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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Jaguaar

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Update - 5

दोपहर बीत चुका था शाम होने को आई थी। देर होने के कारण प्रगति चिंतित हो रहीं थीं। न जाने जॉब मिला की नहीं कहां रह गया। इतना देर क्यों कर रहा हैं। इसलिए बार बार फोन कर रही थीं। राघव उस वक्त मार्केट में था। मिठाई ले रहा था मिठाई लेने के बाद मां से बात किया और घर को चल दिया, प्रगति घर के बाहर ही मिल गईं बाइक खड़ा किया और जाकर मिठाई का डब्बा खोला, एक टुकड़ा मिठाई का निकला और मां को खिलाते हुए बोला मां मुझे जॉब मिल गया अब पापा के ताने सुनने को नहीं मिलेगा। बेटे को खुश देख मां की ममता स्नेह छलक आया। राघव के सर पर हाथ रख आंख बन्द कर मन ही मन "मेरे बेटे को ऐसे ही खुश रखना इसकी सभी मनोकामना पूर्ण करना" दुआ मांगने लगा फिर राघव को लेकर अदंर गया। अंदर आकार राघव "मां तन्नु कहा हैं।"


तन्नु नाम लेते ही तन्नु टपक पड़ी ये चुलबुली लडक़ी नाम लो और देखो हाजिर हों गई


तन्नु "मैं इधर ही हूं मुझे क्यों ढूंढ रहे हों बताओओओ.. बताओओओ.. "


राघव डब्बे से एक बड़ा सा मिठाई का टुकड़ा निकाला डब्बा मां को थमाया फिर दौड़कर तन्नु के पास गया और बोला "जल्दी से बड़ा सा मुंह खोल"


तन्नु बोहे हिलाकर पूछा kyauuuu तब राघव बोला "खोल न जल्दी फिर बताता हू।"


जितना मुंह खोल सकती थीं खोला और राघव ने झट से मिठाई मुंह में डाल दिया। तन्नु मुंह पे हाथ रख मिठाई बाहर निकाला और बोली "इतना बडा मिठाई का टुकड़ा मेरे मूंह में डाल दिया गले में अटक जाती तो….. वैसे मिठाई किस खुशी में?


राघव की हरकत देख प्रगति हंसे बिना रह नहीं पाई और पेट पकड़ कर हंसने लगीं। प्रगति को हंसता हुआ देखकर तन्नु मिठाई के टुकड़े से एक वाइट लिया और बोली "मां ऐसे क्यों हंस रहीं हों।"


प्रगति हसीं रोककर बोली "तुम दोनों को देखकर कभी कभी लगता हैं तुम दोनों अभी भी छोटे हो, बिल्कुल बच्चों जैसी हरकते करते हों।"


तन्नु आकार बैठते हुए बोली "मम्मा भईया का नहीं जानती लेकिन मैं तो अभी भी छोटी बच्ची हूं।"


फिर से हंसी और ठहाके गुजने लगा। कुछ देर हंसने के बाद तन्नु बोली "भईया आज मिठाई किस खुशी में लेकर आए और आप खुश भी बहुत लग रहे हों।"


राघव "तेरे भईया को जॉब मिल गया है इसलिए खुश होकर मिठाई लेकर आया हूं।"


तन्नु आगे कुछ बोलती उससे पहले किसी और ने बोला "मेरे यारा को जॉब मिल गया और मुझे पाता ही नहीं ये भेद भाव क्यों?"


सार्थक अदंर आते हुए लगड़के चल रहा था ऐसा तो होना ही था जो बंदा बिना बाइक के नहीं चलता था वो दो ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लायेगा तो ऐसा ही होगा। ऐसे चलते हुए देखकर राघव hhhhhhhhh hhhhhhhh हंस रहा था। तन्नु और प्रगति सार्थक की दशा देख अचंभित होकर देख रहा था। तभी तन्नू बोली "सार्थक भईया आप का ये हल किसने किया आपने फिर किसी से मारपीट किया।"


सार्थक " तौबा तौबा बहना प्यारी क्यो मेरे व्हाइट शर्ट पे पान की पीप डाल रही हैं। मेरे क्यूट और भोला फेश पर कहीं तुझे टपोरी लिख हुआ दिख रहा हैं जो तू मेरे फेस पे कालिक पोत रही हैं।"


