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Erotica सोलवां सावन

Milflover29

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क्या खूब लिखती है आप, आंखों के आगे फिल्म चलने लगतीहै।इतनी खूबसूरत लिखन की तारीफ़ के लिए शब्द कम पर जाते हैं। मैने आपकी काफी कहानियों पनि हैं।
 

komaalrani

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क्या खूब लिखती है आप, आंखों के आगे फिल्म चलने लगतीहै।इतनी खूबसूरत लिखन की तारीफ़ के लिए शब्द कम पर जाते हैं। मैने आपकी काफी कहानियों पनि हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद , थ्रेड पर पधारने का, इस भीगी भीगी कहानी को पढ़ने का और इतने प्यारे रस भरे शब्दों का, पुनश्च धन्यवाद
 

komaalrani

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***** *****इकतीसवीं फ़ुहार

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मेरी नींद जब खुली तो बाहर अभी भी पूरा अँधेरा था। मैं करवट लिए लेटी थी, सामने की ओर कामिनी भाभी और पीछे उनके पति, भैया।

सोते समय भी उन्होंने पीछे से मुझे कस के दबोच रखा था, एक हाथ उनका मेरे एक उभार पे था।


दूसरा उभार भौजी के हाथ में था।



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रात अभी बाकी थी। मैंने फिर सोने की कोशिश की तो लगा मेरे उठने के चक्कर में कामिनी भाभी की नींद भी टूट गई थी। कामिनी भाभी की उंगलियां अब मेरे जोबन पे हल्के-हल्के रेंगने लगी थीं।

मै डर गई।

कहीं भैय्या भी जाग गए, और वो दोनों लोग मिल के चालू हो गए तो?





अभी भी नीचे बहुत दर्द हो रहा था। मैंने झट से आँखें बंद कर ली और फिर से सोने की ऐक्टिंग करने लगी।



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लेकिन बचत नहीं थी। लगता है मेरे हिलने डुलने से कामिनी भाभी के पति की भी नींद खुल गई और मेरे उभार पे जो उन्होंने हाथ सोये में रखा था, वो हल्के-हल्के उसे दबाने सहलाने लगा।





मैंने खर्राटे की एक्टिंग की और ऐसे की जैसे मुझे पता न चल रहा हो की वो दोनों जग गए हैं।

लेकिन कामिनी भाभी भी न… उनसे कौन ननद बच पाई है जो मैं बच पाती? झट से दूसरे हाथ से गुदगुदी लगानी शुरू कर दी और बोलीं-




“मेरी बिन्नो, आई छिनारपना कहीं और करना, मुझे सब मालूम है कि अच्छी तरह जग गई हो, अब नौटंकी मत करो…”


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खिलखिलाते हुए मैंने आँखें खोल दी और करवट से अब सीधे पीठ के बल लेट गई।

बस मुझे दोनों ने बाँट लिया, एक उभार भैया के हाथ में तो दूसरा भौजी ने दबोच रखा था। और सिर्फ चूचियां ही नहीं गाल भी, एक पे कामिनी भौजी हल्के-हल्के किस कर रही थी

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तो दूसरे पे लिक करते-करते उन्होंने कचकचा के गाल काट लिया।

“उईई… आह्ह्ह… लगता है…”

मैं जोर से चीखी। नींद अच्छी तरह भाग गई।

“सब कुछ तो ले लिहला, गाल जिन काटा, भैय्या बहुते खराब तू त बाटा…”




भौजी ने मुझे चिढ़ाया लेकिन भैय्या को और उकसाया-

“अरे अस मालपुआ जस गाल है, खूब मजे ले कचकचा के काटा, दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं…”

भैय्या कभी भौजी की बात टालते नहीं थे, तो उन्होंने एक फिर उसी जगह पे दुहरी ताकत से… और अबकी जो गाल पे निशान पड़ा तो सचमुच में तीन चार दिन से पहले नहीं मिटने वाला था। वो खूब मस्ता रहे थे।


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उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूची अब जोर-जोर से पकड़ ली थी और खूब कस-कस के मीज रहे थे।

भौजी दोनों ओर से आग लगा रही थीं, वैसे उन्होंने मुझे खुद अपनी असली ननद बनाया था तो कुछ मेरा हक तो बनता ही था न। उन्होंने अब मेरी साइड ली और कान में फुसफुसाया-

“सिर्फ वही थोड़ी पकड़ सकते हैं, तू भी तो पकड़ा पकड़ी कर सकती है। उनके पास भी तो है पकड़ने के लिए?”

