• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery maa ka checkup complete story

Raja jani

Active Member
891
1,959
139
मूल कहानी यही तक थी।अब इसके आगे यही स्तर कहानी का रहे तब तो लेखक को सफलता मानी जाएगी।
 

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
6,057
6,393
173
"आप कुच्छ कह रहे थे डॉक्टर. ?" डॉक्टर. ऋषभ के चुप होते ही विजय ने उसे टोका.
"ह .. हां" जैसे कोई डरावना सपना टूटा हो, गहरी निद्रा से आकस्मात ही यथार्थ में लौटने के उपरांत ड्र. ऋषभ हड़बड़ा सा जाता है.
"वो .. वो मैं यह कह रहा था, विजय जी! एक ब्रॅंडेड लूब्रिकॅंट ट्यूब सजेस्ट कर रहा हूँ. अनल सेक्स स्टार्ट करने से पहले अपना टूल उससे पोलिश कर लिया करें ताकि इंटरकोर्स के दौरान अनचाहा फ्रिक्षन रेड्यूज़ हो सके और स्लिप्पेरिनेस्स भी बरकरार रहे" वह दवाइयों के पर्चे पर लूब्रिकॅंट का नाम लिखते हुवे बोला. अपनी मा की ताका-झाँकी के भय से उसके अशील अल्फ़ाज़, चेहरे के बे-ढांगे भाव और लंड का तनाव इत्यादि सभी विकार तीव्रता से सुधार में परिवर्तित हो चले थे.
"यह अँग्रेज़ी में क्या खुसुर-फुसुर चल रही है ड्र. साहेब ? मुझे कुच्छ समझ नही आया" रीमा ने पुछा, अब वह अनपढ़ थी तो इसमें उसकी क्या ग़लती.
विजय: "अरी भाग्यवान! ड्र. ऋषभ ...."
"तुम चुप रहो जी! हमेशा चपर-चपर करते रहते हो. तो डॉक्टर. साहेब! क्या कह रहे थे आप ?" अपने पति का मूँह बंद करवाने के पश्चात रीमा ड्र. ऋषभ से सवाल करती है, अपने पुत्र-तुल्य प्रेमी के ऊपर तो अब वह अपनी जान भी न्योछावर करने से नही चूकती.
"कुच्छ ख़ास नही रीमा जी" ड्र. ऋषभ ने सोचा कि अब जल्द से जल्द उन दोनो को क्लिनिक का दरवाज़ा दिखा देना चाहिए ताकि अन्य कोई ड्रामा उत्पन्न ना हो सके. तत-पश्चात दोबारा उसने अपनी निगाहें बंद कंप्यूटर की स्क्रीन से जोड़ दी मगर इस बार उसे विज़िटर'स रूम की खिड़की पर कोई आक्रति नज़र नही आती.
"मैं इतनी भी गँवार नही ड्र. साहेब! आप ने अभी सेक्स, पोलाइस और लू .. लू .. लुबी, हां! ऐसा ही कुच्छ बोला था" रीमा ने नखरीले अंदाज़ में कहा. अब कोई कितना भी अनपढ़ क्यों ना सही 'सेक्स' शब्द का अर्थ तो वर्तमान में लगभग सभी को पता होता है. हां! जितना वह नही समझ पाई थी उतने का क्लू देने का प्रयत्न उसने ज़रूर किया.
"वो! रीमा जी" अब तक ड्र. ऋषभ के मन में उसकी मा का डर व्याप्त था, हलाकी ममता अब खिड़की से हट चुकी थी मगर फिर भी वह फालतू का रिस्क लेना उचित नही समझता.
"मैने विजय जी को सब बता दिया है, घर जा कर आप इन्ही से पुछ लीजिएगा" उसने पिच्छा छुड़ाने से उद्देश्य से कहा और दवाइयों का पर्चा विजय के हवाले कर देता है.
"हम चलते हैं डॉक्टर.! आप की फीस ?" विजय ने अपनी शर्ट की पॉकेट में हाथ डालते हुवे पुछा मगर रीमा का दिल उदासी से भर उठता है. वह कुच्छ और वक़्त ड्र. ऋषभ के साथ बिताना चाहती थी, फीस के आदान-प्रदान के उपरांत तो उन्हें क्लिनिक से बाहर जाना ही पड़ता.
