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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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The_InnoCent.....pahale to apaaka bahut bahut dhanyavad Jo aapane itani acchi kahani likhi aur ham sabako isse padhane ka mauka diya....it's one of my favourite story in this platform...last but not least thanks aapane mere Dil ki hasrat Puri kar di...kab se wait kar rahi thi vaibhav aur ragini ki shadi...shadi ke un dono me hone wali bate aur dono romance....apane bta Diya ki sex scene na hote huye story ko kase erotic way me pesh kiya jta hai...I was experiencing like Mai raghini hun aur vaibhav ke sath bat kr rahi hun....ek alag he Nasha tha....Thanks a lot and all the best for new stories...aise he story dete jao 🤭
Thanks dear
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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तीनो ही अपडेट बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है awesome, fantastic amazing and lovely story
कहानी का अंत बहुत ही सुखद तरीके से किया है साथ ही मेरे हिसाब से तो अपने सुहागरात का जो चित्रण किया है वह भी बहुत ही शानदार था रागिनी वैभव और रूपा के मिलन का चित्रण बहुत ही शानदार और लाजवाब था खैर ओर भाईयो की तरह मुझे ज्यादा लिखना नहीं आता है लेकिन जो भी लिखा है वह दिल से लिखा है सच में आपकी लेखनी शानदार है
आपकी कहानी के बारे में जितना लिखू उतना कम है मेरे पास शब्द नहीं है आपकी तारीफ के बारे में लिखने के लिए । साथ ही आशा करता हूं कि आप एकदम फ्रेश होकर एक नई कहानी की शुरुआत करेंगे आपका नई कहानी के साथ इंतजार रहेगा । अगर आप फोरम पर बने रहेंगे तो मुझे लगेगा कि मेरा भाई मेरे साथ है thanks a lot ऐसी कहानी लिखने के लिए🥰🥰🥰🥰🥰🥰
Thanks sanju bhai...for your love and support :hug:
 

The_InnoCent

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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एक और स्टोरी को ' द एंड ' तक पहुंचाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शुभम भाई ।
और इस बात के लिए भी आपको आभार कि मेरी दो इच्छाओं मे कम से कम एक को आपने संज्ञान मे लिया और रूपा का कन्यादान सरोज के हाथों करवाया ।
मेरे लिए यह लम्हा इस क्लाइमेक्स का सबसे बेहतरीन और संवेदनशील लम्हा था ।
अनुराधा की रूह जहां भी होगी यह देखकर बहुत खुश होगी ।
Rupa ka kanyadan saroj ko hi lena tha aur ye main pahle hi likh chuka tha, aapne jab ye baat suggest ki to main ye soch ke muskura utha tha ki aap wahi suggest kar rahe hain jo main already likh chuka hu. Iska matlab ye bhi hua ki kahi na kahi hamari soch match kar rahi thi... :five:

Jaise ka ki pahle bhi bataya tha ye story starting time me alag concept ke sath start hui thi but fir thrill, suspense and mystery add kiya to sab kuch alag ho gaya. Aise me title ko justify karna challenge ho gaya tha. End me anuradha ke sath jo hua use preti apna prem show karne ke liye aisa end likha....I know title ke sath completely justify nahi ho saka but koshish thi ki kuch to ho... :D
सुहागरात के मौके पर रागिनी ने एक ऐसा बम फोड़ा जिसकी कल्पना कोई नही कर सकता था । वो वैभव को अपना दिल दे बैठी थी और वो भी तबसे जब उनका हसबैंड जिंदा था और तब भी जब वो विधवा हो चुकी थी । शायद इसीलिए कहा गया है औरतों को समझना बहुत बहुत ही कठिन है ।
शायद उनके कोई पुण्य कर्म रहे होंगे जिसकी वजह से उनके अरमान पुरे हो गए । अनहोनी भी होनी मे बदल गई ।
Isi ka sanket de raha tha main aapko aur yahi ek vajah bhi hai ki ragini itna asaani se vaibhav ke kareeb aa gai. Warna jis tarah ka uska character tha uske chalte uska itna jaldi kareeb aana possible nahi tha... :D
दादा ठाकुर के परिवार मे आखिरकार सबकुछ ठीक हुआ । बहुत कुछ देखा इस फैमिली ने । अपनो की मौत , महिलाओं का वैधव्य रूप , षड्यंत्र और अपनो की ही साजिश , वैभव का चारित्रिक पतन , मुंशी और उनके लड़के की वजह से सबसे अधिक क्षति ; क्या कुछ नही देखा इन्होने !
यह देखकर भी बहुत बहुत बढ़िया लगा कि साहूकार भी एक भयावह और भयंकर हत्याकांड के बाद आखिरकार जीवन के मुख्यधारा मे आ गए । वैसे साहूकारों ने एक तरह से ठाकुरों से भी अधिक जलजले का सामना किया था ।
Shukar manaaiye maine bahut se matter kahani se remove kar diye warna abhi bahut kuch hona tha. Ye story 300+ pages me hoti... :D
बहुत खुबसूरती के साथ आपने इस कहानी का समापन किया । प्रभू आपको इसी तरह अच्छी अच्छी कहानियाँ लिखने की प्रेरणा दे ।
एक बार फिर से एक खुबसूरत और बेहतरीन कहानी के लिए आपको साधुवाद ।
Thanks for your love and support bhaiya ji :hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अब इस कहानी के बारे में क्या ही बोलूं, समझ नही आ रहा की इतनी अच्छी कहानी पढ़ने को मिली इस बात की खुशी मनाऊं या कहानी खत्म हो गई इस बात कर दुख।

वैसे तो मैं इस forum में बस 3 कहानी पढ़ने को आता हूं, जिसमे एक रुक गई, एक के अपडेट बहुत late से आते हैं।

और बस यहीं कहानी थी जिसके लिए रोज forum पर आता था,इसके खत्म होने के साथ ही forum पर रोज आने का कारण भी खत्म हो गया।

उम्मीद है की आप जल्दी ही नई कहानी के साथ वापस आओगे, और जब आओगे तो please message जरूर करिएगा ताकि मैं फिर से आनंद उठा सकूं आपकी कहानी का
Lekhak aur readers dono ko ek dusre ke sath chalna hota hai. Dono ko ek dusre ko samajhna hota hai, khaas kar readers ko...

Lekhak apne readers bhaiyo se sirf ek hi cheez expect karta hai...aur wo hai behtar support. Support hota hai...lekhak dwara likhi gai kahani ke vishay me bejhijhak ho kar apni pratikriya dena...motivate karna, appreciate karna aur agar kahi bhatkaav dikhe to use guide karna. Yakeen maano dost...agar readers puri imandari se is tarah se support kare to kam se kam mere jaise sadharan lekhak apni story chhod kar kahi nahi ja sakte.....


Maine dekha hai ki yaha par behtar content ke sath story likhna aur use anjaam tak pahucha bahut hi mushkil kaam hai. Iski vajah sirf aur sirf readers hain. 95% readers yahan incest stories padhne aate hain aur mutth maar ke chale jate hain. 5% readers behtar content wali stories padhte hain jinme se I think 2% readers hi lekhak ko support karte huye unke sath chalte hain, baaki 3% silent rahte hain. Aise me kaun sa writer hoga jo frustrate ho kar chala nahi jaayega. harshit1890 aka hariya bhai legendary writer hain wo.... Amazing content hota hai unki story me but readers??? Baat sirf ye nahi hoti ki wo apni personal life me busy hain is liye yaha nahi aate balki baat ye bhi hai ki unka man hi nahi karta. Kyo man karega bhai....3-3 ghante ka samay barbaad kar ke insaan update likhta hai aur usme bhi aisa response mile to kyo man karega likhne ka?? Fir to bhai ek darjan bahane mil jate hain story aage na badhane ke ya story na likhne ke. Well chhodo....
उम्मीद है की आप जल्दी ही नई कहानी के साथ वापस आओगे, और जब आओगे तो please message जरूर करिएगा ताकि मैं फिर से आनंद उठा सकूं आपकी कहानी का

और धन्यवाद समय निकाल कर इतनी अच्छी कहानी लिखने के लिए और entertain करने के लिए, पहले भी कहा है और फिर से कहूंगा की suspence thriller लिखने में आपके योग्य बहुत कम लेखक है इस forum में लेकिन उनमें भी आप सबसे best हो।
Are bhai bhai...Aisa mat kaho, yaha ek se badh kar ek writer hain jo apne aap me legends hain. Main to aisa hu bhai ki mujhme dhariya naam ki cheez hi nahi hai, gusse par control nahi hai. Aap sabke support ki vajah se ab tak yaha hu aur do chaar stories likh daali warna jane kaha gayab ho gaya hota... :D
कहानी की जैसी ending होनी चाहिए थी वैसी ही हुई है, अच्छा लगा रागिनी के जीवन को वापस पटरी पर लौटते हुए देखना।

although मुझे लगता है की कहानी की ending इससे भी अच्छी हो सकती थी, लेकिन ज्यादातर को readers थे उन्होंने इतनी अच्छी कहानी को dull response दिया, अगर सपोर्ट मिला होता तो शायद ये art of the state होता इस फोरम का।
Bilkul bhai...Upar ke comment me yahi to bata raha tha main. Readers chaahe to achha bana de ya fir chaupat kar de...mere jaisa insaan itna kar gaya yahi badi baat hai... :D
my best wishes भाई की अगली बार जब आप नई कहानी लेकर आए तो उसको बहुत अच्छा support मिले बाकी हम तो यही है कहानी पढ़ने के लिए।
Sach kahu to ab 1% bhi man nahi hai kuch likhne ka. Reason bata chuka hu....
usc स्टोरी के लिए बेस्ट wishes
Thanks bhai....USC ke liye story likh chuka hu, bas time nikaal kar thoda thoda editing kar raha hu. Koshish karunga ki jald hi complete ho jaye. I hope aap sabhi ko pasand aayegi...
and फिर से कहूंगा की इस फोरम के सबसे अच्छे लेखक में आप टॉप पर आते हो। नई कहानी लिखने पर अपने इस प्रशंसक को जरूर inform करे।

इंतजार आपकी अगली कहानी का, धन्यवाद इस कहानी के लिए ❣️
Agar bhavishya kuch likhunga to zarur msg karuga dost... :dost:

Thanks for your love and support :hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बहुत ही आउटस्टैंडिंग स्टोरी है भाई
इतने दिनो से साथ में पढ़कर बहुत मजा आया बहुत ही बढ़िया कहानी भाई

उम्मीद है आप जल्द ही नई कहानी स्टार्ट करेंगे और हम सब उसका आनंद उठाएंगे
इंतजार रहेगा भाई
Thanks
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अप्रतिम अप्रतिम अद्भुत लाजवाब और मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव और रागिणी के सुहागरात के समय दोनों के मन की जो असमंस अवस्था थी खासकर वैभव की वो रागिणी ने बहुत ही सुजबुझ से दूर कर दी
बहुत ही सुंदर
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अद्वितीय अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव और रागिणी के बीच का वार्तालाप कितना सुंदर और मनमोहक हैं
रागिणी ने अपने पति वैभव को कितने खुले दिल से बता दिया की वो उन्हे यानी अपने देवर को मन ही मन चाहने लगी थी प्रेम करने लगी थी
दोनों एकाकार होने के पहले रागिणी ने वैभव को किस तरह से उसकी संमती हैं ये क्रिया और उसके सिने छुपके,शब्दों में और अंत में वैभव के ओठों को हलके से चुमकर वैभव को आगे बढने का इशारा दिया फिर क्या दो जिस्म एक जान हो गये
Thanks bhai for your love and support :hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Roopa,vaibhav aur Ragini..ka bhi ab sath chuth gaya. Bahot dukh ho Raha hai kahani khatam ho gai ye soch ke. Roj update ka intezar karta tha ab kuch bacha hi nhi intezar ke liye is xforum me... bahot hi sandar kahni jisne itne time Tak jode rakha sabko ... intezar rahega fir se aapki koi behtreen kahani ka .... dhanyawad
Thanks for your love and support :hug:
 

Napster

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अध्याय - 167
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"क्या हुआ?" रागिनी को कुछ सोचते देख मैंने पूछा____"आप ठीक तो हैं? कोई समस्या तो नहीं है ना?"

