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"लेकिन जिस दिन से चारा डालना शुरू करो न, उसके दो तीन हफ्ते के अंदर घोंट लो, वरना वो समझेगा की सिर्फ टरका रही है और बाकी लड़कों में भी ये बात फैल जायेगी। और एक बार जहाँ तुमने दो चार को चखा दिया न फिर तो एकदम से मार्केट बढ़ जायेगी तेरी।
लेकिन जिसको सेलेक्ट न करो उसको भी इग्नोर मत करो, जवाब तो दो ही। शुरू में 10-12 में से सात-आठ को चारा डालना शुरू करो, सात-आठ से शुरू करोगी न तो चार-पांच से काम होगा, क्योंकी कई लड़के तो बातों के बीर होते हैं, नैन मटक्का से आगे नहीं बढ़ते।
“हाँ सेलेक्ट करते समय ये जरूर देखना की उसकी बाड़ी वाडी कैसी है, ताकत कितनी होगी?”
मैं ध्यान लगाकर सुन रही थी।
और कामिनी भाभी ने एक नया चैप्टर खोला-
“इन छैलों के अलावा अरे यार तेरी सहेलियों के भाई वाई भी तो होंगे,
उनके यहाँ आने जाने में, मिलने में भी कोई रोक टोक नहीं होगी…”
भाभी की बात एकदम सही थी, पांच छ तो मेरी पक्की सहेलियां था जो अपने सगे भाई से फँसी थी और हर रात बिना नागा कबड्डी खेलती थी,
उससे भी बढ़कर अगले दिन आके सब हाल खुलासा सुना के मुझे जलाती थीं।
और कजिन का तो पूछना नहीं, आधी क्लास की लड़कियां अपने ममेरे, फुफेरे, चचेरे कजिन्स से…
“एक बार थोड़ा सा लिफ्ट दे दोगी न तो फिर वो सीधे बात वात करने के चक्कर में, चिट्ठी का चक्कर चालू हो जाएगा।
बस जिसको सेलेक्ट करोगी न उसी से, लेकिन कभी भी जब वो चिट्ठी दे तो लेने से मना मत करो, हाँ पहली चिट्ठी का जवाब मत देना। तड़पने देना और दूसरी चिट्ठी का बहुत छोटा सा लेकिन कभी भी चिट्ठी में नाम मत लिखना न उसका न अपना और राइटिंग बिगाड़ के लिखना।
और मिलने के लिए चेक वेक करने के लिए पिक्चर हाल से बढ़िया कुछ नहीं। हाँ सबसे पहले तेरे हाथ पे हाथ रखेगा वो, तो अपना हाथ हटा लेना। लेकिन दूसरी बार अगर दुबारा हाथ रखे तो मत हाथ हटाना।
हाँ अगर किस्सी विस्सी ले तो मना कर देना, लेकिन उभार पे तो हाथ रखेगा ही।
और दूसरी बार में तो वो नाप जोख किये बिना मानेगा नहीं। अगर अपना हाथ पकड़ के अपने औजार पे रखवाए तो थोड़ा बहुत नखड़ा करके मान जाना,
तो तुमको भी अंदाज लग जाएगा की पतंग की डोर आगे बढ़ाओ की नहीं?
