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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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Thanks so much bas aaj
 

komaalrani

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छठवीं फुहार

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मेले में



कुछ देर कभी चूड़ियों की दूकान पे तो कभी कहीं कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद मैं उधर पहुँच गयी जहाँ मेरी सहेलियां खड़ी थी।

शाम करीब करीब ढल चुकी थी , नौटंकी और बाकी दुकानों पे रौशनी जल गयी थी।

बादल भी काफी घिर रहे थे।

जब मैंने अपनी सहेलियों की ओर निगाहें डाली तो वहां उनके साथ कई लड़के खड़े थे, जब मैं नजदीक गई तो पाया कि चन्दा के साथ सुनील, गीता के साथ रवी और कजरी और पूरबी के साथ भी एक-एक लड़का था।


अजय अकेला खड़ा था।

गीता ने अजय को छेड़ा-

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“अरे… सब अपने-अपने माल के साथ खड़े हैं… और तुम अकेले…”

मैंने ठीक से सुना नहीं पर मैं अजय को अकेले देखकर उसके पास खड़ी हो गयी और बोली-


“मैं हूँ ना…”


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सब हँसने लगे, पर अजय ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे अपने पास खींच लिया और सटाकर कहने लगा-



मेरा माल तो है ही…”

थोड़ा बोल्ड बनकर अपना हाथ उसकी कमर में डालकर, मैं और उससे लिपट, चिपट गयी और बोली-


“और क्या, जलती क्यों हो, तुम लोग…”

चन्दा मुझे चिढ़ाते हुए, अजय से बोली-

“अरे इतना मस्त, तुम्हारा मन पसंद माल मिल गया है, मुँह तो मीठा कराओ…”



“कौन सा मुंह… ऊपर वाला या नीचे वाला…”


छेड़ते हुए गीता चहकी।



“अरे हम लोगों का ऊपर वाला और अपने माल का दोनों…”

चन्दा मुश्कुरा के बोली।



एक दुकान पर ताजी गरम-गरम जलेबियां छन रहीं थीं। हम लोग वहीं बैठ गये।


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सब लोगों को तो दोने में जलेबियां दीं पर मुझे उसने अपने हाथ से मेरे गुलाबी होंठों के बीच डाल दी। थोड़ा रस टपक कर मेरी चोली पर गिर पड़ा और उसने बिना रुके अपने हाथ से वहां साफ करने के बहाने मेरे जोबन पे हाथ फेर दिया। हम लोग थोड़ा दूर पेड़ के नीचे बैठे थे। उसका हाथ लगाते ही मैं सिहर गयी।





एक जलेबी अपने हाथों में लेकर मैंने उसे ललचाया-

“लो ना…”


और जब वो मेरी ओर बढ़ा तो मैंने जलेबी अपने होंठों के बीच दबाकर जोबन उभारकर कहा-

“ले लो ना…”

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अब वो कहां रुकने वाला था, उसने मेरा सर पकड़ के मेरे होंठों के बीच अपना मुँह लगा के न सिर्फ जलेबी का रसास्वादन किया

बल्की अब तक कुंवारे मेरे होंठों का भी जमकर रस लिया और उसे इत्ते से ही संतोष नहीं हुआ

और उसने कसके मेरे रसीले जोबन पकड़ के अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दिया।



“हे क्या खाया पिया जा रहा है, अकेले-अकेले…”

चन्दा की आवाज सुनकर हम दोनों अलग हो गये।


रात शुरू हो गयी थी।


हम सब घर की ओर चल दिये।
 

komaalrani

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वापसी


रास्ते में मैंने देखा कि पूरबी उन दोनों लड़कों से, जो मेरी “रसीली तारीफ” कर रहे थे, घुल मिलकर बात कर रही थी।


गीता ने बताया कि वे पूरबी के ससुराल के हैं और बल्की उसके ससुराल के यार हैं।


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रात शुरू हो चुकी थी , और साथ कजरारे मतवारे बादल के छैले ,बार बार चांदनी का रास्ता रोक लेते , बस झुटपुट रोशनी थी ,

