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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

Death Kiñg

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ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियां सदैव ही बेहद खूबसूरत होती हैं और यदि उन्हें देवनागरी लिपि में लिखा गया हो, तो उसका कोई मुकाबला हो ही नही सकता। वैसे तो मैं अधिकतर “एडल्टरी" सेक्शन से थोड़ा दूर ही रहता हूं, क्योंकि आज तक जितनी भी एडल्टरी कहानियां मैंने इस फोरम पर पढ़ी हैं, ज्यादातर में निराशा ही हुई। कारण, कहानी के नाम पर केवल एक ही चीज़ का होना... :sex: खैर, जितनी भी एडलटरी कहानियां मैने पढ़ी हैं, उनमें से यदि कोई सबसे भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है, तो वो यही है। कुछ महीने पहले ही इस कहानी पर नज़र पड़ी थी, परंतु जब ज्ञात हुआ के ये कहानी अधूरी छूट गई है, तो निश्चित ही काफी दुख हुआ, परंतु अच्छा लगा देखकर के आपने एक दफा फिर कहानी को शुरू कर दिया है, आशा है इस बार इसे अंजाम तक आप पहुंचा ही दोगे, वैसे भी अधूरी कहानियां आपके नाम के साथ मेल नही खाती...:D

कहानी की शुरुआत एक बागी लड़के के साथ हुई थी जो धीरे – धीरे पूरी तरह बदल गया है। वैभव ठाकुर, अर्थात इस कहानी का नायक, एक समय पर अपने पिता और अपने खानदान के नाम को मलिन करने का हर संभव प्रयास करने वाले लड़के में आए ये परिवर्तन निश्चित ही चौंका देने वाले हैं। परंतु कहीं न कहीं वैभव का ये “कायाकल्प" व्यर्थ ही नहीं हुआ है। 4 महीने भारी कष्टों को उठाने के बाद ही शायद वो उस सच्चाई को समझ पाया है जिस से वो वर्षों से भागता आया था। कर्तव्यबोध, यही एक ऐसा मार्ग है जो आवारा से आवारा व्यक्ति को कर्म के पथ पर लौटा देता है और निश्चित ही, वैभव को अपने कर्तव्यों का, अपने धर्म का बोध हो चुका है। वैभव के चरित्र में कितनी भी खामियां हों या कितने भी गुनाह उसने आज तक किए हों, परंतु उसे पूरी तरह गलत नही ठहराया जा सकता।

किसी के घर की इज्ज़त के साथ खेलना, वैभव जैसे को शोभा तो नही देता, परंतु इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता के उसने आज तक जितनी भी लड़कियों – औरतों को भोगा है, वो उनकी सहमति से ही भोगा है, ना कि उनके साथ किसी प्रकार की ज़ोर – ज़बरदस्ती करके... रागिनी की ओर वैभव का आकर्षित होना, एक बार फिर इसे जायज़ नही ठहराया जा सकता,आखिर भाभी को सदियों से मां समान ही माना गया है... परंतु वैभव के इन कृत्यों और सोच की जड़ें काफी पुरानी हैं, बंदिशें तो शायद किसी को भी पसंद नही होती, परंतु कोई – कोई ऐसा भी होता है जो थोड़ी भी रोक – टोक बर्दाश्त नहीं कर पाता, वैभव उन्ही में से एक है। बचपन से ही इसी सोच के साथ वो बड़ा हुआ, और फिर मेरी दृष्टि में अपने पिता द्वारा लगातार अंतराल पर मिलने वाली सज़ा के कारण वो ढीठ भी हो गया। जब कोई नवयुवक इस स्थिति में पहुंच जाता है, जहां ना उसे अपने माता – पिता का भय रहता है और ना ही उनके सम्मान की परवाह, अक्सर ऐसे में वो वैभव समान ही दिखने लग जाता है।

वैभव की दृष्टि अपनी चाची, मेनका पर भी बिगड़ी अवश्य थी, परंतु साथ ही उसे अपनी गलती का भान भी हो गया, परंतु क्या ये केवल एक ही बार के लिए था? शायद नहीं, एक बार संभोग की लत लग जाने के बाद, वैभव को उसके अभाव में इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। परंतु, देखने योग्य रहेगा के क्या वो अपनी नियत अपनी घर की महिलाओं पर भी खराब कर लेगा, या अभी उसमें कुछ मर्यादा शेष है... रागिनी के प्रति आकर्षण महसूस करने की बात को यदि दरकिनार कर दिया जाए, तो ये तो स्पष्ट है के वैभव पूरे दिल से उसका सम्मान करता है, और उसके दुख को महसूस भी कर पाता है... खैर, वैभव के चरित्र में आए इन आकस्मिक बदलावों से जहां दादा ठाकुर और जगताप बेहद खुश हैं, वहीं साहूकारों का हैरान – परेशान होना भी पूरी तरह अपेक्षित ही है। मणिशंकर और उसके भाइयों के चरण स्पर्श करना, यहां तक की उनके बेटे, जो वैभव से आयु में बड़े हैं, उन्हें यूं सम्मान देना, आसानी से हज़म हो जाने वाले काम नही किए हैं वैभव ने पिछले कुछ समय में। निश्चित ही इन बदलावों का गहरा प्रभाव होने वाला है, ठाकुरों पर, साहूकारों पर, गांव पर और उस सफेदपोश पर भी।

मुरारी की हत्या इस कहानी के प्रथम रहस्य के रूप में सामने आई, जिसका इल्ज़ाम वैभव के माथे आया। हालांकि, कुछ ही अंतराल के बाद जगन और बाकी सभी को भी पूर्ण विश्वास हो गया था के वैभव का इस सबसे कोई नाता नहीं था। हां, एक तरह से नाता था शायद,आखिर मुरारी की हत्या वैभव और ठाकुरों से रंजिश और बैर का ही नतीजा थी। खैर, इस मामले में पुख्ता रूप से कोई जानकारी निकलकर सामने नही आई है, परंतु फिलहाल के लिए वही सफेदपोश संदेह के दायरे में खड़ा नज़र आता है। दरोगा को भी अभी तक कोई पुख्ता सबूत या कोई कड़ी हाथ नही लगी है, परंतु जिस प्रकार से पिछले कुछ समय में उस सफेदपोश की योजनाएं असफल हुई हैं, बौखलाहट में गलती हो सकती है, जिसका फायदा दरोगा को उठाना होगा। जगन भी शुरुआत में रहस्मयी सा लगा था, कहीं न कहीं उसपर भी संदेह बना ही हुआ था, मुरारी के कत्ल को लेकर, हालांकि फिलहाल के लिए जगन सकारात्मक किरदार लग रहा है, परंतु वो मुरारी का कातिल हो सकता है, अभी भी मेरा यही मानना है। खैर, मुरारी की तेरहवीं सही तरीके से हो गई, जिसमें वैभव का ही हाथ था। देखते हैं मुरारी के कत्ल और कातिल की हकीकत कब तक बाहर आती है।

रूपचंद्र ही एक ऐसा साहूकारों से जुड़ा व्यक्ति है, जो अभी तक सबसे ज्यादा संदेहपूर्ण रहा है। हां, गौरव का नाम भी सामने आया है, परंतु रूपचंद्र काफी शातिर और रहस्यमयी जान पड़ता है। पहले अनुराधा के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास, और फिर रजनी के साथ उसके संबंध, यहां गौर करने वाली बात ये है की, रजनी और रूपचंद्र के बीच हो रहे संभोग वाले दृश्य, में कहीं ऐसा नही लगा के रजनी किसी दबाव में आकर वो सब कर रही हो, अलबत्ता यही प्रतीत हुआ को उस सबमें रजनी की पूर्णरूपेण सहमति थी। अब इनके संबंध की शुरुआत कैसे हुई ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा, परंतु एक बात साफ है के रजनी और उसकी सास प्रभा,दोनो ही भरोसे के काबिल नही हैं, और इनमें से किसी पर भी भरोसा करना वैभव के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। खैर, रूपचंद्र का निशाना वैभव तो है ही, परंतु वो कुसुम के जरिए वैभव से बदला लेना चाहता है, कारण, उसे रूपा और वैभव के संबंधों के विषय में सब ज्ञात है। परंतु यहां सवाल ये उठता है की उसे सब ज्ञात हुआ कब, और उसके बाद भी उसने कुछ किया क्यों नहीं? और क्या अब, जब साहूकारों और ठाकुरों के संबंध बदले हैं, तब भी रूपचंद्र कुसुम को अपना निशाने बनाए रखेगा? क्या अब भी वो वैभव से सीधे तौर पर जंग करने की कोशिश करेगा, या फिर...?

चेतन और सुनील को साहूकारों और मुंशी के परिवार के पीछे लगाने का वैभव का फैसला कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते वो दोनो भी वैभव के खिलाफ ना हों। वैसे भी ऐसे दोस्त, कभी भी सच्चे नही होते, वैभव से दोस्ती केवल लड़कीबाजी और आर्थिक विकास का ही परिणाम है, वरना मुझे नही लगता के वैभव के जीने – मरने से इन्हे कोई अंतर पड़ेगा। बात करें रूपा को तो, निश्चित ही बेहद सुंदर चरित्र के रूप में सामने आई है वो। शुरुआत में तो वैभव की पहचान और उसके चरित्र को जानकर, रूपा ने उससे दूरी बना ली थी, परंतु धीरे – धीरे वो वैभव से प्रेम करने लगी और इसी प्रेम में बहकर रूपा ने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया। यहां यदि रूपा को भी संदेह की नज़र से देखा जाए तो, कहीं भी ऐसा प्रतीत नही होता के वो भी वैभव के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हो सकती है। फिलहाल के लिए तो नही,आगे चलकर...? या शायद हो भी सकता है, के रूपा अब भी वैभव के ही विरुद्ध हो, जब वैभव ने साहूकारों के प्रति अपना संदेह ज़ाहिर किया था, तब उसके बदले भाव, रूपचंद्र को उसकी सच्चाई ज्ञात होना, देखते हैं इन सबका क्या अर्थ निकलता है...

वैसे इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता के वैभव के लिए रूपा निश्चित ही और लड़कियों से भिन्न है, शायद अनुराधा अभी के लिए वैभव के जीवन में मौजूद सबसे खास लड़की है (परिवार से अलग), परंतु निश्चित रूप से रूपा के प्रति वैभव के अंदर कुछ अलग भाव स्पष्ट नज़र आते हैं... क्या वो भी रूपा से प्रेम कर बैठा है, या नहीं, देखना रोमांचक रहेगा।

दादा ठाकुर, शायद अभी तक इस कहानी का सबसे रौबदार और सशक्त किरदार, वैभव को गांव से निष्कासित करने की जो वजह उन्होंने वैभव को बताई वो अर्धसत्य है, इसमें कोई दोराय नहीं। साहूकारों और ठाकुरों के बीच की अनबन की असली वजह भी अभी तक वैभव को नही बताई गई है। और निश्चित ही कई ऐसी बातें होंगी, जो दादा ठाकुर सबसे छुपाते फिर रहें होंगे। वो तो भला हो रागिनी का,वरना अभिनव को लेकर भविष्यवाणी के बारे में भी वैभव कभी ना जान पाता। और इसी प्रकार के किरदारों से मुझे सख्त चिढ़ है, जब तक गर्दन पर तलवार और सर पर मौत ना आ जाए, इनका मुंह नही खुलता। खैर, देखते हैं, कब ये सारा सच वैभव के सामने प्रकट करेंगे। जगताप का किरदार अभी तक अपने बड़े भाई के लक्ष्मण जैसा ही रहा है, जिसके लिए दादा ठाकुर ही सर्वोपरि है, वैभव के लिए भी वो अपने भीतर प्रेम भाव रखते हैं, आगे चलकर इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है।

रागिनी... अक्सर ही सुंदरता के प्रति आकर्षण हो ही जाता है, और वैभव को भी रागिनी, जिसका विवरण अब तक सुंदरता की मूरत के रूप में मिला है, उसके प्रति आकर्षित होने में देर नहीं लगी। रागिनी अभी तक एक बेहद सहनशील और सुलझी हुई किरदार के रूप में सामने आई है। अपने पति के लिए अल्पायु की भविष्यवाणी, घर में चल रही चीज़ें,वैभव का घर से कुछ समय पहले तक निर्मोही होना,और अभिनव का उसके प्रति रूखा व्यवहार... सब कुछ सहकर भी वो केवल और केवल अपने परिवार के लिए ही सोच रही है, और अपने दुख को अपने अंदर ही ज़ब्त कर, मुस्कुराने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कहीं न कहीं अचानक से ही वैभव और रागिनी के बीच आया नजदीकियां, संदेहपूर्ण तो थी। लगा था के शायद रागिनी के मन में भी वैभव के प्रति आकर्षण है, और फिर उसका वैभव से ये कहना के उसने खुद भी मन ही मन पाप तो किए हैं, लगा जरूर था के इसी ओर रागिनी का इशारा था। परंतु वैभव को अपने छोटे भाई के रूप में देखने वाली बात से उसने सभी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया। हालांकि, अब भी उसके “मन की उन बातों" को जानना रोचक रहेगा। देखते हैं रागिनी और अभिनव का आगे चलकर क्या होता है।

अभिनव भी अभी तक पूरी तरह खुलकर सामने नही आया है, होली वाले दिन शायद वो नशे में वैभव से वो बर्ताव कर बैठा, पर अगले ही दिन उसने वैभव पर हाथ भी उठा दिया। अभिनव का व्यवहार सभी के लिए रूखा हो चुका है। यहां तक की अपनी पत्नी के लिए भी। इसका कारण उसके अल्पायु होने के भविष्यवाणी हो सकती है। परंतु फिर उसका व्यवहार, विभोर और अजीत के लिए सामान्य क्यों है? सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो मेरे अनुमान से यही कहानी बनती है की अभिनव की कोई कमज़ोर नस, विभोर और अजीत के हाथ लगी हुई है और उन्ही दोनो के कहने पर वो इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है। उस रात वैभव ने उसे विभोर – अजीत के कमरे से निकलते भी देखा था। पर यहां एक और सवाल खड़ा हो जाता है। रात के वक्त तो, वो दोनो चिलगोजे, कुसुम के कमरे में होते हैं और कुसुम उनके कमरे में। तो या तो वो अपना कार्यक्रम समेट कर वापिस पहुंच गए होंगे या अभिनव कुसुम से ही मिलने गया होगा? पर कहीं न कहीं यही अंदेशा है के वो दोनो ही अभिनव को किसी चीज़ के जरिए मजबूर कर रहें हैं।

