट है , सब काम अंग्रेजी में करता है ",

लेकिन मेरी भाभी से पार पाना आसान नहीं था , वो बोलीं ,

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" अरे शहरी माल पसंद था तो शहर के मॉल में ढूंढती , इहाँ कहाँ ,गाँव जवार में , एह जगह तो गाँव वाली गँवारन ही मिलेंगी। और फिर स्कर्ट जींस का कौन मतलब , शादी के बाद कौन लड़का अपनी दुल्हन को कपडे पहनने देता है , चाहे जींस हो या लहंगा उतर तो सब जाता है। "

और सारी भाभियों ,लड़कियों के ठहाके गूँज गए।

और वो 'लड़का' उसकी निगाहें चारो ओर मुझे ही ढूंढ रही थी , लेकिन बसंती , चंदा ,गीता और पूरबी ने मुझे अच्छी तरह छुपा रखा था।
फिर तो एक के बाद एक सारी भाभियाँ ,

चंपा भाभी ने पूछा " कहो उ हो सब , काम भी अंग्रेजी में करते हो का। "

लेकिन फंसाया उसको बसंती ने , " बोली अच्छा एक शहर का माल दिखाती हूँ लेकिन एक बात है जो तुम्हारी साली सलहज है उनकी बात माननी होगी। "

और मैं उस के सामने आ गयी।

फिर चट मंगनी पट ब्याह।

शादी की सब रस्मे हुयी और मेरी सारी सहेलियों भाभियों ने जम के गालियां सुनाई , कोहबर की भी सब रस्में हुयी और उसमे भी खूब रगड़ाई ,…

" शादी के बाद सुहाग रात भी होगी वो भी सबके सामने " शीला भाभी ने छेड़ा ,तो जवाब मेरी ओर से बसंती ने दिया ,

" एकदम , लेकिन लड़की की ओर से मैं चेक करुँगी , सुहागरात मनाने वाला औजार , और अगर ६ इंच से सूत भर भी कम हुआ न तो पलट के दूल्हे की गांड मार लुंगी। " और एक बार फिर ठहाके गूँज गए।

थोड़ी देर में पहले तो ऊपर के कपडे उतरे और फिर बंसती ने चेक किया ,

औजार था , एक मोटी कैंडल पे कंडोम चढ़ाके बनाया , और ६ इंच पूरा , इसलिए बिचारे की गांड बच गयी , लेकिन शर्त मुताबिक़ , मेरी सहेलिया चंपा , गीता ,, कजरी सब ऐन मौके पे

थोड़ी देर तक तो मैंने 'उसे ' मजे ले ने दिए लेकिन फिर थोड़ी देर में मैं ऊपर ,

" हमारे यहां की रसम है की सुहाग रात में पहले दुलहन ऊपर रहती है , "



चम्पा भाभी हंस के बोली ,

उस की मोमबत्ती अब दूर हट गयी , मैंने तो सोचा था की कम से कम तीन ऊँगली डाल के ( ये सलाह बसंती की थी ) लेकिन पहली ऊँगली में ही लग गया की माल अभी कोरा है ,






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फिर तो मुझे सुनील और गाँव के बाकी लड़कों की याद आ गयी , बस मैंने बख्श दिया , लेकिन इतनी रगड़ाई की की , मंजू से सबके सामने मनवा लिया की न सिर्फ सुनील से बल्कि गाँव के हर लडके से वो खुल के चुदवायेगी, और फिर कभी गाँव में किसी का मजाक नहीं बनाएगी।

और उस बिचारी को बचाने आता भी कौन ,उसकी बहन ,शीला भाभी को मेरी भाभी , कामिनी भाभी ने दबोच लिया था और उनकी रगड़ाई तो मंजू से भी कस कस के हो रही थी।





और तब तक सबेरा हो गया था।

बारिश बंद हो चुकी थी।

खपड़ैल की छत से , पेड़ों की पत्तियों अभी भी टप टप पानी की बूंदे रुक रुक के गिर रही थीं।



 

