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Adultery maa ka checkup complete story

rahulrajgupta

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Premkumar65

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माँ का चैकअप


दोस्तो ये कहानी दीक्षा ने लिखी है मैं इसे हिन्दी फ़ॉन्ट मे कॅन्वेर्ट कर रहा हूँ और आशा करता हूँ की ये कहानी आपको बहुत पसंद आएग . यह कहानी यहाँ समय के साथ अपनी पूर्णतः को प्राप्त होगी। इस कहानी का श्रेय इसके लेखक को जाता है मैं तो सिर्फ़ माध्यम मात्र हूँ



"सर !! आप की मदर आई हैं" रिसेप्षनिस्ट जूही ने अपने बॉस ड्र. ऋषभ मेहरा को इंटर कॉम के ज़रिए सूचना दी.
"ओक !! उन्हें विज़िटर'स रूम में रिलॅक्स करने को बोलो, मैं फ्री हो कर उनसे मिलता हूँ" ड्र. ऋषभ ने जवाब में कहा.
जूही: "मॅम !! सर ने आप को विज़िटर'स रूम के अंदर वेट करने को कहा है, वे अपने पेशेंट के साथ बिज़ी हैं"
"ठीक है" ड्र. ऋषभ की मा ममता मुस्कुराते हुवे बोली और विज़िटर'स रूम की तरफ मूड जाती है. क्लिनिक के उद्घाटन के 6 महीने बाद वह दूसरी बार यहाँ आई थी, बेटे की अखंड मेहनत का ही परिणाम था जो उसका क्लिनिक दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था.
जूही: "सर !! मैने आप को बताया था ना कि मुझे जल्दी घर जाना है .. तो क्या मैं ...."
"पहले यह बताओ !! मिस्टर. & मिसेज़. सिंग के बाद अभी और कितने अपायंट्मेंट्स बाकी हैं ?" ड्र. ऋषभ ने पुछा.
जूही: "सर !! 5 हैं"
ड्र. ऋषभ: "जूही !! वैसे भी आज सारा स्टाफ छुट्टी पर है, मैं अकेले सब कुच्छ कैसे मॅनेज कर सकूँगा ?"
"सर !! बहुत अर्जेंट है वरना मैं कभी नही जाती" वह विनती के स्वर में बोली.
"ह्म्‍म्म !! बाहर गार्ड को बोल कर चली जाओ बट कल से .. नो मोर एक्सक्यूसस" एक ज़िम्मेदार मालिक की भाँति ड्र. ऋषभ ने उसे अंतिम चेतावनी दी, जूही के रोज़ाना के नये-नये नाटको से वह तंग आ चुका था.
जूही: "थॅंक यू सर"
ड्र. ऋषभ: "रूको रूको !! गार्ड को बोलना कि अब किसी को भी क्लिनिक के अंदर ना आने दे. मैं अकेले वाकई हॅंडल नही कर पाउन्गा"
"शुवर सर !! बाइ टेक केअर" कॉल डिसकनेक्ट करने के उपरांत जूही ने ममता के लिए चाइ-पानी इत्यादि की व्यवस्था की, आख़िर उसके बॉस की मा जो ठहरी और कुच्छ देर के वार्तालाप के पश्चात क्लिनिक से बाहर निकल जाती है.
--------------
"तो बताइए मिस्टर. सिंग ..." ड्र. ऋषभ ने अपने ठीक सामने बैठे मिस्टर. सिंग से पुछा मगर मिसेज़. सिंग ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया.
"अरे यह क्या बताएँगे !! दो दो जवान बेटों के बाप हैं लेकिन लेकिन अक़ल दो कौड़ी की भी नही" वह अपने पति की ओर घूरते हुवे घुर्राई.
"ड्र. !! कल रात इन्होने ज़बरदस्ती मेरी गान्ड मारी .. मारी नही बल्कि फाड़ डाली. उफ़फ्फ़ !! मुझसे तो इस कुर्सी पर भी ठीक से बैठा नही जा रहा" उसने बेशर्मी से अपने पति की बीती करतूत का खुलासा किया.
