Darkk Soul
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११)
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“नहीं.... पापा -----!!!!”
ज़ोर से चीखते हुए नेहा बिस्तर पर उठ बैठी...
बगल के कमरे में सो रहे मिस्टर शैलेश रक्षित हड़बड़ा कर उठे और लगभग दौड़ते हुए नेहा के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाज़ा पर दस्तक देने के लिए जैसे ही हाथ रखा; वो खुल गया.
चकित शैलेश ने अंदर कदम रखा --- देखा, उनकी बेटी अपने बेड पर बैठी ज़ोर ज़ोर से हांफ रही है --- आँखों से आँसू बह रहे हैं.
तुरंत नेहा के पास पहुँच कर उसे गौर से देखते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा,
“नेहा --- क्या हुआ बेटा --- तुम चीखी क्यों??”
“पा.... पापा... पापा....” अपने पापा को देख कर नेहा में हिम्मत तो आई लेकिन कुछ कहने की जगह बुरी तरह रोने लगी.
“यस बेटा... व्हाट हैपेंड? टेल मी. इतनी ज़ोर से क्यों चीखी तुम?”
“पा...पापा.... व.. वो.... (हिच)...”
“हाँ बेटा... बोलो.”
“प...पापा... म... मैं... मैंने फ़.... फ़िर....से...”
“फ़िर से क्या, नेहा.??”
“म --- मैं --- मैंने ........ फ़िर --- से व --- व--- वही .... सपना देखा --- पापा....”
मिस्टर रक्षित थोड़ा कन्फ्यूज्ड हुए;
सोच में पड़ गए कि ‘ये किस सपने की बात करने लगी? आख़िर ऐसा कौन सा सपना देख लिया कि इस तरह रोने - चीखने लगी?’
फ़िलहाल अधिक सोचने का उनके पास टाइम नहीं था... उनकी प्यारी बेटी --- जान से भी अधिक प्यारी और कीमती --- नेहा बेतहाशा रो रही है. अतः पहले उसे सम्भालना ज़्यादा ज़रूरी है.
“किस सपने के बारे में बात कर रही हो, नेहा?” उसके पास बैठते हुए पूछा मिस्टर रक्षित ने.
“व.... व... वही --- पुराना .... सपना... पापा.” इस वाक्य को बोलते बोलते नेहा की आँखें थोड़ी बड़ी हो गयीं और वो खुद डर कर चादर के अंदर सिकुड़ गई.
जो भी सपना वो देखी थी; देख कर बेचारी इतनी डर गयी कि सिवाय रोने के; ठीक से बात तक नहीं कर पा रही है और जब बात की --- उस एक वाक्य.... किसी पुराने सपने को देखने की बात की; तो अपने में खोयी – डरी नेहा ये नहीं देख पाई की उसके मुख से उस ‘पुराने सपने’ का ज़िक्र सुनते ही उसके पापा मिस्टर शैलेश रक्षित का चेहरा भी पल भर के लिए सफ़ेद पड़ गया था.
खुद को सम्भालने की कोशिश में उन्होंने अपने सिर को एक झटका दिया और फिर अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रख कर उसे हिम्मत देने की कोशिश की,
“बेटी... तुमने जो कुछ भी देखा वो एक बुरा सपना था --- एक बहुत बुरा सपना --- कुछ दिनों से काम का प्रेशर बहुत बढ़ गया है न तुम पर.... इसलिए दिमाग पर भी काफ़ी दबाव बढ़ गया है --- इसी कारण तुम ऐसे वैसे सपने देख रही हो. चलो, एक ग्लास ठंडा पानी पियो और निश्चिन्त हो कर सो जाओ. चलो...”
बगल में रखे ग्लास में पानी डाल कर शैलेश जी ने नेहा की ओर बढ़ाया. पर उसने ग्लास नहीं ली.... उल्टे, धीमे स्वर में बोली,
“सच पापा...? ये केवल एक बुरा सपना था?”
