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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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मजे पेड़ पर

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गाँव के किनारे जो चांदी की हँसुली सी नदी थी, बस एकदम बगल में, ... और वही जगह जहाँ मैं पूरबी के साथ नदी नहाने आयी थी,... और नदी में खूब मस्ती की थी, वो जगह लड़कियों औरतों की थी और वहां लड़के एकदम नहीं आते थे,

भाभी के घर में जो महरीन आती थी और कुंए से पानी भरने के लिए दोनों कहारिन, ... वही थीं ,



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एक दो और , जिन्हे मैं पहचानती थी बस नाम नहीं जानती थी,....



वो सब शायद हम दोनों को नहीं देख पाती, पर १०० शैतान मरे होंगे तो चंदा पैदा हुयी होगी, उसने वहीँ से हंकार लगाई, भौजी

एक दो पल तो वो सब इधर उधर फिर जो एक कहाईन थी उसने चंदा को देख लिया,... और बाकी भी चंदा की ओर,...

मैं एकदम डाली से दुबक गयी,... पर चंदा ये मौका छोड़ती,...

उसने फिर वहीँ से आवाज लगाई,

" भौजी देखो कितना मस्त माल लायी हूँ , तोहरे देवरों के लिए "

और अबकी सब की सब मुझे देख रही थी, महरीन भाभी के घर वाली जो मुझे पहले दिन से छेड़ती थी, ... अंगूठे को गोल करके ऊँगली अंदर बाहर,... इंटरनेशनल चुदाई का सिंबल,...


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मैं सब देख रही थी और जान रही थी गाँव का टेलीग्राफ , दो चार घंटे में मेरी ये हालत न सिर्फ गाँव में बल्कि आस पास के गाँव जवार में फ़ैल जायेगी,...

मैं डालियों पत्तियों के बीच दुबकने की कोशिश कर रही थी,... साथ में डाली कस के पकडे दबोचे,...


लेकिन तबतक पीछे से मैंने उसी डाल पर पत्तियों के सरसराने की आवाज सुनी,...

और चंदा की आवाज, देख कौन है तेरे पीछे कौन है,

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लेकिन उसके पहले ही, जिस मोटी डाल को कस के दबोच के मैं अधलेटी थी, वो हल्की सी काँपी,

पत्तियों में हलकी सी सिहरन हुयी, बगल की डाल पर बैठी चुहचुईंहिया उड़ गयी,...

और उस के साथ ही,... एक तेज भभका मरद की महक का, काम में डूबी गंध, जिसे मुझ जैसी जवान होती लड़कियां दूर से सूंघ लेती हैं , और वह मादक महक उन्हें एकदम जड कर देती है,...

मैंने डाल और कस के दबोच ली, कनखियों से पीछे देखा, लेकिन जो आँखों ने देखा उससे पहले कानों ने बता दिया कौन था,

चंदा की आवाज, मीठी मीठी गालियां भी उकसाना भी,... सुनील को, ढेर सारे उलाहने भी, मेरी और से, एकदम मेरी अच्छी वाली सहेली की तरह,..



" स्साले, मेरी प्यारी इत्ती मीठी मीठी सहेली, अपना पिछवाड़ा ऊपर किये , खोले उघारे , इंतज़ार में बैठी है,... उसका पिछवाड़ा देख कर इतना लिबराता था और अब,... तेरी छुटकी बहिनिया को पांच रूपये में बेच दूंगी अगर तूने और इन्तजार करवाया इसको,... स्वागत का बोर्ड अपनी गाँड़ पर लगवा के बैठे क्या, ... इतना मस्त पिछवाड़ा,... "

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जैसे तेंदुआ चुपके से पेड़ की डालों पर चढ़ा, छुपा, जब उसका शिकार एकदम निश्चिन्त, उसी समय झपट्टा मारता है , एकदम उसी तरह,...

