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मैं चंपा भाभी के साथ निकल पड़ी ,चंपा भाभी ने एक तसले में रॉकी के लिए कुछ खाने के लिए लिया और मैंने एक लालटेन उठा ली ,( बत्ती थी ,भाभी के घर में लेकिन वो आती कम थी जाती ज्यादा थी , पिछले दो दिनों से नदारद थी ,कोई ट्रांसफरमर उड़ गया था और अगले दो दिन तक आने की उम्मीद भी नहीं थी ).
………….
रॉकी आॅगन में नीम के पेड़ से बंधा था।
और आँगन में पैर रखते ही मेरी फट गयी , मारे डर के।
एकदम घना अँधेरा , पूरा भयानक काला।
आसमान में एक भी तारे नहीं।
और हवा एकदम रुकी , आने वाले तूफान का इशारा करती।
आँगन में एक दीवाल में बने ताखे में एक छोटी सी ढिबरी जल रही थी।
दिन में जो बड़ा सा नीम का पेड़ इतना प्यारा लगता था , इस समय वही किसी बड़े जिन्नात सा , सिर्फ हल्का हलका रोशन और ऊपर का हिस्सा एकदम घुप्प अँधेरे में डूबा।
रॉकी ने हम दोनों को देखा , लेकिन उसके पहले चंपा भाभी ने उसके खाने का तसला मुझे पकड़ा दिया था और लालटेन अपने हाथ में ले ली थी और मेरे कान में बोला,
" रॉकी को आज तुझे ही हैंडल करना है , इसको सहलाओ , पुचकारो , कुछ भी करे उसे रोकना मत। और फिर खाना खिलाओ। घबड़ाना मत मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूंगी , थोड़ा पीछे। "
और मैं आगे बढ़ी।
आँगन पहचाना नहीं जा रहा था।
नीम के पेड़ के निचले हिस्से और उस के आसपास का हिस्सा ढिबरी की रौशनी में बस हलके हलके उजाले में डूबा था।
बाकी आँगन घटाटोप काले अँधेरे में , आँगन के चारो ओर खूब ऊँची दीवारे थीं , १२ -१४ फिट की रही होंगी उनके पार दिन में खूब हरे भरे पेड़ दिखते थे। लेकिन इस समय जैसे किसी ने मोटी काली चादर ओढ़ा दी हो।
और तभी ,चंपा भाभी ने मेरे हाथ से लालटेन ले ली मुझे रॉकी के खाने का तसला पकड़ा दिया , और मेरे कान में फुसफुसाकर बोलीं ,
" जाओ , जरा भी डरना मत , बस उसे खूब प्यार से सहलाना , मैंने कुछ दूर ही पीछे रहूंगी। और ये खाना खिला देना। फिर उसे लेके बाहर जाना होगा।"
और अगले पल वो लालटेन की रोशनी धीमे धीमे दूर हो गयी।
हिम्मत कर में मैं आगे बढ़ी , अब सिर्फ ढिबरी की रोशनी मेरा सहारा थी , बड़े से नीम के पेड़ का साया और रॉकी बस दिख रहे थे।
और हलकी रोशनी में रॉकी और बड़ा दिख रहा था , वैसे भी वो दो फिट से ज्यादा ही ऊंचा था , मेरे बगल में खड़े होने पर वो मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ जाता था।
पहले तो वो हलके भौका।