"रीमा !! स .. सुनो तो" अपनी पत्नी की अश्लीलता से मिस्टर. सिंग हकला गये, ड्र. ऋषभ के कानो से भी धुंवा निकलने लगता है.
"क्या सुनू मैं !! हां हां बोलो ? तुम्हे कितना मना किया था लेकिन तुमने सूखा ही घुसेड दिया. शायद तुम्हे अपनी बीवी की तक़लीफ़ का अंदाज़ा नही विजय, मैं बता नही सकती कि मेरी गान्ड में इस वक़्त कितना दर्द हो रहा है" वह दोबारा तैश में चिल्लाई.
"ड्र. साहेब !! आप कुच्छ करो वरना...." अपनी सारी के पल्लू को अपने मूँह के भीतर ठूंसते हुवे वह रुन्वासि होने लगती है. उसके पति का तो मूँह ही लटक गया था मानो अपनी ग़लती स्वीकार कर शर्मिंदा हो रहा हो, ए/सी की ठंडी हवा के बावजूद विजय का पूरा चेहरा पसीने से लथ-पथ हो चुका था.
ड्र. ऋषभ ने एक नज़र दोनो मिया बीवी को देखा. मध्यम उमर, यही कोई 40-42 के आस-पास.
"मिसेज़. सिंग !! बिना इनस्पेक्ट किए मैं किसी भी नतीजे पर नही पहुँच सकता, बुरा ना मानें लेकिन यह ज़रूरी है" ड्र. ऋषभ ने मरीज़ के पर्चे पर उसकी डीटेल्स लिखते हुवे कहा, साथ ही डेस्क के कंप्यूटर पर नो ड्यूस सर्टिफिकेट को ब्राउज़ करने लगता है.
"क्या मतलब ड्र. !! मैं समझी नही" रीमा ने पुछा, अब तक का उसका लहज़ा एक-दम गवारों जैसा था जो उसकी मदमस्त अधेड़ जवानी के बिल्कुल विपरीत था.
ड्र. ऋषभ: "मेरा मतलब है !! मुझे आप के रोग से रिलेटेड कुच्छ जाँचें करनी होंगी"
"हां तो ठीक है ना डॉक्टर. !! मैं भी हर जाँच करवाने के लिए तैयार हूँ, कुच्छ भी करो मगर मेरा दर्द ठीक कर दो" किसी याचक की भाँति रीमा बोली, वाकयि वह दर्द से बिलबिला रही थी. उसकी गान्ड अब तक कुर्सी पर क्षण मात्र को भी स्थिर नही रह पाई थी, जिसे कभी यहाँ तो कभी वहाँ मटकाते हुवे वह ड्र. ऋषभ को अपनी गहेन पीड़ा से अवगत करवाने को प्रयास रत थी.
"रिलॅक्स मिसेज़. सिंग !! मैं खुद यही चाहता हूँ कि आप का दर्द जल्द से जल्द समाप्त जाए. विजय जी !! सॉफ लफ़ज़ो में कहना ज़्यादा उचित रहेगा कि मुझे आप की वाइफ के आस होल का इनस्पेक्षन करना होगा, अगर आप दोनो तैयार हों तो बताइए. चूँकि मैं एक मेल सेक्शोलॉजिस्ट हूँ तो आप दोनो की इजाज़त मिलना बेहद आवश्यक है" ड्र. ऋषभ ने नो ड्यूस सर्टिफिकेट को उनके मध्य रखते हुवे कहा.
"इसे ध्यान से पढ़ कर अपनी अनुमति प्रदान करें तभी मैं रीमा जी का हर संभव इलाज शुरू कर पाउन्गा और यदि आप किसी फीमेल सेक्शोलॉजिस्ट से परामर्श लेने के इक्शुक हों तो इसी रोड पर ठीक 300 मीटर. आगे ड्र. माया का क्लिनिक है. आप चाहें तो मैं अपने रेफ़्रेंसे से कॉल कर के उन्हें रीमा जी के केस से जुड़ी सारी डीटेल्स बता सकता हूँ" उसने बेहद नम्र स्वर में कहा ताकि अपना प्रभाव उन दोनो के ऊपर छोड़ सके, ख़ास कर रीमा रूपी कामुक माल पर जिसका पल्लू उसके अत्यंत कसे ब्लाउस के आगे से सरकने की वजह से उसके गोल मटोल मम्मो का पूरा भूगोल वह अपनी कमीनी आँखों से मान्पे जा रहा था. उसे खुद पर विश्वास था कि यदि उसने अपने बीते अनुभव का सटीक इस्तेमाल किया तो निश्चित ही उसकी सोची समझी मंशा अति-शीघ्र पूर्ण होने वाली थी.


