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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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फट गइल ,सटक गइल , घुस गइल हो




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“गुड्डी रानी, अब चाहो कितना भी चूतड़ हिलाओ, गाण्ड पटको, पूरा सुपाड़ा अंदर घुस गया है, इसलिये अब लण्ड बाहर निकलने वाला नहीं है…”


चन्दा मेरे सामने आकर मुझे चिढ़ाते हुये बोली और मेरा जोबन कस के दबा दिया।



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सुनील अब पूरी ताकत से मेरी कसी, अब तक कुंवारी गाण्ड के अंदर अपना सख्त, मोटा लण्ड धीरे-धीरे घुसा रहा था।

मैं कितना भी चूतड़ पटक रही थी पर सूत-सूत करके वह अंदर सरक रहा था


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कहाँ कच्ची कुंवारी कसी कसी गांड और बीत्ते भर लम्बा, कलाई ऐसा मोटा सुनील का बांस ,

पानी के बाहर मछली की तरह छटपटा रही थी , तड़प रही थी , दर्द से डूबी ,



मुंह में अगर अजय ने अपना खूंटा हलक तक मेरे न ठोंक रखा होता तो चीख चीख कर , ....


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अजय, दुष्ट, बदमाश ने अपना पूरा बांस मेरे गले तक , मोटा सुपाड़ा मेरे हलक में अटका और कस के उस ज़ालिम ने मेरे सर को दोनों हाथों से कस के दबोच रखा था , जरा सा भी हिल नहीं सकती थी , चीख गले में घुट घुट के रह जा रही थी ,

दर्द से तड़प रही था पर वो सुनील न , अजय से भी ज्यादा ,

जबरदस्त ताकत थी , भाभी के भाइयों में सँड़सी ऐसी पकड़ , वो सुनील मेरी कमर को दबोचे,

ठेले जा रहा था , धकेले जा रहा था , पेले जा रहा था ,...

दर्द के मारे मेरी जान निकली जा रही थी पर उस बेरहम को तो… कभी कमर तो कभी मेरे कंधे पकड़कर वह पूरी ताकत से अंदर ठेल रहा था और जब आधा लण्ड घुस गया होगा और उसको भी लगा कि अब और अंदर पेलना मुश्किल है तो वह रुका।


और ऊपर से वो भाभी की छोटी बहिन मेरी सहेली से ज्यादा दुश्मन , चिढ़ा रही थी आँख नचा रही थी ,

" अरे का सोच रही थी , भैया के ससुराल में आओगी , बिना गाँड़ मरवाये चली जाओगी, ... अरे अभिन शुरुआत है , अब तो रोज बिना नागा, आगे वाली की तो महीने में पांच दिन की छुट्टी होती है , गाँड़ की तो एक्को दिन , और चलो चूतड़ मटकाय मटकाय के ,...

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मुझे लगा रहा था कि किसी ने मेरी गाण्ड के अंदर लोहे का मोटा राड डाल दिया है।


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उसके रुकने से मेरा दर्द थोड़ा कम होना शुरू हुआ।


पर चन्दा को कहां चैन, वह बोली-

“हे गुड्डी रानी, क्या मजे हैं तुम्हारे, एक साथ दो लण्ड का मजा, एक मुँह में चूस रही हो और दूसरे से गाण्ड में मजा ले रही हो, और मैं यहां सूखी बैठी हूं। '


और अजय से कहा-

“हे इसका मुँह छोड़ो, जब तक सुनील इसकी गाण्ड का हलुवा बना रहा है, तुम मेरे साथ मजा लो ना…”


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अजय ने जब इशारे से बताने की कोशिश कि जैसे ही वह मेरे मुँह से लण्ड निकालेगा, मैं चीखने चिल्लाने लगूंगी।

तो चन्दा ने अजय का लण्ड मेरे मुँह से निकालते हुए कहा-



“अरे चीखने चिल्लाने दो ना साल्ली को। पहली बार गाण्ड मरा रही है तो थोड़ा, चीखना, चिल्लाना, रोना, धोना, अच्छा लगाता है। थोड़ा, रोने चीखने दो ना उसको…”