मैं डर से सिहर गयी , लेकिन ये सिहरन सिर्फ डर की नहीं थी। कल रतजगा में जो मुझे रॉकी के साथ जोड़ के गालियां दी गयी थीं , चंपा भाभी और चमेली भाभी ने 'खूब विस्तार' से समझाया था, पूरे डिटेल के साथ कैसे पहले वो चाटे चूमेगा , फिर पीछे आके , .... और जब उसकी बड़ी सी मुट्ठी के साइज की गाँठ मेरे अंदर , .... खूब घिर्रा घिर्रा के , … और चंदा ने भी कल बोला था की ये मजाक नहीं है , चंपा भाभी सच में बिना चढ़ाये छोड़ेंगी नहीं , … मेरे दिल की धड़कन धक धक हो रही थी।
फिर जैसे उसने मुझे पहचान लिया हो और उसका भौंकना एकदम बंद हो गया।
मेरी निगाह फिर रॉकी के ' वहां ' पड़ गयी , वो , .... वो, … बाहर निकला था , एकदम किसी आदमी के जैसा , \
मैंने थूक घोंटा , सांस आलमोस्ट रुक गयी। मुझे भाभी की माँ की बात याद आ गयी। ' बेटी कातिक -वातिक की सिर्फ कुतिया के लिए है, कुतिया कातिक में गरमाती हैं , रॉकी तो बारहो महीना तैयार रहता है , अगर उसे महक लग जाय ,…लौंडिया "
पैंटी तो मैं पहनती नहीं थी , और नीचे अब कुछ लसलसा सा लग रहा था।
मेरी टाँगे अब पिघल रही थीं , और मैं समझ रही थी , की अगर इस अँधेरे में रॉकी ने कुछ ,… तो कोई आएगा भी नहीं।
मुश्किल से मैंने अपने को सम्हाला।
अब तक मैं रॉकी के एकदम पास पहुँच गयी थी ,वो चेन से बंधा जरूर था मगर एक तो चेन बहुत ही पतली थी , उसके लिए उसको तुड़ाना बहुत ही आसान था ,दूसरी चेन इतनी लम्बी थी की आधे आँगन से ज्यादा वो आराम से जा सकता था।
और रॉकी ने अपनी नाक ऊपर की जैसे उसे मेरी जांघो के बीच की लसलस की महक मिल गयी हो.
फिर सीधे उसकी जीभ मेरी खुली पिंडलियों पे ,उसने चाटना शुरू कर दिया।
मैं घबड़ा रही थी लेकिन हिल भी नहीं सकती थी।
चंपा भाभी ने पहले ही समझा दिया था की अगर वो चाटम चूटी कर रहा हो तो जरा सा भी डिस्टर्ब नहीं करना , वरना अगर गुस्सा हो गया सकता है।
कुछ ही देर में उसकी जीभ घुटनो तक पहुँच गयी , मैंने भी उसे खूब प्यार से सहलाना , हलके हलके रॉकी रॉकी बोलना शुरू कर दिया।
धीरे धीरे मेरा डर कुछ कम हो रहा था , मैंने उसका ध्यान बंटाने के लिए , उसे खाने का तसला दिखाया।
मुझे लगा खाने को देख कर शायद कर उसका मन बदल जाय ,
,
मेरे पैर लग रहा था अब गए , तब गए , … मैं रॉकी को खूब प्यार से सहला रही थी , रॉकी रॉकी बुला रही थी ,
और तभी मेरी निगाह नीचे की ओर मुड़ी ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह , मेरी चीख निकलते निकलते बची , …
,लाल गुस्सैल , एकदम तना ,कड़ा गुस्सैल , और मोटा ,
मेरी तो जान सूख गयी ,
मतलब ,मतलब वो ,… पूरे जोश में है , एकदम तन्नाया। और अब कहीं वो मेरे ऊपर चढ़ बैठा ,....
और जिस तरह से अब उसकी जीभ , मैं गनगना रही थी ,चार पांच मिनट अगर वो इसी तरह चाटता रहां तो मैं खुद किसी हालत में नहीं रहूंगी कुछ ,....
