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Adultery Pyasi sunita Didi

Premkumar65

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Thode der baat karke raju apne ghar chala jata hai aur suman apne kaam me busy ho jati hai
Raju- Ghat me jaake sabko bata deta hai ramesh uncle ki wife aayi hui hai aur abhi hamar ghar bhi aayengi.
Suman- ye sunkar kehti hai achha thik hai
Suman khana bana ke free ho jati hai aur fir wo kehti hai aap khana kha lijiye
mai abhi unke ghar se aa rhi hu.
Ramesh- thik hai lekin jaldi aana.
Fir suman chali jati hai raju ke ghar
sunita unko dekhkar bolti hai
namaste bhabhi ji
Uski Bibi bhi jawab deti hai .
Fir suman sabhi ghar walo se milti hai aur baat karte hai.
Sabhi ko suman ki baar chit achi lagti hai.
Suman baar bahut dhyan se sunita ko dekhti rehti hai man me sochti hai kitni sunder aur sushil hai.
Suman ko sunita bahut pasand aati hai uska baat aur uska swabhaw.
Aise baat karke raat ho jati hai to suman kehti hai ab mai jaa rhi hu kal subeh fir milungi aapse sunita.
Sunita- thik hai aap jarur aayega aur kuch din yahi rehiye.
Suman- dekhti hu gaon me beta bhi hai usko dekhna padta hai isliye rukna thoda muskil hai.
Sunita- Keht hai 1-2 din ruk jaiye fir chali jayiega
Suman- thik hai mai baat karungi
Aur fir suman apne room me chali jati hai.

Suman fir ramesh ke pass chali jati hai
Ramesh suman ko dekhkar bolta hai itna der kyo laga di

Suman- wo Sunita ji mil gayi thi to hum baat karne Lage isliye der ho gaya
Ramesh- kya keh rhi thi Sunita
Bhabhi kuch khas nhi bus puch rhi thi bhaiya yaha rehte hai app gaon kyo rehti hai. Wahi Maine bataya bache gaon me hi padte hai isliye waha rehna padta hai.
Ramesh- Achha aur kya puchh rhe the log.
Suman- kuch nhi bus ghar war ki baaten
Ramesh- Man hi man bahut khush hota hai sunita ke bare me puchkar.
Ramesh is going very slowly. Sunita bhi dhire dhire uske jaal me fasengi.
 
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Suman fir ramesh ke pass chali jati hai
Ramesh suman ko dekhkar bolta hai itna der kyo laga di

Suman- wo Sunita ji mil gayi thi to hum baat karne Lage isliye der ho gaya
Ramesh- kya keh rhi thi Sunita
Bhabhi kuch khas nhi bus puch rhi thi bhaiya yaha rehte hai app gaon kyo rehti hai. Wahi Maine bataya bachhe gaon me hi padte hai isliye waha rehna padta hai.
Ramesh- Achha aur kya puchh rhe the log.
Suman- kuch nhi bus ghar war ki baaten
Ramesh- Man hi man bahut khush hota hai sunita ke bare me puchhkar.

Raat me ramesh sapna dekhta jisme sunita ko pyar kar rha hai


sabse deep kiss kar rha hai


sucking-kiss


deep-kiss-passionate-kiss
fir uski bade bade chhochhi ko pee rha hai kuch iss tarah


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fir uske boor ko chhat rha hai bahut pyar se


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fir apna lund uske chuswa rha hai


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fir uske baad sunita ko chodne lagta hai


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Bahut dino baad ramesh itna virya bahar nikala tha. Aur muskurate huye so gaya aise hi deen beeta gaya aur suman aksar sunita se baat karti rehti aur dono ekdusre ko pasand bhi karne lage. lekin ramesh mauka nhi milta tha sunita se baat karne ka.

Fir kuch din aise hi beet gaya.


सुनिता का हमेशा से एक अलग ही अंदाज था, जो रमेश को उसकी मासूमियत और सादगी में बहुत आकर्षित करता था। रमेश अक्सर सोचता कि सुनिता इतनी चुप क्यों रहती है, जबकि वह खुद भी ज्यादा बातूनी नहीं था, लेकिन सुनिता की चुप्पी उसे कुछ खास लगती थी।


एक दिन रमेश छत पर चढ़ा, अपनी थकान से राहत पाने और कुछ शांति की तलाश में। लेकिन जब वह वहाँ पहुंचा, तो उसकी नज़र सुनिता पर पड़ी। सुनिता छत पर खड़ी थी, और उसका चेहरा हल्का सा उदास और विचारशील था। वह किताबों में खोई हुई थी, और रमेश ने सोचा कि यह अच्छा मौका हो सकता है, उससे बात करने का।

रमेश धीरे-धीरे सुनिता के पास गया और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तुम हमेशा चुप ही रहती हो, या कभी बात भी करती हो?"

