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"यह ले रेशू! पकड़ इसे"
ममता अति-शीघ्र पुनः खड़ी हो कर पलटी और ऋषभ की तरफ उस ढक्कन को फेंकती है, उसके ऐसा करने से कुच्छ पल के लिए अत्यंत कसी ब्रा में क़ैद उसके मम्मे झूल कर तेज़ी से से उच्छल-कूद करने लगते है और जिसका भान होते ही अत्यधिक शरम से वह पानी-पानी हो जाती है.
उसने फॉरन अपने पुत्र के चेहरे को देखा, वह पूर्व से ही मुस्कुरा रहा था और जाने क्यों ममता भी मुस्कुरा उठी. पहली बार ऋषभ ने अपनी मा के दुखी चेहरे को खुशनुमा होते देखा था और उसने अपने गुप्तांगो को भी छुपाने की कोई कोशिश नही की थी.
"ओह्ह्ह! इतनी टाइट ब्रा मैं अब कभी नही खरीदूंगी " कह कर ममता अपने दोनो हाथो को मोडते हुवे उन्हें अपनी पीठ पर ले गयी और उंगलियों की मदद से अपनी ब्रा का हुक टटोलने लगती है. उसके चेहरे की निरंतर बदलती जा रही आकृतयां यह प्रदर्शित करने को काफ़ी थी कि वाकाई उसने अपने गोल मटोल मम्मो से अपेक्षाकृत बहुत छोटी ब्रा का चयन कर लिया था.
जल्द ही उसकी उंगलियों की पकड़ में उसकी ब्रा का हुक आ जाता है और कॅबिन में एक विशेष ध्वनि के पैदा होते ही वो खुल भी गया. ब्रा की क़ैद से मुक्त हुवे उसके मम्मे नंगे हो पाते इससे पहले ही ममता बड़ी सजगता के साथ उन्हे अपनी ब्रा से बाहर आने से रोक चुकी थी और पुनः ऋषभ के चेहरे को देख कर मुस्कुराने लगती है,
जो सॉफ संकेत था कि उसने भी अब उस अमर्यादित परिस्थिति को काफ़ी हद तक स्वीकार कर लिया था.
उसकी इच्छाए पिच्छले दो महीनो से दबी रहने के कारण अब हिंसक रूप धारण करती जा रही थी.
"रेशू! आज तेरी मा के मम्मे पहली बार किसी पर-पुरुष के सामने नंगे हो रहे हैं" ममता ने अपनी शर्मीली मुस्कान ज़ारी रखी और तत-पश्चात फॉरन ब्रा को अपनी मांसल बाहों से बाहर निकाल कर नीचे फर्श पर गिरा देती है.
उसकी भय-हीन कजरारी आँखों का जुड़ाव उसके पुत्र के आश्चर्य से खुले हुवे मुख पर केंद्रित हो गया था, जिसके प्रभाव से अचानक उसके निपल तन कर किसी भाले की नोक सम्तुल्य कड़क होने लगे और अपनी चूत की अनंत गहराई में आकस्मात ही वह गाढ़ा कामरस उमड़ता महसूस करने लगती है.
"मेरा सौभाग्य है मा कि इनके दुर्लभ दर्शन करने वाला मैं पहला पर-पुरुष हूँ! तुम्हारा सगा बेटा" ऋषभ ने आनंदित स्वर में कहा.
उसके विश्वास की यह पराकाष्ठा थी या ममता एक अपवाद जो उसकी अधेड़ उमर के बावजूद उसके मम्मो में ज़रा सा भी झुकाव नही आया था, पूर्व में देखे अनगिनत मम्मो में सबसे सुंदर और सुडोल. उन पर सुशोभित निप्पलो का भूरा रंग आकर्षण से भरपूर और कामुकता से परिपूर्ण था.
"मुझे लगता है कि हम मूल विषय से भटक रहे हैं रेशू इसलिए मैं अपने शरीर पर बचे इस अंतिम कपड़े को भी उतार देना चाहूँगी ताकि यह व्यर्थ का वाद-विवाद यहीं समाप्त हो जाए" कहने के उपरांत ममता अपने दोनो हाथ अपनी कमर के इर्द-गिर्द रख कर अपनी कच्छी की एलास्टिक में अपने अंगूठे फसा लेती है.
