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तीसवीं फुहार-
भैय्या का फँस गया, धंस गया, अंड़स गया
मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया- “
भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”
जवाब भौजी ने अपने स्टाइल से दिया, दो उंगली से पूरी ताकत से उन्होंने चूत की दोनों फांकें फैला दिया और एक बार में जैसे कोई लण्ड पेले, गचाक से अपनी जीभ पूरी अंदर ठेल दिया और उनके दोनों होंठ जैसे कोई संतरे की फांक चूसे वैसे पहले धीमे-धीमे फिर जोर-जोर से, और उनकी शैतान उंगलियां भी खाली नहीं थीं।
जाँघों को सहलाते सहलाते सीधे क्लिट पे,
मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिवाय अपने छोटे-छोटे कुंवारे चूतड़ मस्ती में बिस्तर पे पटकने के।
मुँह तो हमारा एक बार फिर भौजी की बुर ने कस के बंद कर दिया था और अब उनका इशारा समझ के मैं भी जोर-जोर से चूस रही थी। भाभी की जाँघों ने न सिर्फ मेरे सर को दबोच रखा था बल्की सीधे वो मेरी दोनों नरम कलाई पे थीं इसलिए मैं हाथ भी नहीं हिला सकती थी। नीचे मैं पनिया रही थी और ऊपर भाभी की चूत से भी एक तार की चाशनी निकलनी शुरू हो गई थी। क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुँह चोदेगा, जिस ताकत से कामिनी भाभी मेरा मुँह चोद रही थीं।
क्या मस्त स्वाद था, लेकिन इस समय मन कर रहा था बस एक मोटे लम्बे… मैं तो बोल नहीं सकती थी,
भौजी ही बोली-
“कहो छिनार, चाही न तोहें मोटा लण्ड?”
मैं जवाब देने की हालत में नहीं थी क्योंकी एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुँह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी।
तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगों को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।
भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था
लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलियां कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं।
मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी, एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास,
मेरी चूत की दरार के बीच… जब तक मैं सम्हलूँ, दो तीन धक्के पूरी ताकत से, और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में।
मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी-मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था।
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
दर्द के मारे जान निकली जा रही थी। बस चीख नहीं पा रही थी क्योंकी कामिनी भाभी ने अपनी गीली बुर से मेरे मुँह को कस के दबोच रखा था। मैं छटपटा रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी की तगड़ी मोटी जाँघों की पकड़ से हिलना भी मुश्किल था, ऊपर से अपनी देह से उन्होंने मुझे पूरी ताकत से दबा रखा था। उनके होंठ मेरी चूत से हट जरूर गए थे, लेकिन उनकी दोनों हाथ की उंगलियों ने चूत को फैला रखा था।
अभी तक मैं लण्ड के लिए तड़प रही थी लेकिन बस अब मन कर रहा था की बस किसी तरह ये मोटा बांस निकल जाय।