मेरी जांघे पूरी तरह अपने आप फैल गयी थीं,
ताखे में रखी ढिबरी की लौ जोर जोर से हिल रही थी , अब बुझी ,तब बुझी।
जैसे बहुत बेमन से उसने मेरे स्कर्ट से अपने नथुने निकाले , और झुक के तसले में मुंह लगा लिया ,और खाना शुरू कर दिया।
बड़ी मुश्किल से मैं उसके बगल में घुटने मोड़ के उँकड़ू बैठी और उसकी गरदन , उसकी पीठ सहलाती रही , मैं लाख कोशिश कर रही थी की मेरी निगाह उधर न जाय लेकिन अपने आप ,
'वो ' उसी तरह से खड़ा ,तना मोटा और अब तो आठ इंच से भी मोटा उसकी नोक लिपस्टिक की तरह से निकली।
और तभी मैंने देखा की चंपा भाभी भी मेरे बगल में बैठी है , मुस्कराती , लालटेन की लौ उन्होंने खूब हलकी कर दी थी।
' पसंद आया न "
मेरे गाल पे जोर से चिकोटी काट के वो बोलीं , और जब तक मैं जवाब देती उनका हाथ सीधे मेरी जाँघों के बीच और मेरी बुलबुल को दबोच लिया उन्होंने जोर से।
खूब गीली ,लिसलिसी हो रही थी। और चंपा भाभी की गदोरी उसे जोर जोर से रगड़ रही थी।
" मेरी छिनार बिन्नो , जब देख के इतनी गीली हो रही तो जो ये सटा के रगडेगा तो क्या होगा , इसका मतलब अब तू तो राजी है और रॉकी की तो हालत देख के लग रहा है , तुझे पहला मौका पाते ही पेल देगा। "
मेरे कान में फुसफुसा के वो बोलीं।
तब तक रॉकी ने तसला खाली कर दिया था।
उसे अब बाहर ले जाना था , उसकी कुठरिया में ,मैंने उसकी चेन पेड़ से खोलने की कोशिश की तो भाभी ने बोला , नहीं नहीं , रॉकी के गले से चेन निकाल दो। बिना चेन के साथ बाहर चलो।
मेरा भी डर अब चला गया था. और रॉकी भी अब सिर्फ मेरे एक बार कहने पे ,बीच बीच में झुक के मैं उसकी गरदन पीठ सहला देती थी।
बाहर एक छोटी सी कुठरिया सी थी , उसमे एक कोने में पुआल का ढेर भी पड़ा था.चंपा भाभी ने मुझे बोला की मैं उसमें रॉकी को बंद कर दूँ।
लेकिन रॉकी अंदर जाय ही न , फिर चंपा भाभी ने सजेस्ट किया की मैं अंदर घुस जाऊं , और पुवाल के पास खड़े हो के रॉकी को खूब प्यार से पुचकारुं , बुलाऊँ तो शायद वो अंदर आ जायेगा।
और चंपा भाभी की ट्रिक काम कर गयी , मैं कमरे के एकदम अंदरुनी हिस्से में थी और उसे पुचकार रही थी , रॉकी तुरंत अंदर।
लेकिन तबतक दरवाजा बाहर से बंद हो गया, मुझे लगा की शायद हवा से हुआ हो , पर बाहर से कुण्डी बंद होने की आवाज आई साथ में चम्पा भाभी के खिलखिलाने की ,
'आज रात एही के साथ रहो , कल मिलेंगे।'
मैं अंदर से थप थप कर रही थी ,परेशान हो रही थी , आखिर हँसते हुए चंपा भाभी ने दरवाजा खोल दिया।
मेरे निकलते ही बोलीं ,
" अरे तू वैसे घबड़ा रही थी , रॉकी को सबके सामने चढ़ाएंगे तोहरे ऊपर। आँगन में दिन दहाड़े , ऐसे कुठरिया में का मजा आएगा। जबतक मैं , कामिनी भाभी ,चमेली भाभी और सबसे बढकर हमार सासु जी न सामने बइठइहें , … "
……………..