यहीं पर यदि दोनो भाइयों की बात की जाए तो दोनो अव्वल दर्ज़ के चूतियों के रूप में सामने आते हैं। वैसे तो वैभव हमेशा ही सबसे अलग रहा है पर फिर भी एक बार को मान लिया जाए के किसी कारण वो वैभव से नफरत करते हैं। पर कमीनों ने अपने गुनाहों में कुसुम को भी घसीट लिया। यहां तक की किसी वजह से उसे मजबूर भी कर रहें हैं, और हद तो ये है की उस कमीनी नौकरानी को भी वो वजह शायद पता है। अर्थात, वैभव को नुकसान पहुंचाने के लिए दोनो लेदड़ों ने अपनी ही सगी बहन की कमजोर नब्ज़ एक नौकरानी के हाथ में थमा दी? और वो दो कौड़ी की नौकरानी अब कुसुम पर रौब झाड़ रही होगी। बिना किसी संदेह के ये दोनो सजा, और भयंकर सजा के पात्र हैं। उस नौकरानी को भी जल्द ही वैभव को कब्जे में कर लेना चाहिए, वो एक बढ़िया जरिया बन सकती है विभोर और अजीत की हकीकत जानने का।

कुसुम अभी तक बहुत ही चंचल और साथ ही साथ, एक समझदार लड़की के रूप में सामने आई है। अपने भाइयों द्वारा अपने ऊपर किए जा रहे अत्याचार के कारण, वो काफी समझदार हो चुकी है। और बेचारी को मजबूरन अपने उस भाई को, जिसे वो जान से ज्यादा चाहती है, उसे ही चाय में मर्दांगी छीन लेने की दवा मिला कर देनी पड़ रही है। क्या कुसुम जानती है के चाय में उसके दोनो भाई क्या मिलात हैं, यदि नही तो क्या कभी उसने ये नही सोचा के उसमें ज़हर भी हो सकता है? खैर, सुमन बेहद ही प्यारी लड़की के रूप में रही है अभी तक और इस बात में तनिक भी संदेह नहीं, के वैभव के साथ ये छल करने के कारण, उसकी अंतरात्मा भी चोटिल हो चुकी होगी। निश्चित ही कोई बहुत बड़ी बात है जिसके कारण विभोर और अजीत उसे मजबूर कर रहें हैं, अन्यथा वो कभी ये सब नही करती। देखते हैं कब वो सारा सच वैभव को बताएगी, मेरे खयाल से वैभव को खुद ही उस से सब पूछ लेना चाहिए।

अनुराधा, यदि किसी किरदार ने अभी तक सबसे गहरा प्रभाव इस कहानी पर छोड़ा है तो वो अनुराधा ही है। वैभव जैसे युवक का कायापलट कर देना, वो भी बिना कुछ किए, अनुराधा को बाकी सबसे अलग खड़ा करता है। उसके भीतर शुरू से ही वैभव को लेकर कुछ तो है, वैभव को देखकर उसका शर्माना और मुस्कुराना, उसे देख कर अनुराधा का हड़बड़ा जाना, साफ है के वो वैभव के लिए कुछ न कुछ महसूस करने लगी है। वहीं वैभव भी इस कहानी के सभी किरदारों में से यदि किसी के लिए सबसे भिन्न विचार अपने मन में रखता है तो वो अनुराधा ही है। उसके उभारों को अनजाने में देख लेने के पश्चात वैभव का ग्लानि महसूस करना, इसी ओर संकेत करता है। पर क्या दोनो की जोड़ी कभी बन भी पाएगी? क्या दादा ठाकुर कभी दोनो के लिए राजी होंगे? क्या जगन इनके रिश्ते को अपनी सहमति देगा? परंतु सबसे बड़ी बात, क्या ये दोनो अपने खुद के भावों को समझ एक – दूसरे के सामने उन्हें व्यक्त कर पाएंगे?

खैर, अब इसे किस्मत कहो या कुछ और, वैभव धीरे – धीरे सभी बातों को जान रहा है। पहले अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र, जिसके कारण दादा ठाकुर ने उसे गांव से निष्कासित किया, फिर उस नकाबपोश के बारे में जिसे दादा ठाकुर ने उसकी सुरक्षा के लिए लगाया था, अभिनव की अल्पायु और रागिनी के मनोभाव, और अब विभोर और अजीत का सच, धीरे – धीरे ही सही, वैभव उस रहस्य की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है जो सबसे छिपा है।

अब देखना ये है के वैभव क्या और कैसे करता है! रजनी का मसला हो या रूपचंद्र का... अनुराधा से नजदीकियां और रूपा के लिए उसके मन में उठते भाव... कुसुम और विभोर – अजीत का रहस्य... साहूकारों की असलियत, दादा ठाकुर के राज़... अभिनव का व्यवहार, कई सारे मसले हैं वैभव के सामने जिन्हे उसे एक – एक कर सुलझाना होगा। बहरहाल, वैभव बीच में एक बार शहर भी गया था किसी रहस्मयी कार्य के लिए, वो क्या हो सकता है?


बहुत ही खूबसूरती से कहानी को आप आगे बढ़ा रहे हो भाई। सबसे पहले तो कहानी को आपने पुनः शुरू किया यही बड़ी बात है, अन्यथा इस प्रकार की कहानी यदि अधूरी रह जाती, तो निश्चित ही ये सही ना होता। हिंदी शब्दावली पर बेहतर पकड़ के कारण ही आप इस तरीके से शब्दों की माला पिरो पा रहें हैं, और हर एक शब्द अपनी एक अलग ही मिठास के साथ प्रस्तुत हो रहा है। जैसा मैंने पहले भी कहा, देवनागरी में ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियों, का कोई मेल नही हो सकता और यदि इतने बेहतर तरीके से उसे प्रस्तुत किया गया हो, तो उस से बेहतर कुछ नहीं। आशा है आगे भी आप यूंही लिखते रहेंगे।

तीनों ही अध्याय बेहद शानदार थे भाई। अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
 
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ASR

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ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियां सदैव ही बेहद खूबसूरत होती हैं और यदि उन्हें देवनागरी लिपि में लिखा गया हो, तो उसका कोई मुकाबला हो ही नही सकता। वैसे तो मैं अधिकतर “एडल्टरी" सेक्शन से थोड़ा दूर ही रहता हूं, क्योंकि आज तक जितनी भी एडल्टरी कहानियां मैंने इस फोरम पर पढ़ी हैं, ज्यादातर में निराशा ही हुई। कारण, कहानी के नाम पर केवल एक ही चीज़ का होना... :sex: खैर, जितनी भी एडलटरी कहानियां मैने पढ़ी हैं, उनमें से यदि कोई सबसे भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है, तो वो यही है। कुछ महीने पहले ही इस कहानी पर नज़र पड़ी थी, परंतु जब ज्ञात हुआ के ये कहानी अधूरी छूट गई है, तो निश्चित ही काफी दुख हुआ, परंतु अच्छा लगा देखकर के आपने एक दफा फिर कहानी को शुरू कर दिया है, आशा है इस बार इसे अंजाम तक आप पहुंचा ही दोगे, वैसे भी अधूरी कहानियां आपके नाम के साथ मेल नही खाती...:D

कहानी की शुरुआत एक बागी लड़के के साथ हुई थी जो धीरे – धीरे पूरी तरह बदल गया है। वैभव ठाकुर, अर्थात इस कहानी का नायक, एक समय पर अपने पिता और अपने खानदान के नाम को मलिन करने का हर संभव प्रयास करने वाले लड़के में आए ये परिवर्तन निश्चित ही चौंका देने वाले हैं। परंतु कहीं न कहीं वैभव का ये “कायाकल्प" व्यर्थ ही नहीं हुआ है। 4 महीने भारी कष्टों को उठाने के बाद ही शायद वो उस सच्चाई को समझ पाया है जिस से वो वर्षों से भागता आया था। कर्तव्यबोध, यही एक ऐसा मार्ग है जो आवारा से आवारा व्यक्ति को कर्म के पथ पर लौटा देता है और निश्चित ही, वैभव को अपने कर्तव्यों का, अपने धर्म का बोध हो चुका है। वैभव के चरित्र में कितनी भी खामियां हों या कितने भी गुनाह उसने आज तक किए हों, परंतु उसे पूरी तरह गलत नही ठहराया जा सकता।

किसी के घर की इज्ज़त के साथ खेलना, वैभव जैसे को शोभा तो नही देता, परंतु इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता के उसने आज तक जितनी भी लड़कियों – औरतों को भोगा है, वो उनकी सहमति से ही भोगा है, ना कि उनके साथ किसी प्रकार की ज़ोर – ज़बरदस्ती करके... रागिनी की ओर वैभव का आकर्षित होना, एक बार फिर इसे जायज़ नही ठहराया जा सकता,आखिर भाभी को सदियों से मां समान ही माना गया है... परंतु वैभव के इन कृत्यों और सोच की जड़ें काफी पुरानी हैं, बंदिशें तो शायद किसी को भी पसंद नही होती, परंतु कोई – कोई ऐसा भी होता है जो थोड़ी भी रोक – टोक बर्दाश्त नहीं कर पाता, वैभव उन्ही में से एक है। बचपन से ही इसी सोच के साथ वो बड़ा हुआ, और फिर मेरी दृष्टि में अपने पिता द्वारा लगातार अंतराल पर मिलने वाली सज़ा के कारण वो ढीठ भी हो गया। जब कोई नवयुवक इस स्थिति में पहुंच जाता है, जहां ना उसे अपने माता – पिता का भय रहता है और ना ही उनके सम्मान की परवाह, अक्सर ऐसे में वो वैभव समान ही दिखने लग जाता है।

वैभव की दृष्टि अपनी चाची, मेनका पर भी बिगड़ी अवश्य थी, परंतु साथ ही उसे अपनी गलती का भान भी हो गया, परंतु क्या ये केवल एक ही बार के लिए था? शायद नहीं, एक बार संभोग की लत लग जाने के बाद, वैभव को उसके अभाव में इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। परंतु, देखने योग्य रहेगा के क्या वो अपनी नियत अपनी घर की महिलाओं पर भी खराब कर लेगा, या अभी उसमें कुछ मर्यादा शेष है... रागिनी के प्रति आकर्षण महसूस करने की बात को यदि दरकिनार कर दिया जाए, तो ये तो स्पष्ट है के वैभव पूरे दिल से उसका सम्मान करता है, और उसके दुख को महसूस भी कर पाता है... खैर, वैभव के चरित्र में आए इन आकस्मिक बदलावों से जहां दादा ठाकुर और जगताप बेहद खुश हैं, वहीं साहूकारों का हैरान – परेशान होना भी पूरी तरह अपेक्षित ही है। मणिशंकर और उसके भाइयों के चरण स्पर्श करना, यहां तक की उनके बेटे, जो वैभव से आयु में बड़े हैं, उन्हें यूं सम्मान देना, आसानी से हज़म हो जाने वाले काम नही किए हैं वैभव ने पिछले कुछ समय में। निश्चित ही इन बदलावों का गहरा प्रभाव होने वाला है, ठाकुरों पर, साहूकारों पर, गांव पर और उस सफेदपोश पर भी।

मुरारी की हत्या इस कहानी के प्रथम रहस्य के रूप में सामने आई, जिसका इल्ज़ाम वैभव के माथे आया। हालांकि, कुछ ही अंतराल के बाद जगन और बाकी सभी को भी पूर्ण विश्वास हो गया था के वैभव का इस सबसे कोई नाता नहीं था। हां, एक तरह से नाता था शायद,आखिर मुरारी की हत्या वैभव और ठाकुरों से रंजिश और बैर का ही नतीजा थी। खैर, इस मामले में पुख्ता रूप से कोई जानकारी निकलकर सामने नही आई है, परंतु फिलहाल के लिए वही सफेदपोश संदेह के दायरे में खड़ा नज़र आता है। दरोगा को भी अभी तक कोई पुख्ता सबूत या कोई कड़ी हाथ नही लगी है, परंतु जिस प्रकार से पिछले कुछ समय में उस सफेदपोश की योजनाएं असफल हुई हैं, बौखलाहट में गलती हो सकती है, जिसका फायदा दरोगा को उठाना होगा। जगन भी शुरुआत में रहस्मयी सा लगा था, कहीं न कहीं उसपर भी संदेह बना ही हुआ था, मुरारी के कत्ल को लेकर, हालांकि फिलहाल के लिए जगन सकारात्मक किरदार लग रहा है, परंतु वो मुरारी का कातिल हो सकता है, अभी भी मेरा यही मानना है। खैर, मुरारी की तेरहवीं सही तरीके से हो गई, जिसमें वैभव का ही हाथ था। देखते हैं मुरारी के कत्ल और कातिल की हकीकत कब तक बाहर आती है।

रूपचंद्र ही एक ऐसा साहूकारों से जुड़ा व्यक्ति है, जो अभी तक सबसे ज्यादा संदेहपूर्ण रहा है। हां, गौरव का नाम भी सामने आया है, परंतु रूपचंद्र काफी शातिर और रहस्यमयी जान पड़ता है। पहले अनुराधा के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास, और फिर रजनी के साथ उसके संबंध, यहां गौर करने वाली बात ये है की, रजनी और रूपचंद्र के बीच हो रहे संभोग वाले दृश्य, में कहीं ऐसा नही लगा के रजनी किसी दबाव में आकर वो सब कर रही हो, अलबत्ता यही प्रतीत हुआ को उस सबमें रजनी की पूर्णरूपेण सहमति थी। अब इनके संबंध की शुरुआत कैसे हुई ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा, परंतु एक बात साफ है के रजनी और उसकी सास प्रभा,दोनो ही भरोसे के काबिल नही हैं, और इनमें से किसी पर भी भरोसा करना वैभव के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। खैर, रूपचंद्र का निशाना वैभव तो है ही, परंतु वो कुसुम के जरिए वैभव से बदला लेना चाहता है, कारण, उसे रूपा और वैभव के संबंधों के विषय में सब ज्ञात है। परंतु यहां सवाल ये उठता है की उसे सब ज्ञात हुआ कब, और उसके बाद भी उसने कुछ किया क्यों नहीं? और क्या अब, जब साहूकारों और ठाकुरों के संबंध बदले हैं, तब भी रूपचंद्र कुसुम को अपना निशाने बनाए रखेगा? क्या अब भी वो वैभव से सीधे तौर पर जंग करने की कोशिश करेगा, या फिर...?

चेतन और सुनील को साहूकारों और मुंशी के परिवार के पीछे लगाने का वैभव का फैसला कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते वो दोनो भी वैभव के खिलाफ ना हों। वैसे भी ऐसे दोस्त, कभी भी सच्चे नही होते, वैभव से दोस्ती केवल लड़कीबाजी और आर्थिक विकास का ही परिणाम है, वरना मुझे नही लगता के वैभव के जीने – मरने से इन्हे कोई अंतर पड़ेगा। बात करें रूपा को तो, निश्चित ही बेहद सुंदर चरित्र के रूप में सामने आई है वो। शुरुआत में तो वैभव की पहचान और उसके चरित्र को जानकर, रूपा ने उससे दूरी बना ली थी, परंतु धीरे – धीरे वो वैभव से प्रेम करने लगी और इसी प्रेम में बहकर रूपा ने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया। यहां यदि रूपा को भी संदेह की नज़र से देखा जाए तो, कहीं भी ऐसा प्रतीत नही होता के वो भी वैभव के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हो सकती है। फिलहाल के लिए तो नही,आगे चलकर...? या शायद हो भी सकता है, के रूपा अब भी वैभव के ही विरुद्ध हो, जब वैभव ने साहूकारों के प्रति अपना संदेह ज़ाहिर किया था, तब उसके बदले भाव, रूपचंद्र को उसकी सच्चाई ज्ञात होना, देखते हैं इन सबका क्या अर्थ निकलता है...

