तुम्हारे पापा को मेरी झांटो रहित योनि बिल्कुल पसंद नहीं है इसलिए मैं इनको नहीं बनाती हूं। ममता ने बड़े लजाते हुए धीमी आवाज में अपने बेटे से कहा।
पर माँ मुझे तो अगर तुम्हारी चूत चिकनी होती तो मुझे ज्यादा अच्छा लगता ऋषभ ने अपने होंठो पे जीभ फिराते हुए कहा
अपने बेटे के मुंह से ऐसा उत्तर साफ-साफ-सुन ममता लज्जा और रोमांच से जड़वत सी रह गई और शरमाकर उसने अपना मुंह दूसरा या घुमा लिया .
ऋषभ भी अपने माँ को ऐसे शरमाते हुए देख कर रोमांचित सा हो गया और कहा माँ इसमे शरमाने की जरूरत नहीं है और शायद तुम्हारी यही झांटे तुम्हारी चूत में ज्यादा खुजाली पैदा करती है ,यह कहकर ऋषभ अपनी माँ के झांटो को सहलाने लगा और अपनी उंगलियों से हल्का हल्का अपनी माँ की चूत को दबाने लग।
सॉरी बेटा मुझे किसी भी डॉक्टर के पास जाने से पहले अपने इन बालो को बना लेना चाहिए था। मैं तो शीतल को सोचकर आयी थी। पर अब क्या ही हो सकता हैं मैं घर पे जाकर इनको बना लुंगी ।
सॉरी की जरूरत नहीं है माँ ,मैंने तो इसलिए कहा की यह भी एक कारण हो सकता है तुम्हारी चूत में दर्द और खुजली का और दूसरी बात यह तो अपनी अपनी पसंद की बात है ,पापा को तुम्हारी झांटे पसंद है और मुझे चिकनी चूत।
बड़ी निर्लज्जता से ऋषभ अपनी पसंद को अपने पिता के साथ तुलना कर रहा था और वो भी उस औरत के लिए जो उसके पिता की पत्नी होने के साथ साथ उसकी जन्मदात्री माँ है।
वैसे अगर तुम चाहो तो कुछ किया जा सकता है ?
क्या किया जा सकता है इस प्रश्न को सुनकर ममता के शरीर में मानो हज़ारो चीटिया से काट गयी ,और अवाक् होकर उसका मुँह खुला का खुला रह गया और वह तेजी तेजी साँसे लेने लगी ,हालांकि ममता भी अब अपनी कामाग्नि को बुझा दिन रात के इस तकलीफ से बाहर आना चाहती थी पर पता नहीं क्यों जब उसके बेटे ने उससे ऐसा प्रश्न किया तो उसका दिमाग सुन्न सा पड़ गया।
ऋषभ अपनी माँ को कतई असहज स्तिथि में डालना नहीं चाहता था ,अपनी माँ की स्तिथि भांप एक सधे हुए शिकारी की भाति जाल फेकना था जिसमे न सिर्फ उसकी माँ सहज हो वरन अपने पुरे जिस्म को उसको सौंप दे ताकि वो आज अपनी माँ के जिस्म का उपभोग एक पति की भाति कर सके।
तुम कतई मेरी बात को गलत मत लो ,मेरे लिए तुम अभी भी सिर्फ एक पेशेंट हो जिसको मैंने सिर्फ एक सुझाव देना चाहा है ,पहले तुम बैठ जाओ , और सामान्य स्तिथि में हो जाओ और थोड़ा पानी भी पी लो। ये कहते हुए उसने पानी की बोतल अपनी माँ के तरफ बढ़ा दी। क्योकि अभी तक उसकी माँ उसके बगल में खड़ी थी और वो अपनी माँ की चूत और उससे निकलते गाढ़े द्रव्य की की मादक खुशबु का मजा ले रहा था ,पर अब उसने हाथ पकड़ के ममता को सोफे पे बिठा दिया।
ममता ने बोतल हाथ में लेकर थोड़ा सा पानी ही पिया क्योकि इस कुछ ही देर में वो कई बार पानी पी चुकी थी जिसकी वजह से उसको पिशाब भी आ रहा था पर क्लिनिक में टॉयलेट न होने की वजह से वो पिशाब को साधे बैठी थी।
क्या सुझाव देना चाह रहे थे मुझे ?ममता ने ऋषभ से अटक अटक के पूछा।
