• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,657
259
Last edited:

Tiger 786

Well-Known Member
6,054
21,925
173
भाग:–156


आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।

वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।

वह व्यक्ति जैसे ही फेंस के करीब पहुंचा, अपना परिचय देते हुये कहने लगा.… "मेरा नाम विजयदर्थ है और ये मेरी बेटी महाती। मै गहरे महासागर का महाराज हूं और पूरे जलीय तंत्र की देख–रेख करता हूं।"

"मेरा नाम आर्यमणि है। क्या मैं आपसे इतनी दूर आने का कारण पूछ सकता हूं"..

विजयदर्थ:– मैं, विजयदर्थ, गहरे महासागर का राजा, तुमसे मदद मांगने आया हूं...

आर्यमणि:– कैसी मदद?

विजयदर्थ:– “तुमने जिसे बचाया था वो शोधक प्रजाति की जीव है। जैसे धरती पर कुछ भी जहरीला फेंक दो तो भूमि उसे सोख कर खुद में समा लेती है, और बदले में बिना किसी भेद–भाव के पोषण देती है। ठीक वैसे ही ये शोधक प्रजाति है। महासागर की गहराई के अनंत कचरे को निगलकर उसे साफ रखती है।”

“कुछ वर्षों से उन जीवों के पाचन प्रक्रिया में काफी बदलाव देखने मिला है। पहले जहां ये सोधक प्रजाति हर प्रकार के कचरे को पचा लिया करते थे, वहीं अब इनके पेट में कचरा जमा होकर गांठ बना देता है। सोधक प्रजाति अब पचाने में सक्षम नहीं रहे। पिछले कुछ वर्षों में इनकी आबादी आधी हो गयी है। हम हर प्रयत्न करके देख चुके। हमारे सारे हीलर ने जवाब दे दिया। जैसे तुमने उस बच्ची की सर्जरी की, दूसरे हीलर सर्जरी तो कर लेते थे, लेकिन पेट इतना खुल जाता था कि वो जीव इन्फेक्शन और दर्द से मर जाते।”

“हम बड़ी उम्मीद के साथ आये है। यादि सोधक प्रजाति समाप्त हो गयी तो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (वाटर इकोसिस्टम) खराब हो जायेगी। इसका असर न सिर्फ जलमंडन, बल्कि वायुमंडल और भूमि पर भी पड़ेगा। और ये मैं सिर्फ एक ग्रह पृथ्वी की बात नही कर रहा, बल्कि अनेकों ग्रह पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।”

"आपकी हम क्यों मदद करे, जबकि आपके लोगों ने मेरे आर्यमणि को लगभग मार डाला था। वो कौन थी जिसने मेरे पति के दिमाग को ही अंदर से गलाने की कोशिश की थी"…. रूही गुस्से में पूछने लगी ..

विजयदर्थ की बेटी, राजकुमारी महाती एक कदम आगे आती…. "उस जानलेवा घटना को मैने अंजाम दिया था। किंतु वो मात्र एक गलती थी। हमारी छिपी हुई दुनिया है, इसे हम उजागर नही कर सकते। जैसे आप लोग पृथ्वी पर इंसानों के बीच छिपकर रहते हो और अपनी असलियत उजागर नही होने देते।"…

आर्यमणि:– हां लेकिन हम जान नही लेते... उनकी यादें मिटा देते हैं...

महाती:– “यहां पहली बार कोई अच्छा पृथ्वी वाशी आया है। वरना पृथ्वी से अब तक यहां जितने भी लोग आये, उनके साथ हमारा बहुत बुरा अनुभव रहा था। ऐसा नहीं था कि पहले हम किसी पृथ्वी वाशी को देखकर उन्हें सीधा मार देते थे। लेकिन जितनी बार उनकी पिछली गलती को माफ करके, आये हुए पृथ्वी वाशी से मेल जोल बढ़ाते बदले में धोका ही मिलाता।”

“आप लोग किसी महान साधक के अनुयाई हो। आपका जहाज मजबूत मंत्र शक्ति से बंधा है। इसलिए हम उसे डूबा नही पाये। वरना पृथ्वी वासियों के लिये इतनी नफरत है कि उन्हे इस क्षेत्र से मिलो दूर डूबा देते है। ये पूरा आइलैंड महासागर के विभिन्न जीवों का प्रजनन स्थल है, जो रहते तो जल में है, किंतु प्रजनन केवल थल पर ही कर सकते है। और यहां किसी की दखलंदाजी उनको बहुत नुकसान पहुंचाती है। अब आप समझ ही गये होगे की क्यों मैंने आपको देखते ही मारने का प्रयास की थी.. लेकिन अपनी सफाई में पेश की हुई बातें अपनी जगह है, इस से ये बात नही बदलेगी की मैने आपकी जान लेने की कोशिश की थी।”

इतना कहकर महाती अपने पिता को देखने लगी। दोनो एक साथ अपने घुटनो पर बैठते…. "लेकिन केवल शब्द ही काफी नहीं अपनी गलती को सही साबित करने के लिये। हम मानते हैं कि जो भी हुआ वह एक गलती थी और उसका पछतावा है। आप अपने विधि अनुसार दोषी को मृत्यु दण्ड तक दे सकते हैं।"…

आर्यमणि:– आपलोग अभी खड़े हो जाइए और बाहर न रहे, अंदर आइए...