शैलेश जी हँसने की कोशिश करते हुए बोले,
“हाँ बेटी --- ऐसे सपनों को ज्यादा तुल नहीं देते --- सपनों का क्या है --- ये तो आते जाते हैं .... लो, तुम पानी पियो.”
लेकिन नेहा अब भी ग्लास नहीं पकड़ी --- पकड़ना क्या, ग्लास की ओर देखी तक नहीं....
शैलेश जी थोड़ा परेशान हुए; बेटी के साथ वो किसी भी तरह की कोई परेशानी या समस्या खड़ी होते नहीं देखना चाहते.... स्वयं उन्होंने हमेशा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की. कभी उसका दिल नहीं दुखने दिया.
आज भी यही हाल है....
बेटी के चेहरे पर अत्यधिक डर की छाप देख वो खुद भी बड़े हैरान, परेशान व चिंतित हो उठे.
“क्या हुआ बेटा? लो, पानी पियो.”
“क्यों --- बुरा सपना क्यों??”
अचानक से एक भारी और अजीब सी आवाज़ में बोल उठी नेहा. सुनते ही शैलेश जी डर के मारे तुरंत ही बिस्तर से पाँच कदम दूर जा खड़े हुए. ग्लास अब भी उनके हाथ में था.
“नेहा, बेटा ---- ये क्या कक्क... ह... ह --- क..”
डर से उनकी ऐसी घिग्घी बंध गई की मुँह से स्वर तो क्या वर्ण ही निकलना भूल गए.
“कौन बेटी --- शैलेश अंकल? यहाँ मैं हूँ --- आपकी बेटी नहीं.” फिर से वही खनकती; लेकिन भारी आवाज़ गूँजी.
शैलेश जी बोलना तो कुछ चाहे ज़रूर पर पता नहीं क्यों उनका दिल इस बात के लिए राजी नहीं हुआ. वह डरते हुए दो कदम नेहा की ओर बढ़ाये और फिर तुरंत ही तीन कदम पीछे चले गए ----
‘य --- य --- ये का --- कौन --- ह --- है! न --- नेहा नहीं है ये!!’
ये विचार शैलेश जी के मन में यूँ ही नहीं गूँजे थे --- वाकई में बिस्तर पर बैठी लड़की अब नेहा नहीं थी --- उसका चेहरा --- वो जो कोई भी थी; बहुत कष्ट और पीड़ा से भरा नजर आ रहा था.... पर साथ ही साथ, उसकी आँखों में हद से भी अधिक गुस्सा था --- इतना की सामने जो आए; जल कर राख हो जाए.
वह लड़की एकदम से शैलेश जी की ओर मुँह घूमा कर देखी --- और --- उसके ऐसा करते ही शैलेश जी की आँखें अविश्वास से फ़ैल गयीं और कंठ से चीख निकलते देर नहीं लगी,
“तु.... न... नहीं --- नहीं..... नहींsssss!!!”
तभी उन्हें लगा की वो अचानक से हिलने लगे हैं --- अपने आप! लेकिन दो क्षण बाद ही उन्होंने गौर किया कि वो स्वयं नहीं; अपितु कोई उन्हें हिला रहा है --- ज़ोरों से हिला रहा है --- साथ ही कान में जैसे दूर से गूँजती एक आवाज़ बार बार टकरा रही है ---- ‘पापा .... पापा.... पापा....!’ ---- शैलेश जी स्वयं को सम्भालने की कोशिश करने लगे --- रूम से निकल जाना चाहते थे --- लेकिन कुछ कदमों की दूरी पर स्थित दरवाज़ा भी उन्हें ऐसी स्थिति में कोसों दूर मालूम पड़ रही थी. इसी सब के बीच उनकी दृष्टि अनायास ही बिस्तर पर बैठी उस लड़की की ओर चली गई --- पर अब वहाँ वो लड़की न होकर उस लड़की की आकृति केवल दिख रही थी --- तभी एक बार फिर वो आवाज़ गूँजी; इस बार दूर से नहीं --- बिल्कुल कान में --- “पापाssssss!!!”.
