पिछले भाग में नजमा आफिस के लिए निकलने ही वाले थी की उसे फिरोज़ा का फोन आता है।
नजमा- हेलो फिरोज़ा कैसे हो... सब ठीक तो है ना...
फिरोज़ा- बाजी... वो अब्बू की तबीयत ठीक नहीं है आप यहाँ आ सकती हो क्या अभी...
नजमा- पर हुआ क्या अब्बू को कुछ बताओ तो...
फिरोज़ा- बस आप यहाँ आ जोओ,
नजमा- “ठीक है... मैं बस अभी निकल रही हूँ और फोन डिसकनेक्ट हो जाता है। नजमा काफी परेशान हो चुकी थी। वो कुछ सोचते हुये सैम और महक को आवाज देती है।
सैम- क्या हुआ अम्मी सब ठीक तो है ना...
महक भी नजमा का परेशान चेहरा देखकर पूछ बैठी।
नजमा- “वो बेटा... तुम्हारी खाला का फोन आया था अभी अब्बू की तबीयत शायद कुछ ठीक नहीं है मुझे अभी जाना होगा। सैम तुम ऐसा करो आफिस चले जाओ और वहाँ का काम देखकर जल्दी घर आ जाना मैं शायद कल ही आ पाऊँगी...”
सैम- “अम्मी... मैं भी आपके साथ चलता हूँ.
नजमा जानती थी की ये वहाँ जाने को क्यूँ उछाल रहा है। नाना तो रह जायेंगे, ये और फिरोज़ा एक कमरे में शुरू हो जायेंगे- “नहीं... तुम यहीं रूको, आफिस का काम भी देखना है और महक बेटा तुम घर के बाहर नहीं जाओगी समझी...”
महक- “ज़ी अम्मी
नजमा जल्दी-जल्दी कुछ सामान लेके अपनी कार में बैठकर निकल जाती है।
सैम नजमा के जाने के बाद महक की तरफ देखते हुये- “अरे मोटी... ये तेरे होंठ को क्या हुआ...” सैम के काटने से महक का नचला होंठ थोड़ा सूज गया था।
महक तिलमिलते हुये- “तेरा सर हुआ है कम्बखत। अब तो अम्मी भी नहीं है अब तुझे मुझसे कौन बचाएगा, और महक सैम पे टूट पड़ती है। वो सैम को सोफे पे गिराकर उसके ऊपर चढ़ जाती है और इधर-उधर जहाँ जगह मिले वहाँ घूंसे मारने लगती है।
सैम हँसता चला जाता है उसे तो जैसे गुदगूदी सी हो रही थी। अचानक ही महक की दोनों कल्लाईयां पकड़के उसे अपने नीचे कर लेता है और उसके ऊपर चढ़ जाता है- “महक तू ये कैसे भूल गयी की छूरी तरबूज पे गिरे या तरबूज छूरी पे कटता हमेशा तरबूज ही है
महक सैम का इरादा भाँप चुकी थी। वो बस किसी भी तरह वहाँ से निकलना चाहती थी, क्योंकि वो इन दिनों में एक बात तो जान चुकी थी की जब सैम उसे प्यार से चूमता है तो वो खुद अपने आपमें नहीं रहती और वो चाहके भी सैम को रोक नहीं पायेगी- छोड़ मुझे कमीने वरना मैं चिल्लाऊँगी...”
सैम- “चिल्ला... जितने जोर से चिल्लाना चाहती है चिल्ला...”
महक- “बचाओ मुझे... इस कमीने से बचाओ...” वो सच में चिल्लाने लगती है।
सैम फौरन अपने होंठों से उसकी चीख अपने अंदर समा लेता है गलपप्प्प... गलपप्प्प... सैम की किस्सिंग का अंदाज है, उसके होंठ किसी शराब की तरह थे। एक बार जो किसी के होंठों को चूम ले तो बस उसे अपना आदी बना ले। ये उसका दीवानापन था या मोहब्बत का शुरूर... महक सैम के नीचे ना कोई हरकत कर रही थी और ना कोई झिझक , वो तो जैसे सैम के होंठों का सारा रस पीती चली जा रही थी।
महक की आँखें बंद थी और जुबान सैम के मुँह में। ऐसा लग रहा था मानो जैसे कोई बरसों का प्यासा दो घूंट पानी की तलाश में कुछ ढूँढ़ रहा हो। दोनों बस एक दूसरे की जुबान चूसते जा रहे थे।
तकरीबन 10 मिनट बाद बाहर बाइक की हार्न की वजह से वो दोनों एक दूसरे से अलग हुये पर मोहब्बत का प्याला वो दोनों पे चुके थे।
महक की आँखें लाल हो चुकी थीं, उसमें वो तड़प साफ देखी जा सकती थी जो एक माशूका की आँखों में होती है अपने माशूक को लेने की।
सैम सेफ पे से उठके महक को अपने सीने से लगा लेता है- एक और
महक- “उनह... हूँ छोड़ मुझे जाने दे ना...”
