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Erotica सोलवां सावन

chodumahan

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ये नीरू का तो कचकचा के फड़वाने का प्रोग्राम बनवाओ भौजी....
वो ननद रानी की सहायता से....
 
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komaalrani

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ये नीरू का तो कचकचा के फड़वाने का प्रोग्राम बनवाओ भौजी....
वो ननद रानी की सहायता से....
अभी देखिये क्या होता है नीरू के साथ,

ननद के साथ क्या होगा, ये गाँव में भौजाइयां ही तय करती हैं ,
 

komaalrani

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छब्बीसवीं फुहार

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कच्ची कली : नीरू


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लेकिन पेड़ की डाल टूट कर गिरने के पहले , मेरे ठीक पीछे झूले पर बैठी , उस कच्ची कली के साथ जस्ट जवान होती ,

अरे वही नीरू , सुनील की बहिनिया , जो अभी ...,...,



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(सुबह नदी नहाने मैंने भी तो , …, गीता और मैंने , एकदम बस चूँचियाँ उठान , ….बस छोटे छोटे आते उभार , जस्ट ललछौंहे , लेकिन मैंने मीजा मसला खूब , और नीचे भी तो , एकदम कच्ची कसी , बस दो चार रेशमी बाल ' वहां ' )



,... गुलबिया और बसंती दोनों ,... जो हरकत मेरे साथ कामिनी भाभी कर रही थीं , उससे भी बढ़कर गुलबिया उस कच्ची कली के साथ ,

मेरे मन में ये सवाल उमड़ घुमड़ ही रहा था की ये तो अभी छोटी होगी ,

लेकिन गुलबिया जैसे उसने मेरे मन को पढ़ लिया , बिना मेरे पूछे बोल उठी ,

" अरे यह गाँव में कुल ननदिया , ... झांट बाद में आती है , लंड पहले खोजने लगती हैं , झांटे तो आ गयी ना , ... "

" कब की , "

हंसती खिलखिलाती उस कच्ची कली की आवाज सुनाई पड़ी।

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उमरिया में भले मुझसे बारी हो, पर कच्चे टिकोरे अब गदराने लगे थे, भौजाइयों के हाथ और गाँव के लौंडों की निगाहें दोनों बार बार वहीँ पड़ती थी और वो जवान होती नीरू समझती तो पक्का होगी

पर अभी झूले पर जवानी का पहाड़ा उसे गुलबिया पढ़ा रही थी , वही गुलबिया जिससे दो चार बच्चों की माँ ननदें भी पनाह मांगती थी,

गुलबिया का एक हाथ कच्चे टिकोरो पर और दूसरा उस कच्ची कली , कोरी ननदिया की चड्ढी में,

गुलबिया की ऊँगली का जोर,

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नीरू कभी सिसकती तो कभी चीखती और उस की चीख सुन के सारी भौजाइयों के कहकहे, हंसी और हल्ला एक साथ,

" अरे ननदों के भाई हम लोगो की फाड़ते हैं तो ये कउनो छिनार ननद बचनी नहीं चाहिए।"


गचाक , खच्च से गुलबिया ने अपनी मंझली ऊँगली दो पोर तक पेल दी , और जोर से उस कच्ची जवानी की चीख सुनाई पड़ी।

और जैसे जवाब में कामिनी भाभी ने जड़ तक दो ऊँगली मेरी गुलाबो में हचक कर ठेल दी।

" ननदन क चीख से मीठी आवाज कउनो नहीं होती , ... "

बसंती उस नयी आयी जवानी के नए नए जोबन को कस के मीजते रगड़ते बोली।

और उस के पहले चर्र चरर बंसती ने नीरू का ब्लाउज फाड़ कर , झूले से दूर

बारिश की तेज बूंदे अब सीधे उन कच्चे टिकोरों पर

तेज पानी बरस रहा था , बादल खूब घने छाए थे , आम की यह बाग़ वैसे भी इतनी गझिन , दिन में भी कुछ नहीं दिखता था ,


अब ऊपर का इलाका बंसती के कब्जे में कस कस के नीरू की उठती हुयी चूँचियाँ रंगड़ी मसली जा रही थीं

और नीचे का इलाका गुलबिया के कब्जे में , गपागप सटासट, चोदने के मामले में गुलबिया की ऊँगली गाँव के लौंडो से भी दो हाथ आगे थी

झूले पर खूब मस्ती हो रही थी,

काले घने बादल , खूब गझिन आम की बाग़ ,


इसी बाग़ में तो अजय ने सबसे पहले मेरा जोबन लूटा था ,

सांझ भी पूरी तरह , ...


