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Erotica सोलवां सावन

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कहाँ बजी पायलिया




घर के पास पहुँचकर अजय ने एक बार फिर मुझे अपनी बाहों में भरकर पूछा- “अब कब मिलेगा…”


चारों ओर सन्नाटा था। मैंने भी हिम्मत से उसके होंठों को चूमकर कहा- “जब चाहो…” और घर की ओर भाग गयी।

बसंती ने पीछे की खिड़की खोली, वह गहरी नींद में थी और भाभी, अभी रतजगे से आयी नहीं थी।

मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गयी। अभी भी मेरी चूत में अजय का वीर्य था, और जोबन को उसके दबाने का रसभरा दर्द महसूस हो रहा था।


उसकी बात सोचते-सोचते मैं सो गयी।


सुबह जब मेरी नींद खुली तो चन्दा मेरे सामने थी और मुझे जगा रही थी-






“क्यों कल रात चिड़िया ने चारा खा लिया ना…”

उसकी मुश्कुराहट से मुझे पता चल रहा था कि उसे रात की बात का अंदाज हो गया है।

पर मैंने बहाना बनाया-

“नहीं… ऐसा कुछ नहीं… वो तो…”


“अच्छा, तो ये क्या है, कल रात भर ये पायल कहां बजी…”


 

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आठवीं फुहार


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सुबह जब मेरी नींद खुली तो चन्दा मेरे सामने थी और मुझे जगा रही थी-



“क्यों कल रात चिड़िया ने चारा खा लिया ना…”

उसकी मुश्कुराहट से मुझे पता चल रहा था कि उसे रात की बात का अंदाज हो गया है।

पर मैंने बहाना बनाया- “नहीं… ऐसा कुछ नहीं… वो तो…”



“अच्छा, तो ये क्या है, कल रात भर ये पायल कहां बजी…” वो मेरे सामने मेरी एक पैर की घुंघरू वाली चांदी की पायल लहरा रही थी।


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अब मैं समझी, कल रात लगाता है पायल वहीं झूले पे… मैं पायल छीनने की कोशिश करते हुए बोली-


“हे, तुम्हें कहां मिली… दो ना, कल रात रास्ते में लगता है…”


मेरे जोबन दबाते हुए, चन्दा मुश्कुराई और बोली-



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“बनो मत मेरी बिन्नो, यह वहीं मिली जहां कल रात तुम चुदवा रही थी, देखूं चारा खाने के बाद ये मेरी चिड़िया कैसी लग रही है…”





और उसने मेरे मना करते-करते, मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत कस के दबोच ली।







उसे रगड़ते मसलते वो बोली-

“देखो एक रात में ही घोंटने के बाद… कैसी गुलाबी हो रही है, लेकिन अब जब इसे स्वाद लग ही गया है तो इसके लिये तो रोज के चारे का इंतेजाम करना पड़ेगा…”


और मेरी ओर देखते हुए वो बोली-




“और अगर तुम्हें ये पायल चाहिये ना… और तुम चाहती हो कि ये राज़ राज़ रहे तो तुम्हें एक जगह मेरे साथ चलना पड़ेगा और मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी…”

“ठीक है, मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है पर…”

मैं नहीं चाहती थी की ये बात सब तक पहुँचे।

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“तो तुम जल्दी तैयार हो जाओ…” कहते हुए उसने मुझे पायल दे दिया।

मैं हाथ मुँह धोकर तैयार हो गयी और एक चटक गुलाबी रंग की साड़ी और लाल रंग की कसी-कसी चोली पहन ली। मैंने सोचा कि ब्रा पहनूं फिर उसे एक तरफ रख दिया।




कुछ सोचकर मैंने गाढ़े लाल रंग की लिपिस्टक भी लगा ली, और एक बड़ी सी लाल बिंदी भी। पायल पलंग पर पड़ी थी। मैंने दोनों पांवों में, जिसने मेरी कल की बात खोल दी थी, घुंघरू वाली, अपनी चांदी की पायल भी पहन ली। भाभी और चम्पा भाभी कुछ गांव की औरतों से बात करने में व्यस्त थीं।