तब तक सामने से गुलबिया दिखाई पड़ी , ऑलमोस्ट दौड़ते हुए अपने घर जा रही थी।
उसने बोला ,वो सरपंच के यहां से आ रही है , और रेडियो पर आ रहा था की आज बहुत तेज बारिश के साथ तूफानी हवाएँ रात भर चलेगीं। नौ साढ़े नौ बजे तक तेज बारिश चालू हो जाएगी। सब लोग घर के अंदर रहें , जानवर भी बाँध के रखे।
और जैसे उसकी बात की ताकीद करते हुए, अचानक बहुत तेज बिजली चमकी।
मैंने जोर से चंपा भाभी को पकड़ लिया।
मेरी निगाह अजय के घर की ओर थीं , बिजली की रोशनी में वो पगडण्डी नहा उठी , खूब घनी बँसवाड़ी , गझिन आम के पेड़ों के बीच से सिर्फ एक आदमी मुश्किल से चल सके वैसा रास्ता था , सौ ,डेढ़ सौ मीटर , मुश्किल से,… लेकिन अगर आंधी तूफान आये तेज बारिश में कैसे आ पायेगा।
और अब फिर बादल गरजे और मैं और चम्पा भाभी तुरत घर के अंदर दुबक गए और बाहर का दरवाजा जोर से बंद कर लिया।
" भाभी , बिजली और बादल के गरजने से, रॉकी डरेगा तो नहीं। " मैंने चंपा भाभी से अपना डर जाहिर किया।
चंपा भाभी , जोर से उन्होंने मेरी चूंची मरोड़ते हुए बोला ,
' बड़ा याराना हो गया है एक बार में मेरी गुड्डी का , अरे अभी तो चढ़ा भी नहीं है तेरे ऊपर। एकदम नहीं डरेगा और वैसे भी कल से उसके सब काम की जिम्मेदारी तेरी है , सुबह उसको जब कमरे से निकालने जाओगी न तो पूछ लेना , हाल चाल। "
अपने कमरे से मैं टार्च निकाल लायी , क्योंकि आँगन की ढिबरी अब बुझ चुकी थी।
जैसे ही हम दोनों किचेन में घुसे , कडुवा तेल की तेज झार मेरी नाक में घुसी।
मेरी फेवरिट सब्जी ,मेरी भाभी बैठ के कडुवा तेल से छौंक लगा रही थीं।
और मैंने जो बोला तो बस भाभी को मौका मिल गया मेरे ऊपर चढ़ाई करने का।
" भाभी कड़वे तेल की छौंक मुझे बहुत पसंद है। "
मेरे मुंह से निकल गया , बस क्या था पहले मेरी भाभी ही ,
" सिर्फ छौंक ही पसंद है या किसी और काम के लिए भी इस्तेमाल करती हो " उन्होंने छेड़ा।
मैं भाभी की मम्मी के बगल में बैठी थी , आगे की बात उन्होंने बढ़ाई,
मैं उकड़ूँ बैठी थी ,मम्मी से सटी , और अब उनका हाथ सीधे मेरे कड़े गोल नितम्बो पे , हलके से दबा के बोलीं
" तुम दोनों न मेरी बेटी को , अरे सही तो कह रही है , कड़वा तेल चिकनाहट के साथ ऐन्टिसेप्टिक होता है इसलिए गौने के दुल्हिन के कमरे में उसकी सास जेठानी जरूर रखती थीं , पूरी बोतल कड़वे तेल की और अगले दिन देखती भी थीं की कितना बचा। कई बार तो दुल्हिन को दूल्हे के पास ले जाने के पहले ही उसकी जेठानी खोल के थोड़ा तेल पहले ही , मालूम तो ये सबको ही होता है की गौने की रात तो बिचारी की फटेगी ही , चीख चिलहट होगी ,खून खच्चर होगा। इसलिए कड़वा तेल जरूर रखा जाता था। "
