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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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Thanks so much
 

komaalrani

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बहुत बढ़िया।
Thanks so much, posted update in my other two stories too, Joru ka Gullam and Mohe Rang de,
 

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***** *****सैंतालिसवीं फुहार


वापस घर


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हाँ एक बात और जब चन्दा दिनेश को खेत से बाहर छोड़ने गई थी, सुनील ने मुझसे एक जरूरी बात की और तीन तिरबाचा भरवा लिया उसके लिए।

बताऊँगी न, एक बार चन्दा को जाने तो दीजिये।



मैं उठ नहीं पाई, किसी तरह सुनील और चन्दा ने मुझे खड़ा किया और दोनों के कंधे के सहारा लेकर मैं चल रही थी। एकदम जैसे गौने की रात के बाद ननदें अपनी भौजाई को किसी तरह पकड़कर सहारे से, पलंग से उठा के ले आती हैं।


सुनील तो गन्ने के खेत से बाहर निकल के जहां अमराई आती है वहीं मुड़ गया, हाँ इशारे से उसने अपने वादे की याद दिलाई और मैंने भी हल्के से सर हिला के, मुश्कुरा के हामी भर दी।


चन्दा भी घर के दरवाजे के बाहर से ही निकल जाना चाहती थी, पर दरवाजा खुला था और भाभी की माँ ने उसे बुला लिया। हाँ, उसके पहले वो मुझे बता चुकी थी की उसके यहाँ कोई आने वाला है इसलिए शाम को तो किसी भी तरह नहीं आ सकती और कल भी मुश्किल है।

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भाभी की माँ ने उससे क्या सवाल जवाब किये-

“अरे बाहर से ही निकल जाओगी क्या? कितने यारों को टाइम दे रखा है, अंदर आओ, हमारी बिटिया को भूखा ही रखा या…”

एक साथ आधे दरजन सवाल भाभी की माँ ने चन्दा के ऊपर दाग दिए।

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वो आँगन में चटाई पे नीम के पेड़ के नीचे लेटी, गुलबिया से तेल लगवा रही थीं, साड़ी उनकी घुटनों से भी बहुत ऊपर तक उठी थी और मांसल चिकनी गोरी जांघें खुली साफ दिख रही थीं। पास में ही बसंती बैठी चावल बिन रही थी और तीनों लोग ‘अच्छी अच्छी’ बातें कर रहे थे।


मेरे घुसते ही वो तीनों लोग खड़े हो गए और माँ तो एकदम मेरे पास आके, ऊपर से नीचे तक, अपनी एक्स रे निगाहों से देख रही थीं। और मैं श्योर थी उन्हें सब कुछ पता चल गया होगा। मैं मुश्किल से अपनी मुश्कुराहट रोक पा रही थी, जिस तरह से उन्होंने चन्दा को हड़काया।

चन्दा कुछ जवाब देती उसके पहले ही वो तेल पानी लेकर गुलबिया और बसंती के ऊपर पिल पड़ीं-

“कइसन भौजाई हो, अरे ननद घूम टहलकर लौटी है, जरा हालचाल तो पूछो? चेक वेक करके देख लो…”

उनका इतना इशारा करना काफी थी, गुलबिया पहले ही मेरे पीछे आ के खड़ी हो गई थी। मेरे पिछवाड़े की दीवानी थी वो इतना तो मैं समझ गई ही थी।



“गचाक, गचाक…”


जब तक मैं कुछ सोचू, समझूँ सम्हलूं, गुलबिया ने मेरी बित्ते भर की छोटी सी स्कर्ट ऊपर की और दो उंगलियां पिछवाड़े अंदर, एकदम जड़ तक। उसने चम्मच की तरह मोड़ा, और सीधे अंदर की दीवारों से जैसे कुछ खरोंच कर निकाल रही हो, फिर गोल-गोल जोर लगाकर घुमाने लगी।


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बसंती क्यों पीछे रहती। उसकी मंझली उंगली मेरी खुली स्कर्ट का फायदा उठा के सीधे बुर के अंदर और अंगूठा क्लिट पे।

