बोलो ना मा! क्या वे तुम्हारे गुप्तांगो को मुझसे अधिक प्यार करते थे ?" ऋषभ ने पुनः पुच्छा और इस बार उसका सवाल, सवाल ना हो कर पिता-पुत्र की अग्यात तुलनात्मक श्रेणी में परिवर्तित हो चुका था ताकि उसकी मा को सोचने का ज़्यादा वक़्त ना मिल सके और उनके दरमियाँ अचानक आई इस स्थिरता को भी दोबारा गति मिल जाए, तत-पश्चात वह अपनी उंगलियों से अपनी मा की उंगलियों को पकड़ कर उसके हाथ को उसकी चूत से हटाते हुवे उसके चूतडो की दरार के बीचो-बीच खींच लाता है.
"मैं नही जानती कि तू अपने पापा से क्यों नाराज़ है मगर इतना अवश्य पता है कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा तुझसे प्यार करते हैं" ममता प्रश्न बदलने के उद्देश्य से बोली, वह बहुत हैरान थी और परेशान भी. उसके पुत्र की अश्लील हरक़तो के चलते उसका सैयम अब टूटने की कगार के बेहद करीब पहुँच चुका था, चूत भभक्ते अंगार समान सुलगती ही जा रही थी और जिसकी अगन को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द के गाढ़े वीर्य से ही शांत किया जा सकता था. उसके हाथो में भरी हुई लाल चूड़ियों की खनक! पैरो में बँधी पाजेब के घूंघुरूओ की छनक! कभी घुटि तो कभी ना रोक सकने योग्य सिसकियों की मनमोहक ध्वनि और चूत से निरंतर बहते कामरस की मादक सुगंध, पल प्रति पल ऋषभ पूर्व से कहीं ज़्यादा हिंसक बनने पर विवश होता जा रहा था.
"तुम नही बताना चाहती तो ना सही मगर झूठ का सहारा मत लो मा" आवेश के स्वर में कहते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के अंगूठे को उसके खुद के गुदा-द्वार से सटा दिया और हौले-हौले अंगूठे के नाख़ून से छिद्र की दानेदार सतह को कुरेदने लगता है.
"उफफफफफ्फ़! नाराज़ क्यों होता है, जब तू मुझसे झूठ बोल सकता है तो मैं क्यों नही" ममता अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से अपने बाएँ चूचक को उमेठति हुवी बुदबुदाई. आज से पहले उसने असन्ख्य बार अपनी गान्ड के छेद का स्पर्श किया था परंतु जितना आनंद वह इस वक़्त महसूस कर रही थी, कल्पना से परे था. उसका पुत्र स्वयं उसके अंगूठे को नियंत्रित कर रहा था, जब! जहाँ! जैसे-चाहे वह अंगूठे को चलायमान कर देता और ममता का बदन बुरी तरह से काँपने लगता.
"मैने क्या झूठ बोला मा ? ज़रा मुझे भी तो पता चले" ऋषभ को वाद-विवाद की नयी दिशा मिल रही थी, मौके को भुनाने हेतु उसने फॉरन पुछा.
"बहुत से झूठ बोले हैं तूने" ममता ने विचार्मग्न होने से पहले हल्का सा संकेत किया और तत-पश्चात सोचने लगी कि कहाँ से शुरूवात करना उचित रहेगी. आमतौर पर मारियादित रिश्तों के बीच अमर्यादित सम्वादो का आदान-प्रदान बड़ा असहज होता है लेकिन ममता-ऋषभ अब इस धारणा से बिल्कुल मुक्त हो चले थे, वे खुल कर देशी अति-उत्तेजनात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे थे, एक- दोसरे के गुप्तांगो की चर्चा तो मानो उनके दरमियाँ बेहद सहज हो चुकी थी.
"हे हे हे हे! कहीं तुम्हारा इशारा तुम्हारे मम्मो और चूतड़ो की तरफ तो नही मा .. मुझे तो यही लगता है" ऋषभ ने निर्लज्जता पूर्ण ढंग से हँसते हुए बताया और इसके उपरांत ही वह अपनी मा के अंगूठे को छोड़ देता है.
"तेरा अनुभव वाकाई प्रशन्शा के काबिल है रेशू! औरतो के मन को पढ़ना तुझे बखूबी आता है" अपने पुत्र के कयास को जान कर ममता भी मुस्कुराए बगैर नही रह सकी और बेशर्मी के साथ उसे अपनी प्रतियक्रिया से अवगत करवाती है.