विजयदर्थ और महाती दोनो फेंस के अंदर आ गये। दोनो के बैठने के लिये कुर्षियों का इंतजाम किया गया। सभी आराम से बैठ गये। तभी महाती खड़ी होकर... "आप जैसे महान हीलर और दयावान इंसानों के बीच खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। हम तो उस बच्ची (विशाल काल जीव) को दर्द में मरता छोड़ गये। उसके बचने को कोई उम्मीद नहीं थी, फिर भी बिना किसी संसाधन के जिस प्रकार आपने उसे जीवित किया, सर अपने आप ही झुक जाता है। प्रथम साक्षात्कार के उपलक्ष्य में आप सब के लिये एक भेंट मेरी ओर से”.....

कहते हुई महाति एक–एक करके सबके पास पहुंची। सबके दोनो कान के पीछे चीड़ दी। सबसे आखरी में वह रूही के पास पहुंची। उसके कान के पीछे चिड़ने के बाद उसके नाभि के ठीक ऊपर, अपने अंगूठे से अर्ध गोला का निशान बनाकर उसके पेट को प्यार से चूम ली।

जैसे ही महाती ने पेट चूमा, तभी रूही के मुंह से "आव" निकल गया। इधर महाती भी हंसती हुई कहने लगी.. "आव नटखट... तुम्हे जल्दी बाहर आना है".... इतना कहकर फिर एक बार चूमी और इस बार भी पेट के सतह पर हलचल हुई... "बड़ी प्यारी बच्ची है। बाहर आकर हम सबके साथ बैठना चाहती है"…

आर्यमणि:– जी धन्यवाद... वैसे तोहफा देने के बहाने आपने तो खून ही निकाल दिया...

महाती:– इतनी औपचारिकता आप मेरे पिता के साथ कीजिए। मैं आपके सेवा के आगे तो बहुत ही छोटी हूं और आपकी सागिर्द बनना चाहती हूं। इसलिए मुझे अपना शागिर्द समझकर बात कीजिए। और रही बात इस खूनी उपहार की तो आज से आप सब और साथ में आने वाली ये नटखट, हमारे लोग है। आपको गहरे महासागर में कभी कोई परेशानी नहीं होगी...

विजयदर्थ:– महाती अब तुम रोज आकर इनसे बात कर लेना। अभी जिस काम के लिये आये थे वो बात कर ले.. आर्यमणि कृपा कर हमारी मदद करो...

आर्यमणि:– देखिए मैं शोधक प्रजाति के बारे में कुछ नही जानता और न ही मैं कोई डॉक्टर हूं। लेकिन एक डॉक्टर को जनता हूं जो आपकी मदद कर सकता है। जीवों के बारे में जितनी उसकी जानकारी है और किसी की नही...

विजयदर्थ:– आप शायद अपने पुराने साथी बॉब की बात कर रहे है।

आर्यमणि:– आप कैसे जानते है उसे...

विजयदर्थ:– हम कई महीनो से आपके बारे में पता कर रहे थे। हमे तो ये भी पता है कि जिस दुश्मन ने आपकी पत्नी रूही पर हमला किया था, वो दूसरे ग्रह का प्रजाति है। उसकी पूरी जानकारी तो मुझे नही पता, हां लेकिन उसके प्रजाति को नायजो प्रजाति कहते हैं।

आर्यमणि:– आपको तो सब पता है। मै पहले सोचता था पृथ्वी ही इकलौती दुनिया है। हमारा विज्ञान भी यही कहता था, पर कुछ वक्त से पूरे ब्रह्मांड को देखने का नजरिया ही बदल गया।

विजयदर्थ:– आपके सात्विक आश्रम के पुराने सभी आचार्य और गुरु को बहुत से ग्रह के निवासियों के बारे में पता था। उनमें से कई गुरुओं ने तो दूसरे ग्रहों पर जीवन भी बसाया था। पृथ्वी पर एक नही बल्कि कई सारे ग्रह वासियों का वजूद है। चूंकि मैं, पृथ्वी या अन्य ग्रह के सतह के मामले में हस्तछेप नही कर सकता, इसलिए उनकी बहुत ज्यादा जानकारी मेरे पास नहीं है...

आर्यमणि:– आपने मेरे बारे में इतना कुछ पता लगाया है, जान सकता हूं क्यों?

विजयदर्थ:– आपसे मिलना था। गहरे महासागर के कई राज साझा करने थे। इंसानों के बारे में तो महाती बता ही चुकी थी, इसलिए आपसे मदद मांगने से पहले हम आपके बारे में पता कर सुनिश्चित हो रहे थे। यादि आपको बुरा लगा हो तो माफ कर दीजिए...