सुनिता थोड़ी चौंकी और फिर झिझकते हुए बोली, "मैं... मैं बस अकेले वक्त बिता रही थी, सोच रही थी।"

रमेश ने सहजता से कहा, "सोचने का वक्त तो अच्छा है, लेकिन कभी-कभी हमें अपनी सोच दूसरों से भी साझा करनी चाहिए। तुम कभी ऐसा करती हो?"

सुनिता थोड़ी सी चुप रही और फिर कहा, "नहीं, मुझे नहीं लगता। मैं ज्यादा बात नहीं करती, बस अपनी दुनिया में खोई रहती हूं।"

रमेश ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और मुस्कुराते हुए कहा, "समझ सकता हूं, लेकिन कभी सोचा है कि जब हम अपनी दुनिया को दूसरों के साथ साझा करते हैं, तो और भी अच्छा लगता है? खासकर किसी ऐसे इंसान के साथ, जो तुम्हें समझे।"

सुनिता ने रमेश की बातें सुनीं, लेकिन उसके मन में कई सवाल थे। वह जानती थी कि रमेश शादीशुदा है, और वह खुद भी कभी किसी विवाहित आदमी से संबंध नहीं बनाना चाहती थी।

वह पहले कभी किसी से इतनी खुलकर बात नहीं करती थी। रमेश ने सुनिता के पास खड़े होकर कहा, "देखो, मैं जानता हूं कि तुम ज्यादा बात नहीं करतीं, लेकिन कभी सोचा है कि अगर हम थोड़ा समय और बातें एक-दूसरे से करें तो शायद हमें कुछ नई बातें जानने को मिलें।"

सुनिता अब थोड़ी सी संकोची हो गई थी, लेकिन वह चाहती थी कि रमेश की बातों को समझे। रमेश ने अपनी आवाज को और भी नरम किया और कहा, "सुनिता, क्या आप आज रात फिर छत पर आकर मुझसे बातें करना चाहोगी? मैं जानता हूं कि आप एक शांत स्वभाव की लड़की हो, लेकिन शायद हम दोनों की बातें एक-दूसरे को समझने में मदद करें।"

सुनिता ने रमेश की बातों पर थोड़ा विचार किया। वह थोड़ा शर्माती हुई बोली, "आप सच में चाहते हो कि हम बैठकर बातें करें?"

रमेश ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "हां, बिलकुल। मुझे यकीन है कि हमारी बातें हमारे दिलों को और करीब लाएंगी। बस आज रात छत पर आकर मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

सुनिता ने रमेश की आँखों में सच्चाई देखी और फिर उसने धीरे से कहा, "ठीक है, मैं आज रात आऊँगी।"

रमेश ने फिर सुनिता की ओर देखा और कहा, "आपसे बातें करना मेरे लिए खास होगा। मैं इंतजार करूंगा।"

रमेश वापस अपने कमरे में गया और अपने दिल में इस बात को सोचा कि सुनिता के साथ समय बिताना उसे कितना अच्छा लगेगा। सुनिता, जो हमेशा अकेले ही रहती थी, अब रमेश के साथ छत पर समय बिताने के विचार से थोड़ा उत्साहित महसूस कर रही थी।

रात का समय आया, और सुनिता छत पर पहुंची। रमेश पहले से ही वहां खड़ा था, उसका चेहरा हल्का सा मुस्कुराता हुआ था। सुनिता ने धीरे से कहा, "आप सच में चाहते हो कि हम बैठकर बातें करें?"

रमेश ने नर्म आवाज़ में कहा, "हां, सुनिता। मैं चाहता हूँ कि हम दोनों एक-दूसरे को जानें, और समझें। इस चाँदनी रात में हमारी बातें बहुत खास हो सकती हैं।"

सुनिता धीरे-धीरे रमेश के पास बैठ गई, और रमेश ने उसकी आँखों में देखा। दोनों ने एक-दूसरे के साथ दिल की बातें की। सुनिता ने अपनी चुप्पी को तोड़ा, और रमेश ने उसे सुनने का पूरा वक्त दिया। धीरे-धीरे, सुनिता रमेश के साथ खुद को खुला हुआ महसूस करने लगी। उसने महसूस किया कि वह अब उस जगह पर है, जहां वह अपने मन की बात बेझिजक कह सकती है।