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तेरहवीं फुहार

बसंती



बारिश बंद हो चुकी थी।


खपड़ैल की छत से , पेड़ों की पत्तियों अभी भी टप टप पानी की बूंदे रुक रुक के गिर रही थीं।

हम लोग घर वापस आगये , पूरबी ने कहा था की वो कल मुझे नदी ले चलेगी नहाने , लेकिन थोड़ी देर में फिर बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी।

कहीं भी निकलना मुश्किल था।

और मैं भी दो रात लगातार जग चुकी थी , एक रात अजय के साथ और कल रतजगे में।

दोपहर तक मैं सोती रही , बसंती ने खाने के लिए जगाया तब नींद खुली।


कल रात के रतजगे का फायदा ये हुआ की अब हम सब लोग एकदम खुल गए थे , चंदा, पूरबी के साथ गाँव की बाकी लड़कियां और सारी भाभियाँ। किसी से अब किसी की 'कोई चीज ' छुपी ढकी नहीं थी।
और सबसे बढ़कर बसंती से मेरी दोस्ती एकदम पक्की हो गयी थी , वैसे भी वो एकदम खुल के मजाक करती थी ,लेकिन कल जैसे मैंने बसंती के साथ मिलकर मंजू की रगड़ाई की , सबके सामने खुलकर ,उसकी ऊँगली की , चूंचियां मसली और दो बार झाड़ा था , बसंती और मैं दोनों एक दूसरे के फैन हो गए थे।

मुश्किल से उठते हुए मैंने बसंती से पहला सवाल दागा ,

" भाभी कहाँ है। "

मुस्कराती बसंती ने अपने अंदाज में जवाब दिया ,



" अपने भैया से चोदवाने गयी हैं। "

पता चला वो अजय के घर ,मुन्ने के साथ गयी हैं। शाम तक लौटेंगी।

और चंपा भाभी ,कामिनी भाभी के घर गयी थीं , मैं गहरी नींद में सो रही थी तो बसंती को ये काम सौंपा गया था की मुझे उठा के खाना खिला दे।

और खाना खाने में मैं बसंती से डरती थी ,वो इतने प्यार से , और इतनी जबरदस्ती खिलाती थी की यहाँ आने के बाद मेरा खाना दूना हो गया था।

और आज फिर यही हुआ , जैसे मैंने मना किया , बस वो चालू हो गयी ,

" अरे खाना नहीं खाओगी तो मेहनत कैसे करोगी। गाँव में इतने लडके हैं सबका बोझ उठाना होगा , गन्ने के खेत में , अमराई में हर जगह टांग उठाये रहना पडेगा। "

" देख नहीं रही हो ,मेरा वजन कैसे बढ़ रहा है " मैंने हँसते हुए अपनी देह की ओर इशारा किया , तो बसंती ने सीधे अपने हाथ से मेरे उभार दबा दिए और घुंडी मरोड़ के बोली,



" अरे मेरी बिन्नो जब यहां से लौटोगी तो इसका वजन जरूर बढ़जाएगा , कुछ तुम्हारी भाभी के भैया , मीज मीज के, दबा दबा के बढ़ा देंगे और कुछ मैं खिला पिला के , लेकिन शहर में जो तेरे यार होंगे न उनका तो मजा दूना हो जायेगा न , एकदम जिल्ला टॉप माल बनोगी। "

बंसती की बात का जवाब मेरे पास नहीं थी , लेकिन जब मैंने थाली से कुछ कम करने की कोशिश की तो उसने और डाल दिया ,और बोली ,

" बिन्नो खाना तो खाना ही पडेगा , ऊपर के छेद से नहीं खाओगी तो नीचे के छेद से खिलाऊँगी , तेरी गांड में घुसेड़ूँगी। "

मैं और बंसती साथ साथ खा रहे थे। बरामदे में।

हलकी हलकी सावन की झड़ी कच्चे आँगन में बरस रही थी। मिटटी की मादक महक बारिश की बूंदो के पड़ने से उठ रही थी।