ये कहकर उसने अजय को वैसे ही नीचे लिटा दिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गयी।

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मैं भी गर्दन मोड़कर उसको देख रही थी। वह अपनी चूत, ऊपर से अजय के सुपाड़े तक ले आती और जब अजय कमर उचकाकर लण्ड घुसाने की कोशिश करता, तो वह छिनार चूत और ऊपर उठा लेती। उसने अजय की दोनों कलाई पकड़ रखी थी। फिर उसने अपने माथे की बिंदी उतारकर अजय के माथे को लगा दी और कहने लगी-


“आज मैं चोदूंगी और तुम चुदवाओगे…”


और उसने अपनी चूत को उसके लण्ड पे जोर के धक्के के साथ उतार दिया।


थोड़ी ही देर में अजय का पूरा लण्ड उसकी चूत के अंदर था। अब वह कमर ऊपर-नीचे करके चोद रही थी

और अजय, जैसे औरतें मस्ती में आकर नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर चुदवाती हैं, वैसे कर रहा था।


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चन्दा ने मेरा एक झुका हुआ जोबन कस के दबा दिया और अब सुनील को चढ़ाते हुए, कहने लगी-





हे अभी मेरी चूत की चुदाई तो सुपाड़ा बाहर लाकर एक धक्के में पूरा लण्ड डालकर कर रहे थे, और अब इस छिनाल की गाण्ड में सिर्फ आधा लण्ड डालकर… क्या उसकी गाण्ड मखमल की है और मेरी चूत टाट की…


अरे मारो गाण्ड पूरे लण्ड से, फट जायेगी तो कल क्ललू मोची से सिलवा लेगी साल्ली… ऐसी गाण्ड मारो इस छिनाल की… की सारे गांव को मालूम हो जाये कि इसकी गाण्ड मारी गयी, पेल दो पूरा लण्ड एक बार में इसकी गाण्ड में… वरना मैं आ के अभी अपनी चूची से तेरी गाण्ड मारती हूं…”




न्दा का इतना जोश दिलाना सुनील के लिये बहुत था। सुनील ने मेरी कमर पकड़कर अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से एक बार में मेरी गाण्ड में ढकेल दिया।


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komaalrani

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फट गयीइइइइइइ


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न्दा का इतना जोश दिलाना सुनील के लिये बहुत था। सुनील ने मेरी कमर पकड़कर अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकाला और फिर पूरी ताकत से एक बार में मेरी गाण्ड में ढकेल दिया।

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उउह्ह्ह, मेरी तो जान निकल गयी।

मैंने दांत से होंठ काटकर चीख रोकने की कोशिश की पर दर्द इतना तेज था कि तब भी चीख निकल गयी। पर मैं जानती थी, कि अब सुनील नहीं रुकने वाला है, चाहे मेरी गाण्ड फट ही क्यों ना जाये।


और वही हुआ, सुनील ने बिना रुके फिर पहले से जोरदार धक्का मारा और मैं बेहोश सी हो गयी, मेरी बहुत तेज चीख निकली पर चन्दा ने कसकर मेरे मुँह पर हाथ लगाकर भींच लिया।


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सुनील धक्के को धक्का मारता रहा। मैं छटपटा रही थी, दर्द से बेहाल हो रही थी लेकिन चन्दा ने इतनी कस के पूरी ताकत से मेरा मुँह भींच रखा था कि मेरी जरा सा भी चीख नहीं निकल पायी।


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कुछ देर में सुनील के धक्के रुक गये, पर मुझे अहसास तभी हुआ, जब चन्दा ने हाथ हटा लिया और बोली-

“अरे जरा बगल में तो देख, कितनी आराम से तेरी गाण्ड ने लण्ड घोंट रखा है…”


और सच में जब मैंने बगल में देखा तो वहां शीशे में साफ दिख रहा था कि, कैसे मेरी कसी-कसी गाण्ड में उसका मोटा लण्ड पूरे जड़ तक मेरी गाण्ड में घुसा है।