वैसे इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता के वैभव के लिए रूपा निश्चित ही और लड़कियों से भिन्न है, शायद अनुराधा अभी के लिए वैभव के जीवन में मौजूद सबसे खास लड़की है (परिवार से अलग), परंतु निश्चित रूप से रूपा के प्रति वैभव के अंदर कुछ अलग भाव स्पष्ट नज़र आते हैं... क्या वो भी रूपा से प्रेम कर बैठा है, या नहीं, देखना रोमांचक रहेगा।

दादा ठाकुर, शायद अभी तक इस कहानी का सबसे रौबदार और सशक्त किरदार, वैभव को गांव से निष्कासित करने की जो वजह उन्होंने वैभव को बताई वो अर्धसत्य है, इसमें कोई दोराय नहीं। साहूकारों और ठाकुरों के बीच की अनबन की असली वजह भी अभी तक वैभव को नही बताई गई है। और निश्चित ही कई ऐसी बातें होंगी, जो दादा ठाकुर सबसे छुपाते फिर रहें होंगे। वो तो भला हो रागिनी का,वरना अभिनव को लेकर भविष्यवाणी के बारे में भी वैभव कभी ना जान पाता। और इसी प्रकार के किरदारों से मुझे सख्त चिढ़ है, जब तक गर्दन पर तलवार और सर पर मौत ना आ जाए, इनका मुंह नही खुलता। खैर, देखते हैं, कब ये सारा सच वैभव के सामने प्रकट करेंगे। जगताप का किरदार अभी तक अपने बड़े भाई के लक्ष्मण जैसा ही रहा है, जिसके लिए दादा ठाकुर ही सर्वोपरि है, वैभव के लिए भी वो अपने भीतर प्रेम भाव रखते हैं, आगे चलकर इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है।

रागिनी... अक्सर ही सुंदरता के प्रति आकर्षण हो ही जाता है, और वैभव को भी रागिनी, जिसका विवरण अब तक सुंदरता की मूरत के रूप में मिला है, उसके प्रति आकर्षित होने में देर नहीं लगी। रागिनी अभी तक एक बेहद सहनशील और सुलझी हुई किरदार के रूप में सामने आई है। अपने पति के लिए अल्पायु की भविष्यवाणी, घर में चल रही चीज़ें,वैभव का घर से कुछ समय पहले तक निर्मोही होना,और अभिनव का उसके प्रति रूखा व्यवहार... सब कुछ सहकर भी वो केवल और केवल अपने परिवार के लिए ही सोच रही है, और अपने दुख को अपने अंदर ही ज़ब्त कर, मुस्कुराने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कहीं न कहीं अचानक से ही वैभव और रागिनी के बीच आया नजदीकियां, संदेहपूर्ण तो थी। लगा था के शायद रागिनी के मन में भी वैभव के प्रति आकर्षण है, और फिर उसका वैभव से ये कहना के उसने खुद भी मन ही मन पाप तो किए हैं, लगा जरूर था के इसी ओर रागिनी का इशारा था। परंतु वैभव को अपने छोटे भाई के रूप में देखने वाली बात से उसने सभी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया। हालांकि, अब भी उसके “मन की उन बातों" को जानना रोचक रहेगा। देखते हैं रागिनी और अभिनव का आगे चलकर क्या होता है।

अभिनव भी अभी तक पूरी तरह खुलकर सामने नही आया है, होली वाले दिन शायद वो नशे में वैभव से वो बर्ताव कर बैठा, पर अगले ही दिन उसने वैभव पर हाथ भी उठा दिया। अभिनव का व्यवहार सभी के लिए रूखा हो चुका है। यहां तक की अपनी पत्नी के लिए भी। इसका कारण उसके अल्पायु होने के भविष्यवाणी हो सकती है। परंतु फिर उसका व्यवहार, विभोर और अजीत के लिए सामान्य क्यों है? सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो मेरे अनुमान से यही कहानी बनती है की अभिनव की कोई कमज़ोर नस, विभोर और अजीत के हाथ लगी हुई है और उन्ही दोनो के कहने पर वो इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है। उस रात वैभव ने उसे विभोर – अजीत के कमरे से निकलते भी देखा था। पर यहां एक और सवाल खड़ा हो जाता है। रात के वक्त तो, वो दोनो चिलगोजे, कुसुम के कमरे में होते हैं और कुसुम उनके कमरे में। तो या तो वो अपना कार्यक्रम समेट कर वापिस पहुंच गए होंगे या अभिनव कुसुम से ही मिलने गया होगा? पर कहीं न कहीं यही अंदेशा है के वो दोनो ही अभिनव को किसी चीज़ के जरिए मजबूर कर रहें हैं।

यहीं पर यदि दोनो भाइयों की बात की जाए तो दोनो अव्वल दर्ज़ के चूतियों के रूप में सामने आते हैं। वैसे तो वैभव हमेशा ही सबसे अलग रहा है पर फिर भी एक बार को मान लिया जाए के किसी कारण वो वैभव से नफरत करते हैं। पर कमीनों ने अपने गुनाहों में कुसुम को भी घसीट लिया। यहां तक की किसी वजह से उसे मजबूर भी कर रहें हैं, और हद तो ये है की उस कमीनी नौकरानी को भी वो वजह शायद पता है। अर्थात, वैभव को नुकसान पहुंचाने के लिए दोनो लेदड़ों ने अपनी ही सगी बहन की कमजोर नब्ज़ एक नौकरानी के हाथ में थमा दी? और वो दो कौड़ी की नौकरानी अब कुसुम पर रौब झाड़ रही होगी। बिना किसी संदेह के ये दोनो सजा, और भयंकर सजा के पात्र हैं। उस नौकरानी को भी जल्द ही वैभव को कब्जे में कर लेना चाहिए, वो एक बढ़िया जरिया बन सकती है विभोर और अजीत की हकीकत जानने का।

कुसुम अभी तक बहुत ही चंचल और साथ ही साथ, एक समझदार लड़की के रूप में सामने आई है। अपने भाइयों द्वारा अपने ऊपर किए जा रहे अत्याचार के कारण, वो काफी समझदार हो चुकी है। और बेचारी को मजबूरन अपने उस भाई को, जिसे वो जान से ज्यादा चाहती है, उसे ही चाय में मर्दांगी छीन लेने की दवा मिला कर देनी पड़ रही है। क्या कुसुम जानती है के चाय में उसके दोनो भाई क्या मिलात हैं, यदि नही तो क्या कभी उसने ये नही सोचा के उसमें ज़हर भी हो सकता है? खैर, सुमन बेहद ही प्यारी लड़की के रूप में रही है अभी तक और इस बात में तनिक भी संदेह नहीं, के वैभव के साथ ये छल करने के कारण, उसकी अंतरात्मा भी चोटिल हो चुकी होगी। निश्चित ही कोई बहुत बड़ी बात है जिसके कारण विभोर और अजीत उसे मजबूर कर रहें हैं, अन्यथा वो कभी ये सब नही करती। देखते हैं कब वो सारा सच वैभव को बताएगी, मेरे खयाल से वैभव को खुद ही उस से सब पूछ लेना चाहिए।

अनुराधा, यदि किसी किरदार ने अभी तक सबसे गहरा प्रभाव इस कहानी पर छोड़ा है तो वो अनुराधा ही है। वैभव जैसे युवक का कायापलट कर देना, वो भी बिना कुछ किए, अनुराधा को बाकी सबसे अलग खड़ा करता है। उसके भीतर शुरू से ही वैभव को लेकर कुछ तो है, वैभव को देखकर उसका शर्माना और मुस्कुराना, उसे देख कर अनुराधा का हड़बड़ा जाना, साफ है के वो वैभव के लिए कुछ न कुछ महसूस करने लगी है। वहीं वैभव भी इस कहानी के सभी किरदारों में से यदि किसी के लिए सबसे भिन्न विचार अपने मन में रखता है तो वो अनुराधा ही है। उसके उभारों को अनजाने में देख लेने के पश्चात वैभव का ग्लानि महसूस करना, इसी ओर संकेत करता है। पर क्या दोनो की जोड़ी कभी बन भी पाएगी? क्या दादा ठाकुर कभी दोनो के लिए राजी होंगे? क्या जगन इनके रिश्ते को अपनी सहमति देगा? परंतु सबसे बड़ी बात, क्या ये दोनो अपने खुद के भावों को समझ एक – दूसरे के सामने उन्हें व्यक्त कर पाएंगे?

खैर, अब इसे किस्मत कहो या कुछ और, वैभव धीरे – धीरे सभी बातों को जान रहा है। पहले अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र, जिसके कारण दादा ठाकुर ने उसे गांव से निष्कासित किया, फिर उस नकाबपोश के बारे में जिसे दादा ठाकुर ने उसकी सुरक्षा के लिए लगाया था, अभिनव की अल्पायु और रागिनी के मनोभाव, और अब विभोर और अजीत का सच, धीरे – धीरे ही सही, वैभव उस रहस्य की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है जो सबसे छिपा है।

अब देखना ये है के वैभव क्या और कैसे करता है! रजनी का मसला हो या रूपचंद्र का... अनुराधा से नजदीकियां और रूपा के लिए उसके मन में उठते भाव... कुसुम और विभोर – अजीत का रहस्य... साहूकारों की असलियत, दादा ठाकुर के राज़... अभिनव का व्यवहार, कई सारे मसले हैं वैभव के सामने जिन्हे उसे एक – एक कर सुलझाना होगा। बहरहाल, वैभव बीच में एक बार शहर भी गया था किसी रहस्मयी कार्य के लिए, वो क्या हो सकता है?


बहुत ही खूबसूरती से कहानी को आप आगे बढ़ा रहे हो भाई। सबसे पहले तो कहानी को आपने पुनः शुरू किया यही बड़ी बात है, अन्यथा इस प्रकार की कहानी यदि अधूरी रह जाती, तो निश्चित ही ये सही ना होता। हिंदी शब्दावली पर बेहतर पकड़ के कारण ही आप इस तरीके से शब्दों की माला पिरो पा रहें हैं, और हर एक शब्द अपनी एक अलग ही मिठास के साथ प्रस्तुत हो रहा है। जैसा मैंने पहले भी कहा, देवनागरी में ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियों, का कोई मेल नही हो सकता और यदि इतने बेहतर तरीके से उसे प्रस्तुत किया गया हो, तो उस से बेहतर कुछ नहीं। आशा है आगे भी आप यूंही लिखते रहेंगे।

तीनों ही अध्याय बेहद शानदार थे भाई। अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
अति रोचक जानकारी दी है 😍
 

Naik

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अध्याय - 36
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अब तक....

मणि शंकर की इस बात के बाद ख़ामोशी छा गई। उसके बाद ख़ामोशी से ही भोजन शुरू हुआ। बीच बीच में भोजन परोसने वाली औरतें आती और हम सबकी थाली में कुछ न कुछ रख जातीं। मैं ज़्यादा खाने का आदी नहीं था इस लिए मैंने कुछ भी लेने से मना कर दिया था लेकिन मणि शंकर और उसके भाई न माने। मैंने महसूस किया था कि उनके बेटों में से ज़्यादातर लड़के अब मेरे प्रति सहज हो गए थे और जब भी मेरी उनसे नज़रें चार हो जाती थीं तो वो बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। उनके चेहरे के भावों से मैं समझ जाता था कि उनके अंदर कैसी भावना होगी। ख़ैर किसी तरह भोजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ और हम सब वहां से उठ कर बाहर बनी एक बड़ी सी बैठक में आ गए।

अब आगे....


"प्रणाम दादा ठाकुर।" इंस्पेक्टर धनञ्जय ने दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़ा हो गया।
"ख़ुश रहो।" दादा ठाकुर ने अपनी प्रभावशाली आवाज़ में कहा और फिर एक नज़र आस पास घुमाने के बाद दरवाज़े के अंदर दाखिल हो ग‌ए। उनके पीछे दरोगा भी आ गया। अंदर आने के बाद धनञ्जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

"आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया?" दरोगा ने नम्र भाव से कहा____"मुझे सन्देश भेजवा दिया होता तो मैं खुद ही हवेली आ जाता।"

"कोई बात नहीं।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा और कमरे में रखी चारपाई पर जा कर बैठ गए जबकि धनञ्जय ज़मीन पर ही हाथ बांधे खड़ा रहा।

"उस आदमी के बारे में क्या पता चला तुम्हें?" दादा ठाकुर ने ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"और ये भी कि मुरारी की हत्या के सम्बन्ध में तुमने अब तक क्या पता किया?"