चूत फटी पड़ रही थी।
भाभी के होंठों ने एक बार फिर चूत के किनारे को चाटना शुरू कर दिया। और कुछ देर में ही मेरी फूली पगलाई बौराई क्लिट भौजी के दुष्ट होंठों के बीच थी।
चूसते-चूसते उन्होंने हल्के से एक बाइट ली और फिर मेरा बाँध टूट गया।
साथ में जोरदार धक्कों के साथ सुपाड़ा पूरा अंदर… पता नहीं मैं चूत में सुपाड़े के धक्के से झड़ी
या भौजी ने जो जम के क्लिट चूसी, काटी थी।
लेकिन अब सब दर्द भूल के मैं सिसक रही थी, चूतड़ हल्के-हल्के ऊपर उचका रही थी और मौके का फायदा उठा के कभी गोल-गोल घुमा के, तो कभी पूरी ताकत से, सुपाड़े के साथ-साथ अब लण्ड भी थोड़ा सा अंदर पैबस्त हो गया था, करीब ⅓, दो तीन इंच। और झड़ना रुकने के साथ ही एक बार उस चूत फाडू दर्द का अहसास फिर से शुरू हो गया।
लेकिन अब कामिनी भाभी मेरे ऊपर से उठ गई, लेकिन उठने के पहले मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं-
“छिनरो अब चाहे जितना चूतड़ पटको, सुपाड़ा तो गटक ली हो, अब बिना चोदे आई लण्ड निकलने वाला नहीं है। भाईचोद तो बन ही गई, अब आराम से चूतड़ उठा-उठा के अपने भैय्या का लण्ड घोंटों, मस्ती से चुदवाओ। चलो देख लो अपने भैय्या को…”
भौजी भैया को भी क्यों छोड़तीं, उनको भी लपेटा कामिनी भाभी ने-
“क्यों मजा आ रहा है न बहिन चोदने में? अरे हचक्क के चोदो छिनार को, दोनों चूची पकड़ के कस-कस के… उहू के याद रहे भैया से चोदवाये क मजा…”
मैंने हल्के-हल्के आँखें खोलीं।
मस्त हवा चल रही थी। बादलों और चांदनी की लुका छिपी में इस समय चाँद ने अपना घूँघट हटा दिया था और बेशर्म की तरह खुली खिड़की से उतरकर सीधे कमरे में बैठा था। खिड़की से एक ओर आम का घना बाग और दूसरी ओर दूर तक गन्ने का खेत दिख रहा था।
बारिश कब की थम चुकी थी, लेकिन कभी-कभी घर की खपड़ैल से और आम के पेड़ों से पानी की टपटप बूंदें गिर रही थीं।
और मैंने उनको देखा, कामिनी भाभी के ‘उनको’
ऊप्स ‘भैय्या’ को।
कामिनी भाभी ने मुझे कसम धरा दी थी की ‘उनको’ मैं भैया ही बोलूं, और मैं मान भी गई थी।
खूब गठा बदन, चौड़ा सीना, हाथों की मछलियां साफ दिख रही थी। ताकत छलक रही थी, और कैसी ललचाई निगाह से मुझे देख रहे थे, मेरे ऊपर झुके हुए।
कामिनी भौजी भी दूर नहीं गई थीं, मेरे सिरहाने ही बैठी थीं। मेरा सर अपनी गोद में लेकर, हल्के-हल्के दुलराते मेरा माथा सहला रही थीं। चिढ़ाते हुए कामिनी भौजी बोलीं-
“अरे ले लो न अब काहें ललचा रहे हो? अब तो तोहार बहिनिया तोहरे नीचे है…”
वो झुके, मुझे लगा मेरे होंठ… मेरी पलकें काँपकर अपने आप बंद हो गईं,
लेकिन उनके होंठ सीधे मेरे जुबना पर, एक निपल उनके होंठों में और दूसरा उनके हाथों के बीच। लेकिन बिना किसी जल्दीबाजी के, होंठ चुभलाते चूसते और हाथ धीरे-धीरे मेरे मस्त उभार रगड़ते मसलते।
मुझे चम्पा भाभी की बात याद आई, उन्होंने मुझे मेले में देखा था और तबसे मेरे जोबन ने उनकी नींद चुरा ली थी और बसंती ने भी यही बात कही थी की सिर्फ वोही नहीं गाँव के सारे मर्द मेरी मस्त चूचियों पे मरते हैं। मैंने निगाहे खोल दी और नीचे ले गई चोरी-चोरी, और सिहर गई।