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अब दर्द जैसे धीरे-धीरे कम हुआ मेरी गाण्ड ने लण्ड अपने अंदर महसूस करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक रुक के सुनील ने लण्ड थोड़ा बाहर निकाल के कस-कस के धक्के फिर मारने शुरू कर दिये।

पर अब मुझे दर्द के साथ एक नये तरह का मजा मिल रहा था।


उधर, अजय ने भी अब चन्दा को चौपाया करके चोदना शुरू कर दिया था।


मैं और चन्दा दोनों एक साथ एकदम सटकर चुदवा रहे थे।

मेरी कच्ची कसी गांड पहली बार हचक हचक के मारी जा रही थी ,



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और मेरी सहेली मेरे बगल में मेरे यार से अपनी रसीली बुर चुदवा रही थी ,
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सुनील अब मेरी चूचियां पकड़ के गाण्ड मार रहा था।


वह एक हाथ से मेरी चूची पकड़ता और दूसरी से चन्दा की दबाता।


अब अजय और सुनील दोनों पूरी तेजी से धक्के पे धक्के मारे जा रहे थसुनील ने मेरी चूत में पहले तो दो, फिर तीन उंगलियां घुसा दीं और कस के अंदर-बाहर करने लगा।


कहां तो मेरी चूत को एक उंगली घोंटने में पसीना होता था और कहां तीन उंगलीं…




मेरी गाण्ड और चूत दोनों का बुरा हाल था, पर मजा भी बहुत आ रहा था। जब उसका लण्ड मेरी गाण्ड में जाता तो वह उंगली बाहर निकाल लेता और जब चूत में तीन उंगलियां एक साथ पेलता तो गाण्ड से लण्ड बाहर खींच लेता।


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मैं बार-बार झड़ने के कगार पर पहुँचती तभी चन्दा ने कस के मेरी क्लिट पकड़कर रगड़ मसल दी और मैं झड़ने लगी और बहुत देर तक झड़ती रही। मेरा सारा रस उसकी उंगली पर लग रहा था।


जब मैं झड़ चुकी तो सुनील ने मेरी चूत से अपनी उंगली निकालकर मेरे मुँह में लगा दी और मुझे मजबूर करके चटाया। फिर तो मैंने उसके उंगलियों से एक-एक बूंद रस चाट लिया।



चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “क्यों कैसा लगा चूत रस…”
मैं चुप रही।


पर चन्दा क्यों चुप रहती। वह बोली-

“अरे अभी तो सिर्फ चूत रस चाटा है अभी तो और बहुत से रस का स्वाद चखना है…”


जब सुनील ने उसे आँख तरेर कर मना किया तो वो बोली-

“अरे गाण्ड मरवाने का मजा ये लेंगी, तो चूम चाटकर साफ कौन करेगा…”



तभी सुनील ने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के कई दोहथ्थड़ मारे, इत्ते जोर से की मेरे आँखों में गंसू आ गये। और उसने जोर से मेरी चोटी पकड़कर खींचा, और बोला-



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“सच सच बोल गाण्ड मराने में मज़ा आ रहा है की नहीं…”

“हां हां आ रहा है…” मुझे बोलना ही पड़ा।


“तो फिर बोलती क्यों नहीं…”



सच कहूं, मेरी समझ में नहीं आ रहा था अब मुझे कभी-कभी दर्द में भी अजब मज़ा मिलता था, कल जब दिनेश ने चोदते समय कीचड़ में जमकर मेरी चूचियां रगड़ीं थीं और आज जब इसने मेरे चूतड़ो पर मारा-



“हां हां मेरे जानम मार लो मेरी गाण्ड, बहुत मजा आ रहा है ओह हां हां… डाल ले… मारो मेरी गाण्ड… कस के मारो पेल दो अपना पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में…”

और सच में मैं अब उसके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।


काफी देर चोदने के बाद अजय और सुनील साथ-साथ ही झड़े।

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किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।