भौजी का इशारा काफी था। वैसे भी ‘वो’ थोड़ा सोया थोड़ा जागा बहुत देर से मेरे पिछवाड़े पड़ा था। और जब वो जग जाता तो इतना मोटा हो जाता की मेरी मुट्ठी में समाता ही नहीं। बस मैंने पकड़ लिया। अभी भी थोड़ा थोड़ा सोया ही था।



सिर्फ पकड़ने से थोड़े ही होता है, मैंने हल्के-हल्के मुठियाना भी शुरू कर दिया।



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डरती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, अभी थोड़ी देर पहले ही पूरा घोंट चुकी थी। फिर अजय सुनील ने पकड़वाके और चन्दा मेरी सहेली, चम्पा भाभी, बसंती की संगत में मुठियाना, रगड़ना सीख भी गई थी। फिर जब हम तीनों अच्छी तरह जग गए थे तो उसके सोने का क्या मतलब?

भैया जोर-जोर से मेरी चूचियां मसल रहे थे, मजे ले ले के मेरे मुलायम मुलायम गाल काट रहे थे। कामिनी भाभी भी दूसरे उभार को अपनी मुट्ठी में ले के मजे ले रही थी। और मैं भी इन दोनों के साथ, और ‘उसे’ ले के जोर-जोर से मुठिया रही थी।

नतीजा वही हुआ जो होना था, शेर अंगड़ाई ले के जाग गया।

पर बसंती, गुलबिया का सिखाया पढ़ाया, मैंने एक झटके से खींचा तो सुपाड़ा खुल गया।





खूब मोटा, एकदम कड़ा, लेकिन था तो मेरी मुट्ठी में, मुझे एक और शरारत सूझी। मैंने अंगूठे से सुपाड़े पे रगड़ दिया, और वो मस्ती से गिनगिना उठे।

भौजी ने मस्ती से, कुछ तारीफ से मेरी ओर देखा।

मेरी शैतानी और बढ़ गई, और मैंने अंगूठे को सीधे ‘पी-होल’ (पेशाब के छेद) पे लगाकर हल्के से दबा दिया।



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अब भैय्या के पास जवाब देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उनका अपना एक हाथ मेरी दोनों जाँघों के बीच पहुँच गया और उंगलियां प्रेम गली की ओर बढ़ने लगीं।

बुर मेरी अभी भी किसी ताजी चोट की तरह दुःख रही थी। जांघें भी दर्द से फटी पड़ रही थीं। मुझे डर लगा की कहीं भैया दुबारा मेरी बुर तो नहीं… बुरी हालत थी बुर की। मैंने उसी अदालत में गुहार लगाई-


“भौजी, भैय्या से बोलिए वहां नहीं, प्लीज वहां नहीं…”

“अरे वहां नहीं, मतलब कहाँ नहीं? नाम डुबो देगी मेरा, बोल साफ-साफ?” उलटे कामिनी भाभी की डांट पड़ गई।

“भौजी, भैय्या से बोल दीजिये, उन्हें मना कर दीजिये, बहुत दुःख रहा है, भईया से कहिये दीजिये मेरी… मेरी चूत मत चोदें। चूत बहुत दुःख रही है…”

भैय्या ने दूसरा रास्ता निकाला, उन्होंने अपनी उंगली मेरी चूत के मुहाने पे लगा दी और अभी कुछ देर पहले लण्ड के जो धक्के उसने खाए थे, जो चोटें लगी थी, दर्द से मैं दुहरी हो गई।




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जोर से चीख उठी- “भौजी नहींईऽऽऽ उंगली भी नहीं, चूत में कुछ मत डालें, मना करिये न उन्हें…”

और अब डांट भैय्या को पड़ी-

“सुन नहीं रहे हो क्या बोल रही है बिचारी? इसकी चूत को हाथ भी मत लगाओ, न चोदना, न उंगली करना…”

भौजी को देखकर मैंने जोर-जोर से हामी में सर हिलाया।

भइया ने तुरंत हाथ हटा दिया। प्यार से मेरे बाल सहलाते बोले-

“न बुर चोदना है न बुर में उंगली करना है, क्यों बिन्नो?”