और मुझे कुछ भी पता नहीं चला, उसकी देह छू भी नहीं गयी , सिवाय,... हाँ तेज उसकी महक,... जैसे संपेरे की बीन के आगे नागिन सिर्फ झूमती रहती है, उसका कुछ भी उसके बस में नहीं रहता,

बस न मेरी देह मेरे बस में थी, न मन,

बस सोच रही थी, जो होना है हो जाए,... लेकिन वो दुष्ट, उसकी परछाहीं मैं अपनी देह पर महसूस कर रही थी, जैसे मेरे खड़े रोयें उसके रोम रोम से छू रहे हों,

मैं अगले पल की प्रतीक्षा में, लेकिन वो दुष्ट, उसकी सबल बाहें डाली को पकड़े, जैसे उसने अपने आलिंगन में मुझे दबोच रखा हो कस के , हाँ पहला स्पर्श हुआ , और किसका उसी मोटू दुष्ट का, मेरे दुश्मन का,... हलके से बस मेरे नितम्बो पर छू सा गया, फिर नितम्बों की बीच की दरार पर, एकदम उत्थित, उत्तेज्जित, और उसने अपनी कमर और ऊपर उठा दी,


मिलन को आतुर मेरी देह धनुष की तरह तनी, मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ गए, उसके स्पर्श को, और फिर जस्ट टच, एक सिहरन,...

मैं भूल गयी थी कहाँ हूँ ,... लेकिन एक तेज पीड़ा ने अहसास दिलाया,

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शिकारी के तीर ने शोख हिरणी को बेध दिया था, सिर्फ फल ही धंसा था, हिरणी कुछ देर भाग भी सकती थी, लेकिन वो जानती थी कुछ पल में क्या होने वाला है ,...



और अब सावन के घने काले बादलों की तरह मैं सुनील की देह से आच्छादित थी,...

पर था मेरा साथी पक्का खिलाड़ी, जो बातें कामिनी भाभी ने मुझे रच रच के सुनाई सिखाई थीं , सब गुर उसे मालूम थे,...


कामिनी भाभी ने बोला था की जो असली चुदवैया होता है उसे गांड मारने और बुर चोदने का अंतर् मालूम होता है , उसी तरह गाँड़ मरवाने वाली को भी,

चुदाई का मज़ा तो जबरदस्त धक्कों का है , बुर के शुरू के हिस्से में ही ढेर सारी नर्व एंडिंग्स होती हैं और जब मोटा मूसल उसे रगड़ते घुसता है तो औरत की देह छनछना जाती है और जब मोटा सुपाड़ा बच्चेदानी पर धक्का मारता तो कुछ ही होंगी जो झड़ती नहीं होंगी,... और आठ दस धक्के मर्द के जोरदार लग जाएँ बच्चेदानी पे तो लड़की थेथर हो जाती है,
पर पिछवाड़े कोई नर्व एंडिंग्स तो होती नहीं तो उसका मजा, सिर्फ फैलाने, एक फिलिंग की फीलिंग, एकदम पूरा घुसा हुआ है , धंसा हुआ है खूब कस के चौड़ा फैलाये हुए है , इस लिए गांड़ मरवाई का मजा ही दर्द में है,

और कामिनी भाभी ने मुझे जो सिखाया था , वो सब भी मैंने करना शुरू कर दिया , गाँड़ के छल्ले को ढीला करो,... खूब ढीला, ... वहां पर से ध्यान हटा दो देह पूरी ढीली, ...



और सरसराता हुआ मोटा सांप जैसे अपनी बिल में घुस जाता है , एकदम उसी तरह सुनील का मेरे पिछवाडे,


मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी, ...



वो घुसता गया धंसता गया,...



और फिर एक ट्रिक जो कामिनी भाभी ने आगे के लिए सिखाई थी, वो मैंने पीछे,...

नट क्रैकर, जब मेरे यार का आधे से ज्यादा घुस गया तो मैंने सिकोड़ना, फिर निचोड़ना शुरू किया, मेरी उस अँधेरी सुरंग को पहले अंदर से एकदम बाहर तक, फिर बाहर से अंदर जड़ तक,... अब सुनील बाबू की हालत खराब होनी शुरू हो गयी,... और उसने भी हलके हलके धक्के

तब तक चन्दा ने मेरे कान में कुछ कहा,...

मैंने जोर से धत्त कहा, और शरमा गयी, लेकिन,...