" नहीं पीछे का छेद तुम माफ करो मैं ऊपर वाले से ही खा लुंगी " हँसते हुए मैं मान गयी। वैसे भी बंसती से कौन जीत सकता था।

“वैसे जानती हो भरपेट बल्कि भरपेट से भी थोड़ा ज्यादा खाने से ,गांड मरवाने वाली और मारने वाले दोनों को मजा मिलता है। "

बसंती ने ज्ञान दिया , जो मेरे सर के ऊपर गूजर गया।

हम दोनों हाथ धुल रहे थे , मैंने बिना शर्माए बसंती से पूछ ही लिया , कैसे।

जोर से उसने मेरा गाल पिंच किया और बोली ,


“अच्छा हुआ तुम गाँव आगयी वरना शहर में तो,… अरे गांड में लबालब मक्खन मिलता है , गांड मारने वाले को सटासट जाता है. और मरवाने वाली को भी खाली पहली बार घुसवाते दर्द होता है , एक बार गांड का मक्खन लग गया फिर तो फचाफच,अंदर बाहर।“



मैं समझ गयी थी वो किस गांड के मक्खन की बात कर रही थी। लेकिन एक बार बसंती चालू हो गयी तो उसको रोकना मुश्किल था।

और रोकना चाहता भी कौन था , मुझे भी अब खूब मजा आता था ऐसी बातों में।

मैंने बसंती को और उकसाया और अपनी मुसीबत मोल ले ली ,

" अरे पिछवाड़े कौन मजा आएगा, .... " मैंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया ये बोल कर।

और ऊपर से आज कहीं जाना नहीं था , मैं अपनी एक छोटी सी स्कर्ट और स्कूल की टॉप पहने थी। बस बसंती को मौका मिल गया ,

सीधे उसने मेरे स्कर्ट के पिछवाड़े हाथ डाल दिया और मेरा भरा भरा नितम्ब उसकी मुट्ठी में।

 

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मजा पिछवाड़े का



मैं अपनी एक छोटी सी स्कर्ट और स्कूल की टॉप पहने थी।





ब्रा और पैंटी तो वैसे भी गांव में पहनने का रिवाज नहीं था तो मैं भी बिना ब्रा पैंटी के ,… बस बसंती को मौका मिल गया ,



सीधे उसने मेरे स्कर्ट के पिछवाड़े हाथ डाल दिया और मेरा भरा भरा नितम्ब उसकी मुट्ठी में।



जोर जोर से रगड़ते मसलते बसंती ने चिढ़ाया ,





"सारे गाँव के लौंडे झूठे थोड़े एहके पीछे पड़े हैं, अइसन चूतड़ मटकाय मटकाय के चलती हो , बिना तोहार गांड मारे थोड़े छोड़ीहैं , इतनी नरम मुलायम गांड हौ ,बहुत मजा आएगा लौंडों को तेरी गांड मारने में। "



और ये कहते कहते उनकी तरजनी सीधे पिछवाड़े के छेद पे पहुँच गयी। और गचगचा के उन्होंने एक ऊँगली घुसाने की कोशिश की लेकिन रास्ता एकदम बंद था।






"अरे ई तो ऐकदमे सील पैक है , बहुत मजा आएगा , जो खोलेगा इसको। डरना मत अरे दर्द होगा , चीखो चिल्लाओगी बहुत गांड पटकोगी , लेकिन गांड मारने वाला जानता है , बिना बेरहमी के गांड नहीं मारी जा सकती। "

मेरे सामने अजय की तस्वीर घूम गयी , नहीं उसके बस का नहीं है , वो मेरा दर्द ज़रा भी नहीं बर्दाश्त कर पाता है , एक बार चिल्लाऊंगी तो वो निकाल लेगा।



हाँ सुनील की बात और है ,वो नहीं छोड़ने वाला।





कल की ही तो बात है , गन्ने के खेत में हचक हचक के चोदने के बाद जब मैं चलने लगी तो कैसे मेरे चूतड़ दबोच रहा था।