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चन्दा ने भाभी से मुझे साथ ले जाने के लिये बोला तो भाभी बोलीं की जाओ लेकिन जल्दी आ जाना।


चम्पा भाभी बोली- “लेकिन इसने कुछ खाया नहीं है…”
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“अरे, भाभी मैं इसे अच्छी तरह से खिला दूंगी, सारी, हर तरह की भूख मिटवा दूंगी…” ये कहते, हँसते हुए चन्दा मेरा हाथ खींचते घर से बाहर ले गयी।

“कहां ले चल रही है। क्या खिलायेगी…” मुश्कुराते हुये मैंने पूछा।
पर चन्दा तेजी से मुझे खींचकर ले गयी। रास्ते में गांव के कुछ लड़के मिले। मुझे देखते ही छेड़ने लगे-

“अरे छुवे दा होंठवा के होंठ से, जोबना के मजा लेवे दा…”

दूसरे ने छेड़ा-

“खिलल खिलल गाल बा, अरे ये माल बड़ा टाइट बा…”

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एक ने हँसकर कहा- “अरे हमारी ओर भी तो एक नजर डाल लो…”
चन्दा ने हँसते हुये कहा- “अभी एडवांस बुकिंग चल रही है। लाइन में लग जाओ तुम्हारा भी नंबर लग जायेगा…”


थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा-


“सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…
 
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आठवीं फुहार


सुनील के नाम


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थोड़ी ही देर में हम लोग उस गन्ने के खेत के पास पहुँच गये थे जहां कल चन्दा सुनील के साथ… चन्दा ने मेरा हाथ पकड़कर, मुझसे बिनती करते हुए कहा-



“सुन, मेरा एक काम कर दे प्लीज, सुनील ने… मेरा आज सुबह से मन कर रहा था, पर सुनील ने एक शर्त रख दी है, कि जब तक… तब तक वह मुझे हाथ भी नहीं लगायेगा, बस तू ही मुझे हेल्प कर सकती है…”





मैं समझ तो गयी थी और ये सोच के मेरे मन में गुदगुदी भी हो रही थी कि ये लड़के मेरे कितने दीवाने हैं, पर बनावटी ढंग से मैं बोली-



“ठीक है बता ना क्या करना है, मैं तेरी पक्की सहेली हूं… कर दूंगी अगर तू कहेगी…”





“सच… पर पहले प्रामिस कर मेरी कसम खा, मैं जो कहुंगी… सुनने के बाद मुकर तो नहीं जायेगी…” चन्दा ने लगभग विनती करते कहा।

“हां हां, ठीक है, जो तू कहेगी, करूंगी, करूंगी, करूंगी…”





यह सुनते ही चन्दा लगभग घसीटते हुए, मुझे गन्ने के खेत के अंदर खींच ले गयी-



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“तो चल प्लीज़ एक बार सुनील से करवा ले, उसने कहा कि मैं जब उसे… तुम्हारी दिलवाऊँगी तभी वह मेरे साथ करेगा… करवा ले ना, बस एक बार मेरी अच्छी सहेली…”




न्ने के घने खेत में हम बीच में पहुँच गये थे और वहां सुनील खड़ा था। मुझे देखकर, सुनील एकदम खुशी से जैसे पागल हो गया हो, वह कुछ बोल नहीं पा रहा था।





चन्दा ने कहा-



“देखो, तेरी मुराद पूरी करवा दी अब तुम हो और ये, जो करना हो करो… मैं चलती हूं…”





मैं भी चन्दा के साथ चलने के लिये मुड़ी पर सुनील ने मुझे कसकर अपनी बांहों में जकड़ लिया।





