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Thanks so much, posted update in my other two stories too, Joru ka Gullam and Mohe Rang de,बहुत बढ़िया।
It's like a sweet humiliationकच्ची अमिया का पुराना शौक
भाभी की मां ने मुझे कस के अंकवार में भींच लिया था जैसे मैं कोई जग जीत के लौटी हूँ। बसंती और गुलबिया की उंगलियों के हटने के बाद स्कर्ट ने फिर अगवाड़ा पिछवाड़ा ढँक लिया था।
टाप हटाया तो नहीं लेकिन जैसे प्यार दुलार में, भाभी की माँ सीधे टाप के अंदर, और मुझे ही नहीं सबको, मेरी भाभी, चम्पा भाभी, बसंती और गुलबिया सबको अंदाज था की ये कतई वात्सल्य नहीं बल्की शुद्ध कन्या रस प्रेम है।
मुझे अब अंदाजा हो रहा था की माँ को कच्ची अमिया का पुराना शौक है। लेकिन मुझे भी अब इस खेल तमाशे में बहुत मजा आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मुझे ये सब मालूम नहीं था, मेच्योर औरतें और कच्ची कलियां,
इस्मत आपा की रजाई मैंने कब की पढ़ी थी और कितनी बार पढ़ी थी। लेकिन कहानी पढ़ने और कहानी का हिस्सा बन जाना कदम अलग है। थोड़ी देर तक तो उनका हाथ मेरी कच्ची अमिया पर था पर धीमे-धीमे उनकी उंगलियां अपने को रोक नहीं पाई।
भाभियां, उनकी हरकतें देखकर मुश्किल से अपनी हँसी दबा पा रहा थीं, लेकिन उनके ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था, उलटे उन्होंने सबको हड़का लिया, खास तौर से मेरी भाभी को-
“तुम लोग न खाली मेरी बिटिया के पीछे पड़ी रहती हो। तुमने बोला था न आगे-पीछे दोनों ओर, तो हो गया न बिस्वास? अरे आज कलजुग में ऐसी ननद मिलना मुश्किल है जो भौजाइयों की सब बातें माने, ऐसी सीधी लड़की कहाँ मिलेगी? जो किसी को भी कभी भी किसी भी बात के लिए मना नहीं करती। बेटी मानती हो न भौजाइयों की बात, बोल दो सबके सामने…”
और मैंने बिना कुछ सोचे झट से हामी में सर हिला दिया। मेरा ध्यान तो मां की उंगलियों पर था जो अब खुल के मेरे छोटे-छोटे निपल टाप के अंदर रोल कर रहे थे।
वो आलमोस्ट खींचकर दीवाल से सटी, नीम के पेड़ के नीचे बिछी चटाई पर ले आईं और उन्होंने और गुलबिया ने मिलकर मुझे वहां बैठा दिया, जहाँ थोड़ी देर पहले गुलबिया उन्हें कड़ुआ तेल लगा रही थी।
“अरे कइसन भौजाई हो? बेचारी कितना थकी लग रही है तोहार ननद, तानी ओकेर गोड़ ओड़ मीज दो, दबा दो, थकान उतर जायेगी उसकी…” उन्होंने गुलबिया से बोला।
लेकिन जवाब मेरी भाभी ने दिया-
“हाँ ठीक तो कह रही हैं माँ, पता नहीं कितनी देर बिचारी ने अपनी लम्बी-लम्बी टाँगें उठायी होगी, जांघें फैलाई होगी?” फिर उन्होंने सवाल मुझसे पूछ लिया-
“टाँगें उठा के या फिर कुतिया बना के भी?”
और अबकी फिर जवाब भाभी की माँ ने दिया मेरी ओर से। मेरी वो सबसे बड़ी वकील थीं घर में-
“अरे टाँगें उठा के, कुतिया बन के, खुद ऊपर चढ़ के, मेरी बेटी को समझती क्या है। जब तक यहां से जायेगी 84 आसान सीख भी लेगी और प्रैक्टिस भी कर लेगी। सारी की सारी स्टाइल ट्राई किया होगा इसने, हर तरह से मजा लिया होगा, ये कोई पूछने की बात है। थोड़ी देर आराम करने दो न बिचारी को, गुलबिया चल तेल लगा। सब थकान उतार दे…”
और मुझे पकड़ के चटाई पर लिटा दिया, एक छोटी सी तकिया भी सर के नीचे लगा दिया।
गुलबिया ने तेल लगाना शुरू किया और वास्तव में उसके हाथों में जादू था।