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Erotica सोलवां सावन

chodumahan

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मैंने तो सोचा कि रॉकी का प्रसंग ख़त्म हों गया...
और घिर्रा-घिर्रा के लेने सपना अधूरा रह गया...
लेकिन आप कोमल नहीं कमाल हों भौजी...
और हमारी सोच से भी परे...
अगले अपडेट की प्रतीक्षा में..:party: तो होनी चाहिए
 
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komaalrani

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मैंने तो सोचा कि रॉकी का प्रसंग ख़त्म हों गया...
और घिर्रा-घिर्रा के लेने सपना अधूरा रह गया...
लेकिन आप कोमल नहीं कमाल हों भौजी...
और हमारी सोच से भी परे...
अगले अपडेट की प्रतीक्षा में..:party: तो होनी चाहिए


Thanks so much
 

komaalrani

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रवीन्द्र


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कुछ देर तक हम ऐसे ही पड़े रहे फिर उठ के बैठे , मैंने अपनी स्कर्ट ठीक की और भाभी ने साडी।


थोड़ी देर तक हम चुपचाप बैठे रहे फिर चम्पा भाभी ने मेरे टाप को थोड़ा ऊपर उठाकर मेरे एक उभार को खोल दिया और उसे सहलाने लगीं। उनसे बोले बिना नहीं रहा गया- “अरे गुड्डी तेरी चूंचियां तो बड़ी रसीली हैं…”

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मैंने मुश्कुरा कर कहा- “भाभी आपको पसंद हैं…”


उन्होंने अब टाप पूरा उठाकर दोनों जोबन आजाद कर दिये थे-

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“एकदम…”

और इसे बताने के लिये उन्होंने दोनों को खूब प्यार से पकड़ लिया। उसे सहलाते हुये बोलीं-


“यार तू मुझे बहुत अच्छी लगती है। तुझे एक ट्रिक बताती हूँ कोई भी लड़का तेरा गुलाम हो जायेगा, चाहे जितना भी शर्मीला क्यों ना हो…

रवीन्द्र क्या बहुत शर्मीला और सीधा है…”


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“हां भाभी, एकदम शर्मीला लड़कियों से भी ज्यादा, जरा भी लिफ्ट नहीं देता…”
मैंने अपनी परेशानी साफ-साफ बतायी।
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“तो सुन… उसके लिये तो एकदम सही है… तू कोई भी खाने वाली चीज ले-ले, आम की फांक, गाजर, जो भी उसे पसंद हो और उसे अपनी चूत में रख ले,

और हां कम से कम 6-7 इंच लंबी तो होनी ही चाहिये, उसे कम से कम एक घंटे तक चूत में रखे रह, और उसके बाद चूत से निकालने के तीन चार घंटे के अंदर,
उसे रवीन्द्र को खिला दे, तेरे आगे पीछे जैसे राकी फिरता है ना, दुम हिलाता ना फिरे तो मेरा नाम बदल देना…”



मेरे कड़े किशोर चूचुक मसलते भाभी ने मुश्कुराकर हल बताया।

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“पर भाभी उसकी तो दुम है ही नहीं…” आँख नचाकर, हँसते हुए मैंने पूछा।

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“अरे आगे वाली दुम तो है ना…” भाभी भी मेरी हंसी में शामिल हो गयीं थी।


बाहर बसंती और भाभी की आवाज सुनाई पड़ रही थी।
 

komaalrani

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बाईसवीं फुहार


गुड्डी : रात अकेली है


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अजय और सुनील, चन्दा के यहां जो मेहमान आये थे, उनको छोड़ने शहर गये थे, और भाभी की माँ भी उनके साथ शहर गयी थीं ,(फिर शहर था भी कितना दूर , मुश्किल से घंटे डेढ़ का रास्ता) ,इसलिये रात में… वैसे भी आज मैं बुरी तरह थकी थी। और फिर सुबह ही दोनों को लौट आना था , सात आठ बजे तक और भाभी की माँ भी साथ में लौट आतीं।


इसलिए आज सोने का इंतजाम चेंज हो गया। मैं जहाँ भाभी की माँ सोती थीं ,चम्पा भाभी के बगल वाले कमरे में , वहां शिफ्ट कर दी गयी।

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आज नींद भी जबरदस्त आ रही थी , कितने दिन हो गए थे रात में ठीक से सोये हुए। और फिर जगने का कोई फायदा भी नहीं था , जगाने वाले तो खुद शहर गए थे।


जब मैं सोने गयी तो भाभी ने मुन्ने को मेरे पास लिटा दिया और बोलीं-


“आज मुन्ना, अपनी बुआ के पास सोयेगा…”





“और मुन्ने की अम्मा, क्या मुन्ने के मामा के पास सोयेंगी…”

हँसकर मैंने पूछा।

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मुश्कुराकर भाभी बोलीं- “नहीं मुन्ने की मामी के पास…”


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चम्पा भाभी के पति कुछ दिन के लिये शहर गये थे, इसलिये वो अकेली थीं।