उस पकड़ा धकड़ी में मेरा आंचल नीचे गिर गया और मेरी कसी लो कट लाल चोली के अंदर तने हुए मेरे सर उठाये दोनों मस्त जोबन साफ-साफ दिख रहे थे। सुनील का तो मुँह खुले का खुला रह गया।



वह जमीन पर बैठ गया था और मुझे पकड़कर अपनी गोद में बैठाये हुये था। वह मेरे गुलाबी रसीले होंठ बार चूम चूस रहा था, पर मेरे तने, कड़े-कड़े जोबन को देखकर उससे नहीं रहा गया और चोली के ऊपर से ही उन्हें चूमने, काटने लगा।




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“अरे इतने बेसबर हो रहे हो… ऊपर से ही…” मैंने उसे चिढ़ाया।





“तुम्हारे जोबन हैं ही ऐसे, तुम क्या जानो मैं कैसे इनके लिये तड़प रहा था, लेकिन तुम ठीक कहती हो…”




मेरी चोली इतनी कसी और तंग थी कि उसके हाथ लगाते ही ऊपर के दोनों हुक खुल गये और चूचुक तक मेरे मदमस्त, खड़े, गोरे-गोरे, जोबन बाहर हो गये। पर मैंने हाथ से नीचे चोली कस के पकड़ ली जिससे वह पूरी चोली ना खोल पाये।


थोड़ी देर तक कोशिश के बाद उसने पैंतरा बदला और अपने हाथ नीचे ले जाकर मेरी साड़ी जांघों तक उठा ली और मुझे नीचे से… मैंने तुरंत अपने दोनों हाथ नीचे करके उसे अपनी साड़ी पूरी तरह खोलने से रोका। वहां तो मैं बचा ले गयी पर तब तक अचानक उसने मेरी चोली के सारे हुक खोल दिये और मेरे जोबन को पकड़ के दबाने लगा।





“नहीं… नहीं छोड़ो ना मुझे शर्म लगा रही है…” मैं उसका हाथ हटाने की कोशिश करने लगी।





पर उसकी ताकत के आगे मेरा क्या जोर चलता, हां, मेरे दोनों हाथ जब जोबन को बचाने के चक्कर में थे तो उसने हँसते हुए मेरी साड़ी पूरी उठा दी और अब उसका एक हाथ कस के मेरी चूत को पकड़े हुए था



और दूसरा जोबन की रगड़ाई कर रहा था। मैं ऊपर से मना भले कर रही थी पर मेरे दोनों निपल मस्ती में कड़े हो रहे थे।




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थोड़ी देर तक चूत को सहलाने मसलने के बाद उसने अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दी और आगे पीछे करने लगा। उसका एक हाथ मेरी गोरी-गोरी कमसिन चूची का रस ले रहा था और दूसरा, निपल को पकड़कर खींच रहा था। उसने मुझे इस तरह उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया की मेरे चूतड़ भी नंगे होकर उसकी गोद में हो गये थे।





अब मैं समझ गयी कि बचना मुश्किल है (वैसे भी बचना कौन बेवकूफ चाहती थी), तो मैंने पैंतरा बदला-

“अरे, तुमने मेरी चोली और साड़ी दोनों खोल ली, मेरा सब कुछ देख लिया, तो अपना ये मोटा खूंटा क्यों छिपाकर रखा है…”



उसके पाजामा फाड़ते, मोटे खूंटे पर अपना चूतड़ रगड़ते मैं बोली।





“देखती जाओ, अभी तुम्हें अपना ये मोटा खूंटा दिखाऊँगा भी और घोंटाऊँगा भी और एक बार इसका स्वाद चख लोगी ना तो इसकी दीवानी हो जओगी…”

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ये कहते हुए उसने कस के अपनी उंगली पूरी तरह चुत के अंदर डालकर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।





मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गयी थी और मैं सिसकियां भर रही थी। उसने मुझे जमीन पर, कल जैसे चन्दा लेटी थी, साया और साड़ी कमर तक करके, वैसे ही लिटा दिया। जब उसने अपना पाजामा खोला और उसका मोटा लंबा लण्ड बाहर निकला तो मेरी तो सिसकी ही निकल गई। उसने उसे मेरे कोमल किशोर हाथ में पकड़ा दिया।



कितना सख्त और मोटा… अजय से भी थोड़ा मोटा ही था।





मेरा ध्यान तब हटा जब सुनील की आवाज सुनाई दी-



“क्यों पसंद आया, जरा उसको आगे पीछे करो, इसका सुपाड़ा खोलो… असली मजा तो तब आयेगा जब तुम्हारी गुलाबी चूत इसको घोंटेगी…”

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मैंने अपने कोमल हाथों से उसको कस के पकड़ते हुए, आगे पीछे किया और एक बार जोर लगाकर जब उसका चमड़ा आगे किया, तो गुलाबी, खूब बड़ा सुपाड़ा सामने आ गया। उसके ऊपर कुछ रिस रहा था।




सुनील मेरी दोनों गोरी लंबी टांगों के बीच आ गया और बिना कुछ देर किये, उसने मेरी टांगें अपने कंधे पर रख लीं। उसने अपने एक हाथ से मेरी गीली चूत फैलायी और दूसरे हाथ से अपना सुपाड़ा मेरी चूत पर लगाया। जब तक मैं कुछ समझती, उसने मेरी दोनों चूचियां पकड़कर पूरी ताकत से इत्ती कस के धक्का लगाया की उसका पूरा सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।

मेरी बहुत कस के चीख निकल गयी।


 
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मजा आया गन्ने के खेत में




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वह मुश्कुराता हुआ बोला-



“अरे, मेरी जान अभी तो सिर्फ सुपाड़ा अंदर आया है, अभी पूरा मूसल तो बाहर बाकी है, और वैसे भी इस गन्ने के खेत में तुम चाहे जितना चीखो कोई सुनने वाला नहीं…”


अब उसने मेरी दोनों पतली कोमल कलाईयों को कस के पकड़ लिया और एक बार फिर से पूरे जोर से उसने धक्का लगाया,




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मेरी चीख निकलने के पहले ही उसने संतरे की फांक ऐसे मेरे पतले रसीले होंठों को अपने दोनों होंठों के बीच कसके भींच लिया

और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ दी।

मुझे उसी तरह जकड़े वह धक्के लगाता रहा।

मेरी आधी लाल गुलाबी चूड़ियां टूट गयीं।





मैं अपने गोरे-गोरे मदमस्त चूतड़, मिट्टी में रगड़ रही थी पर उसके लण्ड के निकलने का कोई चांस नहीं था। और जब आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत ने घोंट लिया तभी उस जालिम ने छोड़ा।





पर छोड़ा क्या… उसके हाथ मेरी कलाईयों को छोड़कर मेरी रसीली चूचियों को मसलने, गूंथने में लग गये।



उसके होंठों ने मेरे होंठों को छोड़कर मेरे गुलाबी गालों का रस लेना शुरू कर दिया और उसका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा था।


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“क्यों बहुत दर्द हो रहा है…” उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।


“बकरी की जान चली गयी और खाने वाला स्वाद के बारे में पूछ रहा है…” मुश्कुराते, आँख नचाते, शिकायत भरे स्वर में मैंने कहा।

“अरे स्वाद तो बहुत आ रहा है, मेरी जान, स्वाद तो मेरे इससे पूछो…”




और ये कह के उसने मेरे चूतड़ पकड़ के कस के अपने लण्ड का धक्का लगाया। अब वह सब कुछ भूल के गचागच गचागच मेरी चुदाई कर रहा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। दर्द तो बहुत हो रहा था, पर जब उसका लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुसता तो बता नहीं सकती, कितना मजा आ रहा था।