माँ मेरा मतलब सिर्फ तुम्हारे बाल बनाने को लेकर था ,ताकि फौरी तौर पर तुम्हे राहत भी मिले और मैं भी खुल के तुम्हारी चूत का चेकउप भी कर पाउ।
बाल बनाना मतलब कैसे और कहा ? ममता ने थोड़ी राहत की सांस लेते हुए अपने बेटे से पूछा।
अपनी माँ को रिलैक्स देख ऋषभ को भी थोड़ा बल मिला और वो बोला बस मैं तो अपने हाथो से तुम्हारी झांटे बनाने के लिए बोल रहा था और ऐसा मैंने एक बेटे होने के नाते बोला ताकि तुम्हारी कुछ मदद कर पाउ। और वैसे भी हम डॉक्टर्स के लिए कोई गलत बात नहीं है क्योकि आप खुद जानती होगी की हम डॉक्टर्स किसी भी मरीज का ऑपरेशन करते वक़्त उसके बाल बनवा देते है फिर चाहे वो सर के हो या गुप्तांगो के हो। हालांकि यह काम नर्सो का होता है पर चूँकि मैं तुम्हारा बेटा हु तो मैंने सोचा क्यों न मैं तुम्हारी कुछ सेवा ही कर दू ताकि तुम्हारा मातृ ऋण कुछ तो अदा कर पाउ।
अब बस ये बता दो तुम्हारा क्या निर्णय है तुम घर जाके स्वयं से इन बालो को बनाओगी या मैं बना दू ?
ऋषभ ने बड़े सहज होकर यह बोल दिया जैसे माँ की झांटे बनाने की सेवा ,उसके पैर दबाने की सेवा के बराबर होती है एक बेटे के लिए । और यह सब बात मेडिकल प्रोफेशन की आड़ लेकर उसने बोल रहा था ,जिसका वहशी खेल वो बहुत देर से अपनी माँ के साथ खेल रहा है।
ममता ने भी एक हलकी से मुस्कान के साथ मन ही मन सोचा की वाह रे मेरे बेटे ,अपनी माँ की झांटे बना के और उसको चोद के तू मातृ ऋण उतारना चाह रहा है। ममता अब एक ऐसे सवाल से रुबरुं थी जिसमे उसको एक अहम् निर्णय लेना था ,अगर वो इस प्रश्न का जवाब हाँ में देती है तो वह पूर्ण रूप से लगभग अपने बेटे को अपने पति के समतुल्य अधिकार प्रदान कर देगी और वह लगभग मूक रूप से अपने बेटे को उसके साथ सम्भोग की इज़ाज़त भी दे देगी और पर साथ ही साथ ऋषभ अगर उसकी झांटे बनाता है तो वह उसको अपनी उस खूबसूरत चूत का दर्शन भी करा पायेगी जिसकी उपेक्षा वह शुरू से ही कर रहा है, पर अगर उसने ना कर दिया तो शायद वो अपनी कामाग्नि कभी न बुझा पाए क्योकि अब इस दहलीज पे आके अपने बेटे को मना करने का मतलब वह सम्भोग की अस्वीकृति में ना ले ले और फिर वो दिन रात कामाग्नि में जलती रहे क्योकि बीमारी के चलते उसके पति राजेश का उसकी आग बुझाना लगभग असंभव सा था और आज अगर उसका बेटा उसे नहीं चोद पाया तो शायद पश्चाताप ,लज्जा ,समाज के चलते वह वो मौका खो दे जिसमे उसकी जिस्म की आग उसका बेटा अभी भी बुझा दे और हमेशा बुझाता रहे।
मैंने तुमसे कुछ पूछा था माँ ,अपनी झांटे तुम खुद घर जाके बनाओगी या मैं बना दू ?बोला न ताकि मैं तुम्हारी समस्या के हल तक जल्दी पहुँच पाऊ।
ठीक है तू ही बना दे .........। बहुत धीमी आवाज और सर निचे करके उसने अपने बेटे को स्वीकृति दे दी।