और कभी वो भी नहीं /

दूर होते जा रहे मेले में गैस लाइट ,जेनरेटर सब की रौशनी थी , और वहां बज रहे गानों की आवाजें दूर तक साथ आ रही थीं।

सुबह मेरी सहेलियां सब एक साथ थीं और गाँव के लडके पीछे ,

लेकिन अभी ,...कभी लडकियां एक साथ तो... कभी कुछ अपने यार के साथ भी ,


ख़ास तौर से पगडंडी जहाँ संकरी हो जाती थी ,या दोनों ओर आम के बाग़ या गन्ने के खेत होते ,

बस गुट बनते बिगड़ते रह रहे थे।

चंदा मेंरा हाथ पकड़ कर चल रही थी , क्योंकि बाकी के लिए तो ये जानी पहचानी डगर थी लेकिन मैं तो पहली बार ,


कुछ ही दूर पे पीछे पीछे अजय और सुनील ,कुछ बतियाते चल रहे थे।

पूरबी , कजरी ,गीता सब आगे आगे।


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" धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,

रजउ , धंस गयल, अटक गयल ,सटक गयल हो ,"



मेले में से नौटंकी के गाने की आवाज आई , और चंदा ने मुझे चिढ़ाते ,मेरे कान में फुसफुसा के बोला ,

" कहो , धँसल की ना ?"

" जाके धँसाने वाले से पूछो न। "


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उसी टोन में मैंने आँखे नचा के पीछे आ रहे , अजय की ओर इशारा कर के बोला।

" सच में जाके पूछूं उससे ,मेरी सहेली शिकायत कर रही है ,क्यों नहीं धँसाया। "



चंदा बड़ी शोख अदा से सच में , पीछे मुड़ के वो अजय की ओर बढ़ी।




" तेरी तो मैं , … "


कह के मैंने उसकी लम्बी चोटी का परांदा पकड़ के खींच लिया और मेरा एक मुक्का उसकी गोरी खुली पीठ पे।

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चंदा भी , मुड़के मेरे कान में हंस के हलके से बोली ,


" जब धँसायेगा न तो जान निकल जायेगी ,बहुत दर्द होता है जानू,… "

" होने दे यार ,कभी न कभी तो दर्द होना ही है।"



एक बेपरवाह अदा से गाल पे आई एक लट को झटक के मैं बोली।

चांदनी भी उस समय बादलों के कैद से आजाद हो गयीं थी।



अमराई से हलकी हलकी बयार चल रही थी।

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और पूरबी ने जैसे मेरी चंदा की बात चीत सुन ली और एक गाना छेड़ दिया , साथ में गीता और कजरी भी।


तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,

तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,


सुबह से ये गाना मैंने मेले में कितनी बार सूना था , तो अगली लाइन मैंने भी मस्ती में जोड़ दी।


बचपन में कान छिदायल ,तनिक भरे का छेद

मत पहिरावा हमका बाला , बड़ा दुखाला रजउ।
,
मस्त जोबनवा चोली धयला ,गाल तो कयला लाल ,

गिरी लवंगिया , बाला टूटल , बहुत कईला बेहाल।



और फिर पूरबी , कजरी ,सब ने आगे की लाइने जोड़ी

अरे अपनी गोंदिया में बैठाला ,बड़ा दुखाला रजऊ।

तानी धीरे धीरे डाला ,बड़ा दुखाला रजऊ ,



लौटते समय लड़कियां ज्यादा जोश में हो गयी थी।

एक तो अँधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था साफ साफ ,कौन गा रहा है ,

सिरफ परछाइयाँ दिख रही थीं। हवा तेज चल रही थी।


दूसरे मेले की मस्ती के बाद हम सब भी काफी खुल गए थे

सब कुछ तो ले लेहला गाल जिन काटा ,


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कजरी ने शुरू किया। वो सब काफी आगे निकल गयी थीं।

पीछे से मैंने भी साथ दिया , लेकिन मुझे लगा ,चंदा शायद , और मैंने बाएं और देखा तो , वास्तव में वो नहीं थीं।

तब तक मुझे गाल पे किसी की अँगुलियों का अहसास हुआ और कान में किसी ने बोला ,

" ऐसा मालपूआ गाल होगा तो , न काटना जुल्म है। "