अब चंपा भाभी चालू हो गयीं ,
" ई कौन सी गौने की दुलहन से कम है , इहाँ कोरी आई हैं , फड़वा के जाएंगी। "
भाभी की मम्मी भी ,अब उनकी उँगलियाँ सीधे पिछवाड़े की दरार पे , और उन्होंने चंपा भी की बात में बात जोड़ी ,
" ई बताओ आखिर ई कहाँ आइन है , आखिर अपनी भैया के ससुराल , तो एनहु क ससुरालै हुयी न। और पहली बार ई आई हैं , तो पहली बार लड़की ससुराल में कब आती है , गौने में न। तो ई गौने की दुल्हन तो होबै की न। "
" हाँ लेकिन एक फरक है "
मेरी भाभी ने चूल्हे पर से सब्जी उतारते हुए,खिलखिलाते कहा ,
" गौने की दुलहन के एक पिया होते हैं और मेरी इस छिनार ननदिया के दस दस है। "
" तब तो कडुवा तेल भी ज्यादा चाहिए होगा। "
हँसते हुए चंपा भाभी ने छेड़ा।
" ई जिमेदारी तुम्हारी है। "
भाभी की माँ ने चम्पा भाभी से कहा।
" आखिर इस पे चढ़ेंगे तो तेरे देवर , तो तुम्हारी देवरानी हुयी न , तो बस अब , कमरे में तेल रखने की , "
फिर चम्पा भाभी बोली ,
" अरे , जब बाहर निकलती है न तब भी , बल्कि अपनी अंगूरी में चुपड़ के दो उंगली सीधे अंदर तक , मेरे देवरों को भी मजा आएगा और इसको भी .
भाभी ने तवा चढ़ा दिया था , और तभी एक बार फिर जोर से बिजली चमकी।
और हम सब लोग हड़काए गए
," जल्दी से खाना का के रसोई समेट के चलो , बस तूफान आने ही वाला है। "
जब हम लोगों ने खाना खत्म किया पौने आठ बजे थे। अब बाहर हलकी हलकी हवा चलनी शुरू हो गयी थी।और रोज की तरह फिर वही नाटक ,चम्पा भाभी का , लेकिन आज भाभी की मम्मी भी उनका साथ दे रही थीं , खुल के।
एक खूब लम्बे से ग्लास में , तीन चौथाई भर कर गाढ़ा औटाया दूध और उसके उपर से तीन अंगुल मलाई ,
और आज भाभी की माँ ने अपने हाथ से , ग्लास पकड़ के सीधे मेरे होंठों पे लगा दिया ,और चम्पा भाभी ने रोज की बात दुहरायी ,
" अरे दूध पियोगी नहीं तो दूध देने लायक कैसे बनोगी। "
लेकिन आज सबसे ज्यादा भाभी की माँ , जबरन दूध का ग्लास मेरे मुंह में धकेलते उन्होंने चंपा भाभी को हड़काया ,
" अरे दूध देने लायक इस बनाने के लिए , तेरे देवरों को मेहनत करनी पड़ेगी , स्पेशल मलाई खिलानी पड़ेगी इसे ,और कुछ बहाना मत बनाना ,मेरी बेटी पीछे हटने वाली नहीं है , क्यों गुड्डी बेटी "
मैं क्या बोलती , मेरे मुंह में तो दूध का ग्लास अटका था. हाँ भाभी की माँ का एक हाथ कस के ग्लास पकडे हुआ था और दूसरा हाथ उसी तरह से मेरे पिछवाड़े को दबोचे था.