"न..नहीं।" उन्होंने कहा____"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ठीक हूं।"

"ठीक है।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"तो फिर आप अब आराम कीजिए। कल रात से आपको ठीक से आराम करने को नहीं मिला है अतः आप अब आराम से लेट जाइए।"

"ह...हां पर।" वो झिझकते हुए बोलीं____"मैं ऐसे नहीं सो पाऊंगी। मे...मेरा मतलब है कि इतने सारे ये गहने पहने और ये भारी सी साड़ी पहने सोना मुश्किल है।"

"ओह! हां।" मैंने उनके पूरे बदन को देखते हुए कहा____"तो ठीक है आप इन्हें उतार दीजिए। मेरा मतलब है कि आपको जैसे ठीक लगे वैसे आराम से सो जाइए।"

रागिनी मेरी बात सुन कर असमंजस जैसी हालत में बैठी कभी मुझे एक नज़र देखती तो कभी नज़रें घुमा कर कहीं और देखने लगतीं। मुझे समझ ना आया कि आख़िर अब उन्हें क्या समस्या थी?

"क्या हुआ?" मैं बेचैनी से पूछ बैठा____"देखिए अगर कोई बात है तो आप बेझिझक बता दीजिए मुझे। आप जानती हैं ना कि मैं आपको किसी भी तरह की परेशानी में नहीं देख सकता। आपको खुश रखना पहले भी मेरी प्राथमिकता थी और अब तो और भी हो गई है। आपको पता है आपकी छोटी बहन कामिनी ने मुझसे जूता चुराई के नेग में मुझसे क्या मांगा था?"

"क...क्या मांगा था उसने?" भाभी ने मेरी तरफ उत्सुकता से देखा।

"यही कि मैं हमेशा उनकी दीदी को खुश रखूं।" मैंने अधीरता से कहा____"उनको कभी दुखी न होने दूं और हमेशा उन्हें प्यार करूं।"

"क...क्या???" रागिनी के चेहरे पर हैरत के भाव उभरे____"उसने ऐसा कहा आपसे?"

"हां।" मैंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"और जवाब में मैंने ऐसा करने का उन्हें वचन भी दिया। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि कामिनी मुझसे नेग के रूप में ऐसा करने का वचन लेंगी। पर मैं खुश हूं कि उन्होंने चंद रुपयों की जगह आपकी खुशियों को ज़्यादा महत्व दिया। ज़ाहिर है उन्हें आपसे बहुत प्यार है।"

"हां।" रागिनी ने गहरी सांस ली____"वो मुझसे बहुत प्यार करती है। हालाकि उसका स्वभाव शुरू से ही शांत और गंभीर रहा था लेकिन मुझसे हमेशा लगाव था उसे। जब उसे पता चला कि मेरा आपसे विवाह करने की बात चली है तब उसे इस बात से बड़ा झटका लगा था। वो फ़ौरन ही मेरे पास आई थी और कहने लगी कि मैं इस रिश्ते के लिए साफ इंकार कर दूं। मैं जानती थी कि वो आपको पसंद नहीं करती थी इसी लिए इंकार करने को कह रही थी लेकिन मैं उस समय कोई भी फ़ैसला लेने की हालत में नहीं थी। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि ऐसा भी कुछ होगा।"

"मैंने भी कल्पना नहीं की थी।" मैंने कहा____"मुझे तो किसी ने पता ही नहीं चलने दिया था। अगर मैं आपको लेने चंदनपुर न जाता तो शायद पता भी न चलता।"

"एक बात पूछूं आपसे?" रागिनी ने धीमें से कहा।

"आपको किसी बात के लिए इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने कहा____"आप बेझिझक हो कर मुझसे कुछ भी पूछ सकती हैं और मुझे कुछ भी कह सकती हैं।"

"मैं ये पूछना चाहती हूं कि क्या आपने ये रिश्ता मजबूरी में स्वीकार किया था?" रागिनी ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर आपके बस में होता तो क्या आप इस रिश्ते से इंकार कर देते?"

"मैं नहीं जानता कि आप क्या सोच कर ये पूछ रहीं हैं।" मैंने कहा____"फिर भी अगर आप जानना चाहती हैं तो सुनिए, सच ये है कि आपकी खुशी के लिए अगर मुझे कुछ भी करना पड़ता तो मैं बेझिझक करता। इस रिश्ते को मैंने मजबूरी में नहीं बल्कि ये सोच कर स्वीकार किया था कि ऐसे में पूरे हक के साथ मैं अपनी भाभी को खुश रखने का प्रयास कर सकूंगा। सवाल आपका था रागिनी। सवाल आपके जीवन को संवारने का था और सवाल आपकी खुशियों का था। मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता था कि आपके चेहरे पर कभी दुख की परछाईं भी पड़े। पहले मेरे बस में नहीं था लेकिन अब है। हां रागिनी, अब मैं हर वो कोशिश करूंगा जिसके चलते आप अपना हर दुख भूल जाएं और खुश रहने लगें। जब मुझे इस रिश्ते के बारे में पता चला था तो शुरू में बड़ा आश्चर्य हुआ था मुझे लेकिन धीरे धीरे एहसास हुआ कि एक तरह से ये अच्छा ही हुआ। कम से कम ऐसा होने से आपका जीवन फिर से तो संवर जाएगा। आपको जीवन भर विधवा के रूप में कोई कष्ट तो नहीं उठाना पड़ेगा। हां ये सोच कर ज़रूर मन व्यथित हो उठता था कि जाने आप क्या सोचती होंगी मेरे बारे में? आख़िर पता तो आपको भी था कि मेरा चरित्र कितने निम्न दर्जे का था। यही सब सोच कर आपसे मिलने चंदनपुर गया था। मैं आपसे अपने दिल की सच्चाई बताना चाहता था। मैं बताना चाहता था कि भले ही हमारे माता पिता ने हमारे बीच ये रिश्ता बनाने का सोच लिया है लेकिन इसके बाद भी मेरे मन में आपके लिए कोई ग़लत ख़याल नहीं आए हैं। अपने दामन पर हर तरह के दाग़ लग जाना स्वीकार कर सकता था लेकिन आपके ऊपर कोई दाग़ लग जाए ये हर्गिज़ मंजूर नहीं था मुझे।"

"हां मैं जानती हूं।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"आपको ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है। सच कहूं तो मुझे भी इसी बात की खुशी है कि इस बारे में मेरी शंका और बेचैनी बेवजह थी। मुझे यकीन था कि आप सिर्फ मेरी खुशियों के चलते ही इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे।"

"सच सच बताइए।" मैंने अधीरता से पूछा____"आप इस रिश्ते से खुश तो हैं ना? आपके मन में जो भी हो बता दीजिए मुझे। मैं हर सूरत में आपको खुश रखूंगा। आपके जैसी गुणवान पत्नी मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है किंतु ये भी सोचता हूं कि क्या मेरे जैसे इंसान का पति के रूप में मिलना आपके लिए अच्छी बात है या नहीं?"

"ऐसा मत कहिए।" रागिनी का स्वर लड़खड़ा गया____"आपको पति के रूप में पाना मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है।"

"क्या सच में???" मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा।

"पहले कभी हिम्मत ही नहीं जुटा पाई थी।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"लेकिन आज शायद इस लिए जुटा पा रही हूं क्योंकि अब मैं आपकी पत्नी बन चुकी हूं।"

"आप ये क्या कह रही हैं?" मैं चकरा सा गया____"मुझे कुछ समझ नहीं आया।"

"क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अनुराधा और रूपा की तरह मैं भी आपसे प्रेम करती होऊंगी?" रागिनी ने ये कह कर मानों धमाका किया____"क्या आप कल्पना कर सकते हैं आपकी ये पत्नी आपको पहले से ही प्रेम करती थी?"

"ये....ये आप क्या कह रहीं हैं???" मेरे मस्तिष्क में सचमुच धमाका हो गया____"अ...आप मुझसे पहले से ही प्रेम करती हैं? ये...ये कैसे हो सकता है?"