शैलेश जी को अब तक जहाँ अपना शरीर अकड़ गया मालूम पड़ रहा था; इस एक आवाज़ ने उन्हें हड़बड़ा कर उठा दिया.
उठते ही सामने खड़ी आकृति को देख कर उनके छक्के छूट गए.
सामने नेहा खड़ी थी.
“पापा--- क्या हुआ --- आप चिल्ला क्यों रहे थे? --- कोई बहुत बुरा सपना देख रहे थे क्या?”
“न... नेहा?”
शैलेश जी को यह विश्वास होना कठिन हो रहा था कि सामने उनकी बेटी नेहा ही है --- कोई और नहीं. उन कुछ पलों का सपना इतना भयावह था कि शैलेश जी जागे अवस्था में भी बुरी तरह डरे हुए और काँप रहे थे .... पसीने से तर-बतर थे.
नेहा जल्दी से पंखा तेज़ की --- एक ग्लास में पानी भर कर लाई --- कमरे की खिड़की खोली --- और आ कर शैलेश जी के सामने खड़ी हो गई.
“पापा --- क्या हुआ था आपको?”
नेहा के इस प्रश्न का उत्तर ठीक कैसे दें ये समझ नहीं पाए शैलेश जी --- आख़िर सपने के बारे में कहते भी क्या? --- क्या व्याख्या देते? --- अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है कि बुरा सपना था --- या बहुत बुरा सपना था?
पर अभी कुछ तो कहना ही होगा उनको --- नेहा इस तरह परेशान लग रही है --- ज़रूर सपना देखते हुए उन्होंने कुछ किया होगा --- शायद, चिल्लाया होगा.....
“व... वो बेटा .... ए ... एक सपना देखा --- इसलिए....”
“सपना?”
“हाँ..”
“बुरा था?”
“ह... हाँ बेटा.... बहुत बुरा था --- बहुत....”
“ओ --- क्या सपना था पापा?”
“व --- व--- वो... बस, एक था--- सपना --- कुछ ख़ास नहीं --- तुम छोड़ो --- जाओ, जा के सो जाओ.”
“क्यों पापा --- ख़ास क्यों नहीं है --- आप बताइए न.”
“अरे कुछ नहीं है बेटा; तुम चिंता नहीं करो.... जाओ, जा कर सो जाओ.”
“पापा, सच बताइए .... आपने वही सपना देखा था न?”
थोड़ा चुप रह कर शैलेश जी धीरे से सिर हिला कर हाँ में जवाब दिया. देख कर नेहा की आँखों में आँसू आ गए... नज़र दूसरी ओर घूमा कर आंसुओं को बहने से रोका. धीमे स्वर में पूछी,
“ब्लैक स्कार्पियो?”
“हम्म.” शैलेश जी ने भी उतने ही धीमे स्वर में उत्तर दिया.
“अँधेरा --- चारों तरफ़?”
“हम्म.”
“रात का समय?”
“हाँ.”
असल सपना क्या था ये शैलेश जी नेहा को बताना नहीं चाह रहे थे इसलिए नेहा जो जो पूछती गई शैलेश जी उसी हिसाब से सबका उत्तर देते गए.
उत्तर देने के तुरंत बाद एक दीर्घ श्वास लेते हुए शैलेश जी ने हाथ में पकड़े ग्लास को एक झटके में खत्म किया --- नेहा तुरंत ग्लास भर कर पास रखे स्टूल पर दी. आँखें बंद कर सिर को तनिक झुका कर कुछ सोचने एवं अपने उखड़े साँसों पर नियंत्रण पाने का प्रयास करने लगे.
दो ही क्षण बीते होंगे की नेहा की आवाज उनके कानों से टकराई...
“आपको सपना देख कर ही इतना डर लग गया अंकल --- सोचिए तो; मेरा क्या हुआ होगा?”
शैलेश जी चौंक उठे...
ऐसा हो भी क्यों न --- उन्हीं की बेटी उन्हें पापा कहने के बजाए अंकल कह रही है! और --- और --- ये क्या कह रही है वो?! ‘मेरा क्या हुआ होगा?!’ अर्थात् ?? कब? क्या हुआ होगा?