चम्पा भाभी का कमरा मेरे कमरे के बगल में ही था। थोड़ी ही देर में, कपड़ों की सरसराहट के बीच भाभी की फुसफुसाहट सुनायी दी-

“थोड़ी देर रुक जाओ भाभी, गुड्डी जाग रही होगी…”


“अरे तो क्या हुआ वह भी यह खेल अच्छी तरह से सीख जायेगी…”

चम्पा भाभी बेसबर हो रहीं थी।


“ठीक कहती हो भाभी आप ऐसा गुरू कहां मिलेगा, इस खेल का… अच्छी तरह सिखा दीजियेगा, मेरी ननद को…”

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मुझे कसकर नींद आ रही थी पर नींद के बीच-बीच में, चूड़ियों और पायल की आवाज, सिसकियां, चीख,

मुझे सब कुछ साफ-साफ बता दे रही थी कि दोनों भाभी के बीच रात भर क्या खेल हो रहा है।

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और आज दिन भर और कल रात में जो चक्की चली थी ,वो सब सीन आँख के सामने गुजर रहे थे।

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गाँव में जो मज़ा मुझे गाँव के लौंडों के साथ आ रहा था उससे कम भौजाइयों , भाभी की गाँव के रिश्ते से बहनों के साथ नहीं आ रहा था ,

पहली रात को चंदा और उसके पहले झुल्लेपे कामिनी भाभी ने कितना कस के मीजा था और बसंती ने खुल के ऊँगली की , फिर रतजगे में तो ,...

पूरबी , सुनील की छोटी बहन नीरा और चंपा भाभी ,... एकदम खुल्लम खुल्ला और सबसे ज्यादा काम करने वालियां

चूसना चुसवाना , चाटना , चटवाना

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आज मेरी पांचवी रात थी भाभी के गाँव में और पहली बार मैं अकेली थी,

कल इस समय तो अजय अब तक , मैं सोच भी नहीं सकती थी की ,.... एक रात में चार बार।


इस समय कल अजय मेरे ऊपर चढ़ा हुआ था और हचक के धक्के मार रहा था

और मैं भी खुल के उस के साथ चूतड़ उठा उठा के मजे ले रही थी।

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मुझे पकड़ के ले गया वो खुले मैदान में बँसवाड़ी के बगल में , खेत में अभी ख़तम हुयी बरसात का पानी , और वहीँ निहुरा के ,...

यहां आने के पहले कोई मजाक में भी कहता तो मैं बुरा मुंह बना लेती , मैं सपने में भी सोच नहीं सकती थी की ,

पांच दिन में मैं , अजय ,सुनील,रवी ,दिनेश सब से , और कल तो रात भर अजय के साथ।




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फिर मुझे कुछ याद आया और मैं मुस्करा उठी , कल जो मैंने अजय को चैलेन्ज दिया था जाने के पहले
उसका नंबर डका के जाउंगी।

वो दुष्ट कह रहा था की उसने १८ लड़कियों के साथ ,चंदा , पूरबी , और कितनी काम वालियों , भाभियों के साथ ,

तो मैंने बोल दिया था चल यार मैं भी कम से कम २० के साथ , और उसने बजाय बुरा मानने के और चढ़ाया मुझे , ...



लेकिन कुछ और याद गया मुझे और मेरा दिल धक् से रह गया।



अब चार ही दिन तो बचे थे और।

दसवे दिन हम लोगों को लौट जाना था ,मेरा स्कूल खुल रहा था।

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पहले तो मैं सिर्फ दो तीन दिन के लिए ही आने को मान रही थी लेकिन भाभी ने बहुत कहा ,बहुत दिनों बाद वो अपने मायके आ रही थीं और मुन्ने के होने के बाद पहली बार इसलिए , बहुत ना नुकुर कर के मैं मानी थी ,

लेकिन अब वो दस दिन भी कम लग रहे थे।


इतना मन लग रहा था , चंदा और उसकी सहेलियां , गाँव का खुलापन न कोई टोका टोकी ,न कोई मना करने वाला ,न पूछने वाला।


और चार दिन बाद जब घर लौट आउंगी तो वहां तो बस , सुबह स्कूल जाओ ,शाम को कभी कोचिंग कभी कुछ ,


और घर आओ तो फिर पढ़ाई और किचेन का काम।

न कोई छेड़ने वाला , न मस्ती की बाते करने वाला।



लड़कों का तो सवाल ही नहीं था , गली के बाहर कुछ जरूर रहते थे , लेकिन सीटी बजाने ,

कमेंट पास करने से ज्यादा कुछ नहीं , और डर भी रहता था , कुछ भी बोल दो तो तुरंत घर बात पहुँच जाती थी।

सहेलियों के साथ पिक्चर भी जाओ तो बता के , किस हाल में ,कौन पिक्चर ,टाइम पे लौट आना।



