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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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Ajay again
 
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चौदहवीं फुहार






\





अजय

मेरी एक पुरानी स्कूल की यूनिफार्म , एक बहुत टाइट सी टॉप ,जिसमें कबूतर के साथ उनकी चोंचे भी नजर आ रही थी। और बस बित्ते डेढ़ बित्ते की स्कर्ट ,…


लेकिन अब क्या हो सकता था।

………………

और मैं गीली हो गयी।



उसकी एक निगाह काफी थी।



हाफ शर्ट से बाहर छलकती मछलियाँ , एक एक मसल्स जैसे साँचे में ढली , चौड़ा चकला सीना ,पतली कमर लेकिन जानमारु थी उसकी आँखे एकदम गहरी ,और कितनी कुछ कहती बोलती।



वो बस एक बार देख ले , फिर तो मना करने की ताकत ही खत्म हो जाती थी ,


और उसकी मुस्कान।




बस मन करता था उसे देखती ही रहूँ ,



और वो भी कम दुष्ट नहीं था ,नदीदों की तरह मेरे टेनिस बाल साइज के कड़े कड़े उभार देख रहा था ,और गलती उसकी भी नहीं थी , इन कबूतरों पर तो गाँव के सारे लौंडे दीवाने थे। और इस समय तो वो भी मेरी कसे छोटे से टॉप से बाहर निकलने को बेताब हो रहे थे।







बड़ी मुश्किल से मैंने सूना भाभी क्या कह रही थीं ,



मेरे कान में वो फुसफुसा रही थीं , यार मुन्ना तंग कर रहा है , उसके फीड का टाइम हो गया है , बस उससे दुद्धू पिला के वो ,



और फिर जोर से अजय को सुना के मुझसे बोलीं ,



" देख तेरे लिए किसे ले आई हूँ ,ज़रा मेरे भैया को कुछ पिलाओ विलाओ , मैं अभी थोड़ी देर में आती हूँ। "





और एक मुस्कान मार के , वो सीधे घर के अंदर।



लेकिन मेरी निगाहें अभी भी अजय को सहला दुलरा रही थीं।



उस जादूगर ने मुझे पत्थर बना दिया था।



तब तक अजय की छेड़ती आवाज गूंजी ,



"अरे दी बोल गयी हैं , मेहमान को कुछ पिलाओ विलाओ , और तुम ,… "



बस मैं अपने असलियत में वापस आ गयी। आँख नचाती , उसे चिढ़ाती बोली





" अरे भाभी मुन्ने को दुद्दू पिलाने गयी हैं , तुम भी लग जाओ न ,एक से मुन्ना ,दूसरे से मुन्ना के मामा। खूब चुसुर चुसुर कर के पीना , मन भर ,सब प्यास बुझ जायेगी। ''



लेकिन अजय से कौन पार पा सकता है , जहाँ बात से हारता है वहां सीधे हाथ ,



बस उसके हाथों ने झट से मुझे दबोच लिया जैसे कोई बाज ,गौरेया दबोचे।



और अगले ही पल , एक टॉप के ऊपर से मेरे जुबना को दबोच रहा था और दूसरा टॉप के अंदर जवानी के फूल पे सीधे ,



' मुझे तो मुन्ने की बुआ का दुद्धू पीना है ' वो बोला , और उसके डाकू होंठों ने जवाब देने लायक भी नहीं छोड़ा ,


मेरे दोनों टटके गुलाब ऐसे होंठ अजय के होंठों के कब्जे में , और वो जम के चूम चूस रहा था।




और थोड़ा सा मुझे खीच के अजय ने मेरे कमरे के बगल में ओट में खड़ा कर दिया जहाँ हम लोगों को तो कोई नहीं देख सकता था लेकिन वहां से अगर कोई आगन में आया तो पहले से दिख जाता।


होंठ तो बस नसेनी थे , नीचे उतरने के लिए।


टॉप उठा , मेरे दोनों टेनिस बाल सरीखे कड़े कड़े उभार खुल गए





और अजय कस कस के , और कुछ देर बाद उसने न सिर्फ मुह लगाया , बल्कि कचकचा के काट भी लिया।



रोकते रोकते भी मैं सिसक उठी।






लेकिन उस बेरहम को कुछ फर्क पड़ता था क्या , थोड़ी देर वहीँ पे अपने होंठों का मलहम लगाया ,



फिर पहली बार से भी भी ज्यादा जोर से ,



कचाक।



अबकी मेरी हलकी चीख निकल ही गयी।



दांत के अच्छे निशान पड़ गए होंगे वहां।


और हाथ कौन कम थे उसके , जोर जोर से निपल पिंच कर रहे थे। मरोड़ रहे थे।





ऊपर की मंजिल पे तो दर्द हो रहा था , लेकिन निचली मंजिल पे ,प्रेम गली में फिसलन चालू हो गयी थी।