पल प्रति पल उसकी आँखें कामोत्तजना की चपेट से बंद होने की कगार पर पहुँच रही थीं मगर अथक प्रयास से उसने उन्हे ऋषभ के व्याकुल चेहरे पर जमाया हुवा था. यक़ीनन वह प्रत्यक्षरूप से देखना चाहती थी कि जब वह अपनी पैंटी को उतारती तब उसके पुत्र के चेहरे पर किस तरह के भाव का समावेश होता या उसके चेहरे की आकृति में कितना बदलाव आता. उसके होंठ खिल उठे, गालो पर शरम की अत्यधिक सुर्खिया छा गयी मानो शरीर का सारा रक्त उसके मुख-माडल पर ही एकत्रित हो गया हो. उसे अपने दिल की अनियंत्रित धड़कनो का भी पूरा भान था, जिसकी हर गूँज पर उसकी चूत संकुचित हो कर ढेर सारा कामरस बाहर उगलने लगती.
जितनी बारीकी से वह अपने पुत्र के क्रिया-कलापों का निरीक्षण कर रही थी उतना तो शायद ऋषभ भी उसकी चूत का नही कर पाता. इसी बीच उसकी बाज़ सी नज़र उसके पुत्र के निरंतर हिलते हुवे दाएँ हाथ से टकरा जाती है और लम्हे भर के भीतर वह समझ गयी कि उसका पुत्र अपनी माँ की पैन्टी के उतरने के इंतज़ार में चोरी-छिपे अपना लंड सहला रहा है.
इससे पहले कि वह पिघल पाती उसके अंगूठे हौले-हौले उसकी कच्छी की एलास्टिक को फर्श की दिशा में नीचे की ओर सरकाना आरंभ कर देते हैं. गति बेहद धीमी थी, पहले-पहल उसका पेडू अवतरित हुवा, फिर घनी झांटो के गुच्छे नज़र आने लगे और जिसे देखते ही ऋषभ बौखला उठता है,
अब बिना किसी अतिरिक्त डर के उसका हाथ उसके पत्थर समान लंड को बेदर्दी से मसल रहा था, उसे ज़ोर-ज़ोर से पीट रहा था. या तो उसकी मा ने अपने अंगूठे रोक लिए थे या ज़ालिम वक़्त ही थम गया था, उसके चेहरे पर इतनी अधिक अधीरता व्याप्त हो चुकी थी कि निश्चित ही वह कुच्छ क्षण के पश्चात पागलपन का शिकार हो जाता.
ममता उसके निरंतर खोते जा रहे धैर्य को नज़र-अंदाज़ नही कर सकी और तीव्रता के साथ अपनी कच्छी को नीचे की तरफ सरकाती रही, तब-तक जब-तक उसकी कच्छी का मिलान हक़ीक़त में फर्श से नही हो गया. उसी गति से वह वापस भी उठ खड़ी हुवी और मदहोशी से भरे अत्यंत उत्तेजित स्वर में बोली.
"देख ना रेशू! तेरी मा बिल्कुल नंगी हो गयी रे, अब तू उसके मम्मो और चूत की जाँच शुरू कर सकता है बेटे"
अपनी माँ के नंगे गदराये गुदारु जिस्म को देखकरके ऋषभ के लण्ड में खून जम सा गया था। पैंट के अंदर लण्ड किसी कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगा ,ऋषभ का विचलित कामुक चेहरा,लगतार अपनी माँ की चूत और चूंचिओ को घूरती उसकी आँखों को देखकर ममता भलीभांति अपने पुत्र की कामुक व्यथा को समझ गयी थी ,माँ के गदराये नंगे जिस्म को निहारते हुए ऋषभ अपनी सुध बुध खो बैठा था ,उसकी नजरे लगातार घनी झांटो में छुपी अपनी माँ की चूत देखने की कोशिश कर रही थी ,ऋषभ का मुँह खुला का खुला रह गया था उसके ओंठ सुख से गए थे जिनको वो अपनी जबान से गीला करने का प्रयास कर रहा था ,अपने निर्वस्त्र काया पे फ़िदा अपने पुत्र की ऐसी हालत देखकर ममता को अपनी सुन्दर काया पर रश्क भी आया और पुत्र की घूरती नजरो ने उसमे शर्म भी पैदा की तब ममता ने ऋषभ को आवाज दी
माँ की आवाज सुन पुत्र की तन्द्रा टूटी और उसने अपने आपको संभालते हुए बड़ी मुश्किल से ऋषभ के ओंठो से कुछ बोल फूटे ,माँ मुझे तुमसे कुछ प्रश्न पूछने होंगे
किस बारे में बेटा
तुम्हारे "सेक्स जीवन से संबंधित!