"उस रात जिस काले नक़ाबपोश की हत्या हुई थी उसके बारे में मैंने आस पास के कई गांवों में पता किया था दादा ठाकुर।" दरोगा ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हैरत की बात ये पता चली कि वो आदमी इस गांव का ही क्या बल्कि आस पास के किसी भी गांव का नहीं था। मैंने अपने मुखबिरों को उसके बारे में पता करने के लिए लगाया था और आज ही मेरे एक मुखबिर ने बताया कि वो आदमी असल में कौन था।"

"साफ साफ़ बताओ।" दादा ठाकुर ने धनञ्जय की तरफ उत्सुकता से देखा।
"मेरे मुखबिर ने बताया कि वो आदमी पास के ही शहर का था।" दरोगा ने कहा____"उसका नाम बनवारी था। बनवारी का एक साथी भी है जिसका नाम नागेश नामदेव है। दोनों ही शहर के छंटे हुए बदमाश हैं। चोरी डकैती लूट मार और क़त्ल जैसी वारदातों को अंजाम देना उनके लिए डाल चावल खा लेने जैसा आसान काम है। पुलिस फाइल में दोनों के ही जुर्म की दास्तान दर्ज है। मुखबिर के बताने पर जब मैंने उन दोनों का शहर में पता लगवाया तो पता चला कि वो दोनों काफी टाईम से शहर में देखे नहीं गए हैं और ना ही उनके द्वारा किसी वारदात को अंजाम दिया गया है। इसका मतलब यही हुआ कि आपका जो कोई भी दुश्मन है उसने उन दोनों को ही अपने काम के लिए चुना है और कुछ इस तरीके से उनको काम करने के लिए कहा है कि वो दोनों ग़लती से भी किसी की नज़र में न आएं। अब क्योंकि शहर में वो दोनों काफी टाइम से देखे नहीं गए थे तो ज़ाहिर है वो दोनों शहर में थे ही नहीं बल्कि वो यहीं थे, इसी गांव में लेकिन सबकी नज़रों से छुप कर। ख़ैर उन दोनों में से एक को तो उस सफेदपोश ने उस रात जान से मार दिया लेकिन दूसरे की अभी लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है कि वो अभी ज़िंदा है।"

"हमें भी यही आशंका थी कि ऐसा कोई आदमी हमारे गांव का या आस पास के किसी गांव का नहीं हो सकता।" दादा ठाकुर ने गहरी स्वास छोड़ते हुए कहा____"हमारा जो भी दुश्मन है वो ऐसे किसी आदमी को इस तरह के काम के लिए चुनेगा भी नहीं जो इस गांव का हो अथवा किसी दूसरे गांव का। क्योंकि उसे अपनी गोपनीयता का ख़ास तौर पर ख़याल रखना है। खैर जैसा कि तुमने कहा कि उनमें से एक मारा गया है और एक की लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है उस दूसरे वाले से हमें या हमारे बेटे को अभी भी ख़तरा है।"

"सही कह रहे हैं आप।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस दूसरे वाले नक़ाबपोश से अभी भी ख़तरा है और संभव है कि कई बार की नाकामी के बाद इस बार वो पूरी योजना के साथ आप पर या छोटे ठाकुर पर हमला करे इस लिए आपको और छोटे ठाकुर को थोड़ा सम्हल कर रहना होगा।"

"ह्म्म्म।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"और मुरारी की हत्या के विषय में क्या पता किया तुमने? हमारे लिए अब ये सहन करना मुश्किल होता जा रहा है कि मुरारी का हत्यारा अभी भी खुली हवा में सांस ले रहा है। हमें यकीन है कि मुरारी की हत्या किसी और वजह से नहीं बल्कि हमारी ही वजह से हुई है। हम ये बोझ अपने सीने में ले कर नहीं बैठे रह सकते। जिस किसी ने भी उस निर्दोष की हत्या की है उसे जल्द से जल्द हम सज़ा देना चाहते हैं।"

"मेरा ख़याल है कि मुरारी की हत्या उसी सफेदपोश ने अपने उन दो चुने हुए आदमियों के द्वारा करवाई है।" दरोगा ने सोचने वाले भाव से कहा_____"ये तो उस दिन हमारा दुर्भाग्य था कि वो सफेदपोश हाथ से निकल गया और उसने उस काले नक़ाबपोश यानी बनवारी को जान से मार दिया था वरना अगर वो दोनों ही पकड़ में आ जाते तो सच का पता चल जाता।"

"जो नहीं हो पाया उसकी बात मत करो धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने खीझते हुए से लहजे में कहा_____"बल्कि एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा कर या तो उस दूसरे नकाबपोश का पता लगाओ या फिर उस सफेदपोश का। हम जानना चाहते हैं कि इस गांव में अथवा आस पास के गांव में ऐसा कौन है जो हमसे ऐसी दुश्मनी निभा रहा है और हमारा हर तरह से नाम ख़राब करना चाहता है? सिर्फ शक के आधार पर हम किसी पर हाथ नहीं डालना चाहते, बल्कि हमें ठोस सबूत चाहिए उस ब्यक्ति के बारे में।"

"मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं दादा ठाकुर।" दरोगा धनञ्जय ने कहा_____"मगर शायद वो ब्यक्ति ज़रूरत से ज़्यादा ही शातिर है। वो पूरी सावधानी बरत रहा है और नहीं चाहता कि उससे कोई छोटी सी भी ग़लती हो। हालांकि ऐसा हर बार नहीं हो सकता, मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन वो अपनी ही होशियारी के चलते पकड़ में आ जाएगा।"

"हम और इंतज़ार नहीं कर सकते धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने दरोगा की तरफ देखते हुए कहा____"हमें जल्द से जल्द मुरारी का हत्यारा चाहिए। एक बात और, अगर तुम्हें किसी पर शक है तो तुम बेझिझक उसे उठा सकते हो और उससे सच का पता लगा सकते हो। हमारी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है लेकिन इस बात का ख़ास ध्यान रहे कि इसके बारे में बाहर किसी को भनक भी न लग सके।"

"आप बेफिक्र रहें दादा ठाकुर।" धनञ्जय ने कहा____"जल्द ही इस बारे में आपको बेहतर ख़बर दूंगा मैं।"

कुछ देर और दादा ठाकुर दरोगा के पास रुके और फिर वो जिस तरह बिना किसी की नज़र में आए हुए आए थे उसी तरह चले भी गए। दरोगा के चेहरे पर दृढ़ता के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
☆☆☆

बाहर बैठक में हम सब बैठे हुए थे और हर विषय पर बातें कर रहे थे। मणि शंकर और उसके भाई मेरे बदले हुए रवैए से बेहद खुश और सहज हो गए थे। यही हाल उनके बेटों का भी था। कुछ ही देर में मैं उन सबके बीच पूरी तरह घुल मिल गया था। मैंने पूरी तरह से अपनी योजना के अनुसार उनको ये एहसास करा दिया था कि अब उनमें से किसी को भी मुझसे किसी भी तरह से न तो डरने की ज़रूरत है और ना ही असहज होने की।

हरि शंकर के बेटे मानिकचंद्र के हाथ में अभी भी प्लास्टर चढा हुआ था। मैंने उससे उसकी उस दशा के लिए कई बार माफ़ी मांगी थी जिससे वो बार बार यही कहता रहा कि नहीं इसमें ज़्यादातर उसी की ग़लती थी। मणि शंकर की पोती और चंद्रभान की बेटी जो कि अभी छोटी सी ही थी वो जब खेलते हुए बाहर आई तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया था और उसे खूब लाड प्यार दे रहा था। वो छोटी सी बच्ची मुझे बहुत ही प्यारी लग रही थी। मुझे उसको इस तरह ख़ुशी ख़ुशी लाड प्यार देते देख उसका बाप चंद्रभान और बाकी सब ख़ुशी से मुस्कुरा रहे थे। वो छोटी सी बच्ची कुछ ही पलों में मुझसे घुल मिल ग‌ई थी। उसकी तोतली बातें मुझे बहुत ही अच्छी लग रहीं थी।

"चन्द्र भैया, आपकी ये बेटी आज से मेरी गुड़िया है।" मैंने चन्द्रभान की तरफ देखते हुए कहा____"और मैं इसे अपने साथ हवेली ले जाऊंगा।" कहने के साथ ही मैंने उस बच्ची से बड़े प्यार से कहा____"अपने इस चाचा के साथ हवेली चलोगी न गुड़िया?"

"हां मैं तलूंगी।" उसने अपनी तोतली भाषा में कहा____"आप मुधे लड्दू थाने को दोगे न?"
"बिल्कुल दूंगा मेरी गुड़िया।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए ढेर सारे लड्डू बनवाऊंगा और सारा का सारा लड्डू तुम्हें दे दूंगा।"

"पल मैं थारे लड्दू तैसे था पाऊंगी?" उसने बड़ी मासूमियत से देखते हुए मुझसे कहा____"मेला पेत तो बहुत थोता है।"
"तो तुम थोड़ा थोड़ा कर के खाना गुड़िया।" मैंने उसे समझाते हुए कहा____"थोड़ा थोड़ा करके तुम सारे लड्डू खा जाओगी।"

"थारा लड्दू था दाऊंगी तो लड्दू तुक नहीं दाएंगे?" उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"फिल मैं ता थाऊगी?"
"अरे! तो मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए फिर से बहुत सारा लड्डू बनवा दूंगा।" मैंने उसके फूले हुए गालों को प्यार से सहला कर कहा____"उसके बाद तुम फिर से लड्डू खाने लगना।"

"हां पल मैं अपने लड्दू किथी को नहीं दूंगी।" उसने अपनी प्यारी और तोतली भाषा में कहा____"थाले लड्दू मैं ही थाऊंगी।"
"हां मेरी गुड़िया।" मैंने फिर से उसके गाल सहला कर कहा____"सारे लड्डू तुम्हीं खाओगी और अगर कोई तुमसे तुम्हारे लड्डू ले ले तो तुम सीधा आ कर अपने इस चाचा को बताना। मैं उसकी खूब पिटाई करुंगा। ठीक है ना?"

मेरी बात सुन कर वो छोटी सी बच्ची बड़ा खुश हुई और खिलखिला कर हंसने लगी। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि वो अब मेरी गोद से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रही थी। बैठक में बैठे सभी लोग हम दोनों की बातों से मुस्कुरा रहे थे। तभी मणि शंकर की बीवी फूलवती आई और उस छोटी सी बच्ची को अपने पास बुलाने लगी लेकिन उसने मेरी गोद से उसके पास जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

"मैं नहीं आऊंगी दादी।" उसने अपनी दादी से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"मैं अपने ताता के थात दाऊंगी। मेले ताता मुधे बूथाला लड्दू देंगे।"

बच्ची की बात सुन कर जहां मैं मुस्कुरा उठा वहीं बैठक में बैठे बाकी कुछ लोग ठहाका लगा कर हसने लगे। उस मासूम सी बच्ची ने उन हंसने वालों की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली____"मैं आपके थात दाऊंगी न ताता?"

"हां मेरी गुड़िया।" मैंने उसके माथे को प्यार से चूमते हुए कहा____"तुम मेरे साथ ही हवेली जाओगी। वहां पर तुम्हारी एक बुआ है जो तुम्हें ढेर साड़ी मिठाई देगी और तुम्हें अपने साथ ही रखेगी।"

"तो मैं लड्दू औल मिथाई दोनों थाऊगी ताता?" उसने इस बार हैरानी से पूछा था।
"और नहीं तो क्या।" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"मेरी ये प्यारी गुड़िया सब कुछ खाएगी। तुम जो जो कहोगी वो सब तुम्हें खाने को मिलेंगा।"

मेरी बात सुन कर बच्ची एक बार फिर से ख़ुशी से उछलने लगी। उसके साथ मेरी ये बातें, मेरा प्यार और स्नेह कोई दिखावा नहीं था बल्कि सच में वो मुझे बहुत प्यारी लगने लगी थी और मेरा जी चाह रहा था कि मैं बस उसे यूं ही प्यार और स्नेह देता रहूं। फूलवती को खाली हाथ ही अंदर जाना पड़ा। वो बच्ची मेरी गोद से उपरी ही नहीं।

"बड़ी हैरानी की बात है वैभव कि ये तुमसे इतना जल्दी इतना घुल मिल ग‌ई है।" हरी शंकर ने कहा____"वरना जिसे ये पहचानती नहीं उससे दूर ही रहती है। अपनी माँ से ज़्यादा ये अपनी दादी के पास रहती है लेकिन देखा न कि इसने अपनी दादी के पास जाने से भी साफ इंकार कर दिया।"

"बच्चों को जहां प्यार और स्नेह मिलता है वो वहीं जाते हैं हरि काका।" मैंने कहा____"ख़ैर अब तो ये पक्की बात है कि इसे मैं अपने साथ ही ले जाऊंगा। चंद्र भैया आज से ये आपकी बेटी नहीं बल्कि मेरी प्यारी सी गुड़िया है। आपको कोई दिक्कत तो नहीं है न?"

"मुझे भला क्यों कोई दिक्कत होगी वैभव?" चन्द्रभान ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम सब तो इसके कारनामों के आदी हैं लेकिन दिक्कत तुम्हें ही होगी क्योंकि जब इसकी शैतानियां देखोगे तो तब यही सोचोगे कि किस आफ़त को हवेली में ले आए हो।"

"अब जो भी होगा देखा जाएगा चंद्र भइया।" मैंने कहा____"वैसे भी मुझे तो इसकी शैतानियों से भी इस पर प्यार ही आएगा और साथ ही बेहद आनंद भी आएगा।"

ऐसी ही बातों के बाद मैंने उन सबसे जाने की इजाज़त ली जिस पर सब बोलने लगे कि अभी कुछ देर और रुको। मैंने उन सबसे कहा कि अब तो मेरा आना जाना लगा ही रहेगा। मेरी बातें सुन कर मणि शंकर ने कहा कि ठीक है, वो मुझे बग्घी में खुद हवेली तक छोड़ने जाएंगे तो मैंने उन्हें ये कह कर मना कर दिया कि आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हैं।

उस बच्ची को क्योंकि अब मैं खुद ही ले जाना चाहता था इस लिए मैं उसे ले कर चल पड़ा। अपने से बड़ों का मैंने पैर छू कर आशीर्वाद लिया और फिर बैठक से बाहर निकल आया। मुझे बग्घी में हवेली तक छोड़ने के लिए सूर्यभान और मानिकचंद्र तैयार हुए। सबके चेहरों पर खुशी की चमक दिखाई दे रही थी। बाहर आ कर मैं उस बच्ची के साथ बग्घी में बैठ गया। मेरे बगल से हरि शंकर का बेटा मानिकचंद्र बैठ गया जबकि मणि शंकर का दूसरा बेटा आगे बैठ कर बग्घी चलाने लगा। सारे रास्ते मैं ज़्यादातर उस बच्ची से ही बातें करता रहा था। उसकी तोतली भाषा और मीठी मीठी बातें मुझे बेहद आनंद दे रहीं थी। बीच बीच में मैं मानिकचंद्र और सूर्यभान से भी बातें करता जा रहा था। हमारे बीच अब अच्छा खासा ताल मेल बन गया था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हमारे बीच आज से पहले कितनी दुश्मनी थी।

हवेली में पहुंच कर हम सब बग्घी से उतरे। वहां मौजूद नौकरों ने हम सबका सिर नवा कर अभिवादन किया। अभी मैं हवेली के मुख्य द्वार की तरफ ही मुड़ा था कि अंदर से बड़े भैया अभिनव के साथ विभोर और अजीत बाहर निकले। उन तीनों की नज़र हम पर पड़ी तो पहले तो वो अपनी जगह पर ठिठक गए फिर सामान्य भाव से आगे बढ़ते हुए हमारे पास आ ग‌ए। मैंने बड़े भैया को प्रणाम किया तो उन्होंने हल्के से सिर हिला दिया। उधर विभोर और अजीत ने पहले मुझे और फिर सूर्यभान और मानिकचंद्र को प्रणाम किया। सूर्यभान और मानिकचंद्र को मेरे साथ देख कर बड़े भैया का चेहरा तो सामान्य ही रहा लेकिन विभोर और अजीत के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए थे।