मेरी सहेली खूब गीली हो गयी थी।

' हे भाभी ,। " मैंने झूठमूठ बोला , और उसने टॉप छोड़ दिया , मेरे उभार ढक गए लेकिन मुझे नहीं छोड़ा।

" हे जानती हो मेरा क्या मन कर रहा है। "

मेरी उठी हुयी आँखों ने उसके चेहरे की ओर देखते हुए गुहार लगायी ,बिन बोले ,' बोल दो न मेरे रसिया बालम '

" बस यहीं तुम्हे पटक पटक कर चोद दूँ '

और मेरे भी बोल फूटे ,

' मेरा भी यही मन करता है की , पूरी रात तुमसे , .... हचक हचक कर ,… चुदवाऊँ ,…. लेकिन कैसे ?"


उसने मुझे और जोर से भींच लिया , उसका चौड़ा सीना अब बड़े अधिकार से मेरे उभरते उभारों को दबा रहा था।

उसकी निगाहें इधर उधर मेरे सवाल का जवाब ढूंढ रही थी , .... लेकिन कैसे ?

मेरी कोठरी जहाँ हम खड़े थे , एकदम उसी के बगल में थी। उसी की ओर देखते हुए उसने बहुत हलके से पूछा ,

' इसी में सोती हो न '

मैंने हलके से सर हिला के हामी भरी।


उसका एक हाथ अब स्कर्ट के अंदर घुस के मेरे गोरे गोरे कड़े कड़े नितम्बों को दबोच रहा था और दूसरा टॉप के ऊपर से कबूतरों को सहला रहा था , लेकिन उसकी तेज आँखे अब मेरे कमरे का मौका मुआयना कर रही थीं।


और फिर उस की निगाह मेरे कमरे की खिड़की पर टिक गयी , खिड़की क्या एक छोटा सा दरवाजा था ,जो मेरे कमरे से सीधे बाहर की ओर खुलता था।

बस उसकी निगाहें वहीँ टिक गयीं ,और उसके तगड़े बाजुओं का दबाव जोर से मेरे देह पर बढ़ गया , मैं पिघलती चली गयी।

साढ़े आठ , पौने नौ बजे के करीब , जैसे वो अपने आप से बोला रहा हो ,वो बुदबुदाया।


मेरे बाहों ने भी उसे अब कस के भींच लिया , और उस से बढ़कर मेरी जांघे अपने आप फैल गयीं , मेरी चुन्मुनिया ने उसके कड़े ,खड़े खूंटे पे रगड़ के हामी भर दी।

गाँव में वैसे भी सब लोग जल्दी सो जाते हैं।

और मेरी हामी पर उसके होंठों ने मुझे चूम के झुक के मुहर लगा दी।


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लेकिन उस जालिम के होंठ सिर्फ लालची ही नहीं कातिल भी थे। होंठो का तो बहाना था , फिर टॉप के ऊपर से ही मेरी गुदाज गोलाई और ठीक उसी जगह उसने कककचा के काट लिए , जहाँ उस के दांत के निशाँ अभी टीस रहे थे।

लेकिन इस बार उस दर्द को मस्ती बना के मैं पी गयी।


मेरी आँखे बंद थी ,

जिस नैन में पी बसे , उन नैनन में दूजा कौन समाय।

लेकिन उसकी आँखे खुली थीं चाक चौबस्त ,

मुझे छोड़ते हुए उसने इशारा किया ,भाभी।


और झटके से हम दोनों ऐसे अलग हुए जैसे कभी साथ रहे ही न हों। एकदम दूर दूर खड़े ,मैंने झट से अपनी स्कर्ट टॉप ठीक किया।





पीछे एक घबड़ाई हिरणी की तरह मुड़ के मैंने देखा , भाभी अभी आँगन में ही थीं।
 

komaalrani

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भाभी



एक घबड़ाई हिरणी की तरह मुड़ के मैंने देखा , भाभी अभी आँगन में ही थीं।


और आते ही उन्होंने चिढ़ाते हुए मुझसे अपने अंदाज में पूछा,

' क्यों मेरे भाई को कुछ पिलाया या ऐसे ही भूखा खड़ा रखा है। "

" कहाँ दी , आपकी ये ननद भी , कुछ नहीं , .... " अजय ने तुरंत शिकायत लगायी।

" झूठे , मैंने कहा नहीं था , भाभी मैंने आपके इस झूठ सम्राट भाई से बोला था लेकिन उसने मना कर दिया। " अब मैं एकदम छुटकी ननदिया वाले रूप में आ गयी थी। और आँख नचाते हुए भाभी से कहा ,

" भाभी मैंने साफ साफ बोला था की भाभी मुन्ने को दुद्धू पिलाने गयी हैं तो तू भी लग जाओ,एक ओर से मुन्ना ,एक ओर मुन्ने के मामा। "