रमेश और सुनिता की यह पहली मुलाकात छत पर एक नए रिश्ते की शुरुआत बनी। दोनों ने अपनी सोच, सपने और चिंताओं पर बात की, और एक-दूसरे के करीब आने लगे। रमेश ने सुनिता से कहा, "आपसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा, सुनिता। मैं चाहता हूँ कि आप फिर से यहाँ आओ, और हम और बातें करें।"

सुनिता ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "मैं फिर आऊँगी, रमेश। मुझे भी यह बातचीत बहुत अच्छी लगी।"

उस रात छत पर, चाँद और सितारे उन्हें देख रहे थे, और रमेश और सुनिता की दोस्ती और समझ के बीच एक नई शुरुआत हो रही थी।
 
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रमेश और सुनिता की छत पर हुई पहली मुलाकात के बाद, उनकी बातचीत का सिलसिला धीरे-धीरे बढ़ने लगा। पहले दिन की शर्म और संकोच के बाद, दोनों के बीच एक अनकही समझ बन गई थी। रमेश, जो पहले से ही शांत स्वभाव का था, अब सुनिता के साथ अपनी हर छोटी-बड़ी बात साझा करने लगा था। वह जानता था कि सुनिता की चुप्पी में गहराई थी और उसे धीरे-धीरे समझने का मन था।

हर दिन शाम होते ही रमेश छत पर पहुँचता और देखता कि क्या सुनिता आ रही है। वह जानता था कि सुनिता शर्मीली है, लेकिन उसकी आँखों में उसे एक उम्मीद नजर आती थी, जैसे वह भी इन मुलाकातों का इंतजार करती हो।

रमेश ने पहले तो छेड़छाड़ के अंदाज में बात करना शुरू किया, जैसे ही सुनिता छत पर आती, वह कहता, "आज फिर सोच रही हो, या मेरी बातें सुनने आ गई हो?"

सुनिता मुस्कुराती, लेकिन तुरंत कहती, "आपकी बातें सुनना मुझे अच्छा लगता है, रमेश। कभी कभी बहुत सी बातें दिमाग में घुमती रहती हैं।"

रमेश ने धीरे-धीरे उसे समझाया, "जो बातें दिमाग में घुमती रहती हैं, उन्हें दूसरों से साझा करना चाहिए। कभी हम खुद को समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब दूसरे सुनते हैं तो वो हमें नया दृष्टिकोण देते हैं।"

यह सुनकर सुनिता थोड़ी चौंकी, लेकिन फिर मुस्कुराई। रमेश के शब्द उसे राहत दे रहे थे। वह महसूस करती थी कि रमेश उसके साथ सहज महसूस करने की कोशिश कर रहा था। धीरे-धीरे, सुनिता ने रमेश से अपनी चुप्पी तोड़ना शुरू किया। वह अपनी जिंदगी, अपने परिवार, और अपनी छोटी-छोटी खुशियों और चिंताओं के बारे में उसे बताने लगी।

एक दिन, रमेश ने छत पर एक प्यारी सी चाय बनाकर सुनिता को दी। उसने कहा, "सुनिता, कभी सोचा है कि एक कप चाय से कितनी बातें शुरू हो सकती हैं? चाय के साथ तो दिल की बातें भी निकल आती हैं।"

सुनिता मुस्कुराते हुए चाय का प्याला लेती है, और धीरे-धीरे दोनों के बीच बातचीत बढ़ने लगती है। रमेश सुनिता से उसके सपनों के बारे में पूछता, और सुनिता रमेश से उसकी जिंदगी के अनुभवों के बारे में। यह मुलाकातें अब सिर्फ बातें करने तक सीमित नहीं थीं, वे दोनों एक-दूसरे की जान पहचान में भी गहराई से शामिल हो गए थे।

एक दिन, रमेश ने कहा, "सुनिता, तुम्हारे साथ बैठकर हर बात कितनी आसान हो जाती है। तुमसे बातें करना जैसे किसी मीठी याद की तरह लगता है। मुझे लगता है, हम दोनों को और भी करीब आना चाहिए। क्या तुम कभी सोची हो कि हमारी यह दोस्ती आगे क्या बन सकती है?"

