वो- थोडा इंतज़ार रखो कुछ टेस्ट करते है फिर मिल लेना
करीब शाम को नाना नानी से मिलने दिया दोनों मुझे देख कर फुट फुट के रोने लगे उनकी बेटी की एकलौती निशानी इस हाल में जो थी होश में आने की इत्तिला शायद पुलिस को भी कर दी गयी थी तो वो बयान लेने लगे पर मुझे तो बस इतना ही पता था की
अचानक से हमला हुआ था तो वो लोग चले गए इधर मैं किसी को क्या कहता मैं तो खुद एक लंबी नींद से जगा था नाना मामा ने किसी प्रकार की कोताही ना की सबकी यही इच्छा थी की बस मैं जल्दी से ठीक हो जाऊ
पर मेरे दिमाग में बस यही एक सवाल घूमता रहता था की उन लोगो ने मुझ पर हमला किया तो क्यों पहले मेरे परिवार की एक्सीडेंट में मौत हो गयी और फिर मुझ पर हमला मेरा दिमाग बिमला की और जाने लगा उसने कहा भी था की वो मुझे बर्बाद कर देगी बदला लेगी तो क्या ये सब उसकी चाल थी
कुछ भी करके मुझे इन सब बातो का पता करना था हर हाल में पर उसके लिए मुझे सबसे पहले ठीक होना था अपनी बिखरी ताकत समेटनी थी
दिन हॉस्पिटल के बेड पर गुजर रहे थे ठीक होने की जद्दोजहद जारी थी हर दिन इंदु मिलने आती थी मामी कभी कभी रात को भी रुक जाया करती थी पर एक सवाल और मेरे मन में था की गाँव से चाचा या बिमला भी मिलने नहीं आये ले देकर अब वो लोग ही तो थे परिवार के नाम पे
मामी ने बताया की उनको इत्तिला तो की थी पर कोई जवाब नहीं आया न वो आये टाइम टाइम की बात थी सब बुरा दौर था ये भी बीत ही जाना था करीब एक महीना ऐसे ही बीत गया और मैं घर आ गया तबियत में सुधार तो था पर इतना भी नहीं था
इधर मैंने एक बात पे और गौर किया की मेरे मामा का व्यवहार मेरे प्रति बदल गया था और वो नाना या और घरवालो से भी ठीक से बात नहीं करते थे हमेशा झल्लाए से रहते थे उस दिन जब मामी मेरी मालिश करने आ रही थी तो भी उनकी कहासुनी हो रही थी
तो मैंने मामी से कारण पुछा पर उन्होंने टाल दिया पर कोई तो बात थी ही दिन कटने लगे अब पढाई लिखाई तो छूट गयी थी पैरो में जान आने लगी थी तो हलकी फुलकी कसरत भी शुरू कर दी थी एक शाम घर पर बस मैं और मामी ही थे
तो मामी मेरे पांवो की मालिश कर रही थी
मैं- गाँव की क्या खबर आई कुछ
वो- नहीं तो
मैं-मुझे लगता है की अब मुझे अपने गाँव जाना चाहिए
वो-ये क्या तुम्हारा घर नहीं है
मैं-घर तो है पर मेरा इधर मन नहीं लगता है
वो- मन क्यों नहीं लगेगा मैं हु ना तुम्हारा ख्याल रखने के लिए
ये कहकर वो मुस्काई और मेरे लण्ड पर हाथ रख दिया
मैं-क्या करती हो
उन्होंने मेरे होंठो पर ऊँगली रखी और बोली-शह्हह चुप ,तुम कहा जाओगे अभी तो तुमसे ठीक से बात भी नहीं की उस रात तुमने एक आग लगा दी मेरे अंदर पर उस से ज्यादा बात ये है की तुम बहुत पसंद हो मुझे
मैं-पर ये सब गलत है
वो-कुछ सही गलत नहीं होता बस कुछ लम्हे होते है जो बाद में याद बन जाया करते है