आर्यमणि:– अच्छा जिस एलियन नायजो का आपने अभी जिक्र किया, जो रूही को घायल करके भागा था, वह अभी कहां है? क्या आप बता सकते है?...

विजयदर्थ:– भारत देश की सीमा में ही अपने प्रजाति के साथ है वो अभी। गोवा के क्षेत्र में...

आर्यमणि:– हम्मम, आपका आभार। अब एक आखरी सवाल। आप मेरे बारे में जानते है तो मेरे दुश्मनों के बारे में भी जानते होंगे। क्या हम यहां सुरक्षित है?

विजयदर्थ:– मैने समुद्री रास्तों के निशान मिटा दिये है। किसी भी रास्ते से, यहां तो क्या इसके 50 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई प्रवेश नही कर सकता। यदि कोई किसी विधि इस आइलैंड तक पहुंच भी गया तो फिर यह आखरी जगह होगी जो वो लोग देख रहे होंगे। और हां यदि आपको जरा भी खतरे का आभाष हो तो आप बस महासागर तक आ जाना... उसके बाद कैसी भी ताकत हो... वो दम तोड़ ही देगी।

आर्यमणि:– आपका आभार... बताइए मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं। इतना तो मुझे पता है कि आप सब सोचकर आये होंगे... बस मेरी हामी की जरूरत है... तो मैं और मेरा पूरा परिवार शोधक प्रजाति की मदद के लिये तैयार है... बस इसमें एक छोटी सी बाधा है... 4 महीने के लिये हम यहां से जायेंगे...

विजयदर्थ:– बुरा न माने तो पूछ सकता हूं क्यों?

रूही:– आपको तो हमारे बारे में सब बात पता है... फिर ये क्यों पता नही?...

विजयदर्थ:– राजा हूं कोई अंतर्यामी नही.... मैने सभी बातों की जानकारी नही ली थी बल्कि आप सबके चरित्र की पूरी जानकारी निकाली थी।

आर्यमणि:– रूही की डिलीवरी करवानी है। और बच्चा जब 1 महीने का होगा तब यहां लौटेंगे... यहां डिलेवरी की कोई सुविधा भी तो नहीं...

विजयदार्थ:– सुविधा की चिंता छोड़ दीजिए... पृथ्वी वाशी के भाषा में कहा जाए तो हाईटेक हॉस्पिटल यहां आनेवाला है। हर तरह के स्पेशलिस्ट यहां आने वाले है, और आप उसे छोड़कर कहीं और जा रहे हैं।

आर्यमणि:– मतलब मैं समझा नहीं...

विजयदर्थ:– मतलब हमारे यहां की पूरी मेडिकल फैसिलिटी मैं यहीं टापू पर मुहैया करवा दूंगा। और विश्वास कीजिए हमारे पास दुनिया के बेस्ट गाइनेकोलॉजिस्ट है। यादि फिर भी दिल ना माने तो हम 4 महीने रुक जायेंगे...

आर्यमणि:– मुझे करना क्या होगा?..

विजयदर्थ:– मुझे पता है कि आप किसी की भी मेमोरी अपने अंदर ले सकते है। हमारे एक बुजुर्ग हीलर है... जब तक उनमें क्षमता थी, तब तक हमें किसी परेशानी का सामना नही करना पड़ा। महासागर के मानव प्रजाति और महासागरीय जीव के बारे में उनका ज्ञान अतुलनीय है। उन्हे सबसे पहला सोधकर्ता कहना कोई गलत नही होगा..

अलबेली:– किंग सर जब वो पहले हैं तो इसका मतलब आप लोगों का विज्ञान 2–3 पीढ़ी पहले शुरू हुआ होगा...

विजयदर्थ:– हाहाहाहाहा.… तुम्हे क्या लगता है वो कितने साल के हैं...

अलबेली:– 110 या 120, ज्यादा से ज्यादा 150.....

विजयदर्थ:– नही... यादि हमारे गणना से मानो तो वो 102 चक्र के है। यादि उसे साल में बदल दो तो... 3366 वर्ष के होंगे...

अलबेली:– क्या... कितना..

विजयदर्थ:– हां सही सुना। एक ग्रहों के योग से दूसरे ग्रहों के योग के बीच का समय एक चक्र होता है। तुम्हारे यहां के हिसाब से वो 33 साल होता है। हर 33 साल पर ग्रह आपस में मिलते है।

अलबेली:– क्या बात कर रहे, फिर आपकी आयु कितनी होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने गणना से तीसरे चक्र के शुरवात में हूं... यानी की लगभग 68 साल का। हमारे यहां औसतन आयु 150 से 200 साल की होती है। वो बुजुर्ग आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए उनकी इतनी उम्र है...

आर्यमणि:– कितनी बातें करती हो अलबेली... अब तो महाती ने तुम्हे अपना कह दिया है। किसी दिन डूब जाना महासागर में और अपनी जिज्ञासा पूर्ण कर लेना। राजा विजयदर्थ मुझे 2 बातों का जवाब दीजिये..