सुनिता थोड़ी चौंकी, लेकिन उसके दिल में एक हलचल सी हुई। रमेश की बातों में कुछ खास था, और वह चाहती थी कि वह खुद भी इस रिश्ते को समझे। वह जवाब देती है, "रमेश, मैं... मैं नहीं जानती, पर मुझे आपकी बातें बहुत पसंद हैं। कभी सोचा नहीं था कि किसी से इतनी आसानी से बात कर पाऊँगी।"

रमेश ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "अगर तुम तैयार हो, तो मैं चाहता हूं कि हम दोनों इसे और आगे बढ़ाएं। हमारे बीच जो विश्वास और समझ है, उसे कभी खोने मत देना। तुम मेरे लिए खास हो, सुनिता।"

सुनिता की आँखों में शरम और खुशी का मिश्रण था। उसने धीरे से कहा, "मुझे भी आप से बहुत कुछ सीखने को मिला है, रमेश। मुझे लगता है कि हम दोनों इस रिश्ते को एक नई दिशा दे सकते हैं।"

रमेश ने हंसते हुए कहा, "तो क्या हम दोनों अब इसे और आगे बढ़ाएं? क्या तुम मेरी तरफ से एक मौका देना चाहोगी?"

सुनिता ने रमेश की आँखों में सच्चाई और अपनापन महसूस किया। उसने सिर झुका लिया और धीरे से कहा, "हां, रमेश। मुझे तुमसे बहुत कुछ अच्छा लगता है। मैं तुमसे जुड़ने के लिए तैयार हूं।"

अब हर रात, जब भी चाँद और सितारे छत पर चमकते, रमेश और सुनिता छत पर बैठकर अपनी दिनचर्या, अपने सपने और भविष्य के बारे में बातें करते थे। सुनिता, जो कभी शर्मीली और चुप रही थी, अब रमेश के साथ अपने दिल की सारी बातें साझा करने लगी थी। वह जानती थी कि रमेश उसे समझता है और उसे कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देगा।

दोनों के बीच की ये मुलाकातें अब प्यार और समझ में बदल चुकी थीं। छत पर बिताए गए वो छोटे-छोटे पल उनके रिश्ते को मजबूत बना रहे थे, और धीरे-धीरे सुनिता भी यह महसूस करने लगी थी कि रमेश उसके लिए खास है।

सुनिता को रमेश की बातें सही लगने लगीं, लेकिन उसके दिल में एक डर था। "वह शादीशुदा है," वह सोचने लगी। "क्या मुझे इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए? क्या यह ठीक है?"

इस उलझन के बावजूद, सुनिता ने रमेश से और बातें करना शुरू किया। वह रमेश के साथ धीरे-धीरे खुलने लगी, और उसकी जिंदगी, उसके सपने, और उसकी छोटी-छोटी खुशियों और चिंताओं के बारे में साझा करने लगी। रमेश ने हमेशा उसकी बातें ध्यान से सुनीं, और धीरे-धीरे सुनिता को यह महसूस होने लगा कि वह रमेश के साथ सहज महसूस कर रही थी।
 
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रमेश और सुनिता के बीच छत पर हुई मुलाकातों का सिलसिला अब एक नई दिशा में बढ़ रहा था। रमेश जानता था कि सुनिता एक शर्मीली लड़की है, और उसे धीरे-धीरे अपने प्रति आकर्षित करना होगा। हालांकि वह शादीशुदा था, लेकिन उसने सुनिता को अपनी भावनाओं से कभी भी असमंजस में नहीं डाला था। वह केवल दोस्ती के आधार पर उसे अपना दिल खोलने का मौका देना चाहता था।

हर दिन, छत पर होती मुलाकातों में, रमेश धीरे-धीरे सुनिता के दिल में अपनी जगह बना रहा था। वह जानता था कि सुनिता को छोटी-छोटी खुशियाँ बहुत पसंद थीं, इसलिए वह उसे छोटे-छोटे तोहफे देने लगा।

एक दिन, रमेश ने सुनिता के लिए एक सुंदर और स्टाइलिश साड़ी खरीदी, जो उसकी पसंदीदा रंग की थी। वह जानता था कि सुनिता साड़ी पहनना पसंद करती है, और उसे यह तोहफा देने से वह खुश होगी।

"यह तुम्हारे लिए है, सुनिता। मुझे पता था कि तुम्हें ये रंग पसंद है," रमेश ने हंसते हुए कहा।

सुनिता ने साड़ी को हाथ में लिया और चुपचाप मुस्कुराई। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई व्यक्ति उसे इस तरह समझेगा। उसके दिल में एक हल्की सी खुशी थी, लेकिन साथ ही डर भी था कि वह एक शादीशुदा आदमी से रिश्ते की ओर बढ़ने में क्या सही कदम उठा सकती है।

रमेश ने एक दिन उसे एक खूबसूरत ड्रेस भी भेजी। जब सुनिता ने उसे देखा, तो उसकी आँखों में विस्मय था।