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मैं गिनगिना उठी। दो मिनट तक जबरदस्त उंगली करके गुलबिया ने पिछवाड़े से उंगली निकाली और सीधे भाभी की माँ को दिखाया। सुनील और दिनेश की मलाई से लबरेज थी, लेकिन सिर्फ मलाई ही नहीं मक्खन भी था मेरे अपने खजाने का।

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तीनों जोर से मुश्कुराई, गुलबिया बोलीं-

“लगता है कुछ तो पेट में गया है। ऊपर वाले छेद से नहीं तो नीचे वाले से ही, गया तो पेट में ही है…”

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और तब तक बसंती ने भी बुर में से उंगली निकाल ली। वो भी गाढ़े सफेद वीर्य से लिथड़ी थी।

खुशी से भाभी की माँ का चेहरा दमक रहा था और पता नहीं उन्होंने गुलबिया को आँख मारी (मुझे तो ऐसा ही लगा) या खुद गुलबिया ने, वो मक्खन मलाई से लदी उंगली मेरे मुँह में।

और तभी मैंने देखा की मेरी भाभी और चम्पा भाभी भी आँगन में किचेन से निकलकर आ गई थीं और दोनों मेरी हालत देखकर बस किसी तरह हँसी रोक रही थीं।



मेरी भाभी, आज कुछ ज्यादा ही, बोलीं-

“मैंने बोला था न जब ये लौटे तो आगे-पीछे दोनों छेद से सड़का टपकना चाहिए, तब तो पता चलेगा न की सोलहवें सावन में भाभी के गाँव आई हैं…”

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और जैसे उनकी बात के जवाब में, अबतक तो मैंने चूत और गाण्ड दोनों ही कस के सिकोड़ रखी थी। जो कटोरे कटोरे भर मलाई सुनील, दिनेश ने मेरी गाण्ड में चुआया था एक बूँद भी मैंने बाहर निकलने नहीं दी थी। लेकिन जैसे ही गुलबिया और बसंती की उंगलियों ने अगवाड़े पिछवाड़े सेंध लगाई, बूँद-बूँद दोनों ओर से मलाई टपकने लगी।

मेरी भाभी खुश, चम्पा भाभी खुश लेकिन, सबसे ज्यादा खुश, माँ, भाभी की माँ



मैंने जल्दी से पूरी ताकत लगाकर चूत और गाण्ड दोनों कस के भींचा। आखिर कामिनी भाभी की शिष्या थी, लेकिन रोकते-रोकते भी, चार पांच बूँद गाढ़ी थक्केदार, सफेद रबड़ी आगे मेरी गोरी चिकनी जाँघों से फिसलती, घुटनों के नीचे पहुँच गई। और उससे भी बुरी हालत पिछवाड़े थी जहां लिसलिसाता मक्खन मलाई के थक्के, चूतड़ को गीला करते, मेरी मखमली पिंडलियों तक पहुँच गए।
 

komaalrani

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कच्ची अमिया का पुराना शौक




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भाभी की मां ने मुझे कस के अंकवार में भींच लिया था जैसे मैं कोई जग जीत के लौटी हूँ। बसंती और गुलबिया की उंगलियों के हटने के बाद स्कर्ट ने फिर अगवाड़ा पिछवाड़ा ढँक लिया था।

टाप हटाया तो नहीं लेकिन जैसे प्यार दुलार में, भाभी की माँ सीधे टाप के अंदर, और मुझे ही नहीं सबको, मेरी भाभी, चम्पा भाभी, बसंती और गुलबिया सबको अंदाज था की ये कतई वात्सल्य नहीं बल्की शुद्ध कन्या रस प्रेम है।





मुझे अब अंदाजा हो रहा था की माँ को कच्ची अमिया का पुराना शौक है। लेकिन मुझे भी अब इस खेल तमाशे में बहुत मजा आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मुझे ये सब मालूम नहीं था, मेच्योर औरतें और कच्ची कलियां,