लेकिन मैं गर्दन पीछे कर के , कनखियों से उस कच्ची कली की रगड़ाई ,...


मुझे कुछ मजा ज्यादा इसलिए भी आ रहा था की आज इसी के भाई ने कितनी बेरहमी से मेरे पिछावड़े , मेरे रोने चीखने के बाद भी उस दुष्ट ने मेरी फाड़ कर रख दी थी अब तक चिल्हक मच रही थी ,

और झुरमुट सी झलक भले ही हलकी हलकी दिख रही थी लेकिन उस छुटकी की चीखें सिसकियाँ तो अच्छी तरह सुनाई दे रही थी।




" नाही गुलबिया भौजी निकार लो , बहुत दर्द हो रहा है ,... "


नीरू चीख रही थी।




गुलबिया , जिसके नाम से इस गाँव की सारी ननदे कांपती थी , ऐसी मस्ती कच्ची कली को पकड़ने के बाद कैसे छोड़ देती ,

" अभी कउनो लौंडा पकड़ के अरहर के खेत में पटक के पेल देता तो , तो तोहरे चीखे से छोड़ देत का , ... चल अबकी होली में तोहैं , तोहरे भैया के खूंटे पर बैठाऊंगी , ... "




गुलबिया ऊँगली अंदर बाहर करती बोली।

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" अरे होली में त अभिन बहुत दूर हो , तब तक ई बेचारी का ,... "

एक हाथ से कस कस के मेरे जोबन रगड़ते दूसरे से मेरी चुनमुनिया में जोर जोर से ऊँगली करते कामिनी भाभी बोलीं , ...





" अरे हम भौजाई लोग काहें क हई , तब तक ई चिरैया , भउजी लोगन के साथ , तानी हमहुँ लोग तो यह कच्ची कली क रस ,... "

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ये बसंती की आवाज थी , वो जोर से उस नयी जवानी के कच्चे टिकोरों को मसल रगड़ रही थी , ऊँगली से उसके जरा जरा सा निप्स को ,...


और साथ में गुलबिया की ऊँगली उसके बिल में घचर घचर ,

और मेरी हालत तो नीरू से भी खराब,

कामिनी भाभी अकेले बंसती और गुलबिया के मिल के बराबर थीं , और आज तो वो खुल के खेल रही थीं, फिर एक बार गाँव के लौंडों के साथ गन्ने के खेत में कबड्डी खेल कर के , मुझे भी मजा आने लगा था इस सब में

कामिनी भाभी की दो दो ऊँगली , कभी अंदर बाहर कभी गोल गोल ,


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और आगे कामिनी भाभी जोर जोर से मेरी बिल में , उनका अंगूठा मेरे क्लिट पर ,

मैं झड़ने के कगार पर थी , मन बहुत कर रहा था मेरा भौजी किसी तरह झड़ा दें , बंसन्ती ने , तीन चार बार ,... लेकिन हर बार ,... किनारे पर ले जाके छोड़ दिया था बंसती ने और अब कामिनी भाभी भी वही, बस किनारे तक ले जाके रुक जा रही थीं

अभी बस लग रहा था अब झड़ी , तब झड़ी ,...

और उसी समय अरररा कर वो पास में डाल टूटी और हम सब झूले पर से हट कर ,


मैं बिना झड़ी , वैसे ही प्यासी ,...
 
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गुलबिया : सावन में फागुन


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लेकिन अँधेरा जबरदस्त था, पानी की धार भी तेज थी और बाग में नीचे जमीन एकदम कीचड़ हो गई थी। चलना भी आसान नहीं था, हम सब थोड़ी खुली जगह पे थे जहाँ कीचड़ तो बहुत था लेकिन किसी पेड़ की डाल के गिरने का डर नहीं था। चलना भी आसान नहीं थी।


“अरे झूला न सही त चला सावन में ननदन के होली क मजा देवल जाय न…”