"मैं भी अपने आपसे यही सवाल किया करती थी?" रागिनी ने कहा____"जवाब तो नहीं मिलता था लेकिन हां शर्म से पानी पानी ज़रूर हो जाती थी। अपने आपको ये कह कर धिक्कारने लगती थी कि रागिनी तू अपने ही देवर से प्रेम करने का सोच भी कैसे सकती है? ये ग़लत है, ये पाप है।"

मैं भौचक्का सा उन्हें ही देखे जा रहा था। कानों में सांय सांय होने लगा था। दिल की धड़कनें हथौड़े जैसा चोट करने लगीं थी।

"अ...आप तो बड़ी ही आश्चर्यजनक बात कर रहीं हैं।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"यकीन नहीं हो रहा मुझे।"

"जब मुझे ही यकीन नहीं हो रहा था तो आपको भला कैसे इतना जल्दी यकीन हो जाएगा?" रागिनी ने कहा____"अपने देवर के रूप में तो आपको मैं पहले ही पसंद करती थी। हमेशा गर्व होता था कि आपके जैसा लड़का मेरा देवर है। आगे चल कर ये पसंद कब रिश्ते की मर्यादा को लांघ गई मुझे आभास ही नहीं हुआ। फिर जब मैं विधवा हो गई और जिस तरह से आपने मुझे सम्हाला तथा मुझे खुश करने के प्रयास किए उससे मेरे हृदय में फिर से पहले वाले जज़्बात उभरने लगे लेकिन मैं उन्हें दबाती रही। खुद पर ये सोच कर क्रोध भी आता कि ये कैसी नीचतापूर्ण सोच हो गई है मेरी? अगर किसी को भनक भी लग गई तो क्या सोचेंगे सब मेरे बारे में? सच कहूं तो जितना विधवा हो जाने का दुख था उतना ही इस बात का भी था। अकेले में बहुत समझाती थी खुद को मगर आपको देखते ही बावरा मन फिर से आपकी तरफ खिंचने लगता था। ऊपर से जब आप मुझे इतना मान सम्मान देते और मेरा ख़याल रखते तो मैं और भी ज़्यादा आप पर आकर्षित होने लगती। मन करता कि आपके सीने से लिपट जाऊं मगर रिश्ते का ख़याल आते ही खुद को रोक लेती और फिर से खुद को कोसने लगती। ये सोच कर शर्म भी आती कि हवेली का हर सदस्य मुझे कितना चाहता है और मैं अपने ही देवर के प्रेम में पड़ गई हूं। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि ऊपर वाला मेरे जीवन में मुझे ऐसे दिन भी दिखाएगा और मेरे हृदय में मेरे अपने ही देवर के प्रति प्रेम के अंकुर पैदा कर देगा।"

रागिनी एकाएक चुप हो गईं तो कमरे में सन्नाटा छा गया। मैं जो उनकी बातों के चलते किसी और ही दुनिया ने पहुंच गया था फ़ौरन ही उस दुनिया से बाहर आ गया।

"प्रेम का अंकुर फूटना ग़लत नहीं है क्योंकि ये तो एक पवित्र एहसास होता है।" रागिनी ने एक लंबी सांस ले कर कहा____"लेकिन प्रेम अगर उचित व्यक्ति से न हो कर किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाए जो रिश्ते में देवर लगता हो तो फिर उस प्रेम के मायने बदल जाते हैं। लोगों की नज़र में वो प्रेम पवित्र नहीं बल्कि एक निम्न दर्ज़े का नाम प्राप्त कर लेता है जिसके चलते उस औरत का चरित्र भी निम्न दर्ज़े का हो जाता है। यही सब सोचती रहती थी मैं और अकेले में दुखी होती रहती थी। हर रोज़ फ़ैसला करती कि अब से आपके प्रति ऐसे जज़्बात अपने दिल में नहीं रखूंगी लेकिन आपको देखते ही जज़्बात मचल उठते। मैं सब कुछ भूल जाती और आपके साथ हंसी खुशी से नोक झोंक करने लगती। आपको छेड़ती, आपकी टांगें खींचती तो मुझे बड़ा आनंद आता। आप जब नज़रें चुराने लगते तो मुझे अपने आप पर गर्व तो होता लेकिन ये देख कर खुश भी होती कि आप कितना मानते हैं मुझे। मैं खुद ही ये सोच लेती कि शायद आप मुझे बहुत चाहते हैं इसी लिए मेरी हर बात मानते हैं और हर तरह से मुझे खुश रखने की कोशिश करते रहते हैं। कोई पुरुष जब किसी औरत के लिए इतना कुछ करने लगता है तो उस औरत के हृदय में उसके प्रति कोमल भावनाएं पैदा हो ही जाती हैं। अकेले में भले ही मैं इस प्रेम की भावना को सोच कर खुद को कोसती और दुखी होती थी लेकिन आपके साथ होने पर जो खुशियां मिलती उनसे जुदा भी नहीं कर पाती थी। यूं समझिए कि जान बूझ कर हर रोज़ यही गुनाह करती थी क्योंकि दिल नहीं मानता था। क्योंकि दिल मजबूर करता था। क्योंकि आपके साथ दो पल की खुशी पाने की ललक होती थी।"

"अगर आप सच में मुझसे प्रेम करने लगीं थी।" मैंने अपने अंदर के तूफ़ान को काबू करते हुए कहा____"तो आपको मुझे बताना चाहिए था।"

"आपके लिए ये बात बताना आसान हो सकता था ठाकुर साहब।" रागिनी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"लेकिन मेरे लिए कतई आसान नहीं हो सकता था। मैं एक बड़े खानदान की बहू थी। एक ऐसी बहू जिसके सास ससुर को इस बात का गुमान था कि उनकी बहू दुनिया की सबसे गुणवान बहू है। एक ऐसी बहू जिसे उसके सास ससुर अपनी हवेली की शान समझते थे। एक ऐसी बहू जिसे हर किसी ने अपनी पलकों पर बिठा रखा था। एक ऐसी बहू जिसका पति ईश्वर के घर में था और वो एक विधवा थी। सोचिए ठाकुर साहब, अगर ऐसी बहू के बारे में किसी को पता चल जाता कि वो अपने ही देवर से प्रेम करती है तो क्या होता? अरे! उनका तो जो होता वो होता ही लेकिन मेरा क्या होता? इतना तो यकीन था मुझे कि ये बात जानने के बाद भी मेरे पूज्यनीय सास ससुर मुझे कुछ न कहते लेकिन क्या मैं उनके सामने खड़े होने की स्थिति में रहती? सच तो ये है कि उस सूरत में मेरे लिए सिर्फ एक ही रास्ता होता...शर्म से डूब मरने का रास्ता। आप कहते हैं कि मुझे आपको बताना चाहिए था तो खुद बताइए कि कैसे बताती आपको? आप भले ही मेरे बारे में ग़लत न सोच बैठते लेकिन मेरे मन में तो यह होता ही न कि आप यही सोचेंगे कि पति के गुज़र जाने के बाद मैं आपसे प्रेम करने का स्वांग सिर्फ इसी लिए कर रही हूं क्योंकि इसके पीछे मेरी अपनी कुत्सित मानसिकता है।"

"मैं आपके बारे में ऐसा ख़वाब में भी नहीं सोच सकता था।" मैंने अधीरता से कहा।

"मानती हूं।" रागिनी ने कहा____"लेकिन मैं अपने मन का क्या करती? उस समय मन में ऐसी ही बातें उभर रहीं थी जिसके चलते मैं ये तक सोच बैठी थी कि कितनी बुरी हूं मैं जो अपने अंदर की भावनाओं को काबू ही नहीं रख पा रही हूं। कितनी निर्लज्ज हूं जो अपने ही देवर से प्रेम करने लगी हूं।"

"ईश्वर के लिए ऐसी बातें कर के खुद की तौहीन मत कीजिए।" मैं बोल पड़ा____"मैं समझ सकता हूं कि इस सबके चलते आपके मन में कैसे कैसे विचार उभरे रहे होंगे। मैं ये भी समझ सकता हूं कि आपने इसके लिए क्या क्या सहा होगा। सच कहूं तो इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है इस लिए आप ये सब कह कर खुद को दुखी मत कीजिए।"

"आपको पता है।" रागिनी ने उसी अधीरता से कहा____"जब आपके साथ मेरा विवाह कर देने की बात चली थी तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ था। ऐसा लगा था जैसे मैं दिन में ही कोई ख़्वाब देखने लगी हूं। फिर जब यकीन हो गया कि यही हकीक़त है तो उस दिन पहली बार सच्ची खुशी का एहसास हुआ था मुझे। अकेले में अपने सामने यही सोच कर चकित होती थी कि ये कैसा विचित्र संयोग बना बैठा है ऊपर वाला। हालाकि आपसे मेरा विवाह होने की मैंने कभी कल्पना नहीं की थी लेकिन हां ये ज़रूर सोचा करती थी कि काश! मेरी भी किस्मत में ऐसे असंभव प्रेम का मिल जाना लिखा होता। कई दिन तो इस हकीक़त को यकीन करने में ही निकल गए। मेरी मां, मेरी भाभियां और मेरी बहन सब इस बारे में मुझसे बातें करती लेकिन मुझे कुछ समझ ही न आता कि क्या कहूं? उनमें से किसी को बता भी नहीं सकती थी कि मेरे अंदर का सच क्या है? बताने का मतलब था उनका भी यही सोच बैठना कि कितनी निर्लज्ज हूं मैं जो पहले से ही अपने देवर को प्रेम करती आ रही हूं। इस लिए कभी किसी को अपने अंदर के सच का आभास तक नहीं होने दिया। दिखावे के लिए उनसे ऐसी ऐसी बातें कहती जिससे उन्हें यही लगे कि मैं इस रिश्ते के लिए बहुत ज़्यादा परेशान हूं। दूसरी तरफ मैं ये भी सोचने लगी थी कि इस रिश्ते के बारे में अब आप क्या सोच रहे होंगे? कहीं आप भी तो सबकी तरह मुझे ग़लत नहीं सोचने लगे होंगे? हालाकि मुझे यकीन था कि आप ऐसा कभी सोच ही नहीं सकते थे लेकिन मन था कि जाने कैसी कैसी शंकाएं करता ही रहता था। मां, भाभी, कामिनी और शालिनी जब मुझे समझाने आतीं तो उनसे भी दिखावे के रूप में अपनी परेशानी ही ज़ाहिर करती और ये परखने की कोशिश करती कि वो सब इस रिश्ते के बारे में अपने क्या विचार प्रस्तुत करती हैं? आख़िर वो सब क्या सोचती हैं इस संबंध के बारे में? अकेले में मैं अपने नाटक और नासमझी के बारे में सोचती तो मुझे ये सोच कर दुख होता कि सबको कैसे उलझाए हुए हूं मैं। कैसे सबके साथ छल कर रही हूं मैं। वो सब मुझे इतना समझाती हैं और मैं नाटक किए जा रही हूं? सच तो ये था कि किसी से सच बताने की हिम्मत ही नहीं होती थी। मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं किसी से अपने अंदर का सच बता दूंगी तो जाने वो मेरे बारे में क्या क्या सोच बैठेंगी? फिर मैं कैसे उनकी शक भरी नज़रों का सामना कर सकूंगी?"

रागिनी इतना सब बोल कर चुप हुईं तो एक बार फिर से कमरे में सन्नाटा छा गया। मेरे ज़हन में अब भी धमाके हो रहे थे। मैं सोचने लगा था कि क्या अभी और भी ऐसा कोई सच मुझे जानने को मिलने वाला है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता हूं?