अपनी माँ के मुँह से हाँ सुन के ऋषभ के तन बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी और उसका लण्ड बिलकुल अकड़ के उफनाने लगा ,तो उसने मन ही मन अपने लण्ड से बोला बस कुछ देर और थम जा फिर तुझे अपनी माँ की चूत और गांड का रस चखाउंगा। उसका लण्ड अब उसकी पैंट में समा नहीं रहा था। ममता यह सब नज़ारा अपनी आँखों से देख रही थी की कैसे उसकी चूत और बेटे के लण्ड ने उन दोनों को अत्यधिक असहज स्तिथि में डाल रक्खा है। पर वह आगे बढ़ कर वह कदम नहीं बढ़ाना चाह रही थी जब वह अपने बेटे से उसे खुद चोदने का प्रस्ताव दे, मर्यादा की चादर तो पहले ही तार तार हो चुकी थी पर जो चन्द धागे बच गए थे ,जिसमे उसका बेटा उसे अब भी माँ शब्द से सम्बोधित कर रहा था ,वह उनको नहीं तोडना चाह रही थी।
इतनी देर में ऋषभ अपनी कुर्सी से उठा और तम्बू बने पैंट के साथ उसने अपने इंस्ट्रूमेंट बॉक्स को खोल के उसमे से रेजर और ब्लेड निकला और अपनी माँ से बोला,
माँ अब तुम इस टेबल पे लेट जाओ ताकि मैं सावधानी के साथ तुम्हारी झांटे बना सकूँ नहीं तो रेजर लग जाने का खतरा बना रहेगा। इतना कह के उसने अपनी माँ के हाथ को पकड़ उसे खड़ा कर दिया ,ममता भी अब मारे शर्म के अपने बेटे से चिपक गयी और अपना मुँह उसके सीने में छुपाने लगी।
ऋषभ ने भी अपनी माँ की इस लज्जा वाली असहज स्तिथि को देख उसका तुरंत लाभ उठाया और रेजर को मेज के एक कोने में रख अपनी माँ को पूर्ण रूप से चिपका लिया ,और मांसल चूतड़ों को अपने पंजे के आगोश में ले लिया और साथ ही साथ सीधे हाथ की तर्जनी उंगली उसके गांड के छेद में धीरे से घुसा दिया। ऋषभ का लण्ड अब अपनी माँ की चूत में टक्कर मार रहा था ,और वह बार बार उसे ,उसकी चूत में पुश भी कर रहा था ,ममता भी इस अहसास से अनजान न थी और अपने बेटे के लण्ड की टक्कर ने उसको और भी मदहोश कर दिया था
लगभग ५ मिनट तक इस स्तिथि में रहने के बाद ऋषभ ने अपने हाथो पे जोर लगा अपनी माँ के चूतड़ों को सपोर्ट लेकर उसको हवा में उठा के फिर उसको मेज पे बिठा दिया। ममता अब भी अपने सिर को ऋषभ के सीने में छुपाये हुए थी।
शरमा क्यों रही हो माँ अगर तुम मुझे सपोर्ट नहीं करोगी तो कैसे मैं अपने उस वादे को पूरा कर पाउँगा जिसमे मैंने तुम्हे वचन दिया था की क्लिनिक छोडने से पहले मैं तुम्हे शारीरिक रूप से स्वस्थ कर पाऊंगा।
फिर ऋषभ ने धीरे से अपनी माँ के बड़े बड़े गोल चुन्चो को अपने हाथ में भर उसे मसलने लगा। ,ममता को ऋषभ का अपनी माँ के चुन्चो से खेलना बड़ा अच्छा लग रहा था। तभी ऋषभ के दिमाग में एक कातिल विचार आया ,अब वो बहुत देर तक अपनी पैंट में अपने लण्ड को कैद नहीं रखना चाह रहा था ,क्योकि उसकी लण्ड की अकड़ाहट ने उसका भी चैन हराम कर रखा था
माँ देखो तो तुम्हारी चूत का रस मेरी शर्ट और पैंट में लग गया है ,तुमने मेरे कपडे ख़राब कर दिए ,अब कैसे मैं घर तक चलूँगा ?
माँ अगर तुम बोलो तो मैं अपनी पैंट शर्ट को उतार केवल अपने अंडर गारमेंट में बना रहूं ,ऐसा तुम्हारा चेकउप भी बिलकुल फ्री माइंड हो के कर पाउँगा। और वैसे भी तुम मुझे बचपन से मुझे मेरे रूम में अंडर गारमेंट्स में ही देखते आयी हो ?
बोलो न माँ ,क्या मैं अपने पैंट शर्ट उतार दू अभी ,तुम्हे बुरा तो नहीं लगेगा ?