उफ्फ्फ… कितना मोटा था, मैंने अब तक कितनों का घोंटा था, सुनील, अजय, दिनेश का… लेकिन किसी का भी, तो इतना नहीं था… ये तो एकदम मोटा बांस…
लेकिन मेरी चोरी पकड़ी गई, पकड़ने वाली और कौन, मेरी भौजी, कामिनी भौजी।
चोरी-चोरी मुझे देखते उन्होंने पकड़ लिया और कान में फुसफुसा के बोली-
“अरे ननद रानी तोहरे भैया का है, काहें छुप के देख रही हो। पसंद आया न? अब घोंटो गपागप्प…”
दर्द के मारे चूत फटी जा रही थी, फिर भी मैं मुश्कुरा पड़ी, भौजी भी न…
मुझे बसंती की बात याद आ रही थी, मर्द की चुदाई की बात और होती है? एकदम सही बोली थी वो। दर्द भी मज़ा भी। कोई और लड़का होता तो सिर्फ सुपाड़ा घुसा के छोड़ता थोड़े ही, उसे तो जल्द से जल्द पूरा घुसाने की जल्दी रहती। जैसे कोई दौड़ जीतनी हो, कुछ साबित करना हो, लेकिन जैसा बसंती ने बोला था मर्द सब मज़ा लेना भी जानते हैं और देना भी।
कुछ ही देर में मेरी चूत में दर्द का अहसास कम होने लगा, एक मीठी टीस थी अभी भी लेकिन इसके साथ जिस तरह वह चूत के ऊपरी नर्व्स को रगड़ रही थी, एक नए तरह का मजा भी मिल रहा था, सिसक भी रही थी, उफ्फ उफ्फ भी कर रही थी। और चूची की रगड़ाई मसलाई भी बहुत तेज हो गई थी। जैसे कोई आटा गूंथे वैसे।
पर कामिनी भौजी कहाँ चुप बैठने वाली थीं, उन्होंने उकसाया-
“अरे हचक-हचक के पेल दो पूरा लण्ड न… इस छिनार को आधे तीहे में मजा नहीं आता। चोद-चोद के एहकी बुरिया को आज भोसड़ा बना दो। तोहरी बहिन के इहाँ से रंडी बना के भेजूंगी…”
भैया ने मेरी दोनों चूचियां छोड़ दी, एक हाथ कमर पे, एक मेरे छोटे-छोटे कड़े चूतड़ों पे। थोड़ा सा सुपाड़ा उन्होंने बाहर निकाला और फिर क्या करारा धक्का मारा, कि मेरी आँखों के आगे तारे नाच गए।
भैय्या का फँस गया, धंस गया, अंड़स गया
मैं भी कौन कम थी, अपनी भाभी की चुलबुली ननद, मैंने भी मुँह बना के जवाब दिया- “
भौजी आपके मुँह में घी शक्कर लेकिन भैया हैं कहाँ?”
जवाब भौजी ने अपने स्टाइल से दिया, दो उंगली से पूरी ताकत से उन्होंने चूत की दोनों फांकें फैला दिया और एक बार में जैसे कोई लण्ड पेले, गचाक से अपनी जीभ पूरी अंदर ठेल दिया और उनके दोनों होंठ जैसे कोई संतरे की फांक चूसे वैसे पहले धीमे-धीमे फिर जोर-जोर से, और उनकी शैतान उंगलियां भी खाली नहीं थीं।
जाँघों को सहलाते सहलाते सीधे क्लिट पे,
मेरे पास कोई जवाब नहीं था सिवाय अपने छोटे-छोटे कुंवारे चूतड़ मस्ती में बिस्तर पे पटकने के।
मुँह तो हमारा एक बार फिर भौजी की बुर ने कस के बंद कर दिया था और अब उनका इशारा समझ के मैं भी जोर-जोर से चूस रही थी। भाभी की जाँघों ने न सिर्फ मेरे सर को दबोच रखा था बल्की सीधे वो मेरी दोनों नरम कलाई पे थीं इसलिए मैं हाथ भी नहीं हिला सकती थी। नीचे मैं पनिया रही थी और ऊपर भाभी की चूत से भी एक तार की चाशनी निकलनी शुरू हो गई थी। क्या कोई मर्द किसी लौंडिया का मुँह चोदेगा, जिस ताकत से कामिनी भाभी मेरा मुँह चोद रही थीं।
क्या मस्त स्वाद था, लेकिन इस समय मन कर रहा था बस एक मोटे लम्बे… मैं तो बोल नहीं सकती थी,
भौजी ही बोली-
“कहो छिनार, चाही न तोहें मोटा लण्ड?”