"नही विजय जी! रीमा जी का रोग ठीक होने के बाद मैं खुद आप से फीस माँग लूँगा" ड्र. ऋषभ की बात सुन कर जहाँ विजय उसकी ईमानदारी पर अचंभित हुवा, वहीं रीमा के तंन की आग अचानक भड़क उठती है.
"ड्र. साहेब! कभी हमारे घर पर आएँ और हमे भी आप की खातिरदारी करने का मौका दें" रीमा फॉरन बोली, उसके द्वि-अर्थी कथन का मतलब समझना ड्र. ऋषभ के लिए मामूली सी बात थी परंतु जवाब में वह सिर्फ़ मुस्कुरा देता है.
"हां ड्र.! मेरा नंबर और अड्रेस मैं यहाँ लिख देता हूँ, आप हमारे ग़रीब-खाने में पधारेंगी तो हमे बहुत खुशी होगी" सारी डीटेल'स टेबल पर रखे नोट पॅड में लिखने के उपरांत दोनो पति-पत्नी अपनी कुर्सियों से उठ कर खड़े हो गये. रीमा ने अपने पति के पलटने का इंतज़ार किया और तत-पश्चात अपनी सारी, पेटिकोट समेत पकड़ कर उसके खुरदुरे कपड़े को अपनी चूत के मुहाने पर ठीक वैसे ही रगड़ना शुरू कर देती है जैसे पेशाब करने के पश्चात अमूमन कयि भारतीय औरतें अपनी चूत के बाहरी गीलेपन्न को पोंच्छ कर सॉफ करती हैं.
"क्या हुवा रीमा ? अब चलो भी" अपनी पत्नी को नदारद पा कर विजय ने पुछा.
"तुमने तो अपनी बीवी को इतने जवान ड्र. साहेब के सामने नंगी हो जाने पर विवश कर दिया, अब क्या साड़ी की हालत भी ना सुधारू ?" रीमा, ड्र. ऋषभ की आँखों में झाँकते हुवे बोली और कुच्छ देर तक अपनी साड़ी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने के बहाने अपनी चूत को रगड़ती ही रहती है. कॅबिन के दरवाज़े पर खड़े, उसकी प्रतीक्षा करते विजय का तो अब नाम मात्र का भी भय उसके चेहरे पर नज़र नही आ रहा था.
"घर ज़रूर आईएगा ड्र. साहेब! अच्छा! तो अब मैं चलती हूँ" अंत-तह कॅबिन के भीतर मौजूद उन दोनो मर्दो पर भिन्न-भिन्न रूप के कहेर ढाने के उपरांत अन-मने मन से रीमा को विदाई लेनी पड़ती है, ड्र. ऋषभ के साथ ही विजय के चेहरे पर भी सुकून के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
--------------
"उफफफ्फ़" अपनी टाइ की बेहद कसी नाट ढीली करने के बाद ऋषभ कुच्छ लम्हो तक लंबी-लंबी साँसें भरने लगा जो की मानसिक तनाव दूर करने में चिकित्सको का प्रमुख सहायक माध्यम होता है.
"कुच्छ देर और अगर यह औरत यहाँ रहती तो शायद मैं इस दुनिया से रुखसत हो जाता, आई थी अपनी गांद सिलवाने मगर फाड़ कर चली गयी मेरी" उसने मन ही मन सोचा, चुस्त फ्रेंची की जाकड़ में क़ैद उसका लंड अब भी ऐंठा हुवा था. मेज़ पर स्थापित घड़ी में वक़्त का अंदाज़ा लगा कर उसने जाना कि उसकी मा पिच्छले आधे घंटे से विज़िटर'स रूम के अंदर बैठी उसके फ्री होने का इंतज़ार कर रही थी.
"हेलो मा! कॅबिन में आ जाओ, मैं अब बिल्कुल फ्री हो चुका हूँ"
Mast story hai.
 