" माँ , आपकी इस बेटी पे जोबन तो गजब आ रहां है। "
भाभी ने मुझे देखते हुए चिढ़ाया।
भाभी की माँ ने खूब जोर से उन्हें डांटा ,
" थू , थू , नजर लगाती है मेरी बेटी के जोबन पे , यही तो उमर है , जोबन आने का और जुबना का मजा लूटने का , देखना यहाँ से लौटेगी मेरी बेटी तो सब चोली छोटी हो जाएगी , एकदम गदराये , मस्त , तुम्हारे शहर की लौंडियों की तरह से नहीं की मारे डाइटिंग के ,… ढूंढते रह जाओगे , "
चंपा भाभी ने गलती कर दी बीच में बोल के। आज माँ मेरे खिलाफ एक बात नहीं सुन सकती थीं।
" माँ जी , उसके लिए आपकी उस बेटी को जुबना मिजवाना ,मलवाना भी होगा खुल के अपने यारों से। "
बस माँ उलटे चढ़ गयीं।
" अरे बिचारी मेरी बेटी को क्यों दोष देती हो। सब काम वही करे , बिचारी इतनी दूर से चल के सावन के महीने में अपने घर से आई , सीना तान के पूरे गाँव में चलती है दिन दुपहरिया , सांझे भिनसारे। तुम्हारे छ छ फिट के देवर काहें को हैं , कस कस के मीजें, रगड़े ,.... मेरी बेटी कभी मिजवाने मलवाने में पीछे हटे, ना नुकुर करे तो मुझे दोष देना।"
मेरी राय का सवाल ही नहीं था , अभी भी ग्लास मेरे मुंह में उन्होंने लगा रखा था , पूरा उलटा जिससे आखिरी घूँट तक मेरे पेट में चला जाय।
मेरा मुंह बंद था आँखे नहीं।
………………………………………
चम्पा भाभी और मेरी भाभी के बीच खुल के नैन मटक्का चल रहा था और आज दोनों को बहुत जल्दी थी। जब तक मेरा दूध खत्म हुआ ,उन दोनों भाभियों ने रसोई समेट दी थी और चलने के लिए खड़ी हो गयीं।
चंपा भाभी , भाभी की माँ साथ थोड़ा , और उनके पीछे मैं और मेरी भाभी।
चम्पा भाभी हलके हलके भाभी की माँ से बोल रही थीं लेकिन इस तरह की बिना कान पारे मुझे सब साफ साफ सुनाई दे रहा था।
चंपा भाभी माँ से बोल रही थीं ," अरे जोबन तो आपकी बिटिया पे दूध पिलाने और मिजवाने रगड़वाने से आ जाएगा , लेकिन असली नमकीन लौंडिया बनेगीं वो खारा नमकीन शरबत पिलाने से। "
" एक दम सही कह रही है तू , लेकिन ये काम तो भौजाई का ही है न , और तुम तो भौजाई की भौजाई हो, अब तक तो , … "
लेकिन तबतक मेरी भाभी उन लोगों के बगल में पहुँच गयीं और उन को आँखों के इशारे के बरज रही थीं की मैं सब सुन रही हो , चंपा भाभी ने मोरचा बदला और मेरी भाभी को दबोचा और बोलीं ,
" भौजी ननद को बिना सुनहला खारा शरबत पिलाये छोड़ दे ये तो हो नहीं सकता , "
किसी तरह भाभी हंसती खिलखिलाती उनकी पकड़ से छूटीं और सीधे चंपा भाभी के कमरे में , जहाँ आज उन्हें चंपा भाभी सोना था।
और भाभी के जाते ही मैं अपनी उत्सुकता नहीं दबा पायी , और पूछ ही लिया " चंपा भाभी आप किस शरबत की बात कर रही थीं जो हमारी भाभी , .... "
" अरे कभी तुमने ऐपल जूस तो पिया होगा न , बिलकुल उसी रंग का , … " चम्पा भाभी ने समझाया।
और अब बात काटने की बारी मेरी थी , खिलखिलाती मैं दोनों लोगों से बोली ,
" अरे ऐपल जूस तो मुझे बहुत बहुत अच्छा लगता है। "
" अरे ये भी बहुत अच्छा लगेगा तुझे, हाँ थोड़ा कसैला खारा होगा ,लेकिन चार पांच बार में आदत लग जायेगी ,तुझे कुछ नहीं करना बस अपनी चंपा भाभी के पीछे पड़ी रह, उनके पास तो फैक्ट्री है उनकी। " भाभी की माँ जी बोलीं , लेकिन तबतक चम्पा भाभी भी अपने कमरे में , और पीछे पीछे मैं।