उसकी उंगलियां कभी मेरे निपल खींचतीं, कभी मेरी क्लिट छेड़तीं, और उस समय तो मैं नशे में पागल हो जाती। उसकी इस धुआंधार चुदाई से मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पहुँच गयी।



पर सुनील को भी मेरी हालत का अंदाज़ हो गया था और उसने अपना लण्ड मेरी चूत के लगभग मुहाने तक निकाल लिया।




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मैं- “हे डालो ना, प्लीज़ रुक क्यों गये, करो ना… अच्छा लगा रहा है…”

पर वह उसी तरह मुझे छेड़ता रहा।


मैं- “हे डालो ना, करो ना…” मैंने फिर कहा।





“क्या डालूं… क्या करूं… साफ-साफ बोलो…” वो बोला।
मैं- “चोदो चोदो, मेरी चूत… अपने इस मोटे लण्ड से कस-कस के चोदो, प्लीज़…”
“ठीक है, लेकिन आज से तुम सिर्फ इसी तरह से बोलोगी, और मुझसे एक बार और चुदवाओगी…”


मैं- “हां, हां, जो तुम कहो एक बार क्या मेरे राजा तुम जितनी बार बोलोगे उतनी बार चुदवाऊँगी, पर अभी तो…”



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उसने पूरी ताकत से मेरे कंधे पकड़ के इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका पूरा लण्ड एक बार में ही अंदर समा गया। और मैं झड़ गयी, देर तक झड़ती रही, पर वह रुका नहीं और धक्के मारता रहा, मुझे चोदता रहा।



थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरे जोश में आ गयी थी और उसके हर धक्के का जवाब चूतड़ उठा के देती। मेरे टीन चूतड़ उसके जोरदार धक्कों से जमीन पर रगड़ खा रहे थे। मेरी चूची पकड़ के, कभी कमर पकड़ के वह बहुत देर तक चोदता रहा और जब मैं अगली बार झड़ी तो उसके बाद ही वह झड़ा।





सुनील ने मुझे हाथ पकड़ के उठाया और मेरे नितम्बों पर लगी मिट्टी झाड़ने के बहाने उसने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के मारा और एक चूतड़ पकड़ के न सिर्फ दबोच लिया बल्की मेरी गाण्ड में उंगली भी कर दी।





“हे क्या करते हो मन नहीं भरा क्या, अब इधर भी…” मैंने उसे हटाते हुये कहा।

“और क्या, तेरे ये मस्त चूतड़ देख के गाण्ड मारने का मन तो करने लगाता है…” ये कहते हुये उसने मेरे जोबन दबाते हुये गाल कसकर काट लिया।

“उइइइइ…” मैं चीखी और उससे छुड़ाते हुए बाहर निकली।



साथ-साथ सुनील भी आया। बाहर निकलते ही मैं चकित रह गयी।

चन्दा के साथ-साथ अजय भी था।



सुनील ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था, मेरी चूची टीपते हुए, अजय को दिखाकर वो बोला- “देख मैंने तेरे माल पे हाथ साफ कर लिया…”



अजय कौन कम था, उसने चन्दा के गाल हल्के से काटते हुए कहा- “और मैंने तेरे पे…”



चन्दा भी छेड़ने के मूड में थी, उसने आँख नचाकर मुझसे पूछा- “क्यों, आया मजा… सुनील के साथ…”

मुंह बनाकर मैं बोली- “यहां जान निकल गयी और तू मजे की पूछ रही है…”



चन्दा मेरे पास आकर मेरे नितम्बों को दबोचती बोली-









“अभी चूतड़ उठा-उठाकर गपागप घोंट रही थी और… (मेरे कान में बोली) आगे का जो वादा किया है… और यहां छिनारपन दिखा रही है…”



“हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी।





“जहां से तू कल देख रही थी…”


मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की।
 
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नौवीं फुहार

सिंगार


हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“जहां से तू कल देख रही थी…” मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की।


