manu@84
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:: पेटकोट वाले लड़के :: (वास्तविक तथ्यों पर आधारित)
" कल रात कहानी की contest thread पर चिट चैट करते हुए मुझे पता चला कि हमारी खूबसूरत X-forum की दुनिया में कुछ युवा लड़के, लड़कियों की ID बनाकर फोरम के अखंड सिंगल, भोले भाले लड़कों का चूतिया काट कर मजे ले रहे है। जब मै इस विषय की गहराई में गया तो पता चला कि हमारे फोरम के अलावा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ये पेटीकोट वाले लड़के, सीधे साधे लड़कों की फीलिंग्स के साथ खेल कर उनको लूट रहे है। मै अपनी इस कहानी के माध्यम से उन पेटकोट वाले लड़कों को संदेश देना चाहता हूँ कि सुधर जाओ वरना " एक दिन ना पेंट पहनने के लायक रहोगे..ना ही पेटीकोट....., अंत में सिवाय पछतावे के कुछ नहीं बचेगा। "
जिला भाटिण्डा, पंजाब, में एक सिख महेंद्र सिंह, वो जब जब अपने बेटे के बारे शराब् पीते हुए सोचता तो खुद को कोसता और कहता कि साला उस रात मैने कॉकटेल नही पी होती तो ये ऐसी "औलाद" पैदा नही होती।
महेंद्र सिंह अपनी पत्नी सरनाम कौर
और इक्लौते बेटे शेखर के साथ खेतीबाड़ी कर चैन से गुजर बसर करता था, समय के साथ साथ उसका बेटा भी बड़ा हो रहा था!
" अमूमन सिख/सरदारों के बच्चे लंबे तगड़े, हट्टे कट्टे, बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूछ, सर पर पगड़ी बांधे आम तौर पर देखने को मिलते है। लेकिन महेंद्र सिंह का बेटा इसके उलट था।
उसका बेटा शेखर, गोरा, सुंदर बड़ी-बड़ी क़ाली आँखे, तीखे नैन नकश्, छरहरा बदन, लड़कियों के तरह चिकने हाथ पैर, शरीर पर सर के बालों के जूड़े के अलावा चेहरे पर दाढ़ी मूंछ के रोये तक नही आये थे। उसकी आवाज में भी वो अन्य सरदारों के लौंडो की तरह भारीपन नही था, उसकी आवाज लड़की की तरह सुरीली पतली होने की वजह से सभी को भ्रमित सी कर देती।
सर पर बंधे जूड़े / पगड़ी को खोल कर अगर सिर्फ उसके चेहरे को कोई देखे तो उसे एक खूबसूरत अप्सरा की तरह दिखाई दे। अपने इक्लौते बेटे की यही शारीरिक रूप और बनावट सरदार और सरदारनी की सबसे बड़ी चिंता का विषय बनी हुई थी।
शेखर का एक पक्का दोस्त था सिराज दोनों जिगरी यार थे। दोनों ही बड़े शरारती थे, शेखर की लड़कियों की तरह आवाज होने की खूबी का फायदा दोनों दोस्त मजे मस्ती के लिए खूब उठाते। जब कभी ये किसी भीड़ भरे माहौल में ये गुजरते तो शेखर लड़कियों की आवाज निकाल कर prank करता और दोनों दोस्त खूब मजे लेते।
धीरे धीरे इन्होंने लड़कियों के फोटो लगा कर फर्जी सोशल मीडिया ID बनाकर लौंडो से दोस्ती करना शुरु किया उन्होंने कुछ नियम बनाये थे - सबसे पहले किसी दिल टूटी हुयी लड़की/स्त्री, की शायरी का स्टेट्स डालते। फिर लौंडो की request आना शुरू हो जाती, फिर ये उनसे थोड़ी देर चिट चैट में पूरी डिटेल पूछ लेते। इनके शिकार दिल टूटे आशिक, छोटी छोटी नोकरिया करने वाले, थकेले-अकेले टाइप के लड़के होते।
इन्होंने उन लड़को को बात करने का एक निश्चित समय दे रखा था। उनसे कहते कि ये मेरे घर का फोन है, सभी use करते है, तुम कोई मैसेज, काल मत करना जब मै फ्री होऊँगी तो सामने से मैसेज करूँगी। सुबह-सुबह 5-6 बजे गुड मॉर्निंग मैसेज कर बिंदास मजे से सोते। सुबह 5-6 बजे का लड़की का gm मैसेज पढ़ कर लौंडो का पूरा दिन ही बन जाता।
कभी कभी शेखर फोन पर अपना नाम 'शिखा' बता कर लड़कियों की आवाज में बात करता और उनसे पेटीम के QR भेज पैसे ऐंठता। रकम कोई ज्यादा नही होती तो ठगे गए लोंडे अपना चूतिया कटवा कर बस चुप हो कर किसी से कोई शिकायत नही करते। इनके झांसे में कई बार अधेड़ उम्र के लोग भी फँस जाते...! ऐसे ही इनकी मस्ती भरी जिंदगी ऐश से गुजर रही थी।
कुछ महीनों बाद इनके के झांसे मे एक राजस्थान का एक 'सनकी राजपूत' लड़का 'राजीव' आ गया। बिना मांगे ही 25-50 हजार रुपये उसने दो तीन दिन की 5-6 घंटे की चॅटिंग में इन्हे दे दिये। वो एक दिल टूटा आशिक था। और उसे शिखा/शेखर से बात करते हुए बड़ा सुकून मिलता।
सिराज ने शेखर को राजीव के साथ अब बातें बंद कर ब्लॉक करने को बोला, लेकिन ज्यादा पैसे के लालच मे उसने सिराज की बातों को अनुसुना करना शुरु कर दिया। और राजीव के साथ फोन पर वॉइस काल में बात करना शुरु कर दी। फलस्वरूप राजीव ने उसके खाते में 1-2 लाख रुपये, महंगी महंगी ड्रेस और गिफ्ट के लिए रुपए देना शुरु कर दिया।
और एक दिन राजीव ने उसे वीडियो काल पर बात करने को कहा, शिखा/शेखर मना नही कर पाया और उसने उस रात अपने सर के जूड़े को खोल कर अपने चेहरे को बालों के साये में आधा अधूरा दिखाते हुए बात की। शिखा/शेखर के बालों के साये में आधे अधूरे चेहरे पर ही राजीव इतना मोहित हो गया कि उसने शिखा/शेखर को शादी का प्रस्ताव दे दिया।
शादी का प्रस्ताव सुनकर शेखर को झटका लगा, और उसने फोन काट दिया वो समझ गया, उसका बहुत ही जल्द पर्दाफ़ाश होने वाला है और वो बड़ी मुसीबत में फसने वाला है। और राजीव से बात करना बंद कर दिया। लेकिन उसका no. ब्लॉक नही किया। उसके मेसेज आते उन्हे पढ़ता लेकिन जबाब नही देता।
उधर मैसेज का जबाब न मिलने से राजीव की हालात खराब हो रही थी, और वो फिर से किसी दिल टूटे आशिक की तरह बहुत ही दुखी रहने लगा। राजीव के माँ बाप खुले विचारों वाले थे अपने जवान बेटे को इस हालत में देख कर उन्होंने राजीव को एक दिन समझाया कि तुम इस तरह घुट घुट क्यों जी रहे हो। तुम एक 'राजपूत' हो अगर उस लड़की से सच्चा प्यार करते हो और वो भी तुमसे प्यार करती हैं तो जाओ उसे 'भगा' कर 'शादी' कर यहाँ ले आओ। हम कानून-पुलिस सब से निबट लेंगे।
राजीव बाप के द्वारा भरे हुए जोश के साथ तुरंत बैंक खाते के माध्यम से शिखा/शेखर का घर पता निकाल लिया और चल दिया अपनी fortuner गाड़ी लेकर पंजाब अपनी 'जान' से मिलने।
सुबह करीब 9-10 बजे वो शेखर के घर पहुँच गया। और किसी फिल्मी हीरों की तरह बेधड़क शेखर के घर में घुस गया। शेखर के बाप से जब उसकी बात हुयी तो उन्होंने बताया कि उनके तो कोई बेटी,है ही नही, आप गलत पते पर आये हो। ये सुन कर राजीव सोच में पड़ गया और ये सोच कर घर से बाहर आकर खड़ा हो गया कि हो सकता, गलत पते पर आ गया हू ... वो बड़ी मायूसी से शेखर के घर की ओर देख रहा था।
नीचे घर में ये सब ड्रामा चल रहा था उस वक्त शेखर छत पर नहा रहा था। जब वो नहा कर अपने खुले बालों को सुखाते हुए जैसे ही छज्जे से नीचे झाँका तो राजीव और शेखर ने एक दूसरे को देख लिया।
राजीव भागता हुआ वापस घर में घुस गया और शेखर नीचे अपने कमरे में दरवाजा बंद कर छिप गया। राजीव दरवाजे को जोर जोर पीट्टते हुए 'शिखा दरवाजा खोलो' कहने लगा।
ये शब्द सुनते ही शेखर के माँ बाप समझ गये हो गया कांड, लग गये लोंडे.. शेखर जो इतने दिनों से ऐश भरी जिंदगी जी रहा था उसकी वजह उन्हे समझ आ गयी थी... उनका बेटा लड़को को लड़कियों की तरह बात कर चूतिया काट रहा था। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या कहे और क्या करे...????
कुछ देर बाद शेखर ने दरवाजा खोला...और कमरे से बाहर आया !
राजीव उसे एकटक ऊपर से नीचे तक देख रहा था। मर्दाने पंजाबी सलवार कुर्ते में खुले बड़े बड़े बालों के साथ छरहरा बदन, चिकना चेहरा, गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखे, लड़कियों के तरह हाथ पैर...अगर उसके दो सुडॉल् स्तन् लगा दिये जाये पूरी तरह लड़की दिखे।
इधर चेहरे पर डर के साथ शेखर भी, राजीव को देख रहा था।
राजीव को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो क्या कहे और क्या करे। वो बड़ी जोर से हँसने लगा, साला में जिसे लौंडिया समझ कर प्यार करता रहा वो तो लोंडा निकला... दुनिया का सबसे बड़ा चूतिया हू मै। एक लड़का मेरा चूतिया काट कर हजारों-लाख रुपये मेरे से लेता रहा और मै देता गया, बिना ये जाने कि वो कौन है।
राजीव को शेखर से ज्यादा गुस्सा खुद पर आ रहा था। उसे पैसों की फिकर नही थी, उसे इस बात का डर लग रहा था कि उसके बाप और मेवाड के लोगों को पता चलेगा कि 'राजपूत परिवार का एक लड़का' जिसको पागलो की तरह प्यार करता था वो, लड़की नही लड़का है। और राजपूतों को लोंडा 'गांडू' है...???
काफी देर हँसने-रोने के बाद राजीव बोला ना ही मुझे कोई पुलिस केस करना है और ना ही पैसे चाहिए.... मुझे बस अपने बाप और मेवाड की नजरों में जलील नही होना है। अब मेरे पास दो ही रास्ते है, पहला कि राजपूतो की तरह अपनी शान और आन के लिए तुम सब को गोली मार दू.... किसी को कुछ भी पता ही नही चलेगा।
और बेटा दूसरा... शेखर के बाप ने डरते हुए पूछा???
तुम शेखर.... शिखा जो भी हो लड़की बनकर अभी मेरे साथ मेरे घर चलो, दो तीन हफ्तों तक मेरे माता पिता के साथ मेरी पत्नी होने का ड्रामा करोगे? मैं उन्हें कह दूंगा कि मैंने तुमसे शादी कर ली है. और फिर २-३ हफ्ते बाद वापस यहाँ आ जाना । कुछ महीनो बाद मैं उन्हें कह दूंगा कि हमने डाइवोर्स ले लिया है. फिर वो मेरे पीछे नहीं पड़ेंगे.”,
“राजीव. ये कैसे हो सकता है? तुमको तो पता है कि मैं लड़का हूँ. एक असली लड़की नहीं हूँ मैं. उन्हें सच पता चल गया तो?”, शेखर ने कहा. 'इस तरह किसी को बेवकूफ बनाने का विचार अब उसे डरा रहा था' ?
“यार शेखर. किसी को कैसे पता चलेगा? तुम्हारे किसी भी लड़की की तरह इतने लम्बे घने बाल है. अभी तक चेहरे पर दाढ़ी मूंछ का रोवा तक नही है. और तुम अपनी आवाज़ को लड़की की आवाज़ में बदलने में एक्सपर्ट भी हो. एक बार खुद को आईने में देखो तो सही .. किसी को गलती से भी डाउट नहीं होगा कि तुम लड़की नहीं हो.