मन कर रहा था कुछ जादू हो जाय और वो चार दिन कम से कम एक हफ्ते में तो बदल जायँ ,

तब तक बगल के कमरे से एक चीख गूंजी , भाभी की थी।



और मैं कान पार के सुनने लगी ,



चीख भाभी की थी , और फिर उनकी आवाज

" नहीं भाभी नहीं तीन उंगली नहीं , लगता है "

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" अरे बिन्नो , जउन बुरिया से एतना बड़ा मुन्ना निकाल दिया ,और हम तो पूरी मुट्ठी पेलने वाले थे ,

लेकिन कामिनी भाभी ने बोला था की हम दोनों मिल के तुम्हे मुट्ठी का मजा देंगे इसी लिए आज तीन ऊँगली पे बख्स दे रही हूँ। लेकिन अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर मुट्ठी जायेगी , अरे कल की , कच्ची उमर वाली देखना कुछ दिन में तीन ऊँगली ,... आखिर रॉकी का ,... "



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चंपा भाभी की आवाज रात के सन्नाटे में साफ़ साफ़ आ रही थी।



फिर मेरी भाभी ने कुछ हलके से मेरा नाम लिया और चम्पा भाभी की जोर से खिलखिलाने की आवाज आई ,



"तो तुम क्या सोच रही छोड़ दूंगी उसको , अरे सीधे से नहीं मानेगी तो हाथ पैर बाँध के ,

बसंती तो कब से पीछे पड़ी थी मैंने ही समझाया। "



और अब मेरी भाभी की खुल के हंसने की आवाज आ रही थी , बोलीं , एक दम सही भाभी , लेकिन अब बसंती को मत रोकिएगा , ...

मैं ध्यान से सुनने की कोशिश कर रही थी लेकिन अब उन दोनों की आवाजें धीमी हो गयी थी।


बहुत ध्यान से सुनने पर भी , मुझे दो तीन बार अपना नाम सुनाई पड़ा और ,...


खारा शरबत ,...



मुझे कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा था , नींद भी बहुत जोर से आ रही थी और कुछ ही देर में नींद ने आ घेरा।


सुबह बसंती ने ही आके जगाया ,और वो भी अपने तरीके से ,



सीधे स्कर्ट में हाथ डाल के मेरी चुनमुनिया को दबोच के बोली ,



" अरे रात भर केकरे साथ कुश्ती लड़ी हो जो इतनी देर तक सो रही हो मेरी बिन्नो। "

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मैंने जब निगाह खोली तो सच में धूप चढ़ आई थी।

मुश्किल से बसंती से छुड़ाते मैं बोली , बस अभी तैयार हो के आ रही हूँ।






लेकिन बंसती आज पीछे पड़ गयी थी ,


" अरे चलो आज हम ही तैयार करा देते हैं तुमको। :"

मुझे मालूम था की तैयार करने के नाम पे वो क्या क्या करती। चंपा भाभी से भी भी पांच हाथ आगे थी वो ,

" नहीं बस पांच मिनट। " और मुश्किल से वो गयी।
 
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chodumahan

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अरे ये क्या...रॉकी के साथ फिर से KLPD हो गया...

और पांचवीं रात को सावन के महीने में सूखा पड़ गया...
ये तो गलत है..
दिन-रात सुबह-शाम मूसल चलना चाहिए और सड़का तो चौबीसों घंटे टपकना चाहिए....
शायद रवीन्द्र की बारी आने वाली है इसलिए भूमिका पहले से तैयार हो रही है...
 

komaalrani

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अरे ये क्या...रॉकी के साथ फिर से KLPD हो गया...

और पांचवीं रात को सावन के महीने में सूखा पड़ गया...
ये तो गलत है..
दिन-रात सुबह-शाम मूसल चलना चाहिए और सड़का तो चौबीसों घंटे टपकना चाहिए....
शायद रवीन्द्र की बारी आने वाली है इसलिए भूमिका पहले से तैयार हो रही है...


एकदम चलेगा , ताल पोखरी सब सावन में छलकेंगे , अभी तो फिल्म शुरू हुयी है , और रॉकी के प्रसंग और भी आएंगे ,...
 
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komaalrani

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बसंती




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थोड़ी देर बार जब मैं नाश्ते के लिये रसोई में पहुँची तो वहां बसंती, चम्पा भाभी और मेरी भाभी सभी थीं।



बसंती ने मुझे खूब मलाई पड़ा हुआ, दूध का बड़ा गिलास दिया। दूध, घी, मक्खन खा-खाकर मेरा वजन खास कर कुछ “खास जगहों” पर ज्यादा बढ़ गया था

और मेरे सारे कपड़े तंग हो गये थे।

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मैंने नखड़ा दिखाया- “नहीं भाभी, दूध पी-पीकर मैं एकदम पहलवान बन जाऊँगी…”



“तो ठीक तो है, वहां चलकर मेरे देवर से कुश्ती लड़ना…”