[कुछ देर में भाभी मेरे कमरें में आयीं और बोली-

“हे तैयार हो जाओ, अभी पूरबी, गीता, कामिनी भाभी और औरतें, आती होंगी, आज फिर झूला झूलने चलेंगे। और हां ये मैं अपनी कुछ पुरानी चोलियां लाई हूं, जब मैं तुमसे भी छोटी थी, ट्राई कर लेना और ये बाकी कपड़ें भी हैं…”

चलते-चलते, दरवाजे पर रुक कर भाभी ने शरारत से पूछा- “तुम अपने आप तैयार हो जाओगी या… चम्पा भाभी को भेज दूं तैयार करवाने के लिये…”
“नहीं भाभी मैं तैयार हो जाऊँगी…” हँसकर उनका मतलब समझते मैं बोली और मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

अच्छी तरह नहा धोकर मैं तैयार हो गयी।

रंगीन घाघरा, पैरों में, खूब चौड़ी चांदी की घुंघरू वाली पाजेब जो जब चलूं तो दूर-दूर तक रुन झुन करे और जब… मैं सोचकर ही शर्मा गयी। हाथ में कंगन, बाजूबंद, कानों के लिये लंबे लटकते झुमके, मेरी चोटी भी मेरे नितम्बों तक लटकती थी, मैंने माथे को लाल बिंदी और गुलाबी होंठों पे गाढ़ी लिपिस्टक भी लगा ली।



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पर चोली जो थोड़ी फ़िट हुई वह पीले रंग की कोनिकल आकार वाली थी, और नीचे से मेरे टीन जोबन को पूरा उभार रही थी और टाइट भी बहुत थी। मुझे ऊपर के दो बटन खोलने पड़े पर अब मेरा गोरे-गोरे उभारों के बीच का क्लीवेज़ एकदम साफ दिख रहा था। जब मैंने दर्पण में देखा तो मैं खुद शर्मा गयी।

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दरवाजे पे खटखट की आवाज सुनकर मेरा ध्यान हटा। दरवाजा खोला, तो सामने पूरबी खड़ी थी-

“हे बड़ा सजा संवरा जा रहा है, आज किधर बिजली गिराने का इरादा है…” फिर मुझे बांहो में भर के मेरे कानों में बोली-

“यार लड़कों का कोई दोष नहीं हैं, तू चीज़ ही इतनी मस्त है, अगर मैं लड़का होती ना, तो मैं भी तुझे बिना चोदे नहीं छोड़ती…”

वह मेरा हाथ पकड़ के बरामदे में ले गयी, जहां गीता, उसकी कुछ और सहेलियां, चमेली भाभी, चम्पा भाभी बैठी थीं और बसंती सबके पैर में महावर लगा रही थी। बसंती ने मेरा भी पैर पकड़ा, कि मुझे भी महावर लगा दे पर मैं आनाकानी कर रही थी।

चमेली भाभी ने हँसकर मुझे छेड़ते हुये कहा- “अरे बसंती इसे तो सबसे कस के और चटख लगाना, गांव के जिस-जिस लड़के के माथे पे वो महावर लगा मिलेगा…”
मेरे गोरे गाल उनका मतलब समझकर शर्म से लाल हो गये पर पूरबी बोली-

“अरे भाभी, इसीलिये तो वो नहीं लगवा रही है कि चोरी पकड़ी जायेगी…”
और बसंती से बोली- “अरे महावर लगाते लगाते, जरा अंदर का भी दर्शन कर लो…”
“हां बसंती देख लो, अंदर घास फूस है या मैदान साफ है…” चमेली भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।
बसंती ने भी हँसकर मेरे घाघरे के अंदर झांकते हुए बोला- “मैदान साफ है, लगता है, घास फूस साफ करके पूरी तैयारी के साथ आयी हैं ननद रानी…”



 
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पूरबी



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मेरी भाभी मेरे बगल में आकर बैठ गयीं थीं। मेरी कलाईयों की ओर देखती हुई बोलीं- “अरे तुम्हारी चूड़ियां क्या हुईं… किसके साथ तुड़वा के आयी…”