“बेटा शेखर .. प्लीज़ मान जाओ. नही तो ये सनकी राजपूत हम सब को अभी मार डालेगा। शेखर के बाप ने डरते हुए कहा।
अपने किये पर शर्मिंदा और माँ बाप की जिंदगी बचाने के लिए वो बोला ठीक है, मुझे मंजूर है।
ये सुनते ही राजीव की जान में जान आ गयी थी. लेकिन ये मर्दानी आवाज दोबारा मत बोलना आज से तुम एक पूरी तरह शिखा बन कर ही मेरे साथ रहोगे।
“मुझे पत्नी बनने के लिए ढेर सारी महँगी साड़ियाँ चाहिए!”, शेखर हँसते हुए से बोला.
“बस इतनी सी बात. तुम्हे जितनी साड़ी पेटीकोट लेना है ले लेना। हम यहाँ से सीधे दिल्ली जायेंगे, तुम्हे जो चाहिए खरीद लेना. हमारे पास बस १ दिन है तैयारी के लिए. हम समय व्यर्थ नहीं कर सकते.”, राजीव ने कहा.
बेचारा शेखर… उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस बात को लेकर खुश हो या फिर चिंतित. पर अब तो उसने पत्नी बनने के लिए हाँ कर दी थी।
कुछ घंटो बाद वो दिल्ली पहुँच गए पर इस वक़्त शिखा बनकर नहीं शेखर बनकर सीधा वो एक होटल चले गए.
“राजीव.. मेरे ख्याल से अच्छा होगा कि शौपिंग के लिए जब हम जाए तो मैं शिखा बनकर चलू तुम्हारे साथ. वरना एक आदमी बनकर अपनी साड़ी के टेस्ट बताने में मुझे संकोच भी होगा और दूकान वाले भी मन ही मन डाउट करेंगे.”, शेखर ने राजीव से कहा.
“जैसा तुम्हे ठीक लगे. वैसे भी अच्छा होगा कि हम दोनों अब पति-पत्नी की तरह बर्ताव करना शुरू कर दे तो मेरे माँ बाप के सामने हम रेडी रहेंगे. वैसे भी तुम्हारे अलावा किसी लड़की के साथ मैंने समय नहीं बिताया है. मुझे पता भी नहीं कि पत्नी के साथ कैसे रहते है. मैंने कभी उस तरह से सोचा नहीं न.”, राजीव ने कहा.
बिना समय व्यर्थ किये शेखर ने बाथरूम जाकर कपडे बदले और शिखा के रूप में आ गयी. उसने एक मॉडर्न कुर्ती पहनी थी लेग्गिंग्स के साथ और हाथ में एक मैचिंग क्लच भी था जिसे उसने एक बड़े पर्स में रख दिया. और एक हल्का सा नेचुरल लुक देने वाला मेकअप किया था.
बाथरूम से शिखा बाहर आई तो राजीव उसे देखते रह गया और बोला, “क्या बात है मेरी पसंद इतनी बुरी नही है? ये कपडे और सामान बड़े अरमानो के साथ तुम्हारे लिए ही लाया था?”
“डिअर… इस कुर्ती के साथ तो मैं चप्पल भी पहन सकती हूँ.”, शिखा ने प्यार से राजीव से कहा।
राजीव ने भी बिना और सवाल किये शिखा का हाथ पकड़ा. दोनों कमरे से निकलने ही वाले थे कि शिखा ने रुकने को कहा. “क्यों क्या हो गया अब?”, राजीव ने पूछा.
“रुको तो ज़रा. अब मैं तुम्हारी पत्नी हूँ तो मुझे और तुम्हे साथ में पति पत्नी की तरह चलना चाहिए न?”, शिखा हँसते हुए बोली. और फिर राजीव की बांह को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर उसके बेहद करीब आ गयी. इतने करीब कि उसके नकली मगर नर्म नर्म स्तन राजीव की बांह से दबने लगे.
पर शिखा के नकली स्तनों के स्पर्श के बावजूद राजीव पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा।
“अच्छा अब दूसरी दूकान चले?”, शिखा ने राजीव से कहा.
“दूसरी? अभी तुम्हे और भी शौपिंग करना है?”, राजीव ने अचरज से कहा.
“ऑफ़ कोर्स! अभी तो शौपिंग शुरू हुई. अभी तो बहुत सी साड़ियाँ खरीदनी है.”, शिखा बोली.
“कितनी और लेनी है?”, राजीव ने अपने सर पर हाथ रख थक हार कर पूछा.
“कम से कम १२ और! मैं एक भी साड़ी रिपीट नहीं करूंगी.?”
राजीव को अब समझ आ रहा था कि पति बनने का रोल करना तो उसके लिए भी मुश्किल होगा.
“आह.. खाना खाकर मज़ा आ गया. अब तो मैं बस कपडे बदलकर सोने वाला हूँ.”, राजीव ने होटल के कमरे में वापस आकर कहा. पूरे दिन में उन दोनों ने आज १८ साड़ियाँ खरीदी थी और फिर कई साड़ियों के लिए तो ब्लाउज भी सिलाने थे. इतने सारे ब्लाउज के डिजाईन चुनने में और टेलर को अपना नाप देने में ही शिखा ने २-३ घंटे लगा दिए थे. दिन भर की शौपिंग के बाद खाना खाकर अब दोनों थक हार कर वापस आये थे.
“ठीक है तुम कपडे बदल लो. मैं भी बदल लेती हूँ.”, शिखा तो जैसे पूरी तरह लड़की बनकर रम चुकी थी. इस वक़्त तो वो अपनी सभी साड़ियों को एक बार फिर निकाल कर बारीकी से निरिक्षण कर रही थी. कुछ देर के बाद शिखा बिस्तर पर से उठी और एक हाथ में नाइटी लेकर बाथरूम चली गयी.
जब वो बाथरूम से निकली तो राजीव डबलबेड के दुसरे सिरे पर लेट चूका था. शिखा तो अपनी नाईटी पहनी हुई बहुत ही खुबसूरत लग रही थी. आखिर उसकी नाईटी भी बड़ी सेक्सी थी. उसका बदन लगभग एक औरत की भाँती ही लग रहा था. पर फिर तुरंत ही उसने अपनी बांह के अन्दर हाथ डाला और अपनी ब्रा का हुक खोलकर ब्रा निकालने लगी. उसकी ब्रा बहुत सेक्सी थी. यदि राजीव की जगह कोई और आदमी होता तो वो तो उतावला हो जाता. पर फिर ब्रा के साथ साथ शिखा के नकली स्तन भी बाहर निकल गए और वो राजीव के बगल में आकर बैठ गयी.
“तुमने ब्रा क्यों उतार दी?”, राजीव ने पूछा.
“ओहो. दिन भर के बाद रात को हर लड़की बिना ब्रा के सोती है. कम्फ़र्टेबल लगता है.”, शिखा बोली और अपनी ब्रा और स्तनों को बगल के ड्रावर में रखने लगी.
बिना स्तनों के उभार के भी शिखा एक रूपमती औरत लग रही थी. पर कुछ और भी था जो उसके स्त्री रूप से थोडा भिन्न था. उसकी नाईटी में निचे की ओर उसके लिंग का उभार दिख रहा था. नहीं वो तना नहीं था पर उभरा हुआ था.
“तुमने पेंटी भी नहीं पहनी है?”, राजीव ने पूछा.
“नहीं… नाईटी में मुझे खुला खुला सोना अच्छा लगता है. वैसे भी सब कुछ तो ढका हुआ है फिर पेंटी की क्या ज़रुरत? मैं तो कहती हूँ तुमको भी कभी नाईटी ट्राई करनी चाहिए राजीव”, शिखा मुस्कुराकर बोली और फिर लेटकर रजाई के अन्दर घुस गयी.
राजीव मन ही मन कुछ सोचते हुए पलटकर गुड नाईट कह कर सो गया. वो बहुत थक गया था. अब कुछ न ही सोचे तो अच्छा है. पर उसे इस वक़्त भी एहसास हो रहा था कि पत्नी साथ हो तो जीवन कैसे बदलता है. क्या वो सचमुच ये झूठ-मुठ की शादी में अपने माता पिता के सामने एक पति होने का नाटक कर सकेगा? शेखर तो जैसे पत्नी के रोल के लिए पूरी तरह तैयार लग रहा था, पर क्या वो तैयार था?
आखिर वो घडी आ ही गयी थी. जब शिखा राजीव के घर उसकी पत्नी के रूप में कदम रखने वाली थी। अब तक तो सब ठीक था पर शिखा अब नर्वस होने लगी थी. अब तो उसकी असली परीक्षा शुरू होने वाली थी. उसने अपनी साड़ी को देखा और सोचने लगी कि यह साड़ी अपने सास ससुर के समक्ष पहली बार आने के लिए सही है या नहीं.
चेहरे से ही थोड़ी घबरायी हुई लग रही थी वो. शिखा ने एक भारी भरकम साड़ी पहनी थी जो एक बहु के लिए बिलकुल सही थी जो अपने सास ससुर से पहली बार मिलने वाली थी. हाथ में कंगन भी थे जो राजीव ने उसे खरीद के दिए थे. पर न जाने शिखा कहाँ खो गयी थी.
इस वक़्त अचानक से ही शिखा की जगह शेखर था. बाहर तन पर तो साड़ी थी पर मन एक पुरुष का था .. शेखर का. “ये क्या कर रहा है शेखर?”, उसके मन ने उससे कहा. जिस साड़ी में शिखा इठलाती हुई आई थी और जो गर्व से अपने बड़े से मंगलसूत्र को पहनकर पत्नी बन इठला रही थी, उसी औरत की जगह अब शेखर था…
एक आदमी जो उस साड़ी को पहनकर बहुत असहज महसूस कर रहा था. वजनी स्तन और ऊपर से भारी साड़ी शेखर को विचलित कर रही थी. इतना विचलित की शेखर उस साड़ी को उतारकर अब बस शर्ट पेंट पहनकर वहां से बस निकल जाना चाहता था. और उसके चेहरे से उसकी असहजता राजीव से छुपी न रही.
“क्या बात है शिखा. परेशां दिख रही हो तुम”, राजीव ने पूछा. “नहीं कुछ नहीं”, शेखर ने किसी तरह जवाब दिया. पर ये क्या उस खुबसूरत लड़की से इतनी मर्दानी आवाज़? वो आवाज़ सुनकर तो राजीव भी आश्चर्य में था. बीते दिन में शिखा के मुंह से उसने मर्दानी आवाज़ नहीं सुनी थी.
शेखर भी ये समझ गया था. उसने एक बार फिर लड़की की आवाज़ निकालने की कोशिश की और कहा, “नहीं कुछ बात नहीं है.” पर उसकी आवाज़ थोड़ी मर्दानी और थोड़ी लड़की का मिक्स थी. शेखर के अंग अंग में डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए थे. इतने समय से शिखा के रुप में वो पूरी तरह औरत की तरह सोच रहा था पर अचानक ही वो एक बार फिर मर्द बन चूका था.
एक साड़ी पहना हुआ मर्द. जहाँ पहले स्त्री के हाव-भाव उसके लिए बिलकुल आसान थे अब वो सिर्फ एक औरत होने का नाटक करने की कोशिश कर रहा था. वो कोशिश करता रहा कि एक बार फिर शिखा वापस आ जाए पर वो वापस नहीं आई. एक मर्द राजीव को अपने पति के रूप में देखकर उसे खुद से शर्म आने लगी कि वो इस बात के लिए तैयार कैसे हो गया.
और तभी २ लोगो की आकृति उनके सामने दिखने लगी. राजीव के चेहरे के उत्साह को देखकर शेखर को समझ आ गया था कि यही उसके सास ससुर है. शेखर की कमर पर पेटीकोट और साड़ी उसे बहुत टाइट और भारी लगने लगी. वो असहज होकर अपनी साड़ी संभालने लगा. और सामने जो औरत उसकी ओर आगे बढती हुई दिखाई दी… उसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे किसी टीवी के सास बहु के सीरियल की तरह की एक अमीर घराने की सास उसके सामने निकल आई हो. भारी साड़ी, भारी गहने और गोल-मटोल शरीर...।
उस सास को देखकर तो शेखर अपने ससुर की ओर देखने की भी नहीं सोच पा रहा था. वो दोनों अब राजीव और शेखर के बहुत करीब थे. राजीव के इशारे से उसे समझ आ गया था कि उसे एक बहु की तरह झुककर अपने सास ससुर के पैर छूने है. पर हाय यह क्या… झुकते ही उसका एक नकली स्तन ब्रा से निकल कर सरककर बीच में आ गया. किसी तरह तो शेखर ने झुके झुके ही अपने स्तन को वापस सही जगह लाया और यही उम्मीद किया कि किसी ने उसे ऐसा करते देखा न हो.