सैम- “बस छोटी सी.
महक- अहह... छोड़ ना बाबा क्या कर रहा है होश में तो है ना तू
सैम- गलपप्प्प... गलपप्प्प...
दोनों फिर से एक दूसरे में खो जाते हैं। शायद महक होश में नहीं आना चाहती थी इसलिये वो सैम को ओर कसके अपने से चिपकाके चूम रही थी। भाई बहन की मोहब्बत ने एक नयी राह पे अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिया था। ये रास्ता उन्हें किस मंजिल पे ले जायेगा, ये तो वो खुद भी नहीं जानते थे। पर कहते है ना की प्यार का अंजाम किसने सोचा हम तो मोहब्बत किए जा रहे हैं।
कुछ देर बाद अचानक बाहर बिजली चमकी और आसमान में बदल घिर आए। उस बिजली की आवाज ने पता नहीं महक के दिल पे क्या जुल्म ढाए की वो एक झटके में सैम से अलग हो गयी और सोफे पे से उठके खड़ी हो गयी।
सैम उसके इस अजीब से बर्ताव से बिदक सा गया था। फिर सैम को एहसास होता है की महक जिस जगह बैठी थी वहाँ एक पानी का धब्बा सा बन गया है। इसका मतलब महक सैम की बाहों में पहली मर्तबा सिर्फ़ किस करने से पानी छोड़ चुकी थी।
महक सैम को घूरते हुये देखने लगती है- “देख सैम... आइंदा मेरे करीब भी आने की कोशिश मत करना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं...”
सैम मुश्कुराता हुआ पानी के निशान पे अपनी दो उंगलियां घुमाता है और चिपचिपा सा वो पानी अपनी नाक के पास लेकर पहले सूँघता है और फिर वो दोनों पानी से भीगी हुई उंगलियां अपने मुँह में डालके चूस लेता है।
महक आँखें फाड़े उसे देखते रह जाती है।
सैम महक को पकड़ने ही वाला था की फोन की रिंग बजती है। ये फोन आफिस से था और सैम को उदास दिल से आफिस जाना पड़ता है।
महक भी अपने कालेज चली जाती है।
आफिस में भी सैम का दिल नहीं लगता वो महक को फोन लगाता है।
महक- “क्या बात है कमीने आज कैसे फोन किया...”
सैम- बस मेरे जान की याद आ गयी।
महक- “ओये ओये ओये शकल देखी है अपनी आइने मैं... मैं कोई तेरी जान-वान नहीं हूँ समझा ना... अगर मुझे आइंदा जान कहा ना तो भुर्ता बना दूँगी समझ ले.
सैम- “हाय मेरी जान... तेरी इस अदा को तो मैं दीवाना हो गया हूँ
महक मुश्कुरा रही थी पर दिखा गुस्सा रही थी- “देख सैम... बहुत हुआ मुझे ये सब ठीक नहीं लगता मैं फोन रख रही हूँ.
सैम- एक किस्सी तो दे दो जी...
महक- जूते दूं क्या वहाँ आके...
सैम- मुआहह... सैम खुद महक को इधर से फोन पे किस कर देता है।
महक चिल्लाते हुई- “कमीना...” और महक फोन काट देती है।
आज पता नहीं इन दोनों को हो क्या गया था। वो दोनों ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे भाई बहन नहीं बल्की लवर्स हों। महक का दिल जहाँ सैम को देखने की लिए मचल्र रहा था, वहीं सैम का दिल महक को बाहों में भरके पता नहीं क्या-क्या करने के लिए कह रहा था। जैसे तैसे शाम हो जाती है और दोनों घर की तरफ निकल जाते है।
नजमा- हेलो फिरोज़ा कैसे हो... सब ठीक तो है ना...