बड़े भैया और वो दोनों कहीं जाने की तयारी में थे इस लिए वो औपचारिक बातों के बाद जीप ले कर निकल गए जबकि मैं उस बच्ची को गोद में लिए हवेली के अंदर की तरफ चल पड़ा। मेरे साथ सूर्यभान और मानिकचंद्र भी आ रहे थे। हालांकि उन दोनों ने वापस लौट जाने को कहा था पर मैंने उन्हें वापस जाने नहीं दिया था। कुछ ही देर में हम सब अंदर बैठक में आ गए। अंदर जगताप चाचा मिले। सूर्यभान और मानिकचंद्र ने उन्हें प्रणाम किया और फिर ख़ुशी ख़ुशी बैठक में बैठाया। पिता जी मुझे नज़र नहीं आए। मेरे साथ छोटी सी बच्ची को देख कर जगताप चाचा पहले तो चौंके थे फिर पूछने लगे कि ये तुम्हारे साथ कैसे तो मैंने उन्हें सारी कहानी संक्षेप में बता दी जिसे सुन कर वो बस मुस्कुरा कर रह ग‌ए।

सूर्यभान और मानिकचंद्र का जगताप चाचा ने यथोचित स्वागत किया। हवेली की ठकुराइन यानी कि मेरी माँ भी उनसे मिली। कुछ देर बाद वो दोनों जाने की इजाज़त मांगने लगे और उस बच्ची से भी चलने को कहा लेकिन उस बच्ची में उनके साथ जाने से इंकार कर दिया। वो अभी तक मेरी गोद में ही चढ़ी हुई थी। खैर दोनों के जाने के बाद मैं भी अंदर चला गया।

अंदर कुसुम मुझे मिली और उसने जब मेरे साथ एक छोटी बच्ची को देखा तो पूछने लगी कि ये कौन है और मेरे पास कैसे आई तो मैंने उसे भी सब कुछ बताया। उसके बाद मैं उस बच्ची को लिए अपने कमरे की तरफ चल दिया। कुसुम को ये भी बोलता गया कि वो उस बच्ची के लिए लड्डू ले कर आए।

माहौल एकदम से बदल सा गया था और मुझे भी इस माहौल में थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। मेरे कमरे में वो बच्ची मेरे बेड पर बैठी ख़ुशी ख़ुशी लड्डू खा रही थी। कुसुम उसके पास ही बैठी थी। थोड़ी देर में रागिनी भाभी और मेनका चची भी मेरे कमरे में आ ग‌ईं थी। वो सब उस प्यारी सी बच्ची को देख कर खुश थीं और उससे बातें करती जा रही थी। वो बच्ची जब अपनी तोतली भाषा में बातें करती तो वो सब मुस्कुरा उठतीं थी। सहसा मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी तो मैं चौंका।


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Behtareen shaandaar update bhai
 

Naik

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अध्याय - 37
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अब तक....

माहौल एकदम से बदल सा गया था और मुझे भी इस माहौल में थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। मेरे कमरे में वो बच्ची मेरे बेड पर बैठी ख़ुशी ख़ुशी लड्डू खा रही थी। कुसुम उसके पास ही बैठी थी। थोड़ी देर में रागिनी भाभी और मेनका चची भी मेरे कमरे में आ ग‌ईं थी। वो सब उस प्यारी सी बच्ची को देख कर खुश थीं और उससे बातें करती जा रही थी। वो बच्ची जब अपनी तोतली भाषा में बातें करती तो वो सब मुस्कुरा उठतीं थी। सहसा मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी तो मैं चौंका।

अब आगे....



रागिनी भाभी बेड के पास ही खड़ी थीं और उनका चेहरा भी उस बच्ची की ही तरफ था लेकिन वो मुझे कहीं खोई हुई सी नज़र आ रहीं थी। चाँद की मानिन्द खिला हुआ चेहरा एकदम से बेनूर सा नज़र आने लगा था। जाने क्यों उनके चेहरे पर आ गई इस उदासी को देख कर मुझे अच्छा नहीं लगा। अब क्योंकि मैं जानता था कि उन्होंने अपने सीने में किस तरह का दर्द सबसे छुपा रखा था इस लिए मुझे उनके लिए दुःख का एहसास हुआ। अभी मैं उनके उदास और मलिन पड़े चेहरे को देख ही रहा था कि तभी जैसे उनका ध्यान टूटा और वो किसी से बिना कुछ बोले पलटीं और कमरे से बाहर चली गईं। दरवाज़े के पास पहुंचते पहुंचते मैंने ये देख लिया कि उन्होंने अपने दाहिने हाथ से अपने आंसू पोंछे थे।

कमरे में उस छोटी सी बच्ची की वजह से बाकी सब खुश थे और उस बच्ची में ही मगन थे। किसी का इस बात पर ध्यान ही नहीं गया कि उनकी ख़ुशी के बीच से कोई बेहद उदास और दुखी हो कर चुप चाप चला गया है। मैंने कुसुम और मेनका चाची से ज़रूरी काम का बहाना बनाया और बेड से उतर कर कमरे से बाहर चला गया। मैं अपनी उस भाभी को उदास और दुखी कैसे देख सकता था जिनका कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार सब कुछ छिन जाने वाला था और जो भाभी इतने बड़े दुःख दर्द को अपने सीने में छुपा कर सबके सामने ज़बरदस्ती मुस्कुराने पर बेबस थीं।

जल्दी ही मैं भाभी के कमरे के पास पहुंच गया। उनके कमरे का दरवाज़ा बंद था। मैंने धड़कते दिल से दरवाज़े को हल्के से खटखटाया लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। मैंने फिर से दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें आवाज़ भी दी। कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला और मेरी आँखों के सामने भाभी का आंसुओं से तर चेहरा नज़र आया। उनकी ये हालत देख कर मुझे झटका सा लगा और मेरे दिल में एक टीस सी उभरी।

"मुझे इस वक़्त किसी से कोई बात नहीं करनी वैभव।" भाभी ने अपने जज़्बातों को दबाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा_____"भगवान के लिए मुझे इस वक़्त अकेला छोड़ दो।"

"नहीं छोड़ सकता।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा____"मैं अपनी उस भाभी को ऐसे हाल में हर्गिज़ नहीं छोड़ सकता जिसने अपने सीने में इतने बड़े दुःख दर्द को दबा रखा है और जो किसी को अपना दर्द और अपने आंसू नहीं दिखा सकती।"

"मेरे भाग्य में यही सब लिखा है वैभव।" भाभी ने दुखी भाव से कहा____"अब तक किसी तरह खुद को सम्हालते ही रखा था लेकिन आज उस बच्ची को देख कर मैं अपने दर्द को काबू में नहीं रख पाई। वो मासूम सी बच्ची मेरी कोई दुश्मन नहीं है लेकिन जाने क्यों उसे देख कर मेरे दिलो दिमाग़ में एक झंझावात सा उठ खड़ा हुआ और मेरे मन में उस मासूम के प्रति जलन ईर्ष्या और न जाने क्या क्या पैदा हो गई।"

"इसमें आपका कोई दोष नहीं है भाभी।" मैंने अपने हाथों को बढ़ा कर भाभी के आंसू पोंछते हुए कहा____"और मैं ये भी अच्छी तरह जानता हूं कि मेरी महान भाभी किसी के भी प्रति बुरा नहीं सोच सकती हैं। मेरी भाभी तो दुनिया की सबसे महान और सबसे बहादुर भाभी हैं जिनके सीने में भले ही दुःख दर्द भरा हुआ है लेकिन उनके उसी सीने में सबके लिए प्रेम और सबके बारे में भला सोचने की भावना भी प्रबल रूप से मौजूद है।"

"तुम मुझे बहलाने की कोशिश मत करो वैभव।" भाभी ने पलट कर कमरे के अंदर की तरफ जाते हुए कहा____"मुझे थोड़ी देर के लिए अकेले में जी भर के रो लेने दो।"

"आपने उस दिन मुझे वचन दिया था भाभी कि ना तो आप कभी खुद को दुखी करेंगी और ना ही आंसू बहाएंगी।" मैं अंदर उनके क़रीब बढ़ते हुए बोला_____"फिर आज ये सब क्यों? आप अपने ही वचन को कैसे तोड़ सकती हैं?"

"मुझे इसके लिए माफ़ कर दो वैभव।" भाभी ने मेरी तरफ पलट कर दुखी भाव से कहा_____"लेकिन अपने इस दुःख दर्द को बरदास्त कर लेना मेरे अख़्तियार में नहीं है। मैं बहुत कोशिश करती हूं कि मेरा दर्द मुझे कमज़ोर न बना पाए लेकिन हर बार हार जाती हूं मैं।"

"नहीं भाभी आप हारी नहीं हैं।" मैंने उनको उनके कन्धों से पकड़ कर नम्र भाव से कहा____"आप बस थोड़ी सी कमज़ोर पड़ गई हैं। ख़ैर अब चलिए अपने ये आंसू पोंछिए। मुझे अपनी प्यारी सी भाभी की आँखों में ये आंसू बिल्कुल भी अच्छे नहीं लग रहे हैं। मुझे तो बस अपनी भाभी का ये चेहरा आसमान के चाँद की तरह चमकता हुआ और बाग़ के फूलों की तरह खिला हुआ ही चाहिए।"

मेरी बातें सुन कर भाभी मेरी तरफ एकटक देखने लगीं। आंसुओं से भीगी हुई उनकी आँखें समंदर से भी ज़्यादा गहरी थीं। उनको मैंने कभी भी ज़्यादा श्रृंगार वगैरह किए हुए नहीं देखा था। वो बिना श्रृंगार के ही बेहद खूबसूरत लगतीं थी। इस वक़्त जब वो मुझे एकटक देखे जा रहीं थी तो मुझे उनके चेहरे पर किसी छोटी सी बच्ची की तरह मासूमियत नज़र आई। मेरा जी चाहा कि मैं उन्हें खींच कर अपने सीने से छुपका लूं लेकिन फिर ये सोच कर मैंने अपने जज़्बातों को कुचल दिया कि ऐसा करने से कहीं मेरे मन में उनके प्रति ग़लत भावना न जन्म ले ले। बस यहीं तो मात खा जाता था मैं। उनमें गज़ब का आकर्षण महसूस करता था मैं और फिर उनकी तरफ खिंचने लगता था।

"क्या हुआ भाभी?" मैंने जब उन्हें अपनी तरफ एकटक देखते हुए देखा तो धड़कते दिल से पूछ ही बैठा____"आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं? क्या मैंने कोई ग़लत बात कह दी है आपसे?"

"नहीं वैभव।" मेरी बात सुन कर जैसे उनकी तन्द्रा टूट गई थी, सम्हल कर बोलीं____"तुमने कोई ग़लत बात नहीं कही है। मैं बस ये सोच कर मन ही मन थोड़ा हैरान हूं कि मेरा देवर अपनी भाभी की कितने सुन्दर शब्दों में तारीफ़ की। कहां से सीखी हैं ऐसी सुन्दर बातें? क्या ऐसी ही बातों से तुम गांवों की लड़कियों को फंसाते हो?"

"क्या भाभी, आप तो मेरा मज़ाक उड़ाने लगीं।" मैंने झेंपते हुए कहा___"और मैंने कब की आपकी तारीफ़?"
"ये भी तो एक तरह की तारीफ़ करना ही हुआ न वैभव।" भाभी ने अपने आंसू पोंछते हुए और फीकी सी मुस्कान के साथ कहा_____"कि तुम्हें अपनी इस भाभी का चेहरा आसमान के चाँद की तरह चमकता हुआ और बाग़ के फूलों की तरह खिला हुआ ही चाहिए।"

"हां तो क्या ग़लत कहा मैंने?" मैंने अपने कंधे उचकाते हुए लावरवाही से कहा____"मुझे आपकी रोनी सूरत बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती इस लिए कहा कि मुझे आपका चेहरा वैसा ही चाहिए। वैसे भी, आप ठाकुर वैभव सिंह की भाभी हैं। आप में काफी ऊँचे दर्ज़े की बात होनी चाहिए।"

"अच्छा जी।" भाभी इस बार मुस्कुराए बगैर न रह सकीं थी। उसी मुस्कान में उन्होंने आगे कहा____"पर मुझे तुम्हारी तरह इतने ऊँचे दर्ज़े वाली नहीं बनना। ऊँचा दर्ज़ा तुम्हें ही मुबारक हो।"

"अरे! देख लेना आप।" मैंने गर्व से सीना तानते हुए कहा____"एक दिन ऐसा आएगा जब आप इस हवेली की ठकुराइन बनेंगी और बड़े भैया दादा ठाकुर बनेंगे। तब आपकी शख्सियत ऊँचे दर्ज़े वाली ही होगी और आपका ये तुच्छ देवर आप दोनों के कदमों में बैठ कर आपके हर हुकुम की तामील करेगा।"

"ये सब छोड़ो।" भाभी ने सहसा आँखें दिखाते हुए कहा____"तुमने तुच्छ किसे कहा? ख़बरदार, आज के बाद मेरे देवर को तुच्छ मत कहना। मेरा देवर तो वो शख़्स है जिसके नाम का डंका दूर दूर तक बजता है और जिसकी दहशत गांव के साहूकारों के दिलों में भरी पड़ी है। मेरा देवर तो इस हवेली की शान है वैभव और इस हवेली का होने वाला दादा ठाकुर है।"

रागिनी भाभी ने जिस जोश और जिस अंदाज़ में ये सब कहा था उसे देख कर मैं हैरान रह गया था। उनके चेहरे पर उभर आए भावों को देख कर मैं चकित रह गया था। मुझे पहली बार एहसास हुआ उनके मन में मेरे प्रति कितना स्नेह था। वो मेरे चरित्र को अच्छी तरह जानती थीं इसके बावजूद उनको मेरे बारे में ऐसा सुनना ज़रा सा भी पसंद नहीं आया था। इस एहसास के साथ ही मुझे एक अलग ही ख़ुशी का एहसास हुआ लेकिन मैं वो नहीं चाहता था जो उन्होंने आख़िर में कहा था। इस हवेली के असली उत्तराधिकारी बड़े भैया थे और पिता जी के बाद उन्हें ही दादा ठाकुर का पद मिलना चाहिए।

"अब जो सच है वही तो बोला मैंने।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं तो आप दोनों के सामने खुद को तुच्छ ही समझता हूं भाभी।"
"अब तुम मार खाओगे मुझसे।" भाभी ने फिर से मुझे आँखें दिखाई____"मैंने कहा न कि तुम मेरे देवर को तुच्छ नहीं कह सकते। तुम शायद कभी नहीं समझ सकते वैभव कि हमारे दिलों में तुम्हारे लिए कैसी भावना है। ख़ैर छोडो, अब जाओ तुम।"

"ठीक है मैं जा रहा हूं।" मैंने कहा____"लेकिन ख़बरदार अब अगर फिर से मेरी प्यारी भाभी को आपने रुलाया तो।"
"जिसका तुम जैसा प्यारा देवर हो।" भाभी ने आगे बढ़ कर मेरे दाहिने गाल को सहलाते हुए बड़े स्नेह से कहा____"वो ज़्यादा देर तक भला कहां खुद को दुखी रख पाएगी? मुझे बहुत अच्छा लगा वैभव कि तुम मेरे अंदर के दुःख को समझ कर फ़ौरन ही मेरे पीछे यहाँ मुझे सम्हालने के लिए आ गए। मैं भगवान से बस यही दुआ करती हूं कि तुम ऐसे ही हमेशा सबके बारे में सोचो और अपने कर्तव्यों को निभाओ।"

भाभी का प्यार और स्नेह पा कर मैं अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। कितनी अच्छी थीं वो और कितना मानती थीं मुझे। एक मैं था जो उन्हें देख कर हमेशा अपना मन ख़राब कर बैठता था। ये सोच कर एकदम से मेरा दिल ग्लानि से भर उठा जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से शांत किया और फिर कमरे से बाहर निकल गया।

ज़िन्दगी में विचित्र सा मोड़ आ गया था जिसने मुझ जैसे इंसान को सच में बदलना शुरू कर दिया था। कहां मैं दूसरों की बहू बेटियों के साथ ऐय्याशियां करता फिरता था और कहां अब एकदम से संजीदा हो गया था। कभी कभी सोचता था कि क्या सच में मैं वही ठाकुर वैभव सिंह हूं या फिर मेरी शक्लो सूरत में कोई और ही मेरे अंदर समां गया है?