अपनी माँ के सेक्स जीवन से संबंधित तो ज़ाहिर है कि अपने पापा के सेक्स जीवन से संबंधित भी" सोचने मात्र से ही ममता के संपूर्ण बदन में फुरफुरी उठने लगी, जहाँ-तहाँ उसके मुलायम रोम खड़े हो जाते हैं. उसने हैरत से फॅट पड़ी अपनी आँखों से ऋषभ के चेहरे को घूरा, वा काग़ज़ के पन्ने पर कुच्छ लिखने में व्यस्त था.
"फिर भी रेशू! तू अपनी मा से क्या-क्या पुछेगा बेटे ?" अधीर ममता हौले से फुसफुसाई और कुर्सी पर बैठ गयी
"ऑफ ओह मा! बताया तो मैने, तुम्हारी शारीरिक जाँच शुरू करने से पहले मुझे कुच्छ बातो का पता होना बेहद ज़रूरी है और इसी कारण मुझे तुम्हारे सेक्स जीवन के विषय में जानना होगा" अपनी मा को देखे बिना ही ऋषभ ने जवाब दिया.
"तो क्या तब तक मैं बेशरम बन कर यूँ ही नंगी बैठी रहूंगी ?" ममता ने खुद से सवाल किया.
google graphic images "नही! कम से कम मुझे पैंटी तो पहेन ही लेनी चाहिए" वह फ़ैसला करती है मगर अपने उस फ़ैसले पर अमल कैसे करे, यह बेहद गंभीर मुद्दा था. एक औरत चाह कर भी अपनी नंगी काया को ढँक नही पा रही थी, कैसी अजीब परिस्थिति से उसका सामना हो रहा था.
"रेशू" वह पुनः हौले से फुसफुसाई.
"क्या .. क्या मैं अपनी पैंटी पहेन लूँ ?" तत-पश्चात एक ही साँस में अपना कथन पूरा कर जाती है और अत्यधिक लाज से अपने होंठ चबाने लगी. हाए री विडंबना, मा को अपने ही जवान पुत्र से इजाज़त लेनी पड़ रही थी कि क्या वह अपनी नंगी चूत पर शीट ओढ़ ले.
"हां पहेन लो मा मगर वापस भी तो उतारनी होगी ना ?" ऋषभ दोबारा उसकी ओर देखे बिना ही बोला, उसने अपनी मा को उसके सवाल का मॅन-वांच्छित उत्तर तो दिया ही दिया मगर बड़ी चतुराई से अपने इस नये प्रश्न के ज़रिए इशारा भी करता है कि कुच्छ वक़्त पश्चात उसे फिर से पूरी तरह नग्न होना पड़ेगा. बीते लम्हे में गहें उत्तेजना के वशीभूत वह उस अत्यंत कामुक द्रश्य को अपनी आँखों में सही ढंग से क़ैद नही कर पाया था जब उसकी मा ने पहली बार उसके समक्ष अपनी कछि को उतारा था और अनुमांस्वरूप कि शायद इस बार उसे स्वयं अपने हाथो से अपनी उसकी कछि को उतारने का सौभाग्य प्राप्त हो सके, अपने इसी प्रयास के तेहेत उसने फॉरन अपनी रज़ामंदी दे दी थी.
"मैं! मैं तब उतार लूँगी" अंधे को क्या चाहिए, बस दो आँखें. ममता ने अत्यंत हर्ष से कहा जैसे भविश्य में अपनी कछि को पुनः उतारने में उसे कोई दिक्कत महसूस नही होगी और कुर्सी से उठ कर अपने कदम कॅबिन के कोने में पड़े अपने वस्त्रो की दिशा की तरफ चलायमान कर देती है.