“वाह मेरी बहु रानी तो बहुत सुन्दर है”, शेखर की सास ने उसके चेहरे को हाथ लगाते हुए कहा. बहुरानी शब्द सुनकर ही जैसे शेखर अन्दर ही अन्दर चिढ गया. पर उसकी सास इस वक़्त रुकने कहा वाली थी. उसने शेखर की साड़ी के पल्लू को शेखर के सर के ऊपर रखते हुए उसके पल्लू के दुसरे छोर को उसके ब्लाउज पर से ढंकते हुए शेखर के हाथ में पकडाती हुई बोली,
“तुम बहुत सुन्दर हो बहु. पर एक औरत और भी सुन्दर लगती है जब उसके सर घूँघट से ढंका हुआ हो!” जहाँ शेखर की सास यह कह कर मुस्कुरा रही थी वहीँ शेखर को अंदाजा हो रहा था कि अगले १४ दिन उसके लिए आसान नहीं होने वाले है.
फिर सभी वहां से सामान लेकर घर के अंदर जाने लगे. साड़ी और हील में शेखर को चलने में न जाने क्यों दिक्कत हो रही थी.
उसके भारी स्तन जो उससे जगह पर संभल नहीं रहे थे वो और मुसीबत बने हुए थे. साड़ी की गर्मी में उसके ब्लाउज में उसे बहुत पसीना भी आ रहा था. आखिर में परेशान होकर बाथरूम चला गया.
उसने झट से अपने ब्लाउज को खोला ताकि कुछ हवा लग सके और उसका पसीना सूखे. उसने बहुत सेक्सी ब्रा पहन रखी थी. पर अब ब्रा उसकी परेशानी का सबब थी. कम से कम कुछ देर के लिए उसके सीने को खुला खुला महसूस हुआ तो उसे अच्छा लगने लगा. वो अपना पल्लू हिलाते हुए अपने सीने पर हवा करने लगा.
वो ज्यादा देर बाथरूम में रह भी नहीं सकता था. उसने अपनी ब्रा का स्ट्राप को थोडा और जोर से कस दिया ताकि उसके स्तन जगह पर टीके रहे. १४ दिनों की उसकी मुसीबत की तो यह बस शुरुआत ही थी. उसने अपनी ब्लाउज के हुक लगाये और एक पल चैन की सांस लेते हुए वहीँ शीशे के सामने खड़ा रहा.
“बहु… ओ बहु..”, उसे बाहर से उसकी सास की आवाज़ आई तो उसने झट से अपने ब्लाउज को आँचल से ढंका और सर पे एक बार फिर घूँघट लेकर बाहर आ गया. आओ बहु खाना लग गया है।
“खाना खाकर.... बहु तुम अपनी सास से कुछ दिनों में मारवाड़ी खाना बनाना सिख लेना. असली मज़ा तो उसी में है.”, ससुर ने जब शेखर से कहा तो शेखर से कुछ और न कहा गया. खाने के बाद उसके सास ससुर अपने कमरे में आराम करने चले गए।
किसी तरह सास ससुर की सेवा करते हुए उसका दिन बिता और फिर थक हारकर वो कुछ कपडे जैसे पेटीकोट और ब्रा वगेरह जिसे उसने मशीन में धोये थे उन्हें लेकर कमरे में आया जहाँ राजीव बिस्तर पर आराम से लेटा हुआ था. उसने उन कपड़ो को बिस्तर पर रखते हुए राजीव से कहा,
“सुनो तुम इन कपड़ो को तह करने में मेरी मदद करोगे प्लीज़?” बेचारी शिखा को दिन भर काम करते देख राजीव ने भी उसकी मदद करने की सोचा. और उन कपड़ो में सबसे पहले तो अपनी पत्नी की ब्रा को पकड़ा और बोला, “शिखा तुम्हारी ब्रा तो बहुत बड़ी है यार. और सुन्दर भी.”
राजीव की बात सुनकर शेखर खीज सा गया. और उसने एक दूसरी ब्रा उन कपड़ो से निकालकर राजीव को पकडाई. “ये तो बहुत ही बड़ी है यार.”, राजीव बोला. “हाँ… इसमें मेरे साइज़ के ३ औरतों के स्तन आ जायेंगे. तुम्हारी माँ की ब्रा है ये”, शेखर ने कहा.
शिखा की बात सुनते ही राजीव सकपका गया और वो ब्रा तुरंत उसके हाथ से छुट गयी. “ये मुझे देने की क्या ज़रुरत थी. तुम ही संभालो इन कपड़ो को.”, राजीव बोला.
“ठीक है.”, शेखर ने कहा. “मैं बाथरूम से कपडे बदलकर आती हूँ.”, उसने आगे कहा और अपना ब्लाउज उतार कर अलमारी से नाईटी निकालकर बाथरूम चला गया. न जाने क्यों आज राजीव का अपनी पत्नी शिखा के ब्लाउज को पकड़ने का मन कर गया. उसने उसे अपने हाथो में पकड़ा तो उसे ब्लाउज की आस्तीन में अन्दर पसीने से गिला धब्बा दिखाई दिया. बेचारी शिखा ने दिन भर मेहनत जो की थी.
भले शेखर एक औरत के रूप में औरतों वाले डीयो लगाए था पर राजीव ने जब उस ब्लाउज की आस्तीन को सुंघा तो उसे एक मर्दानी पसीने की गंध आई. वहीँ शेखर बाथरूम में साड़ी और पेटीकोट उतारकर नाईटी पहन रहा था. बिना ब्रा और बिना पेंटी के नाईटी पहनना आज उसकी मजबूरी थी. दिनभर टाइट ब्लाउज और भारी स्तनों और साड़ियों से वो आज़ाद होना चाहता था.
अब नाईटी में खुला खुला उसे बहुत अच्छा लग रहा था. कपडे बदलकर जैसे ही वो कमरे मे आया तो राजीव थोडा सकपका गया और उसने तुरंत ही अपने हाथ से ब्लाउज को साइड में रख दिया. पर शेखर इन सबसे अनभिग्य था और वो अपनी साड़ी पेटीकोट ब्लाउज वगेरह को बिना समेटे ही उठाकर एक कोने में रखकर सो गया.
उसके लिए अगला दिन और मुश्किल होने वाला था. उसी बिस्तर के दूसरी ओर राजीव कमरे की धीमी धीमी रौशनी में शेखर को नाईटी में उसकी नितम्ब को देख कुछ सोच रहा था. उसका मन कर रहा था कि वो शिखा की कमर को पकड़ कर थोडा सहलाए. पर बिना कुछ किये वो बेताबी में सोने की कोशिश करता रहा.
जब एक आदमी सुबह सुबह उठे तो उसे क्या होता है? यदि उसने अपने शरीर की उत्तेजना का अंत न किया हो तो सुबह सुबह उसका लिंग खड़ा होता है. और ऐसा ही हाल शेखर का था. उसकी नाईटी में उसका लिंग पूरी तरह से उसकी नाज़ुक नाईटी में तना हुआ था. वो अब भी नींद में था और शेखर नींद में आंहे भर रहा था और न जाने किन सपनो में खोया हुआ था.
पर तभी अलार्म बजा तो उसकी नींद खुली. उस वक़्त सुबह के ६ बजे थे. उसका लिंग तना हुआ था जिसको वो चाह कर भी छुपा नहीं सकता था. उसे एक बार फिर जल्दी से उठकर एक बहु के रूप में अपना दिन शुरू करना था. उसे अपने लिंग का एहसास था जिसकी वजह से उसी थोडा शर्म भी आ रही थी. फिर भी वो उठा और अपने लम्बे बालो को अपनी उँगलियों से सवारकर एक बालो का जुड़ा बनाकर अपने पैरो को अपने शरीर के करीब मोड़ कर अपने तने हुए लिंग को छुपाने की असफल कोशिश करने लगा. राजीव ये सब देख रहा था पर उसने कुछ कहा नहीं. “तुम इधर मत देखो जी.”, एक पल को तो जैसे शेखर के अन्दर शिखा वापस आ गयी थी जो शर्माते हुए बोल रही थी.
शर्माते हुए वो उठी तो उसके साथ उसका खड़ा लंड उसकी नाईटी को उठाकर उसे साथ उठ खड़ा हुआ. शिखा के मन करने पर भी राजीव उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था. शर्माती हुई शिखा बाथरूम में पहुंची. वो जल्दी से नाईटी उतार कर शावर में जा पहुंची. गरम पानी उसके लिंग पर बहने लगा तो वो उसे छूने लगी. पानी के असर से उसका लिंग का तनाव थोडा कम हुआ. फिर बालो को सुखाकर एक पेंटी और ब्रा पहनकर वो कमरे में आ गयी. राजीव अब भी उसकी पेंटी को घुर रहा था. पर उसे अनदेखा कर शिखा अपनी साड़ी पहनने लगी. एक बार फिर बहु बनने को तैयार.
सज्धज कर जब शिखा बाहर निकली तो उसकी सास पहले से ही तैयार बैठी हुई थी. उनको देखकर तो यकीन ही नहीं होता था कि कोई इतने सवेरे ऐसे तैयार भी हो सकता है. सास को देखते ही एक बार फिर शिखा न जाने कहाँ रफूचक्कर हो गयी और एक बार फिर रह गया था शेखर एक औरत के लिबास में. “माँ जी. मैं अभी नाश्ता बनाती हूँ आप सभी के लिए.”, शेखर ने घूँघट के साथ अपनी सास से कहा. तो सास मुस्कुरा दी और बोली, “हाँ चल. मैं भी तुझे जरा सिखाती हूँ कि मेवाड के परिवार की बहु कैसे नाश्ता बनाती है”
एक आदमी के लिए बहु बनना बहुत मुश्किल होता है. यदि इस वक़्त वो दिल से शिखा होती तो वो बड़ी खुश होती पर इस वक़्त तो शेखर था जो बहु होने का रोल अदा कर रहा था. नाश्ता बनाते हुए जाने अनजाने में उसकी सास के स्तन उसकी बांह को छुआ जाते थे. टेंशन में होते हुए भी उन स्तनों के स्पर्श से शेखर पर कुछ असर होने लगता. उसका दिमाग सोचने लगता कि उनके स्तन दबाकर कितना मज़ा आता.
उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए पर एक आदमी का दिमाग कुछ भी कभी भी सोच सकता है. उसकी साड़ी के अन्दर उसका लंड खड़ा होने लगा था. पर फिर भी किस्मत से भारी साड़ी और भारी पेटीकोट की वजह से उस लंड का उभार बाहर नहीं दिख रहा था.
सभी को नाश्ता कराने के बाद जब राजीव ऑफिस चला गया
तो शेखर की सास ने उससे कहा, “बहु.. चल मैं तुझे वो साड़ियाँ दिखाती हूँ जो मैं तेरे लिए लेकर आई हूँ.” “और फिर एक साड़ी मैं तुझे पहना भी दूँगी. तुझे मारवाड़ी तरह से साड़ी पहनना नहीं आता होगा न.”
हाय… यदि शेखर का लंड एक बार फिर खड़ा हो गया तो जब उसकी सास अपने हाथो से उसे साड़ी पहना रही होगी?, ये सोचकर ही शेखर की चिंता बढ़ गयी. पर उसके पास कोई चारा नहीं था. अन्दर कमरे में शेखर की सास ने उसे ढेर सारी साड़ियाँ दिखाई जिसमे से शेखर ने एक उस वक़्त पहनने के लिए पसंद की. वैसे तो सभी साड़ी एक से बढ़कर एक सुन्दर थी पर उसने जान बुझकर ऐसी साड़ी पसंद की जिसका पेटीकोट सबसे ज्यादा भारी था और जिसमे खूब सारी चुन्नटें थी. शायद इनके पीछे उसका लंड छिप जाए. नयी साड़ी पहनने के पहले शेखर बाथरूम में जाकर अपनी पेंटी के ऊपर २ पेंटी और पहन आया ताकि लंड पर काबू रख सके. और फिर उसने वो भारी पेटीकोट पहना. जितना वो अपने लंड के बारे में सोचता वो और खड़ा होने लगता.
फिर भी किसी तरह हिम्मत कर वो बाहर आया जहाँ उसकी सास अपने हाथ में साड़ी पकडे खड़ी थी. और फिर बिना समय व्यर्थ किये वो शेखर की कमर पर अपने हाथो से साड़ी लपेट कर ठूंसने लगी. शेखर का इस वक़्त बुरा हाल था. उसकी सास के उसकी कमर पे नाजुक स्पर्श से उसका लंड उफान पर था. किस्मत से पेटीकोट और ३ पेंटीयाँ उस उफान को काबू में रख पा रही थी. कब कब ये साड़ी पहनाना पूरा हो यह सोचकर ही उसके ब्लाउज के अन्दर उसके पसीने छुट रहे थे और ब्लाउज का अस्तर उस पसीने से भीग रहा था. कहीं उसकी सास को उसके पसीने की खुशबु न आ जाए वरना उसकी सास को शक हो सकता है.