मन भय से इतना व्याकुल और अस्थिर हो गया की अधिक कुछ सोचा ही नहीं गया उनसे. शरीर में एकबार फिर से कंपन शुरू हो गई. सिर उठा कर नेहा की चेहरे की ओर देखा --- नेहा का सिर उसके दाएँ कंधे पर झुका हुआ था (tilted sideways) ! चेहरे पर एक अत्यंत ही मोहक --- पर कातिल मुस्कान थी! आँखों में पीड़ा, चेहरा कठोर --- उफ्फ! रात के उस पहर में ऐसा दृश्य बहुत ही भयावह होता है किसी के लिए भी --- और यहाँ तो शैलेश जी .........
वो चेहरा --- वो आँखें ---- वो पीड़ायुक्त मुस्कान --- अभी भी शैलेश जी के लिए थे --- उन्हीं की ओर --- एकटक --- और --- और, एक - एक पग आगे बढ़ते जा रहे थे... शैलेश जी तो जैसे जहाँ बैठे थे; वहीं जम गए.
तभी अचानक एक बार फिर शैलेश जी का शरीर ज़ोरों से हिलने लगा. ऐसे जैसे की मानो कोई उन्हें उठा रहा था! --- उठाने की कोशिश कर रहा हो!
मतलब --- मतलब --- वो अभी भी सो रहे हैं!!
पहले की ही भांति एकदम से उठ बैठे शैलेश जी ... देखा,
सामने नेहा खड़ी थी!
उन्हें विश्वास नहीं हुआ.
वही वेशभूषा, वही ढंग, वही जिज्ञासा लिए वो उन्हें देख रही थी !
लेकिन इस बार वो अकेले नहीं थी; देव भी बगल में ही मौजूद था.
वो भी उन्हीं को देख रहा था --- चिंता और उत्सुकता लिए.
नेहा हाथ आगे बढ़ा कर शैलेश जी का कन्धा पकड़ कर तनिक झँझोड़ते हुए पूछी,
“पापा --- क्या हुआ आपको? चिल्ला क्यों रहे थे?”
“म --- मैं --- कहाँ चिल्ला रहा था?”
“आप चिल्ला रहे थे... अभी तुरंत नहीं --- कुछ देर पहले --- करीब दस मिनट से आपको जगाने की कोशिश कर रहे थे पर आप .....” देव बोलते हुए चुप हो गया.
“त... तू... तुम यहाँ कैसे --- घर कब आए?”
इस प्रश्न पर नेहा बिफ़र पड़ी,
“कमाल करते हो अंकल आप --- ये यहाँ मेरे साथ नहीं होंगे तो कहाँ किसके साथ होंगे?”
“अ.. हाँ... ठीक.... ठीक...” कहते हुए शैलेश जी स्टूल पर रखे ग्लास को उठाने ही वाले थे कि एकाएक उनको रुक जाना पड़ा. अभी - अभी जो सुना उन्होंने उसपे उन्हें विश्वास नहीं हुआ.
‘अंकल! फिर से अंकल!’
तपाक से सिर घूमा कर उन दोनों की ओर देखा उन्होंने ....
नेहा का हाथ देव के हाथ में था --- दोनों की अंगुलियाँ आपस में फँसे हुए थे --- देव का चेहरा धीरे धीरे धुँधला होता जा रहा था --- साथ ही नेहा का भी --- बस उसकी आँखें और होंठ कुछ स्पष्ट दिख रहे थे --- होंठों पर मुस्कान थी --- और आँखों की पुतलियाँ लाल!!
दोनों के पूरी तरह ओझल होने से पहले कमरे में धीमे स्वर में एक जनाना आवाज़ गूँजा --- “Nice to meet you uncle”.....
अंग्रेजी में गूँजा ये वाक्य शैलेश जी को धुँधला सा कुछ याद दिलाता चला गया --- और आतंकित शैलेश जी धप्प से बिस्तर पर गिर गए....
होश खो बैठे थे बेचारे!