विजयदर्थ:– पूछिये

आर्यमणि:– जब वो बुजुर्ग इतने ज्ञानी है फिर उनके ज्ञान का लाभ पूरे समाज को क्यों नही मिला?...

विजयदर्थ:– उस बुजुर्ग का नाम स्वामी विश्वेश है। स्वामी विश्वेश और उनके साथियों को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। इन लोगों ने जब अपने शिष्य तैयार किये तब नए लोगों को विज्ञान के हर क्षेत्र में काफी ज्यादा रुचि थी, सिवाय जीव–जंतु विज्ञान के। सच तो यह है कि स्वामी विश्वेश के ज्ञान का लाभ किसी भी शिष्य ने पूरी रुचि से लिया ही नही।

आर्यमणि:– हम्मम तो ये बात है। मेरा दूसरा और अहम सवाल यह है कि क्या वो मुझे ज्ञान चुराने की इजाजत देंगे?

विजयदर्थ:– उनके प्राण इसलिए नही छूट रहे क्योंकि जीव–जंतु विज्ञान में उनको एक भी काबिल मिला ही नहीं, जो उनके ज्ञान को भले न आगे बढ़ा सके, लेकिन कम से कम उनके बराबर तो ज्ञान रख सके। कुछ दिनों पूर्व जब उन्होंने सोधक प्रजाति के एक बच्ची को पूर्ण रूप से ठीक होकर महासागर में चहकते देखा, तब उनके आंखों में आंसू आ गये। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति का कोई भी बच्चा ऐसे नही चहका। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति के बच्चे अपने जीवन के शुरवाति काल में ही बीमार पड़ जाते थे। उनका सही इलाज तो स्वामी विश्वेश भी नही कर पाये। और जब सही इलाज के कारण एक सोधक प्रजाति की बच्ची को चहकते देखे फिर तो सबकी इच्छा यही थी कि आपसे बात की जाये।

आर्यमणि:– ठीक है बताइए मुझे क्या करना होगा..

विजयदर्थ:– आपने शुरवाती दिनों में गंगटोक के जंगल में वहां के घायल जानवरों की मदद की वो भी बिना किसी प्रशिक्षण के। उसके बाद आपको इस विषय में एक सिखाने वाला मिला बॉब... उसने जो सिखाया उसे बस आपने आधार मान लिया और अपने बुद्धि के हिसाब से घायल जानवरों की मदद करने लगे। यहां भी जिस शोधक बच्ची को आपने बचाया, उसके उपचार के लिये वही घास इस्तमाल किये जो मटुका ने आपको लाकर दिये थे..

आर्यमणि:– माटुका???

विजयदर्थ:– माटुका उस शेर का नाम है जिसका इलाज आपने किया था। हम सबका यह विचार है कि आप स्वामी का ज्ञान ले। हर जीव की जानकारी आपके पास होगी। उनके 2–3 सागिर्द है, उनका भी ज्ञान ले सकते हैं। और इनका ज्ञान लेने के बाद आप शोधक प्रजाति के पाचन शक्ति का कुछ कीजिए...

आर्यमणि:– हां पर इतना करना ही क्यों है। मैने जिसका इलाज किया है उसे ही देखते रहेंगे... उसकी पाचन प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रही फिर ले जाओ आप भी घास...

विजयदर्थ:– हां लेकिन जब आप नही होंगे और जीवों में कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो गयी तो फिर हम क्या करेंगे? इसे छोटा सा स्वार्थ समझिए, आप उनसे ज्ञान लेकर कुछ सागीर्द बना ले, ताकि इस समस्या का पूर्ण समाधान हो जाए। एक सागीर्द तो मेरी बेटी महाती ही है।

आर्यमणि:– काम अच्छा है और आपकी बातों से मैं पूरी तरह से सहमत हूं। ठीक है हम इसे कल से ही शुरू करते हैं।

आर्यमणि के हामी भरते ही राजा विजयदर्थ ने अपने दोनो हाथ उठा दिये, और इसी के साथ खुशी की लहर चारो ओर फैल गयी। देर रात्रि हो गयी थी इसलिए सभी सोने चले गये। सुबह जब ये लोग जागे फिर से आश्चर्य में पड़ गये। फेंस के चारो ओर लोग ही लोग थे।

आर्यमणि:– तुम लोग दिन में भी नजर आते हो...

एक पुरुष:– हां ये अपना क्षेत्र है, हम किसी भी वक्त आ सकते है। मैं हूं राजकुमार निमेषदर्थ... राजा विजयदर्थ का प्रथम पुत्र..

आर्यमणि:– उनके और कितने पुत्र है...

निमेशदर्थ:– 4 रानी से कुल 10 पुत्र और 3 पुत्रियां है। क्या हमें इस क्षेत्र में काम करने की अनुमति है?

आर्यमणि:– हा बिलकुल...

जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।
Superb update nainu bhai
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,054
21,925
173
भाग:–157


जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।

पांचवे दिन सारा काम हो जाने के बाद राजकुमार निमेषदर्थ ने इजाजत लीया और वहां से चला गया। उसी शाम विजयदर्थ कुछ लोगों के साथ पहुंचा, जिनमे वो बुजुर्ग स्वामी भी थे। विजयदर्थ, स्वामी और आर्यमणि की औपचारिक मुलाकात करवाने के बाद आर्यमणि को काम शुरू करने का आग्रह किया।

आर्यमणि उस बुजुर्ग को अपने साथ कॉटेज के अंदर ले गया। विजयदर्थ भी साथ आना चाहता था, लेकिन आर्यमणि ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। बुजुर्ग स्वामी और आर्यमणि के बीच कुछ बातचीत हुई और आर्यमणि बाहर निकलकर राजा विजयदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.… "राजा विजयदर्थ ये बुजुर्ग तो मरने वाले हैं।"

विजयदर्थ:– मैने तो पहले ही बताया था। स्वामी जी मृत्यु के कगार पर है।

आर्यमणि:– हां बताया था। लेकिन तब यह नही बताया था कि बिलकुल मृत्यु की दहलीज पर ही है। कहीं वो मेरे क्ला को झेल नही पाये तब"…

विजयदर्थ:– ये बुजुर्ग तो वैसे भी कबसे मरने की राह देख रहे, बस इनके विरासत को कोई संभाल ले। एक सुकून भरी नींद के तलाश में न जाने कबसे है।

आर्यमणि:– हां लेकिन फिर भी जलीय मानव प्रजाति के इतने बड़े धरोहर के मृत्यु का कारण मैं बन जाऊं, मेरा दिल गवारा नहीं करता। फिर आपके लोग क्या सोचेंगे... आप कुछ भी कहे लेकिन वो लोग तो मुझे ही इनके मृत्यु का जिम्मेदार समझेंगे।...

विजयदर्थ:– कोई ऐसा नही समझेगा...

आर्यमणि:– ठीक है फिर आपके लोग ये बात अपने मुंह से कह दे फिर मुझे संतुष्टि होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने लोगो का प्रतिनिधि हूं। मैं कह रहा हूं ना...

आर्यमणि:– फिर आप स्वामी को ले जा सकते है। इस आइलैंड पर मैं जबतक हूं, तबतक अपने हिसाब से घायलों का उपचार करता रहूंगा...

विजयदर्थ:– बहुत हटी हो। ठीक है मैं अपने लोगों को बुलाता हूं।

आर्यमणि:– अपने लोगों को बुलाना क्यों है इतना बड़ा महासागर है। इतनी विकसित टेक्नोलॉजी है, हमे कनेक्ट कर दो...

विजयदर्थ ने तुरंत ही अपनी संचार प्रणाली से सबको कनेक्ट किया। आर्यमणि पूर्ण सुनिश्चित होने के बाद बुजुर्ग स्वामी विश्वेश के पास पहुंचे और अपना क्ला उसकी गर्दन से लगाकर अपनी आंखें मूंद लिया... अनंत गहराइयों के बाद जब आखें खुली, आचार्य जी भी साथ थे...

आचार्य जी:– लगता है अब तक दुविधा गयी नही। जब इतने संकोच हो तो साफ मना कर दो और वो जगह छोड़ दो...

आर्यमणि:– आचार्य जी आपने उस शोधक बच्ची की खुशी देखी होती... वो अदभुत नजारा था। मुझे उनकी तकलीफ दूर करने की इक्छा है... बस मुझे वो राजा ठीक नही लगा... धूर्त दिख रहा है। आप एक बार उसके मस्तिस्क में प्रवेश क्यों नही करते...

आर्यमणि की बात पर आचार्य जी मुस्कुराते.… "अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लो"…

आर्यमणि:– आचार्य जी इसका क्या मतलब है। ये गलत है। बस एक छोटा सा काम कर दो। विजयदर्थ के दिमाग में घुस जाओ...

आचार्य जी:– एक ही बात को 4 बार कहने से जवाब नहीं बदलेगा। यादि तुम ऐसा चाहते हो तो पहले वहां कुछ लोगो को भेजता हूं। तुम अलग दुनिया के लोगों के बीच हो और उसके मस्तिष्क में घुसने पर यदि उन्हे पता चल गया तो तुम सब के लिये खतरा बढ़ जायेगा। उस राजा को जांचते हुए और सावधानी से काम करो। और मैं तो कहता हूं कुछ वक्त ऐसा दिखाते रहो की तुम उनके साथ हो। कुछ शागिर्द को शोधक प्रजाति का इलाज करना सिखा कर लौट आओ, यही बेहतर होगा।…

आर्यमणि:– हां शायद आप सही कह रहे है। ठीक है, आप इस वृद्ध व्यक्ति के ज्ञान वाले सनायु तंतु तक मुझे पहुंचा दीजिए.… मैं सिर्फ इसकी यादों से इसका ज्ञान ही लूंगा।

आचार्य जी:– ठीक है मैं करता हूं, तुम तैयार रहो...