"आप ये सब सुन कर परेशान मत होइए।" फिर रागिनी ने कहा____"मैं तो ये सब आपको भी न बताती लेकिन इस लिए बताया क्योंकि अब आप मेरे पति हैं और मैं आपकी पत्नी। आपको अपने बारे में और अपने दिल की बातें छुपाना मेरा धर्म है। मैं आपसे कभी नहीं कहूंगी कि आप ये सब जानने के बाद मुझे प्रेम करें। आप पर अनुराधा का हक़ था, उसके बाद रूपा का हक़ है और मैं उस मासूम का हक़ छीनने का सोच भी नहीं सकती कभी।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस संबंध में आपसे क्या कहूं?" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"आप पहले से मुझे पसंद करती थीं या मुझसे प्रेम करने लगीं थी ये मेरे लिए ऐसी बात है जिसकी मैं कल्पना तक नहीं कर सकता था। अपने दिल का सच बताऊं तो वो यही है कि मैंने हमेशा आपको आदर सम्मान की भावना से ही देखा है। ये सच है कि कभी कभी मेरे मन में आपको देख कर ये ख़याल उभर आता था कि काश! आपके जैसी खूबसूरत और नेकदिल औरत मेरे भी नसीब में होती। आप पर हमेशा आकर्षित होता था मैं। डरता था कि कहीं इस आकर्षण के चलते किसी दिन मुझसे कोई गुनाह न हो जाए इस लिए हमेशा आपसे दूर दूर ही रहता था। आपकी पवित्रता पर किसी कीमत में दाग़ नहीं लगा सकता था मैं। आप हर तरह से हमारे लिए अनोखी थीं। ख़ैर छोड़िए इन बातों को। मुझे आपका सच जान कर आश्चर्य तो हुआ है लेकिन कहीं न कहीं खुशी भी हो रही है कि आपके दिल में मेरे प्रति प्रेम की भावना है। एक बार फिर से ऊपर वाले को धन्यवाद देता हूं कि उसने मुझ जैसे इंसान के जीवन में अनुराधा, रूपा और आपके जैसी नेकदिल औरतों को भेजा। अनुराधा के जाने का दुख तो हमेशा रहेगा क्योंकि उसी की वजह से मैं प्रेम के मार्ग पर चला था किंतु आप दोनों का अद्भुत प्रेम पा कर भी मैं अपने आपको खुश किस्मत समझता हूं। अच्छा अब बातें बंद करते हैं। रात ज़्यादा हो गई है। आपको सो जाना चाहिए।"

मेरी बात सुन कर रागिनी ने सिर हिलाया और फिर झिझकते हुए पलंग से नीचे उतरीं। मेरे देखते ही देखते उन्होंने झिझकते हुए अपने गहनें निकाल कर एक तरफ रख दिए। फिर वो मेरी तरफ पलटीं। मेरी धड़कनें फिर से तेज़ हो गईं थी। मैं जानता था कि विवाह के बाद पति पत्नी सुहागरात भी मनाते हैं लेकिन हमारे बीच ऐसा होना कितना संभव था ये हम दोनों ही जानते थे।

"वो आप उधर घूम जाइए ना।" उन्होंने झिझकते हुए कहा तो मैंने फ़ौरन ही लेट कर दूसरी तरफ करवट ले ली। मैं सोचने लगा कि अब वो अपने कपड़े उतारने लगेंगी, उसके बाद वो मेरे पास आ कर मेरे साथ लेट जाएंगी।

कुछ देर बाद पलंग में हलचल हुई। मैं समझ गया कि वो अपने कपड़े उतार कर या फिर दूसरे कपड़े पहन कर पलंग पर सोने के लिए आ गईं हैं। मैंने महसूस किया कि हमारे बीच कुछ फांसला था। मैं सोचने लगा कि क्या मुझे उनसे कुछ कहना चाहिए? मेरा मतलब है कि क्या मुझे उनसे सुहागरात के बारे में कोई बात करनी चाहिए? मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा।

"स...सुनिए।" काफी देर की ख़ामोशी के बाद सहसा रागिनी ने धीमें से मुझे पुकारा____"सो गए क्या आप?"

"न...नहीं तो।" मैं फ़ौरन ही बोल पड़ा किंतु फिर अचानक ही मुझे एहसास हुआ कि मुझे फ़ौरन नहीं बोल पड़ना चाहिए था। क्या सोचेंगी अब वो कि जाने क्या सोचते हुए जग रहा हूं मैं?

"वो...मैंने दिन में सो लिया था न।" फिर मैंने उनकी तरफ पलटते हुए कहा____"इस लिए इतना जल्दी नींद नहीं आएगी मुझे लेकिन आप सो जाइए।"

"हम्म्म्म।" उन्होंने धीमें से कहा____"वैसे रूपा को कब ब्याह कर लाएंगे आप?"

"आज का दिन तो गुज़र ही गया है।" मैंने कहा____"तो इस हिसाब से चौथे दिन जाना होगा।"

"त...तो फिर जब मेरी छोटी बहन आपकी पत्नी बन कर यहां आ जाएगी।" रागिनी ने जैसे उत्सुकता से पूछा____"तो क्या वो भी इसी कमरे में हमारे साथ रहेगी या फिर...?"

"इस बारे में क्या कहूं मैं?" मैं उनकी इस बात से खुद भी सोच में पड़ गया था, फिर सहसा मुझे शरारत सी सूझी तो मुस्कुराते हुए बोला____"वैसे तो शायद मां उसे दूसरे कमरे में रहने की व्यवस्था करवा सकती हैं लेकिन अगर आपकी इच्छा हो तो उसको अपने साथ ही इस कमरे में सुला लेंगे। मुझे तो कोई समस्या नहीं है, क्या आपको है?"

"धत्त।" रागिनी एकदम से सिमट गईं____"ये क्या कह रहे हैं?"

"बस पूछ ही तो रहा हूं आपसे।" मैं मुस्कुराया____"जैसे आप मेरी पत्नी हैं वैसे ही वो भी तो मेरी पत्नी ही होगी और पत्नी तो अपने पति के साथ ही कमरे में रहती हैं।"

"हां ये तो है।" रागिनी ने कहा____"लेकिन वो भी अगर साथ में रहेगी तो कितना अजीब लगेगा मुझे। मुझे तो बहुत ज़्यादा शर्म आएगी।"

"शर्म किस बात की भला?" मैंने पूछा।

"व...वो...मुझे नहीं पता।" रागिनी को जैसे जवाब न सूझा।

"अब ये क्या बात हुई?" मैं मुस्कुरा उठा। मेरा हौंसला धीरे धीरे बढ़ने लगा____"आपको उसके साथ रहने से शर्म तो आएगी लेकिन क्यों आएगी यही नहीं पता आपको? ऐसा कैसे हो सकता है?"

"क्योंकि ये अच्छी बात नहीं होगी इस लिए।" उन्होंने झिझकते हुए कहा____"वो आपकी पत्नी बन कर आएगी तो उसे आपके साथ अकेले में रहने का अवसर मिलना चाहिए। मेरे सामने वो बेचारी आपसे कुछ कह भी नहीं पाएगी। उसका कुछ कहने और करने का मन होगा तो वो कर भी नहीं पाएगी। इस लिए उसका आपके साथ दूसरे कमरे में रहना ही ठीक होगा।"

"वैसे क्या नहीं कर पाएगी वो?" मैंने ध्यान से उनकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या कुछ करना भी होता है?"

"ह...हां...नहीं...मतलब।" वो एकदम से हकलाने लगीं____"क...क्या आपको नहीं पता?"

"कैसे पता होगा भला?" मैं मुस्कुराया____"पहली बार तो विवाह हुआ है मेरा। मुझे क्या पता विवाह के बाद क्या क्या होता है? आपको तो पता होगा ना तो आप ही बताइए।"

मेरी इस बात से रागिनी इस बार कुछ न बोलीं। मैंने महसूस किया कि एकदम से ही उनके चेहरे पर संजीदगी के भाव उभर आए थे। मैं समझ गया कि मेरी इस बात से उन्हें अपने पूर्व विवाह की याद आ गई थी जिसके चलते यकीनन उन्हें बड़े भैया का भी ख़याल आ गया होगा। मुझे खुद पर गुस्सा आया कि मैंने ऐसी बात कही ही क्यों उनसे?

मैं हिम्मत कर के उनके पास खिसक कर आया और फिर हाथ बढ़ा कर उन्हें अपनी तरफ खींच लिया। वो मेरी इस क्रिया से पहले तो चौंकी, थोड़ी घबराई भी लेकिन फिर जैसे खुद को मेरे हवाले कर दिया। हालत तो मेरी भी ख़राब हो गई थी लेकिन मैंने भी सोचा कि अब जो होगा देखा जाएगा। वैसे भी मैं उन्हें इस वक्त किसी बात से दुखी नहीं करना चाहता था।

मैंने रागिनी को थोड़ा और अपने पास खींचा और खुद से छुपका लिया। मैंने महसूस किया कि उनका नाज़ुक बदन हल्के हल्के कांप सा रहा था।

"माफ़ कर दीजिए मुझे।" फिर मैंने उनके मन का विकार दूर करने के इरादे से कहा____"मेरा इरादा आपको ठेस पहुंचाने का या दुखी करने का नहीं था। मैं तो बस आपको छेड़ रहा था, ये सोच कर कि शायद आपको भी इससे हल्का महसूस हो।"

"आ...आप माफ़ी मत मांगिए।" उन्होंने मुझसे छुपके हुए ही कहा____"मैं जानती हूं कि आप मुझे दुखी नहीं कर सकते।"

"चलिए इसी बहाने कम से कम आप मेरे इतना पास तो आ गईं।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"आपको इस तरह खुद से छुपका लिया तो एक अलग ही एहसास हो रहा है मुझे। क्या आपको भी हो रहा है?"

"हम्म्म्म।" उन्होंने धीमें से कहा।

"तो बताइए ना कि विवाह के बाद क्या होता है?" मैंने धड़कते दिल से पूछा।

"वो तो आपको पता ही होगा।" उन्होंने मेरे सीने में खुद को सिमटाते हुए कहा____"मुझे कुछ नहीं मालूम।"

"वाह! तो आप झूठ भी बोलती हैं?" मैं मुस्कुरा उठा____"वो भी इतने मधुर अंदाज़ में, जवाब नहीं आपका।"

मेरी बात सुन कर वो और भी ज़्यादा सिमट गईं। मैं समझ सकता था कि उन्हें इस बारे में बात करने से शर्म आ रही थी। मैं ये भी समझ सकता था कि वो चाहती थीं कि मैं ही पहल करूं। अगर ऐसा न होता तो वो इस वक्त मुझसे छुपकी लेटी ना होती।

"ठीक है।" मैंने बड़ी हिम्मत के साथ कहा____"अगर आप बताना नहीं चाहती तो मैं भी आपको परेशान नहीं करूंगा। अच्छा एक बात पूछूं आपसे?"