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
6,057
6,393
173
बोलो ना मा! क्या वे तुम्हारे गुप्तांगो को मुझसे अधिक प्यार करते थे ?" ऋषभ ने पुनः पुच्छा और इस बार उसका सवाल, सवाल ना हो कर पिता-पुत्र की अग्यात तुलनात्मक श्रेणी में परिवर्तित हो चुका था ताकि उसकी मा को सोचने का ज़्यादा वक़्त ना मिल सके और उनके दरमियाँ अचानक आई इस स्थिरता को भी दोबारा गति मिल जाए, तत-पश्चात वह अपनी उंगलियों से अपनी मा की उंगलियों को पकड़ कर उसके हाथ को उसकी चूत से हटाते हुवे उसके चूतडो की दरार के बीचो-बीच खींच लाता है.

"मैं नही जानती कि तू अपने पापा से क्यों नाराज़ है मगर इतना अवश्य पता है कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा तुझसे प्यार करते हैं" ममता प्रश्न बदलने के उद्देश्य से बोली, वह बहुत हैरान थी और परेशान भी. उसके पुत्र की अश्लील हरक़तो के चलते उसका सैयम अब टूटने की कगार के बेहद करीब पहुँच चुका था, चूत भभक्ते अंगार समान सुलगती ही जा रही थी और जिसकी अगन को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द के गाढ़े वीर्य से ही शांत किया जा सकता था. उसके हाथो में भरी हुई लाल चूड़ियों की खनक! पैरो में बँधी पाजेब के घूंघुरूओ की छनक! कभी घुटि तो कभी ना रोक सकने योग्य सिसकियों की मनमोहक ध्वनि और चूत से निरंतर बहते कामरस की मादक सुगंध, पल प्रति पल ऋषभ पूर्व से कहीं ज़्यादा हिंसक बनने पर विवश होता जा रहा था.

"तुम नही बताना चाहती तो ना सही मगर झूठ का सहारा मत लो मा" आवेश के स्वर में कहते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के अंगूठे को उसके खुद के गुदा-द्वार से सटा दिया और हौले-हौले अंगूठे के नाख़ून से छिद्र की दानेदार सतह को कुरेदने लगता है.

"उफफफफफ्फ़! नाराज़ क्यों होता है, जब तू मुझसे झूठ बोल सकता है तो मैं क्यों नही" ममता अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से अपने बाएँ चूचक को उमेठति हुवी बुदबुदाई. आज से पहले उसने असन्ख्य बार अपनी गान्ड के छेद का स्पर्श किया था परंतु जितना आनंद वह इस वक़्त महसूस कर रही थी, कल्पना से परे था. उसका पुत्र स्वयं उसके अंगूठे को नियंत्रित कर रहा था, जब! जहाँ! जैसे-चाहे वह अंगूठे को चलायमान कर देता और ममता का बदन बुरी तरह से काँपने लगता.

"मैने क्या झूठ बोला मा ? ज़रा मुझे भी तो पता चले" ऋषभ को वाद-विवाद की नयी दिशा मिल रही थी, मौके को भुनाने हेतु उसने फॉरन पुछा.

"बहुत से झूठ बोले हैं तूने" ममता ने विचार्मग्न होने से पहले हल्का सा संकेत किया और तत-पश्चात सोचने लगी कि कहाँ से शुरूवात करना उचित रहेगी. आमतौर पर मारियादित रिश्तों के बीच अमर्यादित सम्वादो का आदान-प्रदान बड़ा असहज होता है लेकिन ममता-ऋषभ अब इस धारणा से बिल्कुल मुक्त हो चले थे, वे खुल कर देशी अति-उत्तेजनात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे थे, एक- दोसरे के गुप्तांगो की चर्चा तो मानो उनके दरमियाँ बेहद सहज हो चुकी थी.

"हे हे हे हे! कहीं तुम्हारा इशारा तुम्हारे मम्मो और चूतड़ो की तरफ तो नही मा .. मुझे तो यही लगता है" ऋषभ ने निर्लज्जता पूर्ण ढंग से हँसते हुए बताया और इसके उपरांत ही वह अपनी मा के अंगूठे को छोड़ देता है.

"तेरा अनुभव वाकाई प्रशन्शा के काबिल है रेशू! औरतो के मन को पढ़ना तुझे बखूबी आता है" अपने पुत्र के कयास को जान कर ममता भी मुस्कुराए बगैर नही रह सकी और बेशर्मी के साथ उसे अपनी प्रतियक्रिया से अवगत करवाती है.

"मा! तुम्हारे मम्मो की अत्यधिक कसावट, उनका प्राकृतिक आकार, निप्पलो की कामुक रंगत और उनका तनाव किसी नपुंसक को भी उत्तेजित कर देने में सक्षम है" कह कर ऋषभ अपने दोनो हाथो को अपनी मा के चूतड़ो की दरार से घुमाते हुए उन्हे उसके उभरे पेट पर ले आता है, उसके पंजे ममता के पसीने से लथपथ बदन की चिकनी चमड़ी पर बेहद चिपक कर फिसल रहे थे. इसके उपरांत वह उन्हे अपनी मा के मम्मो की दिशा में ऊपर की ओर सरकाने लगा और कुच्छ ही छनो के विलंब के पस्चात उसकी मा के गोल मटोल मम्मे उसके विशाल पंजो की मजबूत जाकड़ में क़ैद हो जाते हैं.