कुछ देर बाद आर्यमणि उस बुजुर्ग का ज्ञान लेकर अपनी आखें खोल दिया। आंख खोलने के साथ ही उसने उस बुजुर्ग की यादें मिटाते... "पता नही अब वो विजयदर्थ तुमसे या मुझसे चाहता क्या है? क्ला से आज तक कोई नही मरा। देखते है तुम्हारा क्या होता है?"

खुद में ही समीक्षा करते आर्यमणि बाहर निकला और अपने दोनो हाथ ऊपर उठा लिया। विजयदर्थ खुश होते आर्यमणि के पास पहुंचा... "अब लगता है उन शोधक प्रजाति का इलाज हो जायेगा"…

आर्यमणि:– हां शायद... मैं कुछ दिनो तक प्रयोगसाला में शोध करूंगा… आपके डॉक्टर आ गये जो रूही का इलाज करने वाले है..

विजयदर्थ ने हां में जवाब दिया। आर्यमणि विजयदर्थ से इजाजत लेकर रूही से मिलने हॉस्पिटल पहुंचा। इवान और अलबेली दोनो ही उसके पास बैठे थे और काफी खुश लग रहे थे। तीनो चहकते हुए कहने लगे, उन्होंने स्क्रीन पर बेबी को देखा... कितनी प्यारी है... कहते हुए उनकी आंखें भी नम हो गयी...

आर्यमणि ने भी देखने की जिद की, लेकिन उसे यह कहकर टाल दिया की गर्भ में पल रहे बच्चों को बार–बार मशीनों और किरणों के संपर्क में नही आना चाहिए। बेचारा आर्यमणि मन मारकर रह गया। थोड़ी देर वक्त बिताने के बाद आर्यमणि वहां से साइंस लैब आ गया। रसायन शास्त्र की विद्या जो कुछ महीने पहले आर्यमणि ने समेटी थी, उसे अपने दिमाग में सुव्यवस्थित करते, आज उपयोग में लाना था।

अपने साथ उसने महासागर के साइंटिस्ट, जीव–जंतु विज्ञान के साइंटिस्ट और मानव विज्ञान के साइंटिस्ट भी थे। जो आर्यमणि के साथ रहकर शोधक प्रजाति पर काम करते। पहला प्रयोग उन घास से ही शुरू हुआ। उसके अंदर कौन से रसायन थे और वो मानव अथवा जानवर शरीर पर क्या असर करता था।

इसके अलावा महासागर के तल में पाया जाने वाला हर्व भी लाया गया। सुबह ध्यान, फिर प्रयोग, फिर परिवार और आइलैंड के जंगल। ये सफर तो काफी दिलचस्प और उतना ही रोमांचक होते जा रहा था। करीब 2 महीने बाद सबने मिलकर कारगर उपचार ढूंढ ही लिया। उपचार ढूंढने के बाद प्रयोग भी शुरू हो गये। सभी प्रयोग में नतीजा पक्ष में ही निकला...

जितना वक्त इन प्रयोग को करने में लगा उतने वक्त में लैब में काम कर रहे सभी शोधकर्ता ने आपस की जानकारी और अनुभवों को भी एक दूसरे से साझा कर लिया। आर्यमणि को हैरानी तब हो गई जब जीव–जंतु विज्ञान के स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट से मिला। उनके पढ़ने, सीखने और जीव–जंतु की सेवा भावना अतुलनीय थी। बस सही जानकारी का अभाव था और महासागरीय जीव इतने थे की सबको बारीकी से जानने के लिये वक्त चाहिए था।

जीव–जंतु विज्ञान वालों ने यूं तो कुछ नही बताया की उनके पास समर्थ रहते भी वो इतने पीछे क्यों रह गये। लेकिन आर्यमणि कुछ–कुछ समझ रहा था। उनके समर्थ का केवल इस बात से पता लगाया जा सकता था कि एक विदार्थी शोधक के अंदरूनी संरचना जानने के बाद सीधा उसके पेट में जाकर अंदर की पूरी बारीकी जानकारी निकाल आया।

ऐसा नही था की वो विदर्थी पहले ये काम नहीं कर सकता था। ऐसा नही था कि अंदुरूनी संरचना का उन्हे अंदाजा न हो, लेकिन उनका केवल यह कह देना की उनके पास जानकारी नही थी, इसलिए नही अंदर घुस रहे थे... आर्यमणि के मन में बड़ा सवाल पैदा कर गया। आर्यमणि ने महज अपने क्ला से वही जानकारी साझा किया जो उसने बुजुर्ग के दिमाग से लिया था। आश्चर्य क्यों न हो और मन में सवाल क्यों न जन्म ले। आर्यमणि जबतक जीव–जंतु विज्ञान में अपना एक कदम आगे उठाने की कोशिश करता, वहीं जीव–जंतु विज्ञान के सोधकर्ता 100 कदम आगे खड़े रहते। पूरा इलाज महज 3 महीने में खोज निकाला।..