इसी चिंता में जैसे ही उसकी सास ने साड़ी पहना कर उसके सर पर घूँघट रखा तो उस घूँघट को अपने हाथ से पकड़ कर शेखर की जान में जान आई. उसे आगे से इसी तरह से अच्छी तरह से साड़ी पहननी होगी क्योंकि वो दोबारा अपनी सास के द्वारा साड़ी पहनाने का रिस्क नहीं ले सकता था.
अब जब चैन की सांस वो ले चूका था तो खुद को आईने में देख वो अपने रूप पर इठ्लाने लगा. वो सचमुच बेहद सुन्दर मारवाड़ी बहु लग रहा था. शिखा एक बार फिर उस पर हावी हो रही थी जो अब उस रूप में गहरी सांसें ले रही थी.
शेखर इस वक़्त अपने रूप पर इठलाना चाहता था पर उसकी सास की उस पर नज़र उसे थोडा नर्वस कर रही थी. “बहु बस एक कमी लग रही है”, उसकी सास ने शेखर से कहा. “क्या कमी है माँ जी?”, उसने किसी तरह पूछा. अभी भी औरत की आवाज़ निकाल कर एक बहु की तरह बर्ताव करना शेखर के लिए मुश्किल था.
“मारवाड़ी बहु बिना नथ के पूरी नहीं होती. तूने अपने नाक में छेद क्यों नहीं करवाया है? हम लोग अभी जाकर तेरी नाक छिदा कर आते है.”, सास के मुंह से ये बात सुनकर शेखर के पैरो तले जमीं खिसक गयी.
शेखर ने कान में तो छेद कराये थे और क्योंकि लडको में भी ये फैशन होता है तो उसे कान के छेद से कोई प्रॉब्लम नहीं थी. पर नाक के छेद? अपनी सास को लाख समझाने के बाद भी उसकी सास नहीं मानी. बल्कि वो नाराज़ होने लगी थी. और इसी मजबूरी में शेखर अपनी सास के साथ शौपिंग मॉल आ गया, जहाँ अब वो अपनी नाक छिदने का इंतज़ार कर रहा था. वहां औरतों और लोगो के बीच वो भारी साड़ी पहने राजपूतो की बहु के रूप में बिलकुल अलग लग रहा था.
उसकी सास की वजह से उसे सर पर घूँघट भी रखना पड़ा था सो अलग. वहां लोग उससे तरह तरह के सवाल कर रहे थे. और वो अपना घूँघट और साड़ी संभाले उनके जवाब दे रहा था. भारी पायल और उसकी चूड़ियों की खनक और इस तरह से साड़ी पहने वो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. अब बस वो कैसे भी ये नाक छिदा कर वहां से जल्दी से जल्दी जाना चाहता था. कान के छेद कराने के अनुभव से तो वो इस दर्द से वाकिफ था. और फिर जैसे ही उसके नाक का छेद हुआ। सास ने पर्स से पैसे दिए और अपनी सास के साथ कार में वापस आ गया.
घर पहुँचते ही शेखर को एक बड़ी सी गोल नथ पहनाई गयी तो उसकी सास बेहद खुश हो गयी. पर अभी तो अध दिन ही गुज़रा था. बाकी पूरे दिन वो अपनी सास के साथ किचन में खाना बनाते रहा और अपनी सास और ससुर की सेवा करता रहा. नाक में दर्द की वजह से उसे बार बार अपनी नथ संभालनी पड़ रही थी. पूरी तरह औरत के दर्द से गुज़र रहा था शेखर.
किसी तरह दिन गुज़रा और रात को राजीव घर पर आये तो अपने पति और सास ससुर को खाना खिलाने के बाद शेखर अपने कमरे में आ गया. अपनी पत्नी को नथ पहने देख राजीव को बड़ा अच्छा लगा.
वहीँ शेखर जिसने सोचा था कि वो ये दिन शिखा बनकर ख़ुशी से गुजारेगा उसके लिए भी ये सब आसान नहीं था. वो शिखा की तरह बिलकुल महसूस नहीं कर पा रहा था. भले पूरे समय वो एक खुबसूरत बहु की तरह सजा होता था पर उसका मन बिलकुल आदमी की तरह ही सोच रहा होता था.
अगले दिन की शुरुआत भी कुछ अलग नहीं थी. सुबह से उठकर उसे बहुत सारा खाना बनाना था. शेखर की सास के कहने पर उसने आज और भी ज्यादा भारी साड़ी और पुश्तैनी भारी गहने पहनी हुई थी. इतनी भारी की उसकी मर्दानी कमर भी नाज़ुक लगने लगी थी और दर्द करने लगी थी. उसे राजीव पर गुस्सा भी आ रहा था कि वह तो ऑफिस चला जाता है पर शेखर को घर में अकेले ही बहु बनकर इतना सब कुछ करना पड़ता था.
रात को राजीव ऑफिस से घर आये तो बहुत देर हो चुकी थी. तब तक वो सिसकते हुए सो चुकी थी. नींद में कई बार दो शरीर एक दुसरे के पास आ जाते है. भले वो कुछ करे न.
ऐसा ही शेखर और राजीव के साथ हुआ था. सुबह जब उन दोनों की नींद खुली तो शेखर राजीव की बांहों में था. और राजीव का खड़ा लंड शेखर यानी शिखा की नितम्ब पर जोर से टकरा रहा था और राजीव के हाथ शेखर की रेशमी साड़ी पर थे और उसके होंठ शेखर की ब्लाउज में खुली हुई पीठ से लगे हुए थे. नींद खुलते ही जैसे ही शेखर को ये एहसास हुआ और वो ज़रा होश में आया तो वो झट से उठकर बिना कुछ कहे अपनी साड़ी संभालते हुए बाथरूम आ गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसी से कहे तो कहे क्या. ये औरत का रूप उसके लिए कितनी मुसीबत बन गया था.
शेखर और राजीव दोनों को पता था कि सुबह की उस अनजाने में नींद में हुई गलती से दोनों के बीच एक अनकहा टेंशन था. इस वजह से दोनों ने ज्यादा बातें नहीं की और राजीव अपने ऑफिस जल्दी ही चले गए. वहीँ शिखा घर पर अपने सास ससुर की बाकी दिन की तरह सेवा करती रही. शिखा की सास उससे दिन भर कुछ न कुछ करवाती रहती थी. मुश्किल से दोपहर में आधे घंटे की नींद का उसे मौका मिला था पर फिर उसकी सास की आवाज़ से उसे उठाना पड़ा था. उसकी नाक में नथ पहनकर अभी भी दर्द था.
पर पिछले कुछ दिनों में उसे लगने लगा था कि राजीव भी उसके शरीर की तरफ आकर्षित होने लगा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है. राजीव तो जानता है कि वो एक लड़का है. और उसके सामने एक लड़की और एक पत्नी बनकर रह रहा था. उसे ये नहीं समझ आ रहा था कि राजीव का किस वजह से आकर्षण है.
वैसे तो ये दिन शेखर/शिखा के लिए उतना बुरा नहीं था. सास ससुर की सेवा तो वो रोज़ की तरह ही कर रही थी. पर इस वक़्त तक शिखा के अन्दर छुपा हुआ शेखर इन सब से तंग आ चूका था.
और उस दिन जब राजीव ऑफिस से घर देर से पहुँच कर कमरे में आये तो शिखा का गुस्सा उन पर टूट पड़ा. “कहाँ थे तुम इतनी देर तक? मैं यहाँ दिन भर तुम्हारे माँ बाप की सेवा कर रही हूँ और तुम घर पर समय पर भी नहीं आ सकते?”, शिखा का चेहरा एक गुस्से से भरी पत्नी की तरह तमतमा रहा था.
“ओहो शिखा. तुम तो जानती हो कि आज के दिन हफ्ते में एक बार हम सब ऑफिस के बाद खाने के लिए बाहर जाते है. तुम तो जानती हो कि उस पार्टी में देर हो जाती है.”, राजीव ने एक अजीब सी मुस्कान के साथ जवाब दिया. वैसी मुस्कान जो आदमी शराब पीकर देता है.
“तुम शराब पीकर आये हो?”, शिखा और गुस्से से भड़कने लगी तो राजीव ने गुस्से से भरी शिखा को अपनी बांहों में पकड़ लिया.
“शिखा तुम तो मेरी पत्नी की तरह गुस्सा कर रही हो. शराब ही तो पि है. ऐसा क्या बुरा किया?”, राजीव ने कहा और शिखा को बांहों में लेने लगा.
“मुझे छोडो राजीव”, शिखा राजीव की बांहों से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी.
“तुम बीवी बनकर सचमुच बहुत खुबसूरत लग रही हो शिखा”, नशे में धुत राजीव शिखा को और जोर से पकड़ने लगा और उसे चूमने की कोशिश करने लगा. राजीव अब शिखा की नितम्ब को बहुत जोर जोर से अपने हाथ से दबा रहा था और अपने खड़े लंड को शिखा के शरीर से दबा रहा था.
“छोडो मुझे राजीव.”, शिखा खूब कोशिश कर खुद को छुडाने लगी. “मै लड़का हू राजीव. तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते.”, शिखा गिडगिडाने लगी.
पर राजीव कहाँ मानने वाला था. उसने शिखा को और मजबूती से पकड़ लिया और उसकी साड़ी पर हाथ फेरते हुए शिखा के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर बोला.
“हाँ तुम लड़के हो. पर तुम किसी लड़की से कम नहीं हो डार्लिंग.”, राजीव हँसने लगा. शिखा/शेखर का चेहरा अब लाल हो गया था.
“डार्लिंग मैं कबसे तुमको प्यार करना चाहता हूँ. तुम इस तरह मुझसे दूर न भागो.”, राजीव शिखा से कहने लगा.
“राजीव प्लीज़.. मैं तुमसे भीख मांगती हूँ.”, शिखा सचमुच राजीव के सामने कमज़ोर पड़ गयी थी क्योंकि राजीव जो भी हो एक मजबूत राजपूत मर्द था जिसकी गिरफ्त से छूटना शिखा के लिए मुश्किल था.
राजीव ने ज़बरदस्ती शिखा को बिस्तर पर उल्टा लिटाया और उसकी साड़ी उठाने लगा. उसके पेटीकोट के अन्दर हाथ डालकर शिखा की पेंटी उतारने लगा. शिखा के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे राजीव ने अपने एक हाथ से मजबूती से पकडे हुए था. और वहां शिखा असहाय ही लेटी हुई थी जिसकी पेंटी अब उतर चुकी थी और साड़ी पेटीकोट राजीव ने कमर तक उठा लिया था.
“नहीं राजीव”, शिखा एक बार फिर बोली.
“डार्लिंग. तुम चिंता मत करो. तुम्हे भी मज़ा आएगा. मैं धीरे धीरे…”, राजीव ने कहा और उसने शिखा/शेखर की गांड में अपना लंड डाल दिया. शिखा के मुंह से एक धीमी सी दर्द भरी कराह निकली. पेटीकोट पहनकर शिखा सचमुच अब एक औरत की मुश्किलों को खुद महसूस कर रही थी. और राजीव अपना लंड शिखा की गांड में जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा. बेचारी शिखा अब कुछ और नहीं कर सकती थी. और वो बस इस बुरे समय के ख़तम होने का इंतज़ार करने लगी....!
जब राजीव ने अपनी हवस पूरी कर ली तब वो शिखा के बदन से उठकर अलग हुआ और शिखा को उल्टा पलट कर लिटा दिया. “मैं तुम्हे भी खुश करूंगा मेरी शिखा डार्लिंग.”, राजीव ने कहा और एक बार फिर शिखा की साड़ी उठाकर शिखा के लंड को हिलाने लगा. एक कमज़ोर औरत सा अनुभव करती हुई शेखर का लंड इस वक़्त कैसे खड़ा होता भला? और ऐसे ही कोशिश करते करते राजीव वहीँ उसकी गोद में सो गया. और शिखा वहां बस लेटी रही.
आखिर में उसने 'पेटीकोट वाले लड़के' होने का सबसे बुरा रूप देख ही लिया था. शेखर अब एक औरत होने के सबसे बड़े सुख और दुःख दोनों को समझ चूका था.