भाभी ने मुझे चिढ़ाया और मुझे पूरा ग्लास डकारना पड़ा।




तब तक बसंती खूब ढेर सारा मक्खन लगी हुई, रोटियां ले गयी और छेड़ते हुये बोली-


“अरे मक्खन खा लो खूब चिकनी भी हो जाओगी और नमकीन भी…”


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मेरे चिकने गाल सहलाते हुये भाभी ने फिर छेड़ा-


“अरे मेरा देवर खूब स्वाद ले-लेकर तुम्हारे इन चिकने गालों को चाटेगा…”


चम्पा भाभी क्यों चुप रहती-

“अरे सिर्फ गालों को ही क्यों, इसकी तो हर जगह मक्खन मलाई है, सब जगह रस ले-लेकर चाटेगा। और नमकीन तो ये इतनी हो जायेगी की पूरे शहर में इसी का जलवा होगा, लौंडिया नंबर वन…”



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तब तक दूध उबलने लगा था और भाभी उधर चली गयीं।


बसंती मुझे घूरते हुये बोली-


“अरे ननद रानी तुम्हें अगर सच में नमकीन बनना है ना तो सबसे सही है की तुम…

खारा नमकीन शरबत पी लो, इतना नमक हो जायेगा ना कि फिर…”


मैंने देखा कि चम्पा भाभी उसे आँखों सें चुप रहने का इशारा कर रही हैं।




पर मैं बोल पड़ी-

“बसंती भाभी, कहां मिलेगा वह शरबत…”

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बसंती ने मेरे मस्त गालों को सहलाते हुये कहा-

“अरे मैं पिलाऊँगी अपनी प्यारी ननद को, दोनों टाइम सुबह शाम। सबसे नमकीन माल हो जाओगी…”


मैंने देखा कि चम्पा भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थीं-

“पियोगी ना… और अगर तुमने एक बार हां कह दिया और फिर मना किया ना तो हाथ पैर बांध कर जबरन पिलाऊँगी…”


बिना समझे मैंने हामी भरते हुए धीरे से सर हिला दिया।


मैं भी अब मस्ती में आगयी थी , बड़ी अदा से , अपनी बड़ी बड़ी आँखे मटकाते मैं भाभियों को छेड़ते बोली ,

" ठीक है अगर मै मुकर जाऊं तो , "

बसंती ने चंपा भाभी से मुस्कराकर पूछा ," क्यों बता दूँ इसको क्या करुँगी मैं। "

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एकदम चंपा भाभी ने उसी तरह जवाब दिया।

एक हाथ से मेरे मुलायम मुलायम गालों पर ठीक मेरे गहरे डिम्पल को दबा के दूसरे हाथ को नाक पे रखा और अपना इरादा जाहिर किया ,

" एक हाथ से तेरी नाक दबाउंगी और दूसरे से ई कचौड़ी अस गाल , फच से मुंह खोल दोगी न , फिर तो सीधे कुप्पी से , घलघल घलघल, आपन सुनहरा शरबत , "




" थोड़ा तो बहुत स्वाद तो कल चखी लिया होगा कल शाम को तूने तो अब काहें बिदक रही है "


चंपा भाभी मुझसे बोलीं।



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और तब मुझे याद आया कल शाम , जब मैंने और चम्पा भाभी ने साथ साथ आँगन में ,नाली पर ,...

और उसके ठीक बाद चम्पा भाभी ने जबरन मेरे होंठ अपनी जाँघों के बच सीधे वहीँ, एक तेज भभक मेरी नाक में लेकिन , ...और मुझे चटवा के मानी , थोड़ा खारा कसैला , ,...


कहीं बसंती। ..मैं सोच रही थी , मुस्करा रही थी लेकिन रहा सहा शक , बसंती की बातों ने साफ़ कर दिया और उसका इरादा भी

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और बसंती ने अपनी बात पूरी की,


" अरे एकदम भिन्सारे निहारे मुंह ,आपन झाँटन क छन्ने से छान के , सुनहरा ,

और एक बूँद भी बर्बाद किया न तुमने के बाहर बताउंगी तुमको ."

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" अरे काहें बर्बाद करेगी ,एक दो बार पिला दो फिर तो खुदै , अरे दो चार दिन पी लेगी


तो जोबन एकदम गददर, लौंडों की मुट्ठी में नहीं आपायेगा , और उ मस्ती छायेगी न की

पूरे शहर के लौंडे , बस तोहरे दीवाने , बसंती अरे हमारी ननद हमारे देवरों को नहीं मना करती तो अपनी प्यारी प्यारी भौजी को काहें मना करेगी। "

चम्पा भाभी ने और घी डाला आग में.