भाभी इत्ती आसानी से हार नहीं मानने वाली थीं।

वो मेरे पीछे खड़ी थीं ,झट से पीछे से ही उन्होंने मेरे दोनों कबूतरों को दबोच लिया और उस ताकत से ,की क्या कोई मर्द दबोचेगा।

उन्होंने अजय को मेरे जोबन दिखाते और ललचाते बोला ,

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" अरे सही तो कह रही थे ये , इसके दुद्धू भी तो अब पीने चूसने लायक हो गए हैं।
मुन्ने की बुआ का दुद्धू पी लेते , ये तो आयी ही इसीलिए मेरे साथ है।
फिर मुन्ने की बुआ पे मुन्ने के मामा का पूरा हक़ होता है , सीधे से न माने तो जबरदस्ती। बोलो पीना है तो पी लो , मैं हूँ न एकदम चूं चपड़ नहीं करेगी।"


बिचारा अजय , भाभी के सांमने उसकी , .... लाज से गुलाल हो गया।

और भाभी के साथ मेरी हिम्मत दूनी हो गयी।

अजय की आँखों में आँखे गाडती मैंने चिढ़ाया ,

" भाभी , आपके भैय्या में हिम्मत ही नहीं है , मैं सामने ही खड़ी हूँ और पूछ लीजिये जो मैंने मना किया हो। "

" अजय सुन अब तो ये चैलेन्ज दे रही है , अभी यहीं मेरे सामने , दुद्धू तो पियो ही , इसकी पोखरिया में डुबकी भी मार लो।
मुझसे शरमाने घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है , मेरी ओर से पूरा ग्रीन सिग्नल है।
"


भाभी ने उसे ललकारा।

जहाँ अजय के दांत कस के लगे थे मेरी चूंची में ,जोर की टीस उठी।
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बिचारा अजय , एकदम गौने की दुलहन हो रहा था ,जिसका मन भी करे और शर्माए भी। आँखे नीचे ,पलकें झुकी।


आज भाभी भी खुद बहुत मूड में लग रही थी। जिस तरह से उनकी उँगलियाँ मेरे उभारों पे डोल पे रही थीं और उसे पकड़ के वो खुल के अजय को दिखा रही थी, उससे साफ झलक रहा रहा था।

अजय के मुंह से बोल नहीं फूटे लेकिन मैं कौन चुप रहने वाले थी।

अजय को उकसाने चिढ़ाने में मुझे बहुत मजा आ रहा था। आँख नचा के , भाभी से मैं बोली,

" अरे भाभी आपके बिचारे भाई में हिम्मत ही नहीं है , बस पोखर के किनारे ललचाता रहता है , वरना डुबकी लगाने वाले पूछते हैं क्या , सामने लबालब तालाब हो तो बस, सीधे एक डुबकी में अंदर। "

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मैं जान रही थी की आज रात मेरी बुर की बुरी हालत होने वाली है , मेरी हर बात का ये जालिम सूद सहित बदला लेगा। लेगा तो लेगा लेकिन अभी अपनी दी और मेरी भाभी के सामने उसके बोल नहीं फूटने वाले थे , ये मुझे मालूम था।

भाभी ने उसे और उकसाया , "


अरे यार अब तो इज्जत की बात है , मेरा लिहाज मत कर , ये तो मेरे साथ आई ही इसलिए है की गाँव का , गन्ने और अरहर के खेत का मजा लूटे , बहुत चींटे काट रहे हैं न इसके , तेरी हिम्मत के बारे में बोल रही है तो बस अभी , यही , मेरे सामने , …जरा मेरे ननदिया को भी मालूम हो जाय ,....


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अजय के सामने सिर्फ एक रास्ता था , स्ट्रेटेजिक रिट्रीट और उसने वही किया ,

खुले दरवाजे के बाहर झाँका और बोला ,

" दी ,काले बादल घिर रहे हैं लगता है तेज तूफान और बारिश आएगी , चलता हूँ। "



और बाहर की ओर मुड़ गया।
 

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काहें बंसुरिया बजावैले



" दी ,काले बादल घिर रहे हैं लगता है तेज तूफान और बारिश आएगी , चलता हूँ। "



और बाहर की ओर मुड़ गया।



अजय की बात एकदम सही लग रही थी , मैं और भाभी भी पूरब की ओर आसमान पे देख रहे थे। एक छोटा सा मुट्ठी भर का काला बादल का टुकड़ा ,…



लेकिन अब दो चार दिन तक गाँव में रहकर भी आसमान और हवा से मौसम का अंदाजा लगाना सीख गयी थी। तेज बारिश के आसार लग रहे थे।



" गुड्डी ,चल जल्दी छत पर से कपडे हटाने होंगे और बड़ी भी सूखने को रखी थी." भाभी बोलीं , और जल्दी से घर के अंदर की ओर मुड़ीं।



' बस भाभी , बाहर का दरवाजा बंद करके अभी ऊपर आती हूँ। ' मैं बोली , और अजय को छोड़ने बाहर चली गयी।