जो शेखर के साथ हुआ उसके बाद उसके शरीर के उस हिस्से में दर्द होना स्वाभाविक था. अब तो उसकी चाल भी बदल गयी थी. उस दर्द की वजह से वो पैर फैलाते हुए चल रहा था. किसी तरह उस दर्द के साथ उठकर अपने मर्दाने कपड़े पहनकर रात के अंधेरे में इतनी दूर निकल गया कि उसकी परछाई भी किसी को दिखाई ना दे।
समाप्त..
जिला भाटिण्डा, पंजाब, में एक सिख महेंद्र सिंह, वो जब जब अपने बेटे के बारे शराब् पीते हुए सोचता तो खुद को कोसता और कहता कि साला उस रात मैने कॉकटेल नही पी होती तो ये ऐसी "औलाद" पैदा नही होती।
महेंद्र सिंह अपनी पत्नी सरनाम कौर
और इक्लौते बेटे शेखर के साथ खेतीबाड़ी कर चैन से गुजर बसर करता था, समय के साथ साथ उसका बेटा भी बड़ा हो रहा था!
" अमूमन सिख/सरदारों के बच्चे लंबे तगड़े, हट्टे कट्टे, बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूछ, सर पर पगड़ी बांधे आम तौर पर देखने को मिलते है। लेकिन महेंद्र सिंह का बेटा इसके उलट था।
उसका बेटा शेखर, गोरा, सुंदर बड़ी-बड़ी क़ाली आँखे, तीखे नैन नकश्, छरहरा बदन, लड़कियों के तरह चिकने हाथ पैर, शरीर पर सर के बालों के जूड़े के अलावा चेहरे पर दाढ़ी मूंछ के रोये तक नही आये थे। उसकी आवाज में भी वो अन्य सरदारों के लौंडो की तरह भारीपन नही था, उसकी आवाज लड़की की तरह सुरीली पतली होने की वजह से सभी को भ्रमित सी कर देती।
सर पर बंधे जूड़े / पगड़ी को खोल कर अगर सिर्फ उसके चेहरे को कोई देखे तो उसे एक खूबसूरत अप्सरा की तरह दिखाई दे। अपने इक्लौते बेटे की यही शारीरिक रूप और बनावट सरदार और सरदारनी की सबसे बड़ी चिंता का विषय बनी हुई थी।
शेखर का एक पक्का दोस्त था सिराज दोनों जिगरी यार थे। दोनों ही बड़े शरारती थे, शेखर की लड़कियों की तरह आवाज होने की खूबी का फायदा दोनों दोस्त मजे मस्ती के लिए खूब उठाते। जब कभी ये किसी भीड़ भरे माहौल में ये गुजरते तो शेखर लड़कियों की आवाज निकाल कर prank करता और दोनों दोस्त खूब मजे लेते।
धीरे धीरे इन्होंने लड़कियों के फोटो लगा कर फर्जी सोशल मीडिया ID बनाकर लौंडो से दोस्ती करना शुरु किया उन्होंने कुछ नियम बनाये थे - सबसे पहले किसी दिल टूटी हुयी लड़की/स्त्री, की शायरी का स्टेट्स डालते। फिर लौंडो की request आना शुरू हो जाती, फिर ये उनसे थोड़ी देर चिट चैट में पूरी डिटेल पूछ लेते। इनके शिकार दिल टूटे आशिक, छोटी छोटी नोकरिया करने वाले, थकेले-अकेले टाइप के लड़के होते।
इन्होंने उन लड़को को बात करने का एक निश्चित समय दे रखा था। उनसे कहते कि ये मेरे घर का फोन है, सभी use करते है, तुम कोई मैसेज, काल मत करना जब मै फ्री होऊँगी तो सामने से मैसेज करूँगी। सुबह-सुबह 5-6 बजे गुड मॉर्निंग मैसेज कर बिंदास मजे से सोते। सुबह 5-6 बजे का लड़की का gm मैसेज पढ़ कर लौंडो का पूरा दिन ही बन जाता।
कभी कभी शेखर फोन पर अपना नाम 'शिखा' बता कर लड़कियों की आवाज में बात करता और उनसे पेटीम के QR भेज पैसे ऐंठता। रकम कोई ज्यादा नही होती तो ठगे गए लोंडे अपना चूतिया कटवा कर बस चुप हो कर किसी से कोई शिकायत नही करते। इनके झांसे में कई बार अधेड़ उम्र के लोग भी फँस जाते...! ऐसे ही इनकी मस्ती भरी जिंदगी ऐश से गुजर रही थी।
कुछ महीनों बाद इनके के झांसे मे एक राजस्थान का एक 'सनकी राजपूत' लड़का 'राजीव' आ गया। बिना मांगे ही 25-50 हजार रुपये उसने दो तीन दिन की 5-6 घंटे की चॅटिंग में इन्हे दे दिये। वो एक दिल टूटा आशिक था। और उसे शिखा/शेखर से बात करते हुए बड़ा सुकून मिलता।
सिराज ने शेखर को राजीव के साथ अब बातें बंद कर ब्लॉक करने को बोला, लेकिन ज्यादा पैसे के लालच मे उसने सिराज की बातों को अनुसुना करना शुरु कर दिया। और राजीव के साथ फोन पर वॉइस काल में बात करना शुरु कर दी। फलस्वरूप राजीव ने उसके खाते में 1-2 लाख रुपये, महंगी महंगी ड्रेस और गिफ्ट के लिए रुपए देना शुरु कर दिया।
और एक दिन राजीव ने उसे वीडियो काल पर बात करने को कहा, शिखा/शेखर मना नही कर पाया और उसने उस रात अपने सर के जूड़े को खोल कर अपने चेहरे को बालों के साये में आधा अधूरा दिखाते हुए बात की। शिखा/शेखर के बालों के साये में आधे अधूरे चेहरे पर ही राजीव इतना मोहित हो गया कि उसने शिखा/शेखर को शादी का प्रस्ताव दे दिया।
शादी का प्रस्ताव सुनकर शेखर को झटका लगा, और उसने फोन काट दिया वो समझ गया, उसका बहुत ही जल्द पर्दाफ़ाश होने वाला है और वो बड़ी मुसीबत में फसने वाला है। और राजीव से बात करना बंद कर दिया। लेकिन उसका no. ब्लॉक नही किया। उसके मेसेज आते उन्हे पढ़ता लेकिन जबाब नही देता।
उधर मैसेज का जबाब न मिलने से राजीव की हालात खराब हो रही थी, और वो फिर से किसी दिल टूटे आशिक की तरह बहुत ही दुखी रहने लगा। राजीव के माँ बाप खुले विचारों वाले थे अपने जवान बेटे को इस हालत में देख कर उन्होंने राजीव को एक दिन समझाया कि तुम इस तरह घुट घुट क्यों जी रहे हो। तुम एक 'राजपूत' हो अगर उस लड़की से सच्चा प्यार करते हो और वो भी तुमसे प्यार करती हैं तो जाओ उसे 'भगा' कर 'शादी' कर यहाँ ले आओ। हम कानून-पुलिस सब से निबट लेंगे।
राजीव बाप के द्वारा भरे हुए जोश के साथ तुरंत बैंक खाते के माध्यम से शिखा/शेखर का घर पता निकाल लिया और चल दिया अपनी fortuner गाड़ी लेकर पंजाब अपनी 'जान' से मिलने।
सुबह करीब 9-10 बजे वो शेखर के घर पहुँच गया। और किसी फिल्मी हीरों की तरह बेधड़क शेखर के घर में घुस गया। शेखर के बाप से जब उसकी बात हुयी तो उन्होंने बताया कि उनके तो कोई बेटी,है ही नही, आप गलत पते पर आये हो। ये सुन कर राजीव सोच में पड़ गया और ये सोच कर घर से बाहर आकर खड़ा हो गया कि हो सकता, गलत पते पर आ गया हू ... वो बड़ी मायूसी से शेखर के घर की ओर देख रहा था।
नीचे घर में ये सब ड्रामा चल रहा था उस वक्त शेखर छत पर नहा रहा था। जब वो नहा कर अपने खुले बालों को सुखाते हुए जैसे ही छज्जे से नीचे झाँका तो राजीव और शेखर ने एक दूसरे को देख लिया।
राजीव भागता हुआ वापस घर में घुस गया और शेखर नीचे अपने कमरे में दरवाजा बंद कर छिप गया। राजीव दरवाजे को जोर जोर पीट्टते हुए 'शिखा दरवाजा खोलो' कहने लगा।
ये शब्द सुनते ही शेखर के माँ बाप समझ गये हो गया कांड, लग गये लोंडे.. शेखर जो इतने दिनों से ऐश भरी जिंदगी जी रहा था उसकी वजह उन्हे समझ आ गयी थी... उनका बेटा लड़को को लड़कियों की तरह बात कर चूतिया काट रहा था। उन्हे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या कहे और क्या करे...????
कुछ देर बाद शेखर ने दरवाजा खोला...और कमरे से बाहर आया !
राजीव उसे एकटक ऊपर से नीचे तक देख रहा था। मर्दाने पंजाबी सलवार कुर्ते में खुले बड़े बड़े बालों के साथ छरहरा बदन, चिकना चेहरा, गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखे, लड़कियों के तरह हाथ पैर...अगर उसके दो सुडॉल् स्तन् लगा दिये जाये पूरी तरह लड़की दिखे।
इधर चेहरे पर डर के साथ शेखर भी, राजीव को देख रहा था।
राजीव को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो क्या कहे और क्या करे। वो बड़ी जोर से हँसने लगा, साला में जिसे लौंडिया समझ कर प्यार करता रहा वो तो लोंडा निकला... दुनिया का सबसे बड़ा चूतिया हू मै। एक लड़का मेरा चूतिया काट कर हजारों-लाख रुपये मेरे से लेता रहा और मै देता गया, बिना ये जाने कि वो कौन है।
राजीव को शेखर से ज्यादा गुस्सा खुद पर आ रहा था। उसे पैसों की फिकर नही थी, उसे इस बात का डर लग रहा था कि उसके बाप और मेवाड के लोगों को पता चलेगा कि 'राजपूत परिवार का एक लड़का' जिसको पागलो की तरह प्यार करता था वो, लड़की नही लड़का है। और राजपूतों को लोंडा 'गांडू' है...???
काफी देर हँसने-रोने के बाद राजीव बोला ना ही मुझे कोई पुलिस केस करना है और ना ही पैसे चाहिए.... मुझे बस अपने बाप और मेवाड की नजरों में जलील नही होना है। अब मेरे पास दो ही रास्ते है, पहला कि राजपूतो की तरह अपनी शान और आन के लिए तुम सब को गोली मार दू.... किसी को कुछ भी पता ही नही चलेगा।
और बेटा दूसरा... शेखर के बाप ने डरते हुए पूछा???
तुम शेखर.... शिखा जो भी हो लड़की बनकर अभी मेरे साथ मेरे घर चलो, दो तीन हफ्तों तक मेरे माता पिता के साथ मेरी पत्नी होने का ड्रामा करोगे? मैं उन्हें कह दूंगा कि मैंने तुमसे शादी कर ली है. और फिर २-३ हफ्ते बाद वापस यहाँ आ जाना । कुछ महीनो बाद मैं उन्हें कह दूंगा कि हमने डाइवोर्स ले लिया है. फिर वो मेरे पीछे नहीं पड़ेंगे.”,
“राजीव. ये कैसे हो सकता है? तुमको तो पता है कि मैं लड़का हूँ. एक असली लड़की नहीं हूँ मैं. उन्हें सच पता चल गया तो?”, शेखर ने कहा. 'इस तरह किसी को बेवकूफ बनाने का विचार अब उसे डरा रहा था' ?
“यार शेखर. किसी को कैसे पता चलेगा? तुम्हारे किसी भी लड़की की तरह इतने लम्बे घने बाल है. अभी तक चेहरे पर दाढ़ी मूंछ का रोवा तक नही है. और तुम अपनी आवाज़ को लड़की की आवाज़ में बदलने में एक्सपर्ट भी हो. एक बार खुद को आईने में देखो तो सही .. किसी को गलती से भी डाउट नहीं होगा कि तुम लड़की नहीं हो.
“बेटा शेखर .. प्लीज़ मान जाओ. नही तो ये सनकी राजपूत हम सब को अभी मार डालेगा। शेखर के बाप ने डरते हुए कहा।
अपने किये पर शर्मिंदा और माँ बाप की जिंदगी बचाने के लिए वो बोला ठीक है, मुझे मंजूर है।
ये सुनते ही राजीव की जान में जान आ गयी थी. लेकिन ये मर्दानी आवाज दोबारा मत बोलना आज से तुम एक पूरी तरह शिखा बन कर ही मेरे साथ रहोगे।
“मुझे पत्नी बनने के लिए ढेर सारी महँगी साड़ियाँ चाहिए!”, शेखर हँसते हुए से बोला.