अजय पता नहीं कब से मेरे बगल में चल रहा था लेकिन गाने की मस्ती में ,

मेरे बिना कुछ पूछे उसने पीछे इशारा किया ,

एक घनी अमराई में , दो परछाइयाँ ,लिपटी,

चंदा और सुनील।


सुनील के घर का रास्ता यहाँ से अलग होता था।

बाकी लड़कियों भी एक एक करके ,

कुछ देर में में सिर्फ मैं अजय और चंदा रह गए , मैं बीच में और वो दोनों ओर ,

फिर चंदा की छेड़ती हुई बातें।



चंदा एक पल के लिए रुक गयी , किसी काम से।

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komaalrani

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घर

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चंदा एक पल के लिए रुक गयी , किसी काम से।

अजय का घर भाभी के घर से सटा हुआ ही था।


जब वो मुड़ने लगा तो हँसकर मैंने कहा-

“आज तुमने मुझे जूठा कर दिया…”



शैतानी से मेरी जांघों के बीच घूरता हुआ वो बोला-

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“अभी कहां, अभी तो अच्छी तरह हर जगह जूठा करना बाकी है…”



मैंने भी जोबन उभारकर, आँख नचाते हुए कहा-


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“तो कर ले ना, मना किसने किया है…”

"और मान लो मना कर दो तो" वो बोला।





अजय भी अब एकदम ढीठ हो गया था ,खुल के मेरी आँखों में आँखे डाल के बोल रहा था। घर से रौशनी छन छन के आ रही थी।


" तो मत मानना ,.... । कोई जरूरी है तुम हर बात मानों मेरी। "

हिम्मत कर के मैं बोली और तब तक चंदा आगयी थी उसके साथ घर में घुस गयी।



चन्दा घर जाने की जिद करने लगी और मुझसे कहने लगी की, मैं भी उसके साथ चलूं। मुझे भी उससे कुछ सामान लेना था, गानों की कापी , जिसमें सोहर ,बन्ना , से लेकर गारी तक। लेकिन मैं अकेले कैसे लौटती, ये सवाल था।



तभी अजय दरवाजे पे नजर गया।



चन्दा ने उससे बिनती की-

“अजय चलो ना जरा मुझे घर तक छोड़ दो…”

पर अजय ने मुँह बनाया और कहने लगा कि उसे कुछ जरूरी काम है।

मैंने बहुत प्यार से कहा-

“मैं भी चल रही हूँ और फिर मैं अकेले कैसे लौटूंगी, चलो ना…”

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खुशी की लहर उसके चेहरे को दौड़ गयी- “हां, एकदम चलो ना मैं तो आया ही इसीलिये था…”





चम्पा भाभी, जो मेरी भाभी के साथ किसी और काम में व्यस्त थीं, ने भी उससे कहा कि वह हमारे साथ चल चले। भाभी ने मुझसे कहा कि सब लोग पड़ोस में रतजगे में जायेंगे इसलिये मैं जब लौटूं तो पीछे वाले दरवाजे से लौटूं और बसंती रहेगी वह दरवाजा खोल देगी।


हम तीनों चन्दा के घर के लिये चल दिये। चन्दा ने अजय को छेड़ा-

“अच्छा, मैं कह रही थी तो जनाब के पास टाइम नहीं था, और एक बार इसने कहा…”

“आखिर ये मेरा माल जो है…”

और अजय ने मुझे कस के पकड़ लिया।



और मैंने भी उसकी बांहो में सिमटते हुए, चन्दा को छेड़ा- “मुझे कहीं कुछ जलने की महक आ रही है…”

चन्दा बोली- “लौटते हुए लगता है इस माल का उद्घाटन हो जायेगा, डरना मत मेरी बिन्नो…”

“यहां डरता कौन है…”



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जोबन उभारकर मैंने कहा।



चन्दा के यहां से हम जल्दी ही लौट आये। रात अच्छी तरह हो गयी थी। चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे, बड़ी मुश्किल से रास्ता दिख रहा था।





मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी। पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था। एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया।