ये आवाज गुलबिया की थी।

मुझे क्या मालूम ये बात वो किसके लिए कह रही थी। लेकिन जब अगले ही पल उसने और एक और भौजी ने धक्का देकर मुझे कीचड़ में गिरा दिया तब मैं समझी। ब्लाउज तो पहले ही फट चुका था। एक किसी ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ के घसीटा और मैं गड्ढे में।



गुलबिया ने बस वहीं से कीचड़ उठा-उठा के मेरे जोबन पे लगाना शुरू कर दिया।



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मैं क्यों छोड़ती आखिर, मैं भी तो अपनी भौजी की ननद थी, और इतने दिनों में चम्पा भाभी और बसंती की संगत में काफी खेल तमाशे सीख चुकी थी। फिर दिनेश ने भी मेरे साथ आँगन में कीचड़ की होली खेली थी।


मैंने दोनों हाथों में कीचड़ लेकर सीधे गुलबिया की दोनों चूंचियों पे, 36+ रही होंगी लेकिन एकदम कड़ी, गोल-गोल।


लेकिन गुलबिया ने खूब खुश होकर मुझे गले लगा लिया और बोली-


“मान गए… हो तुम हमार लहुरी ननदिया। बहुत मजा आई तोहरे साथ…”

“एकदम भौजी, आखिर मजा लेवे आई हूँ तोहरे गाँव, न देबू ता जबरन लेब…”



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मुश्कुरा के मैं बोली और उसकी चूची पे लगे कीचड़ को जोर-जोर से रगड़ने लगी।

मेरी साड़ी तो सरक के छल्ला बन गई थी कमर पे और ब्लाउज कामिनी भाभी और बसंती ने फाड़ के बराबर कर दिया था।

मैंने भी गुलबिया की चोली कुछ फाड़ी कुछ खोल दी थी।

लेकिन गुलबिया, मैंने कहा था न बसंती के टक्कर की थी, तो बस नीचे से पैर फंसा के उसने ऐसी पलटी दी की मैं नीचे वो ऊपर।

और अब मैं समझी की गाँव सारी लड़कियां गुलबिया के नाम से डरती क्यों थी?

मुझे अजय की याद आ गई, जिस तरह बँसवाड़ी में उसने मेरी चूंचियां रगड़ीं थी, उसी तरह। पहले दोनों हाथों की हथेलियों से, फिर पकड़ के कुचलते हुए, और साथ में उसकी चूत मेरी चूत पे घिस्से लगा रही थी, पूरी ताकत से।



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गुलबिया के जोर से मेरे चूतड़ नीचे कीचड़ में रगड़े जा रहे थे। मैं सिसक रही थी लेकिन मैं धक्कों का जवाब धक्कों से दे रही थी, चूत मेरी भी घिस्सों पर घिस्से मार रही थी।

पानी करीब करीब बंद हो गया था, बस हल्की-हल्की बूंदें पड़ रही थीं।

मैं बस… लग रहा था की पहले बसंती और फिर कामिनी भाभी चूत में आग लगाकर छोड़ दी, तो अब गुलबिया ही बारिश करा के…”

उधर उस कच्ची कली, सुनील की बहन को भी दो भौजाइयों ने दबोच रखा था, और खुल के उसकी रगड़ाई मसलाई हो रही थी।

और इधर मेरी भी, गुलबिया ने गचाक से एक उंगली मेरी चूत में पेल दी और मेरी कच्ची कसी चूत ने उसे जोर से दबोच लिया, कहा-

“बहुत कसी है, एकदम टाइट, लेकिन अब हमरे हाथ में पड़ गई हो न, देखना भोसड़ी वाली बना के भेजूंगी…”


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मैं- “पक्का भौजी, तोहरे मुँह में घी शक्कर…”

खिलखिलाते हुए मैंने कहा और जोर से अपनी चूत सिकोड़ ली।

तब तक नीरू ने दोनों भौजाइयों से बचने की कोशिश करते हुए बोला-

“भाभी, अरे बरसात बंद हो गई है अब चलूँ?”

