मंजू- ये तुम्हारा कमरा है
मैं- हाँ
वो- अच्छा सजाया है
मैं- बस ऐसे ही
मैं- एक चीज़ दिखाऊ
वो- क्या
मैं-रुक एक मिनट
मैंने अलमारी खोली और अपना एल्बम निकाल लाया मैं उसको अपनी जोधपुर ट्रिप की तस्वीरे दिखाने लगा
मंजू- पूरा मजा किया है तुमने तो
मैं- काश तू चल पाती
वो- अब मेरे नसीब में कहा ये सब
मैं- उदास क्यों होती है मेरे पास कैमरा है तुझे जब चाहे ले लेना खीच अपनी तस्वीरे
मंजू- शुक्रिया
मै- आजके क्या इरादे है
वो- कुछ नहीं , थोड़ी देर बाद घर जाउंगी फिर सफाई करुँगी और कपडे वगैरा धोउंगी बस फिर खाना खाके सो जाउंगी , सुबह फिर हॉस्पिटल जाउंगी
मैं- मैं मदद करवा दू
वो-नहीं मैं कर लुंगी
मैं- इस बहाने थोडा मजा भी कर लेंगे वैसे भी हमको अकेले टाइम कहा मिलता है
मंजू- दो तीन दिन पहले तो किया ही था
मैं- क्या करू यार जी भरता ही नहीं
वो- पर मैं नहीं कर पाऊँगी, क्योंकि मेरा मन नहीं है
मैं- ठीक है यार , मन नहीं है तो मत कर चल तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं आता हु
मैं निचे आया तो घर से बाहर चाचा और गीता का पति बात कर रहे थे , मैंने गौर किया आज वो एक दम नहाया धोया लग रहा था कपडे भी साफ़ सुथरे पहने हुए थे , मुझे देख कर वो बोला- बेटा, देख ले तुझसे कल वादा किया था ना की अब दारू बंद, छोड़ दी मैंने और भाई ने मुझे अपने महकमे में माली का काम भी दिलवाया है , अब तू देखना मैं मन लगाके काम करूँगा , बस समाज में अपनी खोयी हुई इज्जत वापिस पानी है मुझे
मैं- ताऊ, देर आये दुरुस्त आये
फिर मैं चाचा के पास गया और बोला- बड़ी मेहरबानी की , इस की वजह क्या है
चाचा- वजह क्या होगी, सुबह मैं जब ऑफिस जा रहा था तो ये मुझे मिला था कही लगवाने को बोल रहा था ऑफिस जाके पता चला की माली की पोस्ट है तो इसको रखवा दिया है
पर मुझे उसकी बात जांची नहीं वैसे भी चोदु चचा पर मैं एक मिनट का भी विश्वास नहीं करता था पर ताऊ फिर से एक नयी शुरुआत कर रहा था तो उसकी जितनी मदद हो उतना ही अच्छा था वैसे भी गीता ताई से अपने दिल के तार जुड़े हुए थे, एक चक्कर गाँव में लगाया पर मन कही भी नहीं लग रहा था तो मैं पानी की टंकी के पास वाले नीम के निचे बैठ गया शाम का समय हो रहा था तो औरते पानी भरने आ रही थी कुछ पानी भरके जा रही थी , तभी मेरी नजर एक औरत पर पड़ी, और नजर ऐसे पड़ी की फिर हटी ही नहीं,
एक औरत करीब २६- २७ साल की उम्र की होगी पर फिगर एक नंबर था उसने ब्लाउज कुछ गहरे गले का पहना हुआ था जब वो झुक कर पानी भर रही थी तो मेरी निगाह उसकी आधे से ज्यादा बाहर को छलक आई चूचियो पर पड़ी , उफ्फ्फ्फ़ क्या बोबे थे मेरा लंड तो तन ही गया देख कर मैंने उसके चेहरे पर गौर किया एक दम टंच माल थी पूरी की पूरी दिल में विचार आया की इसकी चूत मिल जाए तो मजा ही आ जाये , पर अभी तो बस उसको निहार ही सकता था