अरे ड्र. साहेब !! गान्ड मेरी तो दर्द भी मेरा हुआ ना, रोगी मैं खुद हूँ और जब मुझे ही सब कुच्छ मंज़ूर है तो फिर यह इजाज़त क्यों देंगे भला ?" मासूमियत से ऐसा पुच्छ कर रीमा अपनी कुर्सी से उठी और वहीं अपनी सारी को अपने पेटिकोट से बाहर खिचने लगती है.
"नही नही रीमा जी !! अभी रुकिये, पहले इस नो ऑब्जेक्षन सर्टिफिकेट पर विजय जी के दस्तख़त हो जाने दीजिए" ड्र. ऋषभ रीमा के पति को घूरता है जो बेहद दुखी मुद्रा में उस नो ड्यूस सर्टिफिकेट को ऐसे पढ़ रहा था जैसे उसकी प्रॉपर्टी की वसीयत हो और जिसमें उसके बाप ने अपनी सारी दौलत पड़ोसी की औलाद के नाम कर दी हो.
"ईश्ह्ह !! आख़िर तुम चाहते क्या हो विजय ? क्या यही कि तुम्हारी बीवी तड़प्ते हुवे मर जाए ? हा !! शायद अब तुम्हें मेरी कोई फिकर नही रही" रीमा दोबारा क्रोध से तिलमिलाई.
"लाओ जी ड्र. साहेब !! वो ठप्पे वाली स्याही की डब्बी मुझे दो, मैं खुद अपना अंगूठा लगाती हूँ" उसने प्रत्यक्ष-रूप से अपने अनपढ़ होने का सबूत पेश किया. हलाकी वह पूर्व से ऐसी चरित्र-हीन औरत नही थी, पिच्छले महीने ही अपने गाओं से अपने पति के पास देल्ही आई थी. जीवन-पर्यंत अपनी बूढ़ी सास की देख-भाल के अलावा उसे किसी भी अन्य काम में कोई रूचि नही रही थी मगर आज अपने पति द्वारा सतायि वह अबला नारी किसी अनुभवी रंडी में परिवर्तित हो चली थी. इसकी एक मुख्य वजह ड्र. ऋषभ का आकर्षित व्यक्तित्व, सुंदर चेहरा, मांसल कलाई, बेहद गोरी रंगत, अत्यंत निर्मल स्वाभाव इत्यादि विशेताएँ या उसके वस्त्र-विहीन कठोर जिस्म का जितना हिस्सा वह अपनी खुली आँखों में क़ैद कर पाई थी, उसके कोमल हृदय को पिघलाने में सहायक उतना काफ़ी था.
"उम्म्म !! वो तो नही है रीमा जी मगर यह पेन ज़रूर है" ड्र. ऋषभ ने अपने हाथ में पकड़ा पेन विजय के चेहरे के सामने घुमाया, अपने समक्ष खड़ी अत्यधिक छर्हरे शरीर की स्वामिनी रीमा की अश्लील बातों व हरक़तो के प्रभाव मात्र से उसके पॅंट के भीतर छुपे उसके शुषुप्त लंड ने अंगड़ाई लेना प्रारंभ कर दिया था.
"डॉक्टर. !! मेरी बीवी और बच्चो से बढ़ कर मेरे लिए कुच्छ भी नही, चलिए मैं साइन कर देता हूँ. अब आप भी जल्दी से इनका इलाज करना शुरू कर दीजिए" विजय के कथन और मुख पर छाई मायूसी का कहीं से कहीं तक कोई मेल नही बैठ पता, मजबूरी-वश उसे सर्टिफिकेट पर अपने दस्तख़त करने ही पड़ते हैं. यदि वह दो दिन पहले अपने ऑफीस के जवान चपरासी की बातों के फेर में नही आया होता तो यक़ीनन आज उसे यूँ शर्मिंदगी का सामना नही करना पड़ता. हुआ कुच्छ ऐसा था कि उसके चपरासी ने उसके सामने अपनी नयी-नवेली दुल्हन के संग की जाने वाली संभोग क्रियाओं का अती-उत्तेजक विश्लेषण किया था, ख़ास कर अपनी जवान बीवी की गान्ड चोदने के मंत्रमुग्ध आनंद की बहुत ज़ोर-शोर से प्रशन्सा की थी और उनके दरमियाँ चले उस लंबे वार्तलाब के नतीजन विजय ने पिच्छली रात ज़बरदस्ती अपनी पत्नी की इक्षा के विरुद्ध उसकी गान्ड मारी, जिसे वह स्वयं पहले अप्राक्रातिक यौन संबंध समझता था.