“नहीं भाभी, बरसात है, फिसलन में गिर पड़ी थी…” मैं भोली बन के बोली।


“गिर पड़ी थी या किसी के साथ कुश्ती लड़ रही थी…” पूरबी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा




तब तक कामिनी भाभी आ गयीं खूब लहीम-शहीम लंबा कद, ताकतवर, पकड़ लें तो कोई तगड़ा मर्द भी न छुड़ा पाये, गोरा रंग, कम से कम 38डी जोबन लेकिन एकदम कड़े और फर्म, मजाक करने और गालियां देने में चम्पा भाभी से भी दो हाथ आगे। मैं उनसे मिली नहीं थी पर सुना बहुत था।



मेरा चेहरा पकड़कर ध्यान से उन्होंने देखा और बोलीं- “जितना सुना था उससे भी बहुत अच्छा पाया…”


और फिर भाभी को छेड़तीं बोलीं-



“इसको इत्ता छेड़ रही हो, पर भूल गयी। इससे कम से कम तुम दो साल छोटी रही होगी, जब श्यामू ने तुम्हारे साथ… और उसके बाद…”


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हँसते हुए, भाभी ने उन्हें रोकते हुये कहा-



“अरे जाने दीजिये भाभी आप तो इसके सामने मेरी सारी पोल ही खोल देंगी…”

पर मेरे गाल पर चिकोटी काटती चम्पा भाभी बोलीं- “अरे अब इससे क्या छिपाना, अब ये भी तो हमारी गोल की हो गयी है…”



पूरबी, मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी, और वह मेरी भाभी की बहन लगती थी। तीन चार महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी और वह शादी के बाद पहली बार सावन में अपने मायके आयी थी, और अपनी ननद को छेड़ने का कोई मौका, कामिनी या चमेली भाभी क्यों छोड़तीं।






“इससे तो पूछ रही थी कि इसकी चूड़ी कहां… किसके साथ टूटी, तू बता… पहली रात में कितनी चूड़ियां टूटीं…” कामिनी भाभी ने पूछा।
“भाभी सच बताऊँ, दो दरज़न पहनी थीं अगली सुबह एक दरजन बचीं…” मुश्कुराती हुई पूरबी ने कबूला।

अच्छा बता आने के पहले झूला झूला की नहीं…” चमेली भाभी ने पूछा।

पूरबी- “वो तो मैं रोज…”

उसकी बात काटकर चम्पा भाभी बोलीं-



“अरे वो तो मुझे मालुम है दिन रात चुदवाती होगी, मुझे मालूम है कि मेरी ननदों का एक दिन बिना मोटे लण्ड के नहीं कट सकता, पर आने के पहले कभी झूले पे…”



पूरबी बोली- “धत्त… हां… यहां आने के एक दिन पहले… घर में कोई नहीं था, बादल खूब जोर से बरस रहे, और मैं, उनकी गोद में बैठी झूला झूल रही थी कि उन्होंने मेरी पहले तो चोली खोलकर जोबन दबाने शुरू किये और फिर साड़ी उठाकर करने लगे…”





“अरे मैं तेरी साड़ी उठाकर अपना हाथ तेरी चूत के अंदर कलाई तक कर दूंगी। साफ-साफ बता… डिटेल में…” कामिनी भाभी बोलीं।

अब पूरबी के पास कोई चारा नहीं बचा था, वह सुनाने लगी-



“मेरी चूची दबाते-दबाते, और मेरे चूतड़ों के रगड़ से उनका लण्ड एकदम खड़ा हो गया था, उन्होंने मुझसे जरा सा उठने को कहा और मेरी साड़ी साया उठाकर कमर तक कर दिया और अपना पाजामा भी नीचे कर लिया।
मेरी चूत फैलाकर मेरे चूत को सेंटर करके उन्होंने धक्का लगाया और पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया, फिर वह मेरी चूचियां पकड़ के धक्का लगाते और मैं झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती, खूब खच्चाखच्च अंदर जा रहा था।