"उफफफ्फ़ मा! तुम्हारे यह मांसल चूतड़ मुझे पागल कर देंगे" ममता के चलना शुरू करते ही ऋषभ उसके चूतड़ो को निहारते हुवे बुद्बुदाया. चलते हुवे ना तो वह जानबूच कर मटक रही थी और ना ही उसके मंन में अपने पुत्र को रिझाने समान कोई विचार पनपा था, उसके चूतड़ो की स्वाभाविक थिरकन वाकयि जानलेवा थी और जिसके प्रभाव से ऋषभ के विशाल लंड की ऐठन असकमात ही दर्द में तब्दील होने लगती है.
"रेशू ने मेरे मम्मो की तारीफ़ की, मेरे चूतड़ो के विषय में कहा मगर एक बार भी मेरी चूत की तारीफ़ नहीं की " बेमुशक़िल से 5-6 कदम चलने के उपरांत ही ममता के मॅन में संदेह का अंकुर फूट पड़ा.
"कहीं ऐसा तो नही कि इसे औरतो की चूत पर झांटे पसंद ही ना हों, फिर मैने तो पूरा जंगल उगा रखा है नही तो क्या मज़ाल की कोई मर्द मेरी चूत को इस तरह से नज़र-अंदाज़ कर सके" सोचते-सोचते वह अपने उतरे हुवे वस्त्रो के समीप पहुँच चुकी थी.
"ओह्ह्ह्ह मा! कितनी ज़ुल्मी हो तुम" ममता के नीचे झुकते ही ऋषभ के खुले मूँह से सीत्कार निकल गयी, वस्त्र बेहद उलझे हुवे थे और उनके बीच से अपनी छोटी सी कच्छी तलाशने में उसकी माँ को कुच्छ ज़्यादा ही समय लग रहा था. उसके चूतड़ो के पाटो की अत्यंत गोरी रंगत से उनकी गहरी दरार अपेक्षाकृत बहुत काली नज़र आ रही थी जो सॉफ प्रमाण था कि दरार के भीतर भी बड़ी-बड़ी झाटों का साम्राज्य फैला हुवा है.
"मिल गयी" ममता ने कच्छी उठाते हुवे कहा, उसकी हौले मगर कोयल समान मीठी कूक ऋषभ के कानो से भी जा टकराती है. तत-पश्चात उसका अचानक से पलटना हुवा और उसके पुत्र की योजनाबद्ध निगाहें तो मानो उसकी माँ की आवाज़ को सुन कर ही उसकी ओर मूडी हों, दोनो एक-दूसरे की आँखो में झाँकने लगते हैं मगर अति-शीघ्र उस मा को पुनः उसके पुत्रा की आँखों का जुड़ाव उसके चेहरे से हट कर उसके सुडोल मुम्मो से जुड़ता प्रतीत होता है.
"देखती हूँ! कब तक यह इसी तरह मेरी चूत की उपेक्षा करता है" ममता विचलित हो उठी और अपनी कुर्सी के नज़दीक आने लगती है. उसके दाएँ हाथ के पंजे में उसकी चूत के गाढ़े कामरस से भीगी हुवी कच्छी थी, जिसे पहनने की इज़ाज़त लेने के उपरांत वह पूर्वा में फूली नही समाई थी परंतु अब उसका मॅन बदल चुका था. उसने प्रण कर लिया था कि वह अपनी चूत को नही धाँकेगी और वापस नंगी अपनी कुर्सी पर बैठ जाती है.
"क्या हुवा मा! क्या अब तुम्हे कच्छी नही पहेनना ?" ऋषभ ने बेशर्मी से मुस्कुराते हुवे पुछा.
"नही! ऐसी बात नही रेशू मगर मेरी पैंटी गंदी है, मैं कैसे इसे पहनु ?" ममता ने बड़े भोले पन से जवाब दिया और अपने कथन की सत्यता को उजागर करते प्रश्न के साथ ही उसके समर्थन में अपनी गीली पैंटी फ़ौरन अपने पुत्र के चेहरे के समक्ष लटका देती है.