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" अरे ई मना भी करेगी तो हम कौन माने वाले हैं , सीधे अपन जांघंन के बीच दबाय के अपनी कुप्पी से ऐनकर मुंह सटाय के , देखत जा , "

बंसती हंस के बोली।


और फिर जोड़ा , " इसके जोबन तो अबहियें अस गदराये हैं की कुल गाँव क लौंडन बउरा गए हैं। "




कहने की जरूरत नहीं है की यह कहते हुए बसंती के हाथ सीधे मेरे उभारों पे थे।

तब तक मेरी भाभी आ आयीं और पूछने लगीं- “ये आप दोनों लोग मिलकर मेरी ननद के साथ क्या कर रही हैं…”





“हम लोग इसे अपने शहर की सबसे नमकीन लौंडिया बनाने की बात कर रहे थे…” चम्पा भाभी हँसकर बोलीं।


“एकदम भाभी, मेरी ओर से पूरी छूट है, और अगर ये कुछ ना नुकुर करे ना तो आप दोनों जबर्दस्ती भी कर सकती हैं…”


“तो बसंती ठीक है, चालू हो जाओ, और जब ये लौट कर जायेगी ना तो फिर इसके शहर के जितने लड़के हैं सब मुट्ठ मारें

तो गुड्डी का नाम लेकर और रात में झडें तो सपने में इसी छिनार को देखकर और तेरे देवर को तो ये बहनचोद बना ही देगी…”


चम्पा भाभी अब पूरे मूड में थीं।


भाभी ने हामी भरी। बसंती भी आज मेरे साथ खुलकर रस ले रही थी, वह बोली-

“अरे तुम्हारा देवर रवींद्र सिर्फ बहनचोद थोड़ी ही है…”

“फिर… और… क्या-क्या है…” मजा लेते हुए भाभी ने बसंती से पूछा।


“अरे गंडुआ तो शकल से ही और बचपन से ही है, जब शादी में आया था तभी लगा रहा था

और अब अपनी इस ननद रानी के चक्कर में… भंड़ुआ भी हो जायेगा… जब ये रंडी बनकर कालीनगंज में पेठे पे बैठेगी तो… मोल भाव तो वही करेगा…”



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और सब लोग खुलकर हँसने लगी।
 
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komaalrani

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बसंती : मेंहदी



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आज कहीं जाना नहीं था इसलिये मैं सलवार सूट पहनकर बैठी थी।


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बसंती ने खूब रच-रच कर मुझे मेंहदी लगायी थी और महावर भी, आज सुबह से वह ज्यादा मेहरबान थी

और चम्पा भाभी के साथ मिलकर खूब गंदे मजाक कर रही थी।

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लेकिन सच बताऊँ , वो गंदे खुले खुले गाली वाले मज़ाक मुझे अच्छे भी बहुत लगते थे , जो पहले सुनने पर मैं कानों में ऊँगली डाल लेती , अब उन्ही के लिए कान तरसते थे, भाभी के गाँव में आके मैं एकदम बदल गयी
थी,

भाभी मुन्ने को तैयार कर रही थीं ,इसलिए सिर्फ मैं ,बसंती और चंपा भाभी थे। भाभी की माँ अभी शहर से लौटी नहीं थी।



बसंती आज मजाक करने में सिर्फ जुबान से नहीं बल्कि ,हाथों से भी , ... खुल के वो फिजिकल हो रही थी।


चंपा भाभी भी उसे खूब चढ़ा रही थीं।


और आज हाथ में उसने जो मेहंदी लगायी , वो रोज की तरह नहीं , बल्कि उसमें ढेर सारी चुदाई के पोज बने थे, किसी में लड़की की खुली जाँघों के बीच में लड़का , तो किसी में कुतिया की पोज में तो किसी में लड़की खुद लंड के ऊपर चढ़ के , ...


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और साथ में चंपा भाभी पूछ रही थीं , ' हे इसमें से कौन सा ट्राई किया है , "



बसंती की उंगलियां तो मेरी हथेली पे थीं लेकिन कभी उसकी कुहनी ,कभी उसका हाथ जाने अनजाने मेरे कच्चे टिकोरों को दबा दे रहां था।


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चंपा भाभी के सवाल से मैं तो गुलाल हो गयी लेकिन जवाब बसंती ने दिया ,



" अरे कौन नहीं , सब ट्राई किया होगा हमारी बिन्नो ने , लेकिन ई बोलो ई वाले स्टाइल में कैसा लगा , "


( वो उस समय अब बाएं हाथ पे कुतिया वाला पोज बना रही थी )

और खुद ही जवाब दिया , खूब रगड़ रगड़ के दरेर के जाता होगा उसमें न ,जान निकल जाती है लेकिन मजा भी खूब आता है।

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बात बसंती की सोलहो आने सही थी। दिनेश ,अजय ,सुनील तीनो ने ही तो कुतिया बना के कैसे रगड़ रगड़ के , दर्द के मारे जान निकल गयी थी ,लेकिन मजा भी उतना ही आया था।



" पहले लड़कों से चुदवाओ फिर एक बार प्रैक्टिस हो जायेगी तो रॉकी से वैसे ही निहुर के डलवाना। "

चंपा भाभी अपने फेवरिट टॉपिक पे आ गयी थीं।

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मेरे दोनों हाथों में तो मेहंदी रच रच के लग गयी थी ,बल्कि कुहनी तक और अब मैं हाथ हिला भी नहीं सकती थी।