मामी ने मेरे कच्छे को निचे सरका दिया और अपने तेल से सने हाथो से मेरे सोये हुए हथियार की मालिश करने लगी तो कई दिनों बाद शरीर में एक जानी पहचानी सी सुरसुराहट होने लगी थी मामी के हाथो में जैसे जादू था लण्ड महाराज जल्दी ही तन कर फुफकार मारने लगे
मामी की आँखों में एक गुलाबी नशा सा चढ़ने लगा था कुछ देर तक वो उसको सहलाती रही फिर उन्होंने अपने चेहरे को मेरी टांगो के मध्य झुका दिया जैसे ही उनकी गुलाबी जीभ लपलपाती हुई मेरे सुपाड़े से टकराई मेरा पूरा बदन सिहर उठा
बदन किसी धनुष की भाँती तन सा गया था मामी ने किसी गोलगप्पे की तरह सुपाड़े को मुह में ले लिया और चूसने लगी एक अजीब सी झनझनाहट होने लगी थी मस्ती चढ़ने लगी थी मेरी आँखे बंद होने लगी थी पर ये मस्ती से नहीं था ये कमजोरी से था
पर मामी ज़िद पे जो अडी थी वो अपनी हवस से मजबूर थी बड़ी तल्लीनता से वो चुसाई में मशगूल थी की दरवाजा पीटा किसी ने तो वो हड़बड़ा गयी अपने कपड़ो को सही किया जल्दबाजी में और गेट खोलने चली गयी ,मैंने भी कछे को ऊपर चढ़ा लिया पर मेरा हथियार तेल में सना हुआ था और ऊपर से तना हुआ भी तो मैं अब कैसे छुपाऊ उसको
तो मैंने तकिये को गोदी में रख लिया बंटी की बहन आई थी मामी का दिमाग उसको देखते ही खराब हो गया पर ऐसे उसको जाने को बोल भी नहीं सकती थी रवि की बहन ने बताया की मामी को नानी ने उनके घर बुलाया था कोई कपडे वाला आया हुआ था
तो मामी चली गयी वो मेरे पास आ गयी
वो-क्या हाल है
मैं-बस जी रहे है तुम बताओ
वो-तुम बिन तड़प रही हु
मैं-दोस्त की बहन हो ऐसी बाते ना किया करो तुम
वो-तुम समझते जो नहीं वो
वो उठकर मेरे पास आई और बोली-आखिर क्या कमी है जो मेरी तरफ देखते ही नहीं एक बार मेरे पास तो आओ जन्नत का दरवाजा खोल दूंगी
मैं-कहा ना ऐसी बाते मत किया कर
वो-तो कैसी बाते करू
मैं-मुझे नहीं पता
वो-दिल में आग तूने लगायी हुई है और बात कर रहा है ,सुन देख मुझे ऐसी वैसी मत जानियो वो तो दिल तुझपे आ गया है और तू नखरे कर रहा है
मैं-चल नाराज न हो आ बैठ पास मेरे देख मैंने कब कहा की तू ख़राब है पर तेरा भाई मेरा दोस्त है तो ठीक नहीं लगता
वो-तू टेंशन ना ले उसकी
मैं-देख ले सोच ले
वो-सोच लिया तू बोल तो सही
मैं-ठीक है तो फिर ये कहके मैंने उसका बोबा दबा दिया तो वो भी मुझसे छेड़छाड़ करने लगी की तभी मामा आ गए उन्होंने एक नजर मुझ पर डाली और अपने कमरे में चले गए रवीना के जाने के बाद मैं सो गया
दो चार दिन बाद की बात है की नाना और मामा में कुछ बात हो रही थी तो मैंने अपने कान लगा दिए ,दरअसल मामा नहीं चाहते थे की मैं उनके घर पे रहु,मेरे ऊपर बहुत खर्च हो रहा था हॉस्पिटल बिल्स दवाइया तो मैंने उसी टाइम बोल दिया की मेरा बाप मेरे लिए खूब पैसा छोड़के गया है आपको जरुरत नहीं है
पर नाना ने कहा की वो खुद कमाते है और अपनी बेटी की एक मात्र निशानी बोझ नहीं है उनपे पर मैं खुद्दार था मामा कीबाते तीर की तरह मेरे सीने में चुभ गयी थी ,मैंने उसी समय उसी हालात में घर छोड़ने का फैसला ले लिया पर मेरे नाना ने अपनी कसम देकर रोक लिया