अपने कमरे में आया तो देखा कोई नहीं था। मैं समझ गया कि कुसुम उस बच्ची को अपने कमरे में ले गई होगी या फिर नीचे माँ के पास ले गई होगी। ख़ैर मैंने कुछ देर आराम किया और फिर बुलेट ले कर हवेली से बाहर निकल गया। मुझे अपने नए मकान का निर्माण कार्य भी देखना था और वहीं से मुझे मुरारी काका के घर भी जाना था। अनुराधा का चेहरा बार बार आँखों के सामने घूम जाता था। मुझे उसको देखने का बहुत मन कर रहा था। थोड़े ही समय में मेरी बुलेट उस जगह पहुंच गई जहां मेरा नया मकान बन रहा था। भुवन वहीं मौजूद था, मुझे देखते ही उसने मुझे सलाम किया और वहां के कार्य के बारे में बताने लगा। मैंने देखा मकान की दीवारें दरवाज़े के ऊपर तक पहुंच गईं थी। सामने कुएं को पक्का कर दिया गया था और कुछ मिस्त्री चारो तरफ से बाउंड्री वाली दीवारें खड़ी कर रहे थे। भुवन ने बताया जल्दी ही मकान बन कर तैयार हो जाएगा, हालांकि उसकी छपाई में थोड़ा और भी समय लग जाएगा। इस जगह पर कई सारे मिस्त्री थे और ढेर सारे मजदूर जिसकी वजह से मकान का निर्माण कार्य बड़ी तेज़ी से अपने आख़िरी पड़ाव की तरफ बढ़ रहा था।

कुछ देर उधर रुकने के बाद मैं मुरारी काका के घर की तरफ बुलेट ले कर चल पड़ा। मन में अनुराधा को ले कर तरह तरह के ख़याल बुनता हुआ मैं जल्द ही मुरारी के घर पहुंच गया। बुलेट की तेज़ आवाज़ का ही असर था कि घर के दरवाज़े पर जैसे ही मैं पहुंचा तो दरवाज़ा खुल गया। दरवाज़े के पार मुझे वही खड़ी नज़र आई जिसे देखने के लिए मैं आया था। उसे देख कर दिल को एक सुकून सा महसूस हुआ और मेरे होठों पर अनायास ही मुस्कान उभर आई। यही हाल अनुराधा का भी हुआ था। मुझे देखते ही वो हल्के से मुस्कुराई और फिर नज़र नीचे की तरफ कर ली। मुझसे नज़रें मिलाने में वो हमेशा ही झिझकती थी।

"मां घर पर नहीं है।" उसने नज़र नीचे किए ही धीमी आवाज़ में कहा____"वो अनूप को ले कर जगन काका के घर गई है।"

"तो क्या ऐसे में मैं अंदर नहीं आ सकता?" मैंने मुस्कुराते हुए उससे पूछा तो उसने सिर उठा कर मुझे देखा और फिर से नज़र नीचे कर के कहा____"ऐसा तो मैंने नहीं कहा। आप अंदर आ जाइए, माँ को गए हुए काफी देर हो गई है। शायद आती ही होगी।"

अनुराधा कहने के साथ ही दरवाज़े से हट गई थी इस लिए मैं अंदर दाखिल हो गया था। मेरी ये सोच कर दिल की धड़कनें थोड़ा बढ़ गईं थी कि इस वक़्त अनुराधा घर पर अकेली ही है। वो मेरे आ जाने से असहज महसूस करने लगती थी। हालांकि मैंने कभी ऐसा कुछ भी नहीं किया था जिसकी वजह से उसे मुझसे कोई समस्या हो लेकिन इसके बावजूद वो अकेले में मेरे सामने रहने से असहज महसूस करने लगती थी। एकदम छुई मुई सी नज़र आने लगती थी वो।

"बैठिए।" दरवाज़ा बंद कर के अनुराधा ने पलट कर मुझसे कहा____"मैं आपके लिए गुड़ और बताशा ले कर आती हूं।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है अनुराधा।" मैंने आँगन में रखी खटिया पर बैठते हुए कहा____"लेकिन हाँ तुम्हारे हाथ का पानी ज़रूर पिऊंगा।"

मेरी बात सुन कर अनुराधा ने सिर हिलाया और कोने में रखे मटके की तरफ जाने लगी। हल्के सुर्ख रंग की कमीज और घाघरा पहन रखा था उसने। गले में दुपट्टा नहीं था। शायद उसे दुपट्टा डालने का ध्यान ही नहीं रहा था। मटके से पानी निकालने के लिए जैसे ही वो झुकी तो कमीज का गला फ़ैल गया और मुझे उसके अंदर उसके सीने के उभार आधे से ज़्यादा दिखने लगे। उन्हें देख कर एकदम से मेरे अंदर हलचल सी मच गई। ये पहली बार था कि मैंने अनुराधा के जिस्म के किसी गुप्त अंग को देखा था। एकाएक मुझे उसको इस तरह से देखना बहुत ही बुरा लगा तो मैंने झट से अपनी नज़रें उसके उभारों से हटा ली। खुद पर ये सोच कर थोड़ा गुस्सा भी आया कि मेरी नज़र क्यों उस मासूम के गुप्त अंगों पर इस तरह चली गई?

"ये लीजिए छोटे ठाकुर।" अनुराधा की आवाज़ से मैं हल्के से चौंका और उसकी तरफ देखा। वो मेरे सामने खड़ी थी। पानी से भरा गिलास उसने मेरी तरफ बढ़ा रखा था। मेरी नज़र पहले गिलास पर पड़ी और फिर ऊपर उठते हुए उसके उस चेहरे पर जिसमें इस वक़्त ढेर साड़ी मासूमियत और झिझक के साथ हल्की शर्म भी विद्यमान थी।

"कैसी हो ठकुराईन?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए हल्के से मुस्कुरा कर कहा तो वो एकदम से चौंक गई और हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी, जबकि ऐसा कहने के बाद मैं उसके हाथ से पानी का गिलास ले कर पानी पीने लगा था।

"आ...आपने मुझे ठकुराईन क्यों कहा छोटे ठाकुर?" उसने कांपती हुई आवाज़ में पूछा।
"क्योंकि तुमने मुझे छोटे ठाकुर कहा इस लिए।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा_____"मैंने उस दिन तुमसे कहा था न कि अगर तुम मुझे छोटे ठाकुर कहोगी तो मैं भी तुम्हें ठकुराईन कहूंगा। अब अगर तुम्हें मेरे द्वारा अपने लिए ठकुराईन सुनना पसंद नहीं आया तो तुम भी मुझे छोटे ठाकुर मत कहो क्योंकि मुझे भी तुम्हारे मुख से अपने लिए छोटे ठाकुर सुनना अच्छा नहीं लगता है।"

"पर आपको तो हर कोई छोटे ठाकुर ही कहता है न।" अनुराधा ने नज़रे नीची किए धीमे स्वर में कहा____"मेरे बाबू जी भी आपको छोटे ठाकुर कहते थे। फिर भला मैं कैसे आपको छोटे ठाकुर न कहूं?"

"हर किसी के कहने में और तुम्हारे कहने में ज़मीन आसमान का फ़र्क है अनुराधा।" मैंने कहा____"मैंने इस घर का नमक खाया है। तुम्हारे हाथों का बना हुआ दुनियां का सबसे स्वादिष्ट भोजन खाया है इस लिए मैं चाहता हूं कि तुम मुझे मेरे नाम से पुकारो। जब तुम मुझे छोटे ठाकुर कहती हो तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं तुम सबके लिए कोई ग़ैर हूं जबकि मैं तो इस घर को और इस घर के लोगों को अपना मानता हूं। तुम्हारे बाबू जी भी मेरे कहने पर मुझे वैभव कह कर ही पुकारने लगे थे। काकी भी मुझे मेरे नाम से ही पुकारती है तो फिर तुम क्यों मुझे ग़ैर समझती हो?"

"ऐसी तो कोई बात नहीं है छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने बेचैन भाव से कहा____"हम सब भी आपको अपना ही मानते हैं। आपने हमारे लिए जो कुछ किया है वो कोई ग़ैर थोड़े न करता?"

"मैंने इस घर के लिए कोई भी बड़ा काम नहीं किया है अनुराधा।" मैंने उसके झुके हुए चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"बल्कि मैंने तो बस अपना एक मामूली सा फ़र्ज़ निभाने की कोशिश की थी और आगे भी ऐसी कोशिश करता ही रहूंगा। मेरा मन तो ये भी करता है कि मैं इस घर को स्वर्ग बना दूं लेकिन हर चीज़ मेरे चाहने से भला कहां होगी? ख़ास कर तब तो बिल्कुल भी नहीं जब इस घर की बेटी अनुराधा मुझे ग़ैर समझे।"

मेरी बातें सुन कर अनुराधा ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा। उसके मासूम से चेहरे पर उलझन और बेचैनी के भाव गर्दिश कर रहे थे। मेरे सामने अक्सर उसका यही हाल हो जाता था। मैं समझ नहीं पाता था कि आख़िर क्यों वो मेरे सामने इतना असहज हो जाती थी? क्या इस लिए
कि उसको मेरे चरित्र के बारे में पता है और वो कहीं न कहीं ये समझती होगी कि मैं उसे भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता हूं? उसको रूपचंद्र के द्वारा ये भी पता चल चुका था कि मेरा उसकी अपनी ही माँ के साथ जिस्मानी सम्बन्ध बन चुका है। हालांकि अपनी माँ के बारे में तो उसे बाद में पता चला था लेकिन वो तो पहले से ही मेरे सामने असहज होती आई थी।

"तुम्हें पता है मैं यहाँ क्यों आया हूं?" मैंने उसको ख़ामोशी और बेचैनी से अपनी तरफ देखते हुए देखा तो धड़कते दिल से कह उठा____"सिर्फ तुम्हें देखने के लिए। हाँ अनुराधा, सिर्फ तुम्हें देखने के लिए आया हूं। पांच महीने पहले तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मुझे कोई लड़की या कोई औरत इस कदर याद आए कि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसको देखने चला जाऊं लेकिन इस घर से जुड़ने के बाद बहुत कुछ बदल गया। इस घर ने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया, ख़ास कर तुमने अनुराधा। मैंने तुमसे उस दिन भी यही कहा था कि मेरी फितरत बदलने में सबसे बड़ा योगदान तुम्हारा है और इसके लिए मुझे कोई रंज या मलाल नहीं है बल्कि मैं खुश हूं कि तुमने मुझे बदल दिया।"

मेरी बातें सुन कर अनुराधा कुछ न बोली। सिर झुकाए वो चुप चाप आंगन की कच्ची ज़मीन को घूरे जा रही थी। मेरी बातों ने शायद उसे किसी और ही दुनियां में पहुंचा दिया था। इधर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी, ये सोच कर कि कहीं मैंने अपने दिल की बात उसको बता कर ग़लत तो नहीं कर दिया। कहीं अनुराधा ये न सोचने लगे कि मैं उसे यहाँ अकेला देख कर फंसाने की कोशिश कर रहा हूं।

"क्या हुआ? तुम मेरी बात सुन रही हो न?" मैंने उसका ध्यान भंग करने की गरज़ से कहा तो उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा। मैं कुछ पलों तक उसके मासूम से चेहरे को देखता रहा फिर बोला_____"आख़िर क्या बात है अनुराधा? तुम हर बार मेरे सामने यूं चुप्पी क्यों साध लेती हो और असहज क्यों हो जाती हो? क्या तुम्हें मुझसे डर लगता है?"

"जी...नहीं तो।" उसने इंकार में सिर हिलाते हुए धीमे स्वर में कहा____"ऐसी तो कोई बात नहीं है?""
"तो फिर खुल कर बताओ अनुराधा।" मैंने ब्यग्रता से कहा____"आख़िर ऐसी क्या बात है कि तुम मेरे सामने हमेशा चुप्पी साध लेती हो और असहज महसूस करने लगती हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मेरे बारे में ये सोचती हो कि मैं यहाँ पर तुम्हें बाकी लड़कियों की तरह ही अपने जाल में फंसाने के लिए आता हूं?"

मेरी बात सुन कर अनुराधा ने फिर से सिर झुका लिया। कुछ देर पता नहीं वो क्या सोचती रही फिर धीमे से बोली____"मैं आपके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोचती हूं। मुझे आपके बारे में सारी बातें पता हैं। अगर आपकी नीयत में मुझे अपने जाल में फंसाना ही होता तो क्या मुझे कभी इस बात का एहसास न होता? इतना तो मैं भी समझती हूं कि एक पुरुष किसी के प्रति कैसी नीयत रखे हुए होता है। आप यहाँ इतने समय से आते जाते रहे हैं तो इतने समय में मैंने ऐसा कभी भी महसूस नहीं किया जिससे मुझे ये लगे कि आपके मन में मेरे प्रति कोई बुरी भावना है।"

"ये सब कह कर तुमने मेरे अंदर का बहुत बड़ा बोझ निकाल दिया है अनुराधा।" मैंने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"मैं नहीं जानता कि तुम्हें मेरी बातों पर यकीन होगा कि नहीं लेकिन सच यही है कि मैं चाहे भले ही कितना भी बुरा इंसान होऊं लेकिन तुम्हारे बारे में ज़रा सा भी ग़लत नहीं सोच सकता। जैसे तुम मुरारी काका का गुरूर और अभिमान थी वैसे ही अब तुम मेरा भी गुरूर बन चुकी हो। मुझे ये कहने में अब कोई संकोच नहीं है कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेहद ही ख़ास जगह बन गई है। अगर तुम मानती हो कि मेरी नीयत तुम्हारे लिए ग़लत नहीं है तो तुम बेझिझक हो कर मुझसे बातें करो। तुम्हारे मन में जो कुछ भी कहने का विचार उठे वो कहो और हाँ मुझे मेरे नाम से पुकारो।"

अनुराधा मेरी बातें सुन कर हैरान थी। एकटक मुझे ही देखे जा रही थी। उसके मासूम से चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते नज़र आ रहे थे। उसके सुर्ख होठ हल्के हल्के काँप रहे थे। ऐसा लगता था जैसे वो कुछ कहना चाहती हो लेकिन हिम्मत न जुटा पा रही हो।

"कुछ तो बोलो ठकुराईन।" मैंने मज़ाकिया लहजे में जब ये कहा तो वो चौंकी और इस बार मुझे घूरते हुए उसने कहा____"अगर आप ऐसे मुझे इस नाम से पुकारेंगे तो मैं आपसे बिल्कुल भी बात नहीं करुंगी।"

"बात तो तुम्हें मुझसे करनी ही पड़ेगी ठकुराईन।" मैंने उसी मज़ाकिया लहजे में मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर नहीं करोगी तो मैं काकी को सब कुछ बता दूंगा।"
"क्..क्या मतलब?" वो बुरी तरह चौंकी। आँखें फैला कर बोली____"आप क्या बता देंगे माँ को?"