"अहह सीईईईई .. रेशूउऊ! मेरे मम्मो की जाँच तो तू पहले ही कर चुका है" ममता ने सिस्कार्ते हुए कहा.

"फिर दोबारा क्यों बेटे ?" उसने शंकित स्वर में सवाल किया.

"हां मा! मैं इनकी जाँच कर चुका हूँ मगर तब इनसे प्यार नही कर पाया था! उफफफफफ्फ़ .. कितने फूले हुवे मम्मे हैं तुम्हारे" आह भरते हुवे ऋषभ अपनी मा के मम्मो का बेरहेमी से मर्दन करना आरंभ कर देता है, जिसे वह प्यार की झुटि संगया दे रहा था वह मात्र हवस के कुच्छ और ना थी. ममता की अनियंत्रित सांसो का उतार-चढ़ाव से पल प्रति पल उसके पुत्र के पंजे उसके मम्मो को आसानीपूर्वक गूँथने लगते. अपनी मा की पीठ पर धीरे-धीरे वह अपने शरीर का संपूर्ण भार भी डालता जा रहा था, जिसके नतीजन अपने आप ही उसका विकराल लंड उसकी मा की नंगी पीठ से टकराने लगता है.
"अब तू जवान हो चुका है रेशू! इस अवस्था के तेहेत तुझे अपनी मा के मम्मो से प्यार करना कतयि सोभा नही देता बेटे" ममता ने नैतिकता का बखान किया परंतु अपनी चूत के रिसाव को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाती. लगातार बहते हुवे उसके गाढ़े कामरस से उसकी काली घनी झान्टे अत्यंत चिपचिपी हो चली थी, पूर्व से फूला हुआ उसका संवेदनशील भांगूर अब तीव्रता से फड़कने लगा था.

"काश कि मेरा बचपन वापस लौट आए मा! जैसे उस वक़्त मैं तुम्हारे इन सुंदर निप्पलो को चूसा करता था, अपनी नन्ही उंगलियों से इन्हे सहलाया करता था, तुम्हारे यही निपल मेरा सबसे पसंदीदा खिलोना हुआ करते थे और यक़ीनन तुम्हे भी इन्हे मेरे सुपुर्द करने में आनंद की प्राप्ति होती होगी क्यों कि तुम्हारे अमूल्य दूध से ही तुम्हारे बेटे को सुरक्षित भावी जीवन मिलना था. मैं सच कह रहा हूँ ना मा ?" अपनी मा के तने चूचकों को बलपूर्वक उमैठते हुवे ऋषभ ने कहा.

"ओह्ह्ह्ह .. हां रेशू! मुझे बहुत खुशी होती थी, किस मा को नही होती होगी ? आख़िरकार मैं तेरी जनम्दात्रि थी, कैसे तुझे तेरे हक़ से विंचित रख पाती ? मगर अब तू वो नन्हा रेशू नही रहा और मेरे मम्मो का दूध भी सूख चुका है" बोलते हुवे ममता का रोम-रोम पुलकित हो रहा था, बीते उन यादगार पलो को सोचते हुवे बरसो बाद उसकी कोख अचानक से कुलबुला उठी थी.

"बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मा! अब भी तुहमे मुझे रोकने का कोई हक़ नही" ऋषभ ने निप्पलो को निचोड़ना ज़ारी रखते हुवे कहा और साथ ही साथ अपने खुश्क होंठो से अब वह ममता की गर्दन चूमने लगता है, हलाकी बजाए चुंबन के वह उसकी गर्दन को चाटना चाहता था मगर अपनी मा के प्रति उसका झूठा लाड कहीं उसकी असल वासना का भेद ना खोल दे, अपने सैयम को अंत तक बचा कर रखना उसकी पहली और अंतिम प्राथमिकता बन गयी थी.

"सीईईईईई आहह! तुझे रुकना ही होगा रेशू .. नही तो! नही तो मैं ....." कहते हुवे ममता की गर्दन अकड़ गयी, उसका मूँह खुल जाता है. अपने मम्मो पर वह क्या कम आघात झेल रही थी जो अब ऋषभ उसे चूमने भी लगा था.