लेकिन आज बसंती एकदम पूरे मूड में थी , उसकी निगाहें मेरे नए आये उभारों को सहला रही थीं।

आँखों आँखों में दोनों ने बातें की चंपा भाभी ने हामी भरी , और बसंती उनसे मुस्कराकर बोली ,

" क्यों और भी जगह मेंहदी लगा दूँ न "

" एकदम "

चंपा भाभी बोलीं और जब तक मैं समझूँ समझूँ दोनों ने मिल के मुझे वहीँ धक्का दे के गिरा दिया और अगले ही पल दूध के दोनों कटोरे बाहर

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( ब्रा तो मेरा वैसे ही गाँव में आने के बाद पहनना बंद हो गया थाऔर चंपा भाभी और बंसती ने मिल के कुरता खींच के ऊपर )


गोरे गोरे,कड़े कड़े ,नयी आती जवानी के फूल ,जिन्होंने सारे गाँव के लड़कों की नींद हराम कर रखी थी बसंती कुछ देर तक तो देखती रही , फिर उसने न जाना क्या देखा और फिर चंपा भाभी की ओर देखा ,

और दोनों मुस्कराने लगी।

पल भरा लगा मुझे समझने में , जैसे ही लेकिन मेरे समझ में आया ,... बस मारे शर्म के मैंने आँखे बंद कर ली।

गाल मेरे लाज से गुलाब हो गए।


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अजय दुष्ट।

कैसे जोर से कचकचा के काटा था उसने , मैं लाख मना करती रही फिर भी , और ऊपर से मेरे जोबन के ऊपर के हिस्सों पे तो , ....

पहले हलके से काटता , फिर वहां जोर जोर से चूमता ,चूसता और फिर जब दर्द थोड़ा सा कम होता तो

पहले से भी दस गुना जोर से हचक के काट लेता।



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मेरी चीख से जैसे उसका जोश दस गुना हो जाता और उसी जगह पे चार पांच बार , ... फिर निपल के चारों और दांत से जैसे माला का उसने निशान बना दिया था , फिर नाखून के भी कितने निशान थे ,... दिनेश ने भी जो कीचड़ में मेरी चूंचियां रगड़ी थी , जगह जगह लाल हो गयी थी , ...

अब तो राज खुल ही गया था , छिपाने से क्या फायदा।

चम्पा भाभी ने तो कल ही आँगन में न टॉप खोल के मेरे उभार सहलाये दुलराये थे , बल्कि चूसे भी थे , इसलिए , और आज बसंती ने भी , ...


मैंने आँख खोलीं थी बसंती ने जहाँ दांत के निशान थे वहीँ ऊँगली से छुआ ,सहलाया और फिर हलके से अपने नाखून गड़ाते छेड़ा ,


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" थोड़ी सी मेंहदी यहां पे , ... "



मैं बस मुस्करा दी ,और बंसती की शरारती उँगलियों का असर हुआ , मेरी चूंचियां पथराने लगीं , निपल्स कड़े होने लगे।



चंपा भाभी ने अपनी शैतान आँखों से बसंती को इशारा किया , फिर तो बसंती ने अंगूठे और तर्जनी के बीच पकड़ के जिस तरह से मेरे निपल्स रोल किये ,


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मैं मान गयी चंपा भाभी से भी दस हाथ आगे थी। मस्ती से मेरी आँखे मूंदने लगी , निपल खड़े होने लगे। कुछ ही देर में मैं सिसकियाँ भरने लगी। मेरी चुनमुनिया भी फड़कने लगी ,गीली होने लगी।



एक निपल बंसती की उँगलियों के बीच था और दूसरा जोबन उसकी मुट्ठी में , पहले हलके हलके सहलाती रही फिर कस कस के रगड़ना मसलना चालू कर दिया।


और जब कुछ देर बाद मुझे कुछ निपल्स पर ठंडा लगा मैंने आँखे खोल दी ,


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मेंहदी बसंती ने मेरे खड़े निपल पे अच्छी तरह थोप दी थी , पूरा खड़ा कड़ा निपल मेहंदी से ढका था , और फिर मेंहदी से मेरे उरोज पे खूब बारीक डिजाइन ,


उसका बस चलता तो मेरी चनमुनिया को भी वो नहीं छोड़ती , लेकिन गनीमत थी की भाभी ने उसे अंदर बुला लिया लेकिन उसके पहले मेरी नाभी पे एक छोटा सा टैटू की तरह,


गनीमत था उभारों पे उसने बस हलकी सी मेंहदी लगायी थी जो जल्दी सूख गयीऔर छूट भी गयी लेकिन रची अच्छी तरह थी।


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चन्दा के इंतेजार में देर हो गयी थी। कामिनी भाभी भी आयीं थी।


मेहंदी सूख गयी थी और बसंती उसे छुड़ा रही थी।


कामिनी भाभी ने बसंती से कहा- “मेहंदी तो खूब रच रही है, ननद रानी के हाथ में, बहुत अच्छी लगायी है तुमने…”