थोड़ी देर बाद मैंने देखा की गीता ताई भी पानी लेने आई और उस औरत से हंस हंस कर बात कर रही थी तो मैं समझ गया की ये इसकी दोस्त होगी शायद, मैंने उसी समय विचार कर लिया की अब गीता ताई ही सहायता करेगी उस औरत की चूत दिलवाने में जवानी के उफनते जोश में अक्सर मैं ये भूल जाया करता था की चूत कहा हथेली पे रक्खी होती है
ताई गीता से अनिवार्य रूप से बात करनी थी उस माल की सेटिंग की पर मैं कुछ ऐसा उलझा की गीता से मिल ही नहीं पाया , रात को मुझे हॉस्पिटल में जाना पड़ा कभी कभी मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आता था की बाहर तो चूत मिल रही थी पर घर में चाची जैसा ग़दर माल जो पूरी तरह से देने को तैयार था बस उसकी ही नहीं मिल पा रही थी एक तो दिमाग खराब ऊपर से हॉस्पिटल में रात काटनी किसी सजा से कम नहीं थी पर मैं ये भी जानता था की कुछ काम करने ही पड़ते है
सुबह तक उस बेंच पर बैठे बैठ शरीर अकड़ गया था , आँख खुली ही थी की मंजू का भाई चाय ले आया तो मैं चाय की चुसकिया लेते हुए , बालकनी तक आया और बाहर देखने लगा , हवा के साथ एक ताजगी मेरी रूह को छूने लगी रात को बरसात हुई होगी तभी कुछ ठंडक सी भी थी पता नहीं मेरा स्वभाव भी बड़ा अजीब सा क्यों था जब भी अकेला होता खुद को बहुत तनहा सा फील करता , दिल में एक दर्द सा था जिसे कोई महसूस नहीं करता था मेरे सिवाय
मैं अपने बारे में सोचने लगा की पिछले कुछ महीनो में किसी फिल्म के तरह मेरी जिंदगी किस तरह से बदल गयी थी , कहा तो मैं बस ऐसे ही मुठ मारके जी रहा था और अब देखो हर तरफ चूत ही चूत थी पर उन सब से जायदा इम्पोर्टेंट थे कुछ रिश्ते जिन से मैं जुडा हुआ था , मेरा दिल नीनू से बात करने को कर रहा था पर उसने शायद अभी तक वहा पर जाके फ़ोन नहीं लिया था वर्ना वो कर देती कभी का , तमाम विचारो के बीच ऐसा लगा की सरदर्द हो रहा है तो नर्स से एक गोली ली ,
पूरी रात परेशानी में काटी थी कुछ देर सो लेता तो चैन मिल जाता पर अपने नसीब में कहा चैन यारो, बस उलझ कर रह गए थे खामखा अपने आप में , मैं सोचने लगा की काका को छुट्टी दे दे तो रोज रोज आने जाने का पचड़ा ख़तम हो जाये पर ऐसा हो नहीं सकता था , थोडा समय और काटा फिर मैं काकी के पास गया और बोला-काकी मैं घर जा रहा हु , कुछ मंगवाना हो तो बता दो मैं मम्मी के हाथो से भिजवा दूंगा
काकी- बेटा तू थोड़ी देर और रुक फिर मैं भी तेरे साथ ही चलूंगी कुछ कपडे और पैसे लाने है घर से
मैं- ठीक है काकी
तो करीब आधे घंटे बाद मैं और काकी घर के लिए निकल पड़े ऑटो स्टैंड पहुचे पता नहीं क्यों आज टेम्पो में बहुत भीड़ थी तो बैठने की जगह नहीं मिली ऊपर से उमस भरी गर्मी हाल बुरा होने लगा पर घर भी जाना ही था अगला टेम्पो एक घंटे बाद मिलता तो कौन इंतज़ार करता तो टेम्पो झटके खाते हुए चलने लगा थोड़ी दूर जाने के बाद उसने एक दम से ब्रेक लगाये तो काकी का थोडा सा बैलेंस बिगड़ा और उन्होंने जल्दबाजी में मेरे लंड पर हाथ रख दिया लंड उनके हाथ से भिंच गया तो उसमे औरत के हाथ का अहसास पाते ही करंट आ गया