"आज के बाद मैं इन्हे कभी नही देख पाउन्गा मा! कम से कम तुम कुच्छ देर तो सहेन कर ही सकती हो" ऋषभ आग्रह के स्वर में फुसफुसाया, उसके नथुओ से बाहर निकलती गरम हवा सीधे उसकी मा के बाएँ कान के भीतर प्रवेश कर रही थी और होंठो से उसकी गर्दन चूमने की गति भी रफ़्तार पकड़ चुकी थी. वह जानबूझ कर अपनी लार को अधिक मात्रा में गर्दन पर उगलता जाता ताकि चटाई ना सही चुसाई का सुख तो मिलता ही रहे. कोई शरम नही! ना ही कोई डर! वासना की प्रचूरता में वह बेहद निर्भीक हो चला था. पहली बार अपनी मा के छर्हरे नंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था, जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को पूरी तरह से क्षीण कर दिया था.

"रेशू .. उफफफ्फ़! मान जा बेटे .. ओह्ह्ह! मैं बहेक जाउन्गि" ममता ने सिहरते हुवे कहा, उसके पुत्र की लार उसकी गर्दन से नीचे बह कर उसकी पीठ को भिगोने लगी थी. कुच्छ ही क्षणो के पश्चात उसने अपने दोनो हाथ अपने पुत्र के हाथो पर रख दिए और स्वयं भी शक्तीपूवक अपने मम्मो को भिचना आरंभ कर देती है.

"अहह रहुउऊउउ" उसकी चीख से कॅबिन गूँज उठा, उसके पुत्र ने अपने नुकीले दाँत उसकी गर्दन पर गढ़ा दिए थे. उसके लंड की कठोरता का एहसास ममता को पथ भ्रष्ट हो जाने के लिए उकसाने लगा था, जिसके प्रभाव से वह तीव्रता के साथ अपने निचले धड़ को हिलाने लगती है.

"ओह्ह्ह्ह मा! कितना अच्छा लग रहा है, कभी ना मिल सका ऐसा मज़ा आ रहा था" ऋषभ बेहद उद्विग्न लहजे में बोला, उसकी कमर भी अब उसकी मा के निच्छले धड़ का पूरा समर्थन कर रही थी. यदि उसके शरीर की लंबाई कम होती तो यक़ीनन उसका लंड ममता की पीठ की बजाए उसके चूतड़ो की दरार के भीतर रगड़ का रहा होता.

"यह .. यह ठीक नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ" अपने पुत्र की हरक़तो में अचानक से आए बदलाव के मद्देनज़र ममता ने घबराते हुवे कहा, माना उसे रोकने के स्थान पर अपने पापी किर्यकलापो के ज़रिए वह खुद उसकी उत्तेजना को बढ़ाती जा रही थी मगर उसका ममत्व निरंतर उसे झकझोर रहा था, कचोट रहा था कि उसे अपनी उमर और मा होने के गौरव को तुरंत नष्ट होने से बचा लेना चाहिए.

"मुझे पता था मा कि तुम पापा को मुझसे ज़्यादा चाहती हो वरना मुझे कभी खुद से दूर ना करती" ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला, उसकी मा के कथन से उसका डगमगाता सैयम पुनः उसके क़ब्ज़े में लौट आया था.

"अगर तुम वाकई मुझे नही चाहती तो मैं तुम्हे विवश नही करूँगा" अपनी मा के मम्मो को छोड़ कर उनसे ममता के हाथो को भी झटक दिया, उसकी नाटकीय छवि तो जैसे उसका सबसे बड़ा हथियार थी.

"नही रेशू" ममता ने फॉरन उसके हाथो को थाम कर कहा और दोबारा उन्हे अपने मम्मो के ऊपर रखने का प्रयत्न करने लगती है.

"तू नही जानता कि मैं इस वक़्त क्या झेल रही हूँ! खेर अभी मेरा तुझे रोकने का कारण कुच्छ और ही है बेटे" वह ऋषभ के हाथो से स्वयं अपने मम्मो का मर्दन करते हुवे बोली.

"वो क्या भला ?" ऋषभ ने व्याकुलतापूर्वक पुछा और अपनी मा के अगले कपकापाते अल्फ़ाज़ सुन कर तुरंत उसके होंठो पर शरारती मुस्कान व्याप्त हो जाती है.
Erotic update.
 

Raja jani

Active Member
891
1,959
139
आगे का कब लिखोगे बंधू
 

rahulrajgupta

New Member
42
61
19
मूल कहानी यही तक थी।अब इसके आगे यही स्तर कहानी का रहे तब तो लेखक को सफलता मानी जाएगी।

आगे का कब लिखोगे बंधू
very soon you will get update
 

Raja jani

Active Member
891
1,959
139
मां चूत चटवाना चाहती है अब
 

aslamji

New Member
62
49
18
Picture or gif add kro
Hot update
 
Last edited:
Top