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kartik

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Mast update komal ji.... Guddi rani kaa to bura haal kar diya sunil ne.. do takeki 50 rupe wali jesa haal kar ke ghar bheja...me to socha aaj sandwich ban hii jayegi sunil aur ajay ke bich par bach gayi guddi rani... waiting next Update
 
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Mast update komal ji.... Guddi rani kaa to bura haal kar diya sunil ne.. do takeki 50 rupe wali jesa haal kar ke ghar bheja...me to socha aaj sandwich ban hii jayegi sunil aur ajay ke bich par bach gayi guddi rani... waiting next Update


thanks so much, sandwich bhi banegi, aaj nahi to kal parson, solhavane savan men bhabhi ke gaon men to bairsh to hogi hi
 
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komaalrani

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होली की कोटिश बधाइयां
 

Black horse

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होली की कोटिश बधाइयां
आपको भी होली की बधाइयाँ
ऐसे ही लिखते रहे और अपने अनुभव हमारे साथ बाटते रहे।
 

komaalrani

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आपको भी होली की बधाइयाँ
ऐसे ही लिखते रहे और अपने अनुभव हमारे साथ बाटते रहे।


Thanks so much
 

komaalrani

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वापस घर

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किसी तरह चन्दा का सहारा लेकर मैं घर लौटी।



एकदम चला नहीं जा रहा था , एक हाथ चंदा के कंधे पर रख कर , लेकिन तब भी जैसे एक कदम रखती , पिछवाड़े इतनी कस के टीस उठती ,


रोकते रोकते भी सिसकी निकल जाती , जोर जोर से पिछवाड़े परपरा रहा था , जब दोनों हिस्से आपस में रगड़ते , लगता था जैसे वहां आग लगी है ,

और उससे भी बढकर आगे भी एकदम लसलस , ये अजय भी न बड़की कटोरी भर के थक्केदार मलाई , और आज तो शलवार सरकायी के निहुरा के जो उसने लिया था , फिर मैंने भी शलवार सरका के पहन लिया , दोनों जाँघों के बीच अभी तक चपचप हो रहा था , फिर शलवार पर भी बड़ा धब्बा , खूब दूर से दिखाई देर रहा था ,

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लेकिन पिछवाड़े तो जैसे अभी तक कोई मोटी लकड़ी घुसी हो , स्साला , उसकी बहन की बुर मारों , ये सुनील एक तो बांस ऐसा मोटा ऊपर से इतना रगड़ रगड़ के हचक हचक के , मैं चीख रही थी , रो रही थी , दुहाई दे रही थी पर वो स्साला,... एकदम चला नहीं जा रहा था ,

वो तो किसी तरह चंदा का सहारा, ... गाँव के सारे रास्ते गैल देख लिए थे , पर चंदा ने शार्ट कट के मारे मेंड़ मेंड़ हो कर,



दो ओर ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेत थे जिसमे आदमी क्या हाथी छिप जाए ,



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मेड़ बस जैसे खेतो के बीच होती है , सिर्फ एक चल पाए , वो भी एक पैर के पीछे पैर रखकर बड़ी मुश्किल से , और रात भर जो जम के पानी बरसा था तो मेड़ के दोनों ओर खेतों में कहीं टखने भर पानी तो कहीं कीचड़ ,

मेड़ से जरा भी पैर सरका तो अरररररर धम्म , फिसल के कीचड़ में

और वो मेरी सहेली से ज्यादा दुश्मन , चंदा पीछे से हँस हँस कर चिढ़ा रही थी ,

" अरे गोरी जरा सम्हल के चल ना, कहीं कीचड़ में गिर गयी तो सोलहवां सावन के साथ सोलवां फागुन भी हो जाएगा"



मैं उसको अच्छा सा जवाब देती की पिछवाड़े से जबरदस्त चिलख उठी, जान निकल गयी , रोकते रोकते भी चीख निकल गयी ,