तो मैंने भी कह दिया की मैं कच्चे छप्पर में रहूँगा इनकी शान इनको मुबारक ,उस पूरी रात मैं सोचता रहा वक़्त ने कितना बेबस कर दिया था मुझे अपनों में ही बेगाना जो हो गया था
वक्त गुजरने लगा था पैसो की कमी तो थी नहीं मुझे पर नाना का मान रखना भी जरुरी था अपने आप से जूझते हुए शायद ऐसे ही जीना था मुझे
पर इतना होंसला था की वक़्त के हर सितम को सेह ही लेना था और फिर क्या फरक पड़ना था था ,वहा था ही कौन जो मेरे बेजुबान आंसुओ की आवाज सुनता दिन अपनी रफ़्तार से कट रहे थे
हालात पहले से बहुत बेहतर हो गयी थी पसीने का दाम जो चुकाया था उस शाम मैं गन्ने के खेत किनारे बैठा था की तभी रवि की बहन आ निकली
हालात पहले से बहुत बेहतर हो गयी थी पसीने का दाम जो चुकाया था उस शाम मैं गन्ने के खेत किनारे बैठा था की तभी रवि की बहन आ निकली उसने मुझे देखा और मेरे पास आके बैठ गयी
मैं-तू इस टाइम इधर
वो-हाँ थोडा घूमने निकली थी
मैं-और बता
वो-क्या बताऊ बस तड़प रही हु तेरे करीब आने को और तू है की सब जानते हुए भी नासमझ बनता है
मैं- क्या करु अपनी भी मजबूरिया है
वो-मुझे कुछ पता नहीं, आज रात मैं तेरे पास आउंगी और इस बार मैं खाली हाथ नहीं जाने वाली
मैं-बड़ी आई आने वाली किसी को पता चलेगा तो
वो-वो मेरी मुश्किल है
मैं-मुझे क्या जो करना है कर
वो-पगले, तुझे ही तो करना है
कुछ देर बाद वो चली गयी मैं घर आया कपडे उतार के नहा ही रहा था की मैंने देखा मामा किसी से फ़ोन पे बात कर रहा था
मामा-नहीं नहीं अभी जल्दी मत करो सब्र करो वैसे भी अगर किसी को शक हुआ तो फिर बड़ी दिक्कत होगी मैं अपनी और से पूरी कोशिश कर रहा हु पिताजी ना होते तो अब तक काम निपट चूका होता तुम टेंशन ना लो मैं सब संभाल लूंगा
फिर उसने फ़ोन काट दिया पर मैंने जो भी बात सुनी थी उस से इतना तो अंदाजा हो गया था की कुछ तो गड़बड़ है पर क्या ये कैसे पता करू
खैर खाना खाकर लेटा ही था गाँव में वैसे भी लोग जल्दी सो जाते है बस मेरे जैसो को ही नींद नहीं आती है तो किसी के आने की आहाट हुई मैंने देखा तो रवि की बहन थी
मैं-रवीना तू यहाँ
वो-मैंने कहा था ना की आउंगी
मैं-पागल लड़की, किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी
वो-किसी को कुछ पता नहीं चलेगा देख आज मेरी मनचाही करदे
मैं भी कई दिनों से प्यासा ही था तो मैंने सोचा की आज इसकी खुजली मिटा ही देता हु मैंने रवीना को अंदर लिया और अपनी बाहों में भर लिया तो वो मुझसे चिपक गयी मेरे दोनों हाथ अपने आप उसके नितम्बो पे पहुच गए मैं उनको दबाते हुए उसको चूमने लगा
वो भी खुलकर मेरा साथ दे रही थी एक बार जो लड़की के जिस्म का स्पर्श मिला मैं बेकाबू होने लगा बहुत देर तक उसके होंठ चूसे मैंने बस अब मैं उसको नंगी देखना चाहता था मैंने उसकी सलवार के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसकी गाँठ को खोल दिया