"हम्म्म्म।"

"मैंने सुना है कि विवाह के बाद पति पत्नी सुहागरात की अनोखी रस्म निभाते हैं।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"उस रस्म में वो दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और फिर दोनों एकाकार हो जाते हैं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या आप चाहती हैं कि हम भी ये रस्म निभाएं और फिर एकाकार हो जाएं?"

"आ...आपको जो ठ..ठीक लगे कीजिए।" रागिनी ने अटकते हुए धीमें से कहा।

"मैं आपकी इच्छा के बिना कोई कार्य नहीं करूंगा।" मैंने कहा____"आपकी इच्छाओं का और आपकी भावनाओं का सम्मान करना मेरी सबसे पहली प्राथमिकता है। आपको हर दुख से दूर करना और आपको खुश रखना मेरा कर्तव्य है। अतः जब तक आपकी इच्छा नहीं होगी तब तक मैं कुछ नहीं करूंगा।"

मेरी बातें सुन कर रागिनी ने एकदम से अपने हाथ बढ़ाए और मुझे पकड़ कर खुद से जकड़ लिया। शायद मेरी बातें उनके दिल को छू गईं थी। अचानक ही उनकी सिसकियां फूट पड़ीं।

"अरे! क्या हुआ आपको?" मैं एकदम से घबरा गया____"क्या मुझसे कोई ग़लती हो गई है?"

"न..नहीं।" उन्होंने और भी जोरों से मुझे जकड़ लिया, रुंधे गले से बोलीं_____"बस मुझे प्यार कीजिए। मुझे खुद में समा लीजिए।"

"क...क्या आप सच कह रही हैं?" मैं बेयकीनी से पूछ बैठा____"क्या सच में आप चाहती हैं कि मैं आपको प्रेम करूं और हम दोनों एकाकार हो जाएं?"

"ह...हां म...मैं चाहती हूं।" रागिनी कहने के साथ ही मुझसे अलग हुईं, फिर बोलीं____"मैं आपका प्रेम पाना चाहती हूं। पूरी तरह आपकी हो जाना चाहती हूं।"

मैंने देखा उनकी आंखों में आंसू थे। चेहरे पर दुख के भाव नाच रहे थे। मेरे एकदम पास ही थीं वो। उनकी तेज़ चलती गर्म सांसें मेरे चेहरे पर पड़ रहीं थी। तभी जाने उन्हें क्या हुआ कि वो ऊपर को खिसकीं और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता उन्होंने मेरे सूखे होठों को झट से चूम लिया।

मेरे होठों को चूमने के बाद वो फ़ौरन ही नीचे आ कर मेरे सीने में शर्म के मारे छुपक गईं। मैं भौचक्का सा किसी और ही दुनिया में पहुंच गया था। फिर जैसे मुझे होश आया तो मैंने उनकी तरफ देखा।

"ये...ये क्या था रागिनी?" मैंने उत्सुकता से पूछा।

"मे...मेरे प्यार का सबूत।" उन्होंने धीमें स्वर में कहा____"इससे आगे अब कुछ मत पूछिएगा मुझसे। बाकी आपकी पत्नी अब आपकी बाहों में है।"

"क्या सच में?" मैं मुस्कुरा उठा।

सारा डर, सारी घबराहट न जाने कहां गायब हो गई थी। ऐसा लगने लगा था जैसे अब कुछ भी मुश्किल नहीं रह गया था। मैंने बड़े प्यार से उनके चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया। रागिनी ने शर्म से अपनी पलकें बंद कर ली। उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठ थोड़ा सा खुले हुए थे और थोड़ा थोड़ा कांप भी रहे थे। मैं आगे बढ़ा और गुलाब की पंखुड़ियों पर अपने होठ रख दिया। मेरे ऐसा करते ही उनका पूरा बदन कांप उठा। उन्होंने पूरी तरह से खुद को जैसे मेरे हवाले कर दिया था। उनका बदन कांप रहा था लेकिन वो कोई विरोध नहीं कर रहीं थी। खुद से कुछ कर भी नहीं रहीं थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे साथ किसी और ही दुनिया में खोने लगीं थी।

सुहागरात की रस्म बड़े प्रेम के साथ रफ़्ता रफ़्ता आगे बढ़ती रही और हम दोनों कुछ ही समय में दो जिस्म एक जान होते चले गए। रागिनी अब पूर्ण रूप से मेरी पत्नी बन चुकीं थी।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अद्वितीय अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव और रागिणी के बीच का वार्तालाप कितना सुंदर और मनमोहक हैं
रागिणी ने अपने पति वैभव को कितने खुले दिल से बता दिया की वो उन्हे यानी अपने देवर को मन ही मन चाहने लगी थी प्रेम करने लगी थी
दोनों एकाकार होने के पहले रागिणी ने वैभव को किस तरह से उसकी संमती हैं ये क्रिया और उसके सिने छुपके,शब्दों में और अंत में वैभव के ओठों को हलके से चुमकर वैभव को आगे बढने का इशारा दिया फिर क्या दो जिस्म एक जान हो गये
अध्याय - 168
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दो दिन ऐसे ही हंसी खुशी में निकल गए। रागिनी के साथ प्रेम करना बड़ा ही सुखद अनुभव था। वो अब पहले से खुल तो गईं थी लेकिन शर्मा अभी भी रहीं थी। दिन भर तो मैं बाहर ही सबके साथ अपना समय गुज़ारता लेकिन जैसे ही रात में हम दोनों अपने कमरे में पहुंचते तो हम प्रेम क्रीड़ा में खोने लगते। कहने की ज़रूरत नहीं कि पहल मैं ही करता था। वो शर्म के चलते खुद कोई पहल नहीं करती थीं लेकिन मेरे पहल करने पर विरोध भी नहीं करती थीं। कुछ देर बाद जब वो आनंद के तरंग में डूब जातीं तो खुद भी मेरा साथ देने लगतीं थी। चरम सुख के बाद जब मदहोशी का नशा उतरता तो वो मारे शर्म के अपना बेपर्दा जिस्म झट से रजाई के अंदर ढंक लेतीं और खुद भी चेहरा छुपा कर सिमट जातीं। मैं उनके इस अंदाज़ पर बस मुस्कुरा उठता। मुझे उन पर बेहद प्यार आता तो मैं उन्हें अपने सीने से छुपका लेता। फिर हम दोनों एक दूसरे से छुपके ही सो जाते। सुबह मेरे जागने से पहले ही वो उठ जातीं और झट से कपड़े पहन लेतीं।

शाम को गौरी शंकर और रूपचंद्र अपने नात रिश्तेदारों के साथ मेरा तिलक चढ़ाने आए। मैं एक बार फिर से नया दूल्हा बन कर अपनी दूसरी पत्नी को ब्याह कर लाने के लिए तैयार हो गया था। तिलक बड़े धूम धाम से चढ़ा। गौरी शंकर और उसके साथ आए लोग खुशी खुशी घर लौट गए।

चौथे दिन एक बार फिर से हवेली में धूम धड़ाका गूंजने लगा। रूपचंद्र के घर बारात जाने को तैयार हो गई थी। एक बार फिर से बारात में जाने के लिए सब लोग आ गए थे। हवेली के बाहर बैंड बाजा बज रहा था। नाच गाना हो रहा था।

शाम घिरते घिरते बारात निकली। सबसे पहले देवी मां के मंदिर में मैंने नारियल तोड़ा, पूजा की। उसके बाद रूपचंद्र के घर की तरफ चल पड़े। पिता जी ने कोई भेद भाव नहीं किया था। वैसा ही उल्लास और ताम झाम कर रखा था जैसा पहले किया था। मैं एंबेसडर कार में दूल्हा बना बैठा जल्दी ही जनवासे पर पहुंच गया। वहीं पास में ही जनवास था। रूपचंद्र और उसके नात रिश्तेदारों ने सभी बारातियों को जल पान कराया। कुछ समय बाद हम सब गौरी शंकर के घर की ओर चल दिए। रास्ते में विभोर और अजीत आतिशबाज़ी कर रहे थे, बैंड बाजा के साथ नाच रहे थे। जल्दी ही हम लोग गौरी शंकर के घर पहुंच गए।

पूरा घर सजा हुआ था। पूरे चौगान से ले कर बाहर सड़क तक चांदनी लगी हुई थी। द्वार पर फूलों का दरवाज़ा बनाया गया था। बारात जब द्वार पर पहुंची तो सबका फूल मालाओं से स्वागत हुआ। गौरी शंकर मेरे पास आया और मेरी आरती करने के बाद मुझसे अंदर आने का आग्रह किया। मैं खुशी मन से उसके साथ अंदर द्वारचार की रस्म के लिए आ गया। बाहर चौगान में एक जगह पूजा करवाने के लिए पंडित जी बैठे हुए थे। उनके पीछे ढेर सारी औरतें, लड़कियां खड़ी हुईं गीत गा रहीं थी। सामने कुछ औरतें और लड़कियां सिर पर कलश लिए खड़ी थी।

द्वारचार शुरू हुआ। एक तरफ घर वाले बरातियों को चाय नाश्ता परोस रहे थे। कुछ समय बाद द्वारचार की रस्म पूरी हुई। पिता जी ने कलश ली हुई औरतों और लड़कियों को उनका नेग दिया।

द्वारचार के बाद लड़की का चढ़ाव शुरू हुआ जोकि अंदर आंगन में बने मंडप के नीचे हो रहा था। रूपा मंडप में सजी धजी बैठी थी और पंडित जी अपने मंत्रोच्चार कर रहे थे। सभी बारातियों की नज़रें रूपा पर जमी हुईं थी। रूपा आज अपने नाम की ही तरह रूप से परिपूर्ण नज़र आ रही थी। चेहरे पर मासूमियत तो थी ही किंतु खुशी की एक चमक भी थी।

चढ़ाव के बाद क़रीब ग्यारह बजे विवाह का शुभ मुहूर्त आया तो मैं मंडप में पहुंच गया। कुछ देर पूजा हुई उसके बाद रूपा को बुलाया गया। रूपा अपनी बहनों और भाभियों से घिरी हुई आई। ना चाहते हुए भी उसकी तरफ मेरी गर्दन घूम गई। उफ्फ! कितनी सुंदर लग रही थी वो। मेरे अंदर सुखद अनुभूति हुई। वो छुई मुई सी धीरे धीरे आई और मेरे बगल से बैठ गई। उसकी बड़ी भाभी कुमुद पीछे से उसकी चुनरी को ठीक करने लगीं। उसे इस रूप में अपने क़रीब बैठा देख मेरे अंदर खुशी की लहर दौड़ गई और साथ ही धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