"मा! तुम्हारे मम्मो की अत्यधिक कसावट, उनका प्राकृतिक आकार, निप्पलो की कामुक रंगत और उनका तनाव किसी नपुंसक को भी उत्तेजित कर देने में सक्षम है" कह कर ऋषभ अपने दोनो हाथो को अपनी मा के चूतड़ो की दरार से घुमाते हुए उन्हे उसके उभरे पेट पर ले आता है, उसके पंजे ममता के पसीने से लथपथ बदन की चिकनी चमड़ी पर बेहद चिपक कर फिसल रहे थे. इसके उपरांत वह उन्हे अपनी मा के मम्मो की दिशा में ऊपर की ओर सरकाने लगा और कुच्छ ही छनो के विलंब के पस्चात उसकी मा के गोल मटोल मम्मे उसके विशाल पंजो की मजबूत जाकड़ में क़ैद हो जाते हैं.
"अहह सीईईईई .. रेशूउऊ! मेरे मम्मो की जाँच तो तू पहले ही कर चुका है" ममता ने सिस्कार्ते हुए कहा.
"फिर दोबारा क्यों बेटे ?" उसने शंकित स्वर में सवाल किया.
"हां मा! मैं इनकी जाँच कर चुका हूँ मगर तब इनसे प्यार नही कर पाया था! उफफफफफ्फ़ .. कितने फूले हुवे मम्मे हैं तुम्हारे" आह भरते हुवे ऋषभ अपनी मा के मम्मो का बेरहेमी से मर्दन करना आरंभ कर देता है, जिसे वह प्यार की झुटि संगया दे रहा था वह मात्र हवस के कुच्छ और ना थी. ममता की अनियंत्रित सांसो का उतार-चढ़ाव से पल प्रति पल उसके पुत्र के पंजे उसके मम्मो को आसानीपूर्वक गूँथने लगते. अपनी मा की पीठ पर धीरे-धीरे वह अपने शरीर का संपूर्ण भार भी डालता जा रहा था, जिसके नतीजन अपने आप ही उसका विकराल लंड उसकी मा की नंगी पीठ से टकराने लगता है.
"अब तू जवान हो चुका है रेशू! इस अवस्था के तेहेत तुझे अपनी मा के मम्मो से प्यार करना कतयि सोभा नही देता बेटे" ममता ने नैतिकता का बखान किया परंतु अपनी चूत के रिसाव को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाती. लगातार बहते हुवे उसके गाढ़े कामरस से उसकी काली घनी झान्टे अत्यंत चिपचिपी हो चली थी, पूर्व से फूला हुआ उसका संवेदनशील भांगूर अब तीव्रता से फड़कने लगा था.
"काश कि मेरा बचपन वापस लौट आए मा! जैसे उस वक़्त मैं तुम्हारे इन सुंदर निप्पलो को चूसा करता था, अपनी नन्ही उंगलियों से इन्हे सहलाया करता था, तुम्हारे यही निपल मेरा सबसे पसंदीदा खिलोना हुआ करते थे और यक़ीनन तुम्हे भी इन्हे मेरे सुपुर्द करने में आनंद की प्राप्ति होती होगी क्यों कि तुम्हारे अमूल्य दूध से ही तुम्हारे बेटे को सुरक्षित भावी जीवन मिलना था. मैं सच कह रहा हूँ ना मा ?" अपनी मा के तने चूचकों को बलपूर्वक उमैठते हुवे ऋषभ ने कहा.
"ओह्ह्ह्ह .. हां रेशू! मुझे बहुत खुशी होती थी, किस मा को नही होती होगी ? आख़िरकार मैं तेरी जनम्दात्रि थी, कैसे तुझे तेरे हक़ से विंचित रख पाती ? मगर अब तू वो नन्हा रेशू नही रहा और मेरे मम्मो का दूध भी सूख चुका है" बोलते हुवे ममता का रोम-रोम पुलकित हो रहा था, बीते उन यादगार पलो को सोचते हुवे बरसो बाद उसकी कोख अचानक से कुलबुला उठी थी.
"बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मा! अब भी तुहमे मुझे रोकने का कोई हक़ नही" ऋषभ ने निप्पलो को निचोड़ना ज़ारी रखते हुवे कहा और साथ ही साथ अपने खुश्क होंठो से अब वह ममता की गर्दन चूमने लगता है, हलाकी बजाए चुंबन के वह उसकी गर्दन को चाटना चाहता था मगर अपनी मा के प्रति उसका झूठा लाड कहीं उसकी असल वासना का भेद ना खोल दे, अपने सैयम को अंत तक बचा कर रखना उसकी पहली और अंतिम प्राथमिकता बन गयी थी.