और अगर तुझे पसंद आ गया तो फिर तो हफ्ते के अंदर ठुकवा लेना…”
कामिनी भाभी की बातों में बहुत दम था, अब गांव से कुछ दिन बाद लौट के जब घर पहुँचूगी तो कुछ तो करना होगा।
वरना, फिर वही पहले जैसा, मेरी सहेलियां मजे लूटेंगी, मुझे आके जलाएंगी और मैं वैसी की वैसी।
यहाँ तो कोई दिन नागा नहीं जाता, और वहां फिर वही…
“अरे मेरी ननद रानी, अब मायके लौटो न तो खूब खुल के ये जोबन दबवाओ, मिजवाओ, लौंडन को ललचाओ।
जो तेल और क्रीम दे रही हूँ न, बस ऊ लगाकर जाना, एकदम टनाटन रहेगा।
कितनो रगड़वाओगी, वैसे ही कड़ा रहेगा…”
मेरे उभार कस के दबाती मुश्कुराती कामिनी भाभी ने समझाया।
मेरी मुश्कान ने उनकी बात में हामी भरी।
उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघों के बीच साड़ी के ऊपर से चुनमुनिया को रगड़ रहा था। वो फिर बोलीं-
“अरे गपागप चुदवाओ न, मैं अइसन गोली दूंगी, खाली महीने में एक बार खाना होगा, जब महीना खतम हो उसी दिन फिर अगले महीने तक छुट्टी। कुल मलाई सीधे बच्चेदानी में लिलोगी न तब भी कुछ नहीं होगा। और एक बात और, चोदना खाली लौंडन का काम नहीं है। हमार असली ननद तब होगी जब खुद पटक के लौंडन को चोद दोगी…”
अब मैं बोली-
“एकदम भाभी, आपकी असली ननद हूँ, जब अगली बार आऊँगी तो देखियेगा, बताऊँगी सब किस्सा…”
लेकिन इस बीच गड़बड़ हो गई। खाना तो कब का खत्म हो गया था।
चम्पा भाभी और बसंती ने कामिनी भाभी के पति का जो हाल बयान किया था, मेरा मन बहुत कर रहा था, लेकिन अभी तो वो थे ही नहीं। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछ लिया-
सारी दोस्ती मस्ती एक मिनट में खत्म। उनका चेहरा तमक गया। मैं घबड़ा गई, क्या गलती हो गई मुझसे?
“तुम मुझे क्या बोलती हो?”
बहुत ठंडी आवाज में उन्होंने पूछा।
“भाभी, आपको भाभी बोलती हूँ…”
मैंने सहम के जवाब दिया।
“और मेरे ‘वो’ क्या लगे तुम्हारे?”
फिर उन्होंने पूछा।
अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया, और सुधारने का मौका भी मिल गया। दोनों कान पकड़ के बोली-
“गलती हो गई भाभी, भैया हैं मेरे, और आगे से आपको मैं भौजी बोलूंगी उनको भैया…”
सारा गुस्सा कामिनी भाभी का कपूर की तरह उड़ गया।
उन्होंने मुझे कस के बाँहों में भींच लिया और अपने बड़े-बड़े उभारों से मेरी कच्ची अमिया दबाती मसलती बोलीं-
“एकदम, तू हमार सच्च में असल ननद हो…”
फिर उन्होंने पूरा किस्सा बताया- जब वो शादी होकर आईं तो पता चला की उनकी कोई ननद नहीं है, सगी नहीं है, ये तो पता ही था। लेकिन कोई चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहन भी नहीं है उनके पति के उन्हें तब पता चला।
गाँव के रिश्ते से थी लेकिन असल रिश्ते वाली एकदम नहीं थी और आज उन्होंने मुझे अपनी वो ‘मिसिंग ननद’ बना लिया था।
“एकदम भौजी ओहमें कौनो शक?”
उनके मीठे-मीठे मालपूआ ऐसे गाल पे कचकचा के चुम्मा लेते मैंने बोला।
“डरोगी तो नहीं?” मेरी चुन्मुनिया रगड़ते उन्होंने पूछा।
“अगर डर गई भौजी तो आपकी ननद नहीं…” जवाब में उनकी चूची मैंने कस के मसल दी।
“मैंने तय किया था की मेरी जो असल ननद होगी न उसे भाईचोद बनाऊँगी और उनको पक्का बहनचोद, लेकिन कोई ननद थी नहीं…”
मुश्कुराते वो बोलीं।
“नहीं रही होगी लेकिन अब तो है न?”
उनकी आँखों में आँखें डाल के मैंने बोला।
और जवाब में मेरी साड़ी खोल के गचाक से एक उंगली उन्होंने मेरी कसी चूत में पेल दी।
“लेकिन भैया तो हैं नहीं?”