"यह तुम्हारे लिए है, बस तुमसे कुछ कहने के लिए। मुझे पता था कि तुम स्टाइलिश कपड़े पसंद करती हो, और यह देखकर मुझे अच्छा लगता है कि तुम्हारी मुस्कान में रंग आ जाए," रमेश ने कहा।

सुनिता थोड़ी झिझकते हुए बोली, "रमेश, आप बहुत दयालु हैं, लेकिन मैं नहीं जानती कि मुझे इन चीज़ों के बारे में क्या सोचना चाहिए। आप शादीशुदा हैं, और मैं नहीं चाहती कि किसी भी वजह से आपको परेशान करूं।"

रमेश ने गहरी साँस ली, फिर उसने कहा, "सुनिता, मैं तुम्हें कभी भी असहज नहीं करना चाहता। इन तोहफों का कोई मतलब नहीं है अगर तुम उन्हें न चाहो। मैं सिर्फ तुम्हारे साथ अपना समय बिताना चाहता हूँ और तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूं। अगर तुम चाहो तो यह दोस्ती और भी मजबूत हो सकती है, लेकिन यह सब तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करेगा।"

रमेश की इन बातों ने सुनिता को और भी प्रभावित किया। उसकी बातें ईमानदार और सम्मानजनक थीं, और यही बात उसे रमेश के प्रति और भी आकर्षित कर रही थी। धीरे-धीरे, वह अपनी भावनाओं को समझने लगी।

एक दिन रमेश ने उसे एक आकर्षक पेन और डायरी दी। वह जानता था कि सुनिता अपने विचारों को लिखना पसंद करती है, और उसे लगा कि यह उसे खुद को व्यक्त करने का एक और तरीका देगा।

"यह तुम्हारी लिखावट के लिए है, सुनिता। मुझे उम्मीद है कि तुम इसमें अपने विचार लिख सको, और कभी-कभी अपनी छोटी-छोटी खुशियों को साझा कर सको," रमेश ने कहा।

सुनिता ने धीरे-धीरे पेन और डायरी को हाथ में लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "आप जानते हैं, रमेश, मुझे लिखना बहुत पसंद है, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि कोई मेरे लिए ऐसा सोचेगा। मैं बहुत खुश हूं कि आप मेरे बारे में इतना सोचते हैं।"

रमेश ने कहा, "मैं बस तुम्हारी खुशियों का हिस्सा बनना चाहता हूँ, सुनिता। मैं जानता हूँ कि तुम थोड़ा संकोच करती हो, लेकिन मैं तुम्हारा दोस्त बनने के लिए तैयार हूं। तुम्हें कभी भी कोई दबाव महसूस नहीं होना चाहिए।"

इन छोटे-छोटे तोहफों और सजीव बातचीतों के दौरान, सुनिता के दिल में एक बदलाव आ रहा था। उसने अब महसूस किया कि रमेश का इरादा नेक था और वह केवल दोस्ती और सम्मान की बात कर रहा था। रमेश का उसे सही तरीके से समझाना और उसे हर कदम पर सुरक्षित महसूस कराना, उसकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा था।

फिर एक रात, छत पर एक और मुलाकात के दौरान, रमेश ने सुनिता से धीरे-धीरे पूछा, "क्या तुम कभी सोची हो कि हमारे बीच एक रिश्ता बन सकता है, जो सिर्फ दोस्ती से बढ़कर हो? मुझे पता है कि तुम शादीशुदा आदमी से डर रही हो, लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम यह समझो कि मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं।"

सुनिता थोड़ी देर के लिए चुप रही। उसके मन में बहुत से सवाल थे, लेकिन उसने अंत में कहा, "रमेश, आप बहुत अच्छे इंसान हैं। मैं जानती हूं कि आप मुझे समझते हैं। मुझे लगता है कि हम दोनों इस रिश्ते को एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन मुझे समय चाहिए।"

रमेश ने हल्के से सिर झुका लिया और कहा, "समय तुम्हारा है, सुनिता। मैं इंतजार करूंगा, और तुम्हारे फैसले का सम्मान करूंगा।"

सुनिता अब यह महसूस करने लगी थी कि रमेश उसके लिए एक भरोसेमंद दोस्त और साथी बन चुका है। वह जानती थी कि इस रिश्ते को बढ़ने के लिए उसे खुद भी तैयार होना होगा, लेकिन वह अब यह समझ चुकी थी कि रमेश ने उसे कभी भी असहज महसूस नहीं कराया। उसकी ईमानदारी, दयालुता, और छोटे-छोटे तोहफे उसे हर दिन रमेश के करीब ला रहे थे।