करीब शाम को नाना नानी से मिलने दिया दोनों मुझे देख कर फुट फुट के रोने लगे उनकी बेटी की एकलौती निशानी इस हाल में जो थी होश में आने की इत्तिला शायद पुलिस को भी कर दी गयी थी तो वो बयान लेने लगे पर मुझे तो बस इतना ही पता था की
अचानक से हमला हुआ था तो वो लोग चले गए इधर मैं किसी को क्या कहता मैं तो खुद एक लंबी नींद से जगा था नाना मामा ने किसी प्रकार की कोताही ना की सबकी यही इच्छा थी की बस मैं जल्दी से ठीक हो जाऊ
पर मेरे दिमाग में बस यही एक सवाल घूमता रहता था की उन लोगो ने मुझ पर हमला किया तो क्यों पहले मेरे परिवार की एक्सीडेंट में मौत हो गयी और फिर मुझ पर हमला मेरा दिमाग बिमला की और जाने लगा उसने कहा भी था की वो मुझे बर्बाद कर देगी बदला लेगी तो क्या ये सब उसकी चाल थी
कुछ भी करके मुझे इन सब बातो का पता करना था हर हाल में पर उसके लिए मुझे सबसे पहले ठीक होना था अपनी बिखरी ताकत समेटनी थी
दिन हॉस्पिटल के बेड पर गुजर रहे थे ठीक होने की जद्दोजहद जारी थी हर दिन इंदु मिलने आती थी मामी कभी कभी रात को भी रुक जाया करती थी पर एक सवाल और मेरे मन में था की गाँव से चाचा या बिमला भी मिलने नहीं आये ले देकर अब वो लोग ही तो थे परिवार के नाम पे
मामी ने बताया की उनको इत्तिला तो की थी पर कोई जवाब नहीं आया न वो आये टाइम टाइम की बात थी सब बुरा दौर था ये भी बीत ही जाना था करीब एक महीना ऐसे ही बीत गया और मैं घर आ गया तबियत में सुधार तो था पर इतना भी नहीं था
इधर मैंने एक बात पे और गौर किया की मेरे मामा का व्यवहार मेरे प्रति बदल गया था और वो नाना या और घरवालो से भी ठीक से बात नहीं करते थे हमेशा झल्लाए से रहते थे उस दिन जब मामी मेरी मालिश करने आ रही थी तो भी उनकी कहासुनी हो रही थी
तो मैंने मामी से कारण पुछा पर उन्होंने टाल दिया पर कोई तो बात थी ही दिन कटने लगे अब पढाई लिखाई तो छूट गयी थी पैरो में जान आने लगी थी तो हलकी फुलकी कसरत भी शुरू कर दी थी एक शाम घर पर बस मैं और मामी ही थे
तो मामी मेरे पांवो की मालिश कर रही थी
मैं- गाँव की क्या खबर आई कुछ
वो- नहीं तो
मैं-मुझे लगता है की अब मुझे अपने गाँव जाना चाहिए
वो-ये क्या तुम्हारा घर नहीं है
मैं-घर तो है पर मेरा इधर मन नहीं लगता है
वो- मन क्यों नहीं लगेगा मैं हु ना तुम्हारा ख्याल रखने के लिए
ये कहकर वो मुस्काई और मेरे लण्ड पर हाथ रख दिया
मैं-क्या करती हो
उन्होंने मेरे होंठो पर ऊँगली रखी और बोली-शह्हह चुप ,तुम कहा जाओगे अभी तो तुमसे ठीक से बात भी नहीं की उस रात तुमने एक आग लगा दी मेरे अंदर पर उस से ज्यादा बात ये है की तुम बहुत पसंद हो मुझे
मैं-पर ये सब गलत है
वो-कुछ सही गलत नहीं होता बस कुछ लम्हे होते है जो बाद में याद बन जाया करते है