आज तक जो जो चंदा ने कहा था उसे मानने से मुझे फायदा ही हुआ, मजे ही मिले खूब,



इसलिए, थोड़ा तो मैं हिचकी, झिझकी, पर फिर बहुत हलके हलके,.... फिर थोड़ा और जोर से,...
 

komaalrani

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घचाघच्च घचाघच्च सटासट गपागप - पिछवाड़े


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और सरसराता हुआ मोटा सांप जैसे अपनी बिल में घुस जाता है , एकदम उसी तरह सुनील का मेरे पिछवाडे,



मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी, ...



वो घुसता गया धंसता गया,...

और फिर एक ट्रिक जो कामिनी भाभी ने आगे के लिए सिखाई थी, वो मैंने पीछे,...

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नट क्रैकर, जब मेरे यार का आधे से ज्यादा घुस गया तो मैंने सिकोड़ना, फिर निचोड़ना शुरू किया, मेरी उस अँधेरी सुरंग को पहले अंदर से एकदम बाहर तक, फिर बाहर से अंदर जड़ तक,... अब सुनील बाबू की हालत खराब होनी शुरू हो गयी,... और उसने भी हलके हलके धक्के

तब तक चन्दा ने मेरे कान में कुछ कहा,...


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मैंने जोर से धत्त कहा, और शरमा गयी, लेकिन,...

आज तक जो जो चंदा ने कहा था उसे मानने से मुझे फायदा ही हुआ, मजे ही मिले खूब,

इसलिए, थोड़ा तो मैं हिचकी, झिझकी, पर फिर बहुत हलके हलके,.... फिर थोड़ा और जोर से,...

फिर मेरी जो हालत खराब हुयी, और मुझसे ज्यादा मेरे ऊपर चढ़े, मेरे पिछवाड़े धंसे,... सुनीलवा की,... एकदम से गिनगीना गया वो, और फिर तो भूत सवार हो गया,
( चंदा ने मुझे कान में कहा था, मैं पेड़ की डाल पर उलटी तो लेटी ही हूँ, बस डाल की छाल से हलके हलके अपनी क्लिट, वो जादुई बटन बस ज़रा सा रगडूं,...


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और अपने दोनों टांगों के बीच डाल को तो मैंने कस के दबोच रखा ही था, बस, और ऊपर से अब सुनील की देह का पूरा बोझ मेरे ऊपर... एक दो बार हलके हलके हलके रगड़ा, देह कांपने लगी ऐसा मजा आया, फिर रगड़ने की रफ्तार थोड़ी बढ़ीं, वहां ऊँगली से अपने को खुद रगड़ रगड़ कर तो कितनी बार मैं झड़ी थी , पर ये तो उससे भी ज्यादा, १०० गुना, हजार गुना ज्यादा मजा दे रहा था ,

और साथ में मेरे दोनों जुबना भी पेड़ की खुरदुरी छाल से रगड़े जा रहे थे,


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और ,.. और उसका असर,... यहाँ आने के बाद,... चंदा ने नहीं लेकिन बसंती, कामिनी भाभी, चंपा भाभी, सब ने यह बात समझायी थी , एक बार नहीं बार बार, चुदाई हो या गाँड़ मरवाई, शुरू में चाहे जितना नखड़ा कर लो, ... लेकिन बाद में लड़की को भी लौंडे का साथ देना चाहिए, आँखों से उसे प्यार से देख कर , कभी कभी नीचे से हलके से धक्के लगा के, उसकी देह का सिग्नल जाना चाहिए , उसके बाद तो लड़का भूत हो जाता है )



और सुनील भूत हो गया, ... मेरी गाँड़ मारने का भूत तो तभी से उस पर चढ़ा था , जब वो मेले में मेरे पीछे पीछे जा रहा था , और गा गा के मुझे छेड़ रहा था, लॉलीपॉप लागेलु , जिला टॉप लागेलु ,... तभी से,



और अभी तो मैं उसके नीचे दबी कुचली,..



अभी तक तो उस मोटे सांप का फन ही घुसा था,... लेकिन अँधेरा हो, घनी घास हो, गहरा जंगल हो, सांप को कभी अपनी बिल ढूढ़ने के लिए फ्लैश लाइट की जरूरत पड़ती है क्या,... और यहाँ तो सांप बिल में धंस ही चुका था,... बस सरसराता, सरकता, धीरे धीरे वो अपनी बिल के अंदर घुसता गया, धंसता गया,



मैं कभी चीखती कभी सिसकती,.... लेकिन अब मुझे कामिनी भाभी ऐसी गुरआनी ने सांप के सारे मनतर अच्छी तरह सिखा पढ़ा दिए थे, मोटे से मोटे कड़ियल से कड़ियल और खूब जहरीले सांप को, न सिर्फ पकड़ने का उससे खेलने का बल्कि उसका सफ़ेद जहर भी निकाल देने का,...