इस्मत आपा की रजाई मैंने कब की पढ़ी थी और कितनी बार पढ़ी थी। लेकिन कहानी पढ़ने और कहानी का हिस्सा बन जाना कदम अलग है। थोड़ी देर तक तो उनका हाथ मेरी कच्ची अमिया पर था पर धीमे-धीमे उनकी उंगलियां अपने को रोक नहीं पाई।



भाभियां, उनकी हरकतें देखकर मुश्किल से अपनी हँसी दबा पा रहा थीं, लेकिन उनके ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था, उलटे उन्होंने सबको हड़का लिया, खास तौर से मेरी भाभी को-

“तुम लोग न खाली मेरी बिटिया के पीछे पड़ी रहती हो। तुमने बोला था न आगे-पीछे दोनों ओर, तो हो गया न बिस्वास? अरे आज कलजुग में ऐसी ननद मिलना मुश्किल है जो भौजाइयों की सब बातें माने, ऐसी सीधी लड़की कहाँ मिलेगी? जो किसी को भी कभी भी किसी भी बात के लिए मना नहीं करती। बेटी मानती हो न भौजाइयों की बात, बोल दो सबके सामने…”


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और मैंने बिना कुछ सोचे झट से हामी में सर हिला दिया। मेरा ध्यान तो मां की उंगलियों पर था जो अब खुल के मेरे छोटे-छोटे निपल टाप के अंदर रोल कर रहे थे।

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वो आलमोस्ट खींचकर दीवाल से सटी, नीम के पेड़ के नीचे बिछी चटाई पर ले आईं और उन्होंने और गुलबिया ने मिलकर मुझे वहां बैठा दिया, जहाँ थोड़ी देर पहले गुलबिया उन्हें कड़ुआ तेल लगा रही थी।



“अरे कइसन भौजाई हो? बेचारी कितना थकी लग रही है तोहार ननद, तानी ओकेर गोड़ ओड़ मीज दो, दबा दो, थकान उतर जायेगी उसकी…” उन्होंने गुलबिया से बोला।



लेकिन जवाब मेरी भाभी ने दिया-

“हाँ ठीक तो कह रही हैं माँ, पता नहीं कितनी देर बिचारी ने अपनी लम्बी-लम्बी टाँगें उठायी होगी, जांघें फैलाई होगी?” फिर उन्होंने सवाल मुझसे पूछ लिया-

“टाँगें उठा के या फिर कुतिया बना के भी?”

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और अबकी फिर जवाब भाभी की माँ ने दिया मेरी ओर से। मेरी वो सबसे बड़ी वकील थीं घर में-

“अरे टाँगें उठा के, कुतिया बन के, खुद ऊपर चढ़ के, मेरी बेटी को समझती क्या है। जब तक यहां से जायेगी 84 आसान सीख भी लेगी और प्रैक्टिस भी कर लेगी। सारी की सारी स्टाइल ट्राई किया होगा इसने, हर तरह से मजा लिया होगा, ये कोई पूछने की बात है। थोड़ी देर आराम करने दो न बिचारी को, गुलबिया चल तेल लगा। सब थकान उतार दे…”

और मुझे पकड़ के चटाई पर लिटा दिया, एक छोटी सी तकिया भी सर के नीचे लगा दिया।



गुलबिया ने तेल लगाना शुरू किया और वास्तव में उसके हाथों में जादू था।
 

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ऐसी कहानी की क्या कहना!
बहुत ही बढ़िया।
 
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Nick107

Ishq kr..❤
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कच्ची अमिया का पुराना शौक



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भाभी की मां ने मुझे कस के अंकवार में भींच लिया था जैसे मैं कोई जग जीत के लौटी हूँ। बसंती और गुलबिया की उंगलियों के हटने के बाद स्कर्ट ने फिर अगवाड़ा पिछवाड़ा ढँक लिया था।