और जब मैंने बोला की आगे से मन नहीं भरा क्या की पिछवाड़े भी ,तो कचाक से गाल काटने के बाद सीधे गांड पे उंगली रगड़ता बोला ,



"इतनी मस्त गांड हो और न मारी जाय ,सख्त बेइंसाफी है। "


उससे बचा पाना मुश्किल है।





बंसती की ऊँगली की टिप अभी भी गांड के छेद पे रगड़ रही थी, वो बोली ,



"जब बिन्नो तेरे गांड के छल्ले को रगड़ता,दरेरता ,फाड़ता घुसेगा न , एकदम आग लग जायेगी गांड में। लेकिन मर्द दबोच के रखता है उस समय , वो पूरा ठेल के ही दम लेगा। जब एक बार सुपाड़ा गांड का छल्ला पार कर गया तो तुम लाख गांड पटको , .... बस दो चार दिन में देखों कोई न कोई ये कसी सील खोल देगा।






गांड मरवाने का असली मजा तो उसी दर्द में है. मारने वाले को भी तभी मजा आता है जब वो पूरी ताकत से छल्ले के पार ठेलता है , और मरवाने वाली को भी , और जो लड़की गांड मराने में जरा भी नखड़ा करे न तो समझो छिनारपना कर रही है , तुझसे छोटी उम्र के लौंडे गांड मरौव्वल करते हैं। "



बात बसंती की एकदम सही थी।








उसकी पढ़ाई थोड़ा और आगे चलती की पूरबी आ गयी।




 

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पूरबी






उसकी पढ़ाई थोड़ा और आगे चलती की पूरबी आ गयी।

हलकी बारिश में साडी पूरबी की देह से चिपक गयी थी ,गोरा रंग , मस्ती में डूबे अंग , सब उभार कटाव झलक रहा था।



और आते ही पूरबी चालू , बसंती से बोली ,



"अरे सावन में ननदी से अकेले अकेले मजा लूटा जा रहा है।"



"आओ न,वैसे भी हमारी ननदों का एक से मन कहाँ भरता है , आओ मिल के इसको ट्रेनिंग देते हैं।“

बसंती को भी एक साथी मिल गया।



और मेरी स्कर्ट के अंदर अब पूरबी का हाथ भी घुस गया , आधे कटे तरबूजे की तरह गोल गोल कड़े कड़े मेरे चूतड़ , जिसके बारे में सोच के ही लौंडो का लंड खड़ा हो जाता है , वो बसंती और पूरबी के हाथों के कब्जे में.





और क्या कोई लड़का मसलेगा जैसे वो दोनों मिल के मसल रही थीं।



"रात में तो पिछवाडे वाला सामान ठीक से दिखा ही नहीं "







पूरबी बोली और उसने और बसंती ने मिलके एक साथ मेरा स्कर्ट उठा दिया , और यही नहीं दोनों ने मिल के हलके से धक्का दिया , और बरामदे में पड़ी बसखटिया पे मैं पट गिरी पेट के बल और पिछवाड़ा न सिर्फ पूरी तरह खुला था , बल्कि बसंती और पूरबी के हवाले।





और दोनों नंबरी छिनार।





"देखो कल ही चंपा भाभी ने मुझसे कहा था की मैं तुझे पूरी ट्रेनिंग दे दूँ ,जो भी ससुराल से सीख के आई हूँ , सीखा मैं दूंगी ,प्रैक्टिकल गाँव के लड़के करा देंगे। चम्पा भाभी की बात टालने की हिम्मत तो मुझमे है नहीं। "


जोर जोर से मेरे चूतड़ दबाती ,चिढ़ाती पूरबी बोली।

बसंती का साथ मिलने से वो और शेर हो गयी थी।

बसंती की दो उंगलियां अब मेरे पिछवाड़े की दरार में,रगड़ रगड़ कर आग लगा रही थी।

पूरबी क्यों मौका छोड़ती ,उसकी हथेली मेरे गदराये कड़े चूतड़ पे थी लेकिन अंगुलियां सरक कर ,मेरी बुलबुल के मुहाने पर पहुँच कर वहां छेड़खानी कर रही थी।