मैंने खुशी में मुश्कुराते हुए हामी में सर हिलाया। लेकिन भैया को भी तो थैंक्स देना था, उनके सामने से रसमलाई हटा ली थी मैंने, कहीं गुस्सा न हो जाएं। तो मुड़ के मैंने उन्हें देखकर भी एक किस सीधे उनके लिप्स पे दिया और फिर एक बार जोर से मुठियाने लगी।

भैय्या की जीभ मेरे मुँह में थी और मैं उसे प्यार से चूस रही थी। भैया मेरे दोनों उभार अब जोर-जोर से मसल रहे थे और मैं उनके भी दूने जोर से उनका लण्ड दबा रही थी, मसल रही थी, मुठिया रही थी।





भाभी मुझे हल्के-हल्के चूम रही थीं, फिर मेरे कान में बोली-


“तूने उसे तो एकदम खड़ा कर दिया और फिर चुदवाने से भी मना कर दिया। कम से कम एकाध चुम्मी तो दे दे उसे…”



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उसमें मुझे कोई ऐतराज नहीं था। अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।
 
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चुसम चुसववल




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अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।


और जब तक मैं कुछ समझूँ, भैय्या सरक के पलंग के सिरहाने, और ‘वो’ एकदम मेरे रसीले होंठों के पास।

“जोर से आऽऽ बोल जैसे एक बार में पूरा लड्डू घोंटती है न, खोल पूरा मुँह…”

भौजी बोलीं।

और मैंने भी पूरी ताकत से मुँह खोल दिया, एक बार में पूरा सुपाड़ा, और भैय्या ने जो मेरा सर पकड़ के धक्का मारा, तो आधा लण्ड मेरे मुँह में था।



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आलमोस्ट गले तक। चूसा मैंने पहले भी था, लेकिन… जो मजा अभी आ रहा था, इतना बड़ा, इतना मोटा, इतना कड़ा। पूरा मुँह मेरा भर गया था, गाल फूल गए थे, ऊपर तलुवे तक रगड़ खा रहा था और नीचे से मेरी जीभ चपड़-चपड़ चाट रही थी, होंठ लण्ड को दबोचे हल्के-हल्के दबा रहे थे।



कुछ देर पहले जैसे अंगूठे और तरजनी के बीच मैं उसे पकड़े थी, अब मुझे भी आदत हो गई थी, पकड़ने की रगड़ने की। और एक मजा लेने के बाद मैं क्यों मौका छोड़ती? एक बार फिर से लण्ड के बेस पे मेरी मुट्ठी ने उसे पकड़ लिया, हल्के-हल्के दबाते सहलाते आगे-पीछे, आगे-पीछे, चाट भी रही थी, चूस भी रही थी, मुठिया भी रही थी।

कितना मजा आ रहा था मुझे बता नहीं सकती।

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उन्हें कोई जल्दी नहीं थी न कोई धक्का, न पुश, बस अपने मुँह में उस कड़े मोटे खूंटे का मजा मैं ले रही थी और मेरे गरम-गरम, मखमली किशोर मुँह का मजा वो।

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मजा आ गया पढते2 कहीं खो जाता है मन। सुंदर कोमल जी।
 
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बत्तीसवीं फुहार

बंधे हाथ और मजा गन्ना चूसने का



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हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और कामिनी भाभी मुझे, तारीफ भरी निगाहों से। उनकी छुटकी ननदिया इतना मस्त चूस रही थी।

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“तनी जोर का धक्का मारो न, पूरा गन्ना चुसाओ, हमरी छिनार ननदिया को आधे तीहे में मजा नहीं आता…”

भैय्या ने अब पहली बार अपने चूतड़ के पूरे जोर से ठेला और मेरे तलुवे को छीलता, आलमोस्ट गले तक… मैं गों गों करती रही लेकिन मेरा मुँह भर गया था।

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मेरे दोनों हाथ फ्री थे, लेकिन भौजी और भैय्या के भी दोनों हाथ फ्री थे, दो के मुकाबले चार।


जबतक मैं गों गों कर रह थी, भौजी ने मेरी दोनों नरम कलाइयां पकड़ के एक दूसरे पर क्रास करा के बाँध दी।



एक पल के लिए भैया ने मेरे बंधे हाथों को पकड़ा और भाभी ने फिर आराम से पलंग के सिरहाने से कस-कस के मेरे हाथों को बांध दिया। हिला डुला के उन्होंने चेक भी कर लिया की मैं इंच बराबर भी हाथ नहीं हिला सकती।


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लेकिन मुझे इस की कोई फिक्र नहीं थीं, मैं तो मजे से भैय्या का गन्ना चूसने का मजा ले रही थी।

“अरे तोहरी बहिनिया ने बुर चोदने को मना किया था, बुर में उंगली करने को मना किया था, और कुछ चोदने को थोड़े ही मना किया था, तोहार चुदवासी, भाईचोद छिनार बहिनिया ने। तो मजा ले ले के मुँह चोदो उसका। बिचारी की शहर में कहाँ ऐसा मोटा गन्ना मिलेगा…”

भौजी की बात भैय्या न माने?