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जवाब बसंती ने दिया, जो तब तक वहां शामिल हो गई थी-

“अरी ननद रानी, अबही कहाँ, असली बरसात तो बाकी है, तनी उसका भी तो स्वाद चख लो…”

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और वहीं से गुलबिया को गुहार लगाई। गुलबिया की मंझली उंगली, मेरी कसी गीली गुलाबी चूत के अंदर खरोंच रही थी।

मुझे छोड़ते हुए वो बोली-



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“बिन्नो, हमार तोहार उधार…”

और बंसती की ओर चली गई।

मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी तो कामिनी भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के सहारा देके उठाया।

चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ।


ब्लाउज तो फट ही गया था, किसी तरह साड़ी को लपेटा मैंने, और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली।




बारिश बंद हो गई थी और अब हवा एक बार फिर तेज चलने लगी थी।

आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था।

पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा, तो सुनील की बहन छटपटा रही थी, लेकिन उसके दोनों हाथ, एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था, और दूसरे हाथ से उसके फूले-फूले गाल जोर से दबा रखे थे।
 
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सुनहली बारिश

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आसमान में बादल भी छिटक गए थे और चाँद निकल आया था। पेड़ों के झुरमुट में मुड़ने के पहले एक बार एक पल ठहर कर मैंने देखा, तो सुनील की बहन छटपटारही थी, लेकिन उसके दोनों हाथ, एक हाथ से बसंती ने पकड़ रखा था, और दूसरे हाथ से उसके फूले-फूले गाल जोर से दबा रखे थे।

उसने गौरेया की तरह मुँह चियार रखा था, और उसके मुँह के ठीक ऊपर, गुलबिया, दोनों घुटने मोड़े, साड़ी उसकी कमर तक,

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और मान गयी मैं गुलबिया को , बंसती सही ही कह रही थी , एक बार उसकी पकड़ में आने के बाद बचना मुश्किल था , जिस तरह वो बैठी थी ,

घुटने मोड कर , गुलबिया की दोनों मजबूत पिंडलियाँ , उस कच्ची कली के दोनों हाथों पर लाख कोशिश कर ले , सूत भर भी हिल नहीं सकती थी , गुलबिया की देहःका पूरा जोर नीरू के हाथों पर ,

गुलबिया की मांसल चिकनी तगड़ी जाँघे ,... जैसे किसी लोहार ने अपनी सँड़सी से घन मारने के लिए लोहे को कस के पकड़ रखा हो ,

उस नयी आयी जवानी के सर को , कस के दबोच रखा था , उन जांघों ने ,... बाज की चोंच में गौरेया ,...

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और गौरेया ने मुंह चियार रखा था ,

" पी ले , पी ले ,... अरे अइसन स्वाद लगेगा की खुदे आओगी मुंह फैलाये , लेकिन बोलना पडेगा रानी ,... बिन बोले मैं पिलाऊंगी नहीं , और बिन पिलाये छोडूंगी नहीं, अभी तो खाली हम दोनों हैं देर करोगी तो ,... "

गुलबिया उसे उकसा रही थी ,

मैं बँसवाड़ी की आड़ में खड़ी , छिपी दुबकी , खेल तमाशा देख रही थी , अबतक लग रहा था की बसंती आज मज़ाक मज़ाक में , लेकिन अब लग रहा था ,

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वो नयी आयी जवानी वाली कुछ देर तक तो , लेकिन ,... जिस तरह गुलबिया ने जोर से उसकी घुंडी पकड़ के मरोड़ा , पहले तो वो चीखी ,

पर वो समझ गयी ,...

"मू ,... मू ,... "

" अरे ननद रानी पूरा बोल , खुल के तब उ भौजाइन का परसाद मिलेगा , देखना , ई टिकोरे अइसन जल्दी से बड़े होंगे न , ... ले चलूंगी तोहें अपने टोले भरौटी मेंएक दिन , पहले भरौटी क भौजाइन के संग फिर ,...

पता नहीं उस ने बोला की नहीं , लेकिन बसंती ने मुझे देख लिया , ( देख तो मुझे दोनों शुरू से रही थीं ) , बोली ,

" अरे घबड़ा जनि अरे जरा आज इसको , ... फिर कल से तोहें बिना नागा पिलाऊंगी , ... झान्टन से छान के सुनहला शरबत ,... सबेरे सबेरे ,... "

" अरे खाली सबेरे नहीं दोनों जून , ... और खाली पिलाऊंगी नहीं , खिलाऊंगी भी , पचा पचाया ,... घबड़ा जिन ननद रानी "


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गुलबिया ने जोड़ा

मैं छुपने की कोशिश करने लगी लेकिन तभी ठिठक कर रुक गयी


और फिर बारिश शुरू हो गई, पहले तो बूँद-बूँद, फिर घल-घल, गुलबिया की जाँघों के बीच से, सुनहली पीली बारिश,