काकी संभल कर खड़ी हुई और मेरी तरफ देखा मैं मुस्कुरा दिया काकी की कुर्ती थोड़ी सी साइड में हो गयी थी तो उनके पेट का साइड वाला हिस्सा दिख रहा था मेरा हाल बुरा होने लगा , अब मैं आपको काकी के बारे में बता दू , काकी एक पतली सी औरत थी छोटी छोटी चूचिया और मध्यम आकर की गांड हां रंग अवश्य गोरा था इतनी ज्यादा माल नहीं लगती थी पर मंजू नाम की माल की माँ थी तो कुछ तो बात होगी ही , बेमतलब ही मेरे मन में काकी की चुदाई के ख्याल आने लगे, लंड में ऐंठन होने लगी तो सफ़र मुश्किल होने लगा
अब हम तो ठहरे आवारा किस्म के प्राणी तो थोड़ी गुस्ताखी करने की सोची और काकी की गांड को हल्का सा दबा दिया काकी ने तुरंत मुड कर मेरी तरफ देखा मैं ऐसे खड़ा हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं , फिर मैंने ऐसा दो तीन बार किया काकी के चूतडो में उठती थिरकन को समझ रहा था मैं , कुछ देर बाद सवारियां उतरी तो सीट मिल गयी काकी बैठ गयी मैं उनके पास खड़ा हो गया , काकी की नजर बार बार मेरी पेंट के उभरे हुए हिस्से पर पड़ रही थी जो लंड की वजह से फूला हुआ दिख रहा था
काकी के चेहरे पर अजीब से भाव आ जा रहे थे पर मैं ऐसे ही खड़ा रहा वो बार बार चोर नजरो से उधर ही देख रही थी तो मैंने पुछा- क्या हुआ काकी कुछ परेशानी है
काकी थूक गटकते हुए- नहीं , कुछ नहीं
मैं- हाँ
वो- अच्छा सजाया है
मैं- बस ऐसे ही
मैं- एक चीज़ दिखाऊ
वो- क्या
मैं-रुक एक मिनट
मैंने अलमारी खोली और अपना एल्बम निकाल लाया मैं उसको अपनी जोधपुर ट्रिप की तस्वीरे दिखाने लगा
मंजू- पूरा मजा किया है तुमने तो
मैं- काश तू चल पाती
वो- अब मेरे नसीब में कहा ये सब
मैं- उदास क्यों होती है मेरे पास कैमरा है तुझे जब चाहे ले लेना खीच अपनी तस्वीरे
मंजू- शुक्रिया
मै- आजके क्या इरादे है
वो- कुछ नहीं , थोड़ी देर बाद घर जाउंगी फिर सफाई करुँगी और कपडे वगैरा धोउंगी बस फिर खाना खाके सो जाउंगी , सुबह फिर हॉस्पिटल जाउंगी
मैं- मैं मदद करवा दू
वो-नहीं मैं कर लुंगी
मैं- इस बहाने थोडा मजा भी कर लेंगे वैसे भी हमको अकेले टाइम कहा मिलता है
मंजू- दो तीन दिन पहले तो किया ही था
मैं- क्या करू यार जी भरता ही नहीं
वो- पर मैं नहीं कर पाऊँगी, क्योंकि मेरा मन नहीं है
मैं- ठीक है यार , मन नहीं है तो मत कर चल तू थोड़ी देर आराम कर ले मैं आता हु
मैं निचे आया तो घर से बाहर चाचा और गीता का पति बात कर रहे थे , मैंने गौर किया आज वो एक दम नहाया धोया लग रहा था कपडे भी साफ़ सुथरे पहने हुए थे , मुझे देख कर वो बोला- बेटा, देख ले तुझसे कल वादा किया था ना की अब दारू बंद, छोड़ दी मैंने और भाई ने मुझे अपने महकमे में माली का काम भी दिलवाया है , अब तू देखना मैं मन लगाके काम करूँगा , बस समाज में अपनी खोयी हुई इज्जत वापिस पानी है मुझे