“बस इतनी सी बात. तुम्हे जितनी साड़ी पेटीकोट लेना है ले लेना। हम यहाँ से सीधे दिल्ली जायेंगे, तुम्हे जो चाहिए खरीद लेना. हमारे पास बस १ दिन है तैयारी के लिए. हम समय व्यर्थ नहीं कर सकते.”, राजीव ने कहा.
बेचारा शेखर… उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस बात को लेकर खुश हो या फिर चिंतित. पर अब तो उसने पत्नी बनने के लिए हाँ कर दी थी।
कुछ घंटो बाद वो दिल्ली पहुँच गए पर इस वक़्त शिखा बनकर नहीं शेखर बनकर सीधा वो एक होटल चले गए.
“राजीव.. मेरे ख्याल से अच्छा होगा कि शौपिंग के लिए जब हम जाए तो मैं शिखा बनकर चलू तुम्हारे साथ. वरना एक आदमी बनकर अपनी साड़ी के टेस्ट बताने में मुझे संकोच भी होगा और दूकान वाले भी मन ही मन डाउट करेंगे.”, शेखर ने राजीव से कहा.
“जैसा तुम्हे ठीक लगे. वैसे भी अच्छा होगा कि हम दोनों अब पति-पत्नी की तरह बर्ताव करना शुरू कर दे तो मेरे माँ बाप के सामने हम रेडी रहेंगे. वैसे भी तुम्हारे अलावा किसी लड़की के साथ मैंने समय नहीं बिताया है. मुझे पता भी नहीं कि पत्नी के साथ कैसे रहते है. मैंने कभी उस तरह से सोचा नहीं न.”, राजीव ने कहा.
बिना समय व्यर्थ किये शेखर ने बाथरूम जाकर कपडे बदले और शिखा के रूप में आ गयी. उसने एक मॉडर्न कुर्ती पहनी थी लेग्गिंग्स के साथ और हाथ में एक मैचिंग क्लच भी था जिसे उसने एक बड़े पर्स में रख दिया. और एक हल्का सा नेचुरल लुक देने वाला मेकअप किया था.
बाथरूम से शिखा बाहर आई तो राजीव उसे देखते रह गया और बोला, “क्या बात है मेरी पसंद इतनी बुरी नही है? ये कपडे और सामान बड़े अरमानो के साथ तुम्हारे लिए ही लाया था?”
“डिअर… इस कुर्ती के साथ तो मैं चप्पल भी पहन सकती हूँ.”, शिखा ने प्यार से राजीव से कहा।
राजीव ने भी बिना और सवाल किये शिखा का हाथ पकड़ा. दोनों कमरे से निकलने ही वाले थे कि शिखा ने रुकने को कहा. “क्यों क्या हो गया अब?”, राजीव ने पूछा.
“रुको तो ज़रा. अब मैं तुम्हारी पत्नी हूँ तो मुझे और तुम्हे साथ में पति पत्नी की तरह चलना चाहिए न?”, शिखा हँसते हुए बोली. और फिर राजीव की बांह को अपने दोनों हाथो से पकड़ कर उसके बेहद करीब आ गयी. इतने करीब कि उसके नकली मगर नर्म नर्म स्तन राजीव की बांह से दबने लगे.
पर शिखा के नकली स्तनों के स्पर्श के बावजूद राजीव पर ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा।
“अच्छा अब दूसरी दूकान चले?”, शिखा ने राजीव से कहा.
“दूसरी? अभी तुम्हे और भी शौपिंग करना है?”, राजीव ने अचरज से कहा.
“ऑफ़ कोर्स! अभी तो शौपिंग शुरू हुई. अभी तो बहुत सी साड़ियाँ खरीदनी है.”, शिखा बोली.
“कितनी और लेनी है?”, राजीव ने अपने सर पर हाथ रख थक हार कर पूछा.
“कम से कम १२ और! मैं एक भी साड़ी रिपीट नहीं करूंगी.?”
राजीव को अब समझ आ रहा था कि पति बनने का रोल करना तो उसके लिए भी मुश्किल होगा.
“आह.. खाना खाकर मज़ा आ गया. अब तो मैं बस कपडे बदलकर सोने वाला हूँ.”, राजीव ने होटल के कमरे में वापस आकर कहा. पूरे दिन में उन दोनों ने आज १८ साड़ियाँ खरीदी थी और फिर कई साड़ियों के लिए तो ब्लाउज भी सिलाने थे. इतने सारे ब्लाउज के डिजाईन चुनने में और टेलर को अपना नाप देने में ही शिखा ने २-३ घंटे लगा दिए थे. दिन भर की शौपिंग के बाद खाना खाकर अब दोनों थक हार कर वापस आये थे.
“ठीक है तुम कपडे बदल लो. मैं भी बदल लेती हूँ.”, शिखा तो जैसे पूरी तरह लड़की बनकर रम चुकी थी. इस वक़्त तो वो अपनी सभी साड़ियों को एक बार फिर निकाल कर बारीकी से निरिक्षण कर रही थी. कुछ देर के बाद शिखा बिस्तर पर से उठी और एक हाथ में नाइटी लेकर बाथरूम चली गयी.
जब वो बाथरूम से निकली तो राजीव डबलबेड के दुसरे सिरे पर लेट चूका था. शिखा तो अपनी नाईटी पहनी हुई बहुत ही खुबसूरत लग रही थी. आखिर उसकी नाईटी भी बड़ी सेक्सी थी. उसका बदन लगभग एक औरत की भाँती ही लग रहा था. पर फिर तुरंत ही उसने अपनी बांह के अन्दर हाथ डाला और अपनी ब्रा का हुक खोलकर ब्रा निकालने लगी. उसकी ब्रा बहुत सेक्सी थी. यदि राजीव की जगह कोई और आदमी होता तो वो तो उतावला हो जाता. पर फिर ब्रा के साथ साथ शिखा के नकली स्तन भी बाहर निकल गए और वो राजीव के बगल में आकर बैठ गयी.
“तुमने ब्रा क्यों उतार दी?”, राजीव ने पूछा.
“ओहो. दिन भर के बाद रात को हर लड़की बिना ब्रा के सोती है. कम्फ़र्टेबल लगता है.”, शिखा बोली और अपनी ब्रा और स्तनों को बगल के ड्रावर में रखने लगी.
बिना स्तनों के उभार के भी शिखा एक रूपमती औरत लग रही थी. पर कुछ और भी था जो उसके स्त्री रूप से थोडा भिन्न था. उसकी नाईटी में निचे की ओर उसके लिंग का उभार दिख रहा था. नहीं वो तना नहीं था पर उभरा हुआ था.
“तुमने पेंटी भी नहीं पहनी है?”, राजीव ने पूछा.
“नहीं… नाईटी में मुझे खुला खुला सोना अच्छा लगता है. वैसे भी सब कुछ तो ढका हुआ है फिर पेंटी की क्या ज़रुरत? मैं तो कहती हूँ तुमको भी कभी नाईटी ट्राई करनी चाहिए राजीव”, शिखा मुस्कुराकर बोली और फिर लेटकर रजाई के अन्दर घुस गयी.
राजीव मन ही मन कुछ सोचते हुए पलटकर गुड नाईट कह कर सो गया. वो बहुत थक गया था. अब कुछ न ही सोचे तो अच्छा है. पर उसे इस वक़्त भी एहसास हो रहा था कि पत्नी साथ हो तो जीवन कैसे बदलता है. क्या वो सचमुच ये झूठ-मुठ की शादी में अपने माता पिता के सामने एक पति होने का नाटक कर सकेगा? शेखर तो जैसे पत्नी के रोल के लिए पूरी तरह तैयार लग रहा था, पर क्या वो तैयार था?
आखिर वो घडी आ ही गयी थी. जब शिखा राजीव के घर उसकी पत्नी के रूप में कदम रखने वाली थी। अब तक तो सब ठीक था पर शिखा अब नर्वस होने लगी थी. अब तो उसकी असली परीक्षा शुरू होने वाली थी. उसने अपनी साड़ी को देखा और सोचने लगी कि यह साड़ी अपने सास ससुर के समक्ष पहली बार आने के लिए सही है या नहीं.
चेहरे से ही थोड़ी घबरायी हुई लग रही थी वो. शिखा ने एक भारी भरकम साड़ी पहनी थी जो एक बहु के लिए बिलकुल सही थी जो अपने सास ससुर से पहली बार मिलने वाली थी. हाथ में कंगन भी थे जो राजीव ने उसे खरीद के दिए थे. पर न जाने शिखा कहाँ खो गयी थी.
इस वक़्त अचानक से ही शिखा की जगह शेखर था. बाहर तन पर तो साड़ी थी पर मन एक पुरुष का था .. शेखर का. “ये क्या कर रहा है शेखर?”, उसके मन ने उससे कहा. जिस साड़ी में शिखा इठलाती हुई आई थी और जो गर्व से अपने बड़े से मंगलसूत्र को पहनकर पत्नी बन इठला रही थी, उसी औरत की जगह अब शेखर था…
एक आदमी जो उस साड़ी को पहनकर बहुत असहज महसूस कर रहा था. वजनी स्तन और ऊपर से भारी साड़ी शेखर को विचलित कर रही थी. इतना विचलित की शेखर उस साड़ी को उतारकर अब बस शर्ट पेंट पहनकर वहां से बस निकल जाना चाहता था. और उसके चेहरे से उसकी असहजता राजीव से छुपी न रही.
“क्या बात है शिखा. परेशां दिख रही हो तुम”, राजीव ने पूछा. “नहीं कुछ नहीं”, शेखर ने किसी तरह जवाब दिया. पर ये क्या उस खुबसूरत लड़की से इतनी मर्दानी आवाज़? वो आवाज़ सुनकर तो राजीव भी आश्चर्य में था. बीते दिन में शिखा के मुंह से उसने मर्दानी आवाज़ नहीं सुनी थी.
शेखर भी ये समझ गया था. उसने एक बार फिर लड़की की आवाज़ निकालने की कोशिश की और कहा, “नहीं कुछ बात नहीं है.” पर उसकी आवाज़ थोड़ी मर्दानी और थोड़ी लड़की का मिक्स थी. शेखर के अंग अंग में डर के मारे रोंगटे खड़े हो गए थे. इतने समय से शिखा के रुप में वो पूरी तरह औरत की तरह सोच रहा था पर अचानक ही वो एक बार फिर मर्द बन चूका था.
एक साड़ी पहना हुआ मर्द. जहाँ पहले स्त्री के हाव-भाव उसके लिए बिलकुल आसान थे अब वो सिर्फ एक औरत होने का नाटक करने की कोशिश कर रहा था. वो कोशिश करता रहा कि एक बार फिर शिखा वापस आ जाए पर वो वापस नहीं आई. एक मर्द राजीव को अपने पति के रूप में देखकर उसे खुद से शर्म आने लगी कि वो इस बात के लिए तैयार कैसे हो गया.
और तभी २ लोगो की आकृति उनके सामने दिखने लगी. राजीव के चेहरे के उत्साह को देखकर शेखर को समझ आ गया था कि यही उसके सास ससुर है. शेखर की कमर पर पेटीकोट और साड़ी उसे बहुत टाइट और भारी लगने लगी. वो असहज होकर अपनी साड़ी संभालने लगा. और सामने जो औरत उसकी ओर आगे बढती हुई दिखाई दी… उसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे किसी टीवी के सास बहु के सीरियल की तरह की एक अमीर घराने की सास उसके सामने निकल आई हो. भारी साड़ी, भारी गहने और गोल-मटोल शरीर...।
उस सास को देखकर तो शेखर अपने ससुर की ओर देखने की भी नहीं सोच पा रहा था. वो दोनों अब राजीव और शेखर के बहुत करीब थे. राजीव के इशारे से उसे समझ आ गया था कि उसे एक बहु की तरह झुककर अपने सास ससुर के पैर छूने है. पर हाय यह क्या… झुकते ही उसका एक नकली स्तन ब्रा से निकल कर सरककर बीच में आ गया. किसी तरह तो शेखर ने झुके झुके ही अपने स्तन को वापस सही जगह लाया और यही उम्मीद किया कि किसी ने उसे ऐसा करते देखा न हो.