मामी ने मेरे कच्छे को निचे सरका दिया और अपने तेल से सने हाथो से मेरे सोये हुए हथियार की मालिश करने लगी तो कई दिनों बाद शरीर में एक जानी पहचानी सी सुरसुराहट होने लगी थी मामी के हाथो में जैसे जादू था लण्ड महाराज जल्दी ही तन कर फुफकार मारने लगे
मामी की आँखों में एक गुलाबी नशा सा चढ़ने लगा था कुछ देर तक वो उसको सहलाती रही फिर उन्होंने अपने चेहरे को मेरी टांगो के मध्य झुका दिया जैसे ही उनकी गुलाबी जीभ लपलपाती हुई मेरे सुपाड़े से टकराई मेरा पूरा बदन सिहर उठा
बदन किसी धनुष की भाँती तन सा गया था मामी ने किसी गोलगप्पे की तरह सुपाड़े को मुह में ले लिया और चूसने लगी एक अजीब सी झनझनाहट होने लगी थी मस्ती चढ़ने लगी थी मेरी आँखे बंद होने लगी थी पर ये मस्ती से नहीं था ये कमजोरी से था
पर मामी ज़िद पे जो अडी थी वो अपनी हवस से मजबूर थी बड़ी तल्लीनता से वो चुसाई में मशगूल थी की दरवाजा पीटा किसी ने तो वो हड़बड़ा गयी अपने कपड़ो को सही किया जल्दबाजी में और गेट खोलने चली गयी ,मैंने भी कछे को ऊपर चढ़ा लिया पर मेरा हथियार तेल में सना हुआ था और ऊपर से तना हुआ भी तो मैं अब कैसे छुपाऊ उसको
तो मैंने तकिये को गोदी में रख लिया बंटी की बहन आई थी मामी का दिमाग उसको देखते ही खराब हो गया पर ऐसे उसको जाने को बोल भी नहीं सकती थी रवि की बहन ने बताया की मामी को नानी ने उनके घर बुलाया था कोई कपडे वाला आया हुआ था
तो मामी चली गयी वो मेरे पास आ गयी
वो-क्या हाल है
मैं-बस जी रहे है तुम बताओ
वो-तुम बिन तड़प रही हु
मैं-दोस्त की बहन हो ऐसी बाते ना किया करो तुम
वो-तुम समझते जो नहीं वो
वो उठकर मेरे पास आई और बोली-आखिर क्या कमी है जो मेरी तरफ देखते ही नहीं एक बार मेरे पास तो आओ जन्नत का दरवाजा खोल दूंगी
मैं-कहा ना ऐसी बाते मत किया कर
वो-तो कैसी बाते करू
मैं-मुझे नहीं पता
वो-दिल में आग तूने लगायी हुई है और बात कर रहा है ,सुन देख मुझे ऐसी वैसी मत जानियो वो तो दिल तुझपे आ गया है और तू नखरे कर रहा है
मैं-चल नाराज न हो आ बैठ पास मेरे देख मैंने कब कहा की तू ख़राब है पर तेरा भाई मेरा दोस्त है तो ठीक नहीं लगता
वो-तू टेंशन ना ले उसकी
मैं-देख ले सोच ले
वो-सोच लिया तू बोल तो सही
मैं-ठीक है तो फिर ये कहके मैंने उसका बोबा दबा दिया तो वो भी मुझसे छेड़छाड़ करने लगी की तभी मामा आ गए उन्होंने एक नजर मुझ पर डाली और अपने कमरे में चले गए रवीना के जाने के बाद मैं सो गया
दो चार दिन बाद की बात है की नाना और मामा में कुछ बात हो रही थी तो मैंने अपने कान लगा दिए ,दरअसल मामा नहीं चाहते थे की मैं उनके घर पे रहु,मेरे ऊपर बहुत खर्च हो रहा था हॉस्पिटल बिल्स दवाइया तो मैंने उसी टाइम बोल दिया की मेरा बाप मेरे लिए खूब पैसा छोड़के गया है आपको जरुरत नहीं है
पर नाना ने कहा की वो खुद कमाते है और अपनी बेटी की एक मात्र निशानी बोझ नहीं है उनपे पर मैं खुद्दार था मामा कीबाते तीर की तरह मेरे सीने में चुभ गयी थी ,मैंने उसी समय उसी हालात में घर छोड़ने का फैसला ले लिया पर मेरे नाना ने अपनी कसम देकर रोक लिया