जवान लौन्डे-लौंडिया तो वर्तमान में प्रचिलित चुदाई से संबंधित सभी आसनो का भरपूर लाभ उठाते हैं मगर अधेड़ो की दृष्टि-कॉन से आज भी एक निश्चित व सामान्य स्थिति में अपनी काम-पीपसा को शांत कर लेना उचित माना जाता है, मुख मैथुन या गुदा-मैथुन को वे सर्वदा ही पाश्चात्य सन्स्क्रति का हवाला दे कर अनुचित करार देते आए हैं.
"अब उतारू साड़ी ?" अपने पति को टोन्चति रीमा ने सवाल किया जैसे पराए मर्द के समक्ष नंगी हो कर उससे बदला लेना चाहती हो, हां काफ़ी हद्द तक उसके अविकसित मश्तिश्क के भीतर कुच्छ ऐसा ही द्वन्द्व चल रहा था.
"यहाँ नही रीमा जी !! वहाँ उस एग्ज़ॅमिन बेड पर" ड्र. ऋषभ अपनी चेर से उठ कर कॅबिन के दाईं तरफ स्थापित मरीज़ो वाले बिस्तर के नज़दीक जाते हुवे बोला. उसके पिछे-पिछे मिस्टर. & मिसेज़. सिंग भी उधर पहुँच गये.
"साड़ी उतारने की को ज़रूरत नही !! बस थोड़ी उँची ज़रूर कर लीजिए" उसके कहे अनुसार रीमा ने फॉरन अपनी स्राडी को पेटिकोट समेत अपनी पतली बलखाई कमर पर लपेट लिया और बिस्तर पर चढ़ने का भरकस प्रयत्न करने लगती है परंतु अपने गुदा-द्वार की असहनीय पीड़ा से विवश वह इसमें बिल्कुल सफल नही हो पाती.
ड्र. ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके की नज़ाकत को भुनाना चाहा और बिना किसी झेप के तुरंत वह रीमा के मांसल नंगे चुतडो के दोनो दाग-विहीन पाटों को अपने हाथो के विशाल पंजो के दरमियाँ कसते हुए उसके भारी भरकम शरीर को किसी फूल की तरह हवा में काफ़ी उँचाई तक उठा लेता है, कुच्छ पल अपने अत्यधिक बल का उदाहरण पेश करने के उपरांत उसने उसे बिस्तर की गद्दे-दार सतह पर छोड़ दिया जैसे वह मामूली सी कोई वजन-हीन वस्तु हो.
"उफ़फ्फ़" अपने पुत्र सम्तुल्य पर-पुरुष के हाथो के कठोर स्पर्श को महसूस कर रीमा सिसक उठी.
"मैं तो चड्डी भी नही पहन पाई !! देखो ना ड्र. साहेब इन्होने अपनी वेह्शियत से किस कदर अपनी नादान पत्नी को अपनी वासना का शिकार बनाया है" बिस्तर पर घोड़ी बन जाने के पश्चात ही उसने अपने चुतडो को वायुमंडल में उभारते हुवे कहा, उसकी कामुक आँखें परस्पर कभी अपने पति के उदासीन चेहरे पर गौर फरमाने लगती तो कभी अपने उस जवान नये प्रेमी के मुख-मंडल पर छाइ खुशी को निहारने में खो सी जाती.
क्रमशः.................................................................
Nice story. Interesting narration.
 
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