बहरहाल, विवाह शुरू हुआ। पंडित जी मंत्रोच्चार के साथ साथ अलग अलग विधियां करवाते रहे। मैं और रूपा उनके बताए अनुसार एक साथ सारे कार्य करते रहे। तीसरे पहर पंडित जी के कहने पर मैंने रूपा की मांग में सिंदूर भरा, उसे मंगलसूत्र पहनाया, फेरे हुए। मैं उस वक्त थोड़ा चौंका जब कन्यादान के समय मैंने सरोज काकी को आया देखा। वो अकेली ही थी। रूपा की मां ललिता देवी कुछ दूरी पर खड़ी देख रहीं थी। मुझे समझते देर न लगी कि रूपा का कन्यादान उसकी अपनी मां नहीं बल्कि उसकी नई मां सरोज करने वाली है। ये समझते ही मुझे एक अलग ही तरह की खुशी का एहसास हुआ। मुझे ऐसा लगा जैसे सरोज रूपा का नहीं बल्कि अनुराधा का कन्यादान करने के लिए मेरे सामने आ कर बैठ गई थी। आस पास बैठे कुछ लोगों को थोड़ी हैरानी हुई। उन्होंने पिता जी से दबी जुबान में कुछ कहा जिस पर पिता जी ने मुस्कुराते हुए उन्हें कोई जवाब दिया। पिता जी के जवाब पर वो लोग भी मुस्कुरा उठे, सबकी आंखों में वाह वाही करने जैसे भाव नुमाया हो उठे।

खैर, सरोज ने नम आंखों से रूपा का कन्यादान किया। वो बहुत कोशिश कर रही थी कि उसकी आंखें नम ना हों लेकिन शायद ये उसके बस में नहीं था। चेहरे पर खुशी तो थी लेकिन वेदना भी छुपी हुई थी। वहीं रूपा उसे बड़े स्नेह भाव से देखने लगती थी।

सुबह होते होते विवाह संपन्न हो गया और रूपा को विदा करने की तैयारी शुरू हो गई। एक तरफ कलावा का कार्यक्रम शुरू हो गया। घर के आंगन में एक तरफ मुझे बैठाया गया। मेरे साथ विभोर और अजीत बैठ गए। मामा की लड़कियां बैठ गईं। उसके बाद कलावा शुरू हुआ। घर की सभी औरतें एक एक कर के आतीं और मुझे टीका चंदन कर के मेरे सामने रखी थाली में रुपए पैसे के साथ कोई न कोई वस्तु नेग में डाल जाती। कुमुद भाभी जब आईं तो मेरा चेहरा और भी बिगाड़ने लगीं। ये सब मज़ाक ठिठोली जैसा ही था। मज़ाक में कुछ न कुछ कहतीं जिससे मैं मुस्कुरा उठता। बहरहाल इसके बाद मैं बाहर चला आया। विदा की तैयारी तो हो ही रही थी किंतु तभी अंदर से किसी ने बाहर आ कर पिता जी से कहा कि उन्हें घर की औरतें यानि उनकी समधिनें बुला रहीं हैं मड़वा हिलाने के लिए। ये भी एक रस्म थी।

पिता जी, बड़े मामा और छोटे मामा को भी अपने साथ अंदर ले गए। वहां अंदर आंगन में मड़वा हिलाने की रस्म होने के बाद उनकी समधिनों ने उन्हें रंगों से रंगना शुरू कर दिया। पिता जी ने तो शांति से रंग लगवा लिया लेकिन मामा लोग शांत नहीं बैठे। बल्कि वो खुद भी जवाब में उन्हें रंग डालने लगे। हंसी मज़ाक का खेल पलक झपकते ही हुड़दंग में बदल गया। आख़िर गौरी शंकर के समझाने पर औरतें शांत हुईं। उसके बाद पिता जी और मामा लोग बाहर आ गए। सबके सब रंग में नहाए हुए थे।

बाहर बैंड बजे जा रहा था। अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं थी। लड़की विदा हो रही थी। माहौल थोड़ा ग़मगीन हो गया। आख़िर ये वक्त किसी तरह गुज़रा और रूपा को कार में मेरे साथ बैठा दिया गया। रूपा अपने घर वालों को देख रोए जा रही थी। थोड़ी देर बाद कार आगे बढ़ चली। पीछे सभी बाराती भी चल पड़े। गौरी शंकर, पिता जी से हाथ जोड़ कर कुछ कहता नज़र आ रहा था जिस पर पिता जी उसके कंधे को हल्के से दबाते हुए उसे आश्वासन सा दे रहे थे।

✮✮✮✮

हम सब थोड़ी ही देर में हवेली पहुंच गए। वहां पहले से ही मां और चाची बाकी औरतों के साथ हमारा स्वागत करने की तैयारी कर चुकीं थी। हवेली के बड़े से मैदान में जैसे ही हम सब पहुंच कर रुके तो परछन शुरू हो गया। एक तरफ बैंड बाजा बज रहा था, नाच शुरू हो गया था। काफी देर तक धूम धड़ाका हुआ। उसके बाद मां के कहने पर मैं और रूपा हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चले। नई बहू के साथ जो विधियां और जो रस्में होती हैं वो एक एक कर के हुईं और फिर पूजा हुई। मां ने रागिनी की तरह ही रूपा से हवेली के द्वार पर हल्की से सनी हथेली का चिन्ह लगवाया।

मैं एक बार फिर से नहा धो कर कमरे में आराम करने के लिए पहुंच गया था। इस बार मैं ऊपर ही अपने कमरे में था। रागिनी नीचे थीं। रात भर का जगा था इस लिए जल्दी ही मैं सो गया। उसके बाद क्या हुआ मुझे पता न चला।

शाम को किसी के हिलाने डुलाने पर नींद खुली तो मैंने देखा रागिनी मुझे हिला रहीं थी। उनके चेहरे पर शर्म के भाव थे। बार बार दरवाज़े की तरफ देखने लगती थीं। मैंने देखा वो सजी धजी थीं और इस वक्त बहुत ही प्यारी लग रहीं थी।

अभी उन्होंने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा ही था कि मैंने लपक कर उनका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींच लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी डर के मारे चीख निकलते निकलते रह गई और वो झोंक में मेरे ऊपर आ गिरी।

"य...ये क..क्या कर रहे हैं आप?" फिर वो बदहवाश सी बोलीं____"छोड़िए न कोई आ जाएगा।"

"आने दीजिए।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने किसी ग़ैर को थोड़े ना पकड़ रखा है, अपनी ख़ूबसूरत पत्नी को पकड़ रखा है।"

"अ..अच्छा जी।" रागिनी घबराई हुई सी बोली____"अब छोड़िए न, मुझे बहुत शर्म आ रही है। कोई आ गया और इस तरह देख लिया तो क्या सोचेगा मेरे बारे में?"

"वो यही सोचेगा कि हवेली की बड़ी बहू अपने पति के साथ प्रेम कर रहीं हैं।" मैंने थोड़ा और ज़ोर से उन्हें खुद से छुपका लिया____"और प्रेम करना तो बहुत अच्छी बात है ना?"

"धत्त।" रागिनी बुरी तरह शर्मा गई____"आपको लज्जा नहीं आती ऐसा बोलने में? बड़ा जल्दी बिगड़ गए आप?"

"अपनी ख़ूबसूरत पत्नी से प्रेम करना अगर बिगड़ जाना होता है तो फिर मैं और भी ज़्यादा बिगड़ जाना चाहूंगा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और मैं चाहता हूं कि आप भी इस मामले में थोड़ा बिगड़ जाएं ताकि प्रेम का अच्छे से आनंद ले सकें।"

"ना जी ना।" रागिनी मेरे सीने में सिमट कर बोली____"बिगड़ना अच्छी बात नहीं होती है। अब छोड़िए मुझे, सच में कोई आ ना जाए।"

"छोड़ दूंगा लेकिन।" मैंने कहा____"लेकिन पहले मुंह तो मीठा करवाइए।"

"म...मुंह मीठा??" रागिनी ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा।

"हां जी।" मैं मुस्कुराया____"आपकी छोटी बहन रूपा आई है। उसके आने की खुशी तो है ना आपको?"

"हां जी, बहुत खुशी है मुझे।" रागिनी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"अ...और आज रात आपको उसके साथ ही सोना है।"

"वो तो ठीक है।" मैं फिर मुस्कुराया____"लेकिन उसके आने की खुशी में मेरा मुंह तो मीठा करवाइए आप।"

"ठीक है छोड़िए फिर मुझे।" रागिनी ने मुझसे छूटने की कोशिश की____"मैं नीचे जा कर आपको मिठाई ले आती हूं।"

"पर मुझे मिठाई से मुंह मीठा थोड़े न करना है।" मैंने कहा____"मुझे तो आपके शहद जैसे मीठे होठों को चूम कर मुंह मीठा करना है।"

"धत्त।" रागिनी ने शर्म से सिर झुका लिया, मुस्कुराते हुए बोलीं____"कितने गंदे हैं आप।"

"लो जी अपनी पत्नी के होठों को चूमना गंदा होना कैसे हो गया भला?" मैंने कहा____"अरे! ये तो प्रेम करना होता है और मैं आपको बहुत ज़्यादा प्रेम करना चाहता हूं। चलिए अब देर मत कीजिए और अपने होठों की शहद से मुंह मीठा करवाइए मेरा।"

रागिनी बुरी तरह शर्मा रहीं थी। मेरे सीने में शर्म से चेहरा छुपाए मुस्कुराए भी जा रहीं थी। मैं जानता था कि अगर मैं पहल करूंगा तो वो विरोध नहीं करेंगी किंतु हां शर्म के चलते खुद ना तो पहल करेंगी और ना ही ये कहेंगी चूम लीजिए।

अतः मैंने दोनों हथेलियों में उनका चेहरा लिया और ऊपर उठाया। उनका चेहरा एकदम शर्म से सुर्ख पड़ गया था। वो समझ गईं थी कि अब मैं उनके होठ चूमे बग़ैर उन्हें नहीं छोडूंगा इस लिए उन्होंने अपनी पलकें बंद कर कर के जैसे मूक सहमति दे दी। मैंने सिर उठा कर उनकी कांपती हुई पंखुड़ियों को पहले हल्के से चूमा और फिर उन्हें होठों के बीच दबा कर उनका मीठा रस चूसने लगा। रागिनी का पूरा बदन थरथरा उठा लेकिन फिर जल्दी ही उनका जिस्म शांत सा पड़ गया। शायद आनंद की अनुभूति के चलते वो खुद को भूलने लगीं थी।

अभी मैं उनके शहद जैसे होठों का रस पी ही रहा था कि सहसा बाहर से किसी की आवाज़ आई जिससे हम दोनों ही बुरी तरह हड़बड़ा गए। रागिनी उछल कर मुझसे दूर हो गईं। तभी कमरे में कुसुम दाख़िल हुई।

"अरे! भाभी आप यहां हैं?" फिर उसने रागिनी को देखते ही थोड़ी हैरानी से कहा____"मैं आपको नीचे खोज रही थी। वो बड़ी मां ने बुलाया है आपको।"

कुसुम ने इतना कहा ही था कि रागिनी ने सिर हिलाया और फिर बिना कुछ कहे फ़ौरन ही बाहर चली गईं। उनके जाते ही कुसुम मेरी तरफ पलटी।

"अब अगर आपकी नींद पूरी हो गई हो तो जा कर हाथ मुंह धो लीजिए" फिर उसने मुझसे कहा____"फिर मैं आपको चाय ले कर आती हूं या कहिए तो भाभी के हाथों ही भेजवा दूं?"