अब छत पर उनकी मुलाकातें और भी खास हो गई थीं। दोनों ने धीरे-धीरे अपनी सीमाएँ तय की थीं, और रमेश ने सुनिता के दिल में जगह बना ली थी, जहाँ वह खुद को सहज महसूस कर सकती थी। इस रिश्ते में सब कुछ ठीक था, क्योंकि वह एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते थे।
 
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रमेश और सुनिता के बीच एक गहरी दोस्ती पनपी थी। उनकी मुलाकातें धीरे-धीरे बढ़ने लगीं, और वे दोनों एक दूसरे के साथ वक्त बिताने लगे थे। रमेश जानता था कि वह एक शादीशुदा आदमी है, और सुमन, उसकी पत्नी, के साथ उसके रिश्ते में कई समस्याएँ हैं। लेकिन सुनिता की ओर खींचाव और उसके प्रति बढ़ते भावनाओं ने उसे एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया था।

सुनिता का मन भी रमेश के प्रति आकर्षित हो चुका था, लेकिन वह जानती थी कि रमेश की शादी एक प्रतिबद्धता है और उसकी पत्नी सुमन के साथ कोई भी रिश्ता उससे अनैतिक होगा। हालांकि, वह कभी भी रमेश से कोई अपेक्षाएँ नहीं रखती थी।

एक दिन, जब रमेश और सुनिता छत पर बैठे थे और चाँद की रोशनी में अपनी बातों का सिलसिला चला रहे थे, अचानक सुनिता ने रमेश से एक सीधी बात पूछी, "रमेश, क्या तुमने कभी सुमन से अपनी भावनाओं के बारे में बात की है? क्या तुम उसे यह सब बताने में सक्षम हो?"

रमेश की आँखों में दर्द और असमंजस था। उसने धीरे से कहा, "सुनिता, मैं सुमन से प्यार करता हूँ, लेकिन हमारे रिश्ते में जो कमी है, वह मुझे कभी चैन से जीने नहीं देती। मैंने उसे कभी दुखी नहीं किया, लेकिन अब मैं महसूस करता हूँ कि मेरे अंदर कुछ और भावनाएँ हैं, जो मैंने तुम्हारे लिए महसूस की हैं।"

सुनिता थोड़ी उदास हो गई, लेकिन उसने सोचा कि अगर रमेश का यह हाल है तो उसे उसके बारे में सोचना चाहिए। क्या वह सच में एक ऐसी स्थिति में फंसने के लिए तैयार है, जहां दो लोग एक-दूसरे को दुखी कर सकते हैं?

इसी दौरान, रमेश ने एक दिन सुमन से अपनी स्थिति के बारे में खुलकर बात की। सुमन ने उसकी बातों को सुनते हुए गहरी साँस ली, और फिर कहा, "रमेश, मैं जानती हूं कि तुम हमेशा ईमानदार रहे हो और तुमने मुझे कभी भी धोखा नहीं दिया। मैं देख सकती हूँ कि तुम्हारे मन में सुनिता के प्रति कुछ है। यह स्थिति मेरे लिए बहुत मुश्किल है, लेकिन अगर तुम सच में उससे प्यार करते हो, तो मैं तुम्हारी खुशियों के रास्ते में नहीं आना चाहती।"

रमेश हैरान हो गया। वह जानता था कि सुमन का दिल बहुत बड़ा है, और वह उसकी समझदारी और उदारता से प्रभावित था। सुमन ने आगे कहा, "लेकिन मुझे यह चाहिए कि तुम मेरे साथ भी ईमानदार रहो, और अगर तुम सुनिता के साथ अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हो, तो मुझे इसके बारे में पूरा सच बताओ। मैं तुमसे यही उम्मीद करती हूँ।"

रमेश ने सिर झुका लिया और कहा, "सुमन, मैं हमेशा तुमसे सच्चाई छुपाकर नहीं जी सकता। मुझे यह समझ में आ चुका है कि मैं तुम्हारे साथ अपने रिश्ते को बचाए रखकर सुनिता के साथ अपने भावनाओं को आगे बढ़ाना चाहता हूँ, लेकिन मैं तुम्हें कभी भी ठेस नहीं पहुँचाऊंगा।"

सुमन ने रमेश को देखा और कहा, "मैं समझती हूँ। अगर तुम सच में सुनिता से प्यार करते हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन याद रखना, हम दोनों के रिश्ते में कभी भी विश्वास की कमी नहीं होनी चाहिए।"

यह सुनकर रमेश को सुकून मिला। उसने सुमन को गले से लगाया और कहा, "मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूँगा, सुमन। तुमने मुझे पूरी तरह से समझा। मैं वादा करता हूँ कि मैं कभी भी तुम्हारी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं करूंगा।"