थोड़ा बतरस का लालच , एक बार और नैन मटक्का और सबसे बढ़के रात का प्रोग्राम पक्का जो करना था।



बाहर निकलते ही मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और खुद बोली,



पक्का , साढ़े ८ बजे न मैं इन्तजार करुँगी , और जोर से मुस्कराई।

अजय रुक गया , मैंने फिर ,



कुण्डी मत खड़काना राजा,

सीधे अंदर आना राजा।




जवाब उस चोर ने दिया , मेरे प्यासे होंठों से एक किस्सी चुराके।



जल्दी से हाथ छुड़ाके , मैं अंदर आई और दरवाजा बंद कर दिया।




मन चैन तो सब बाहर छोड़ आई थी।





काहें बंसुरिया बजावैले , हो सुधि बिसरैले ,गइल चित चैन हमार ,

कंटवा कंकरिया कुछ नाही देखलिन हो कुछ नाहीं देखलिन,

काहें के मतिया फिरोलें ,

गाँव गिराव में मारेलें बोलियाँ , संग की सहेलियां करेल ठिठोलियाँ , करेल ठिठोलियां

काहें के नाम धरौले ,दगवा लगवले , गईल सुख चैन हमार ,
काहें बंसुरिया बजावैले , हो सुधि बिसरैले ,गइल चित चैन हमार
,



मैं अपना के फेवरिट गाना गुनगुनाते धड़धडाते सीढ़ी पे चढ़ रही थी।



ये तो बिना बांसुरी बजाये ही मुझसे मुझीको चुरा ले गया।



लेकिन कुछ चोर बहुत प्यारे लगते हैं , किता ख्याल करता है मेरा , जिंदगी के सबसे बड़े सुख से , और कैसे प्यार से ,

और मैं भी न , उस दिन उसको प्रामिस किया था जब चाहो तब लेकिन करीब करीब दो दिन हो गया उसे भूखे प्यासे,





और तबतक मैं छत पे पहुँच गयी।
 

komaalrani

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super hot exotica dear...


thanks so much
 

komaalrani

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पंद्रहवीं फुहार



शाम लगभग ढल रही थी।

सूरज भाभी की लाल टिकुली की तरह पश्चिम में दिख रहा था , वो बँसवाड़ी के पीछे , जहां हर शाम वो छुप जाता था।

हलकी हलकी सिन्दूरी सी आभा जैसे किसी ने नयकी भौजी को जबरन थोड़ा गुलाल पोत दिया हो , बस वैसे लग रहा था।

खरगोश से सफेद बादल आसमान के आँगन में इधर उधर खेल रहे थे।

एक ओर धानी चूनर से फैले , दूर दूर तक धान के खेत दिख रहे थे , और पीछे की ओर जिधर मेरा कमरा था , खूब घनी बँसवाड़ी , नीम और पाकुड के पेड़ , और आठ दस खूब गझिन आम के पुराने पेड़ और उसी के पीछे था अजय का घर , जिसकी हलकी सी झाईं सी दिखती थी।

और थोड़ी दी दूर पे खूब घने गन्ने के खेत , जिधर से काले बादल बढे आ रहे थे



और उन गन्ने के खेतों के पीछे दूर चांदी की हँसुली की तरह, गाँव घेरे पतली सी नदी भी दिखती थी।

चम्पा भाभी ने चाय के लिए आवाज दी और कपडे और बड़ी समेटे मैं और भाभी छत से नीचे उतर पड़े।


मैं और भाभी दोनों किचेन में पहुँच गए , जहाँ भाभी की मम्मी , चंपा भाभी कुछ हंस बतला रही थीं।



लेकिन आगे का हवाल बताने से पहले जरूरी है ,की भाभी के घर की जियोग्राफी जरा डिटेल में बता दी जाय।






भाभी का परिवार गाँव के सबसे पुराने और समृद्ध परिवारों में था , घर भी खूब पुराना और बड़ा।
चलिए आगे से शुरू करते हैं। घर दो भागों में बंटा था जिसे कोई मरदाना ,जनाना भी कह सकता है लेकिन वहां सब उसे पक्की कच्ची खंद के नाम से कहते थे।







अगला हिस्सा पक्का था। सामने खूब बड़ा सा खुला सहन था , वहां एक छप्पर के नीचे गाय और भैंस रहती थी। इस समय दो जर्सी गाय और एक मुर्रा भैसं थी। एक गाय और भैंस दूध देती थीं। एक जमाने में हीरा मोती बैलों की जोड़ी भी थी वो भी दो दो ,लेकिन अब एक ट्रैकटर है , जिसे गाहे बगाहे ,भाभी के भैया चलाते है ,वरना उनके पुराने हरवाहे श्यामू का लड़का , चंदू चलाता है।