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उन्होंने मेरे मुँह में धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी। उनकी देह अब इस तरह से मुझ पे छा गई थी की मुझे कुछ नहीं दिख रहा था, और वैसे भी मस्ती में मेरी आँखें बंद थीं। बात भौजी की एकदम सही थी, शहर में मुझे ये मौका नहीं मिलने वाला था। वहां तो मैं पढ़ाकू, सीधी सादी, छुई मुई लजीली…

और मैंने चूसने की रफ़्तार और तेज कर दी।



मेरे चूतड़ जोर से उचके, जैसे करेंट मार गया हो। भौजी की जीभ मेरी चूत पे, वो हल्के-हल्के चाट रही थी। बात मेरी मानी थी उन्होंने, चूत में उंगली क्या जीभ भी अंदर घुसाने की कोशिश नहीं की उन्होंने, लेकिन उनका चाटना ही… मैं जल्द झड़ने के कगार पे पहुँच गई।


लेकिन अगर एक बार में वो झाड़ दें तो कामिनी भाभी क्या?

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कामिनी भाभी को जितना मजा ननदों को मजा देने में, उनसे मजा लेने में आता था, उससे ज्यादा मजा उन्हें अपनी ननदों को तड़पाने में आता था।


मुझे बीच मझधार में छोड़ के वो उठ गईं और जब लौटीं तो जैसे घर भर के तकिये, कुशन उनके हाथ में।

सब उन्होंने ठूंस ठूंस करके मेरे नितम्बों के नीचे, आलमोस्ट पीठ तक, और मेरे भारी-भारी, गोल-गोल चूतड़, अब हवा में एक बित्ते से भी ज्यादा उठे थे।

भौजी फिर चालू हो गईं।

जीभ की नोक से उन्होंने कुछ देर तक क्लिट फ्लिक की और जब मैं एक बार फिर पनिया गई, उनकी जीभ ने जैसे कोई, आम की फांक दोनों हाथों से फैला के सपड़-सपड़ चाटे, बस उसी तरह। मुश्किल से दो इंच जीभ उनकी अंदर थी।

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लेकिन कभी गोल-गोल घुमाकर चाटते, चूसते, तो कभी अंदर-बाहर… कुँवारी कमसिन ननदों की चूत का मंतर भौजी को अच्छी तरह मालूम था। कुछ ही देर में मैं फिर किनारे पर थी।

और भाभी ने अपना अंगूठा भी, सीधे क्लिट पे… मैं झड़ती रही कांपती रही, चूतड़ पटकती रही।

जब सुधि आई तो…



भौजी ने अपने दोनों अंगूठों से मेरे पिछवाड़े का छेद चियार रखा था पूरी ताकत से।



किसी कुप्पी ऐसी चीज से या सीधे बोतल को ही मेरे पिछवाड़े के खुले छेद से सटा के, टप-टप, टप-टप, कड़ुवा तेल।

लेकिन ध्यान मेरा कहीं और था, मेरे मुँह में, पूरा बाहर निकालकर एक झटके में… जैसे कोई चूत चोद रहा हो, एकदम वैसे… और मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी।

मेरे रसीले गुलाबी होंठ उस मोटे कड़े लण्ड पे रगड़ते घिसते किस कर रहे थे। नीचे से मेरी मखमली जीभ चाट रही थी।

और मैं जोर-जोर से पूरी ताकत से चूस रही थी। सुपाड़ा आलमोस्ट मेरे गले में ठोकर मार रहा था। गाल मेरे एकदम फूले-फूले, बड़ी-बड़ी आँखें मेरी उबली पड़ रही थीं।


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सांसें भी बहुत मुश्किल से धीरे-धीरे… और उसी बीच कभी ये ध्यान जा पाता था की…

भौजी पूरी ताकत से मेरी कसी गाण्ड जबरदस्ती फैला के, उसमें आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी होगी उन्होंने, कम से कम पांच दस मिनट, और फिर थोड़ा सा बाहर भी छेद के मुहाने पे, पूरी गाण्ड चपचप हो रही थी।