फिरोज़ा- बाजी... वो अब्बू की तबीयत ठीक नहीं है आप यहाँ आ सकती हो क्या अभी...
नजमा- पर हुआ क्या अब्बू को कुछ बताओ तो...
फिरोज़ा- बस आप यहाँ आ जोओ,
नजमा- “ठीक है... मैं बस अभी निकल रही हूँ और फोन डिसकनेक्ट हो जाता है। नजमा काफी परेशान हो चुकी थी। वो कुछ सोचते हुये सैम और महक को आवाज देती है।
सैम- क्या हुआ अम्मी सब ठीक तो है ना...
महक भी नजमा का परेशान चेहरा देखकर पूछ बैठी।
नजमा- “वो बेटा... तुम्हारी खाला का फोन आया था अभी अब्बू की तबीयत शायद कुछ ठीक नहीं है मुझे अभी जाना होगा। सैम तुम ऐसा करो आफिस चले जाओ और वहाँ का काम देखकर जल्दी घर आ जाना मैं शायद कल ही आ पाऊँगी...”
सैम- “अम्मी... मैं भी आपके साथ चलता हूँ.
नजमा जानती थी की ये वहाँ जाने को क्यूँ उछाल रहा है। नाना तो रह जायेंगे, ये और फिरोज़ा एक कमरे में शुरू हो जायेंगे- “नहीं... तुम यहीं रूको, आफिस का काम भी देखना है और महक बेटा तुम घर के बाहर नहीं जाओगी समझी...”
महक- “ज़ी अम्मी
नजमा जल्दी-जल्दी कुछ सामान लेके अपनी कार में बैठकर निकल जाती है।
सैम नजमा के जाने के बाद महक की तरफ देखते हुये- “अरे मोटी... ये तेरे होंठ को क्या हुआ...” सैम के काटने से महक का नचला होंठ थोड़ा सूज गया था।
महक तिलमिलते हुये- “तेरा सर हुआ है कम्बखत। अब तो अम्मी भी नहीं है अब तुझे मुझसे कौन बचाएगा, और महक सैम पे टूट पड़ती है। वो सैम को सोफे पे गिराकर उसके ऊपर चढ़ जाती है और इधर-उधर जहाँ जगह मिले वहाँ घूंसे मारने लगती है।
सैम हँसता चला जाता है उसे तो जैसे गुदगूदी सी हो रही थी। अचानक ही महक की दोनों कल्लाईयां पकड़के उसे अपने नीचे कर लेता है और उसके ऊपर चढ़ जाता है- “महक तू ये कैसे भूल गयी की छूरी तरबूज पे गिरे या तरबूज छूरी पे कटता हमेशा तरबूज ही है
महक सैम का इरादा भाँप चुकी थी। वो बस किसी भी तरह वहाँ से निकलना चाहती थी, क्योंकि वो इन दिनों में एक बात तो जान चुकी थी की जब सैम उसे प्यार से चूमता है तो वो खुद अपने आपमें नहीं रहती और वो चाहके भी सैम को रोक नहीं पायेगी- छोड़ मुझे कमीने वरना मैं चिल्लाऊँगी...”
सैम- “चिल्ला... जितने जोर से चिल्लाना चाहती है चिल्ला...”
महक- “बचाओ मुझे... इस कमीने से बचाओ...” वो सच में चिल्लाने लगती है।
सैम फौरन अपने होंठों से उसकी चीख अपने अंदर समा लेता है गलपप्प्प... गलपप्प्प... सैम की किस्सिंग का अंदाज है, उसके होंठ किसी शराब की तरह थे। एक बार जो किसी के होंठों को चूम ले तो बस उसे अपना आदी बना ले। ये उसका दीवानापन था या मोहब्बत का शुरूर... महक सैम के नीचे ना कोई हरकत कर रही थी और ना कोई झिझक , वो तो जैसे सैम के होंठों का सारा रस पीती चली जा रही थी।
महक की आँखें बंद थी और जुबान सैम के मुँह में। ऐसा लग रहा था मानो जैसे कोई बरसों का प्यासा दो घूंट पानी की तलाश में कुछ ढूँढ़ रहा हो। दोनों बस एक दूसरे की जुबान चूसते जा रहे थे।
तकरीबन 10 मिनट बाद बाहर बाइक की हार्न की वजह से वो दोनों एक दूसरे से अलग हुये पर मोहब्बत का प्याला वो दोनों पे चुके थे।
महक की आँखें लाल हो चुकी थीं, उसमें वो तड़प साफ देखी जा सकती थी जो एक माशूका की आँखों में होती है अपने माशूक को लेने की।
सैम सेफ पे से उठके महक को अपने सीने से लगा लेता है- एक और
महक- “उनह... हूँ छोड़ मुझे जाने दे ना...”