अब, रमेश और सुमन के बीच समझदारी हो चुकी थी, और रमेश ने पूरी तरह से महसूस किया कि वह दोनों के बीच एक नई शुरुआत कर सकता है। रमेश ने सुनिता से मिलने का समय तय किया और उसने उसे बताया कि सुमन को इस रिश्ते के बारे में पता चल गया है और उसने पूरी तरह से उसे समझा है।

सुनिता थोड़ी चौंकी, लेकिन उसने रमेश की ईमानदारी को सराहा। "रमेश, क्या तुम सच में सोचते हो कि मैं इस रिश्ते को स्वीकार कर सकती हूँ? तुम शादीशुदा हो, और यह सब बहुत उलझा हुआ है। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे डर है कि मैं सुमन की तरह तुम्हें कभी भी खो दूँगी।"

रमेश ने उसे धीरे से समझाया, "मैं जानता हूँ, सुनिता, और मैं तुम्हारे डर को समझता हूँ। लेकिन मैं तुमसे वादा करता हूँ कि हम दोनों के बीच कोई ऐसा कदम नहीं उठाएंगे, जो किसी को भी दुखी करे। हम अपनी नई शुरुआत को सावधानी से करेंगे, और मैं कभी भी तुम्हारी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं करूंगा।"

इस तरह, रमेश और सुनिता ने अपनी राह पर आगे बढ़ने का फैसला किया। सुमन की उदारता और समझदारी ने दोनों को एक-दूसरे के करीब लाया, और अब उनका रिश्ता एक नई दिशा में बढ़ने को तैयार था। लेकिन वे दोनों जानते थे कि इस रिश्ते में आने वाले समय में कई कठिनाइयाँ होंगी, और उन्हें हर कदम पर एक दूसरे का साथ चाहिए था।
 
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रमेश और सुनीता के बीच बातचीत और गहरी होती जा रही थी। वे दोनों समय एक साथ बिता रहे थे, और यह स्पष्ट था कि उनके बीच एक मजबूत संबंध था। हालांकि, रमेश जानता था कि किसी भी कदम को आगे बढ़ाने से पहले यह जरूरी था कि वे धैर्य, समझ और सुनीता की भावनाओं का सम्मान करते हुए यह कदम उठाएं।

एक शाम, जब वे छत पर बैठे थे, रमेश ने धीरे से बात शुरू की।

"सुनीता, मुझे हमारे बीच जो संबंध बना है, वह बहुत मूल्यवान लगता है, और मैं इसे जल्दबाजी में नहीं लेना चाहता। मुझे पता है कि तुम कुछ उलझन में हो, और मैं चाहता हूँ कि तुम जानो, जो भी तुम तय करोगी, मैं तुम्हारे फैसले का सम्मान करूंगा।"

सुनीता ने कुछ देर तक उसकी ओर देखा और फिर मुस्कुराई, लेकिन वह चुप रही। वह जानती थी कि रमेश के साथ उसका जुड़ाव बहुत गहरा है, लेकिन वह अब भी यह तय करने में लगी थी कि इस संबंध को कैसे आगे बढ़ाया जाए।

"मैं तुम्हारा यह कहना बहुत सराहती हूं," सुनीता ने कहा। "मुझे तुम्हारे साथ समय बिताना अच्छा लगता है, और जब मैं तुम्हारे साथ होती हूं तो सुरक्षित महसूस करती हूं। लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि हम बहुत जल्दी नहीं बढ़ रहे हैं, खासकर जब हमारे रिश्ते की जटिलताएं हैं।"

रमेश ने सिर झुकाया और उसकी बात को समझते हुए कहा, "मैं पूरी तरह से समझता हूं। और मैं तुम्हारे ऊपर कोई दबाव नहीं डालना चाहता। जो सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह है कि हम दोनों एक-दूसरे के साथ खुले और ईमानदार रहें। तुम्हें इस स्थिति में अकेला महसूस नहीं करना चाहिए।"

रमेश ने अपनी छोटी-छोटी, सार्थक कार्रवाइयों से सुनीता की सीमाओं का सम्मान करना जारी रखा। वह उसे विचारशील संदेश भेजता, अपने विचारों को खुलकर साझा करता, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह हमेशा उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पूरा स्पेस देता था, बिना किसी निर्णय के।

समय के साथ, सुनीता ने महसूस किया कि वह इस संबंध को आगे बढ़ाने के विचार से सहज हो रही थी। उसने रमेश पर भरोसा करना शुरू किया, यह जानते हुए कि वह कभी उसे किसी ऐसी चीज़ के लिए नहीं मजबूर करेगा, जिसके लिए वह तैयार न हो।