इसके अलावा दो पक्के कुंवे हैं , जिनमे डोल पड़ी रहती है। घर के लिए पहले कहारिने पानी भर के लाती थीं और मर्द कुँए पे ही नहाते थे। लेकिन ट्यूबवेल लगने के बाद नल अब सीधा घर में हैं लेकिन तब भी अगर कहीं बिजली रानी दो तीन दिन तक लगातार गायब हो गयीं ,या भाभी को मन किया कुंए के पानी से नहाने का तो कहारिन भर के ले आती थी।

एक बूढ़ा , बड़ा पीपल का पेड़ था ,जो हर आने वाले की झुक कर अगवानी करता था। भाभी की मम्मी कहती थीं की जब उनकी सास गौने में आई थीं तो उनकी पालकी उसी पेड़ के नीचे उतरी थी। और बसंती नाउन की दादी ने उनका परछन किया था।



बगल में एक बैल चक्की भी थी , दो बड़े पत्थर के चक्के एक दूसरे के ऊपर , लेकिन वो ज़माने से नहीं चली थी।



हाँ उस के बगल में कोल्हू था , जो अभी भी जाड़े में कुछ दिन चलता था। भाभी के यहाँ ७-८ एकड़ गन्ने का खेत था , और पास की एक चीनी मिल वाले एडवांस में खेत बुक कर लेते थे, लेकिन भाभी की माँ को शौक था ,ताजे और घर में बने गुड का और जैसे ही कटना शुरू होता था , कई कई रात कोल्हू चलता था।




सरसों के तेल की भी यही हालत थी। उनके अपने खेत के सरसों को एक तेली कोल्हू पेरता था।
सामने के हिस्से में एक खूब चौड़ा बरामदा था और उस में ज्यादातर चारपाइयां पड़ी रहती थीं और आने जाने वाले उसी पर बैठते थे। उसी के साथ लगी बैठक थी जिसमें कुर्सियां , एक पुरानी पलंग ,मोढ़े पड़े थे लेकिन उसका इस्तेमाल कोई फंक्शन हो ,कुछ सरकारी लोग आएं या ख़ास मेहमान तभी उसका इस्तेमाल होता था।



अंदर की ओर फिर एक पक्का बरामदा था , और उसी के साथ जुड़े दो तीन पक्के कमरे , एक में भाभी की माँ रहती थीं और बगल के कमरे में भाभी के भैया और चंपा भाभी।





फिर बड़ा सा पक्का आँगन , घर की शादियां वही होती थी , इसलिए मंडप के लिए बांस लगाने के लिए उसमे जगह बनी थी। यहीं से सीढ़ी थी ऊपर जाने के लिए और इसी आँगन में बाथरूम ऐसा भी था जहाँ कहारिन पानी भर के बाल्टी रख देती थी।



किचेन दोनों हिस्से के संधिस्थल पर था।


लेकिन असली जगह जहाँ दिन भर की सब हलचल होती थी , वो कच्ची खंद ही थी जहाँ हम लड़कियों ,महिलाओं का पूरा राज्य था। ये आँगन उतना बड़ा नहीं था पर छोटा भी नहीं था।



दो तिहाई से ज्यादा कच्चा ,लेकिन सुबह सुबह रोज गोबर से पोता जाता। इस आँगन में एक नीम का पेड़ था। और दो ओर बरामदे , वो कच्चे। इस खंद में भी तीन चार कमरे थे , दीवारे सबकी पक्की थीं लेकिन फर्श कच्ची और छत खपड़ैल की थी।

इस में कच्चे बरामदे से एक छोटा सा दरवाजा था , जो पीछे की ओर था और सारी लड़कियां , औरते इसी दरवाजे से आती थीं। गाँव में सारे घरों में ये पिछला दरवाजा होता था , और औरतों के लिए ही बना होता था। इसके अलावा , चुड़िहारिन ,नाउन ,कहारिने सब इसी दरवाजे से आती थी।

और इन्ही कमरों में से एक में भाभी रहती थीं , और एक भाभी के कमरे से सटे कमरे में मैंने अड्डा जमाया था। और उसमें भी एक छोटी खिड़की नुमा दरवाजा था जिससे जब चाहे तब चंदा और मेरी बाकी सब नयी सहेलियां , कजरी , पूरबी , गीता आ धमकती थीं।


हम लोगों के आने पर जो सोहर और गाने हुए थे वो इसी इलाके में बरामदे में हुए थे।

एक फायदा ये भी था की इस इलाके में मर्दों का प्रवेश लगभग वर्जित था , उसी तरह औरते ,लड़कियां आगे वाले दरवाजे से नहीं आती थीं। हाँ उन लड़कों की बात और थी जो रिश्ते में भाभी के भाई लगते थे , लेकिन वो भी अकेले कम ही इस इलाके में आते थे , जैसे अजय आया तो भाभी को छोड़ने।

……
 

komaalrani

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...तेरा गाँव बड़ा प्यारा



भाभी का घर



तो इस के बात चलिए वापस चलते हैं किचेन में जहाँ चंपा भाभी गरम गरम चाय के साथ गरम गरम बातें परोस रही थीं।