सैम- “बस छोटी सी.
महक- अहह... छोड़ ना बाबा क्या कर रहा है होश में तो है ना तू
सैम- गलपप्प्प... गलपप्प्प...
दोनों फिर से एक दूसरे में खो जाते हैं। शायद महक होश में नहीं आना चाहती थी इसलिये वो सैम को ओर कसके अपने से चिपकाके चूम रही थी। भाई बहन की मोहब्बत ने एक नयी राह पे अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिया था। ये रास्ता उन्हें किस मंजिल पे ले जायेगा, ये तो वो खुद भी नहीं जानते थे। पर कहते है ना की प्यार का अंजाम किसने सोचा हम तो मोहब्बत किए जा रहे हैं।
कुछ देर बाद अचानक बाहर बिजली चमकी और आसमान में बदल घिर आए। उस बिजली की आवाज ने पता नहीं महक के दिल पे क्या जुल्म ढाए की वो एक झटके में सैम से अलग हो गयी और सोफे पे से उठके खड़ी हो गयी।
सैम उसके इस अजीब से बर्ताव से बिदक सा गया था। फिर सैम को एहसास होता है की महक जिस जगह बैठी थी वहाँ एक पानी का धब्बा सा बन गया है। इसका मतलब महक सैम की बाहों में पहली मर्तबा सिर्फ़ किस करने से पानी छोड़ चुकी थी।
महक सैम को घूरते हुये देखने लगती है- “देख सैम... आइंदा मेरे करीब भी आने की कोशिश मत करना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं...”
सैम मुश्कुराता हुआ पानी के निशान पे अपनी दो उंगलियां घुमाता है और चिपचिपा सा वो पानी अपनी नाक के पास लेकर पहले सूँघता है और फिर वो दोनों पानी से भीगी हुई उंगलियां अपने मुँह में डालके चूस लेता है।
महक आँखें फाड़े उसे देखते रह जाती है।
सैम महक को पकड़ने ही वाला था की फोन की रिंग बजती है। ये फोन आफिस से था और सैम को उदास दिल से आफिस जाना पड़ता है।
महक भी अपने कालेज चली जाती है।
आफिस में भी सैम का दिल नहीं लगता वो महक को फोन लगाता है।
महक- “क्या बात है कमीने आज कैसे फोन किया...”
सैम- बस मेरे जान की याद आ गयी।
महक- “ओये ओये ओये शकल देखी है अपनी आइने मैं... मैं कोई तेरी जान-वान नहीं हूँ समझा ना... अगर मुझे आइंदा जान कहा ना तो भुर्ता बना दूँगी समझ ले.
सैम- “हाय मेरी जान... तेरी इस अदा को तो मैं दीवाना हो गया हूँ
महक मुश्कुरा रही थी पर दिखा गुस्सा रही थी- “देख सैम... बहुत हुआ मुझे ये सब ठीक नहीं लगता मैं फोन रख रही हूँ.
सैम- एक किस्सी तो दे दो जी...
महक- जूते दूं क्या वहाँ आके...
सैम- मुआहह... सैम खुद महक को इधर से फोन पे किस कर देता है।
महक चिल्लाते हुई- “कमीना...” और महक फोन काट देती है।
आज पता नहीं इन दोनों को हो क्या गया था। वो दोनों ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे भाई बहन नहीं बल्की लवर्स हों। महक का दिल जहाँ सैम को देखने की लिए मचल्र रहा था, वहीं सैम का दिल महक को बाहों में भरके पता नहीं क्या-क्या करने के लिए कह रहा था। जैसे तैसे शाम हो जाती है और दोनों घर की तरफ निकल जाते है।
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