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छाल से रगड़ती मेरी क्लिट और दोनों छोटी छोटी चूँचियाँ,... ऊपर से दबाता घुसता सुनील का मोटा बेरहम,... और मैं भी अपनी बदमाशी पर ऊपर आयी थी, कभी हलके से ऊपर की ओर धक्का तो कभी पिछवाड़े का छेद निचोड़ कर, अब जड़ तक घुसे उसके मोटे मुटल्ले को मैं तंग कर रही थी, ...

सटासट, गपागप, सटासट, गपागप,


दिनेश और सुनील दोनों की पिछली बार मलाई बुचोबच मेरे पिछवाड़े भरी थी, नेचुरल क्रीम,...

कामिनी भाभी ने समझाया था मरद की मलाई से बढ़कर कउनो और दवाई लड़की की बुर और गाँड़ के लिए नहीं होती,.. इसलिए एकदम कस के दबोच के, एक भी बूँद कभी भी बाहर मत निकलने देना,...


मैं जानती सुनील स्साला, दो बार पहले ही मेरे अंदर तक झड़ चुका है , अबकी तो सुपर टाइम लेगा, लेगा तो ले स्साला,... मुझे ही कौन जल्दी थी और जल्दी न उसे थी न चंदा को ,...

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खूब मजे ले ले कर कभी धीरे धीरे कभी तूफ़ान मेल मात,... अंदर वो मोटा बांस और आगे जादू की बटन से रगड़ती आम के पेड़ की छाल मेरी देह पागल हो गयी थी और, जित्ती मस्ती बढ़ती उत्ती जोर से मैं कभी अपने पिछवाड़े धंसे घुसे मोटे मूसल को दबोचती, निचोड़ती कभी अपनी गुलाबो को आम की डाल से रगड़ाती,... और बस पांच छह मिनट के अंदर मेरी देह पेड़ के पत्तो की तरह कांपने लगी,



सुनील पूरी तरह से मेरे अंदर घुसा धंसा था, मेरे ऊपर चढ़ा था,.. एक पल के लिए थम गया वो,....



मैं झड़ती रही, कभी तूफान की तरह कभी बस बूँद बूँद,... जैसे तेज बारिश के बाद देर तक ओरो से, पेड़ों की पत्तियों से टप टप रुक रुक के बूंदे गिरती रहती हैं, ...

और सुनील एक बार फिर शुरू हो गया, और अबकी फिर से तूफान मेल, इंजन का पिस्टन जैसे अंदर बाहर होता है,...

मैंने अपने को अबकी पूरी तरह उसके ऊपर छोड़ दिया था,... वो जैसे मेरी देह का हिस्सा था,...

और मेरी देह कुछ देर बाद फिर मेरा साथ छोड़ रही थी, तूफ़ान के पत्ते की तरह मैं जोर जोर से सिसक रही दुबारा झड़ रही थी,


चंदा दुष्ट मुझे छेड़ रही थी, मजे ले रही थी, सच में बिना उस कमीनी के गाँव के ये मज़े मुझे नहीं मिल सकते थे।


सुनील में बहुत ताकत थी , रगड़ के रख देता था,... एकदम कुचल दे रहा था, ...

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और जब तीसरी बार मेरी देह में तूफ़ान आया तो साथ में सुनील भी,...

और उस मोटे सांप ने सारे का सारा सफ़ेद जहर मेरी पिछवाड़े वाली बिल के एकदम अंदर जा के उगला,... उसका जहर रुक भी जाता तो मैं एक जान बूझ के के फिर से उस सांप को दबाने निचोड़ने लगती, मुझमे मालूम था बहुत जहर है उसमें, और मैं एक एक बूँद उसका निकलवा लेना चाहती थी,... दो बार तीन बार,...



और आखिरी बूँद तक,...