हम लोग उस अमराई के पास आ आ गये थे जहां कल हम लोग झूला झूलने गये थे। हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं।


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अजय ने कहा- “चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…”

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और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी। मेरी साड़ी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे।








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Jitu kumar

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Awesome update komal ji behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai,
savan ki fuhar ab shuru ho gayi hai,
dekhte hai ab ye sawan kya rang lata hai,
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komaalrani

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sahi kaha aapane sawan apne shabab par hai
 
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komaalrani

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सातवीं फुहार ,

बरसात की झड़ी

न्दा बोली- “लौटते हुए लगता है इस माल का उद्घाटन हो जायेगा, डरना मत मेरी बिन्नो…”

“यहां डरता कौन है…” जोबन उभारकर मैंने कहा।



चन्दा के यहां से हम जल्दी ही लौट आये।



रात अच्छी तरह हो गयी थी। चारों ओर, घने बादल उमड़ घुमड़ रहे थे। तेज हवा सांय-सांय चल रही थी। बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूम रहे थे, बड़ी मुश्किल से रास्ता दिख रहा था।





मैंने कस के अजय की कलाई पकड़ रखी थी।



पता नहीं अजय किधर से ले जा रहा था कि रास्ता लंबा लग रहा था।


एक बार तेजी से बिजली कड़की तो मैंने उसे कस के पकड़ लिया।

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हम लोग उस अमराई के पास आ आ गये थे जहां कल हम लोग झूला झूलने गये थे। हल्की-हल्की बूंदे पड़नी शुरू हो गयी थीं।





अजय ने कहा-


“चलो बाग में चल चलते हैं, लगता है तेज बारिश होने वाली है…”


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और उसके कहते ही मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी।

मेरी साड़ी, चोली अच्छी तरह मेरे बदन से चिपक गये थे।
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जमीन पर भी अच्छी फिसलन हो गयी थी। बाग के अंदर बारिश का असर थोड़ा तो कम था, पर अचानक मैं फिसल कर गिर पड़ी।



मुझे कसकर चोट लगती, पर, अजय ने मुझे पकड़ लिया।


उसमें एक हाथ उसका मेरे जोबन पर पड़ गया और दूसरा मेरे नितंबों पर। मैं अच्छी तरह सिहर गयी।


सामने झूला दिख रहा था, उसने मुझे वहीं बैठा दिया और मेरे बगल में बैठ गया। तभी बड़े जोर की बिजली चमकी और उसने और मैंने एक साथ देखा कि भीगने से मेरा ब्लाउज़ एकदम पारदर्शी हो गया है, ब्रा तो मैंने पहनी नहीं थी इसलिये मेरी चूचियां साफ दिख रही थीं।


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अजय के चेहरे पे उत्तेजना साफ-साफ दिख रही थी।

उसने मुझे खींचकर अपनी गोद में बैठा लिया और मेरे गालों को चूमने लगा। उसके हाथ भी बेसबरे हो रहे थे और उसने एक झटके में मेरी चोली के सारे बटन खोल दिये। मेरी साड़ी भी मेरी जांघों के बीच चिपक गयी थी। उसका एक हाथ वहां भी सहलाने लगा। मैं भी मस्ती में गरम हो रही थी।

उसका हाथ अब मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था।
जोश में मेरे चूचुक पूरे खड़े हो गये थे। उसने साड़ी भी नीचे कर दी और अब मैं पूरी तरह टापलेश हो गयी थी। जब वह मेरे कड़े-कड़े निपल मसलता तो… मेरी भी सिसकी निकल रही थी।


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तभी मुझे लगा की मैं क्या कर रही हूं… मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था पर मैं बोलने लगी-


“नहीं अजय प्लीज मुझे छोड़ दो… नहीं रहने दो घर चलते हैं… फिर कभी… आज नहीं…”


पर अजय कहां सुनने वाला था, उसके हाथ अब मेरी चूचियां खूब कस के रगड़ मसल रहे थे। मन तो मेरा भी यही कर रहा था कि बस वह इसी तरह रगड़ता रहे, मसलता रहे… मेरे मम्मे।