मैंने बोला, लेकिन मेरी बात का जवाब बिना दिए भाभी रसोई में वापस चली गईं।
हम दोनों बेडरूम में बिस्तर पर बैठे थे। जब वो लौटीं तो उनके हाथ में बड़ा सा ग्लास था। भौजी के हाथ में बखीर थी।
और वो भी मुझे तब पता चला जब एक कौर मेरे मुँह में चला गया।
बखीर- मुझे अच्छी तरह मालूम था ये क्या चीज है और उससे भी ज्यादा ये भी मालूम था कि इसका असर क्या होता है? गुड़ चावल की खीर, लेकिन अक्सर इसे ताजे गन्ने के रस में बनाते हैं और जितना ताजा गन्ने का रस हो और जितना ही पुराना चावल हो उसका मजा और असर उतना ही ज्यादा होता है।
गौने की रात दुल्हन को उसकी छोटी ननदें, जिठानियां गाँव में दुलहन को कमरे में भेजने के पहले इसे जरूर खिलाती हैं। दुलहन को उसके मायके में उसकी भौजाइयां, सहेलियां सब सीखा पढ़ा के भेजती हैं की किसी भी हालत में बखीर खाने से बचना और अगर बहुत मजबूरी हो तो बस रसम के नाम पे एक दो कौर, बस।
लेकिन यहां उसकी ननदें तैयार रहती हों, चाहे बहला फुसला के, चाहे जोर जबरदस्ती वो बिना पूरा खिलाये नहीं छोड़तीं। फायदा उनके भाई को होता है। अगर गौने की दुल्हन ने बखीर खा लिया तो वो… …
उसकी तासीर इतनी गरम होती है कि थोड़ी देर में ही खुद उसका मन करने लगता है, और मना करना या बहाने बनाना तो दूर, खुद उनका मन करता है की कितनी जल्दी भरतपुर का… …
और बाहर खड़ी, दरवाजे खिड़की से ननदियां कान चिपकाए इन्तजार करती रहती हैं की कब भाभी की जोर से कमरे के अंदर से जोर की चीख आये, और फिर तो बाहर खड़ी ननदों, जिठानियों की खिलखिलाहटें, मुँह बंद करके, खिस खिस, और थोड़ी दूर जाग रही सास, चचिया, ममेरी, फुफेरी सब, एक दूसरे को देखकर मुश्कुरातीं और अगले दिन जो ननदें भाभी को कमरे से लाने जाती हैं तभी से छेड़खानी।
मुझे इसलिए भी मालूम है की किस तरह अपनी भाभी को मैंने बहाने बना के, फुसला के बखीर खिलाई थी, एकलौती ननद होने के रिश्ते से ये काम भी मेरा था।
लेकिन कामिनी भाभी जितना बखीर खिला रही थीं वो उसके दुगुने से भी ज्यादा रहा होगा।
मैंने लाख नखड़े बनाये, ना नुकुर किया, लेकिन कामिनी भाभी के आगे किसी ननद की आज तक चली है की मेरी चलती।
वो अपने हाथ से बखीर खिला रही थीं की कहीं जोर से कुछ गिरने की या दरवाजा खुलने ऐसी आवाज हुई।
भाभी ने बखीर मुझे पकड़ा दी और बोलीं-
“उनके लौटने से पहले बखीर खत्म हो जानी चाहिए। उन्हें लगा की कोई चूहा है या कोई दरवाजा ठीक से नहीं बंद था…”
वो चली गईं और उनके आने में पांच दस मिनट लग गए।
मेरा ध्यान बस इसी में था की कौन सा चूहा है जिसे भगाने में भाभी को इतना टाइम लग गया।
वो लौटीं तो मैंने छेड़ा भी-
“भौजी कौन सा चूहा था, कितना मोटा था? आपका कोई पुराना यार तो नहीं था की मौका देखकर आपके बिल के चक्कर में?”
मेरी बात काट के मुश्कुराती बोलीं वो-
“सही कह रही हो बहुत मोटा था (अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के उन्होंने इशारा भी किया, ढाई तीन इंच मोटा होने का), और तुम्हारी बिलिया में घुसेगा घबड़ाओ मत। लेकिन बखीर खतम हुई की नहीं?”