तो मैंने भी कह दिया की मैं कच्चे छप्पर में रहूँगा इनकी शान इनको मुबारक ,उस पूरी रात मैं सोचता रहा वक़्त ने कितना बेबस कर दिया था मुझे अपनों में ही बेगाना जो हो गया था
वक्त गुजरने लगा था पैसो की कमी तो थी नहीं मुझे पर नाना का मान रखना भी जरुरी था अपने आप से जूझते हुए शायद ऐसे ही जीना था मुझे
पर इतना होंसला था की वक़्त के हर सितम को सेह ही लेना था और फिर क्या फरक पड़ना था था ,वहा था ही कौन जो मेरे बेजुबान आंसुओ की आवाज सुनता दिन अपनी रफ़्तार से कट रहे थे
हालात पहले से बहुत बेहतर हो गयी थी पसीने का दाम जो चुकाया था उस शाम मैं गन्ने के खेत किनारे बैठा था की तभी रवि की बहन आ निकली
हालात पहले से बहुत बेहतर हो गयी थी पसीने का दाम जो चुकाया था उस शाम मैं गन्ने के खेत किनारे बैठा था की तभी रवि की बहन आ निकली उसने मुझे देखा और मेरे पास आके बैठ गयी
मैं-तू इस टाइम इधर
वो-हाँ थोडा घूमने निकली थी
मैं-और बता
वो-क्या बताऊ बस तड़प रही हु तेरे करीब आने को और तू है की सब जानते हुए भी नासमझ बनता है
मैं- क्या करु अपनी भी मजबूरिया है
वो-मुझे कुछ पता नहीं, आज रात मैं तेरे पास आउंगी और इस बार मैं खाली हाथ नहीं जाने वाली
मैं-बड़ी आई आने वाली किसी को पता चलेगा तो
वो-वो मेरी मुश्किल है
मैं-मुझे क्या जो करना है कर
वो-पगले, तुझे ही तो करना है
कुछ देर बाद वो चली गयी मैं घर आया कपडे उतार के नहा ही रहा था की मैंने देखा मामा किसी से फ़ोन पे बात कर रहा था
मामा-नहीं नहीं अभी जल्दी मत करो सब्र करो वैसे भी अगर किसी को शक हुआ तो फिर बड़ी दिक्कत होगी मैं अपनी और से पूरी कोशिश कर रहा हु पिताजी ना होते तो अब तक काम निपट चूका होता तुम टेंशन ना लो मैं सब संभाल लूंगा
फिर उसने फ़ोन काट दिया पर मैंने जो भी बात सुनी थी उस से इतना तो अंदाजा हो गया था की कुछ तो गड़बड़ है पर क्या ये कैसे पता करू
खैर खाना खाकर लेटा ही था गाँव में वैसे भी लोग जल्दी सो जाते है बस मेरे जैसो को ही नींद नहीं आती है तो किसी के आने की आहाट हुई मैंने देखा तो रवि की बहन थी
मैं-रवीना तू यहाँ
वो-मैंने कहा था ना की आउंगी
मैं-पागल लड़की, किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी
वो-किसी को कुछ पता नहीं चलेगा देख आज मेरी मनचाही करदे
मैं भी कई दिनों से प्यासा ही था तो मैंने सोचा की आज इसकी खुजली मिटा ही देता हु मैंने रवीना को अंदर लिया और अपनी बाहों में भर लिया तो वो मुझसे चिपक गयी मेरे दोनों हाथ अपने आप उसके नितम्बो पे पहुच गए मैं उनको दबाते हुए उसको चूमने लगा
वो भी खुलकर मेरा साथ दे रही थी एक बार जो लड़की के जिस्म का स्पर्श मिला मैं बेकाबू होने लगा बहुत देर तक उसके होंठ चूसे मैंने बस अब मैं उसको नंगी देखना चाहता था मैंने उसकी सलवार के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसकी गाँठ को खोल दिया