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Aapki wjh se kamjori aa jaegi komal jiडबल मज़ा
पूरी रात खूब मजा आया, दोनों ने मिल के , लेकिन उस के पहले मैंने उन दोनों की,...
आधे घंटे की छेड़छाड़ के बाद , दोनों के खूंटे मेरे हाथ में थे , जैसा बसंती ने सिखाया था , एक को चूसती थी तो दूसरे को मुठियाती थी , एक को चूँची के बीच लेकर तो दूसरे को चूसती चाटती थी, ... नहीं नहीं शुरू में दोनों नहीं चढ़े मेरे ऊपर,
खूब देर तक दोनों की एक साथ मस्ती मैंने की, जैसा बसंती भौजी ने सिखाया था, एकदम वैसे , ( बाद में उन्होंने मुझे दस में दस नंबर दिया )
पहले तो खूब देर तक दोनों का मुठ्याती रही, सालों का खूब बड़ा भी था और मोटा भी ,
लेकिन मैं बसंती भौजी की असली ननद, मुठियाते समय कभी अंगूठे से सुपाड़ा दबा देती तो कभी एक का बॉल्स सहला देती , खड़ा तो दोनों का मुझे देख के ही होगया था, एकदम कड़ा कड़ा , मुट्ठी में पकड़ने में बहुत अच्छा लग रहा था ,
फिर मैंने एक का चूसना शुरू किया , चूसना नहीं सिर्फ चाटना, बस जीभ की टिप से सुपाड़े के छेद को चाटती, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप घुसाती , सिर्फ जीभ से लपड़ लपड़ सुपाडे को चाटती,
और दुसरे का न सिर्फ मुठियाती, बल्कि कभी अपने गाल से छुला देती तो कभी अपनी छोटी छोटी चूँचियों पर रगड़ देती और जब एक बार मैंने उसके खुले सुपाड़े को अपने निप्स से बस छुला दिया तो वो एकदम गिनगीना गया ,
अब उसको अंदाज लगा होगा की कैसी है उसकी बहिन की ननदिया
और थोड़ी देर में जिसका मैं चूस रही थी वो मेरे मुट्ठी में और जिसको मैं मुठिया रही थी, उसको दोनों छोटी छोटी कड़ी कड़ी चूँचियों के बीच लेकर टिट फक, स्साले का इत्ता कडा था जब मेरे जोबन को रगड़ते घिसते जाता, मैं बता नहीं सकती कितना मजा आ रहा था, और टिट फक करते करते उसके सुपाड़े को लेकर चूसने भी लगती
लेकिन बसंती तो असली खेल चाहती थी
आज मेरी गाँड़ की बर्बादी लिखी थी, बसंती बोली चढ़ आ शूली पर मैं सेट कर देती हूँ, कितनी बार तो चढ़ चुकी थी आज ही सुनील के खूंटे पर,
लेकिन सेट कराते समय बदमाश बसंती ने बदमासी कर दी, बजाय अगवाड़े के पिछवाड़े का छेद सेट कर दिया, फिर बहन भाई ने मिल कर,
बसंती मुझे कंधे को पकड़ कर दबाती रही और उसका भाई , मेरी पतली कमर को पकड़ कर अपनी ओर खींचता रहा,, बड़ी मुश्किल से सुपाड़ा घुसा, उसके बाद सूत सूत करके आधा बांस,... फिर बसंती हट गयी,... और आँख नचाती , मुझे छेड़ती मेरी छिनार भौजी बोलीं,
" हमरे देवर का, रोज घोंटती हो, आज हमरे बीरन का नंबर है , देखती हूँ तोहार ताकत , बाकी का खुद ही घोंट,... "
और उस के कंधे को पकड़ मैंने जोर जोर से दबाना शुरू किया , कभी मजे से सिसकती तो कभी दर्द से चीखती, बसंती को गरियाती , पर थोड़ी देर में पूरा मेरी गाँड़ के अंदर, ...
ये नहीं था की मैंने पहले गाँड़ नहीं मराई थी, वो मेरी कमीनी छिनार सहेली चंदा और उस का यार सुनील ( असल में अब वो उससे ज्यादा मेरा यार था ), आज दिन में ही सुनीलवा ने दो बार मेरी गाँड़ मारी थी, और दिनेश ने भी, तभी तो बंसती भौजी कह रही थी हमरे देवर का तो रोज घोंटती हो , अब ज़रा हमरे बीरन का घोंट लो,... लेकिन वो दोनों तो खुद मार रहे थे और यहाँ मुझे खुद चढ़ के घोंटना पड़ रहा था, वो तो गनीमत थी की बसंती ने मुझे निहुराकर दो ढक्क्न कडुवा तेल मेरे पिछवाड़े डाल दिया था और मैंने चूस चूस के भौजी के भैया का चिक्क्न मुक्क्न कर दिया था , लेकिन तब भी मोटा कितना था
लेकिन सिर्फ गाँड़ में घोंटने से थोड़ी जान बचने वाली थी , और घोंटने में तो बसंती जो मेरा कंधा पकड़ के दबा रही थी, जोर जोर से पुश कर रही थी, तो किसी तरह मेरी कसी गाँड़ वो मोटा मूसल घोंट गयी,... लेकिन फिर खुद उठके और फिर उसके कंधे पकड़ के दबा के दुबारा घोटना,...