आज चंपा भाभी और मेरी भाभी में खुल के छेड़छाड़ चल रही थी,और इस बात का कोई फरक नहीं पड़ रहा था की भाभी की माँ भी वहीँ बैठी थीं।



बल्कि वो खुद भी इस मजाक में खुल के रस ले रही थीं और बजाय अपनी बेटी का साथ देने के चम्पा भाभी को और उकसा, चढ़ा रही थीं।


चंपा भाभी ,मेरी भाभी के ग्लास मेंचाय ढाल रही थीं , भाभी ने कुछ ना नुकुर किया तो चंपा भाभी ने ग्लास पूरी भरते हुए बोला ,
" अरी बिन्नो , अब तक तो तुझे ये अंदाज लग जाना चाहिए था की ये डालने वाला तय करता है की आधा डाले की पूरा , और ससुराल से सैयां के साथ देवर ननदोई संग इतनी कब्बडी खेल के आई होगी , तो फिर आधे में क्या मजा आएगा। "



और उसमें टुकड़ा लगाया , भाभी की माँ ने , बोलीं , " अरे आधे में तो न डालने वाले को मजा न डलवाने वाले को ,सही तो कह रही है चंपा। "

भाभी कुछ झिझकी , मेरी ओर देखा फिर चंपा भाभी से बोलीं , " अरे चलिए भाभी थोड़ी देर की बात है , रात में देखती हूँ आप की पहलवानी , कौन आधा डालता है कौन पूरा ,पता चल जायेगा। "

मैं मुस्कराहट रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन तभी मेरा नाम आ गया और मेरा कान खड़ा होगया।

"माँ , आज भैया नहीं है , भाभी को डर लगेगा , तो मैं आज उनके साथ सोऊंगीं , और मुन्ना को आप सम्हाल लीजियेगा रात में , वैसे भी अब वो आपसे इतना हिलगया है। "

लेकिन फिर उन्होंने मेरी ओर देखा और कुछ सोच के मुझसे बोलीं ,

" लेकिन , फिर तुझे उस कच्ची खंद में अकेले सोना पडेगा , कही डर तो नहीं लगेगा मेरी ननद रानी को "

और मैं सचमुच डर गयी , वो भी बहुत जोर से।

कहीं अगर मेरे सोने की जगह बदली तो बिचारे अजय का क्या होगा ? कल वैसे ही रतजगे के चक्कर में उसका उपवास हो गया था। और अब मेरी बुलबुल को भी चारा घोंटे २४ घंटे से ऊपर होगया था , उस को भी जोर जोर से चींटे काट रहे थे।

ऊपर से मैंने उसे बोल भी दिया था ,कुण्डी मत खड़काना राजा ,सीधे अंदर आना राजा।

लेकिन मुझे भाभी की माँ ने बचाया , मेरी पीठ सहलाते वो मेरी आँख में आँख डाल के खूब रस ले ले के बोल रही थी, भाभी से बोलीं

" अरे ये मेरी बेटी है ,किससे डरेगी। तुम क्या सोचती हो तेरे भाइयों से डरेगी , अरे उन्हें तो एक बार में गप्प कर जाएगी ये। गपागप गपागप घोंट लेगी। नहीं डरेगी न। "

मैंने तुरंत जोर से हामी में सर हिलाया, मैं किसी भी हालत में अपनी कुठरिया में ही सोना चाहती थी , वरना मेरा जबरदस्त घाटा हो जाता।



लेकिन चम्पा भाभी कहाँ छोड़ने वाली थीं , उन्होंने खोल के पूछा,

" तो बोल न साफ़ साफ़ नहीं डरेगी। "

"नहीं एकदम नहीं।"

मैंने पूरे कांफिडेंस में बोला और एक्स्ट्रा कन्फर्मेशन के लिए सर भी हिलाया खूब जोर जोर से।

और मेरी भाभी , चम्पा भाभी दोनों खूब जोर से हंसी। उनकी माँ भी मीठा मीठा मुस्करा रही थीं।

मेरी भाभी ने जोर से सबके सामने मेरी टॉप फाड़ती चूंचियों को जोर जोर से टीपते बोला , "

मेरी बिन्नो , किस चीज ने नहीं डरेगी , मेरे भाइयों का गपागप , सटासट घोंटने से , अरे अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों फाड़ के रख देंगे , मेरे भाई। "

फिर भाभी की माँ मेरे बचाव में आयीं ,

" अरे सबका फटता है ,तो ये भी फटवा लेगी। कौन सी नयी बात है, फिर कल तो इसने सबको अपनी चुनमुनिया खोल के दिखाई न ,कितनी प्यारी एकदम गुलाबी ,कसी, मक्खन जैसी , फटने को तैयार। और अगर सावन में , अपने भैया के ससुराल में नहीं फटा तो फिर… , ठीक है ये वहीँ सोयेगी जहाँ रोज सोती है।"

