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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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Just posted updates on my thread, HOLI ke rang,... and will surely post here too today
 
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komaalrani

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चुन्नू और चुन्नी

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फिर तो लड़कियों ने उसकी बहन को इतना चिढ़ाया- “यार ये चुन्नू कम चुन्नी ज्यादा लगता है…”

मैंने उसकी बहन को छेड़ा- “हे बोल तूने इस चुन्नू कम चुन्नी की नूनी पकड़ के देखी है, है भी की नहीं…”

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मेरी दूसरी सहेली बोली- “नूनी है भी की नहीं?”

लेकिन अबकी चुन्नी ने पट जवाब दिया- “अबकी आयेगा न तो खोल के देख लेना, झट पता चल जाएगा…”

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सारी लड़कियां उसकी बहन को छेड़तीं उसका नाम ले ले के और आपस में भी- “हे ऐसे ‘कच्चे केले’ की नाथ उतारने में कितना मजा आएगा…”



लेकिन आज उसकी नथ उतारने का जिम्मा मेरे हवाले आया। मै समझ रही थी, वो गौने की दुल्हन की तरह शर्माएगा, झिझकेगा ना ना करेगा, पर गौने की रात किसी दुलहन की फटने से बचती है की उसकी बचेगी। थोड़ा समझाना, थोड़ा प्यार थोड़ा दुलार और ज्यादा जबरदस्ती, बस।

मेरी निगाह पहले उसके छोटे से नेकर पर पड़ी, तना तो था। नूनी नहीं अच्छा खासा खूंटा लग रहा था।


सोच तो रही थी की झट से खोल के गप्प से मुँह में ले लूँ। लेकिन जब उसके चेहरे पर निगाह पड़ी तो वो एकदम शर्म से लाल सुर्ख, बस मैंने दोनों हाथ से उसका चेहरा पकड़ के जोर से एक चुम्मा ले लिया, पहले टमाटर ऐसे लाल शर्माते गालों पर उसके बाद सीधे होंठों पर। और चुम्मा लेके भी मैंने नहीं छोड़ा, देर तक अपने रसीले गुलाबी होंठ उसके होंठों पर रगड़ती रही।
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वास्तव में दूध के दांत लगता है उसके नहीं टूटे थे, पर स्वाद था मीठा। होंठ हटाते ही मैंने उसे चिढ़ाया-

“कल तो बहुत हिम्मत दिखा रहे थे, अब आ गई हूं न… करो न जो करना है…”

(कल शाम को सुनील के साथ, उसकी देखादेखी वो भी अंगूठे को गोल करके उसमें उंगली अंदर-बाहर करते, इंटरनेशनल चुदाई का सिंबल दिखा रहा था)

और ये कह के मैंने कस-कस के अपने उभारों को उसके सीने के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।
सुनील से अब नहीं रहा गया, और पीछे से उसने भी मेरे एक उभार को पकड़ के दबाना मसलना शुरू कर दिया।



सुनील की हरकत का बदला मैंने चुन्नू से लिया, एक झटके में उसकी शर्ट खींच करके उसे टापलेस कर दिया। एकदम गोरा नमकीन, वैसे ही जिसको लड़के ‘चिकना’ बोलते हैं न, एकदम वैसे, मक्खन पूरा। आँख नचा के उसे चिढ़ाते बोली-

“देख तूने बुलाया था तो मैं आ गई। अब तू कुछ करे न करे, मैं तो नहीं छोड़ने वाली, एक तो इतना चिकना ऊपर से भैय्या का साला। साल्ले अब तो मैं तेरी ले के रहूंगी…”



वो बेचारा, शर्म से उसकी हालात खराब हो रही थी शर्माते, झिझकते। मुझे उस दिन की याद आ रही थी जब रैगिंग में हम लोगों ने उसकी जुड़वा बहन के कपड़े उतरवाए थे।