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लेकिन उसके बाद भी, मुझे बार बार समझाया था बसंतिया ने , मर्द का झड़ जाये तो भी उठने की, उसका निकालने की जल्दी मत करना, कम से कम पांच मिनट ,... उस समय ऐसा आलस चढ़ता है उनपर, कम से कम पांच सात मिनट,...

मैं पूरे दस मिनट तक, लेकिन अब एक नया डर समा गया ,

पेड़ पर से उतरूंगी कैसे , और जैसे मेरे बिना कहे सुनील मेरी बात समझ गया, मेरे कान में बोला,

" तू कुछ मत कर, बस मेरे ऊपर बिश्वास कर, मैं उतार लूंगा तुझे , बस अपनी देह ढीली कर,.... और पैरों और हाथ की इस डाल पर पकड़ को ढीली कर दे,

चंदा ने भी हिम्मत बढ़ाई, छोड़ना मत बस पकड़ ढीली कर दे , सुनील उतार लेगा तुझे।

और सुनील मेरे अंदर धंसे धंसे, मुझे पकड़े पकडे, ... धीरे धीरे सरकते,...

और जब दो चार हाथ रह गया तो मुझे लिए दिए सुनील पेड़ पर से कूद गया,
 

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वापस घर को

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लेकिन अब एक नया डर समा गया ,

पेड़ पर से उतरूंगी कैसे , और जैसे मेरे बिना कहे सुनील मेरी बात समझ गया, मेरे कान में बोला,

" तू कुछ मत कर, बस मेरे ऊपर बिश्वास कर, मैं उतार लूंगा तुझे , बस अपनी देह ढीली कर,.... और पैरों और हाथ की इस डाल पर पकड़ को ढीली कर दे,

चंदा ने भी हिम्मत बढ़ाई, छोड़ना मत बस पकड़ ढीली कर दे , सुनील उतार लेगा तुझे।

और सुनील मेरे अंदर धंसे धंसे, मुझे पकड़े पकडे, ... धीरे धीरे सरकते,...



और जब दो चार हाथ रह गया तो मुझे लिए दिए सुनील पेड़ पर से कूद गया,



और मेरे पैर जमीन पर, एक बार फिर मैं उस आम के पेड़ के तने से चिपकी,...



सुनील पीछे से मुझसे चिपका, मेरे अंदर धंसा घुसा,

और चंदा हंसती खिलखिलाती , सुनील को उकसाती, मुझे चिढ़ाती

अरे अभी भी इस की गाँड़ में मोटे मोटे चींटे काट रहे हैं, कस कस के एक बार और गाँड़ मार ले इसकी खड़े खड़े,

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सुनील का भी न जबरदस्त, स्साले का झड़ने का बाद भी एकदम ढीला नहीं होता था, अच्छा खासा सा कड़ा मोटा,



बस मैं पेड़ को पकडे चिपके, और वो वहीँ खड़े खड़े धक्के मारने लगा,



मैं जानती थी वो मज़ाक कर रहा है पर क्या पता, मैं कभी चिल्लाती कभी निहोरा करती,

और में भी स्साली मोटे लंड को , खास तौर पे सुनील का पा के न पागल हो जाती थी,मैं कस के पेड़ को पकडे चिपकी, लंड के धक्के मजे से गाँड़ में खा रही थी।

पर कुछ देर बाद मुझे होश की ये स्साला बहन का, .. कहीं चालू हो गया न तो रोके नहीं रुकेगा,...और मैं फिर उससे निहोरा करने लगी

" यार मेरे छोड़ दे न प्लीज, जब बुलाएगा, जहाँ बुलाएगा आउंगी, जो कहेगा, सच में अगली बार ज़रा भी नखड़ा नहीं करुँगी, चढ़ जाउंगी जो कहेगा तुरंत, लेकिन अभी निकाल ले यार,... "



सुनील ने निकाल लिया अभी भी थोड़ा सा टनटनाया, आधा खड़ा,... और हचक के मारी गयी गाँड़ से निकले लंड की जो हालत होती है, मक्खन मलाई दोनों से लिपटा,



" हे मेरी सहेली, गाँड़ इतना मजे ले लेकर मरवा रही थी अब इसे साफ़ सूफ़ कौन करेगा,... " चंदा ने मुझे हड़काया,...