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“नहीं.... पापा -----!!!!”
ज़ोर से चीखते हुए नेहा बिस्तर पर उठ बैठी...
बगल के कमरे में सो रहे मिस्टर शैलेश रक्षित हड़बड़ा कर उठे और लगभग दौड़ते हुए नेहा के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाज़ा पर दस्तक देने के लिए जैसे ही हाथ रखा; वो खुल गया.
चकित शैलेश ने अंदर कदम रखा --- देखा, उनकी बेटी अपने बेड पर बैठी ज़ोर ज़ोर से हांफ रही है --- आँखों से आँसू बह रहे हैं.
तुरंत नेहा के पास पहुँच कर उसे गौर से देखते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा,
“नेहा --- क्या हुआ बेटा --- तुम चीखी क्यों??”
“पा.... पापा... पापा....” अपने पापा को देख कर नेहा में हिम्मत तो आई लेकिन कुछ कहने की जगह बुरी तरह रोने लगी.
“यस बेटा... व्हाट हैपेंड? टेल मी. इतनी ज़ोर से क्यों चीखी तुम?”
“पा...पापा.... व.. वो.... (हिच)...”
“हाँ बेटा... बोलो.”
“प...पापा... म... मैं... मैंने फ़.... फ़िर....से...”
“फ़िर से क्या, नेहा.??”
“म --- मैं --- मैंने ........ फ़िर --- से व --- व--- वही .... सपना देखा --- पापा....”
मिस्टर रक्षित थोड़ा कन्फ्यूज्ड हुए;
सोच में पड़ गए कि ‘ये किस सपने की बात करने लगी? आख़िर ऐसा कौन सा सपना देख लिया कि इस तरह रोने - चीखने लगी?’
फ़िलहाल अधिक सोचने का उनके पास टाइम नहीं था... उनकी प्यारी बेटी --- जान से भी अधिक प्यारी और कीमती --- नेहा बेतहाशा रो रही है. अतः पहले उसे सम्भालना ज़्यादा ज़रूरी है.
“किस सपने के बारे में बात कर रही हो, नेहा?” उसके पास बैठते हुए पूछा मिस्टर रक्षित ने.
“व.... व... वही --- पुराना .... सपना... पापा.” इस वाक्य को बोलते बोलते नेहा की आँखें थोड़ी बड़ी हो गयीं और वो खुद डर कर चादर के अंदर सिकुड़ गई.
जो भी सपना वो देखी थी; देख कर बेचारी इतनी डर गयी कि सिवाय रोने के; ठीक से बात तक नहीं कर पा रही है और जब बात की --- उस एक वाक्य.... किसी पुराने सपने को देखने की बात की; तो अपने में खोयी – डरी नेहा ये नहीं देख पाई की उसके मुख से उस ‘पुराने सपने’ का ज़िक्र सुनते ही उसके पापा मिस्टर शैलेश रक्षित का चेहरा भी पल भर के लिए सफ़ेद पड़ गया था.
खुद को सम्भालने की कोशिश में उन्होंने अपने सिर को एक झटका दिया और फिर अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रख कर उसे हिम्मत देने की कोशिश की,
“बेटी... तुमने जो कुछ भी देखा वो एक बुरा सपना था --- एक बहुत बुरा सपना --- कुछ दिनों से काम का प्रेशर बहुत बढ़ गया है न तुम पर.... इसलिए दिमाग पर भी काफ़ी दबाव बढ़ गया है --- इसी कारण तुम ऐसे वैसे सपने देख रही हो. चलो, एक ग्लास ठंडा पानी पियो और निश्चिन्त हो कर सो जाओ. चलो...”
बगल में रखे ग्लास में पानी डाल कर शैलेश जी ने नेहा की ओर बढ़ाया. पर उसने ग्लास नहीं ली.... उल्टे, धीमे स्वर में बोली,
“सच पापा...? ये केवल एक बुरा सपना था?”
शैलेश जी हँसने की कोशिश करते हुए बोले,
“हाँ बेटी --- ऐसे सपनों को ज्यादा तुल नहीं देते --- सपनों का क्या है --- ये तो आते जाते हैं .... लो, तुम पानी पियो.”