एक दिन, सुनीता ने रमेश को अपने कमरे में बुलाया। यह एक साधारण, शांत शाम थी। उसने दिनभर उनके बीच की बातचीत और उनके संबंध पर विचार किया था। अब उसे यह एहसास हुआ कि अगर वे अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो यह उसके अपने समय पर और उसके अनुसार ही होगा—जब वह तैयार महसूस करेगी।

"रमेश, मैंने सोचा है," सुनीता ने कहा, जैसे ही वे दोनों बैठ गए। "मैं सराहती हूं कि तुमने मेरे साथ इतना धैर्य रखा है। मैं चाहती हूं कि हम आगे बढ़ें, लेकिन मुझे यह भी चाहिए कि हम एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते हुए हर कदम बढ़ाएं।"

रमेश ने गर्मजोशी से मुस्कुराया, यह जानकर कि वे दोनों अब एक ही पृष्ठ पर हैं। "बिलकुल, सुनीता। मैं तुम्हारे साथ हूं। जो तुम चाहोगी, हम उसे धीरे-धीरे करेंगे।"

उस दिन के बाद, उनका संबंध और भी मजबूत हो गया। उन्होंने एक-दूसरे के साथ विश्वास और भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखा। रमेश ने कभी भी सुनीता पर कोई दबाव नहीं डाला; इसके बजाय, उसने संबंध को प्राकृतिक रूप से विकसित होने दिया, और सुनीता को वह समय दिया, जब वह वास्तव में तैयार महसूस करती थी।



इस तरह, रमेश और सुनीता ने अपने रिश्ते को धीरे-धीरे और सावधानी से आगे बढ़ाया। वे दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए, विश्वास और समझदारी से अपने रिश्ते को आगे बढ़ा रहे थे।
 
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रात का समय था, और सुनीता ने रमेश को अपने कमरे में आने का न्यौता दिया। दोनों के बीच धीरे-धीरे बढ़ते रिश्ते की एक नई शुरुआत होने वाली थी। सुनीता का दिल कुछ उलझनों से घिरा हुआ था, लेकिन उसे पता था कि वह इस पल का सामना करने के लिए तैयार है।

रमेश ने सुनीता के कमरे में कदम रखा, और सुनीता ने हल्की सी मुस्कान के साथ दरवाजा खोला। कमरे में हल्की रोशनी और एक शांति का माहौल था।

"तुमने मुझे बुलाया, सुनीता?" रमेश ने हल्की सी आवाज में पूछा, उसकी आँखों में एक सच्ची चिंता और आदर था।

"हां," सुनीता ने धीमे से कहा, "मुझे कुछ बातें तुम्हारे साथ साझा करनी हैं।"

रमेश ने उसकी ओर ध्यान से देखा और धीरे से बिस्तर पर बैठ गया। "क्या हुआ? क्या तुम ठीक हो?" उसने पूछा।

सुनीता ने थोड़ा रुका और फिर उसकी आँखों में देखा। "रमेश, मैं जानती हूं कि हम दोनों के बीच बहुत कुछ बदल चुका है। मुझे लगता है कि हम दोनों को इस रिश्ते के बारे में बात करनी चाहिए।"

रमेश ने नज़दीकी से उसकी बात सुनी और कहा, "मैं समझता हूं। मैं भी चाहता हूं कि हम अपनी भावनाओं को स्पष्ट करें। अगर तुम तैयार हो, तो मैं तुमसे पूरी तरह से बात करने के लिए यहां हूं।"

सुनीता ने गहरी सांस ली और कहा, "मैं जानती हूं कि हम दोनों के बीच बहुत कुछ बढ़ चुका है, और मैं भी अब अपने दिल की सुनने लगी हूं। लेकिन मुझे डर है कि इस रास्ते पर चलने से हमें परेशानी हो सकती है। मैं चाहती हूं कि तुम मुझे समझ सको।"

रमेश ने उसकी बात को समझा और कहा, "मैं तुम्हारे डर और उलझन को समझता हूं। हम इसे धीरे-धीरे करेंगे। तुम जिस दिशा में जाना चाहोगी, मैं तुम्हारे साथ हूं।"

उस पल में सुनीता ने महसूस किया कि वह रमेश के साथ सुरक्षित है, और उसकी भावनाएं पूरी तरह से उसे समझी जा रही हैं। धीरे-धीरे, उनकी नजदीकी और भी बढ़ी, और उनके बीच के संबंध ने एक नई दिशा ले ली।
 
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