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और अब तक इस में मुझे भी मजा आने लगा था, सुनील उस आम के मोटे पेड़ के सहारे खड़ा,... और मैं घुटने के बल बैठी, ...

सुनील की आँखों में आँखों डाल के उसे चिढ़ाती , पहले जीभ से आराम से धीरे धीरे सुपाड़ा साफ़ करती,...



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चंदा भी मेरे बगल में मेरी तरह से ही बैठी, मुझे साफ़ करते चूसते देख रही थी,

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" जल्दी जल्दी कर,... " वो बोली और मैंने गप्प से आधा मूसल मुंह में ले लिया, और रस ले ले के चूसने लगी,



" रानी, अभी तो अपनी गाँड़ का रस ले रही है, बहुत जल्द तरह तरह की अलग अलग, गाँड़ का,... सीधे से नहीं तो जबरदस्ती,... तेरी सब भौजाइयां गाँव भर की पगला रही है तुझे अपनी अपनी गाँड़ का, ... "

मेरे कान में फुसफुसाती,उस दुष्ट ने मुझे चिढ़ाया,



मैं कुछ जवाब दे भी नहीं सकती थी , मेरे गले तो तक सुनील ने अपना खूंटा पेल रखा था,..


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लेकिन चंदा स्साली जन्म की छिनार अपने यार से भी दो हाथ आगे थी,... चढ़ गयी मेरे ऊपर.

सुनील ने तो खूंटा निकाल लिया, पर चंदा रानी,

" हे देख ले अच्छी तरह से चाट चूट के साफ़ कर दे , कुछ भी बचना नहीं चाहिए,... जरा सा भी,... "

"अच्छा कमीनी, ... " और एक बार फिर मैं साइड से भी,... अच्छी तरह से चाट चाट के,...

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थोड़ी देर बाद मैंने मुंह हटाया तो मारे थकान और दर्द के खेत में खेत रही,... न उठा जा रहा था न उठने का मन कर रहा था, पूरा पोर पोर दुःख रहा था।
हाँ एक बात और जब चन्दा दिनेश को खेत से बाहर छोड़ने गई थी, सुनील ने मुझसे एक जरूरी बात की और तीन तिरबाचा भरवा लिया उसके लिए।


बताऊँगी न, एक बार चन्दा को जाने तो दीजिये।

मैं उठ नहीं पाई, किसी तरह सुनील और चन्दा ने मुझे खड़ा किया और दोनों के कंधे के सहारा लेकर मैं चल रही थी। एकदम जैसे गौने की रात के बाद ननदें अपनी भौजाई को किसी तरह पकड़कर सहारे से, पलंग से उठा के ले आती हैं।

सुनील तो गन्ने के खेत से बाहर निकल के जहां अमराई आती है वहीं मुड़ गया, हाँ इशारे से उसने अपने वादे की याद दिलाई और मैंने भी हल्के से सर हिला के, मुश्कुरा के हामी भर दी।







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Nick107

Ishq kr..❤
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Very sensual 💋😍🙈
VVeerघचाघच्च घचाघच्च सटासट गपागप - पिछवाड़े


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और सरसराता हुआ मोटा सांप जैसे अपनी बिल में घुस जाता है , एकदम उसी तरह सुनील का मेरे पिछवाडे,



मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी, ...



वो घुसता गया धंसता गया,...

और फिर एक ट्रिक जो कामिनी भाभी ने आगे के लिए सिखाई थी, वो मैंने पीछे,...

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नट क्रैकर, जब मेरे यार का आधे से ज्यादा घुस गया तो मैंने सिकोड़ना, फिर निचोड़ना शुरू किया, मेरी उस अँधेरी सुरंग को पहले अंदर से एकदम बाहर तक, फिर बाहर से अंदर जड़ तक,... अब सुनील बाबू की हालत खराब होनी शुरू हो गयी,... और उसने भी हलके हलके धक्के

तब तक चन्दा ने मेरे कान में कुछ कहा,...


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मैंने जोर से धत्त कहा, और शरमा गयी, लेकिन,...

आज तक जो जो चंदा ने कहा था उसे मानने से मुझे फायदा ही हुआ, मजे ही मिले खूब,

इसलिए, थोड़ा तो मैं हिचकी, झिझकी, पर फिर बहुत हलके हलके,.... फिर थोड़ा और जोर से,...