इतनी मस्त गांड अभी तक सील बंद इसका जल्द इलाज होना चाहिए , दोनों ने मेरे चूतड़ फैला के बोला।

“इलाज तो मैं अभी कर देती लेकिन गाँव के लड़कों का नुक्सान हो जाएगा " बसंती रहम करती बोली।

“ दो दिन का टाइम दे रही हैं तुझे , अगर तब तक नहीं फटी तो सोच लो,” पूरबी बोली।

कुछ देर तक मेरी रगड़ाई होती रही लेकिन मैंने भी जुगत लगाई।

पूरबी से मैं बोली ,

" अरे ये साडी गीली है , तबियत खराब हो जायेगी तो आपके मायके के यारों का क्या होगा। "

और ये कहके मैंने पूरबी का आँचल पकड़ के जोर से खींचना शुरू कर दिया और बसंती की ओर देखा , वो मुस्कराई और झट से उसने पाला बदल लिया।

जब तक पूरबी सम्हले , उसकी दोनों कलाइयां बसंती की सँडसी ऐसी कलाई की कड़ी पकड़ में।

अब आराम से चक्कर ले के मैंने पूरी साडी उतार के चारपाई पे फ़ेंक दिया।

और अब मैंने और बंसती ने मिल के , पूरबी को पीठ के बल ,....

“चलो अब अपनी गौने की रात की पूरी कहानी सुनाओ , " उसके ब्लाउज के बटन खोलती बसंती बोली।


“कल सुनाया तो था,"पूरबी ने बहाना बनाया।

लेकिन अब मैं भी गाँव के रंग में रंग गयी थी।

"सुनाया था, दिखाया कहाँ था, इस्तेमाल के बाद बुलबुल की क्या हालत हुयी।” और जब तक पूरबी रानी सम्हले सम्हले, मैंने उसका साया पलट दिया और बुलबुल खुल गयी थी।

हाथ अभी भी पूरबी के ,बसंती की पकड़ में थे.

और पूरबी की बुलबुल मेरे हाथ में।





चूत सेवा , उंगली और हाथ से करना मैंने भी सीख लिया था।
कुछ ही देर में पूरबी चूतड़ पटक रही थी और बसंती ने उससे गौने की रात का पूरा डीटेल उगलवा लिया।


कैसे रात में करीब ९ बजे उसकी ननदे उसे कमरे में छोड़ गयीं और थोड़ी देर में वो अंदर आये , और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। पूरबी को मालूम था तब भी घबड़ा रही थी।
 

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गौने की रात दुखदायी रे




कुछ ही देर में पूरबी चूतड़ पटक रही थी और बसंती ने उससे गौने की रात का पूरा डीटेल उगलवा लिया।


कैसे रात में करीब ९ बजे उसकी ननदे उसे कमरे में छोड़ गयीं और थोड़ी देर में वो अंदर आये , और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। पूरबी को मालूम था तब भी घबड़ा रही थी।



कैसे उन्होंने घूंघट उठाया , कैसे लजाते शर्माते उसने जैसे उसकी जिठानी ने कहा था , पहले दूध का गिलास फिर पान दिया। उन्होंने पान अपने होंठों में पकड़ कर लेने का इशारा किया।







कुछ देर वो सकुचाती शर्माती रही ,न न करती रही फिर उसने अपने होंठो में , उनके होंठों से ले लिया।

बस उसके साजन को मौका गया। अपनी बाँहों में उन्होंने उसे जकड लिया और सीधे उनके होंठ , पूरबी के होंठों पे।



पूरबी ने आँखे बंद कर ली , सब सिखाया पढ़ाया भूल गयी। अपने आप उसकी देह ढीली हो गयी।



उनके होंठ , उसके होंठों का रस चूसते रहे ,हलके हलके पूरबी के गुलाबी रसीले होंठों को काटते रहे , और साथ साथ उनके हाथ पहले तो उसकी खुली पीठ सहलाते रहे , फिर अचानक सीधे चोली बंध पे , जब तक पूरबी सम्हले सम्हले चोली खुल चुकी थी।



पूरबी ने अपने दोनों हाथों से आगे से अपनी चोली को पकड़ा , लेकिन उनके होंठ अब नीचे आके पूरबी की कड़ी गोरी गोलाइयों को चूम चाट रहे थे.