वो मेरा कभी गाल काटते, कभी चूम लेते। काफी देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उठकर झूले पे उनकी गोद में आ जाऊँ। मैं उनको फेस करते हुये, उनकी गोद में बैठ गयी, उन्होंने सुपाड़े को मेरी चूत में घुसाके मेरी पीठ पकड़के कसके मुझे अपनी ओर खींचा और अबकी बार तो पूरा लण्ड जड़ तक अंदर तक घुस गया था, मेरी चूचियां उनकी छाती से दब पिस रहीं थीं, अब तक बारिश भी खूब तेज हो गयी थी और तेज हवा के चलते बौछार भी एकदम अंदर आ रही थी।

हम दोनों अच्छी तरह से भीग रहे थे, पर चुदाई के मजे में कौन रुकता।

वो एक हाथ से मेरी पीठ पकड़ के धक्के लगाते और दूसरी से मेरी चूचियां, क्लिट मसलते और मैं दोनों हाथों से झूले की रस्सी पकड़ के पेंग लगाती… झड़ने के बाद भी हम लोग वैसे ही झूलते रहे…”

औरों का तो नहीं मालूम पर ये हाल सुनके मैं एकदम गरम हो गयी थी। मेरे मुँह से निकला-

“पर… कैसे… झूले पर… झूलते…”

“अरे मेरी बिन्नो, आज मैं झूले पर तुम्हारे ठीक पीछे बैठूंगी, और तुम्हारे ये दोनों रसीले जोबन दबाते, जिसके इस गांव के सारे लड़के दीवाने हैं, तुम्हें अच्छी तरह ट्रेनिंग दे दूंगी…”

वास्तव में मेरे जोबन कसके पकड़कर, दबाते, पूरबी बोली।

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“पूरबी सही कह रही है, देखो तुम, (मेरी भाभी से वो बोलीं) पूरबी, मेरी सारी ननदें पक्की छिनाल हो, और ये तुम्हारी ननदें है तो जब ये यहां से वापस जाय तो तब तक तो दर-छिनाल हो जानी चाहिये, इसकी ट्रेनिंग तो पक्की होनी चाहिये…” कामिनी भाभी ने कहा।

“इसकी ट्रेनिंग मेरे सारे देवर देंगे…” चमेली भाभी ने हँसकर कहा-



“और यहां से लौटने के बाद मेरा देवर, इसका टेस्ट लेगा, क्यों ठीक है ना…” मुझसे पूछते हुए, मेरी आँखों में आँखें डालकर, भाभी बोली।



“हां और जब ये कातिक में वापस आयेगी ना तो फाईनल इम्तहान राकी के साथ, क्यों…” चम्पा भाभी कहां चुप रहने वालीं थीं।



“इसकी तो ऐसी ट्रेनिंग होनी चाहिये की ऐसी छिनार कहीं ना हो, बाकी “खास” ट्रेनिंग हम तुम मिलकर दे देंगे…” अर्थ पूर्ण ढंग से मुश्कुराते हुये, कामिनी भाभी चम्पा भाभी से बोलीं।



“दीदी, तुम कहो तो मैं भी कुछ इसकी ट्रेनिंग करवा दूं…” पूरबी मेरी भाभी से मुश्कुरा के बोली।

“और क्या, तुम ससुराल से इत्ती प्रैक्टिस करके आयी हो, और… आखिर ये तुम्हारी भी तो ननद है…” भाभी बोलीं।

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हमलोग झूले के लिये निकलने ही वाले थे की जमकर बारिश शुरू हो गयी और हमारा प्रोग्राम धरा का धरा रह गया।
 
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komaalrani

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Superb.... Awesome updates.....

Keep it up !!!!!
:yay::yo::superb::yourock:
Thank next update posted
 
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