"यही कि तुमने मुझे सिर्फ पानी पिलाया और खाने का पूछा ही नहीं।" मैंने उसे घबराए हुए देखा तो बात को बदलते हुए कहा____"कोई अपने घर आए मेहमान के साथ इतना बड़ा अत्याचार करता है भला?"

"क्या आपको भूख लगी है??" अनुराधा एकदम से चिंतित भाव से बोली____"आप बैठिए मैं आपके लिए ताज़ा खाना तैयार करती हूं।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।" मैंने कहा_____"मैं बिना खाए ही चला जाऊंगा यहाँ से। अगली बार जब काकी मिलेगी तो बताऊंगा उससे कि तुमने मुझे भूखा ही जाने दिया था।"

"अरे! आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?" अनुराधा ने बुरी तरह घबराए हुए लहजे में कहा____"मैं आपके लिए खाना बनाने जा तो रही हूं न। आप खाना खा के ही जाइएगा। माँ को अगर ये बात पता चलेगी तो वो मुझे बहुत डांटेगी।"

"कोई तुम्हें डांट के तो दिखाए।" मैंने उसके घबराए हुए चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"मैं पलट झपकते ही खून न कर दूंगा उसका।"

"ये...ये क्या कह रहे हैं आप??" अनुराधा एक बार फिर से बुरी तरह चौंक पड़ी थी। इस वक़्त वो जिस तरह से घबराई हुई और परेशान सी नज़र आ रही थी उससे वो मुझे बहुत ही प्यारी लग रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैं कहना क्या चाहता हूं?

"अरे! मैं तो तुमसे मज़ाक कर रहा था यार।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम तो मेरी इतनी सी बात पर ही बुरी तरह घबरा गई। इतना क्यों डरती हो काकी से? क्या वो सच में तुम्हें बहुत डांटती है?"

अनुराधा मेरी बात सुन कर हल्के से मुस्कुराई फिर सिर झुका कर न में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे। मैं उससे बहुत कुछ कहना चाहता था और उससे बहुत सारी बातें करना चाहता था लेकिन कुछ बातें ऐसी थी जिन्हें कहने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी।

"तो अब जाने की आज्ञा दो ठकुराईन।" मैंने उसे छेड़ने वाले अंदाज़ से कहा तो उसने झट से मेरी तरफ देखा। चेहरे पर नाराज़गी के भाव उभर आए उसके, बोली___"आपने फिर मुझे ठकुराईन कहा?"

"तुम मुझे मेरे नाम से पुकारो तो मैं भी तुम्हें ठकुराइन कहना बंद कर दूंगा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो मैं अकेले में ही तुम्हें ठकुराईन कह रहा हूं लेकिन अब से काकी के सामने भी मैं तुम्हें ठकुराईन कहूंगा।"

"आप क्यों तंग कर रहे हैं मुझे?" अनुराधा ने बेचैन भाव से कहा____"मां के सामने कहेंगे तो वो क्या सोचेगी मेरे बारे में?"
"सोचने वाले तो बहुत कुछ सोच लेते हैं।" मैंने अर्थपूर्ण लहजे में कहा____"सम्भव है काकी भी बहुत कुछ सोच बैठे। अब ये तुम पर है कि तुम क्या चाहती हो या फिर क्या करना चाहती हो।"

अनुराधा के चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव उभर आये थे। वो एकटक मुझे ही देखे जा रही थी। मुझे उसको यूं सताने में बड़ा मज़ा आ रहा था। हालांकि थोड़ा बुरा भी लग रहा क्योंकि मैं उस मासूम को बेवजह ही सता रहा था लेकिन मैं चाहता था कि वो मुझसे खुल जाए और मुझे मेरे नाम से ही पुकारे।

"अच्छा चलता हूं अब।" मैंने चारपाई से उठते हुए कहा____"कल सुबह फिर आऊंगा और काकी के सामने तुम्हें ठकुराईन कह कर पुकारुंगा। ठीक है न?"

"नहीं न।" उसने रो देने वाले भाव से कहा____"भगवान के लिए ऐसा मत कीजिएगा। अगर आप यही चाहते हैं कि मैं आपको आपके नाम से ही पुकारूं तो ठीक है। मैं अब से ऐसा ही करुंगी।"

"तो फिर एक बार मेरा नाम ले कर पुकारो मुझे।" मैं अंदर ही अंदर खुश होते हुए झट से बोल पड़ा था____"मैं तो जाने कब से ये देखना चाहता था कि जब तुम मेरा नाम लोगी तो वो नाम कैसा लगेगा और मुझे कैसा महसूस होगा?"


अनुराधा बेचैनी से मेरी तरफ देख रही थी। उसके माथे पर पसीना झिलमिला रहा था। अपने हाथों की उंगलियों को वो आपस में उमेठ रही थी। उसकी शक्ल पर उभरे हुए भाव बता रहे थे कि इस वक़्त वो अंदर ही अंदर किस द्वंद्व से जूझ रही थी।

"बोलो भी जल्दी।" मुझसे रहा न गया तो मैं बोल ही पड़ा___"इतना क्या सोच रही हो अब?"
"व...वैभव जी।" उसने कांपती आवाज़ में लेकिन धीरे से मेरा नाम लिया।

"वैभव..जी.??" मैंने सुनते ही आँखें फैला कर कहा____"सिर्फ वैभव कहो न। मेरे नाम के आगे जी क्यों लगा रही हो तुम?"
"इस तरह मुझसे नहीं कहा जाएगा वैभव जी।" अनुराधा ने अपनी उसी कांपती आवाज़ में कहा____"कृपया मुझे और मजबूर मत कीजिए। मेरे लिए तो आपका नाम लेना ही बड़ा मुश्किल काम है।"

"अच्छा चलो कोई बात नहीं।" मैंने भी उसे ज़्यादा मजबूर करना ठीक नहीं समझा____"वैसे तुम्हारे मुख से अपना नाम सुन कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। अब से तुम मुझे मेरे नाम से ही पुकारोगी। सिर्फ अकेले में ही नहीं बल्कि सबके सामने भी। इसके लिए अगर तुम्हें कोई कुछ कहेगा तो मैं देख लूंगा उसे।"

मेरी बात सुन कर अनुराधा बस मुस्कुरा कर रह गई। अब वो सामान्य हो गई थी और पहले की अपेक्षा उसके चेहरे में एक अलग ही चमक दिखने लगी थी। मेरा मन तो उससे बहुत सारी बातें करने का कर रहा था लेकिन वक़्त ज़्यादा हो गया था। हम दोनों ही अकेले थे और अगर इस वक़्त उसके गांव का कोई ब्यक्ति यहाँ आ जाता तो निश्चय ही वो हमारे बारे में ग़लत सोच लेता जो कि हम दोनों के लिए ही ठीक नहीं होता।

मैंने अनुराधा से कहा कि मैं कल का खाना यही खाऊंगा, वो भी उसके हाथ का बना हुआ। मेरी बात सुन कर अनुराधा ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। उसके बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी घर से बाहर निकल गया। अनुराधा मेरे पीछे पीछे दरवाज़े तक आई। मैंने जब बुलेट में बैठ कर उसकी तरफ देखा तो हमारी नज़रें आपस में मिल ग‌ईं। मैं उसे देख कर मुस्कुराया तो उसके होठों पर भी शर्म मिश्रित हल्की मुस्कान उभर आई। उसके बाद मैंने बुलेट को आगे बढ़ा दिया। तेज़ आवाज़ करती हुई बुलेट कच्ची पगडण्डी पर दौड़ी चली जा रही थी। सारे रास्ते मैं अनुराधा के बारे में ही सोचता रहा। उसके साथ हुई हमारी बातों के बारे में सोचता रहा। आज उससे बातें कर के एक अलग ही तरह का एहसास हो रहा था मुझे।



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Behtareen update bhai shaandaar
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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देवनागरी में ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियों, का कोई मेल नही हो सकता और यदि इतने बेहतर तरीके से उसे प्रस्तुत किया गया हो, तो उस से बेहतर कुछ नहीं।
U can read गुजारिश 2, आपको निराशा नहीं होगी
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियां सदैव ही बेहद खूबसूरत होती हैं और यदि उन्हें देवनागरी लिपि में लिखा गया हो, तो उसका कोई मुकाबला हो ही नही सकता। वैसे तो मैं अधिकतर “एडल्टरी" सेक्शन से थोड़ा दूर ही रहता हूं, क्योंकि आज तक जितनी भी एडल्टरी कहानियां मैंने इस फोरम पर पढ़ी हैं, ज्यादातर में निराशा ही हुई। कारण, कहानी के नाम पर केवल एक ही चीज़ का होना... :sex: खैर, जितनी भी एडलटरी कहानियां मैने पढ़ी हैं, उनमें से यदि कोई सबसे भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है, तो वो यही है। कुछ महीने पहले ही इस कहानी पर नज़र पड़ी थी, परंतु जब ज्ञात हुआ के ये कहानी अधूरी छूट गई है, तो निश्चित ही काफी दुख हुआ, परंतु अच्छा लगा देखकर के आपने एक दफा फिर कहानी को शुरू कर दिया है, आशा है इस बार इसे अंजाम तक आप पहुंचा ही दोगे, वैसे भी अधूरी कहानियां आपके नाम के साथ मेल नही खाती...:D

कहानी की शुरुआत एक बागी लड़के के साथ हुई थी जो धीरे – धीरे पूरी तरह बदल गया है। वैभव ठाकुर, अर्थात इस कहानी का नायक, एक समय पर अपने पिता और अपने खानदान के नाम को मलिन करने का हर संभव प्रयास करने वाले लड़के में आए ये परिवर्तन निश्चित ही चौंका देने वाले हैं। परंतु कहीं न कहीं वैभव का ये “कायाकल्प" व्यर्थ ही नहीं हुआ है। 4 महीने भारी कष्टों को उठाने के बाद ही शायद वो उस सच्चाई को समझ पाया है जिस से वो वर्षों से भागता आया था। कर्तव्यबोध, यही एक ऐसा मार्ग है जो आवारा से आवारा व्यक्ति को कर्म के पथ पर लौटा देता है और निश्चित ही, वैभव को अपने कर्तव्यों का, अपने धर्म का बोध हो चुका है। वैभव के चरित्र में कितनी भी खामियां हों या कितने भी गुनाह उसने आज तक किए हों, परंतु उसे पूरी तरह गलत नही ठहराया जा सकता।

किसी के घर की इज्ज़त के साथ खेलना, वैभव जैसे को शोभा तो नही देता, परंतु इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता के उसने आज तक जितनी भी लड़कियों – औरतों को भोगा है, वो उनकी सहमति से ही भोगा है, ना कि उनके साथ किसी प्रकार की ज़ोर – ज़बरदस्ती करके... रागिनी की ओर वैभव का आकर्षित होना, एक बार फिर इसे जायज़ नही ठहराया जा सकता,आखिर भाभी को सदियों से मां समान ही माना गया है... परंतु वैभव के इन कृत्यों और सोच की जड़ें काफी पुरानी हैं, बंदिशें तो शायद किसी को भी पसंद नही होती, परंतु कोई – कोई ऐसा भी होता है जो थोड़ी भी रोक – टोक बर्दाश्त नहीं कर पाता, वैभव उन्ही में से एक है। बचपन से ही इसी सोच के साथ वो बड़ा हुआ, और फिर मेरी दृष्टि में अपने पिता द्वारा लगातार अंतराल पर मिलने वाली सज़ा के कारण वो ढीठ भी हो गया। जब कोई नवयुवक इस स्थिति में पहुंच जाता है, जहां ना उसे अपने माता – पिता का भय रहता है और ना ही उनके सम्मान की परवाह, अक्सर ऐसे में वो वैभव समान ही दिखने लग जाता है।

वैभव की दृष्टि अपनी चाची, मेनका पर भी बिगड़ी अवश्य थी, परंतु साथ ही उसे अपनी गलती का भान भी हो गया, परंतु क्या ये केवल एक ही बार के लिए था? शायद नहीं, एक बार संभोग की लत लग जाने के बाद, वैभव को उसके अभाव में इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। परंतु, देखने योग्य रहेगा के क्या वो अपनी नियत अपनी घर की महिलाओं पर भी खराब कर लेगा, या अभी उसमें कुछ मर्यादा शेष है... रागिनी के प्रति आकर्षण महसूस करने की बात को यदि दरकिनार कर दिया जाए, तो ये तो स्पष्ट है के वैभव पूरे दिल से उसका सम्मान करता है, और उसके दुख को महसूस भी कर पाता है... खैर, वैभव के चरित्र में आए इन आकस्मिक बदलावों से जहां दादा ठाकुर और जगताप बेहद खुश हैं, वहीं साहूकारों का हैरान – परेशान होना भी पूरी तरह अपेक्षित ही है। मणिशंकर और उसके भाइयों के चरण स्पर्श करना, यहां तक की उनके बेटे, जो वैभव से आयु में बड़े हैं, उन्हें यूं सम्मान देना, आसानी से हज़म हो जाने वाले काम नही किए हैं वैभव ने पिछले कुछ समय में। निश्चित ही इन बदलावों का गहरा प्रभाव होने वाला है, ठाकुरों पर, साहूकारों पर, गांव पर और उस सफेदपोश पर भी।

