Bahut dino baad ramesh itna virya bahar nikala tha. Aur muskurate huye so gaya aise hi deen beeta gaya aur suman aksar sunita se baat karti rehti aur dono ekdusre ko pasand bhi karne lage. lekin ramesh mauka nhi milta tha sunita se baat karne ka.
Fir kuch din aise hi beet gaya.
सुनिता का हमेशा से एक अलग ही अंदाज था, जो रमेश को उसकी मासूमियत और सादगी में बहुत आकर्षित करता था। रमेश अक्सर सोचता कि सुनिता इतनी चुप क्यों रहती है, जबकि वह खुद भी ज्यादा बातूनी नहीं था, लेकिन सुनिता की चुप्पी उसे कुछ खास लगती थी।
एक दिन रमेश छत पर चढ़ा, अपनी थकान से राहत पाने और कुछ शांति की तलाश में। लेकिन जब वह वहाँ पहुंचा, तो उसकी नज़र सुनिता पर पड़ी। सुनिता छत पर खड़ी थी, और उसका चेहरा हल्का सा उदास और विचारशील था। वह किताबों में खोई हुई थी, और रमेश ने सोचा कि यह अच्छा मौका हो सकता है, उससे बात करने का।
रमेश धीरे-धीरे सुनिता के पास गया और हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तुम हमेशा चुप ही रहती हो, या कभी बात भी करती हो?"
सुनिता थोड़ी चौंकी और फिर झिझकते हुए बोली, "मैं... मैं बस अकेले वक्त बिता रही थी, सोच रही थी।"
रमेश ने सहजता से कहा, "सोचने का वक्त तो अच्छा है, लेकिन कभी-कभी हमें अपनी सोच दूसरों से भी साझा करनी चाहिए। तुम कभी ऐसा करती हो?"
सुनिता थोड़ी सी चुप रही और फिर कहा, "नहीं, मुझे नहीं लगता। मैं ज्यादा बात नहीं करती, बस अपनी दुनिया में खोई रहती हूं।"
रमेश ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और मुस्कुराते हुए कहा, "समझ सकता हूं, लेकिन कभी सोचा है कि जब हम अपनी दुनिया को दूसरों के साथ साझा करते हैं, तो और भी अच्छा लगता है? खासकर किसी ऐसे इंसान के साथ, जो तुम्हें समझे।"
सुनिता ने रमेश की बातें सुनीं, लेकिन उसके मन में कई सवाल थे। वह जानती थी कि रमेश शादीशुदा है, और वह खुद भी कभी किसी विवाहित आदमी से संबंध नहीं बनाना चाहती थी।
वह पहले कभी किसी से इतनी खुलकर बात नहीं करती थी। रमेश ने सुनिता के पास खड़े होकर कहा, "देखो, मैं जानता हूं कि तुम ज्यादा बात नहीं करतीं, लेकिन कभी सोचा है कि अगर हम थोड़ा समय और बातें एक-दूसरे से करें तो शायद हमें कुछ नई बातें जानने को मिलें।"
सुनिता अब थोड़ी सी संकोची हो गई थी, लेकिन वह चाहती थी कि रमेश की बातों को समझे। रमेश ने अपनी आवाज को और भी नरम किया और कहा, "सुनिता, क्या आप आज रात फिर छत पर आकर मुझसे बातें करना चाहोगी? मैं जानता हूं कि आप एक शांत स्वभाव की लड़की हो, लेकिन शायद हम दोनों की बातें एक-दूसरे को समझने में मदद करें।"
सुनिता ने रमेश की बातों पर थोड़ा विचार किया। वह थोड़ा शर्माती हुई बोली, "आप सच में चाहते हो कि हम बैठकर बातें करें?"
रमेश ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, "हां, बिलकुल। मुझे यकीन है कि हमारी बातें हमारे दिलों को और करीब लाएंगी। बस आज रात छत पर आकर मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"
सुनिता ने रमेश की आँखों में सच्चाई देखी और फिर उसने धीरे से कहा, "ठीक है, मैं आज रात आऊँगी।"
रमेश ने फिर सुनिता की ओर देखा और कहा, "आपसे बातें करना मेरे लिए खास होगा। मैं इंतजार करूंगा।"
रमेश वापस अपने कमरे में गया और अपने दिल में इस बात को सोचा कि सुनिता के साथ समय बिताना उसे कितना अच्छा लगेगा। सुनिता, जो हमेशा अकेले ही रहती थी, अब रमेश के साथ छत पर समय बिताने के विचार से थोड़ा उत्साहित महसूस कर रही थी।
रात का समय आया, और सुनिता छत पर पहुंची। रमेश पहले से ही वहां खड़ा था, उसका चेहरा हल्का सा मुस्कुराता हुआ था। सुनिता ने धीरे से कहा, "आप सच में चाहते हो कि हम बैठकर बातें करें?"
रमेश ने नर्म आवाज़ में कहा, "हां, सुनिता। मैं चाहता हूँ कि हम दोनों एक-दूसरे को जानें, और समझें। इस चाँदनी रात में हमारी बातें बहुत खास हो सकती हैं।"
सुनिता धीरे-धीरे रमेश के पास बैठ गई, और रमेश ने उसकी आँखों में देखा। दोनों ने एक-दूसरे के साथ दिल की बातें की। सुनिता ने अपनी चुप्पी को तोड़ा, और रमेश ने उसे सुनने का पूरा वक्त दिया। धीरे-धीरे, सुनिता रमेश के साथ खुद को खुला हुआ महसूस करने लगी। उसने महसूस किया कि वह अब उस जगह पर है, जहां वह अपने मन की बात बेझिजक कह सकती है।
रमेश और सुनिता की यह पहली मुलाकात छत पर एक नए रिश्ते की शुरुआत बनी। दोनों ने अपनी सोच, सपने और चिंताओं पर बात की, और एक-दूसरे के करीब आने लगे। रमेश ने सुनिता से कहा, "आपसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगा, सुनिता। मैं चाहता हूँ कि आप फिर से यहाँ आओ, और हम और बातें करें।"
सुनिता ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "मैं फिर आऊँगी, रमेश। मुझे भी यह बातचीत बहुत अच्छी लगी।"
उस रात छत पर, चाँद और सितारे उन्हें देख रहे थे, और रमेश और सुनिता की दोस्ती और समझ के बीच एक नई शुरुआत हो रही थी।