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वो हँसकर बोली- “इसलिये कि जब ये गांव के लड़कों का पकड़ें तो उन्हें अच्छा लगे…”
 
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पकड़ कर देख लो




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कामिनी भाभी ने बसंती से कहा-


“मेहंदी तो खूब रच रही है, ननद रानी के हाथ में, बहुत अच्छी लगायी है तुमने…”


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वो हँसकर बोली- “इसलिये कि जब ये गांव के लड़कों का पकड़ें तो उन्हें अच्छा लगे…”


“हे अच्छा बताओ, तुमने अब तक किसका-किसका पकड़ा है…”

चम्पा भाभी चालू हो गयीं।
मैं चुप थी।


“अच्छा चलो, नाम न सही नंबर ही बता दो, 4, 5, 6 मेरे कितने देवरों का पकड़ा है, अबतक…”

" अरे अबतक दर्जन पार हो गया होगा , ... ६-७ की क्या बात कर रही हो " कामिनी भाभी तो मज़ाक में चंपा भाभी का भी कान काटती थीं।

“अरे भाभी यहां आपके देवरों का पकड़ रही है और घर चलकर मेरे देवर का पकड़ेगी…”

मेरी भाभी क्यों मौका चूकतीं।


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“धत्त भाभी, आप भी…”

शर्म से मेरे गाल गुलाबी हो रहे थे।


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कामिनी भाभी हँसकर बोलीं

- “अरे इसमें धत्त की क्या बात, तुम्हारी भाभी पकड़ने का ही तो कह रहीं हैं लेने का तो नहीं…
पकड़कर देख लेना, कितना लंबा है, कितना मोटा है, दबाकर देख लेना कित्ता कड़ा है,


और न हो तो टोपी हटाकर सुपाड़ा भी देख लेना, पसंद हो तो ले-लेना…”


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अरे भाभी, ये सिर्फ यहीं नखड़ा दिखा रही है, वहां पहुँचकर

तो ये सोचेगी कि जब मैंने भाभी के सारे भाईयों का पकड़ा, किसी को भी नहीं मना किया
तो बेचारे अपने भाई का क्यों ना पकड़ूं और फिर अपने मेंहदी रचे हाथों में गप्प से पकड़ लेगी…


भाभी ने मुझे छेड़ा।

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पर मेरे मन में तो रवीन्द्र की…

जो चन्दा ने कहा था कि उसका इत्ता मोटा है, कि मेरे हाथ में नहीं आयेगा। घूम रही थी।उस स्साली छिनार मेरी पक्की सहेली ने मुझसे बाजी भी लगाई थी , ... नाप के देख लेना , १२ इंच का होगा, दस से कम तो कतई नहीं ,... और अगर दस से कम एक सूत भी निकल गया न तो जिंदगी भर की तेरी गुलामी, .... जिससे कहेगी उससे गाँड़ मरवाउंगी।

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“और क्या पहले हाथ में, फिर अपने इन दोनों कबूतरों के बीच पकड़ेगी…”

कामिनी भाभी ने मेरे उभारों पर चिकोटी काटते हुये कहा।




“और फिर ऊपर वाले होंठों के बीच…” चम्पा भाभी बोलीं।



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“और फिर नीचे वाले होंठों के बीच…”

अब मेरी भाभी का नंबर था।


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“अरे, जब रवीन्द्र बोलेगा, बहन एक बार पकड़ लो मेरा तो ये कैसे मना करेगी, बोलेगी लाओ भैया…”


भाभी आज चालू थीं।


उन्होंने मुझे चिढ़ाते हुए गाना शुरू किया और सब भाभियां उनका साथ दे रहीं थीं-


हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।

ना ये आधा, ना ये पौना, पूरा फुट है, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।
ना ये छोटा, ना ये पतला, पूरा अंदर है, पकड़कर देख लो।


हो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो।
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।

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काहे का रुकना, क्या झिझकना, तुम्हारा धन है, पकड़कर देख लो, हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो।

हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, गुड्डी रानी, पकड़कर देख लो।

नीचे लकड़ी ऊपर छतरी, रूप ग़जब का, पकड़कर देख लो। हो बांकी ननदी पकड़कर देख लो।
हो प्यारी ननदी, पकड़कर देख लो, बांकी ननदी, पकड़कर देख लो।





तभी चमेली भाभी आयीं और उन्होंने बताया कि चन्दा को बुखार हो गया है

इस लिये वो नहीं आ पायी है और उसने मुझे वहीं बुलाया है।


मैं तुरंत जाने के लिये तैयार हो गयी और चम्पा भाभी की ओर देखा।

उन्होंने तुरंत हां कह दी।


पर बसंती भाभी ने बोला-

“अरे एक हाथ की मेंहदी तो छुड़वा लो…”