और फिर उनके तगड़े हाथ ने जबरन मेरा गाल दबाया और दूसरे हाथ से बखीर लेके सीधे उन्होंने… पूरा खत्म करवा के मानी। वो बरतन किचेन में रखने गईं और मैं बिस्तर पे लेट गई, साड़ी से मैंने अपने उभार ढक लिए।
कामिनी भाभी के साथ चीजें इतने सहज ढंग से होती थीं की पता ही नहीं चला कब हम दोनों के कपड़े हमसे दूर हुए, कब बातें चुम्बनों में और चुम्बन सिसकियों में बदल गए। पहल उन्होंने ही की लेकिन कुछ देर में ही उन्होंने खुद मुझे ऊपर कर लिया, जैसे कोई नई नवेली दुल्हन उत्सुकतावश विपरीत रति करने की कोशिश में, खुद अपने पति के ऊपर चढ़ जाती है।
मैंने कन्या रस सुख पहले भी लिया था, लेकिन आज की बात अलग ही थी। आज तो जैसे 100 मीटर की दौड़ दौड़ने वाला, मैराथन में उतर जाय। कुछ देर तक मेरे होंठ उनके होंठों का अधर रस लेते रहे, उंगलियां उनके दीर्घ स्तनों की गोलाइयां नापने का जतन करती रहीं,
लेकिन कुछ ही देर में हम दोनों को लग गया की कौन ऊपर होना चाहिए और कौन नीचे।
कामिनी भाभी, हर तरह के खेल की खिलाड़िन, काम शास्त्र प्रवीणा मेरे ऊपर थीं लेकिन आज उन्हें भी कुछ जल्दी नहीं थी। उनके होंठ मेरे होंठ को सहला रहे थे, दुलरा रहे थे। कभी वो हल्के से चूम लेतीं तो कभी उनकी जीभ चुपके से मुँह से निकल के उसे छेड़ जाती और मेरे होंठ लरज के रह जाते।
मेरे होंठों ने सरेंडर कर दिया था। बस, अब जो कुछ करना है, वो करें।
और उनके होंठों ने खेल तमाशा छोड़कर, मेरे होंठों को गपुच लिया अधिकार के साथ, कभी वो चुभलातीं, चूसतीं अधिकार के साथ तो कभी हल्के से अपने दांतों के निशान छोड़ देती। और इसी के साथ अब कामिनी भाभी के खेले खाए हाथ भी मैदान में आ गए। मेरे उभार अब उन हाथों में थे, कभी रगड़तीं कभी दबाती तो कभी जोर-जोर से मिजतीं। मैं गिनगिना रही थी, सिसक रही थी अपने छोटे-छोटे चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी भी न, तड़पाने में जैसे उन्हें अलग मजा मिल रहा था। मेरी जांघें अपने आप फैल गई थीं, चुनमुनिया गीली हो रही थी। लेकिन वो भी न… लेकिन जब उन्होंने रगड़ाई शुरू की तो फिर, मेरी दोनों खुली जाँघों के बीच उनकी जांघें, मेरी प्यासी गीली चुनमुनिया के ऊपर उनकी भूखी चिरैया, फिर क्या रगड़ाई उन्होंने की? क्या कोई मर्द चोदेगा जैसे कामिनी भाभी चोद रही थीं।
और कुछ ही देर में वो अपने पूरे रूप में आ गईं, दोनों हाथ मेरे गदराये जोबन का रस ले रहे थे, दबा रहे थे, कुचल रहे थे, कभी निपल्स को फ्लिक करते तो कभी जोर से पिंच कर देते, और होंठ किसी मदमाती पगलाई तितली की तरह कभी मेरे गुलाल से गालों पे, तो कभी जुबना पे, और साथ में गालियों की बौछार, जिसके बिना ननद भाभी का रिश्ता अधूरा रहता है।
किसी लता की तरह मैं उनसे चिपकी थी, धीरे-धीरे अपने नवल बांके उभार भाभी के बड़े-बड़े मस्त जोबन से हल्के-हल्के रगड़ने की कोशिश कर रही थी।