"सीईईईईई आहह! तुझे रुकना ही होगा रेशू .. नही तो! नही तो मैं ....." कहते हुवे ममता की गर्दन अकड़ गयी, उसका मूँह खुल जाता है. अपने मम्मो पर वह क्या कम आघात झेल रही थी जो अब ऋषभ उसे चूमने भी लगा था.
"आज के बाद मैं इन्हे कभी नही देख पाउन्गा मा! कम से कम तुम कुच्छ देर तो सहेन कर ही सकती हो" ऋषभ आग्रह के स्वर में फुसफुसाया, उसके नथुओ से बाहर निकलती गरम हवा सीधे उसकी मा के बाएँ कान के भीतर प्रवेश कर रही थी और होंठो से उसकी गर्दन चूमने की गति भी रफ़्तार पकड़ चुकी थी. वह जानबूझ कर अपनी लार को अधिक मात्रा में गर्दन पर उगलता जाता ताकि चटाई ना सही चुसाई का सुख तो मिलता ही रहे. कोई शरम नही! ना ही कोई डर! वासना की प्रचूरता में वह बेहद निर्भीक हो चला था. पहली बार अपनी मा के छर्हरे नंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था, जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को पूरी तरह से क्षीण कर दिया था.
"रेशू .. उफफफ्फ़! मान जा बेटे .. ओह्ह्ह! मैं बहेक जाउन्गि" ममता ने सिहरते हुवे कहा, उसके पुत्र की लार उसकी गर्दन से नीचे बह कर उसकी पीठ को भिगोने लगी थी. कुच्छ ही क्षणो के पश्चात उसने अपने दोनो हाथ अपने पुत्र के हाथो पर रख दिए और स्वयं भी शक्तीपूवक अपने मम्मो को भिचना आरंभ कर देती है.
"अहह रहुउऊउउ" उसकी चीख से कॅबिन गूँज उठा, उसके पुत्र ने अपने नुकीले दाँत उसकी गर्दन पर गढ़ा दिए थे. उसके लंड की कठोरता का एहसास ममता को पथ भ्रष्ट हो जाने के लिए उकसाने लगा था, जिसके प्रभाव से वह तीव्रता के साथ अपने निचले धड़ को हिलाने लगती है.
"ओह्ह्ह्ह मा! कितना अच्छा लग रहा है, कभी ना मिल सका ऐसा मज़ा आ रहा था" ऋषभ बेहद उद्विग्न लहजे में बोला, उसकी कमर भी अब उसकी मा के निच्छले धड़ का पूरा समर्थन कर रही थी. यदि उसके शरीर की लंबाई कम होती तो यक़ीनन उसका लंड ममता की पीठ की बजाए उसके चूतड़ो की दरार के भीतर रगड़ का रहा होता.
"यह .. यह ठीक नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ" अपने पुत्र की हरक़तो में अचानक से आए बदलाव के मद्देनज़र ममता ने घबराते हुवे कहा, माना उसे रोकने के स्थान पर अपने पापी किर्यकलापो के ज़रिए वह खुद उसकी उत्तेजना को बढ़ाती जा रही थी मगर उसका ममत्व निरंतर उसे झकझोर रहा था, कचोट रहा था कि उसे अपनी उमर और मा होने के गौरव को तुरंत नष्ट होने से बचा लेना चाहिए.
"मुझे पता था मा कि तुम पापा को मुझसे ज़्यादा चाहती हो वरना मुझे कभी खुद से दूर ना करती" ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला, उसकी मा के कथन से उसका डगमगाता सैयम पुनः उसके क़ब्ज़े में लौट आया था.
"अगर तुम वाकई मुझे नही चाहती तो मैं तुम्हे विवश नही करूँगा" अपनी मा के मम्मो को छोड़ कर उनसे ममता के हाथो को भी झटक दिया, उसकी नाटकीय छवि तो जैसे उसका सबसे बड़ा हथियार थी.
"नही रेशू" ममता ने फॉरन उसके हाथो को थाम कर कहा और दोबारा उन्हे अपने मम्मो के ऊपर रखने का प्रयत्न करने लगती है.
"तू नही जानता कि मैं इस वक़्त क्या झेल रही हूँ! खेर अभी मेरा तुझे रोकने का कारण कुच्छ और ही है बेटे" वह ऋषभ के हाथो से स्वयं अपने मम्मो का मर्दन करते हुवे बोली.
"वो क्या भला ?" ऋषभ ने व्याकुलतापूर्वक पुछा और अपनी मा के अगले कपकापाते अल्फ़ाज़ सुन कर तुरंत उसके होंठो पर शरारती मुस्कान व्याप्त हो जाती है.