पर मैंने कहा कि मैं रास्ते में खुद छुड़ा लूंगी।

सलवार और कुर्ता दोनों टाइट हो गये थे और मेरे जोबन के उभार और चूतड़ एकदम साफ-साफ दिख रहे थे।



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पीछे से कामिनी भाभी ने छेड़ा-

“अरे ऐसे चूतड़ मटका के ना चलो, कोई छैला मिल जायेगा तो बिना गाण्ड मारे नहीं छोड़ेंगा…”


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“अरे भाभी, इसको भी तो गाण्ड मरवाने का मजा चखने दीजिये…”

मैंने पीछे मुड़कर देखा तो बसंती हँसकर बोल रही थी।


तब तक पीछे से किसी ने जोर से मेरे उछलते कूदते मचलते चूतड़ों पर जोर से चिकोटी काटी

और साथ में एक मस्त रसीली गाली भी ,

"अरे ये मस्त मोटे मोटे चूतड़ मटकाकर कहाँ चली,, छिनाल ,... "

और फिर एक हलकी सी चपत भी चूतड़ पे ,

मैं पहचान गयी।


भाभी की माँ ,वो अभी अभी शहर से आई थीं।


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इसका मतलब अजय और सुनील भी लौट आये होंगे।

मैं कुछ बोलती उसके पहले मुस्करा के वो बोलीं,

" मैं तुम्हारे घर भी गयी थी , तेरे लिए एक खतरनाक खबर है ,"

मेरे तो कान खड़े गए होगे , कहीं स्कूल की बची हुयी चार दिन की छुट्टियां तो नहीं कैंसल हो गयी

और हम लोगों को आज कल में जाना पड़ेगा।

भाभी भी ध्यान से सुन रही थीं ,

कुछ देर तक सस्पेंस रखने के बाद वो बोलीं ,



"वहां कुछ टेंशन था शहर में ,इस लिए अब छुट्टी सात दिन के लिए बढ़ा दी गयी है। हमने तुम्हारे घर भी बात कर ली है
तो अब तुम छुट्टी खत्म होने के बाद,...."




भाभी की ख़ुशी तो छलक रही थीं , मायके में इतने दिन और रहने का मौका ,

और मैंने भी मुश्किल से अपनी ख़ुशी दबाई।
लेकिन मेरे मुंह से निकल ही गया ,

' मतलब सात दिन और "

मैं बोल पड़ी।

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" नहीं नहीं सात दिन नहीं ,जो तेरी छुट्टियां खत्म हो रही थीं उसके बाद सात दिन और। "

उन्होंने हाल खुलासा किया।

भाभी ऊँगली पे कुछ जोड़ घटाना कर रही थीं , तुरंत बोलीं ,

अरे हम लोगों को पांच दिन बाद जाना था ,मतलब १२ दिन और।

बसंती ने टुकड़ा लगाया ,

" ई तो बहुत निक खबर है , गाँव के लड़कन और मरदन के लिए हाँ बुरी खबर ,बुर के लिए है एकरे बुर की बुरी हालत हो जायेगी ,"

लेकिन मेरा बचाव किया ,भाभी की माँ ने हमेशा की तरह

" अरे तू लोग न हरदम हमरी बिटिया के पीछे पड़ी रहती हो ,
अरे इसकी बुर के लिए बुरी खबर काहें को है , ई केहु को मना की है कभी , अपने देवरों को बोलो न। "

( ये कहने की जरूरत नहीं की उनकी एक हथेली इस समय मेरी टाइट शलवार के ऊपर से ठीक दोनों रेशमी मखमली जाँघों के बीच ,)


मैं समझ गयी की मैं और रुकी तो मजाक की चक्की में मैं ही पिसुंगी और दूसरे मैं इतनी खुश थी की बता नहीं सकती थी ,

पूरे १२ दिन , अब तो बस , ...

मैं चंदा के घर की ओर चल पड़ी लेकिन कान मेंरे घर में हो रही बाते से चिपके थे।

" भाई इस ख़ुशी में कुछ मीठा होना चाहिए , " कामिनी भाभी ने मेरी भाभी के गाल पे चिकोटी काटते हुए बोला ,.

" मीठा नहीं खारा ,नमकीन , .... " खिलखिलाते हुए बसंती बोली , फिर जोड़ा ,

"अरे बिन्नो की उ छिनार ननद को खारा शरबत पिला ही देना चाहिए। "

" अरे बसंती तो क्या अभी तक नहीं पिलाया तूने कैसी भौजाई हो "

भाभी की माँ ने जोर से घुड़का।


तब तक मैं उन आवाजों से दूर घने गन्ने के खेतों के बीच मेंड़ पर आ चुकी थी , चंदा के घर का शार्ट कट।



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उसे भी ये खुशखबरी देनी थी ,


१२ दिन और।
 
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बहुत ही मस्ती भरा अपडेट है । कोमल रानी जीआपकी लेखनी भी कमाल है पड़ते हुए ऐसा लगता है कि हमारे सामने ही सब कुछ हो रहा है
 
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