लेकिन सुनील आ गया अब उसकी मदद को, कपड़े का दुश्मन, और पीछे से अब उसने मेरी टाइट लाल लाल चोली को एक झटके में खींचकर उतार दिया। ब्रा तो मैं जिस दिन भाभी के गाँव पहुँची थी उसी दिन से जब्त हो गई थी, इसलिए झट से मेरी दोनों जवानी की गोल-गोल गोलाइयां अनावृत हो गईं, मेरे गोरे गदराए मांसल जोबन, जिन्होंने पूरे गाँव में आग लगा रखी थी।
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उसके जादू से वो कैसे बचता। बस चुन्नू की निगाहें भी वहीं चिपक के रह गईं।
 

komaalrani

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*****चुन्नू की नथ उतराई


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और मेरी निगाह उसके छोटे से नेकर पे। वाह… तम्बू पूरा तना था, भले ही उसने तलवार चलाई न हो लेकिन हथियार था उसके पास जबरदस्त। बाकी का काम तो मैं आराम से सम्हाल सकती थी। जैसे उसको दिखाने समझाने को, सुनील ने झट से मेरी एक मस्त चूची गपुच ली।

पर वो शर्माता लजाता, अभी भी इशारा नहीं समझ पाया। आखिर मैंने ही, उसका हाथ पकड़ के-

“अरे देखने की चीज तो है ये लेकिन सिर्फ देखने की नहीं, छूने, पकड़ने की, रगड़ने मसलने की भी है…” सीधे अपने जोबन पे।

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बड़े हल्के-हल्के उसने छूना सहलाना शुरू किया, और मैंने उसके कुतुबमीनार को नेकर के ऊपर पकड़ के कस के दबाते रगड़ते चिढ़ाया-


“क्यों इतना डर-डर के छू रहे हो, अपनी बहन साल्ली चुन्नी का तो खूब दबाया मसला होगा। उसके तो मुझसे बस थोड़े ही छोटे हैं…”

कुछ मेरे तानों ने, कुछ सुनील की हरकतों ने, थोड़ी देर में ही वो अब खुल के मेरे कच्ची अमियों का रस लेने लगा।

वह और सुनील दोनों उधर लगे हुए थे। मौका अच्छा था, मेरे लिए रुकना मुश्किल था, और मैंने दोनों हाथों से एक झटके में ही उसके नेकर को, जब तक वो सम्हले, नेकर कमरे के दूसरे ओर पड़ा था। मस्त था, खूब कड़ा और खड़ा। सुनील इतना मोटा तो नहीं, लेकिन उससे 18 भी नहीं रहा होगा। 6 इंच से ज्यादा ही लंबा, खूब गोरा चिकना, झांटें भी नहीं थी। एकदम जैसे साफ वाफ करके तैयारी से आया हो।

जब तक उसने अपने हाथ से ढंकने की कोशिश की ‘वो’ मेरी मुट्ठी में था, ऊपर से डांट उसे अलग पड़ गई-

“क्या लौंडियों की तरह शर्मा रहे हो, मुट्ठ तो खूब मारते होगे साल्ली चुन्नी का नाम ले के, हटाओ हाथ…”

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एक हाथ से मैं जोर-जोर से उसका मोटा कड़ा लण्ड मुठिया रही थी और दूसरे से फिर उसका हाथ पकड़ के अपने उभार पे कर दिया।

सुनील ने ऊपर की मंजिल पूरी खाली कर दी थी और अब मेरे दोनों उभार चुन्नू के हाथों में थे और वो अब खुल के मजे ले रहा था।

और मैंने मुठियाने की रफ़्तार बढ़ा दी थी, लंड खूब फनफना रहा था, सुपाड़ा पूरा खुल गया था, एकदम लीची

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लेकिन सुनील भी खाली नहीं बैठा था, पहले तो वो हम दोनों की तरह ‘टापलेस’ हुआ, फिर वो मेरी जाँघों के बीच की मेरी सहेली, मेरी सोनचिरैया के पीछे पड़ गया। उसका एक हाथ छल्ले की तरह मेरी पतली कमर के चारों ओर घिर गया और फिर मेरा नाड़ा, वो तो जैसे सुनील का हाथ लगते ही अपने आप खुल जाता था, और वही हुआ। कस के बांधे नाड़े ने पल भर में मेरा साथ छोड़ दिया।


सुनील का हाथ सरक के मेरी मखमली जाँघों के बीच सीधे मेरी सहेली पे, और उसकी हथेली ने बस हल्के-हल्के दबाना मसलना शुरू कर दिया। लेकिन सुनील इतनी आसानी से थोड़ी छोड़ने वाला था, कुछ ही देर में गच्च से उसकी तर्जनी मेरी फुद्दी में घुस गई और तूफान मचाने लगी। अंगूठा भी क्लिट रगड़ने मसलने लगा।