लेकिन नेहा अब भी ग्लास नहीं पकड़ी --- पकड़ना क्या, ग्लास की ओर देखी तक नहीं....
शैलेश जी थोड़ा परेशान हुए; बेटी के साथ वो किसी भी तरह की कोई परेशानी या समस्या खड़ी होते नहीं देखना चाहते.... स्वयं उन्होंने हमेशा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की. कभी उसका दिल नहीं दुखने दिया.
आज भी यही हाल है....
बेटी के चेहरे पर अत्यधिक डर की छाप देख वो खुद भी बड़े हैरान, परेशान व चिंतित हो उठे.
“क्या हुआ बेटा? लो, पानी पियो.”
“क्यों --- बुरा सपना क्यों??”
अचानक से एक भारी और अजीब सी आवाज़ में बोल उठी नेहा. सुनते ही शैलेश जी डर के मारे तुरंत ही बिस्तर से पाँच कदम दूर जा खड़े हुए. ग्लास अब भी उनके हाथ में था.
“नेहा, बेटा ---- ये क्या कक्क... ह... ह --- क..”
डर से उनकी ऐसी घिग्घी बंध गई की मुँह से स्वर तो क्या वर्ण ही निकलना भूल गए.
“कौन बेटी --- शैलेश अंकल? यहाँ मैं हूँ --- आपकी बेटी नहीं.” फिर से वही खनकती; लेकिन भारी आवाज़ गूँजी.
शैलेश जी बोलना तो कुछ चाहे ज़रूर पर पता नहीं क्यों उनका दिल इस बात के लिए राजी नहीं हुआ. वह डरते हुए दो कदम नेहा की ओर बढ़ाये और फिर तुरंत ही तीन कदम पीछे चले गए ----
‘य --- य --- ये का --- कौन --- ह --- है! न --- नेहा नहीं है ये!!’
ये विचार शैलेश जी के मन में यूँ ही नहीं गूँजे थे --- वाकई में बिस्तर पर बैठी लड़की अब नेहा नहीं थी --- उसका चेहरा --- वो जो कोई भी थी; बहुत कष्ट और पीड़ा से भरा नजर आ रहा था.... पर साथ ही साथ, उसकी आँखों में हद से भी अधिक गुस्सा था --- इतना की सामने जो आए; जल कर राख हो जाए.
वह लड़की एकदम से शैलेश जी की ओर मुँह घूमा कर देखी --- और --- उसके ऐसा करते ही शैलेश जी की आँखें अविश्वास से फ़ैल गयीं और कंठ से चीख निकलते देर नहीं लगी,
“तु.... न... नहीं --- नहीं..... नहींsssss!!!”
तभी उन्हें लगा की वो अचानक से हिलने लगे हैं --- अपने आप! लेकिन दो क्षण बाद ही उन्होंने गौर किया कि वो स्वयं नहीं; अपितु कोई उन्हें हिला रहा है --- ज़ोरों से हिला रहा है --- साथ ही कान में जैसे दूर से गूँजती एक आवाज़ बार बार टकरा रही है ---- ‘पापा .... पापा.... पापा....!’ ---- शैलेश जी स्वयं को सम्भालने की कोशिश करने लगे --- रूम से निकल जाना चाहते थे --- लेकिन कुछ कदमों की दूरी पर स्थित दरवाज़ा भी उन्हें ऐसी स्थिति में कोसों दूर मालूम पड़ रही थी. इसी सब के बीच उनकी दृष्टि अनायास ही बिस्तर पर बैठी उस लड़की की ओर चली गई --- पर अब वहाँ वो लड़की न होकर उस लड़की की आकृति केवल दिख रही थी --- तभी एक बार फिर वो आवाज़ गूँजी; इस बार दूर से नहीं --- बिल्कुल कान में --- “पापाssssss!!!”.