सार्थक की बाते सुन तन्नु, प्रगति और राघव अपने अपने ढंग से हंस रहे थे राघव की हंसी से ऐसा लग रहा था मानो वो सार्थक की खिली उड़ा रहा हों। उसको ऐसे हंसते देख सार्थक बोला "तू दोस्त हैं या दुश्मन मेरी जैसी तेरी दशा होता तब तुझे पाता चलता।"


राघव "एक तो तेरी बाते निराली ऊपर से चल तेरी अलबेली अब तु ही बता तुझे छेडूं न तो और क्या करूं।"


सार्थक "मैं तुझे क्या छोरी दिखता हूॅं जो तू मुझे छेड़ रहा है। …. आंटी आप इस मुसीबत के पिटारे को कहा से उठा कर लाए थे। जहां भी जाता हैं मुसीबत साथ लेकर जाता हैं।


प्रगति "ऐसा किया हुआ ठीक ठीक बोल तेरी बाते सुनाकर अब तो मुझे भी हंसी आ रही हैं।"


सार्थक "हां हां हंसो हंसो बत्तीसी फड़के हंसो मेरे इस दशा की देन अपका सुपुत्र राघव प्रभु ही हैं।"


तन्नु "सार्थक भईया आप खामख मेरे भईया को दोष दे रहे हों गलती आप करो और ठीकरा भईया के सर फोड़ों।"


सार्थक "ये तेरा भाई हैं तो मै किया कसाई हु। मैं भी तो तेरा भाई हूं। कभी तो मेरे पले में भी खेल लिया कर जब देखो इस मुसीबत के पिटारे का साथ देगी।"


प्रगति "कोई तेरे पले में खेले चाहे न खेले मैं तेरे पले में हूं बता क्या हुआ था जो अलबेली चाल से चल रहा हैं।"


सार्थक "हां हां अब आप भी मुझे छेड़ो मेरी चल क्या बदल गई आप सब तो मुझे लडक़ी समझ, छेड़ने लगे।"


प्रगति "अच्छा बाबा नहीं छेड़ता अब बता किया हुआ जो तेरी चल बदल गई।"


राघव "मां इससे क्या पूछते हों मैं बताता हूं।"


सार्थक "हां हां बता अपने कारनामे ठीक से बताना hannnnnn…"


राघव "तू चुप करेगा तभी तो बताउंगा बिना बैटरी के लाइट जलना शुरू कर दे तो बुझने का नाम न ले।"


सार्थक मुंह पर उंगली रख बैठ गया और राघव अपने साथ घाटा किस्सा सुनना शुरू किया। जैसे जैसे सुनता गया। वैसे वैसे प्रगति और तन्नु के माथे पर चिंता की लकीर आ गईं लेकिन अंत में खुशी की ख़बर ये मिला राघव बे रोजगार नहीं रहा। पहले विपदा और बाद में खुशी की ख़बर सुन के प्रगति या तन्नु में से कोई कुछ बोलती उससे पहले ही सार्थक बीच में टपक पड़ा और अलबेली अदा से बोल पडा "तेरे ट्यूबलाइट में रोशनी होता भी हैं या नहीं खाली पीली 5fit 6 Inch के धड़ पर कद्दू जैसा भार धोए जा रहा हैं।"


राघव, तन्नू प्रगति सर खुजाते हुए सोचने लगा। सार्थक ने ऐसा क्यों बोला फ़िर राघव fupppp हंसी रोकते हुए बोला "मेरे ट्यूब लाइट में full रोशनी with high voltage और मेरे सर को कद्दू क्यो कहा मेरा सर sharp brain 🧠 वाला हैं।"


सार्थक "छायां sharp brain 🧠 गोबर भरा हुआ हैं….. आंटी आप ही बताओ इसके सर में गोबर नहीं भरा होता तो क्या ये बाइक की टंकी न चेक करता। टंकी चेक करने के वजह full to tension round and round बाइक के फेरे ले रहा था। अब आप ही इससे पूछो बाइक के साथ फेरे लेकर आ गया। सृष्टि भाभी के साथ कौन फेरे लेगा।


सार्थक की बाते किसी को समझ ही नहीं आया सर के ऊपर से बाउंस गया तब तन्नु बोली " क्या सार्थक भईया आप भी गोल गोल घुमा रहे हों सीधे मुद्दे की बात बताओ न हुआ क्या था।


सार्थक "क्या यार बहना प्यारी इतनी दिमाग वाली होकर भी झल्ली जैसी बोल रहीं हैं तुझसे ये उम्मीद न थीं।"


झल्ली बोलते ही तन्नु खिसिया गई पैर फटकते हुए khunnnnnnn😤 " अपका न गला दबा दूंगी दुबारा झल्ली बोला तो।"


प्रगति मुंह पर हाथ रख हंसने लगीं फिर हंसी रोककर बोली "सार्थक तू तन्नु को झल्ली बोलना छोड़ और बिना आंडा टेड़ा अलबेली चल के सीधे जुबान बोल हुआ किया था।"


तन्नु "मम्मी आप भी unhuuuu….."