क्या कहूं उस साले सुनील को , ये भाभी के जितने भाई हैं न सब सालो का इतना मोटा, ... और पिछवाड़े जब चीरता फाड़ता घुसा , ... अंदर जगह छिल गया था , ... वो तो अजय ने मेरे गले तक अपना लंड पेल रखा था वरना चीख चीख कर, ... मेरी हालत खराब थी , एक कदम नहीं रख पा रही थी , और चंदा ने जान बूझ कर ये मेंड़ वाला रास्ता चुना , उस का सहारा ले कर चल रही थी तब भी लेकिन अब जब पहले एक पैर दूसरा ठीक उसी जगह पर , इत्ती कस के पिछवाड़े रगड़ घिस हो रही थी , जितना दर्द गांड मरवाने में हुआ उससे कम अभी नहीं हो रहा था ,

पतली सी मट्टी की मेंड़, दोनों ओर कीचड़ और गन्ने के ऊँचे ऊँचे खेत , मेंड़ पर चलती इठलाती मचलती दो किशोरियां ,


और अब गन्ने के खेत मेंड़ से एकदम सटे चिपके और उनकी पत्तियां मेरी देह को सहलाती रगड़ती,

आमसान में एक बार फिर बादल घिर आये थे , एक तो ऊँचे ऊँचे गन्ने के खेतों के बीच छन छन कर थोड़ी सी धूप आ रही थी और अब काले काले बादलों के चक्कर में करीब करीब अँधेरा ऊपर से पीछे से चंदा की बातें,

" हे गोरी ये हंस की चाल न चलो जल्दी जल्दी पैर बढ़ाओ, कहीं बारिश आ गयी तो , ... "

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मैं सम्हल सम्हल चल कर रही थी शहर में कहाँ गन्ने के खेत और कहाँ मट्टी की मेंड़ ,

" हे अगर कहीं किसी मरद ने इसी गन्ने के खेत में खींच लिया न , तो दुबारा गाँड़ मार लेगा और अबकी तो मट्टी पर , ऐसी हचक के मारेगा , सब ठेले मट्टी हो जाएंगे। " चंदा ने छेड़ा

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" तू मरवा न गाँड़ , मुझे नहीं मरवानी , स्साली जान निकली जा रही है तेरे चक्कर में ,... अब तो उस सुनील से मैं बोलूंगी भी नहीं ,... "

दर्द से सिसकते मैं बोली

" स्साली , ज्यादा नखड़ा न कर , दर्द दर्द ,... अरे तुझसे कम उमर के लौंडे सब उसी गन्ने के खेत में , बस निहुरा के नेकर सरका के,... "

चंदा ने चिढ़ाया

पर अब मुझे मौका मिल गया था जवाब देने का हँसते खिलखिलाते मैं चढ़ गयी उसके ऊपर ,

" अरे मेरी भैया की स्साली, सही कह रही है तू , मेरे भैया के सारे साले गांडू हैं , पैदायशी , खानदानी गांडू,... और उनकी बहना छिनार भाईचोद "


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पर चंदा से जीतना मुश्किल था , ... पलट के बोली ,

" अगली बार आना न तो अपने उस कुंवारे भैया को ले आना , अपने यार को , बस अगल बगल निहुरा के जैसे अभी सुनील ने तेरी गाँड़ मारी थी न , उसी तरह हचक हचक के मारी जाएगी , तेरी भी तेरे भैया की भी इसी गन्ने के खेत में , देखूंगी कौन ज्यादा चिल्लाता है , तू या तेरा भाई ,.. अरे अभी सुनील ने शुरुआत की है , ऐसे मोटे मोटे चूतड़ मटका के चलती है , गाँड़ तो तेरी मारी ही जानी है ये तो मेले में ही तय हो गया था , कितने लौंडे , मरद तेरा पिछवाड़ा देखकर अपने लंड मसल रहे थे , सोच अगर दिनेश का एक फुटा घुसता तो , और लौंडे मरद सब मारेंगे मेरी सहेली की गाँड़ घबड़ा मत ,.... "

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मेरा ध्यान उसकी बात सुनने में लगा था और