मेरी बुर पनिया गई।


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ऊपर से वो नौसिखिया चुन्नू भी, अब कस-कस के मेरे दोनों जोबन पकड़ के कुचलने मसलने लगा था। ये लड़के भी न इन्हें कुछ सिखाने समझाने की जरूरत नहीं पड़ती, बस जरा सा चूची पे हाथ पड़ जाय न तो बस, मेरी हालत एकदम खराब थी। ऊपर चुन्नू और नीचे सुनील, मेरी आँखें भी चुन्नू के ‘कच्चे केले’ पे गड़ी थीं, खूब मोटा कड़ा रसीला।
 
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komaalrani

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***** *****पचासवीं फुहार - चुन्नू की ले ली

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मुझसे नहीं रहा गया और अपने कोमल कोमल हाथों से मुठियाते हुए एक झटके में मैंने चमड़ा नीचे खींच लिया और सट्ट से खूब मोटा, कड़ा गुलाबी, रसीला सुपाड़ा बाहर। एकदम मोटी-मोटी लीची जैसे। और अपने आप मेरे होंठ उसके ऊपर, थोड़ा सा चाट के गप्प से मैंने मुँह में ले लिया और लगी चूसने। खूब मीठा था, बहुत ही स्वादिष्ट।



चूसने, रस लेने में मुझे पता ही नहीं चला की कब सुनील ने मेरी शलवार सरकाई, कब मेरे चूतड़ ऊपर उठे और कब शलवार सरक कर मेरे पैरों से दूर पुआल पर पड़ गई। अब मेरा प्रेम द्वार एकदम खुला था। सुनील नीचे बैठ गया और मेरी खुली फैली जाँघों के बीच, पुच्च-पुच्च, मेरी गुलाबो पल भर में पिघल गई। सुनील कस-कस के मेरी चूत चूस रहा था, बीच-बीच में उसकी जीभ मेरी चूत फैला के, अंदर भी घुस जाती थी।



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मैं चुन्नू का आधा लण्ड गपक कर चुकी थी और गन्ने का रस ले रही थी।

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चुन्नू मेरी चूची चूस रहा था।

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हालत हम सबकी खराब थी लेकिन सबसे ज्यादा मेरी, और किसकी नहीं होगी अगर दो-दो मर्द एक साथ उसे पिघलाने पे जुटे होंगे।
और ऊपर से चूत चूसने में सुनील का सानी नहीं था।

लेकिन लण्ड चुसवाने में चुन्नू अभी नौसिखिया था, और कोई भी होगा। पहली बार उसके लण्ड का किसी लड़की से पाला पड़ा था, अबतक बहुत हुआ तो मुट्ठ मार लिया। चूसने में बहुत मजा आ रहा था, जैसे कोई कच्ची कली लड़कों को सिर्फ इसलिए एक अलग तरह का मजा देती है की वो नौसिखिया होती है, एकदम उसी तरह का मजा, लेकिन धक्का मारके चोदने जैसा साथ वो नहीं दे पा रहा था था।

सुनील ने मेरी परेशानी समझ ली और उछल के चुन्नू के बगल में बैठ गया और अब वो चुन्नू की तरह की हालत में था, लण्ड एकदम तना मोटा खड़ा।

और मैं सुनील का इशारा समझ गई। बस चुन्नू का लण्ड चूसते हुए मैं एक हाथ से जोर-जोर से सुनील का लिंग मुठियाने लगी। दोनों लड़के मिल के मेरी चूचियों की ऐसी की तैसी कर रहे थे। और मेरे होंठ चुन्नू से सुनील के लण्ड पर पहुँच गए।


बस सिर्फ सुपाड़ा मुँह में लेकर चुभला रही थी की सुनील ने कमान अपने हाथ में ले ली। दोनों हाथों से उसने हल्के से मेरे सर को पकड़ा और धीरे-धीरे पुश करते हुए आधे से ज्यादा लण्ड मेरे मुँह में पेल दिया। अब मैंने एक बार फिर चाटना चूसना शुरू कर दिया।