तन्नु पर ध्यान न देखकर सार्थक बोलना शुरू किया "आंटी ये अपका सुपुत्र बाइक में तेल नहीं था बिना चेक किए मन बना लिया बाइक खराब हों गया हैं और बाइक के चाकर काट रहा था। उसी वक्त मैं पहुंचा मैं उस ओर किसी काम से जा रहा था। इसको देखा बाइक के चाकर काट रहा हैं तब मैं रुका मेरे रुकते ही मेरा बाइक लेके 9 2 11 हों गया। बस इतना बोला बाइक खराब हों गया हैं सही करके घर ले जाना। मैंने चेक किया उसमें तेल नहीं था। पूरा ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लाया। उसी का नतीजा मेरा ये अलबेली चल हैं।



सार्थक से कथा पुराण सुनाकर राघव उसके पास गया। सार्थक से गले मिला फिर बोला " sorry यार मेरी वजह से तेरा ये हल हुआ लेकिन मैं भी किया करता इतने दिनों बाद जॉब की ख़बर मिला और बीच रस्ते में बाइक बंद हों गया। टेंशन में दिमाग काम ही नहीं कर रहा था।


सार्थक "आंटी देखो इसे, मुझे sorry बोल रहा हैं अपने दोस्त को , मेरा मान कर रहा हैं इसे खूब धोऊ आप कुछ मत कहना। फिर रघाव को परे हटाते हुए बोला चल हट बाजू मुझे मिठाई खाने दे।"


सार्थक मिठाई का डिब्बा लिया और बड़े चाव से एक एक पिस मिठाई के, खाने लगा। खाए जा रहा था रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रुकता न देखकर राघव बोला "अरे अरे सारा खा जाएगा क्या कुछ तो छोड़ दे यार।"


सार्थक मुंह में एक टुकड़ा मिठाई का डालकर बोला "ये सारा मिठाई मेरा हैं मेरे ही करण ये मिठाई आया हैं। तूने ज्यादा कुछ बोला तो अभी जाकर मिठाई के दुकान में बैठ जाऊंगा और सारा मिठाई खा जाऊंगा फिर भरते रहना लब्बा चौड़ा बिल।"


तन्नु "haunnnn भईया आप इतना सार मिठाई खां लेंगे आप का पेट तो ittuuuu सु है।


तन्नु का बोलने का स्टाइल निराला था। फ़िर हुआ वहीं जो हर बार होता है हंसी और ठहाके खैर ठहके थमी तब सार्थक बोला "बहना प्यारी दोस्त के नौकरी मिलने की खुशी में मेरा ittuuuu सा पेट फुलकर बहुत बडा हों गया अब तो मैं दो चार दुकान की सारी मिठाई खां सकता हैं।"


तभी राघव का फोन बजा राघव साइड में जाकर बात करने लगा। कुछ देर बात करने के बाद राघव जब लौटा तब तक सार्थक सारी मिठाई खाकर जा चुका था। तन्नु कमरे में चला गया था। कोई नही था सिर्फ प्रगति बैठी थीं तो प्रगति को बोला मां मैं बाहर जा रहा हु कुछ काम से तब प्रगति बोली कहा जा रहा हैं।


राघव "मां सृष्टि से मिलने जा रहा हूं।"


प्रगति "ओ तो जॉब मिलने की खुशी बहु के साथ भी बाटने जा रहे हों sahiiiii haiiiii, sahiiii haiiii।"


राघव "मां जिसकी वजह से खुशी मिला हैं उसके साथ खुशी बांटना तो बनता हैं। मेरे जीवन में आने वाली सभी सुखद पालो में आप और तन्नु की तरह सृष्टि भी बराबर हकदार हैं। मैं उसका हक कैसे मर सकता हूं।"