अररररररर , मैं फिसली ,

मुझे ध्यान ही नहीं रहा एक और गन्ने के खेत ख़तम हो गएँ और करीब घुटने भर पानी में औरते रोपनी कर रही हैं ,

मेरे टखने तक कीचड़ में धंस गए थे।

दूर दूर तक धानी चूनर की तरह पसरे खेत , रोपनी के धुनों की गूँज, ... और दर्जनों औरतें लड़कियां झुकी हुयी रोपनी करती, गाती

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मेरे फिसलते ही सब एक साथ सुर में जैसे सुर मिला के खिलखिला के हंसने लगी,


बात यही थी की भाभी के गाँव में सब औरतें लड़कियां सब का रिश्ता मुझसे मज़ाक का छेड़खानी का था , और गाँव में तो एकदम खुल के असली वाला, जो भाभी की रिश्ते से बहन लगती थीं , उनकी तो मैं ननद लगती ही थी, भाभी की भाभियों की तो डबल ननद ( और इसमें कामवालियां भी शामिल थी बल्कि वो और कस के रगड़ाई करती थीं )

एक हंस के बोली , पाहुन सावन में बहुत मस्त माल भेजे हैं अपने सालों के लिए , दिन रात बारिश होगी।

तो दूसरी बोली तो का हम लोग छोड़ेंगे , साले के साथ सलहज और साली भी रस लूटेंगी,

( मुझे चंपा भाभी की बात याद आयी , रोपनी वालियों के बारे में अड़ोस पड़ोस के गाँव से भी आती थीं हर साल , और रोपनी के साथ साथ गाँव के मरद भी अपना अपना बीज रोपने का , शायद ही कोई बचती हो जिसपे रोपनी में ६-७ मर्द न चढ़ते हों , और एकाध जबरदस्त जोबन रूप रंग वाली तो फिर तो , एक के बारे में बताया उन्होंने की वो खाली भाभी के ही खेत पर काम करती थी , और हर साल जबरदस्त मस्त चंपा भाभी के पति , खास तौर से दिन भले नागा हो जाए , हफ्ते में पांच छह बार , कंगना नाम था उसका , ... और शाम को वो आयी भी तो चम्पा भाभी ने इशारे से बता दिया यही है ,



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उमरिया की बारी लेकिन जबरदस्त जोबन और मज़ाक में बंसती और गुलबिया के भी कान काटती थी ,... माँ की भी 'बहुत ख़ास',... मुझे देख के बोली , अरे सावन में तो अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से कीचड़ टपकना चाहिए , चला हमारे साथ , तोहरो रोपनी कराय देई )

और उसी की आवाज सुनाई पड़ी , जहाँ मेरा पैर धंसा था वहीँ बगल में रोपनी कर रही थी , चिढ़ाते बोली

" लगता है हचक के गाँड़ मारी गयी है ननद रानी की कउनो मोट खूंटा धंसा है गंडिया में बहुत दर्द हो रहा है का "


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" अरे काहे चिढ़ा रही हो , अइसन मस्त गाँड़ है तो मारी ही जायेगी , इसके भइया भेजे ही इसी लिए हैं ,... लेकिन दुनो जून , दिन में रात में गाँड़ मरवाओ तो दर्द कम हो जाएगा , आज रात में फिर नंबर लगवा लेना " एक बड़ी उम्र वाली बोली।

" अरे यह गाँव में गाँड़ मारने वालों की कोई कमी नहीं है , हाँ कडुआ तेल लगा के निकला करो पिछवाड़े , वरना वो तो मौका पाते ही निहुरायँगे ठोंक देंगे लेकिन गाँड़ मरवाने में फायदा भी तो है , गाभिन होने का डर नहीं और पेट अलग साफ़,... "

कंगना फिर मुझे चिढ़ाने में जुट गयी थी ,

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मेरी भी हंसी छूट गयी , कंगना ने मदद की मेरा पैर कीचड़ से निकलवाने में।