मैंने तो चैन की सांस ली ही , भाभी और चंपा भाभी ने भी चैन की सांस ली।

अरेंजमेंट तय हो गया था , भाभी, चंपा भाभी के कमरे में। मुन्ना , भाभी की माँ के साथ और मैं वहीँ जहाँ रोज सोती थी।

तब तक भाभी की माँ ने बाहर देखा तो जैसे घबड़ा गयीं , रात हो गयी थी लेकिन आकाश में न चंदा न तारे , खूब घने बादल।
 

brego4

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Ajay ne nhi bahut maze loote hain, one of the best desi erotica :smile:
 
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komaalrani

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भाभी









तब तक भाभी की माँ ने बाहर देखा तो जैसे घबड़ा गयीं , रात हो गयी थी लेकिन आकाश में न चंदा न तारे , खूब घने बादल।

" बहुत जोर की बारिश होने वाली है , तूफान भी आएगा , हवा एकदम नहीं चल रही है , चलो जल्दी जल्दी तुम तीनो छिनारो मिल के खाना आधे घंटे के अंदर बना लो। आठ बजे के पहले सब काम खत्म हो जाय।

मैं ज़रा बाहर शामू और चंदू को बोल के आती हूँ , गाय भैस ठीक से अंदर कर के बंद कर दे। "

और वो बाहर निकल गयीं और हम तीनो भूत की तरह ,....

१५ मिनट में वो आयीं तब तक चंपा भाभी ने दाल चढ़ा दिया था मैं सब्जी काट रही थी और भाभी आटा गूंथ रही थीं।





जल्दी आज हम तीनो को थी.





और भाभी की माँ ने आते ही एक सेंसिटिव मामला छेड़ दिया ,



वही जिसको लेके कल रतजगा में ,चंपा भाभी और फिर चमेली भाभी ( चंदा की सगी भाभी ) ने मेरी वो जबरदस्त रगड़ाई की थी ,





रॉकी का।

……………..



भाभी के मायके का जबरदस्त बिदेसी ब्रीड का डॉग ,जिसका नाम जोड़े बिना चंपा भाभी की कोई गारी पूरी नहीं होती थी।



रोज वो कच्चे आँगन में नीम के पेड़ से बांध दिया जाता था , रात में। लेकिन आज जो तेज बारिश होनी थी तो , …



चंपा भाभी से उन्होंने कहा ,



' अरे ई रॉकी को खिला विला के उसकी कुठरिया में बंद करदेना , बहुत तेज बारिस आने वाली है घंटे दो घंटे में। तूफान भी लगता है जबरदस्त आएगा। "



चंपा भाभी ऐसा मौका क्यों भला छोड़तीं , बस उन्होंने मेरे ओर अपनी तोप मोड़ दी।







मेरी ओर इशारा कर के बोलीं ,



" अरे ई जो पूरे गाँव की नयकी भौजी हैं न , अब रॉकी की पूरी जिम्मेदारी एनके उपर।



मजा लेंगी ए , कल रतजगा में सबके सामने तय हुआ था न की एहि अंगना में ई निहुरिहये और रॉकी एनके ऊपर चढ़ के , गाँठ बाँध के पूरे घर गाँव में घिर्रा घिर्रा के , और इहो मना नहीं की खिस्स खिस्स मुस्कात रहीं , तो अब रॉकी इनके जिम्मे "



" अरे भौजी , उ सब मजाक था , उ बात का क्या " खिस्स खिस्स हंस के मैंने बचने की कोशिश की।



लेकिन अब मेरी भाभी भी , वो भी अपनी भाभी की जुगलबंदी में ,



" कुछ मजाक नहीं था सब एकदम सच था , कातिक में मैं लाऊंगी तुमको , फिर ,.... कुछ दिन की बात है। एक भी बात गलत नहीं थी जो कल रात चंपा भाभी कह रही थी और फिर चंपा भाभी का कहा वैसे भी कोई टाल नहीं सकता , इसलिए अब तुम चाहे हाँ कहो या ना , अरे ले लो एक बार ,ऐसा क्या, …"





मेरी भाभी भी कम नहीं थी।



लेकिन जब भाभी की माँ बोली तो मुझे लगा शायद वो मेरी बचत में आएँगी पर वो भी ,… मुझसे बोली,



" तोहार भाभी जउन कह रही हैं सब सच है सिवाय एक बात के , :" और ये कह के वो चुप हो गयीं।





हम तीनो इन्तजार करते रहे , और कुछ रुक के उन्होंने रहस्य पर से पर्दा हटाया।





" कातिक वाली बात , अरे ई कुतिया गर्माती है कातिक में ,लेकिन तोहार एस जवान लड़की तो हरदमै गरम ,पनियाइल रहती हैं। और रॉकी भी बारहों महीने तैयार रहता है तो कौनो जरूरी नाही की कातिक का इन्तजार करो , जब भी तोहार मन करे या तोहार भौजाई लोग जेह दिन चहिये ओहि दिन , "