“अरे बिना भौजाइन क खारा शरबत पिए, हमारे ननदन क जवानी ठीक से नहीं आती…”

बंसती बोल रही थी।

मेरी आँखे वहीँ चिपकी थी , उस कच्ची कली का मुंह एकदम खुला था , सुनहली बारिश , पहले बूँद बूँद ,... फिर

तेज धार , छरर छरर ,

एक बूँद बाहर छलकी तो गुलबिया गरजी ,

एक बूँद भी ननद रानी बाहर नहीं ,

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मेरी आँखे वही चिपकी थी , कल की लड़की , मुझसे भी छोटी और कैसे



तब तक कामिनी भाभी की आवाज आयी , और मैं बँसवाड़ी से निकल कर उनके पास

कामिनी भाभी का घर पास में ही था, थोड़ी देर में मैं और चम्पा भाभी, उनके साथ, उनके घर पहुँच गए।
 
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सत्ताइसवीं फुहार -




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कामिनी भाभी





मैं किसी तरह लथपथ कीचड़ से उठी


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तो कामिनी भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के सहारा देके उठाया। चम्पा भाभी ने इशारा किया की बाकी सब अभी नीरू के साथ फँसी है मैं निकल चलूँ।

ब्लाउज तो फट ही गया था, किसी तरह साड़ी को लपेटा मैंने, और मैं उन दोनों लोगों के साथ निकल चली।

मैं चल तो कामिनी और चंपा भाभी के साथ रही थी लेकिन मेरी निगाह मुड़ मुड़ कर , जहाँ गुलबिया और बसंती ने मिल के उस कच्ची कली को दबोच रखा था,

कैसे छुलछुल छुलछुल, और नीरू अपने होंठ फैलाये,

और बसंती मुझे चेता रही थी , बिन्नो आज ये तो कल तोहार नंबर लगी घबड़ा जिन , रोज बिना नागा,


कामिनी भाभी का घर पास में ही था, थोड़ी देर में मैं और चम्पा भाभी, उनके साथ, उनके घर पहुँच गए।




आसमान अभी भी बादलों से घिरा था। बूंदा बादी हल्की हो गई थी लेकिन जिस तरह से रुक-रुक कर बिजली चमक रही थी, बादल गरज रहे थे लग रहा था की बारिश फिर कभी भी शुरू हो सकती थी।

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जो रास्ते दिन में जाने पहचाने लगते थे, अब उन्हें ढूँढ़ना भी मुश्किल होता।


कामिनी भाभी आज घर में अकेली थीं, उनके पति शहर गए थे और उन्हें शाम को लौटना था लेकिन लगता था की बारिश के चलते वहीं रुक गए।


मेरी पूरी देह कीचड़ में लथपथ थी, खासतौर से आगे और पीछे के उभार,

जिस तरह गुलबिया ने कीचड़ उठा-उठा के मेरे जोबन पे रगड़ा था और मेरे ऊपर चढ़ के कीचड़ हो गई मिटटी में मेरे चूतड़ों को घिस घिस के…

कामिनी भाभी मुझे पकड़ के सीधे बाथरूम में ले गई जहाँ कई बाल्टियों में पानी भरा था।

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ब्लाउज तो मेरा पहले ही उन्होंने बसंती और गुलबिया के साथ मिल के चिथड़े-चिथड़े कर दिए थे और साड़ी भी एकदम कीचड़ में लथपथ हो गई थी। एक झटके में साड़ी खींच के उन्होंने उतार दी और धोने के लिए डाल दी।

तब तक चम्पा भाभी की बाहर से आवाज आई-


“मैं चल रही हूँ, तेज बारिश आने वाली है। आज रात में घर पे कोई नहीं है। कल दोपहर को आके इसे ले जाऊँगी…”

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और बाहर से दरवाजा उठंगाने की आवाज आई।

कामिनी भाभी बाहर दरवाजा बंद करने के लिए उठीं, तो घबड़ा के मैं बोली-

“मैं भी चलती हूँ, यहाँ कहाँ?”