दोनों नितम्बों को अपने हाथ से दबोच कर उन्होंने अब आपस में इस तरह मसला की तेल अंदर अच्छी तरह लिथड़ गया, कुछ देर टांग भी वो उठाये रहीं, जिससे तेल की एक बूँद भी अंदर से बाहर न आ पाये। और फिर आके एक बार मेरे सिरहाने वो बैठ गईं।
 

komaalrani

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मजा आ गया पढते2 कहीं खो जाता है मन। सुंदर कोमल जी।

और ऐसी प्यारी बातें सुन के मेरा मन भी,... हो सके तो मेरी बाकी कहानियों पर भी तशरीफ़ ले आइये, आपका, आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेगा।
 

komaalrani

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komaalrani

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धंस गया














पिछवाड़े के खुले छेद से सटा के, टप-टप, टप-टप, कड़ुवा तेल।



लेकिन ध्यान मेरा कहीं और था, मेरे मुँह में, पूरा बाहर निकालकर एक झटके में… जैसे कोई चूत चोद रहा हो, एकदम वैसे… और मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी। मेरे रसीले गुलाबी होंठ उस मोटे कड़े लण्ड पे रगड़ते घिसते किस कर रहे थे। नीचे से मेरी मखमली जीभ चाट रही थी।



और मैं जोर-जोर से पूरी ताकत से चूस रही थी। सुपाड़ा आलमोस्ट मेरे गले में ठोकर मार रहा था। गाल मेरे एकदम फूले-फूले, बड़ी-बड़ी आँखें मेरी उबली पड़ रही थीं। सांसें भी बहुत मुश्किल से धीरे-धीरे… और उसी बीच कभी ये ध्यान जा पाता था। की…



भौजी पूरी ताकत से मेरी कसी गाण्ड जबरदस्ती फैला के, उसमें आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी होगी उन्होंने, कम से कम पांच दस मिनट, और फिर थोड़ा सा बाहर भी छेद के मुहाने पे, पूरी गाण्ड चपचप हो रही थी। दोनों नितम्बों को अपने हाथ से दबोच कर उन्होंने अब आपस में इस तरह मसला की तेल अंदर अच्छी तरह लिथड़ गया, कुछ देर टांग भी वो उठाये रहीं, जिससे तेल की एक बूँद भी अंदर से बाहर न आ पाये। और फिर आके एक बार मेरे सिरहाने वो बैठ गईं।



कुछ देर मेरा मुख चोदन देखती रहीं, फिर अपने ‘उनसे’ बोली- “अरे तुम्हारी बहन है तो क्या मतलब? आई लोहे के राड ऐसा इसके मुलायम मुँह में कब तक ठेलोगे। अरे तोहार बहिन है तो हमरो तो ननद है जरा हमहू…”



बड़े बेमन से भैया ने बाहर निकाला,



पहली बार मैंने उसे इतने नजदीक से देखा, एकदम तन्नाया, खूब कड़ा, मोटा और गुस्से में जैसे उससे उसका शिकार छीन लिया गया हो।



भाभी ने थोड़ी देर मेरा गाल सहलाया, मेरे जबड़ों को गालों को कुछ आराम मिला तो वो बोली-


“इतना देर इत्ता कड़ा-कड़ा चूसी हो तो चलो जरा कुछ देर कुछ मुलायम भी चूस लो…”

और मेरे समझने के पहले, मेरे मुँह को अपने हाथों से दबाकर, सीधे अपने निपल मेरे मुँह में।

निपल उनके पहले भी मैं चूस चुकी थी, लेकिन इस बार निपल के साथ उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी चूची भी ठेल दी और जैसे कार्क से कोई बोतल का मुँह बंद कर दे बस उसी तरह, मेरा मुँह बंद हो गया। वो मेरे गाल सहलाती रहीं, बाल सहलाती रहीं, दुलराती पुचकारती रहीं।



और उनका एक हाथ मेरे उभारों को भी सहला, दबा रहा था। मैं भी हल्के-हल्के उनकी बड़ी-बड़ी चूची चूसने का मजा लेने लगी। कभी निपल को चूसती तो कभी मेरी जीभ निपल को हल्के-हल्के फ्लिक करती। भाभी को भी मजा आ रहा था, वो खूब सिसक रही थीं। मेरे दोनों हाथ बंधे थे लेकिन मुँह जीभ तो आजाद थी। भैय्या, भाभी ने खूब मजे ले लिए थे अब नंबर मेरा था तो मैं क्यों छोड़ती।