एक ओर जहां इनका काम समाप्त हो रहा था वहीं दूसरी ओर अल्फा परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने वाली थी, क्योंकि किसी भी वक्त रूही की डिलीवरी होने वाली थी। अलबेली डिलीवरी रूम में लगातार रूही के साथ रहती थी। अलबेली, रूही के लेबर पेन को अपने हाथ से खींचना चाहती थी...

रूही, अलबेली के सिर पर एक हाथ मारती... "उतनी बड़ी वो शोधक जीव थी। उसका दर्द मुझसे बर्दास्त हो गया, और मैं अपने बच्चे के आने की खुशी तुझे दे दूं। मुझे लेबर पेन को हील नही करवाना"…

अलबेली:– हां ठीक है समझ गयी, लेकिन इतने डॉक्टर की क्या जरूरत थी? क्या दादा (आर्यमणि) को पता नही की एक वुल्फ के बच्चे कैसे पैदा होते हैं।….

रूही:– मैं शेप शिफ्ट करके अपने बच्ची को जन्म नही दूंगी... और इस बारे में सोचना भी मत...

अलबेली:– लेबर पेन से शेप शिफ्ट हो गया तो...

रूही:– मां हूं ना.. अपने बच्चे के लिए हर दर्द झेल लूंगी... और वैसे भी हील करते समय का जो दर्द होता है, उसके मुकाबले लेबर पेन कुछ भी नहीं...

अलबेली:– हे भगवान... कहीं ऐसा तो नहीं की हमने इतने दर्द लिये है कि तुम्हे लेबर पेन का पता ही न चल रहा हो.. क्योंकि लेबर पेन मतलब एक औरत के लिए 17 हड्डी टूटने जितना दर्द...

रूही:– और हमने तो इतने बड़े जीव का दर्द लिया, जिसका दर्द इंसानी हड्डी टूटने से आकलन करे तो...

अलबेली:– 10 हजार हड्डियां... या उस से ज्यादा भी..

रूही:– नीचे देख सिर बाहर आया क्या...

अलबेली नीचे क्या देखेगी, पहले नजर पेट पर ही गया और हड़बड़ा कर वो कपड़ा उठाकर देखी... अब तक रूही की भी नजर अपने पेट पर चली गई... "झल्ली, अंदर मेरी बच्ची के सामने हंस मत, जाकर डॉक्टर को बुला और किसी को ये बात पता नही चलनी चाहिए"…

अलबेली, अपना मुंह अंदर डाले ही... "इसकी आंखें अभी से अल्फा की है, और चेहरा चमक रहा। मुझ से रहा नही जा रहा, मैं गोद में लेती हूं।"

रूही:– अरे अपने ही घर की बच्ची है जायेगी कहां... लेकिन क्यों डांट खाने का माहैल बना रही। आर्यमणि को पता चला की हम बात में लगे थे और अमेया का जन्म हो गया... फिर सोच ले क्या होगा। मैं फसने लगी तो कह दूंगी, मेरा हाथ थामकर अलबेली मेरा दर्द ले रही थी, मुझे कैसे पता चलता...

अलबेली अपना सिर बाहर निकालकर रूही को टेढ़ी नजरों से घूरती... "ठीक है डॉक्टर को बुलाती हूं। तुम पेट के नीचे तकिया लगाओ और चादर बिछाओ... "

रूही अपना काम करके अलबेली को इशारा की और अलबेली जोड़ से चिंखती.… "डॉक्टर...डॉक्टर"..

जैसा की उम्मीद था, पहले आर्यमणि ही भागता आया। यूं तो आया था परेशान लेकिन अंदर घुसते ही शांत हो गया... अलबेली को लगा गया की आर्यमणि को कुछ मेहसूस हो गया था, कुछ देर वह रुका तो आमेया के जन्म का पता भी चल जायेगा..

अलबेली:– बॉस आप नही डॉक्टर को भेजो..

आर्यमणि:– लेकिन वो..

अलबेली धक्का देते.… "तुम बाहर रहो बॉस, लो डॉक्टर भी आ गयी"…

जितनी बकवास रूही और अलबेली की स्क्रिप्ट थी, उतनी ही बकवास परफॉर्मेंस... डॉक्टर अंदर आते ही... "आराम से तो है रूही .. चिल्ला क्यों रही हो"…

जैसे ही डॉक्टर की बात आर्यमणि ने सुना.. वो रूही के करीब जाने लगा। तभी रूही भी तेज–तेज चीखती... "ओ मां.. आआआआ… मर जाऊंगी... कोई बचा लो.. बचा लो".. आर्यमणि भागकर रूही के पास पहुंचा.. उसका हाथ थामते... "क्या हुआ... रूही... आंखें खोलो.. डॉक्टर.. डॉक्टर"…

डॉक्टर:– उसे कुछ नही हुआ, तुम बाहर जाओ.. डिलीवरी का समय हो गया है.…

जैसे ही आर्यमणि बाहर गया। रूही तुरंत अपने पेट पर से चादर और तकिया हटाई। अलबेली लपक कर तौलिया ली और आगे आराम से उसपर अमेया को लिटाती बाहर निकाली… "ये सब क्या है"… डॉक्टर हैरानी से पूछी...