मैं जवाब देने की हालत में नहीं थी क्योंकी एक तो कामिनी भाभी ने पूरी ताकत से अब अपनी बुर से मेरा मुँह बंद कर रखा था और दूसरे अबकी मैं तीसरी बार झड़ने के कगार पे थी।
तबतक किसी ने मेरी दोनों लम्बी टांगों को पकड़ के अपने मजबूत कंधे पे रख लिया।
भाभी ने अपने होंठ मेरी गीली कीचड़ भरी चूत से हटा लिया था
लेकिन उनके दोनों हाथों की उंगलियां कस के मेरे निचले होंठों को फैलाये हुयें थीं।
मैं एकदम हिलने की हालत में नहीं थी और तभी जो मैं चाह रही थी, एक खूब मोटे गरम सुपाड़े का अहसास,
मेरी चूत की दरार के बीच… जब तक मैं सम्हलूँ, दो तीन धक्के पूरी ताकत से, और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत में।
मैं दर्द से कराह रही थी, लेकिन कामिनी भाभी ने ऊपर से ऐसे मुझे दबोच रखा था की न मैं हिल सकती थी न चीख सकती थी। ऊपर उनकी मोटी-मोटी जाँघों ने मेरे चेहरे को दबा रखा था।
सिर्फ दर्द का अहसास था और इस बात का की एक खूब मोटा पहाड़ी आलू ऐसा सुपाड़ा बुरी तरह मेरी बुर में धंसा है।
दर्द के मारे जान निकली जा रही थी। बस चीख नहीं पा रही थी क्योंकी कामिनी भाभी ने अपनी गीली बुर से मेरे मुँह को कस के दबोच रखा था। मैं छटपटा रही थी।
लेकिन कामिनी भाभी की तगड़ी मोटी जाँघों की पकड़ से हिलना भी मुश्किल था, ऊपर से अपनी देह से उन्होंने मुझे पूरी ताकत से दबा रखा था। उनके होंठ मेरी चूत से हट जरूर गए थे, लेकिन उनकी दोनों हाथ की उंगलियों ने चूत को फैला रखा था।
अभी तक मैं लण्ड के लिए तड़प रही थी लेकिन बस अब मन कर रहा था की बस किसी तरह ये मोटा बांस निकल जाय।
चूत फटी पड़ रही थी।
भाभी के होंठों ने एक बार फिर चूत के किनारे को चाटना शुरू कर दिया। और कुछ देर में ही मेरी फूली पगलाई बौराई क्लिट भौजी के दुष्ट होंठों के बीच थी।
चूसते-चूसते उन्होंने हल्के से एक बाइट ली और फिर मेरा बाँध टूट गया।
साथ में जोरदार धक्कों के साथ सुपाड़ा पूरा अंदर… पता नहीं मैं चूत में सुपाड़े के धक्के से झड़ी
या भौजी ने जो जम के क्लिट चूसी, काटी थी।
लेकिन अब सब दर्द भूल के मैं सिसक रही थी, चूतड़ हल्के-हल्के ऊपर उचका रही थी और मौके का फायदा उठा के कभी गोल-गोल घुमा के, तो कभी पूरी ताकत से, सुपाड़े के साथ-साथ अब लण्ड भी थोड़ा सा अंदर पैबस्त हो गया था, करीब ⅓, दो तीन इंच। और झड़ना रुकने के साथ ही एक बार उस चूत फाडू दर्द का अहसास फिर से शुरू हो गया।
लेकिन अब कामिनी भाभी मेरे ऊपर से उठ गई, लेकिन उठने के पहले मेरे कान में फुसफुसा के बोलीं-
“छिनरो अब चाहे जितना चूतड़ पटको, सुपाड़ा तो गटक ली हो, अब बिना चोदे आई लण्ड निकलने वाला नहीं है। भाईचोद तो बन ही गई, अब आराम से चूतड़ उठा-उठा के अपने भैय्या का लण्ड घोंटों, मस्ती से चुदवाओ। चलो देख लो अपने भैय्या को…”
भौजी भैया को भी क्यों छोड़तीं, उनको भी लपेटा कामिनी भाभी ने-
“क्यों मजा आ रहा है न बहिन चोदने में? अरे हचक्क के चोदो छिनार को, दोनों चूची पकड़ के कस-कस के… उहू के याद रहे भैया से चोदवाये क मजा…”
मैंने हल्के-हल्के आँखें खोलीं।
मस्त हवा चल रही थी। बादलों और चांदनी की लुका छिपी में इस समय चाँद ने अपना घूँघट हटा दिया था और बेशर्म की तरह खुली खिड़की से उतरकर सीधे कमरे में बैठा था। खिड़की से एक ओर आम का घना बाग और दूसरी ओर दूर तक गन्ने का खेत दिख रहा था।