प्रगति "मेरा बेटा कितना जिम्मेदार हैं मुझसे बेहतर कौन जान सकता हैं। इसलिए तू जल्दी जा वहां मेरी बहू वेट कर रही होगी और जल्दी आना नहीं तो तेरा बाप रौद्र रूप धारण कर लेगा।"


राघव हां में मुंडी हिलाकर बाहर आता हैं फिर एक कॉल करता हैं कुछ देर बात करता हैं फिर बाइक लेकर चल देता। 15-20 मिनट बाइक चलाने के बाद एक घर के सामने रुक कर हॉर्न देता हैं। कुछ देर बाद फिर हॉर्न देता। लेकिन कोई बहार नहीं आता। तब बार बार हॉर्न देता हैं। तभी सृष्टि बाहर आती और कहती हैं " क्या हुआ बार बार हॉर्न दे रहे हों। थोडा वेट नहीं कर सकते।


बाइक से उतरकर राघव सृष्टि पास जाते हुए बोला "सृष्टि खुशी ही इतनी बड़ी हैं मैं वेट नहीं कर पा रहा था। इसलिए हॉर्न दे रहा था।"


राघव जाकर सृष्टि को गले से लगा लिया ओर बोला " thank you सृष्टि"


सृष्टि राघव को अलग कर धक्का देकर दुर करते हुए बोली "मुझे thunk you बोल रहे हों जाओ मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी।"


ये बोली और मुड़कर अंदर जाने लगीं तभी। राघव ने हाथ पकड़ लिया और खीच कर खुद से चिपका लिया फिर सृष्टि के कमर को दोनों, हाथों के घेरे में ले लिया और बोला "क्यों न बोलू thank You तुम्हारा किया हुआ सभी काम thunk You बोलने वाला है फ़िर भी तुम्हे बुरा लगा है तो sorryyyy srishtiiiiii।


राघव के पकड़ से निकलने की भरसक प्रयास करते हुए "छोड़े मुझे न मुझे तुमसे बात करनी हैं न ही मुझे तुम्हारा sorry चाहिए।"


सृष्टि हाथ घुमा कर पिछे लिया फिर राघव के हाथ पर चिकुटी कटा राघव "aahaaaaa जंगली बिल्ली नाखून कितने बड़े बड़े हैं।"


राघव के बाजू में थापड़ मरते हुए बोला "मैं जंगली बिल्ली हूॅं तो तुम जंगली बिल्ला।"


राघव "सही कहा जंगली बिल्ला ही जंगली बिल्ली को सम्भाल सकता हैं।"


सृष्टि हल्की सी मुस्कुराई फिर दिखवाती गुस्से से बोली "तुमसे तो बात करना ही बेकार हैं।"


ये खाकर सृष्टि मुड़ गई राघव घुटने पर बैठा और कान पकड़ बोला "sorryyy sorryyyy sorryyyy आगे से नहीं बोलूंगा।


राघव की और पलटी घुटनो पर बैठा देखकर सृष्टि बोली "उठो सरे कपड़े गंदे हो गए गंदे कही के"


राघव "कपड़े गंदे होता है तो होने दो जब तक माफ नहीं करोगे ऐसे ही घुटनों पर रहूंगा।


सृष्टि " अच्छा बाबा माफ किया अब उठो, ध्यान रखना दुबारा thank You बोला तो माफ नही करूंगी।"


राघव खड़ा हुआ घुटना झाड़ते हुए बोला "gf thunk you सुनने के लिए मरी जाती हैं, न जाने तुम कैसी gf हों thunk you बोलते ही भड़क जाती हों।"


गाल खींचते हुई सृष्टि "ओ मेरे आंशिक हम थोडा दूजे किस्म के हैं।"


राघव "वो तो तुम हों ही अब जल्दी बैठो देर हों रहा हैं।


सृष्टि " अरे जाना कहा हैं और क्यों जाना हैं।"


राघव "पहली जॉब सेलीब्रेट करने, पहुंच कर ख़ुद ही देख लेना।"


सृष्टि "वो तो तुमने फोन पर ही बता दिया फिर सेलीब्रेट क्यों करना।"


राघव "तुम बैठ रहीं हों या फ़िर घुटनों पर बैठू।"


सृष्टि "न न बैठ रहीं हूं।"



सृष्टि बैठ गईं फ़िर दोनों आशिक सेलीब्रेट करने चाल दिया। कहा जा रहे हैं अगले अपडेट में जानेंगे। आज के लिए इतना ही सांस रहीं तो फिर मिलेंगे।
Awesome Updateee
 