शैलेश जी को अब तक जहाँ अपना शरीर अकड़ गया मालूम पड़ रहा था; इस एक आवाज़ ने उन्हें हड़बड़ा कर उठा दिया.
उठते ही सामने खड़ी आकृति को देख कर उनके छक्के छूट गए.
सामने नेहा खड़ी थी.
“पापा--- क्या हुआ --- आप चिल्ला क्यों रहे थे? --- कोई बहुत बुरा सपना देख रहे थे क्या?”
“न... नेहा?”
शैलेश जी को यह विश्वास होना कठिन हो रहा था कि सामने उनकी बेटी नेहा ही है --- कोई और नहीं. उन कुछ पलों का सपना इतना भयावह था कि शैलेश जी जागे अवस्था में भी बुरी तरह डरे हुए और काँप रहे थे .... पसीने से तर-बतर थे.
नेहा जल्दी से पंखा तेज़ की --- एक ग्लास में पानी भर कर लाई --- कमरे की खिड़की खोली --- और आ कर शैलेश जी के सामने खड़ी हो गई.
“पापा --- क्या हुआ था आपको?”
नेहा के इस प्रश्न का उत्तर ठीक कैसे दें ये समझ नहीं पाए शैलेश जी --- आख़िर सपने के बारे में कहते भी क्या? --- क्या व्याख्या देते? --- अधिक से अधिक यही कहा जा सकता है कि बुरा सपना था --- या बहुत बुरा सपना था?
पर अभी कुछ तो कहना ही होगा उनको --- नेहा इस तरह परेशान लग रही है --- ज़रूर सपना देखते हुए उन्होंने कुछ किया होगा --- शायद, चिल्लाया होगा.....
“व... वो बेटा .... ए ... एक सपना देखा --- इसलिए....”
“सपना?”
“हाँ..”
“बुरा था?”
“ह... हाँ बेटा.... बहुत बुरा था --- बहुत....”
“ओ --- क्या सपना था पापा?”
“व --- व--- वो... बस, एक था--- सपना --- कुछ ख़ास नहीं --- तुम छोड़ो --- जाओ, जा के सो जाओ.”
“क्यों पापा --- ख़ास क्यों नहीं है --- आप बताइए न.”
“अरे कुछ नहीं है बेटा; तुम चिंता नहीं करो.... जाओ, जा कर सो जाओ.”
“पापा, सच बताइए .... आपने वही सपना देखा था न?”
थोड़ा चुप रह कर शैलेश जी धीरे से सिर हिला कर हाँ में जवाब दिया. देख कर नेहा की आँखों में आँसू आ गए... नज़र दूसरी ओर घूमा कर आंसुओं को बहने से रोका. धीमे स्वर में पूछी,
“ब्लैक स्कार्पियो?”
“हम्म.” शैलेश जी ने भी उतने ही धीमे स्वर में उत्तर दिया.
“अँधेरा --- चारों तरफ़?”
“हम्म.”
“रात का समय?”
“हाँ.”
असल सपना क्या था ये शैलेश जी नेहा को बताना नहीं चाह रहे थे इसलिए नेहा जो जो पूछती गई शैलेश जी उसी हिसाब से सबका उत्तर देते गए.
उत्तर देने के तुरंत बाद एक दीर्घ श्वास लेते हुए शैलेश जी ने हाथ में पकड़े ग्लास को एक झटके में खत्म किया --- नेहा तुरंत ग्लास भर कर पास रखे स्टूल पर दी. आँखें बंद कर सिर को तनिक झुका कर कुछ सोचने एवं अपने उखड़े साँसों पर नियंत्रण पाने का प्रयास करने लगे.
दो ही क्षण बीते होंगे की नेहा की आवाज उनके कानों से टकराई...
“आपको सपना देख कर ही इतना डर लग गया अंकल --- सोचिए तो; मेरा क्या हुआ होगा?”
शैलेश जी चौंक उठे...
ऐसा हो भी क्यों न --- उन्हीं की बेटी उन्हें पापा कहने के बजाए अंकल कह रही है! और --- और --- ये क्या कह रही है वो?! ‘मेरा क्या हुआ होगा?!’ अर्थात् ?? कब? क्या हुआ होगा?