मैं- ताऊ, देर आये दुरुस्त आये
फिर मैं चाचा के पास गया और बोला- बड़ी मेहरबानी की , इस की वजह क्या है
चाचा- वजह क्या होगी, सुबह मैं जब ऑफिस जा रहा था तो ये मुझे मिला था कही लगवाने को बोल रहा था ऑफिस जाके पता चला की माली की पोस्ट है तो इसको रखवा दिया है
पर मुझे उसकी बात जांची नहीं वैसे भी चोदु चचा पर मैं एक मिनट का भी विश्वास नहीं करता था पर ताऊ फिर से एक नयी शुरुआत कर रहा था तो उसकी जितनी मदद हो उतना ही अच्छा था वैसे भी गीता ताई से अपने दिल के तार जुड़े हुए थे, एक चक्कर गाँव में लगाया पर मन कही भी नहीं लग रहा था तो मैं पानी की टंकी के पास वाले नीम के निचे बैठ गया शाम का समय हो रहा था तो औरते पानी भरने आ रही थी कुछ पानी भरके जा रही थी , तभी मेरी नजर एक औरत पर पड़ी, और नजर ऐसे पड़ी की फिर हटी ही नहीं,
एक औरत करीब २६- २७ साल की उम्र की होगी पर फिगर एक नंबर था उसने ब्लाउज कुछ गहरे गले का पहना हुआ था जब वो झुक कर पानी भर रही थी तो मेरी निगाह उसकी आधे से ज्यादा बाहर को छलक आई चूचियो पर पड़ी , उफ्फ्फ्फ़ क्या बोबे थे मेरा लंड तो तन ही गया देख कर मैंने उसके चेहरे पर गौर किया एक दम टंच माल थी पूरी की पूरी दिल में विचार आया की इसकी चूत मिल जाए तो मजा ही आ जाये , पर अभी तो बस उसको निहार ही सकता था
थोड़ी देर बाद मैंने देखा की गीता ताई भी पानी लेने आई और उस औरत से हंस हंस कर बात कर रही थी तो मैं समझ गया की ये इसकी दोस्त होगी शायद, मैंने उसी समय विचार कर लिया की अब गीता ताई ही सहायता करेगी उस औरत की चूत दिलवाने में जवानी के उफनते जोश में अक्सर मैं ये भूल जाया करता था की चूत कहा हथेली पे रक्खी होती है
ताई गीता से अनिवार्य रूप से बात करनी थी उस माल की सेटिंग की पर मैं कुछ ऐसा उलझा की गीता से मिल ही नहीं पाया , रात को मुझे हॉस्पिटल में जाना पड़ा कभी कभी मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आता था की बाहर तो चूत मिल रही थी पर घर में चाची जैसा ग़दर माल जो पूरी तरह से देने को तैयार था बस उसकी ही नहीं मिल पा रही थी एक तो दिमाग खराब ऊपर से हॉस्पिटल में रात काटनी किसी सजा से कम नहीं थी पर मैं ये भी जानता था की कुछ काम करने ही पड़ते है
सुबह तक उस बेंच पर बैठे बैठ शरीर अकड़ गया था , आँख खुली ही थी की मंजू का भाई चाय ले आया तो मैं चाय की चुसकिया लेते हुए , बालकनी तक आया और बाहर देखने लगा , हवा के साथ एक ताजगी मेरी रूह को छूने लगी रात को बरसात हुई होगी तभी कुछ ठंडक सी भी थी पता नहीं मेरा स्वभाव भी बड़ा अजीब सा क्यों था जब भी अकेला होता खुद को बहुत तनहा सा फील करता , दिल में एक दर्द सा था जिसे कोई महसूस नहीं करता था मेरे सिवाय