पूरबी पिघल रही थी ,उसकी पकड़ कमजोर हो रही थी।



और एक झटके में जब पूरबी का ध्यान चोली बचाने की ओर था , उनका हाथ सीधे लहंगे के नाड़े पे , एक झटके में उन्होंने नाड़ा खोलकर ,लहंगा नीचे सरकाना शुरू कर दिया था।





घबड़ा के पूरबी ने दोनों हाथों से लहंगे को जोर से पकड़ के उसे बचाने की कोशिश की , लेकिन वो शायद यही चाहते थे। जैसे ही पूरबी के हाथ , चोली से हटे, चोली बंध तो वो पहले ही खोल चुके थे, दोनों हाथों से उन्होंने पूरबी का चोली एक झटके में , अगले पल वो पलंग के नीचे पड़ा था , और उसके गदराये जोबन उसके सैयां की मुट्ठी में।



थोड़ी देर तक तो वो बस हलके से छूते सहलाते रहे , फिर हलके हलके उन्होंने दबाना ,मसलना शुरू किया।



और पूरबी बोली ,







“जब उन्होंने घुंडी पकड़ के हलके से मसलना शुरू किया तो बस मस्ती से जान निकलगयी , मैं सिसकी भरने लगी बस मन ये कर रहा था की जो करना हो कर दें। और फिर वो घुंडी जो उनकी हाथ में थी , उनके होंठों के बीच में आगयी ,कभी वो चूसते , कभी काटते। हाथ उनका मेरे पेट पे सरक रहा था , हम दोनों करवट लेटे एक दूसरे को बांहों में ,



लहंगे का नाड़ा तो उन्होंने पहले ही खोल दिया , इसलिए बिना रोकटोक उनका हाथ अंदर घुस गया , पेट के निचले हिस्से पे और फिर जाँघों के ऊपरी हिस्से पे। मेरा होश गायब हो चुका था , मुझे पता भी नहीं चला कब मेरा लहंगा उतरा ,कब उनके सारे कपडे उत्तर गए।



मेरा भी होश खो चुका था , सोच सोच के मेरी बुलबुल गीली हो रही थी। लेकिन मैंने मुस्करा के पूरबी से पूछा ,



" तो होश आया कब "



“जब उन्होंने सटाया, मेरी दोनों टाँगे उनके कन्धों पे थी, नीचे भी उन्होंने मोटी तकिया लगा दी थी , फिर फैला के , मेरा एकदम सेंटर में जब उन्होंने सटाया तो मैं गिनगिना गयी। "



पूरबी मुस्करा के बोली।



" साल्ली , छिनार लौड़ा घोंटने में नहीं शरम ,चूसने में नहीं शरम और लंड बोलने में फट रही है तेरी " जोर से उसके निपल पे चिकोटी काटती ,बसंती बोली।



फिर पूछा , कितना बड़ा लौंडा है तेरे मरद का।



" अच्छा बोलती हूँ न ,अपना लंड मेरी कसी चूत से सटाया , अरे बहुत बड़ा है , करीब ७ इंच का थोड़ा ही कम होगा। और मोटा भी खूब है :" पूरबी ने खुल के बताया।



लेकिन मेरा दिमाग अजय में लगा था उसका तो , ७ इंच से भी बड़ा है और मोटा भी। मेरे चूत में जोर जोर से कीड़े काटने लगे।



" फिर क्या हुआ " मैंने पूछा।


पूरबी जोर जोर से हंसी ,

"फिर क्या , मेरी फट गयी। बहुत दर्द हुआ जोर से बहुत रोकने पे भी मैं जोर से चिल्लाई मैं। बाहर साल्ली, छिनार ननदे कान पारे सुन रही थीं। जैसे ही मैं चीखी , उन सबकी जोर से खिलखिलाहट सुनाई पड़ी , फिर मेरे सास की आवाज आई , डांट के भगाया उन्होंने सबको। '