पर मैं बोले जा रही थी-

“अजय, प्लीज छोड़ दो आज नहीं… हटो मैं गुस्सा हो जाऊँगी… सीधे से घर चलो… वरना…”



और अजय मुझे झूले पर ही छोड़कर हट गया। उसकी आवाज जाती हुई सुनाई दी-


ठीक है, मैं चलता हूं… तुम घर आ जाना…”

______________________________
 

komaalrani

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बरस रहा सावन



मैं थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही पर अचानक ही बिजली कड़की और मैं डर से सिहर गयी।


हवा और तेज हो गयी थी।

पास में ही किसी पेड़ के गिरने की आवाज सुनाई दी और मैं डर से चीख उठी-


“अजय… अजय… प्लीज अजय… लौट आओ… अजय…”


पूरा सन्नाटा था, फिर किसी जानवर की आवाज तेजी से सुनाई पड़ी और मैं एकदम से रुआंसी हो गयी।


मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, मन तो मेरा भी कर रहा था, आखिर चन्दा, गीता सब तो चुदवा रही थीं और सुबह से तो मैं भी अजय को सिगनल दे रही थी-

“अजय… अजय… अजय्य्य्यय्य्य्य्य…”

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मैंने फिर पुकारा, पर कोई जवाब नहीं था, लगाता है, गुस्सा होकर चला गया, लेकिन वह भी कितना… मुझे मना सकता था… कुछ ना हो तो जबर्दस्ती कर सकता था।


आखिर इतना हक तो उसका है ही

। थोड़ा वक्त और गुजर गया। मैं बहुत जोर से डर रही थी।

मैं पुकारने लगी-

“अजय प्लीज आ जाओ, मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूं… तुम मुझे किस करो, जो भी चाहे करो, प्लीज आ जाओ… मैं सारी बोलती हूं… मैं तुम्हारी हूं… जो भी चाहे…”


तब तक उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया, और बोला- “क्यों, मैं घर जाऊँ…”


“नहीं मैं बहुत सारी हूं…” मैं भी उसे और कस के जकड़ के बोली।




“अच्छा, सच सच बताओ, मेरी कसम, तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं…” अजय ने मेरे होंठों को चूमते हुए पूछा।


“हां कर रहा था… बहुत कर रहा था…” मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी। अजय के होंठ अब मेरे रसीले गलों का रस ले रहे थे।

“क्या करवाने को कर रहा था…” मेरे गालों को काटते हुए उसने पूछा।

“वही करवाने को… जो तुम्हारा करने को कर रहा था…” हँसते हुए मैंने कबूला।

“नहीं तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा… वरना बोलो तो मैं चला जाऊँ तुम्हें यहीं छोड़कर…”


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और ये कहते हुये उसने कस के मेरे कड़े निपल को खीचा।




“मेरा मन कर रहा था॰ चुदवाने का तुमसे आज अपनी कसी कुंवारी चूत… चुदवाने का…”

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और ये कह के मैंने भी उसके गालों पर कस के चुम्मी ले ली।

“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”


और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।


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komaalrani

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मस्ती की बारिश


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“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”



और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।


थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।

मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था

और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था।

कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।

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मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।

देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।

उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।

अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।

अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।

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उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी।

बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।


और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-


“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”



अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।

बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड,

उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।



जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।

उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा।

दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।


ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-



“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…”


मेरी बुरी हालत थी।



अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था।

थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न,

उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।


अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।


एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।

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अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।




मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।

मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।


जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।





प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही।

अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी

और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा-




ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…


अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-



“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”

अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली-





“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग…


और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”





अजय मेरा गाल काटता बोला-

“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है…
लेकिन आपकी ये बात गलत है की जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''





बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-



“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने…

और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ,

पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”





अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-

“ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”





मैंने मुँह बनाया-



“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”





लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये

और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया





और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-





“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।




और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-


“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।


उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।

ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।





मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।




उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।

कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।



नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।



थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था।









मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा।









मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी।


तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।




उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली।
 
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