मेरी चुनमुनिया जोर-जोर से फुदक रही थी, पंखे फैलाके उड़ने को बेताब थी। मैं पनिया रही थी। 8-10 मिनट, हालांकि टाइम का अहसास न मुझे था न मेरी भौजी को। मैं किनारे पर पहुँच गई, पहली बार नहीं, दूसरी तीसरी बार, लेकिन अबकी भाभी ने बजाय मुझे पार लगाने के, एकदम मझधार में छोड़ दिया।
शाम से ही यही हो रहा था, बंसती, गुलबिया और कामिनी भौजी, लेकिन अगले पल पता चला की हमला बंद नहीं हुआ, सिर्फ और घातक हो गया था। हम दोनों 69 की पोज में हो गए थे, भौजाई ऊपर और मैं नीचे।
और वहां भी वो शोले भड़का रही थीं। बजाय सीधे ‘वहां’ पहुँचने के उनके रसीले होंठों ने मेरी फैली खुली रेशमी जाँघों को टारगेट बनाया और कभी हल्के से लम्बे-लम्बे चाटना और कभी हल्के से किस, और बहुत बहुत धीमे-धीमे उनके होंठ मेरे आनद द्वार की ओर पहुँच गए, लेकिन कामिनी भाभी की गीली जीभ मेरे निचले होंठों के बाहरी दरवाजे के बाहर, बस हल्के-हल्के एक लाइन सी खींचती रही।
मैंने मस्ती से आँखें बंद कर ली थी, हल्के-हल्के सिसक रही थी। जोर से मेरी मुट्ठियों ने चादर दबोच रखी थी।
और जैसे कोई बाज झपट्टा मार के किसी नन्ही गौरैया को दबोच ले, बस वही हालत मेरी चुनमुनिया की हुई।
भाभी ने तो अपनी जीभ की नोक मेरी कसी-कसी रसीली गुलाबी चूत की फांकों के बीच डालकर दोनों होंठों को अलग कर दिया। उनकी जीभ प्रेम गली के अंदर थी, कभी सहलाती, कभी हल्के से प्रेस करती। मैं पनिया रही थी, गीली हो रही थी। फिर भाभी के दोनों होंठ… उन्होंने एक झपट्टे में दोनों फांको को दबोच लिया।
मैं सोच रही थी की वो अब चूस-चूसकर, लेकिन नहीं… उनके होंठ बस मेरे निचले होंठों को हल्के-हल्के दबाते रहे। रगड़ते रहे। लेकिन मेरी चूत में घुसी उनकी जीभ ने शैतानी शुरू कर दी। चूत के अंदर, कभी आगे-पीछे, कभी अंदर-बाहर, तो कभी गोल।
जवाब मेरे होंठों ने उनकी बुर पे देना शुरू किया लेकिन वहां भी वही हावी थीं। जोर-जोर से रगड़ना, मेरे होंठों को बंद कर देना… हाँ, कभी-कभी जब वो चाहती थीं की उनकी छुटकी ननदिया उनके छेड़ने का जवाब दे, तो पल भर के लिए मेरे होंठ आजाद हो जाते थे।
कामिनी भाभी की जाँघों की पकड़ का अहसास मुझे अच्छी तरह हो गया था, किसी मजबूत लोहे की सँड़सी की पकड़ से भी तेज, मेरा सर उनकी जाँघों के बीच दबा था, और मैं सूत भर भी हिल नहीं सकती थी। और नीचे उसी मजबूती से उनके दोनों हाथों ने मेरी दोनों जांघों को कस के फैला रखा था।
उन्होंने इतनी जोर से चूसा की मैं काँप गई और साथ में हल्के से क्लिट पे जो उन्होंने बाइट ली की, बस लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी।
बस मन कर रहा था की जैसे कोई मोटा लम्बा आके, मेरी चूत की चूल चूल ढीली कर दे, लेकिन भौजी मेरी झड़ने दे तब न… जैसे ही मैं किनारे पे पहुँची, उन्होंने मेरी चूत पर से अपने होंठ हटा लिए और जबरदस्त गाली दी-
“काहें ननदी छिनार, भाईचोदी, तेरे सारे खानदान की गाण्ड मरवाऊँ तोहरे भैया से, तोहरी चूत को चोद-चोद के भोसड़ा न बनाय दिया तो तुहारे भैया ने…”
मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया-
“भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”