अलबेली उसके मुंह पर उंगली रखकर... "डिलीवरी हो गयी है। अब तुम आगे का काम देखो".... इतना कहकर अलबेली ने कॉर्ड को काट दिया और बच्ची को दोनो हथेली में उठाकर झूमने लगी। इधर डॉक्टर अपना काम करने लगी और रूही अलबेली की खुशी देखकर हंसने लगी।

अलबेली झूमते हुए अचानक शांत हो गई और रूही के पास आकर बैठ गई... रूही अपने हाथ आगे बढ़ाकर, उसके आंसू पोंछती… "अरे, अमेया की बुआ ऐसे रोएगी तो भतीजी पर क्या असर होगा"…

अलबेली, पूरी तरह से सिसकती... "उस गली में हम क्या थे भाभी, और यहां क्या... मेरा तो जीवन तृप्त हो गया।"..

रूही:– पागल मुझे भी रुला दी न... क्यों बीती बातें याद कर रही...

अलबेली:– भाभी, जो हमे नही मिला वो सब हम अपनी बच्ची को देंगे। इसे वैसे ही बड़ा होते देखेंगे, जैसे कभी अपनी ख्वाइश थी...

रूही:– हां बिलकुल अलबेली... अब तू चुप हो जा..

डॉक्टर:– अरे ये बच्ची रो क्यों नही रही..

अलबेली:– क्योंकि इस बच्ची के किस्मत में कभी रोना नहीं लिखा है डॉक्टर... उसके हिस्से का दुख हम जी चुके हैं। उसके हिस्से का दर्द हम ले लेंगे... हमारी बच्ची कभी नही रोएगी...

अलबेली इतना बोलकर अमेया को फिर से अपने हाथो में लेकर झूमने लगी। रूही और अलबेली के चेहरे से खुशी और आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे। इधर आर्यमणि जब बाहर निकला, इवान चिंतित होते... "क्या हुआ जीजू, अलबेली ऐसे चिल्लाई क्यों"…

आर्यमणि:– क्योंकि अमेया आ गयी इवान, अमेया आ गयी...

इवान:– क्या सच में.. मै अंदर जा रहा...

आर्यमणि:– नही अभी नही... अभी आधे घंटे का इनका ड्रामा चलेगा। जबतक मैं ये खुशखबरी अपस्यु और आचार्य जी को बता दूं...

आर्यमणि भागकर अपने कॉटेज में गया और ध्यान लगा लिया.… "बहुत खुश दिख रहे हो गुरुदेव"…

आर्यमणि:– छोटे.. ऐसा गुरुदेव क्यों कह रहे...

अपस्यु:– तुम अब पिता बन गये, कहां मार–धार करोगे। तुम आश्रम के गुरुजी और मैं रक्षक।

आर्यमणि:– न.. मेरी बच्ची आ गयी है और अब मैं गुरुजी की ड्यूटी नही निभा सकता। रक्षक ही ठीक हूं।

आचार्य जी:– तुम दोनो की फिर से बहस होने वाली है क्या...

दोनो एक साथ... बिलकुल नहीं... आज तो अमेया का दिन है...

आचार्य जी:– जिस प्रकार का तेज है... उसका दिन तो अभी शुरू हुआ है, जो निरंतर जारी रहेगा। लेकिन आर्यमणि तुम इस बात पर अब कभी बहस नही करोगे की तुम आश्रम के गुरु नही बनना चाहते। दुनिया का हर पिता काम करके ही घर लौटता है। यह तुम्हारे पिता ने भी किया था और मेरे पिता ने भी... तो क्या वो तुमसे प्यार नहीं करते..

आर्यमणि:– हां समझ गया... गलती हो गयी माफ कर दीजिए...

अपस्यु:– पार्टी लौटने के बाद ले लूंगा.. बाकी 7 दिन के नियम करना होगा...

आचार्य जी:– सातवे दिन, पूरी विधि से वो पत्थर जरित एमुलेट पहनाने के बाद ही अमेया को अपने घर से बाहर निकालना और सबसे पहले पूरा क्षेत्र घुमाकर हर किसी का आशीर्वाद दिलवाना... पिता बनने की बधाई हो..

अपस्यु:– पूरे आश्रम परिवार के ओर से बधाई... अब हम चलते है।

आर्यमणि के चेहरे की खुशी... दौड़ता हुआ वो वापस हॉस्पिटल पहुंचा। सभी रूही को घेरे खड़े थे। आर्यमणि गोद में अमेया को उठाकर नजर भर देखने लगा। जैसे ही अमेया, आर्यमणि के गोद में आयी अपनी आंखें खोलकर आर्यमणि को देखने लगी। आर्यमणि तो जैसे बुत्त बन गया था। चेहरे की खुशी कुछ अलग ही थी। वह प्यार से अपनी बच्ची को देखता रहा। कुछ देर बाद सभी रूही को साथ लेकर कॉटेज चल दिये।

कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।
To aarya papa ban Gaya vo ek adbhut or cute si bitiya ke
Awesome update
 
Top