लेकिन तभी कड़वा तेल का जोरदार भभका मेरे नथुनों में भर गया। शायद भैय्या ने, अपने मोटे सुपाड़े में,



लेकिन मेरा ध्यान फिर भौजी की ओर आ गया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़कर पूरी ताकत से अपनी मोटी-मोटी चूची मेरे मुँह में पेल दी। वो ठेलती रहीं ठूसतीं रहीं।



एक बार फिर मेरे गाल फटे जा रहे थे, जबड़े दुःख रहे थे, लेकिन कामिनी भाभी ने अपनी चूची का प्रेशर कम नहीं किया। उनके दोनों हाथों ने इस तरह मेरे सर को पकड़ रखा था की मैं जरा भी सर हिला भी नहीं सकती थी। उनकी देह मेरे ऊपर इस तरह पसरी थी की मुझे कुछ और नहीं दिख रहा था। पूरी तरह दबी, मेरे दोनों हाथ कसकर पलंग के सिरहाने से बंधे…



जिस तरह कुछ देर पहले कामिनी भाभी ने मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से चियार कर, आधी बोतल से भी ज्यादा वहां कड़वा पिलाया था, उसी तरह… लेकिन उससे 100 गुना ज्यादा ताकत से भैय्या के दोनों हाथों ने मेरी गाण्ड को फैला के, मैंने उनके सुपाड़े के टच को महसूस किया, लेकिन तभी।



पूरे जोर से, कककचा के कामिनी भाभी ने मेरे निपल काट लिए। उनके दांत गड़ गए और वो तब भी दबाती रही, चबाती रहीं।



मैं दर्द से बिलबिला रही थी, आँखों में आंसू छलक रहे थे लेकिन उसी समय कामिनी भाभी के लम्बे नाखूनों ने उससे भी जोर से मेरे क्लिट को नोच लिया और नाखून वहां भी दबा रहे थे।



दर्द से मैं तड़प रही थी, उलट पलट रही थी लेकिन मेरी सारी सिसकियां मेरी मुँह में घुट-घुट के दब रही थी। कामिनी भाभी ने इतनी जोर से अपनी चूची मेरे कोमल किशोर मुँह में ठेल रखी थी, कि, मैं बिलबिला रही थी और मुझे पता नहीं चला की कब मोटा कड़ा तगड़ा सुपाड़ा भैय्या ने ठेलना शुरू कर दिया मेरी गाण्ड में।



दोनों हाथ से उन्होंने गाण्ड के छेद को चियार रखा था और पूरी ताकत से अपने मोटे भाले को ठेल रहे थे, पेल रहे थे, धकेल रहे थे। बिना रुके वो पुश करते रहे।



उधर भाभी के दांतों का दबाव मेरे निपल पर कम नहीं हुआ, मेरा पूरा ध्यान उधर ही था। दर्द से मेरी चूची बिलबिला रही थी।


भैया ने मेरी लम्बी छरहरी टाँगें अपने कंधों पर कर रखी थी, उनके दोनों हाथ मेरे गोल-गोल चूतड़ों को पकड़ के लण्ड मेरी कसी कुँवारी गाण्ड पे अपनी पूरी ताकत से पेल रहे थे। चार पांच मिनट तक वो ठेलते रहे, और कलाई ऐसा मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरी तरह पैबस्त हो गया।



और उसके बाद कामिनी भाभी ने अपने दाँतो का जोर मेरे निपल पर कुछ कम किया। लेकिन जैसे ही वहां का दर्द कुछ कम हुआ, गाण्ड का दर्द तेजी से महसूस हुआ। लग रहा था जैसे किसी ने लोहे का राड घुसेड़ दिया हो, मेरी कुँवारी गाण्ड में।






उनका लण्ड मोटा तो बहुत था ही कड़ा भी बहुत था। फिर चूस-चूसकर मैंने भी तो… मेरी गाण्ड फटी जा रही थी।

कामिनी भाभी ने अब दाँतो का जोर हटा लिया था, बल्की अब उनकी जीभ मेरी काटी कुचली चूची पे हल्के-हल्के, जैसे कोई मलहम लगा रहा हो, बस उस तरह से, और धीमे-धीमे दर्द भी कम होता जा रहा था। निपल चाटने में, चूसने में तो भौजी को महारत हासिल थी इसलिए थोड़े ही देर में दर्द की जगह चूचियों में एक अजब सनसनाहट महसूस हो रही थी।