फिर मेरी जो हालत खराब हुयी, और मुझसे ज्यादा मेरे ऊपर चढ़े, मेरे पिछवाड़े धंसे,... सुनीलवा की,... एकदम से गिनगीना गया वो, और फिर तो भूत सवार हो गया,
( चंदा ने मुझे कान में कहा था, मैं पेड़ की डाल पर उलटी तो लेटी ही हूँ, बस डाल की छाल से हलके हलके अपनी क्लिट, वो जादुई बटन बस ज़रा सा रगडूं,...


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और अपने दोनों टांगों के बीच डाल को तो मैंने कस के दबोच रखा ही था, बस, और ऊपर से अब सुनील की देह का पूरा बोझ मेरे ऊपर... एक दो बार हलके हलके हलके रगड़ा, देह कांपने लगी ऐसा मजा आया, फिर रगड़ने की रफ्तार थोड़ी बढ़ीं, वहां ऊँगली से अपने को खुद रगड़ रगड़ कर तो कितनी बार मैं झड़ी थी , पर ये तो उससे भी ज्यादा, १०० गुना, हजार गुना ज्यादा मजा दे रहा था ,

और साथ में मेरे दोनों जुबना भी पेड़ की खुरदुरी छाल से रगड़े जा रहे थे,


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और ,.. और उसका असर,... यहाँ आने के बाद,... चंदा ने नहीं लेकिन बसंती, कामिनी भाभी, चंपा भाभी, सब ने यह बात समझायी थी , एक बार नहीं बार बार, चुदाई हो या गाँड़ मरवाई, शुरू में चाहे जितना नखड़ा कर लो, ... लेकिन बाद में लड़की को भी लौंडे का साथ देना चाहिए, आँखों से उसे प्यार से देख कर , कभी कभी नीचे से हलके से धक्के लगा के, उसकी देह का सिग्नल जाना चाहिए , उसके बाद तो लड़का भूत हो जाता है )



और सुनील भूत हो गया, ... मेरी गाँड़ मारने का भूत तो तभी से उस पर चढ़ा था , जब वो मेले में मेरे पीछे पीछे जा रहा था , और गा गा के मुझे छेड़ रहा था, लॉलीपॉप लागेलु , जिला टॉप लागेलु ,... तभी से,



और अभी तो मैं उसके नीचे दबी कुचली,..



अभी तक तो उस मोटे सांप का फन ही घुसा था,... लेकिन अँधेरा हो, घनी घास हो, गहरा जंगल हो, सांप को कभी अपनी बिल ढूढ़ने के लिए फ्लैश लाइट की जरूरत पड़ती है क्या,... और यहाँ तो सांप बिल में धंस ही चुका था,... बस सरसराता, सरकता, धीरे धीरे वो अपनी बिल के अंदर घुसता गया, धंसता गया,



मैं कभी चीखती कभी सिसकती,.... लेकिन अब मुझे कामिनी भाभी ऐसी गुरआनी ने सांप के सारे मनतर अच्छी तरह सिखा पढ़ा दिए थे, मोटे से मोटे कड़ियल से कड़ियल और खूब जहरीले सांप को, न सिर्फ पकड़ने का उससे खेलने का बल्कि उसका सफ़ेद जहर भी निकाल देने का,...

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छाल से रगड़ती मेरी क्लिट और दोनों छोटी छोटी चूँचियाँ,... ऊपर से दबाता घुसता सुनील का मोटा बेरहम,... और मैं भी अपनी बदमाशी पर ऊपर आयी थी, कभी हलके से ऊपर की ओर धक्का तो कभी पिछवाड़े का छेद निचोड़ कर, अब जड़ तक घुसे उसके मोटे मुटल्ले को मैं तंग कर रही थी, ...

सटासट, गपागप, सटासट, गपागप,


दिनेश और सुनील दोनों की पिछली बार मलाई बुचोबच मेरे पिछवाड़े भरी थी, नेचुरल क्रीम,...

कामिनी भाभी ने समझाया था मरद की मलाई से बढ़कर कउनो और दवाई लड़की की बुर और गाँड़ के लिए नहीं होती,.. इसलिए एकदम कस के दबोच के, एक भी बूँद कभी भी बाहर मत निकलने देना,...