मुरारी की हत्या इस कहानी के प्रथम रहस्य के रूप में सामने आई, जिसका इल्ज़ाम वैभव के माथे आया। हालांकि, कुछ ही अंतराल के बाद जगन और बाकी सभी को भी पूर्ण विश्वास हो गया था के वैभव का इस सबसे कोई नाता नहीं था। हां, एक तरह से नाता था शायद,आखिर मुरारी की हत्या वैभव और ठाकुरों से रंजिश और बैर का ही नतीजा थी। खैर, इस मामले में पुख्ता रूप से कोई जानकारी निकलकर सामने नही आई है, परंतु फिलहाल के लिए वही सफेदपोश संदेह के दायरे में खड़ा नज़र आता है। दरोगा को भी अभी तक कोई पुख्ता सबूत या कोई कड़ी हाथ नही लगी है, परंतु जिस प्रकार से पिछले कुछ समय में उस सफेदपोश की योजनाएं असफल हुई हैं, बौखलाहट में गलती हो सकती है, जिसका फायदा दरोगा को उठाना होगा। जगन भी शुरुआत में रहस्मयी सा लगा था, कहीं न कहीं उसपर भी संदेह बना ही हुआ था, मुरारी के कत्ल को लेकर, हालांकि फिलहाल के लिए जगन सकारात्मक किरदार लग रहा है, परंतु वो मुरारी का कातिल हो सकता है, अभी भी मेरा यही मानना है। खैर, मुरारी की तेरहवीं सही तरीके से हो गई, जिसमें वैभव का ही हाथ था। देखते हैं मुरारी के कत्ल और कातिल की हकीकत कब तक बाहर आती है।

रूपचंद्र ही एक ऐसा साहूकारों से जुड़ा व्यक्ति है, जो अभी तक सबसे ज्यादा संदेहपूर्ण रहा है। हां, गौरव का नाम भी सामने आया है, परंतु रूपचंद्र काफी शातिर और रहस्यमयी जान पड़ता है। पहले अनुराधा के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास, और फिर रजनी के साथ उसके संबंध, यहां गौर करने वाली बात ये है की, रजनी और रूपचंद्र के बीच हो रहे संभोग वाले दृश्य, में कहीं ऐसा नही लगा के रजनी किसी दबाव में आकर वो सब कर रही हो, अलबत्ता यही प्रतीत हुआ को उस सबमें रजनी की पूर्णरूपेण सहमति थी। अब इनके संबंध की शुरुआत कैसे हुई ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा, परंतु एक बात साफ है के रजनी और उसकी सास प्रभा,दोनो ही भरोसे के काबिल नही हैं, और इनमें से किसी पर भी भरोसा करना वैभव के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। खैर, रूपचंद्र का निशाना वैभव तो है ही, परंतु वो कुसुम के जरिए वैभव से बदला लेना चाहता है, कारण, उसे रूपा और वैभव के संबंधों के विषय में सब ज्ञात है। परंतु यहां सवाल ये उठता है की उसे सब ज्ञात हुआ कब, और उसके बाद भी उसने कुछ किया क्यों नहीं? और क्या अब, जब साहूकारों और ठाकुरों के संबंध बदले हैं, तब भी रूपचंद्र कुसुम को अपना निशाने बनाए रखेगा? क्या अब भी वो वैभव से सीधे तौर पर जंग करने की कोशिश करेगा, या फिर...?

चेतन और सुनील को साहूकारों और मुंशी के परिवार के पीछे लगाने का वैभव का फैसला कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते वो दोनो भी वैभव के खिलाफ ना हों। वैसे भी ऐसे दोस्त, कभी भी सच्चे नही होते, वैभव से दोस्ती केवल लड़कीबाजी और आर्थिक विकास का ही परिणाम है, वरना मुझे नही लगता के वैभव के जीने – मरने से इन्हे कोई अंतर पड़ेगा। बात करें रूपा को तो, निश्चित ही बेहद सुंदर चरित्र के रूप में सामने आई है वो। शुरुआत में तो वैभव की पहचान और उसके चरित्र को जानकर, रूपा ने उससे दूरी बना ली थी, परंतु धीरे – धीरे वो वैभव से प्रेम करने लगी और इसी प्रेम में बहकर रूपा ने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया। यहां यदि रूपा को भी संदेह की नज़र से देखा जाए तो, कहीं भी ऐसा प्रतीत नही होता के वो भी वैभव के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हो सकती है। फिलहाल के लिए तो नही,आगे चलकर...? या शायद हो भी सकता है, के रूपा अब भी वैभव के ही विरुद्ध हो, जब वैभव ने साहूकारों के प्रति अपना संदेह ज़ाहिर किया था, तब उसके बदले भाव, रूपचंद्र को उसकी सच्चाई ज्ञात होना, देखते हैं इन सबका क्या अर्थ निकलता है...

वैसे इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता के वैभव के लिए रूपा निश्चित ही और लड़कियों से भिन्न है, शायद अनुराधा अभी के लिए वैभव के जीवन में मौजूद सबसे खास लड़की है (परिवार से अलग), परंतु निश्चित रूप से रूपा के प्रति वैभव के अंदर कुछ अलग भाव स्पष्ट नज़र आते हैं... क्या वो भी रूपा से प्रेम कर बैठा है, या नहीं, देखना रोमांचक रहेगा।

दादा ठाकुर, शायद अभी तक इस कहानी का सबसे रौबदार और सशक्त किरदार, वैभव को गांव से निष्कासित करने की जो वजह उन्होंने वैभव को बताई वो अर्धसत्य है, इसमें कोई दोराय नहीं। साहूकारों और ठाकुरों के बीच की अनबन की असली वजह भी अभी तक वैभव को नही बताई गई है। और निश्चित ही कई ऐसी बातें होंगी, जो दादा ठाकुर सबसे छुपाते फिर रहें होंगे। वो तो भला हो रागिनी का,वरना अभिनव को लेकर भविष्यवाणी के बारे में भी वैभव कभी ना जान पाता। और इसी प्रकार के किरदारों से मुझे सख्त चिढ़ है, जब तक गर्दन पर तलवार और सर पर मौत ना आ जाए, इनका मुंह नही खुलता। खैर, देखते हैं, कब ये सारा सच वैभव के सामने प्रकट करेंगे। जगताप का किरदार अभी तक अपने बड़े भाई के लक्ष्मण जैसा ही रहा है, जिसके लिए दादा ठाकुर ही सर्वोपरि है, वैभव के लिए भी वो अपने भीतर प्रेम भाव रखते हैं, आगे चलकर इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है।

रागिनी... अक्सर ही सुंदरता के प्रति आकर्षण हो ही जाता है, और वैभव को भी रागिनी, जिसका विवरण अब तक सुंदरता की मूरत के रूप में मिला है, उसके प्रति आकर्षित होने में देर नहीं लगी। रागिनी अभी तक एक बेहद सहनशील और सुलझी हुई किरदार के रूप में सामने आई है। अपने पति के लिए अल्पायु की भविष्यवाणी, घर में चल रही चीज़ें,वैभव का घर से कुछ समय पहले तक निर्मोही होना,और अभिनव का उसके प्रति रूखा व्यवहार... सब कुछ सहकर भी वो केवल और केवल अपने परिवार के लिए ही सोच रही है, और अपने दुख को अपने अंदर ही ज़ब्त कर, मुस्कुराने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कहीं न कहीं अचानक से ही वैभव और रागिनी के बीच आया नजदीकियां, संदेहपूर्ण तो थी। लगा था के शायद रागिनी के मन में भी वैभव के प्रति आकर्षण है, और फिर उसका वैभव से ये कहना के उसने खुद भी मन ही मन पाप तो किए हैं, लगा जरूर था के इसी ओर रागिनी का इशारा था। परंतु वैभव को अपने छोटे भाई के रूप में देखने वाली बात से उसने सभी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया। हालांकि, अब भी उसके “मन की उन बातों" को जानना रोचक रहेगा। देखते हैं रागिनी और अभिनव का आगे चलकर क्या होता है।

अभिनव भी अभी तक पूरी तरह खुलकर सामने नही आया है, होली वाले दिन शायद वो नशे में वैभव से वो बर्ताव कर बैठा, पर अगले ही दिन उसने वैभव पर हाथ भी उठा दिया। अभिनव का व्यवहार सभी के लिए रूखा हो चुका है। यहां तक की अपनी पत्नी के लिए भी। इसका कारण उसके अल्पायु होने के भविष्यवाणी हो सकती है। परंतु फिर उसका व्यवहार, विभोर और अजीत के लिए सामान्य क्यों है? सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो मेरे अनुमान से यही कहानी बनती है की अभिनव की कोई कमज़ोर नस, विभोर और अजीत के हाथ लगी हुई है और उन्ही दोनो के कहने पर वो इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है। उस रात वैभव ने उसे विभोर – अजीत के कमरे से निकलते भी देखा था। पर यहां एक और सवाल खड़ा हो जाता है। रात के वक्त तो, वो दोनो चिलगोजे, कुसुम के कमरे में होते हैं और कुसुम उनके कमरे में। तो या तो वो अपना कार्यक्रम समेट कर वापिस पहुंच गए होंगे या अभिनव कुसुम से ही मिलने गया होगा? पर कहीं न कहीं यही अंदेशा है के वो दोनो ही अभिनव को किसी चीज़ के जरिए मजबूर कर रहें हैं।

यहीं पर यदि दोनो भाइयों की बात की जाए तो दोनो अव्वल दर्ज़ के चूतियों के रूप में सामने आते हैं। वैसे तो वैभव हमेशा ही सबसे अलग रहा है पर फिर भी एक बार को मान लिया जाए के किसी कारण वो वैभव से नफरत करते हैं। पर कमीनों ने अपने गुनाहों में कुसुम को भी घसीट लिया। यहां तक की किसी वजह से उसे मजबूर भी कर रहें हैं, और हद तो ये है की उस कमीनी नौकरानी को भी वो वजह शायद पता है। अर्थात, वैभव को नुकसान पहुंचाने के लिए दोनो लेदड़ों ने अपनी ही सगी बहन की कमजोर नब्ज़ एक नौकरानी के हाथ में थमा दी? और वो दो कौड़ी की नौकरानी अब कुसुम पर रौब झाड़ रही होगी। बिना किसी संदेह के ये दोनो सजा, और भयंकर सजा के पात्र हैं। उस नौकरानी को भी जल्द ही वैभव को कब्जे में कर लेना चाहिए, वो एक बढ़िया जरिया बन सकती है विभोर और अजीत की हकीकत जानने का।

कुसुम अभी तक बहुत ही चंचल और साथ ही साथ, एक समझदार लड़की के रूप में सामने आई है। अपने भाइयों द्वारा अपने ऊपर किए जा रहे अत्याचार के कारण, वो काफी समझदार हो चुकी है। और बेचारी को मजबूरन अपने उस भाई को, जिसे वो जान से ज्यादा चाहती है, उसे ही चाय में मर्दांगी छीन लेने की दवा मिला कर देनी पड़ रही है। क्या कुसुम जानती है के चाय में उसके दोनो भाई क्या मिलात हैं, यदि नही तो क्या कभी उसने ये नही सोचा के उसमें ज़हर भी हो सकता है? खैर, सुमन बेहद ही प्यारी लड़की के रूप में रही है अभी तक और इस बात में तनिक भी संदेह नहीं, के वैभव के साथ ये छल करने के कारण, उसकी अंतरात्मा भी चोटिल हो चुकी होगी। निश्चित ही कोई बहुत बड़ी बात है जिसके कारण विभोर और अजीत उसे मजबूर कर रहें हैं, अन्यथा वो कभी ये सब नही करती। देखते हैं कब वो सारा सच वैभव को बताएगी, मेरे खयाल से वैभव को खुद ही उस से सब पूछ लेना चाहिए।

अनुराधा, यदि किसी किरदार ने अभी तक सबसे गहरा प्रभाव इस कहानी पर छोड़ा है तो वो अनुराधा ही है। वैभव जैसे युवक का कायापलट कर देना, वो भी बिना कुछ किए, अनुराधा को बाकी सबसे अलग खड़ा करता है। उसके भीतर शुरू से ही वैभव को लेकर कुछ तो है, वैभव को देखकर उसका शर्माना और मुस्कुराना, उसे देख कर अनुराधा का हड़बड़ा जाना, साफ है के वो वैभव के लिए कुछ न कुछ महसूस करने लगी है। वहीं वैभव भी इस कहानी के सभी किरदारों में से यदि किसी के लिए सबसे भिन्न विचार अपने मन में रखता है तो वो अनुराधा ही है। उसके उभारों को अनजाने में देख लेने के पश्चात वैभव का ग्लानि महसूस करना, इसी ओर संकेत करता है। पर क्या दोनो की जोड़ी कभी बन भी पाएगी? क्या दादा ठाकुर कभी दोनो के लिए राजी होंगे? क्या जगन इनके रिश्ते को अपनी सहमति देगा? परंतु सबसे बड़ी बात, क्या ये दोनो अपने खुद के भावों को समझ एक – दूसरे के सामने उन्हें व्यक्त कर पाएंगे?

खैर, अब इसे किस्मत कहो या कुछ और, वैभव धीरे – धीरे सभी बातों को जान रहा है। पहले अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र, जिसके कारण दादा ठाकुर ने उसे गांव से निष्कासित किया, फिर उस नकाबपोश के बारे में जिसे दादा ठाकुर ने उसकी सुरक्षा के लिए लगाया था, अभिनव की अल्पायु और रागिनी के मनोभाव, और अब विभोर और अजीत का सच, धीरे – धीरे ही सही, वैभव उस रहस्य की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है जो सबसे छिपा है।

अब देखना ये है के वैभव क्या और कैसे करता है! रजनी का मसला हो या रूपचंद्र का... अनुराधा से नजदीकियां और रूपा के लिए उसके मन में उठते भाव... कुसुम और विभोर – अजीत का रहस्य... साहूकारों की असलियत, दादा ठाकुर के राज़... अभिनव का व्यवहार, कई सारे मसले हैं वैभव के सामने जिन्हे उसे एक – एक कर सुलझाना होगा। बहरहाल, वैभव बीच में एक बार शहर भी गया था किसी रहस्मयी कार्य के लिए, वो क्या हो सकता है?


बहुत ही खूबसूरती से कहानी को आप आगे बढ़ा रहे हो भाई। सबसे पहले तो कहानी को आपने पुनः शुरू किया यही बड़ी बात है, अन्यथा इस प्रकार की कहानी यदि अधूरी रह जाती, तो निश्चित ही ये सही ना होता। हिंदी शब्दावली पर बेहतर पकड़ के कारण ही आप इस तरीके से शब्दों की माला पिरो पा रहें हैं, और हर एक शब्द अपनी एक अलग ही मिठास के साथ प्रस्तुत हो रहा है। जैसा मैंने पहले भी कहा, देवनागरी में ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियों, का कोई मेल नही हो सकता और यदि इतने बेहतर तरीके से उसे प्रस्तुत किया गया हो, तो उस से बेहतर कुछ नहीं। आशा है आगे भी आप यूंही लिखते रहेंगे।

तीनों ही अध्याय बेहद शानदार थे भाई। अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
Update ke liye Dhanyawaad Mitra.😁😁😁
 
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