और दोनों भाभियों के कहकहे में बाकी बात डूब गयी।

मेरी भाभी भी अब एकदम खुल के , अब वो भी मेरे पीछे पड़ गयीं , मुस्कराती चिढ़ाती बोलीं।






" अरे मेरी ननदो , माँ ने तो तेरी परेशानी दूर कर दी। " फिर चंपा भाभी और अपनी माँ से बोली ,

" ये तो बहुत उदास हो गयी थी , कह रही थी , भाभी , कातिक तो अभी बहुत दूर है ,आने को तो मैं आ जाउंगी लेकिन , इतना लम्बा इन्तजार , मैंने बहुत समझाया , अरे तब तक गाँव में इतने लड़के हैं , अजय , सुनील ,रवी दिनेश , और भी तब तक उनके साथ काम चलाओ , दो तीन महीने की बात है लेकिन , माँ आप ने तो इसके मन की बात समझ ली , और परेशानी दूर कर दी। "

मैं उनकी बात का कुछ खंडन जारी करती की उसके पहले उनकी माँ बोल पड़ी , और आज वो सच में चम्पा भाभी और मेरी भाभी दोनों से कई हाथ आगे थी ,मेरी पीठ प्यार से सहलाते ( और जहाँ उंकुडु बैठने से मेरा छोटा सा टॉप उठ गया था और टॉप ,स्कर्ट के बीच मेरी गोरी पीठ एकदम खुल गयी थी खास तौर से वहां और उसमे जरा भी वात्सल्य रस नहीं था। ),

" तुम दोनों न , मेरी बेटी को समझती क्या हो , बहुत अच्छी है ये सबका मन रखेगी। गाँव के लड़को से तो चुदवायेगी ही , गाँव के मर्दों से भी. आखिर चम्पा के खाली देवर थोड़ी जेठ लोगों का भी तो मन करता है शहरी माल का मजा लेने का. हैं न बेटी ,

और रॉकी तो इसी घर का मर्द है ,तुम लोग जबरदस्ती बिचारी को चिढ़ाती हो , खुद ही उसका बहुत मन करता है रॉकी के साथ और रॉकी भी कितना चूम चाट रहा था था , जाने के पहले , बेटी चुदवा के जाना। माना गाँठ बनेगी तो बहुत दर्द होगा लेकिन उसी दर्द में तो मजा है , चंपा जाओ बिटिया के साथ एक दो दिन परका दो , उसके बाद रॉकी की जिम्मेदारी तो ये खुद ही ले लेगी ,क्यों बेटी है न ," ( और अबतक उनकी ऊँगली मेरे टॉप के अंदर घुस गयी थीं और पीठ सहला रहा थी ).

चम्पा भाभी उठी और साथ में मुझे भी उठा लिया , रॉकी को खिलाने और बाहर बांधने के लिए।



लेकिन मन तो मेरा उस चित चोर के पास था , जो मुझसे मुझी को चुरा के ले गया।





लेकिन कोई थाना -रपट ,दरोगा कोतवाली नहीं हो सकती , वो सिर्फ चोर थोड़े ही था , सीना जोर भी था. उलटे वही मेरा नाम धर देता और उसकी गवाही में गाँव के पांच दस लड़के अलग खड़े हो जाते।

ये बात नहीं थी की जो मेरी भाभी , चंपा भाभी और सबसे बढ़कर आज तो , भाभी की माँ जिस तरह मेरे पीछे , … (कल रात में रतजगा में जो खेल खुल्लमखुल्ला हुआ सब उस उस असर था ), जिस तरह से चिढ़ा रही थीं , मजाक कर रही थीं मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैं खूब मजे ले रही थी , अपने शहर में तो इस तरह की बातें मैं सोच नहीं सकती थी।

अब तो मैं भी , चंपा भाभी से मेरी पक्की दोस्ती हो गयी थी। फिर मेरी भाभी उनकी छोटी ननद लगती थीं , और मेरी भाभी ,इसलिए हम लोग मिल के उनकी ऐसी की तैसी कर देते थे।

साढ़े आठ बजे बोल के गया था वो। चलो एक खटका तो टला कच्ची खंद में तो अकेले रहूंगी , और बीच में दो दो आँगन का फासला। कर ले अपनी मनमर्जी आज उसे भी नहीं रोकूंगी। लेकिन ये मुआ टाइम भी अभी साढ़े सात भी ठीक से नहीं बजे। पूरे एक घंटे बचे हैं उसके आने में।



मुझे मालूम था की आज मेरी बुर की बुरी हालत होनी है ,

चूत की चटनी बन जायेगी ,





लेकिन होनी है तो हो ,





तबतक चम्पा भाभी ने आवाज दी ,

वो आगे आगे मैं पीछे पीछे।
 
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