"उनके हाथों क्यों?" मैं चौंका____"मुझे तो अपनी गुड़िया के हाथों ही पीना है।"

"शुक्र है अपनी गुड़िया का ख़याल तो है अभी आपको।" उसने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे लगा भाभी के आते ही आप बाकी सबको भूल ही गए होंगे।"

"क्या कहा तूने।" उसके तंज़ पर मेरी आंखें फैलीं____"रुक अभी बताता हूं तुझे। बहुत बोलने लगी है तू।"

"भूल तो जाएंगे ही भैया।" वो फ़ौरन ही पलट कर दरवाज़े की तरफ भागी, फिर सहसा पलट कर बोली____"अभी तक रागिनी भाभी ही थीं और अब तो रूपा भाभी भी आ गईं हैं। जाने अब आप किसी और को देखेंगे भी या नहीं।"

"तू गई नहीं अभी?" मैं उछल कर पलंग से कूदा____"रुक तू, सच में बहुत बोल रही है तू।"

कुसुम खिलखिला कर हंसते हुए भाग गई। उसके जाने के बाद मैं भी मुस्कुराते हुए वापस पलंग पर बैठ गया। मैं सोचने लगा कि मेरी गुड़िया भी मौका देख कर व्यंग्य बाण चला ही देती है। फिर सहसा मुझे महेंद्र सिंह की बातों का ख़याल आ गया। वो चाची से अपने बेटे के लिए कुसुम का हाथ मांग रहे थे। ज़ाहिर है चाची इस रिश्ते से इंकार कर ही नहीं सकती थीं। इसका मतलब तो ये हुआ कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है जिसके चलते आगे चल कर जल्द ही उसके भी विवाह की बातें होने लगेंगी। मैं सोचने लगा कि कैसे मैं अपनी गुड़िया को विदा होते देख सकूंगा?

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रात खाना पीना कर के मैं अपने कमरे में आ कर लेट गया था। रोहिणी मामी से इत्तेफ़ाकन मुलाकात हो गई थी और वो इस मौके का भरपूर फ़ायदा उठा कर मुझे छेड़ने से नहीं चूकी थीं। उन्होंने ही बताया कि मां ने ऊपर ही एक दूसरा कमरा रूपा के लिए तैयार करवा दिया है। विभोर और अजीत ने मिल कर उसे बढ़िया से सजा भी दिया है।

मैं जानता था कि इस वक्त रूपा खा पी कर अपने कमरे में पहुंच गई होगी और मेरे आने का इंतज़ार कर रही होगी। मन तो मेरा भी था कि झट से उस अद्भुत लड़की के पास पहुंच जाऊं जिसने मुझे नया जीवन ही बस नहीं दिया था बल्कि अपने प्रेम, अपने कर्म से मुझे धन्य भी कर दिया था। तभी रागिनी कमरे में दाख़िल हुईं।

"अरे! आप अभी तक यहीं हैं?" फिर उन्होंने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"आप मेरी मासूम बहन के पास गए नहीं अभी? चलिए उठिए, वो बेचारी आपके आने की प्रतिक्षा कर रही होगी।"

"तो क्या आप खुद मुझे ले कर उसके पास जाएंगी?" मैंने थोड़ी हैरानी से उन्हें देखते हुए पूछा।

"हां बिल्कुल।" रागिनी ने पूरे आत्मविश्वास और दृढ़ता से कहा____"मैं अपनी छोटी बहन को तनिक भी किसी बात के लिए इंतज़ार नहीं करवाना चाहती। चलिए उठिए जल्दी।"

"जो हुकुम आपका।" मैं मुस्कुराते हुए उठा।

उसके बाद रागिनी मुझे ले कर चल पड़ीं। उनके चेहरे पर खुशी के भाव थे। बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि इस वक्त उन्हें किसी बात से कोई तकलीफ़ है। वो पूरी तरह निर्विकार भाव से चल रहीं थी।

"सुनिए, वो अभी नादान है।" फिर जाने क्या सोच कर उन्होंने धीमें से कहा____"बहुत मासूम भी है इस लिए मेरी आपसे विनती है कि उसे किसी भी तरह की तकलीफ़ मत दीजिएगा। मेरी बहन फूल सी नाज़ुक है अतः उसके साथ बहुत ही प्रेम से पेश आइएगा।"

मैं उनकी बात सुन कर मुस्कुरा उठा। ये सोच कर अच्छा भी लगा कि उन्हें रूपा की फ़िक्र है। ख़ैर जल्दी ही हम दोनों रूपा के कमरे के पास पहुंच गए। रागिनी ने खुद आहिस्ता से दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नथुनों में फूलों की खुशबू समा गई। कमरे के अंदर जगमग जगमग हो रहा था।

"देखिए।" रागिनी ने धीमें से कहा____"मेरी फूल सी नाज़ुक बहन पलंग पर फूलों से घिरी बैठी है। अब आप जाइए, और उसको अपना सच्चा प्रेम दे कर उसे तृप्त कर दीजिए।"

"आप भी चलिए।" मैं पलट कर मुस्कुराया____"आप रहेंगी तो शायद मैं सब कुछ अच्छे से कर पाऊं।"

"ना जी।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई____"आप खुद ही बहुत ज्ञान के सागर हैं। मुझे पता है आपको किसी से कुछ जानने समझने की ज़रूरत नहीं है। अब बातें छोड़िए और जाइए।"

रागिनी ने कहने के साथ ही मुझे अंदर की तरफ आहिस्ता से धकेला। मैं मन ही मन मुस्कराते हुए अंदर दाख़िल हुआ तो रागिनी ने पीछे से दरवाज़ा बंद कर दिया।

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रूपा सचमुच पलंग पर फूलों से घिरी बैठी थी। दोनों पांव सिकोड़े और लंबा सा घूंघट किए। दूध सी गोरी कलाइयों से उसने अपने घुटनों को समेट रखा था। जैसे ही उसे अपने पास मेरे पहुंचने का आभास हुआ तो उसने आहिस्ता से सिर उठ कर मेरी तरफ देखा। फिर वो आहिस्ता से आगे बढ़ कर पलंग से नीचे उतर आई। मैं समझ गया कि रागिनी की तरह वो भी मेरे पांव छुएंगी लेकिन मैंने उसे बीच में ही थाम लिया।

"इस औपचारिकता की ज़रूरत नहीं है मेरी जान।" मैंने अधीरता से उसके कंधों को पकड़ कर कहा____"तुम्हारा स्थान मेरे पैरों में नहीं बल्कि मेरे हृदय में हैं। तुम जैसी प्रेम की मूरत को मैं बस अपने हृदय से लगा कर सच्चे प्रेम का एहसास करना चाहता हूं।"

कहने के साथ ही मैंने रूपा को हल्के से अपनी तरफ खींचा और उसे अपने सीने से लगा लिया। वाह! सचमुच उसे सीने से लगाने से एक अलग ही एहसास होने लगा था। उसने खुद भी मुझे दोनों हाथों से समेट सा लिया था।

"आख़िर आप मुझे मिल ही गए।" फिर उसने मुझसे छुपके हुए ही भारी गले से कहा____"देवी मां ने मुझे हमेशा के लिए आपसे मिला दिया। मैं बता नहीं सकती कि इस वक्त मैं कितना खुश हूं।"

"मुझे भी तुम्हें पा कर बहुत खुशी हो रही है रूपा।" मैंने कहा____"मैंने तो अपने लिए कभी इतना अधिक पाने की कल्पना ही नहीं की थी। करता भी कैसे, मेरे जैसे निम्न चरित्र वाला इंसान ऐसी कल्पना भला कर भी कैसे सकता था कि उसके जीवन में कभी तुम्हारे जैसी प्रेम की देवियां आएंगी और मेरा जीवन धन्य कर देंगी।"

"अच्छा ये बताइए।" फिर उसने मुझसे अलग हो कर कहा____"आपने मेरी दीदी को अच्छे से प्यार तो किया है ना? उन्हें किसी तरह का दुख तो नहीं दिया है ना आपने?"

"क्या ऐसा हो सकता था भला?" मैंने बड़े प्यार से उसकी तरफ देखा____"तुम सबके प्रेम ने इतना तो असर डाला ही है मुझ पर कि मैं किसी को तकलीफ़ ना दे सकूं। तुम चिंता मत करो मेरी जान, मैंने उन्हें वैसा ही प्यार किया है जैसा तुम चाहती थी। तुम्हें पता है, अभी वो ही मुझे यहां ले कर आईं थी और कह कर गईं हैं कि मैं उनकी फूल सी नाज़ुक बहन को किसी भी तरह की तकलीफ़ न दूं और बहुत ज़्यादा प्यार करूं।"

"मैं जानती थी।" रूपा ने गदगद भाव से कहा____"मेरी दीदी अपने से ज़्यादा अपनी इस छोटी बहन के बारे में ही सोचेंगी। देवी मां ने मुझे सब कुछ दे दिया है। मुझे आप मिल गए, इतनी अच्छी दीदी मिल गईं, माता पिता के रूप में इतने अच्छे सास ससुर मिल गए और इतना अच्छा परिवार मिल गया। इतना कुछ मिल गया है कि अब कुछ और पाने की हसरत ही नहीं रही।"

"ऐसा मत कहो यार।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"अगर कुछ और पाने की हसरत न रखोगी तो इस वक्त हम प्रेम क्रीड़ा कैसे कर पाएंगे? सुहागरात कैसे मनाएंगे? मुझे तो अपनी रूपा को बहुत सारा प्यार करना है। उसे अपने सीने से लगा कर खुद में समा लेना है। उसे ढेर सारी खुशियां देनी हैं। अपनी रूपा से प्रेम का अद्भुत पाठ पढ़ना है। हां मेरी जान, मुझे तुमसे सीखना है कि किसी से टूट टूट कर प्रेम कैसे किया जाता है? मैं भी अपनी रूपा से टूट कर प्रेम कर चाहता हूं।"

"आपको जैसे प्रेम करना आता हो वैसे ही कीजिए मेरे दिलबर।" रूपा ने कहा____"मैं तो आपकी दीवानी हूं। आप जैसे प्रेम करेंगे उसी में मदहोश हो जाऊंगी, तृप्त हो जाऊंगी। अब जल्दी से प्रेम कीजिए ना, अब क्यों देर कर रहे हैं? मेरा घूंघट उठाइए ना।"

रूपा का यूं अचानक से उतावला हो जाना देख मैं मुस्कुरा उठा। वो बच्चों जैसी ज़िद करती नज़र आई। मुझे सच में उस पर बहुत प्यार आया। मैंने उसे हौले से पकड़ कर पलंग पर सलीके से बैठाया। फिर मैं खुद बैठा और फिर दोनों हाथों से उसका घूंघट उठाने लगा। कुछ ही पलों में उसका चांद सा चमकता चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। सचमुच, बहुत सुंदर थी वो। साहूकारों के घर की लड़कियां एक से बढ़ कर एक सुंदर थीं लेकिन रूपा की बात ही अलग थी। वो जितनी सुंदर थी उससे कहीं ज़्यादा सुंदर और अद्भुत उसका चरित्र था।

"मैं कैसी लग रही हूं जी?" उसने हौले से अपना चेहरा खुद ही ऊपर उठा कर पूछा____"रागिनी दीदी जितनी सुंदर नहीं लग रही हूं ना मैं?"