मन भय से इतना व्याकुल और अस्थिर हो गया की अधिक कुछ सोचा ही नहीं गया उनसे. शरीर में एकबार फिर से कंपन शुरू हो गई. सिर उठा कर नेहा की चेहरे की ओर देखा --- नेहा का सिर उसके दाएँ कंधे पर झुका हुआ था (tilted sideways) ! चेहरे पर एक अत्यंत ही मोहक --- पर कातिल मुस्कान थी! आँखों में पीड़ा, चेहरा कठोर --- उफ्फ! रात के उस पहर में ऐसा दृश्य बहुत ही भयावह होता है किसी के लिए भी --- और यहाँ तो शैलेश जी .........
वो चेहरा --- वो आँखें ---- वो पीड़ायुक्त मुस्कान --- अभी भी शैलेश जी के लिए थे --- उन्हीं की ओर --- एकटक --- और --- और, एक - एक पग आगे बढ़ते जा रहे थे... शैलेश जी तो जैसे जहाँ बैठे थे; वहीं जम गए.
तभी अचानक एक बार फिर शैलेश जी का शरीर ज़ोरों से हिलने लगा. ऐसे जैसे की मानो कोई उन्हें उठा रहा था! --- उठाने की कोशिश कर रहा हो!
मतलब --- मतलब --- वो अभी भी सो रहे हैं!!
पहले की ही भांति एकदम से उठ बैठे शैलेश जी ... देखा,
सामने नेहा खड़ी थी!
उन्हें विश्वास नहीं हुआ.
वही वेशभूषा, वही ढंग, वही जिज्ञासा लिए वो उन्हें देख रही थी !
लेकिन इस बार वो अकेले नहीं थी; देव भी बगल में ही मौजूद था.
वो भी उन्हीं को देख रहा था --- चिंता और उत्सुकता लिए.
नेहा हाथ आगे बढ़ा कर शैलेश जी का कन्धा पकड़ कर तनिक झँझोड़ते हुए पूछी,
“पापा --- क्या हुआ आपको? चिल्ला क्यों रहे थे?”
“म --- मैं --- कहाँ चिल्ला रहा था?”
“आप चिल्ला रहे थे... अभी तुरंत नहीं --- कुछ देर पहले --- करीब दस मिनट से आपको जगाने की कोशिश कर रहे थे पर आप .....” देव बोलते हुए चुप हो गया.
“त... तू... तुम यहाँ कैसे --- घर कब आए?”
इस प्रश्न पर नेहा बिफ़र पड़ी,
“कमाल करते हो अंकल आप --- ये यहाँ मेरे साथ नहीं होंगे तो कहाँ किसके साथ होंगे?”
“अ.. हाँ... ठीक.... ठीक...” कहते हुए शैलेश जी स्टूल पर रखे ग्लास को उठाने ही वाले थे कि एकाएक उनको रुक जाना पड़ा. अभी - अभी जो सुना उन्होंने उसपे उन्हें विश्वास नहीं हुआ.
‘अंकल! फिर से अंकल!’
तपाक से सिर घूमा कर उन दोनों की ओर देखा उन्होंने ....
नेहा का हाथ देव के हाथ में था --- दोनों की अंगुलियाँ आपस में फँसे हुए थे --- देव का चेहरा धीरे धीरे धुँधला होता जा रहा था --- साथ ही नेहा का भी --- बस उसकी आँखें और होंठ कुछ स्पष्ट दिख रहे थे --- होंठों पर मुस्कान थी --- और आँखों की पुतलियाँ लाल!!
दोनों के पूरी तरह ओझल होने से पहले कमरे में धीमे स्वर में एक जनाना आवाज़ गूँजा --- “Nice to meet you uncle”.....
अंग्रेजी में गूँजा ये वाक्य शैलेश जी को धुँधला सा कुछ याद दिलाता चला गया --- और आतंकित शैलेश जी धप्प से बिस्तर पर गिर गए....
होश खो बैठे थे बेचारे!