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लेकिन कमान अभी भी उसके हाथ में थी। कुछ ही देर में पुल करके उसने आलमोस्ट सुपाड़े तक निकाल दिया और फिर एक करारे धक्के से तीन चौथाई लण्ड अंदर घुसेड़ दिया, मेरे मुँह में। मेरा गाल फटा पड़ रहा था लेकिन मैं मजे ले ले के चूस रही थी, कुछ ही देर में सावन के झूले के पेंग की तरह सुनील हल्के-हल्के धक्के मारता रहा, मेरा मुँह चोदता रहा।



लेकिन मेरी आँखें बजाय सुनील के चुन्नू की ओर लगी थीं। वो बहुत ध्यान से सुनील की ओर देख रहा था की कैसे सुनील मेरा सर पकड़ के हचक-हचक के धक्के मार रहा है, मुँह चोद रहा है। यही तो मैं चाहती थी, अब वो कुछ तो सीख लेगा।

थोड़ी देर बाद जब मैंने एक बार फिर से चुन्नू के लण्ड को मुँह में लिया तो वो अनाड़ी पूरा नहीं तो आधा खिलाड़ी बन ही गया था। अब सर पकड़ के हल्के-हल्के धक्के मेरे मुँह में मार रहा था और मैं भी पूरा साथ दे रही थी।


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ये भी कामिनी भाभी ने ही सिखाया था की किसी ‘कच्चे केले’ की नथ उतारना हो तो पहले उसे मुँह में ले लो, इससे उसके मोटापे और कड़ेपन का अहसास हो जाएगा और ये भी पता चल जाएगा की कहीं ‘जल्दी पिघलने’ वाला तो नहीं है। लेकिन सबसे बड़ा फायदा ये है की मुँह में धक्के मार-मार के उसे धक्के मारने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी।



यही हो रहा था। जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना पड़ता उसी तरह गाँव के लौंडे भी लगता है एकदम बचपन से ही।
 
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komaalrani

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***** *****बहुत हुआ अब चोर सिपहिया


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कुछ देर में जब वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा तो मैंने एक बार फिर से सुनील को चूसना शुरू कर दिया।

और अब सुनील अपने असली रंग में आ गया था, गालियां, जमकर चूची रगड़ना मसलना और पहले ही धक्के में, आधा से ज्यादा अपना मोटा मूसल मेरे मुँह में ठेल दिया- “घोंट छिनार घोंट, ले चूस कस-कस के…”



मुझे कहने की जरूरत थोड़ी थी, सुनील का मोटा मस्त लण्ड हो और मैंने चूसने में कंजूसी करीं। मेरे होंठ लण्ड पे रगड़ रहे थे, नीचे से जीभ चाट रही थी और मेरा मुँह चूसने में वैक्यूम क्लीनर का मुकाबला कर रहा था। नतीजा वही हुआ जो होना था, सुपाड़ा तक खूंटा बाहर निकाल के जो सुनील ने ठोंका तो एक बार में ही उसका सात इंच मेरे मुँह के अंदर था। मेरे गाल फूले हुए थे, आँखें उबली पड़ रही थीं और मोटा सुपाड़ा सीधे मेरे गले से रगड़ खा रहा था।



मैं गों-गों कर रही थी, लेकिन सुनील पे कोई फरक नहीं पड़ने वाला था। चाहे मुँह चोदना हो चाहे गाण्ड, उससे ज्यादा बेरहम मैंने देखा नहीं था और इसलिए मैं उसे इतना चाहती थी।



अगले दो तीन धक्कों में सुनील का बचा हुआ दो इंच भी मेरे मुँह के अंदर था। दर्द से मेरा मुँह फटा जा रहा था, लण्ड एकदम जड़ तक घुसा हुआ था।



और चुन्नू मुँह बाये देख रहा था की कैसे मैंने पूरा 9 इंच घोंट लिया।



मेरी नाचती खुश-खुश आँखों ने उसकी ओर देखा और फिर, मैंने उसका हाथ पकड़ के अपनी गुदाज गदराई चूची पर रख लिया, फिर क्या दोनों लड़के एक साथ एक-एक चूची मसल रहे थे। एक जवान होती लड़की और क्या चाहेगी? लेकिन मेरी निगाह बीच-बीच में चुन्नू के औजार की ओर चली जाती थी। जानबूझ के मैं उसे छू भी नहीं रही थी।