मैं जानती सुनील स्साला, दो बार पहले ही मेरे अंदर तक झड़ चुका है , अबकी तो सुपर टाइम लेगा, लेगा तो ले स्साला,... मुझे ही कौन जल्दी थी और जल्दी न उसे थी न चंदा को ,...

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खूब मजे ले ले कर कभी धीरे धीरे कभी तूफ़ान मेल मात,... अंदर वो मोटा बांस और आगे जादू की बटन से रगड़ती आम के पेड़ की छाल मेरी देह पागल हो गयी थी और, जित्ती मस्ती बढ़ती उत्ती जोर से मैं कभी अपने पिछवाड़े धंसे घुसे मोटे मूसल को दबोचती, निचोड़ती कभी अपनी गुलाबो को आम की डाल से रगड़ाती,... और बस पांच छह मिनट के अंदर मेरी देह पेड़ के पत्तो की तरह कांपने लगी,



सुनील पूरी तरह से मेरे अंदर घुसा धंसा था, मेरे ऊपर चढ़ा था,.. एक पल के लिए थम गया वो,....



मैं झड़ती रही, कभी तूफान की तरह कभी बस बूँद बूँद,... जैसे तेज बारिश के बाद देर तक ओरो से, पेड़ों की पत्तियों से टप टप रुक रुक के बूंदे गिरती रहती हैं, ...

और सुनील एक बार फिर शुरू हो गया, और अबकी फिर से तूफान मेल, इंजन का पिस्टन जैसे अंदर बाहर होता है,...

मैंने अपने को अबकी पूरी तरह उसके ऊपर छोड़ दिया था,... वो जैसे मेरी देह का हिस्सा था,...

और मेरी देह कुछ देर बाद फिर मेरा साथ छोड़ रही थी, तूफ़ान के पत्ते की तरह मैं जोर जोर से सिसक रही दुबारा झड़ रही थी,


चंदा दुष्ट मुझे छेड़ रही थी, मजे ले रही थी, सच में बिना उस कमीनी के गाँव के ये मज़े मुझे नहीं मिल सकते थे।


सुनील में बहुत ताकत थी , रगड़ के रख देता था,... एकदम कुचल दे रहा था, ...

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और जब तीसरी बार मेरी देह में तूफ़ान आया तो साथ में सुनील भी,...

और उस मोटे सांप ने सारे का सारा सफ़ेद जहर मेरी पिछवाड़े वाली बिल के एकदम अंदर जा के उगला,... उसका जहर रुक भी जाता तो मैं एक जान बूझ के के फिर से उस सांप को दबाने निचोड़ने लगती, मुझमे मालूम था बहुत जहर है उसमें, और मैं एक एक बूँद उसका निकलवा लेना चाहती थी,... दो बार तीन बार,...



और आखिरी बूँद तक,...

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लेकिन उसके बाद भी, मुझे बार बार समझाया था बसंतिया ने , मर्द का झड़ जाये तो भी उठने की, उसका निकालने की जल्दी मत करना, कम से कम पांच मिनट ,... उस समय ऐसा आलस चढ़ता है उनपर, कम से कम पांच सात मिनट,...

मैं पूरे दस मिनट तक, लेकिन अब एक नया डर समा गया ,

पेड़ पर से उतरूंगी कैसे , और जैसे मेरे बिना कहे सुनील मेरी बात समझ गया, मेरे कान में बोला,

" तू कुछ मत कर, बस मेरे ऊपर बिश्वास कर, मैं उतार लूंगा तुझे , बस अपनी देह ढीली कर,.... और पैरों और हाथ की इस डाल पर पकड़ को ढीली कर दे,

चंदा ने भी हिम्मत बढ़ाई, छोड़ना मत बस पकड़ ढीली कर दे , सुनील उतार लेगा तुझे।

और सुनील मेरे अंदर धंसे धंसे, मुझे पकड़े पकडे, ... धीरे धीरे सरकते,...

और जब दो चार हाथ रह गया तो मुझे लिए दिए सुनील पेड़ पर से कूद गया,
 

komaalrani

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Mera ek suggestion tha komal ji... kyoki ab hmari kahani ki protagonist samjhdar aur experienced ho gyi he.. use ek bar mele me jana chahiye😍😘
aage aage dekhiye kya hota hai kahaani me
 
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