" क्यों कुछ चिकना नहीं लगाया था क्या पाहुन ने ". बसंती ने पूछा।







" अरे मेरी जिठानी ने खुद अपने हाथ से मेरी , … मेरी चूत में दो ऊँगली से ढेर सारा वैसलीन लगाया था. और कमरे में कड़वे तेल की बोतल भी थी। उन्होंने अच्छी तरह से लंड पे चुपड़ा था , लेकिन इतनी तेजी से धक्का मारा की , क्या करूँ रोकते रोकते चीख निकल गयी। उन्होंने पूरा ठेल दिया था। "



मैं सोच रही थी , आम के बाग़ में तेज बारिश में जब अजय ने मेरी फाड़ी थी , आधे लंड से बहुत सम्हाल के चोदा था , तब भी कितना चिल्लाई थी मैं , वो तो बाग़ में इतना सन्नाटा था , तेज बारिश थी , वरना मेरी चीख भी कम तेज नहीं थीं ,… मैंने उस बिचारे को इतना बुरा भला कहा तब भी उसने कित्तने प्यार से , …मेरे मन का डर निकल गया।



और मैं भी ऐसी अहसान फरामोश , दूसरी बार उसको दिया भी नहीं , ....





" कित्ती बार चुदी पहली रात। " बसंती सीधे मुद्दे पे आ गयी।





" तीन बार , सुबह सात बजे आखिरी राउंड लगाया उन्होंने। एक बूँद भी नहीं सोयी मैं। मैंने सास को कहते सुन लिया था अपनी जेठानी से की कमरा बाहर से बंद कर देना और ९ बजे के बाद ही खोलना , वरना सुबह से ही इसकी ननदे , "



लेकिन मेरा ध्यान तो अजय में लगा था। उस दिन इतना कम टाइम था , तूफानी रात थी तब भी दो बार ,



कभी रात भर का अजय के साथ मौका मिला तो मैं भी कम से कम तीन बार , चाहे जितना भी दर्द क्यों न हो।



तब तक बाहर से भाभी की आवाज सुनाई पड़ी और हम तीनो खड़े ,



साडी और स्कर्ट दोनों में ये फायदा है , बस खड़े हो जाओ तो सब ढक जाता है।



पूरबी ने अपनी साडी कब की लपेट ली थी और मुझसे बोली ,



" देखो मैं भूल ही गयी थी , किस काम के लिए आई थी। एक तो चमेली भाभी मिली थीं ( चमेली भाभी , मेरी सहेली चंदा की सगी भाभी ), उन्होंने तुम्हे बताने के लिए बोला था की उनके यहाँ कुछ मेहमान आये हैं , इसलिए चंदा कल शाम तक नहीं आ पाएगी।



दूसरे , मैं कल सुबह आउंगी। मैं, कजरी ,गीता सब नदी नहाने चल रहे हैं , तुम भी तैयार रहना। "



और ये कह के वो बसंती के साथ खिड़की ,पिछले दरवाजे से निकल गयी।



बाहर से अब भाभी के साथ अजय की आवाज भी सुनाई पड़ रही थी , भाभी उस से अंदर आने को कह रही थी लेकिन वो ,....



बस मैं मना रही थी की वो किसी तरह अंदर आ जाय ,बाकी तो मैं ,....



दरवाजा खुला ,पहले भाभी ,







… पीछे पीछे अजय।





और अब मैंने अपने कपड़ों पे नजर डाली , मेरी एक पुरानी स्कूल की यूनिफार्म , एक बहुत टाइट सी टॉप ,जिसमें कबूतर के साथ उनकी चोंचे भी नजर आ रही थी। और बस बित्ते डेढ़ बित्ते की स्कर्ट ,…




लेकिन अब क्या हो सकता था।


 

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Thanks so much
 

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