मैं अपने बारे में सोचने लगा की पिछले कुछ महीनो में किसी फिल्म के तरह मेरी जिंदगी किस तरह से बदल गयी थी , कहा तो मैं बस ऐसे ही मुठ मारके जी रहा था और अब देखो हर तरफ चूत ही चूत थी पर उन सब से जायदा इम्पोर्टेंट थे कुछ रिश्ते जिन से मैं जुडा हुआ था , मेरा दिल नीनू से बात करने को कर रहा था पर उसने शायद अभी तक वहा पर जाके फ़ोन नहीं लिया था वर्ना वो कर देती कभी का , तमाम विचारो के बीच ऐसा लगा की सरदर्द हो रहा है तो नर्स से एक गोली ली ,
पूरी रात परेशानी में काटी थी कुछ देर सो लेता तो चैन मिल जाता पर अपने नसीब में कहा चैन यारो, बस उलझ कर रह गए थे खामखा अपने आप में , मैं सोचने लगा की काका को छुट्टी दे दे तो रोज रोज आने जाने का पचड़ा ख़तम हो जाये पर ऐसा हो नहीं सकता था , थोडा समय और काटा फिर मैं काकी के पास गया और बोला-काकी मैं घर जा रहा हु , कुछ मंगवाना हो तो बता दो मैं मम्मी के हाथो से भिजवा दूंगा
काकी- बेटा तू थोड़ी देर और रुक फिर मैं भी तेरे साथ ही चलूंगी कुछ कपडे और पैसे लाने है घर से
मैं- ठीक है काकी
तो करीब आधे घंटे बाद मैं और काकी घर के लिए निकल पड़े ऑटो स्टैंड पहुचे पता नहीं क्यों आज टेम्पो में बहुत भीड़ थी तो बैठने की जगह नहीं मिली ऊपर से उमस भरी गर्मी हाल बुरा होने लगा पर घर भी जाना ही था अगला टेम्पो एक घंटे बाद मिलता तो कौन इंतज़ार करता तो टेम्पो झटके खाते हुए चलने लगा थोड़ी दूर जाने के बाद उसने एक दम से ब्रेक लगाये तो काकी का थोडा सा बैलेंस बिगड़ा और उन्होंने जल्दबाजी में मेरे लंड पर हाथ रख दिया लंड उनके हाथ से भिंच गया तो उसमे औरत के हाथ का अहसास पाते ही करंट आ गया
काकी संभल कर खड़ी हुई और मेरी तरफ देखा मैं मुस्कुरा दिया काकी की कुर्ती थोड़ी सी साइड में हो गयी थी तो उनके पेट का साइड वाला हिस्सा दिख रहा था मेरा हाल बुरा होने लगा , अब मैं आपको काकी के बारे में बता दू , काकी एक पतली सी औरत थी छोटी छोटी चूचिया और मध्यम आकर की गांड हां रंग अवश्य गोरा था इतनी ज्यादा माल नहीं लगती थी पर मंजू नाम की माल की माँ थी तो कुछ तो बात होगी ही , बेमतलब ही मेरे मन में काकी की चुदाई के ख्याल आने लगे, लंड में ऐंठन होने लगी तो सफ़र मुश्किल होने लगा
अब हम तो ठहरे आवारा किस्म के प्राणी तो थोड़ी गुस्ताखी करने की सोची और काकी की गांड को हल्का सा दबा दिया काकी ने तुरंत मुड कर मेरी तरफ देखा मैं ऐसे खड़ा हो गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं , फिर मैंने ऐसा दो तीन बार किया काकी के चूतडो में उठती थिरकन को समझ रहा था मैं , कुछ देर बाद सवारियां उतरी तो सीट मिल गयी काकी बैठ गयी मैं उनके पास खड़ा हो गया , काकी की नजर बार बार मेरी पेंट के उभरे हुए हिस्से पर पड़ रही थी जो लंड की वजह से फूला हुआ दिख रहा था
काकी के चेहरे पर अजीब से भाव आ जा रहे थे पर मैं ऐसे ही खड़ा रहा वो बार बार चोर नजरो से उधर ही देख रही थी तो मैंने पुछा- क्या हुआ काकी कुछ परेशानी है
काकी थूक गटकते हुए- नहीं , कुछ नहीं