पांच मिनट तक सुनील मेरा मुँह हचक के चोदता रहा और चुन्नू का झंडा वैसे ही खड़ा रहा। मैं समझ गई भले ही इसकी आज नथ उतर रही हो, लेकिन ये टू मिनट वंडर नहीं है। बस एक बार मैं इसकी शर्म लिहाज उतार दूँ, फिर तो ये हचक-हचक के, एकदम सुनील और अजय की तरह ही हो जाएगा। मैंने फिर दल बदल कर लिया और अब ‘कच्चा केला’ मेरे मुँह में था।



लेकिन सुनील की हरकत का असर अब उस पे भी पड़ गया था, धक्कों की ताकत, गहराई और तेजी अब बढ़ गई थी। मैं साथ-साथ में हल्के-हल्के चूस भी रही थी, मजे ले ले के, लेकिन कमान अब मैंने आलमोस्ट पूरी चुन्नू के हाथ में दे दी थी।



लेकिन मुसीबत मेरी थी।



सुनील एक बार फिर मेरी जाँघों के बीच और पूरी ताकत से चूस रहा था, यही नहीं दोनों लड़के जैसे बाजी लगाकर मेरे उभार मसल रहे थे, मुझे लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी। लेकिन मैं बिना चुन्नू के खूंटे को अंदर घोंटे झड़ना नहीं चाहती थी।



और वो भी अब पूरे जोश में आ गया।



मैंने अपने से कहा- “गुड्डी बहुत हुआ अब चोर सिपहिया, चल हो जाय असली कबड्डी इसी नई नवेली के साथ…” और मैं हट के अलग हो गई, पुआल के ढेर पे अपनी दोनों टाँगें फैला के मैंने उसे ऊपर आने का इशारा किया।



लेकिन, वो साल्ला, एकदम चुप। फिर वही झिझक, लाज।



“अरे आओ न…” मैंने बुलाया।



लेकिन एकदम से उसने बहाना बनाया- “पहले सुनील…”



मेरा मन हुआ एक मोटी सी गाली दूँ- “साले क्या वो तेरा बहनोंई लगता है, जो पहले सुनील, पहले सुनील लगा रखा है…” लेकिन अपने ऊपर कंट्रोल किया, और कहा- “आओ न चलो आ जाओ न सीधे से, अभी मुँह में तो कित्ते जोर-जोर से धक्के पर धक्का मार रहे थे…”



बड़ी मुश्किल से वो तैयार हुआ लेकिन जैसे ही वो मेरी जांघों के बीच आया, बस थोड़ी देर में उसने हार मान ली। नहीं औजार का इशू नहीं था वो वैसे ही खड़ा, सख्त, लेकिन बस नौसिखियापन, झिझक और डर।



परेशानी मैंने भी कम नहीं खड़ी की थी, वो कामिनी भाभी की क्रीम का असर फिर उनका मन्तर, कितना भी चुदूँ, चूत एकदम कच्ची कली से भी कसी रहेगी। ऊपर से चुन्नू ने अपने सुपाड़े में कोई तेल क्रीम कुछ तो लगाया नहीं, न मेरी बुर में कुछ। तो बस एक दो बार तो वो छेद ही नहीं ढूँढ़ पाया उसके बाद घुसाने में दिक्कत, बस वही पुरानी कहावत, अनाड़ी चुदवैया बुर की बर्बादी।



लेकिन मुझे भी तो अनाड़ी से खिलाड़ी बनाया था, बसंती, गुलबिया, कामिनी भाभी ने।



तो आज मेरी बारी थी, मैंने तय कर लिया क्या करना है? बिन चोदे उसको छोड़ूंगी नहीं, भले ही चुन्नू साले को रेप करना पड़े।
 

Nick107

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पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...

आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी , एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,

खूब देर तक दोनों की एक साथ मस्ती मैंने की, जैसा बसंती भौजी ने सिखाया था, एकदम वैसे , ( बाद में उन्होंने मुझे दस में दस नंबर दिया )

पहले तो खूब देर तक दोनों का मुठ्याती रही, सालों का खूब बड़ा भी था और मोटा भी ,

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लेकिन मैं बसंती भौजी की असली ननद, मुठियाते समय कभी अंगूठे से सुपाड़ा दबा देती तो कभी एक का बॉल्स सहला देती , खड़ा तो दोनों का मुझे देख के ही होगया था, एकदम कड़ा कड़ा , मुट्ठी में पकड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था ,

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फिर मैंने एक का चूसना शुरू किया , चूसना नहीं सिर्फ चाटना, बस जीभ की टिप से सुपाड़े के छेद को चाटती, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप घुसाती , सिर्फ जीभ से लपड़ लपड़ सुपाडे को चाटती,

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और दुसरे का न सिर्फ मुठियाती, बल्कि कभी अपने गाल से छुला देती तो कभी अपनी छोटी छोटी चूँचियों पर रगड़ देती और जब एक बार मैंने उसके खुले सुपाड़े को अपने निप्स से बस छुला दिया तो वो एकदम गिनगीना गया ,


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अब उसको अंदाज लगा होगा की कैसी है उसकी बहिन की ननदिया

और थोड़ी देर में जिसका मैं चूस रही थी वो मेरे मुट्ठी में और जिसको मैं मुठिया रही थी, उसको दोनों छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच लेकर टिट फक, स्साले का इत्ता कडा था जब मेरे जोबन को रगड़ते घिसते जाता, मैं बता नहीं सकती कितना मजा आ रहा था, और टिट फक करते करते उसके सुपाड़े को लेकर चूसने भी लगती

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लेकिन बसंती तो असली खेल चाहती थी


आज मेरी गाँड़ की बर्बादी लिखी थी, बसंती बोली चढ़ आ शूली पर मैं सेट कर देती हूँ, कितनी बार तो चढ़ चुकी थी आज ही सुनील के खूंटे पर,

लेकिन सेट कराते समय बदमाश बसंती ने बदमासी कर दी, बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े का छेद सेट कर दिया, फिर बहन भाई ने मिल कर,

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बसंती मुझे कंधे को पकड़ कर दबाती रही और उसका भाई , मेरी पतली कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींचता रहा,, बड़ी मुश्किल से सुपाड़ा घुसा, उसके बाद सूत सूत करके आधा बांस,... फिर बसंती हट गयी,... और आँख नचाती , मुझे छेड़ती मेरी छिनार भौजी बोलीं,

" हमरे देवर का, रोज घोंटती हो, आज हमरे बीरन का नंबर है , देखती हूँ तोहार ताकत , बाकी का खुद ही घोंट,... "

और उस के कंधे को पकड़ मैंने जोर जोर से दबाना शुरू किया , कभी मजे से सिसकती तो कभी दर्द से चीखती, बसंती को गरियाती , पर थोड़ी देर में पूरा मेरी गाँड़ के अंदर, ...


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ये नहीं था की मैंने पहले गाँड़ नहीं मराई थी, वो मेरी कमीनी छिनार सहेली चंदा और उस का यार सुनील ( असल में अब वो उससे ज्यादा मेरा यार था ), आज दिन में ही सुनीलवा ने दो बार मेरी गाँड़ मारी थी, और दिनेश ने भी, तभी तो बंसती भौजी कह रही थी हमरे देवर का तो रोज घोंटती हो , अब ज़रा हमरे बीरन का घोंट लो,... लेकिन वो दोनों तो खुद मार रहे थे और यहाँ मुझे खुद चढ़ के घोंटना पड़ रहा था, वो तो गनीमत थी की बसंती ने मुझे निहुराकर दो ढक्क्न कडुवा तेल मेरे पिछवाड़े डाल दिया था और मैंने चूस चूस के भौजी के भैया का चिक्क्न मुक्क्न कर दिया था , लेकिन तब भी मोटा कितना था

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लेकिन सिर्फ गाँड़ में घोंटने से थोड़ी जान बचने वाली थी , और घोंटने में तो बसंती जो मेरा कंधा पकड़ के दबा रही थी, जोर जोर से पुश कर रही थी, तो किसी तरह मेरी कसी गाँड़ वो मोटा मूसल घोंट गयी,... लेकिन फिर खुद उठके और फिर उसके कंधे पकड़ के दबा के दुबारा घोटना,...