टाप हटाया तो नहीं लेकिन जैसे प्यार दुलार में, भाभी की माँ सीधे टाप के अंदर, और मुझे ही नहीं सबको, मेरी भाभी, चम्पा भाभी, बसंती और गुलबिया सबको अंदाज था की ये कतई वात्सल्य नहीं बल्की शुद्ध कन्या रस प्रेम है।





मुझे अब अंदाजा हो रहा था की माँ को कच्ची अमिया का पुराना शौक है। लेकिन मुझे भी अब इस खेल तमाशे में बहुत मजा आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मुझे ये सब मालूम नहीं था, मेच्योर औरतें और कच्ची कलियां,



इस्मत आपा की रजाई मैंने कब की पढ़ी थी और कितनी बार पढ़ी थी। लेकिन कहानी पढ़ने और कहानी का हिस्सा बन जाना कदम अलग है। थोड़ी देर तक तो उनका हाथ मेरी कच्ची अमिया पर था पर धीमे-धीमे उनकी उंगलियां अपने को रोक नहीं पाई।



भाभियां, उनकी हरकतें देखकर मुश्किल से अपनी हँसी दबा पा रहा थीं, लेकिन उनके ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था, उलटे उन्होंने सबको हड़का लिया, खास तौर से मेरी भाभी को-

“तुम लोग न खाली मेरी बिटिया के पीछे पड़ी रहती हो। तुमने बोला था न आगे-पीछे दोनों ओर, तो हो गया न बिस्वास? अरे आज कलजुग में ऐसी ननद मिलना मुश्किल है जो भौजाइयों की सब बातें माने, ऐसी सीधी लड़की कहाँ मिलेगी? जो किसी को भी कभी भी किसी भी बात के लिए मना नहीं करती। बेटी मानती हो न भौजाइयों की बात, बोल दो सबके सामने…”


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और मैंने बिना कुछ सोचे झट से हामी में सर हिला दिया। मेरा ध्यान तो मां की उंगलियों पर था जो अब खुल के मेरे छोटे-छोटे निपल टाप के अंदर रोल कर रहे थे।

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वो आलमोस्ट खींचकर दीवाल से सटी, नीम के पेड़ के नीचे बिछी चटाई पर ले आईं और उन्होंने और गुलबिया ने मिलकर मुझे वहां बैठा दिया, जहाँ थोड़ी देर पहले गुलबिया उन्हें कड़ुआ तेल लगा रही थी।



“अरे कइसन भौजाई हो? बेचारी कितना थकी लग रही है तोहार ननद, तानी ओकेर गोड़ ओड़ मीज दो, दबा दो, थकान उतर जायेगी उसकी…” उन्होंने गुलबिया से बोला।



लेकिन जवाब मेरी भाभी ने दिया-

“हाँ ठीक तो कह रही हैं माँ, पता नहीं कितनी देर बिचारी ने अपनी लम्बी-लम्बी टाँगें उठायी होगी, जांघें फैलाई होगी?” फिर उन्होंने सवाल मुझसे पूछ लिया-


“टाँगें उठा के या फिर कुतिया बना के भी?”

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और अबकी फिर जवाब भाभी की माँ ने दिया मेरी ओर से। मेरी वो सबसे बड़ी वकील थीं घर में-

“अरे टाँगें उठा के, कुतिया बन के, खुद ऊपर चढ़ के, मेरी बेटी को समझती क्या है। जब तक यहां से जायेगी 84 आसान सीख भी लेगी और प्रैक्टिस भी कर लेगी। सारी की सारी स्टाइल ट्राई किया होगा इसने, हर तरह से मजा लिया होगा, ये कोई पूछने की बात है। थोड़ी देर आराम करने दो न बिचारी को, गुलबिया चल तेल लगा। सब थकान उतार दे…”

और मुझे पकड़ के चटाई पर लिटा दिया, एक छोटी सी तकिया भी सर के नीचे लगा दिया।



गुलबिया ने तेल लगाना शुरू किया और वास्तव में उसके हाथों में जादू था।
It's like a sweet humiliation 🙈
 
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