"ऐसा क्यों कह रही हो?" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"अरे! तुम उनसे कहीं ज़्यादा सुंदर लग रही हो। मेरी रूपा किसी से भी कम नहीं है।"

"ये तो आप मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हैं।" उसने अपनी सीप सी पलकें झपका कर मासूमियत से कहा____"मैं अच्छी तरह जानती हूं कि मेरी दीदी बहुत सुंदर हैं। वो बहुत गुणवान हैं। मुझे खुशी है कि उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।"

"अब ये तुम और तुम्हारी दीदी जानें।" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन जहां तक मेरी बात है तो वो यही है कि मेरी रूपा सबसे सुंदर है। उसके अंदर गुणों की कोई कमी नहीं है। अरे! मेरी रूपा के दिल में सच्चा प्रेम बसता है जो उसे सबसे ख़ास बनाता है। ख़ैर अब ये बातें छोड़ो, और ये बताओ कि आगे का कार्यक्रम शुरू करें या सोना है। वैसे सोना ही चाहिए क्योंकि तुम भी थकी हुई होगी। इस लिए आराम से सो जाओ।"

"अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" रूपा एकदम से चौंकी____"देखिए, ना तो मैं थकी हुई हूं और ना ही मुझे नींद आ रही है। मुझे तो बस अपने प्रियतम को प्यार करना है और ये भी चाहती हूं कि मेरा प्रियतम भी मुझे जल्दी से प्यार करने लगें।"

"ठीक है।" मैं मन ही मन उसकी मासूमियत और उसके निश्छल प्रेम पर आनंदित हुआ____"अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो ऐसा ही करते हैं। वैसे मुंह दिखाई का नेग तो तुमने मांगा ही नहीं मुझसे?"

"आप मुझे मिल गए।" रूपा ने कहा____"इससे बड़ा कोई नेग हो सकता है क्या? ना जी, मुझे कोई नेग वेग नहीं चाहिए। मुझे तो बस अपने जान जी का बहुत सारा प्यार चाहिए। चलिए अब जल्दी से शुरू कीजिए ना। आप तो बातों में सारा समय ही बर्बाद किए जा रहे हैं।"

रूपा ने सहसा बुरा सा मुंह बना लिया तो मेरी हंसी छूट गई। वो सुहागरात मनाने के लिए मानों उतावली हो रही थी। जैसे कोई बच्चा अपनी मनपसंद चीज़ को पाने के लिए उतावला हो जाता है। रूपा इस वक्त बच्चों जैसा उतावलापन दिखा रही थी पर सच कहूं तो मुझे उसकी ये अदा बहुत ही भा रही थी। मेरा जी किया कि उसे सच में अपने अंदर समा लूं।

और फिर मैंने ऐसा ही किया। देर रात तक मैं रूपा को प्यार करता रहा और उसे खुद में समाता रहा। परम संतुष्टि मिलने के बाद पता ही न चला कब हम दोनों की आंख लग गई।

✮✮✮✮

ऐसे ही ज़िंदगी का सफ़र आगे बढ़ने लगा। रागिनी और रूपा के आ जाने से हवेली में फिर से रौनक आ गई थी। मेरे माता पिता तो खुश थे ही मैं भी बहुत ज़्यादा खुश था। मैं पूरी ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने में व्यस्त हो गया था। विभोर और अजीत पढ़ने के लिए वापस विदेश चले गए थे। मेनका चाची अब काफी हद तक सामान्य हो गईं थी। मां भी अब पहले की तरह उन्हें स्नेह देती थीं। शायद उन्होंने सोच लिया था कि जो गुज़र गया अथवा जो हो गया उस बात को ले कर बैठे रहने से आख़िर सिर्फ दुख ही तो मिलेगा। इस लिए उन्होंने सब कुछ भुला कर अपनी दो दो नई बहुओं के साथ हंसी खुशी जीवन यापन करने लगीं थी।

महेंद्र सिंह एक दिन फिर से हवेली आए थे। उन्होंने पिता जी से रिश्ते की बात की तो पिता जी ने इस बार खुशी से रिश्ते के लिए हां कह दिया। मेनका चाची ये बात जान कर खुश हो गईं थी। तय हुआ कि गर्मियों में ये विवाह किया जाएगा।

दूसरी तरफ गौरी शंकर और उसके घर वाले भी अब खुशी खुशी और हमसे मिल जुल कर रहने लगे थे। गांव में विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका था। पिता जी को अधिकारियों ने बताया कि वो जल्द ही अस्पताल में एक चिकित्सक और विद्यालय में कुछ शिक्षकों की नियुक्ति कर देंगे।

मैंने ग़ौर किया था कि रूपचंद्र और उसकी छोटी भाभी नीलम के बीच कुछ चल रहा था। मेरे पूछने पर रूपचंद्र ने मुझसे स्पष्ट रूप से बताया कि वो अपनी छोटी भाभी नीलम को पसंद करने लगा है। उसकी भाभी भी उसे चाहती है लेकिन दोनों ही घर वालों से इस संबंध को ले कर डरते हैं कि अगर किसी को पता चला तो क्या होगा। मैंने रूपचंद्र को भरोसा दिलाया कि इस मामले में मैं उसकी मदद ज़रूर करूंगा।

मैंने एक दिन ये बात अपने पिता जी को बताई। पहले तो वो सोच में पड़ गए थे फिर उन्होंने कहा कि वो गौरी शंकर से इस बारे में बात करेंगे और उन्हें समझाएंगे कि अगर दोनों लोग खुशी से एक नया रिश्ता बना लेना चाहते हैं तो वो उनकी खुशी के लिए दोनों का एक दूसरे से ब्याह कर दें। ज़ाहिर है पिता जी की बात टालने का साहस गौरी शंकर अथवा उसके घर की औरतें नहीं कर सकती थीं। यानि रूपचंद्र का विवाह उसकी भाभी से होना निश्चित ही था।

सरोज काकी का अब हवेली और साहूकारों के घर से पक्का रिश्ता बन चुका था इस लिए उसका हमारे यहां आना जाना शुरू हो गया था। मैं पूरी ईमानदारी से उसके दामाद होने का फर्ज़ निभा रहा था। रागिनी और रूपा समय मिलने पर अक्सर सरोज के घर उससे मिलने जाती थीं। कभी कभी मां भी साथ में चली जाती थीं।

रुद्रपुर गांव में एक अलग ही खुशनुमा माहौल हो गया था। हर कोई पिता जी से, मुझसे और साहूकारों से खुश रहने लगा था। उड़ती हुई खबरें आने लगीं थी कि आस पास के गांव वाले भी चाहते हैं कि पिता जी फिर से उनके मुखिया बन जाएं। इस बारे में पिता जी से जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण मुखिया बनना नहीं बल्कि अच्छे कर्म करना होता है। गरीब और दुखी व्यक्ति की सहायता करना होता है। जब तुम ये सब करने लगोगे तो लोग खुद ही तुम्हें अपने सिर पर बिठा लेंगे, तुम्हें पूजने लगेंगे और अपनी हर समस्या ले कर तुम्हारे पास आने लगेंगे। जब ऐसा होगा तो तुम अपने आप ही सबके विधाता बन जाओगे।

पिता जी की ज्ञान भरी ये बातें सुन कर मैंने खुशी मन से सहमति में सिर हिलाया। उसके बाद दृढ़ निश्चय के साथ अच्छे कर्म करते हुए मैं अपने सफ़र में आगे बढ़ चला। इस सबके बीच मैं अपनी अनुराधा को नहीं भूलता था। हर रोज़ उसके विदाई स्थल पर जा कर उसको फूल अर्पित करता और उससे अपने दिल की बातें करता। जल्द ही उस जगह पर मैं मंदिरनुमा चबूतरा बनवाने का सोच बैठा था। अपनी अनुराधा को किसी तकलीफ़ में कैसे रहने दे सकता था मैं?




━━━━༻"समाप्त"༺━━━━
एक बहुत ही अद्भुत रमणिय और निर्विवाद रुप से मनमोहक समापम हुआ लाजवाब कहानी का
रागिणी और रुपा ने वैभव के जीवन में आकर उसे पुर्ण तरीके से बदल कर रख दिया
सुहागरात रात के लिये रागिणी का रुपा को ले जाना और वहा सुहागरात मनाने को रुपा का उतावला पण बडा ही मस्त और शानदार हैं
रुपचंद्र का निलम भाभी से विवाह होना मतलब उसका जीवन संवर जाना
सरोज काकी के हाथ से रुपा का कन्यादान सावकारों का बड्डपन दर्शाता हैं
वैभव का जीवन के पथ पर दादा ठाकुर के राह पर चलना और सबकी भलाई का सोचना जबरदस्त
अंत में लेखक शुभंम के लेखनी को नमन
फिर एक अद्भुत रोमांचक कहानी का इंतजार रहेगा
 

Himanshu630

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शुभम भाई एक रिक्वेस्ट है आपसे
भविष्य में आप जब भी कोई नई स्टोरी लिखे तो वो गांव की ही पृष्ठभूमि पर लिखे

हम सब रूपा और अनुराधा जैसे किरदार को फिर से देखने के लिए इंतजार करेंगे

वो सादगी वो प्रेम .. खासकर वो जब गांव की गलियों में हो और लेखक आपके जैसा हो जिसके लिखने पर ऐसा प्रतीत हो मानो सारी घटनाएं सामने हो रही हो तो पढ़ने में बहुत आनंद आता है

उम्मीद है भाई आप जल्द वापस आकर हम सबको अपने लेखन कला से आनंदित करेंगे
 
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