मेरे मुँह में भी घुसी अपनी चूची का जोर उन्होंने कम कर दिया था, लेकिन निकाला भी नहीं था। मैं बोल तो नहीं सकती थी, लेकिन गाल और जबड़े अब दुःख नहीं रहे थे।


नीचे भैया ने भी अब लण्ड ठेलना बंद कर दिया था। उनके दोनों हाथ अभी भी मेरे गोल-गोल चूतड़ों पे थे, लेकिन बजाय दबोचने के अब उसकी गोलाइयों का वो सहलाते हुए मजा ले रहे थे। मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा अभी भी मेरी गाण्ड में धंसा था। दर्द बहुत हो रहा था, लेकिन धीमे-धीमे मेरी गाण्ड अब उनके सुपाड़े की आदी होती जा रही थी।


दो चार मिनट के बाद भाभी ने मेरे थके फैले मुँह से अपनी बड़ी-बड़ी 38डी…डी साइज की चूची निकाली, और हल्के-हल्के मेरे गाल को सहलाया। कुछ देर बाद भैय्या को देखकर बनावटी गुस्से से बोलीं-

“ये क्या किया तुमने? माना तुम्हारी बहन है ये, ये भी माना की तेरी बहन होने के नाते नंबरी छिनार, चुदवासी है, लेकिन इसका क्या मतलब इस बिचारी की कसी-कसी कुँवारी गाण्ड में इतना मोटा सुपाड़ा तुमने पेल दिया। कितना दर्द हो रहा होगा बिचारी को?”



भैया खिस्स-खिस्स मुश्कुराये जा रहे थे।



बाहर काले बादलों ने आसमान में काली स्याही पोत दी थी। न तारे, न चाँद, न चांदनी। हवा एकदम रुकी हुई। भाभी उठी और उन्होंने लालटेन की रोशनी थोड़ी तेज कर दी। अब मुझे मेरी गाण्ड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ-साफ दिख रहा था।



भौजी, मेरी कमर के पास बैठ गईं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं-


“मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

 

komaalrani

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अंड़स गया



















अब मुझे मेरी गाण्ड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ-साफ दिख रहा था।





भौजी, मेरी कमर के पास बैठ गईं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं-






मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”




और फिर उन्होंने भैया को भी ललकारा-

“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

और भैया ने, एक बार फिर जोर से मेरी टाँगें कंधे पे सेट की, चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला, और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की…

मेरी फट गई। बस मैं बेहोश नहीं हुई। मेरी जान नहीं गई।






जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गाण्ड में ठूंस दी हो और कूट रहा हो-


“उईईई… ओह्ह्ह… नहींईईई…”

चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती।

मैं चूतड़ पटक रही थी, पलंग से रगड़ रही थी, दर्द से बिलबिला रही थी। लेकिन न मेरी चीख रोकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने।

भैया ठेलते रहे, धकेलते रहे।

भला हो बंसती का, जब मैं सुनील से गाण्ड मरवा के लौटी थी, और वो मेरी दुखती गाण्ड में क्रीम लगा रही थी, पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गाण्ड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, गाण्ड को और खास तौर से गाण्ड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।

बसंती की बात एकदम सही थी।

लेकिन वो भी, जब एक बार सुपाड़ा गाण्ड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते, और दरेरते, रगड़ते, घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता।

और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा, गाण्ड के छल्ले के पार ढकेल देते।






बिना बेरहमी के गाण्ड मारी भी नहीं जा सकती, ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी। छ-सात बार इसी तरह उन्होंने गाण्ड के छल्ले के आर पार धकेला, ठेला। और धीरे-धीरे दर्द के साथ एक हल्की सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गई। और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा, अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था, फाड़ता चीरता।

दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गई, लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी, एकदम नए तरह का मजा।

“दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मर्द से गाण्ड मरवा लोगी न तब आएगा असली गाण्ड मरवाने का मजा, समझलू…”

बसंती ने छेड़ते हुए कहा था।

जैसे अर्ध विराम हो गया हो। भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था। आधे से थोड़ा ज्यादा लण्ड अंदर घुस गया था। गाण्ड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था।





लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हल्के-हल्के, बहुत धीरे-धीरे सहलाना मसलना शुरू किया। चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था, और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में, मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा। भैय्या के दूसरे हाथ ने चूची को हल्के से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी।