कामिनी भाभी एक पल के लिए रुक गईं और मुश्कुराते हुए बोलीं-

“तो जाओ न मेरी बिन्नो, ऐसे जाओगी। चम्पा भाभी तो कहाँ पहुँच गई होंगी, जाओगी ऐसे अकेले? रास्ते में, इतने छैले मिलेंगे न की कल शाम तक भी घर नहीं पहुँच पाओगी…”

और मैंने अपनी ओर देखा तो… एकदम निसूती, ब्लाउज तो अमराई में फट फटा कर, और अब साड़ी भी कामिनी भाभी के कब्जे में थी। ऐसे में…

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फिर मेरी ठुड्डी पकड़ के कामिनी भाभी ने प्यार से समझाया-

“अरे तेरी भौजाई और उनकी माँ पास के गाँव में रात में चली गई है। तो आज रात चम्पा भाभी तुम्हारी घर पे होंगी सिर्फ बसंती के साथ, तो काहे उनकी दावत में… …”


और बाहर का दरवाजा बंद करने चली गई।

बात मैं अब अच्छी तरह समझ गई, और घबड़ा भी अब नहीं रही थी। चन्दा, चम्पा भाभी, बसंती और गुलबिया सबके साथ तो थोड़ा बहुत मजा मैंने लिया ही था और कामिनी भाभी तो इन सबकी गुरुआइन थीं। बहुत हुआ तो वो भी… और इस हालत में तो घर लौटना भी मुश्किल था।

और तब तक सोचने समझने का मौका भी चला गया, कामिनी भाभी लौट आई थीं। हाँ उन्होंने बाथरूम का दरवाजा भी नहीं बंद किया, घर में हमीं दोनों तो थे और बाहर का दरवज्जा वो अच्छे से बंद करके आ गई थीं। और जब दिमाग नहीं चलता तो हाथ चलता है, मेरा हाथ चल गया, मैंने कामिनी भाभी की साड़ी खींच ली। ब्लाउज उनका भी झूले पे ही खुल गया था।

“भाभी, अरे इतनी बढ़िया साड़ी फालतू में गीली हो जायेगी…”

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और अब हम दोनों एक तरह से, लेकिन कामिनी भाभी को इससे कुछ फरक नहीं पड़ता था।



बाथरूम के बाहर रखी लालटेन की मद्धिम-मद्धिम हल्की-हल्की पीली रोशनी में मैं कामिनी भाभी की देह देख रही थी।


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थोड़ी स्थूल, लेकिन कहीं भी फैट ज्यादा नहीं, अगर था भी तो एकदम सही जगहों पर। एकदम गठीली, कसी-कसी पिंडलियां, गोरी, केले के तने ऐसी चिकनी मोटी जांघें, दीर्घ नितम्बा लेकिन जरा भी थुलथुल नहीं।


कमर मेरी तरह, किसी षोडसी किशोरी ऐसी पतली तो नहीं लेकिन तब भी काफी पतली खास तौर से 40+ नितम्ब और 38डीडी+ खूब गदराई कड़ी-कड़ी चूंचियों के बीच पतली छल्ले की तरह लगती थी।
 

komaalrani

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कामिनी भाभी

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बाथरूम के बाहर रखी लालटेन की मद्धिम-मद्धिम हल्की-हल्की पीली रोशनी में मैं कामिनी भाभी की देह देख रही थी। थोड़ी स्थूल, लेकिन कहीं भी फैट ज्यादा नहीं, अगर था भी तो एकदम सही जगहों पर। एकदम गठीली, कसी-कसी पिंडलियां, गोरी, केले के तने ऐसी चिकनी मोटी जांघें, दीर्घ नितम्बा लेकिन जरा भी थुलथुल नहीं।


कमर मेरी तरह, किसी षोडसी किशोरी ऐसी पतली तो नहीं लेकिन तब भी काफी पतली खास तौर से 40+ नितम्ब और 38डीडी+ खूब गदराई कड़ी-कड़ी चूंचियों के बीच पतली छल्ले की तरह लगती थी।

जैसे मैं उन्हें देख रही थी, उससे ज्यादा मीठी निगाहों से वो मुझे देख रही थीं और फिर वो काम पे लग गई, सबसे पहले पानी डाल-डाल के मेरे जुबना पे लगे कीचड़ों को उन्होंने छुड़ाना शुरू किया।


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जिस तरह से कामिनी भाभी की उंगलियां मेरे छोटे नए आते उभारों को, ललचाते छू रही थीं, सहला रही थी, उनकी हालत का पता साफ-साफ चल रहा था।