“वाह मेरी बहु रानी तो बहुत सुन्दर है”, शेखर की सास ने उसके चेहरे को हाथ लगाते हुए कहा. बहुरानी शब्द सुनकर ही जैसे शेखर अन्दर ही अन्दर चिढ गया. पर उसकी सास इस वक़्त रुकने कहा वाली थी. उसने शेखर की साड़ी के पल्लू को शेखर के सर के ऊपर रखते हुए उसके पल्लू के दुसरे छोर को उसके ब्लाउज पर से ढंकते हुए शेखर के हाथ में पकडाती हुई बोली,
“तुम बहुत सुन्दर हो बहु. पर एक औरत और भी सुन्दर लगती है जब उसके सर घूँघट से ढंका हुआ हो!” जहाँ शेखर की सास यह कह कर मुस्कुरा रही थी वहीँ शेखर को अंदाजा हो रहा था कि अगले १४ दिन उसके लिए आसान नहीं होने वाले है.
फिर सभी वहां से सामान लेकर घर के अंदर जाने लगे. साड़ी और हील में शेखर को चलने में न जाने क्यों दिक्कत हो रही थी.
उसके भारी स्तन जो उससे जगह पर संभल नहीं रहे थे वो और मुसीबत बने हुए थे. साड़ी की गर्मी में उसके ब्लाउज में उसे बहुत पसीना भी आ रहा था. आखिर में परेशान होकर बाथरूम चला गया.
उसने झट से अपने ब्लाउज को खोला ताकि कुछ हवा लग सके और उसका पसीना सूखे. उसने बहुत सेक्सी ब्रा पहन रखी थी. पर अब ब्रा उसकी परेशानी का सबब थी. कम से कम कुछ देर के लिए उसके सीने को खुला खुला महसूस हुआ तो उसे अच्छा लगने लगा. वो अपना पल्लू हिलाते हुए अपने सीने पर हवा करने लगा.
वो ज्यादा देर बाथरूम में रह भी नहीं सकता था. उसने अपनी ब्रा का स्ट्राप को थोडा और जोर से कस दिया ताकि उसके स्तन जगह पर टीके रहे. १४ दिनों की उसकी मुसीबत की तो यह बस शुरुआत ही थी. उसने अपनी ब्लाउज के हुक लगाये और एक पल चैन की सांस लेते हुए वहीँ शीशे के सामने खड़ा रहा.
“बहु… ओ बहु..”, उसे बाहर से उसकी सास की आवाज़ आई तो उसने झट से अपने ब्लाउज को आँचल से ढंका और सर पे एक बार फिर घूँघट लेकर बाहर आ गया. आओ बहु खाना लग गया है।
“खाना खाकर.... बहु तुम अपनी सास से कुछ दिनों में मारवाड़ी खाना बनाना सिख लेना. असली मज़ा तो उसी में है.”, ससुर ने जब शेखर से कहा तो शेखर से कुछ और न कहा गया. खाने के बाद उसके सास ससुर अपने कमरे में आराम करने चले गए।
किसी तरह सास ससुर की सेवा करते हुए उसका दिन बिता और फिर थक हारकर वो कुछ कपडे जैसे पेटीकोट और ब्रा वगेरह जिसे उसने मशीन में धोये थे उन्हें लेकर कमरे में आया जहाँ राजीव बिस्तर पर आराम से लेटा हुआ था. उसने उन कपड़ो को बिस्तर पर रखते हुए राजीव से कहा,
“सुनो तुम इन कपड़ो को तह करने में मेरी मदद करोगे प्लीज़?” बेचारी शिखा को दिन भर काम करते देख राजीव ने भी उसकी मदद करने की सोचा. और उन कपड़ो में सबसे पहले तो अपनी पत्नी की ब्रा को पकड़ा और बोला, “शिखा तुम्हारी ब्रा तो बहुत बड़ी है यार. और सुन्दर भी.”
राजीव की बात सुनकर शेखर खीज सा गया. और उसने एक दूसरी ब्रा उन कपड़ो से निकालकर राजीव को पकडाई. “ये तो बहुत ही बड़ी है यार.”, राजीव बोला. “हाँ… इसमें मेरे साइज़ के ३ औरतों के स्तन आ जायेंगे. तुम्हारी माँ की ब्रा है ये”, शेखर ने कहा.
शिखा की बात सुनते ही राजीव सकपका गया और वो ब्रा तुरंत उसके हाथ से छुट गयी. “ये मुझे देने की क्या ज़रुरत थी. तुम ही संभालो इन कपड़ो को.”, राजीव बोला.
“ठीक है.”, शेखर ने कहा. “मैं बाथरूम से कपडे बदलकर आती हूँ.”, उसने आगे कहा और अपना ब्लाउज उतार कर अलमारी से नाईटी निकालकर बाथरूम चला गया. न जाने क्यों आज राजीव का अपनी पत्नी शिखा के ब्लाउज को पकड़ने का मन कर गया. उसने उसे अपने हाथो में पकड़ा तो उसे ब्लाउज की आस्तीन में अन्दर पसीने से गिला धब्बा दिखाई दिया. बेचारी शिखा ने दिन भर मेहनत जो की थी.
भले शेखर एक औरत के रूप में औरतों वाले डीयो लगाए था पर राजीव ने जब उस ब्लाउज की आस्तीन को सुंघा तो उसे एक मर्दानी पसीने की गंध आई. वहीँ शेखर बाथरूम में साड़ी और पेटीकोट उतारकर नाईटी पहन रहा था. बिना ब्रा और बिना पेंटी के नाईटी पहनना आज उसकी मजबूरी थी. दिनभर टाइट ब्लाउज और भारी स्तनों और साड़ियों से वो आज़ाद होना चाहता था.
अब नाईटी में खुला खुला उसे बहुत अच्छा लग रहा था. कपडे बदलकर जैसे ही वो कमरे मे आया तो राजीव थोडा सकपका गया और उसने तुरंत ही अपने हाथ से ब्लाउज को साइड में रख दिया. पर शेखर इन सबसे अनभिग्य था और वो अपनी साड़ी पेटीकोट ब्लाउज वगेरह को बिना समेटे ही उठाकर एक कोने में रखकर सो गया.
उसके लिए अगला दिन और मुश्किल होने वाला था. उसी बिस्तर के दूसरी ओर राजीव कमरे की धीमी धीमी रौशनी में शेखर को नाईटी में उसकी नितम्ब को देख कुछ सोच रहा था. उसका मन कर रहा था कि वो शिखा की कमर को पकड़ कर थोडा सहलाए. पर बिना कुछ किये वो बेताबी में सोने की कोशिश करता रहा.
जब एक आदमी सुबह सुबह उठे तो उसे क्या होता है? यदि उसने अपने शरीर की उत्तेजना का अंत न किया हो तो सुबह सुबह उसका लिंग खड़ा होता है. और ऐसा ही हाल शेखर का था. उसकी नाईटी में उसका लिंग पूरी तरह से उसकी नाज़ुक नाईटी में तना हुआ था. वो अब भी नींद में था और शेखर नींद में आंहे भर रहा था और न जाने किन सपनो में खोया हुआ था.
पर तभी अलार्म बजा तो उसकी नींद खुली. उस वक़्त सुबह के ६ बजे थे. उसका लिंग तना हुआ था जिसको वो चाह कर भी छुपा नहीं सकता था. उसे एक बार फिर जल्दी से उठकर एक बहु के रूप में अपना दिन शुरू करना था. उसे अपने लिंग का एहसास था जिसकी वजह से उसी थोडा शर्म भी आ रही थी. फिर भी वो उठा और अपने लम्बे बालो को अपनी उँगलियों से सवारकर एक बालो का जुड़ा बनाकर अपने पैरो को अपने शरीर के करीब मोड़ कर अपने तने हुए लिंग को छुपाने की असफल कोशिश करने लगा. राजीव ये सब देख रहा था पर उसने कुछ कहा नहीं. “तुम इधर मत देखो जी.”, एक पल को तो जैसे शेखर के अन्दर शिखा वापस आ गयी थी जो शर्माते हुए बोल रही थी.
शर्माते हुए वो उठी तो उसके साथ उसका खड़ा लंड उसकी नाईटी को उठाकर उसे साथ उठ खड़ा हुआ. शिखा के मन करने पर भी राजीव उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था. शर्माती हुई शिखा बाथरूम में पहुंची. वो जल्दी से नाईटी उतार कर शावर में जा पहुंची. गरम पानी उसके लिंग पर बहने लगा तो वो उसे छूने लगी. पानी के असर से उसका लिंग का तनाव थोडा कम हुआ. फिर बालो को सुखाकर एक पेंटी और ब्रा पहनकर वो कमरे में आ गयी. राजीव अब भी उसकी पेंटी को घुर रहा था. पर उसे अनदेखा कर शिखा अपनी साड़ी पहनने लगी. एक बार फिर बहु बनने को तैयार.
सज्धज कर जब शिखा बाहर निकली तो उसकी सास पहले से ही तैयार बैठी हुई थी. उनको देखकर तो यकीन ही नहीं होता था कि कोई इतने सवेरे ऐसे तैयार भी हो सकता है. सास को देखते ही एक बार फिर शिखा न जाने कहाँ रफूचक्कर हो गयी और एक बार फिर रह गया था शेखर एक औरत के लिबास में. “माँ जी. मैं अभी नाश्ता बनाती हूँ आप सभी के लिए.”, शेखर ने घूँघट के साथ अपनी सास से कहा. तो सास मुस्कुरा दी और बोली, “हाँ चल. मैं भी तुझे जरा सिखाती हूँ कि मेवाड के परिवार की बहु कैसे नाश्ता बनाती है”
एक आदमी के लिए बहु बनना बहुत मुश्किल होता है. यदि इस वक़्त वो दिल से शिखा होती तो वो बड़ी खुश होती पर इस वक़्त तो शेखर था जो बहु होने का रोल अदा कर रहा था. नाश्ता बनाते हुए जाने अनजाने में उसकी सास के स्तन उसकी बांह को छुआ जाते थे. टेंशन में होते हुए भी उन स्तनों के स्पर्श से शेखर पर कुछ असर होने लगता. उसका दिमाग सोचने लगता कि उनके स्तन दबाकर कितना मज़ा आता.
उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए पर एक आदमी का दिमाग कुछ भी कभी भी सोच सकता है. उसकी साड़ी के अन्दर उसका लंड खड़ा होने लगा था. पर फिर भी किस्मत से भारी साड़ी और भारी पेटीकोट की वजह से उस लंड का उभार बाहर नहीं दिख रहा था.
सभी को नाश्ता कराने के बाद जब राजीव ऑफिस चला गया
तो शेखर की सास ने उससे कहा, “बहु.. चल मैं तुझे वो साड़ियाँ दिखाती हूँ जो मैं तेरे लिए लेकर आई हूँ.” “और फिर एक साड़ी मैं तुझे पहना भी दूँगी. तुझे मारवाड़ी तरह से साड़ी पहनना नहीं आता होगा न.”
हाय… यदि शेखर का लंड एक बार फिर खड़ा हो गया तो जब उसकी सास अपने हाथो से उसे साड़ी पहना रही होगी?, ये सोचकर ही शेखर की चिंता बढ़ गयी. पर उसके पास कोई चारा नहीं था. अन्दर कमरे में शेखर की सास ने उसे ढेर सारी साड़ियाँ दिखाई जिसमे से शेखर ने एक उस वक़्त पहनने के लिए पसंद की. वैसे तो सभी साड़ी एक से बढ़कर एक सुन्दर थी पर उसने जान बुझकर ऐसी साड़ी पसंद की जिसका पेटीकोट सबसे ज्यादा भारी था और जिसमे खूब सारी चुन्नटें थी. शायद इनके पीछे उसका लंड छिप जाए. नयी साड़ी पहनने के पहले शेखर बाथरूम में जाकर अपनी पेंटी के ऊपर २ पेंटी और पहन आया ताकि लंड पर काबू रख सके. और फिर उसने वो भारी पेटीकोट पहना. जितना वो अपने लंड के बारे में सोचता वो और खड़ा होने लगता.
फिर भी किसी तरह हिम्मत कर वो बाहर आया जहाँ उसकी सास अपने हाथ में साड़ी पकडे खड़ी थी. और फिर बिना समय व्यर्थ किये वो शेखर की कमर पर अपने हाथो से साड़ी लपेट कर ठूंसने लगी. शेखर का इस वक़्त बुरा हाल था. उसकी सास के उसकी कमर पे नाजुक स्पर्श से उसका लंड उफान पर था. किस्मत से पेटीकोट और ३ पेंटीयाँ उस उफान को काबू में रख पा रही थी. कब कब ये साड़ी पहनाना पूरा हो यह सोचकर ही उसके ब्लाउज के अन्दर उसके पसीने छुट रहे थे और ब्लाउज का अस्तर उस पसीने से भीग रहा था. कहीं उसकी सास को उसके पसीने की खुशबु न आ जाए वरना उसकी सास को शक हो सकता है.