और साथ साथ वो भौजी का स्साला भाई, मुझे झुका के मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ, मेरे जोबना के तो न सिर्फ इस गाँव वाले दीवाने थे पूरे बल्कि जब मैं मेले में गयी थी तो उसी दिन से आस पास के बीस तीस गाँवों में मेरे जोबन का डंका बज रहा था,

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तो मैं उसके ऊपर,वो नीचे और जब वो पकड़ के कस कस के मसलता, मुंह में लेके चूसता पूरी ताकत से , निप्स पे दांत लगा देता तो बस जान निकल जाती थी मस्ती से.

कुछ देर में उसने मेरी कमर पकड़ के, कभी कमरिया पकड़ के तो कभी मेरी चूँचिया दबोच के जबरदस्त तूफानी धक्के मेरी गाँड़ में मार रहा था, गाँड़ के चीथड़े हो रहे थे, मैं जितना दर्द से चीखती, बसंती और उसे उकसाती,

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'अरे बहिन क ननद का गाँड़ मारे क मौका कम ही मिलता है , अइसन गाँड़ मारो छिनार क की हमरे गाँव तक आवाज जाए , चीखने दो, अरे और कस के,... हाँ फ़ाड़ दो,... "


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और वो अपनी बहिन की आवाज सुन के और जोर से

लेकिन ये तो शुरआत थी, वो मेरे गाँड़ में घुसाए घुसाए उठा और मुझे नीम के पेड़ के पास खड़ा कर के, मेरे पिछवाड़े क्या धक्के मारे,,



मैंने कस के नीम के पेड़ को दबोच रखा था,

बादलों को हटा हटा के बदमाश चाँद मेरी रगड़ाई देख रहा था ,



आंगन में बैठी मेरी भौजी, बसंती देख रही थी की कैसे हचक हचक के मेरी गाँड़ मारी जा रही थी, हर धक्के के साथ मेरे उभार मेरी देह पूरी तरह नीम के उस मोटे पेड़ से रगड़ती,



आसन बदल बदल कर, ... पटक पटक कर क्या बेरहमी से उसने मेरी ली, मैं पता नहीं कितनी बार झड़ी होउंगी,....


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लेकिन उसने निकाला भी नहीं था की उसके दोस्त ने अपना मूसल ठोंक दिया , और कहाँ , वहीँ पिछवाड़े, और वो तो और बेरहम , उसका खूंटा भी पूरा मोटा मूसल,...

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मैं कभी चीखती कभी बसंती का नाम उन दोनों से लगा लगा के गरियाती और वो दूने जोश से मेरे पिछवाड़े, कच्चे आंगन में,



और बसंती कभी आंगन में बैठी उस दूसरे लड़के से मायके का हाल चाल पूछतीं , सिर्फ लोगों का ही नहीं, गोरु बछरू का भी पेड़ पौधों का भी, ... फलाने सिंह के यहाँ जो आम का पेड़ लगा था, अब तो बड़ा हो गया होगा,

" अरे इस बार तो बौर भी आ गए थे उसपर " वो ख़ुशी से बसंती को बताता,


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प्रायमरी स्कूल में नए मास्टर जी आ गए हैं , फलाने की गाय बियाई है , सब कुछ,...

और कभी मेरे पीछे पड़ जाती,...





नहीं नहीं डबलिंग भी हुयी एक बार दो बार नहीं पूरे चार बार,


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नहीं नहीं सिर्फ सैंडविच ही नहीं, एक निहुरा के कस कस के गांड मारता और फिर आठ दस मिनट गाँड़ मारने के बाद , लंड निकाल के सीधे मेरी गाँड़ से मेरे मुंह में , और जब तक मैं उसका मेरी गाँड़ निकला लंड चाट चाट के चूस चूस के साफ़ करती, दूसरा मेरी गाँड़ में अपना मोटा लंड ऐसे हचक के एक बार में पूरा पेल देता की बस जान निकल जाती, और कुछ देर में उसका लंड मेरे मुंह में , ... कभी कभी सैंडविच , एक के खूंटे पे मैं बैठती तो दूसरा पीछे से गाँड़ मारता,...

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दोनों ही सांड़ थे सांड़

सुबह जब चुहचुहिया बोलने लगी, अँधेरा धुंधलाने लगा तब गए दोनों,
Aapki wjh se kamjori aa jaegi komal ji👅👅👅😜😜
 
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Itna mja aaya ki ... bathroom ki diware safed ho gyi 😜
Next part today,
 
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