लेकिन कामिनी भाभी के हाथ कब तक शर्माते झिझकते और गुलबिया का लगाया कीचड़ भी इतनी आसानी से कहाँ छूटता। जल्द ही रगड़ना मसलना चालू हो गया, और वो कीचड़ छूटने पे भी बंद नहीं हुआ।

मैं क्यों पीछे रहती आखिर अपनी भौजी की छुटकी ननदिया जो थी, तो मेरे भी दोनों हाथ कामिनी भाभी की बड़ी-बड़ी ठोस गुदाज गदराई चूंचियों पे।

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हाँ मेरी एक मुट्ठी में उनकी चूची नहीं समा पा रही थी- बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम ठोस।

मेरे निपल अभी छोटे थे लेकिन कामिनी भाभी के अंगूठे और तर्जनी ने उन्हें थोड़ी ही देर में खड़ा कर दिया।

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और मेरे हाथ, मेरी उंगलियां कामिनी भाभी को कापी कर रही थीं। थोड़ी ही देर में कामिनी भाभी का एक हाथ मेरी जाँघों के बीच में था और उनकी गदोरी चुन्मुनिया को हल्के-हल्के रगड़ रही थी, और मैं जैसे ही सिसकने लगी, झड़ने के कगार पर पहुँच गई।

उन्होंने मुझे पलट दिया।

मेरे भरे-भरे चूतड़ अब कामिनी भाभी की मुट्ठी में थे, और वहां वो पानी डाल रही थी। गुलबिया ने ऐसे रगड़ा था की मेरे चूतड़ एकदम कीचड़ में लथपथ हो गए थे, यहाँ तक की उंगलियों में कीचड़ लपेट के उसने मेरी पिछवाड़े की दरार में भी अच्छी तरह से…

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दोनों नितम्बो को फैलाकर कामिनी भाभी साफ कर रही थीं और अचानक उन्होंने अपनी कलाई के जोर से एक उंगली पूरी ताकत से गचाक से पेल दी। लेकिन इसके बावजूद मुश्किल से उंगली की एक पोर भी नहीं घुसी ठीक से।

“साल्ली, बहुत कसी है। बहुत दर्द होगा इसको, मजा भी लेकिन खूब आएगा…”


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कामिनी भाभी बुदबुदा रही थीं।





लेकिन मेरा मन तो खोया था उनके दूसरे हाथ की हरकत में। उसकी गदोरी मेरी चुनमुनिया को दबा रही थी, रगड़ रही थी, सहला रही थी। और साथ में कामिनी भाभी का दुष्ट अंगूठा मेरी रसीली गुलाबी क्लिट को कभी दबाता, कभी मसलता।

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आज दोपहर से मैं तड़प रही थी, पहले तो घर पे बसंती ने, दो तीन बार मुझे किनारे पे ले जाके छोड़ दिया। उसके बाद झूले पे भी कामिनी भाभी और बसंती मिल के दोनों, और जब लगा की गुलबिया जिस तरह से मेरी चूत रगड़ रही है वो पानी निकाल के ही छोड़ेगी।

ऐन मौके पे वो नीरू के पास चली गई, खारा शरबत पिलाने।

और यहाँ एक बार फिर… मैं मस्ती से अपनी दोनों जांघें रगड़ रही थी की पानी अब निकले तब निकले, की कामिनी भाभी ने सीधे आधी बाल्टी पानी मेरी जाँघों के बीच डाल दिया।

मैं क्यों चूकती, मैंने भी दूसरी बाल्टी का पानी उठा के उनके भी ठीक वहीं…

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खूब मस्ती की हम लोगों ने साथ साथ नहाने में , पक्की ननद भौजाई, जो थोड़ी भी झिझक बची थी वो भी दूर हो गयी


नहा धो के हम दोनों निकले तो दोनों ने एक दूसरे के बदन को तौलिये से अच्छी तरह रगड़ा, सुखाया लेकिन मेरे उभारों और चुनमुनिया को उन्होंने गीला ही रहने दिया और मुझे पकड़ के एक पलंग पे पीठ के बल लिटा दिया और फिर एक क्रीम ले आई और दो चार छोटी-छोटी शीशियां।
 

Shivam Tiwari

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mai yhi update ka wait kr rha tha
 
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Wow nice 👍 update interesting waiting next


Thanks so much, next post soon
 
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