बारिश कब की थम चुकी थी, लेकिन कभी-कभी घर की खपड़ैल से और आम के पेड़ों से पानी की टपटप बूंदें गिर रही थीं।
और मैंने उनको देखा, कामिनी भाभी के ‘उनको’
ऊप्स ‘भैय्या’ को।
कामिनी भाभी ने मुझे कसम धरा दी थी की ‘उनको’ मैं भैया ही बोलूं, और मैं मान भी गई थी।
खूब गठा बदन, चौड़ा सीना, हाथों की मछलियां साफ दिख रही थी। ताकत छलक रही थी, और कैसी ललचाई निगाह से मुझे देख रहे थे, मेरे ऊपर झुके हुए।
कामिनी भौजी भी दूर नहीं गई थीं, मेरे सिरहाने ही बैठी थीं। मेरा सर अपनी गोद में लेकर, हल्के-हल्के दुलराते मेरा माथा सहला रही थीं। चिढ़ाते हुए कामिनी भौजी बोलीं-
“अरे ले लो न अब काहें ललचा रहे हो? अब तो तोहार बहिनिया तोहरे नीचे है…”
वो झुके, मुझे लगा मेरे होंठ… मेरी पलकें काँपकर अपने आप बंद हो गईं,
लेकिन उनके होंठ सीधे मेरे जुबना पर, एक निपल उनके होंठों में और दूसरा उनके हाथों के बीच। लेकिन बिना किसी जल्दीबाजी के, होंठ चुभलाते चूसते और हाथ धीरे-धीरे मेरे मस्त उभार रगड़ते मसलते।
मुझे चम्पा भाभी की बात याद आई, उन्होंने मुझे मेले में देखा था और तबसे मेरे जोबन ने उनकी नींद चुरा ली थी और बसंती ने भी यही बात कही थी की सिर्फ वोही नहीं गाँव के सारे मर्द मेरी मस्त चूचियों पे मरते हैं। मैंने निगाहे खोल दी और नीचे ले गई चोरी-चोरी, और सिहर गई।
उफ्फ्फ… कितना मोटा था, मैंने अब तक कितनों का घोंटा था, सुनील, अजय, दिनेश का… लेकिन किसी का भी, तो इतना नहीं था… ये तो एकदम मोटा बांस…
लेकिन मेरी चोरी पकड़ी गई, पकड़ने वाली और कौन, मेरी भौजी, कामिनी भौजी।
चोरी-चोरी मुझे देखते उन्होंने पकड़ लिया और कान में फुसफुसा के बोली-
“अरे ननद रानी तोहरे भैया का है, काहें छुप के देख रही हो। पसंद आया न? अब घोंटो गपागप्प…”
दर्द के मारे चूत फटी जा रही थी, फिर भी मैं मुश्कुरा पड़ी, भौजी भी न…
मुझे बसंती की बात याद आ रही थी, मर्द की चुदाई की बात और होती है? एकदम सही बोली थी वो। दर्द भी मज़ा भी। कोई और लड़का होता तो सिर्फ सुपाड़ा घुसा के छोड़ता थोड़े ही, उसे तो जल्द से जल्द पूरा घुसाने की जल्दी रहती। जैसे कोई दौड़ जीतनी हो, कुछ साबित करना हो, लेकिन जैसा बसंती ने बोला था मर्द सब मज़ा लेना भी जानते हैं और देना भी।
कुछ ही देर में मेरी चूत में दर्द का अहसास कम होने लगा, एक मीठी टीस थी अभी भी लेकिन इसके साथ जिस तरह वह चूत के ऊपरी नर्व्स को रगड़ रही थी, एक नए तरह का मजा भी मिल रहा था, सिसक भी रही थी, उफ्फ उफ्फ भी कर रही थी। और चूची की रगड़ाई मसलाई भी बहुत तेज हो गई थी। जैसे कोई आटा गूंथे वैसे।
पर कामिनी भौजी कहाँ चुप बैठने वाली थीं, उन्होंने उकसाया-
“अरे हचक-हचक के पेल दो पूरा लण्ड न… इस छिनार को आधे तीहे में मजा नहीं आता। चोद-चोद के एहकी बुरिया को आज भोसड़ा बना दो। तोहरी बहिन के इहाँ से रंडी बना के भेजूंगी…”
भैया ने मेरी दोनों चूचियां छोड़ दी, एक हाथ कमर पे, एक मेरे छोटे-छोटे कड़े चूतड़ों पे। थोड़ा सा सुपाड़ा उन्होंने बाहर निकाला और फिर क्या करारा धक्का मारा, कि मेरी आँखों के आगे तारे नाच गए।
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