दूसरा उभार भौजी के हाथ में था, खूब कस-कस के उन्होंने मीजना मसलना शुरू कर दिया।



बस मैं पनियाने लगी, हल्के-हल्के चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था, लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की…

“हे हमार ननदो छिनार, बुरियो क मजा लेत हाउ और गंड़ियो क, और भौजी तोहार सूखी-सूखी। चल चाट हमार बुर…”

वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुई थीं, गाण्ड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था, न मैं हिल डुल सकती थी, न कुछ कर सकती थी।







कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं, साथ में गालियां भी

“अरे छिनरो, गदहा चोदी, कुत्ताचोदी, तेरे सारे मायकेवालियों क गाण्ड मारूं, चाट, जोर-जोर से चाट, रंडी क जनी, हरामिन, अबहीं तो गाण्ड मारे क शुरुआत है, अभी देखो कैसे-कैसे, किससे-किससे तोहार गाण्ड कुटवाती हूँ…”

गाली की इस फुहार का मतलब था की भौजी खूब गरमा रही हैं और उन्हें बुर चूसवाने में बहुत मजा आ रहा है। मजा मुझे भी आ रहा था, गाली सुनने में भी और भौजी की रसीली बुरिया चूसने चाटने में भी।

मैंने अपने दोनों होंठों के बीच भौजी की रसभरी दोनों फांकें दबाई और लगी पूरे मजे ले ले के चूसने।






उधर भैया ने भी अपनी दो उंगलियों के बीच मेरी गुलाबी पुत्तियों को दबा के इतने जोर से मसलना शुरू कर दिया की मैं झड़ने के कगार पे आ गई। और मेरे भैय्या कोई कामिनी भाभी की तरह थोड़ी थे की मुझे झड़ने के किनारे पे ले आ के छोड़ देते।

उन्होंने अपनी स्पीड बढ़ा दी, और मैं, बस… जोर-जोर से काँप रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मचल रही थी, सिसक रही थी।

भैया और भाभी ने बिना इस बात की परवाह किये अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। भैया ने अपना मूसल एक बार फिर मेरी गाण्ड में ठेलना शुरू कर दिया।

भाभी ने अब पूरी ताकत से अपनी बुर मेरी होंठों पे रगड़ना शुरू कर दिया, और मैं झड़ने से उबरी भी नहीं थी की उन्होंने अपना चूतड़ उचकाया, अपने दोनों हाथों से अपनी गाण्ड के छेद खूब जोर से फैलाया और सीधे मेरे मुँह के ऊपर-







“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”

मैं कुछ भी नहीं सुन रही थी बस जोर-जोर से चाट रही थी, गाण्ड वैसे ही चूस रही थी जैसे थोड़ी देर पहले कामिनी भाभी की बुर चूस रही थी।

खुश होके भौजी ने मेरे दोनों हाथ खोल दिए और मेरी मेरे खुले हाथों ने सीधे भौजी की बुर दबोचा, दो उंगली अंदर, अंगूठा क्लिट पे। थोड़ी देर में भौजी भी झड़ने लगीं, जैसे तूफान में बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे हों बस उसी तरह, हम दोनों की देह गुत्थमगुत्था, लिपटी। जब भौजी का झड़ना रुका, भैय्या ने लण्ड अंदर पूरी जड़ तक मेरी गाण्ड में ठोंक दिया था। थोड़ी देर तक उन्होंने सांस ली फिर मेरे ऊपर से उतरकर भैया के पास चली गई।

पूरा लण्ड ठेलने के बाद भैय्या भी जैसे सुस्ता रहे थे। मेरी टाँगें जो अब तक उनके कंधे पे जमीं थीं, सीधे बिस्तर पे आ गई थीं। हाँ अभी भी मुड़ीं, दुहरी। हम दोनों की देह एक दूसरे से चिपकी हुई थी। भौजी ऐसे देख रही थीं की जैसे उन्हें बिस्वास नहीं हो रहा की मेरी गाण्ड ने इतना मोटा लंबा मूसल घोंट लिया।






बाहर मौसम भी बदल रहा था। हवा रुकी थी, बादल पूरे आसमान पे छाए थे और हल्की-हल्की एक दो बूंदें फिर शुरू हो गई थीं। लग रहा था की जोर की बारिश बस शुरू होने वाली है।

मेरे हाथ अब खुल गए थे तो मैंने भी भैय्या को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया था।






 
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