इसी चिंता में जैसे ही उसकी सास ने साड़ी पहना कर उसके सर पर घूँघट रखा तो उस घूँघट को अपने हाथ से पकड़ कर शेखर की जान में जान आई. उसे आगे से इसी तरह से अच्छी तरह से साड़ी पहननी होगी क्योंकि वो दोबारा अपनी सास के द्वारा साड़ी पहनाने का रिस्क नहीं ले सकता था.
अब जब चैन की सांस वो ले चूका था तो खुद को आईने में देख वो अपने रूप पर इठ्लाने लगा. वो सचमुच बेहद सुन्दर मारवाड़ी बहु लग रहा था. शिखा एक बार फिर उस पर हावी हो रही थी जो अब उस रूप में गहरी सांसें ले रही थी.
शेखर इस वक़्त अपने रूप पर इठलाना चाहता था पर उसकी सास की उस पर नज़र उसे थोडा नर्वस कर रही थी. “बहु बस एक कमी लग रही है”, उसकी सास ने शेखर से कहा. “क्या कमी है माँ जी?”, उसने किसी तरह पूछा. अभी भी औरत की आवाज़ निकाल कर एक बहु की तरह बर्ताव करना शेखर के लिए मुश्किल था.
“मारवाड़ी बहु बिना नथ के पूरी नहीं होती. तूने अपने नाक में छेद क्यों नहीं करवाया है? हम लोग अभी जाकर तेरी नाक छिदा कर आते है.”, सास के मुंह से ये बात सुनकर शेखर के पैरो तले जमीं खिसक गयी.
शेखर ने कान में तो छेद कराये थे और क्योंकि लडको में भी ये फैशन होता है तो उसे कान के छेद से कोई प्रॉब्लम नहीं थी. पर नाक के छेद? अपनी सास को लाख समझाने के बाद भी उसकी सास नहीं मानी. बल्कि वो नाराज़ होने लगी थी. और इसी मजबूरी में शेखर अपनी सास के साथ शौपिंग मॉल आ गया, जहाँ अब वो अपनी नाक छिदने का इंतज़ार कर रहा था. वहां औरतों और लोगो के बीच वो भारी साड़ी पहने राजपूतो की बहु के रूप में बिलकुल अलग लग रहा था.
उसकी सास की वजह से उसे सर पर घूँघट भी रखना पड़ा था सो अलग. वहां लोग उससे तरह तरह के सवाल कर रहे थे. और वो अपना घूँघट और साड़ी संभाले उनके जवाब दे रहा था. भारी पायल और उसकी चूड़ियों की खनक और इस तरह से साड़ी पहने वो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. अब बस वो कैसे भी ये नाक छिदा कर वहां से जल्दी से जल्दी जाना चाहता था. कान के छेद कराने के अनुभव से तो वो इस दर्द से वाकिफ था. और फिर जैसे ही उसके नाक का छेद हुआ। सास ने पर्स से पैसे दिए और अपनी सास के साथ कार में वापस आ गया.
घर पहुँचते ही शेखर को एक बड़ी सी गोल नथ पहनाई गयी तो उसकी सास बेहद खुश हो गयी. पर अभी तो अध दिन ही गुज़रा था. बाकी पूरे दिन वो अपनी सास के साथ किचन में खाना बनाते रहा और अपनी सास और ससुर की सेवा करता रहा. नाक में दर्द की वजह से उसे बार बार अपनी नथ संभालनी पड़ रही थी. पूरी तरह औरत के दर्द से गुज़र रहा था शेखर.
किसी तरह दिन गुज़रा और रात को राजीव घर पर आये तो अपने पति और सास ससुर को खाना खिलाने के बाद शेखर अपने कमरे में आ गया. अपनी पत्नी को नथ पहने देख राजीव को बड़ा अच्छा लगा.
वहीँ शेखर जिसने सोचा था कि वो ये दिन शिखा बनकर ख़ुशी से गुजारेगा उसके लिए भी ये सब आसान नहीं था. वो शिखा की तरह बिलकुल महसूस नहीं कर पा रहा था. भले पूरे समय वो एक खुबसूरत बहु की तरह सजा होता था पर उसका मन बिलकुल आदमी की तरह ही सोच रहा होता था.
अगले दिन की शुरुआत भी कुछ अलग नहीं थी. सुबह से उठकर उसे बहुत सारा खाना बनाना था. शेखर की सास के कहने पर उसने आज और भी ज्यादा भारी साड़ी और पुश्तैनी भारी गहने पहनी हुई थी. इतनी भारी की उसकी मर्दानी कमर भी नाज़ुक लगने लगी थी और दर्द करने लगी थी. उसे राजीव पर गुस्सा भी आ रहा था कि वह तो ऑफिस चला जाता है पर शेखर को घर में अकेले ही बहु बनकर इतना सब कुछ करना पड़ता था.
रात को राजीव ऑफिस से घर आये तो बहुत देर हो चुकी थी. तब तक वो सिसकते हुए सो चुकी थी. नींद में कई बार दो शरीर एक दुसरे के पास आ जाते है. भले वो कुछ करे न.
ऐसा ही शेखर और राजीव के साथ हुआ था. सुबह जब उन दोनों की नींद खुली तो शेखर राजीव की बांहों में था. और राजीव का खड़ा लंड शेखर यानी शिखा की नितम्ब पर जोर से टकरा रहा था और राजीव के हाथ शेखर की रेशमी साड़ी पर थे और उसके होंठ शेखर की ब्लाउज में खुली हुई पीठ से लगे हुए थे. नींद खुलते ही जैसे ही शेखर को ये एहसास हुआ और वो ज़रा होश में आया तो वो झट से उठकर बिना कुछ कहे अपनी साड़ी संभालते हुए बाथरूम आ गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि किसी से कहे तो कहे क्या. ये औरत का रूप उसके लिए कितनी मुसीबत बन गया था.
शेखर और राजीव दोनों को पता था कि सुबह की उस अनजाने में नींद में हुई गलती से दोनों के बीच एक अनकहा टेंशन था. इस वजह से दोनों ने ज्यादा बातें नहीं की और राजीव अपने ऑफिस जल्दी ही चले गए. वहीँ शिखा घर पर अपने सास ससुर की बाकी दिन की तरह सेवा करती रही. शिखा की सास उससे दिन भर कुछ न कुछ करवाती रहती थी. मुश्किल से दोपहर में आधे घंटे की नींद का उसे मौका मिला था पर फिर उसकी सास की आवाज़ से उसे उठाना पड़ा था. उसकी नाक में नथ पहनकर अभी भी दर्द था.
पर पिछले कुछ दिनों में उसे लगने लगा था कि राजीव भी उसके शरीर की तरफ आकर्षित होने लगा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है. राजीव तो जानता है कि वो एक लड़का है. और उसके सामने एक लड़की और एक पत्नी बनकर रह रहा था. उसे ये नहीं समझ आ रहा था कि राजीव का किस वजह से आकर्षण है.
वैसे तो ये दिन शेखर/शिखा के लिए उतना बुरा नहीं था. सास ससुर की सेवा तो वो रोज़ की तरह ही कर रही थी. पर इस वक़्त तक शिखा के अन्दर छुपा हुआ शेखर इन सब से तंग आ चूका था.
और उस दिन जब राजीव ऑफिस से घर देर से पहुँच कर कमरे में आये तो शिखा का गुस्सा उन पर टूट पड़ा. “कहाँ थे तुम इतनी देर तक? मैं यहाँ दिन भर तुम्हारे माँ बाप की सेवा कर रही हूँ और तुम घर पर समय पर भी नहीं आ सकते?”, शिखा का चेहरा एक गुस्से से भरी पत्नी की तरह तमतमा रहा था.
“ओहो शिखा. तुम तो जानती हो कि आज के दिन हफ्ते में एक बार हम सब ऑफिस के बाद खाने के लिए बाहर जाते है. तुम तो जानती हो कि उस पार्टी में देर हो जाती है.”, राजीव ने एक अजीब सी मुस्कान के साथ जवाब दिया. वैसी मुस्कान जो आदमी शराब पीकर देता है.
“तुम शराब पीकर आये हो?”, शिखा और गुस्से से भड़कने लगी तो राजीव ने गुस्से से भरी शिखा को अपनी बांहों में पकड़ लिया.
“शिखा तुम तो मेरी पत्नी की तरह गुस्सा कर रही हो. शराब ही तो पि है. ऐसा क्या बुरा किया?”, राजीव ने कहा और शिखा को बांहों में लेने लगा.
“मुझे छोडो राजीव”, शिखा राजीव की बांहों से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी.
“तुम बीवी बनकर सचमुच बहुत खुबसूरत लग रही हो शिखा”, नशे में धुत राजीव शिखा को और जोर से पकड़ने लगा और उसे चूमने की कोशिश करने लगा. राजीव अब शिखा की नितम्ब को बहुत जोर जोर से अपने हाथ से दबा रहा था और अपने खड़े लंड को शिखा के शरीर से दबा रहा था.
“छोडो मुझे राजीव.”, शिखा खूब कोशिश कर खुद को छुडाने लगी. “मै लड़का हू राजीव. तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते.”, शिखा गिडगिडाने लगी.
पर राजीव कहाँ मानने वाला था. उसने शिखा को और मजबूती से पकड़ लिया और उसकी साड़ी पर हाथ फेरते हुए शिखा के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर बोला.
“हाँ तुम लड़के हो. पर तुम किसी लड़की से कम नहीं हो डार्लिंग.”, राजीव हँसने लगा. शिखा/शेखर का चेहरा अब लाल हो गया था.
“डार्लिंग मैं कबसे तुमको प्यार करना चाहता हूँ. तुम इस तरह मुझसे दूर न भागो.”, राजीव शिखा से कहने लगा.
“राजीव प्लीज़.. मैं तुमसे भीख मांगती हूँ.”, शिखा सचमुच राजीव के सामने कमज़ोर पड़ गयी थी क्योंकि राजीव जो भी हो एक मजबूत राजपूत मर्द था जिसकी गिरफ्त से छूटना शिखा के लिए मुश्किल था.
राजीव ने ज़बरदस्ती शिखा को बिस्तर पर उल्टा लिटाया और उसकी साड़ी उठाने लगा. उसके पेटीकोट के अन्दर हाथ डालकर शिखा की पेंटी उतारने लगा. शिखा के दोनों हाथ उसकी पीठ के पीछे राजीव ने अपने एक हाथ से मजबूती से पकडे हुए था. और वहां शिखा असहाय ही लेटी हुई थी जिसकी पेंटी अब उतर चुकी थी और साड़ी पेटीकोट राजीव ने कमर तक उठा लिया था.
“नहीं राजीव”, शिखा एक बार फिर बोली.
“डार्लिंग. तुम चिंता मत करो. तुम्हे भी मज़ा आएगा. मैं धीरे धीरे…”, राजीव ने कहा और उसने शिखा/शेखर की गांड में अपना लंड डाल दिया. शिखा के मुंह से एक धीमी सी दर्द भरी कराह निकली. पेटीकोट पहनकर शिखा सचमुच अब एक औरत की मुश्किलों को खुद महसूस कर रही थी. और राजीव अपना लंड शिखा की गांड में जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा. बेचारी शिखा अब कुछ और नहीं कर सकती थी. और वो बस इस बुरे समय के ख़तम होने का इंतज़ार करने लगी....!
जब राजीव ने अपनी हवस पूरी कर ली तब वो शिखा के बदन से उठकर अलग हुआ और शिखा को उल्टा पलट कर लिटा दिया. “मैं तुम्हे भी खुश करूंगा मेरी शिखा डार्लिंग.”, राजीव ने कहा और एक बार फिर शिखा की साड़ी उठाकर शिखा के लंड को हिलाने लगा. एक कमज़ोर औरत सा अनुभव करती हुई शेखर का लंड इस वक़्त कैसे खड़ा होता भला? और ऐसे ही कोशिश करते करते राजीव वहीँ उसकी गोद में सो गया. और शिखा वहां बस लेटी रही.
आखिर में उसने 'पेटीकोट वाले लड़के' होने का सबसे बुरा रूप देख ही लिया था. शेखर अब एक औरत होने के सबसे बड़े सुख और दुःख दोनों को समझ चूका था.
जो शेखर के साथ हुआ उसके बाद उसके शरीर के उस हिस्से में दर्द होना स्वाभाविक था. अब तो उसकी चाल भी बदल गयी थी. उस दर्द की वजह से वो पैर फैलाते हुए चल रहा था. किसी तरह उस दर्द के साथ उठकर अपने मर्दाने कपड़े पहनकर रात के अंधेरे में इतनी दूर निकल गया कि उसकी परछाई भी किसी को दिखाई ना दे।
समाप्त..