लेकिन कुछ देर चलने के बाद भाभी का घर दिखने लगा था , बस पास ही था।

धान के खेत अब ख़तम हो गए थे , बस एक ओर वहीं ऊँचे गन्ने के बीच बीच में पतली पगडंडिया , कोई चले तो रास्ता नजर आता और वो थोड़ा आगे आगे बढ़ जाए तो वो रास्ता भी गन्ने के खेत में छुप जाता ,

चंदा बोली

“अब तो घर आ गया है तू निकल, मैं चलती हूँ…”


मुझे खेत के उस पार कोई लड़का सा दिखा लेकिन अगले पल वो आँख से ओझल हो गया था, हाँ ये लग रहा था की ये पतला रास्ता खेत के उस पार की किसी बस्ती की ओर जा रहा था, जहां 8-10 कच्चे घर बने थे।

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मेरे कुछ जवाब देने के पहले ही चन्दा उस गन्ने के खेत में गायब थी। बस गन्नों के हल्के-हल्के हिलने से लग रहा था की वो उसी ओर जा रही थी, जिधर वो बस्ती थी। देखते-देखते चन्दा भी उन बड़े गन्ने के खेतों में खो गई और मैं घर के रास्ते पे।

किसी तरह रुकते-रुकाते मैं घर के सामने पहुँच गई। दरवाजा बंद था। दो पल मैं सुस्ताई, गहरी सांस ली और दरवाजा खटखटाया, बस यह सोचते की भाभी लोग न हों। दरवाजा बंसती ने खोला।

मैंने कुछ घबड़ाते, सम्हलते, सिमटते, घर के अंदर देखा। अंदर का पक्का हिस्सा जिधर चम्पा भाभी, भाभी की माँ रहती थी, बंद था। मैंने कुछ राहत की सांस ली और बाकी राहत बसंती की बात से मिल गई की भाभी और उनकी माँ रवी के यहाँ गई हैं और चम्पा भाभी, कामिनी भाभी के साथ उनके घर। बसंती को बोला गया है की मुझे खाना खिला के, थोड़ी देर बाद शाम होते-होते आम के बाग़ में ले आये, वहीं जहाँ हम लोग पिछली बार झूला झूलने गए थे।

बंसती ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया था।

आसमान में सावन भादों के धूप छाँह की लुका छिपी चल रही थी। आँगन के पेड़ के ठीक ऊपर किसी कटी पतंग की तरह एक घने काले बादल का टुकड़ा अटक गया था, जिसकी परछाईं में आँगन में थोड़ा-थोड़ा अँधेरा छाया था। आँगन में एक चटाई जमीन पे बिछी थी और बगल में एक कटोरी में कड़वा तेल रखा था, लगता था बसंती तेल मालिश कर रही थी।

एक पल में मेरी आँखों ने आसमान में उड़ते बादलों की पांत से लेकर घर में पसरे सन्नाटे तक सब नाप लिया और ये भी अंदाज लगा लिया की घर में सिर्फ हम दोनों हैं और शाम तक कोई आने वाला भी नहीं है।



तब तक बसंती ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया।

उफ्फ… मैंने बसंती के बारे में पहले बताया था की नहीं, मेरा मतलब देह रूप के बारे में। चलिए अगर बताया होगा भी तो एक बार फिर से बता देती हूँ।


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बसंती उम्र में मेरी भाभी की समौरिया रही होगी या शायद एकाध साल बड़ी, 25-26 साल की और चम्पा भाभी से एकाध साल छोटी। लेकिन मजाक करने में दोनों का नंबर काटती थी। लम्बाई मेरे बराबर ही रही होगी, 5’5” या 5’6”, बहुत गोरी तो नहीं, लेकिन सांवली भी नहीं, जो गेंहुआ कहते हैं न बस वैसा। लेकिन देह थी उसकी खूब भरी पूरी लेकिन एक छटांक भी मांस फालतू नहीं, सब एकदम सही जगह पे।


दीर्घ नितम्बा और कसी-कसी चोली से छलकते गदराये जोबन, पतली कमर और एकदम गठी-गठी देह, जैसे काम करने वालियों की होती है, भरी भरी पिंडलियां।
 
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रंगपंचमी की बधाई


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