और साथ साथ वो भौजी का स्साला भाई, मुझे झुका के मेरी छोटी छोटी चूँचियाँ, मेरे जोबना के तो न सिर्फ इस गाँव वाले दीवाने थे पूरे बल्कि जब मैं मेले में गयी थी तो उसी दिन से आस पास के बीस तीस गाँवों में मेरे जोबन का डंका बज रहा था,
तो मैं उसके ऊपर,वो नीचे और जब वो पकड़ के कस कस के मसलता, मुंह में लेके चूसता पूरी ताकत से , निप्स पे दांत लगा देता तो बस जान निकल जाती थी मस्ती से.
कुछ देर में उसने मेरी कमर पकड़ के, कभी कमरिया पकड़ के तो कभी मेरी चूँचिया दबोच के जबरदस्त तूफानी धक्के मेरी गाँड़ में मार रहा था, गाँड़ के चीथड़े हो रहे थे, मैं जितना दर्द से चीखती, बसंती और उसे उकसाती,
'अरे बहिन क ननद का गाँड़ मारे क मौका कम ही मिलता है , अइसन गाँड़ मारो छिनार क की हमरे गाँव तक आवाज जाए , चीखने दो, अरे और कस के,... हाँ फ़ाड़ दो,... "
और वो अपनी बहिन की आवाज सुन के और जोर से
लेकिन ये तो शुरआत थी, वो मेरे गाँड़ में घुसाए घुसाए उठा और मुझे नीम के पेड़ के पास खड़ा कर के, मेरे पिछवाड़े क्या धक्के मारे,,
मैंने कस के नीम के पेड़ को दबोच रखा था,
बादलों को हटा हटा के बदमाश चाँद मेरी रगड़ाई देख रहा था ,
आंगन में बैठी मेरी भौजी, बसंती देख रही थी की कैसे हचक हचक के मेरी गाँड़ मारी जा रही थी, हर धक्के के साथ मेरे उभार मेरी देह पूरी तरह नीम के उस मोटे पेड़ से रगड़ती,
आसन बदल बदल कर, ... पटक पटक कर क्या बेरहमी से उसने मेरी ली, मैं पता नहीं कितनी बार झड़ी होउंगी,....
लेकिन उसने निकाला भी नहीं था की उसके दोस्त ने अपना मूसल ठोंक दिया , और कहाँ , वहीँ पिछवाड़े, और वो तो और बेरहम , उसका खूंटा भी पूरा मोटा मूसल,...
मैं कभी चीखती कभी बसंती का नाम उन दोनों से लगा लगा के गरियाती और वो दूने जोश से मेरे पिछवाड़े, कच्चे आंगन में,
और बसंती कभी आंगन में बैठी उस दूसरे लड़के से मायके का हाल चाल पूछतीं , सिर्फ लोगों का ही नहीं, गोरु बछरू का भी पेड़ पौधों का भी, ... फलाने सिंह के यहाँ जो आम का पेड़ लगा था, अब तो बड़ा हो गया होगा,
" अरे इस बार तो बौर भी आ गए थे उसपर " वो ख़ुशी से बसंती को बताता,
प्रायमरी स्कूल में नए मास्टर जी आ गए हैं , फलाने की गाय बियाई है , सब कुछ,...
और कभी मेरे पीछे पड़ जाती,...
नहीं नहीं डबलिंग भी हुयी एक बार दो बार नहीं पूरे चार बार,
नहीं नहीं सिर्फ सैंडविच ही नहीं, एक निहुरा के कस कस के गांड मारता और फिर आठ दस मिनट गाँड़ मारने के बाद , लंड निकाल के सीधे मेरी गाँड़ से मेरे मुंह में , और जब तक मैं उसका मेरी गाँड़ निकला लंड चाट चाट के चूस चूस के साफ़ करती, दूसरा मेरी गाँड़ में अपना मोटा लंड ऐसे हचक के एक बार में पूरा पेल देता की बस जान निकल जाती, और कुछ देर में उसका लंड मेरे मुंह में , ... कभी कभी सैंडविच , एक के खूंटे पे मैं बैठती तो दूसरा पीछे से गाँड़ मारता,...
दोनों ही सांड़ थे सांड़
सुबह जब चुहचुहिया बोलने लगी, अँधेरा धुंधलाने लगा तब गए दोनों,
Itna mja aaya ki ... bathroom ki diware safed ho gyimajaa aaya ki nahi,...
Next part today,Itna mja aaya ki ... bathroom ki diware safed ho gyi![]()