Prem pyasa

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Creative things की संभनाओ से भरी इस मनोरंजक दुनिया में पहला कदम रख रहा हूं। कुछ Favourite राइटर Anandsingh12ji, Indian Princess Ji, Adirshi Ji nain11ster ji (जो की अभी अभी मेरा Favourite राइटर बाने हैं ) kamdev99008 ji, Mahi Maurya Ji, TharkiPo, Jguaar Ji। इन महानुभावों की आशीष लेकर अवचेतन मन में उपजी खलबली को शब्द रचना का रूप देकर आप के सामने पेश कर हूं उम्मीद "हैं सिर्फ़ तुमसे"

तो प्रिय रीडर्स लोगों एंजॉय कीजिए इस प्रेम कहानी को और हा अपना रेवो दिए बगैर जानें का नहीं क्योंकि रेवो देने में आपकी जेब पर कोनो आफत नहीं आएगा। आप का एक रेवो मेरे उत्साह को बुलेट ट्रेन की स्पीड से बढ़ाएगा। इसलिए रेवो देने में कंजूसी न करें।
: Congrats: for new thread
Bhai aapka Andaaz e bayan kaafi pasand aaya mujhe. Asha karta hun aapki kahani bhi itni hi prabhavshali hogi.
 

Prem pyasa

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Update-1


दरवजा खुलता हैं। जिसमें से दुनिया के बेहतरीन नमूने में से एक नमूना बहार निकलता हैं। जिसकी बदन पर कपड़े के नाम पर कमर में एक टॉवल बंधा हुआ था। इनकी बाहर निकली हुई तोंद देखकर मालूम होता महाशय ने माल पानी बहुत गटका था। जो इनके पेट में तोंद बनकर बहार निकल आया था। महाशय पहले सरकारी बाबू हुआ करते थे। रिटायर मेंट के बाद इन्होंने अपना खानदानी पेशा पंडिताई शुरू कर दिया।


हाथ में लोटा लिए कुछ बुदबुदाते हुए आगे बड़े। क्या बुदबुदा रहे थे ये महाशय ही जानते थे क्योंकि सिर्फ़ होंट हिल रहा था, सुनाई कुछ दे नहीं रहा था। चार दिवारी के पास लगे तुलसी जी के पास गए और सूर्य देवता को जल चढ़ाने लगे। जल चढ़ाकर निपटे ही थे की सामने से किसी ने " नमस्कार पंडित जी सब कुशल मंगल"।


ये हैं पंडित अटल पांडे महाशय नाम की तरह अपने कर्म से भी अटल हैं। वचन के इतने पक्के दुनिया चाहे इधर की उधार हों जाएं लेकिन महाशय का दिया हुआ वचन पत्थर पर खींचे लकीर की तरह अटल हैं। परिवार में इनकी धक चलती हैं। इन्होंने कुछ कह दिया उसके बाद इन्हें सिर्फ हां ही सुनना हैं न सुनते ही इनका उजड़ा चमन जिसमें गिने चुने झाड़ झंकार बचे थे उन्हे ही नोचने लगते थे। इनकी उम्मीद की पुल जिसकी सीमाएं असीमित हैं। जिस पर चलने का काम इनका एक मात्र बेटा, एक मात्र पुत्री और एक ही बीवी का है।


पण्डित जी का हल चल लेने वाला इनके पड़ोसियों में से एक था जो सुबह सुबह की ताजी हवा फेफड़ों को सूंघने के लिए बालकोनी में खड़े थे। पण्डित जी को जल चढ़ाते देखकर चुप रहे जल चढ़ जाने के बाद पण्डित जी की खेम खबर पुछा, पण्डित जी उनकी और देखकर मुस्कुराए फिर बोले…… रोज की तरह सब कुशल मंगल हैं। आप अपना सुनाए जजमान।


पण्डित जी दो चार बाते ओर किया फिर कुछ गुनगुनाते हुए । घर के अंदर चल दिए। अंदर आकर मंदिर गए लोटा वहा रखा भगवान जी को "हे विघ्न हारता, मंगल करता, पालन करता अपने इस तुच्छ भक्त की सभी भूल चूक को क्षमा करना, सभी प्राणी का मंगल करना, मेरे परिवार को सद बुद्धि देना जो अपने अभी तक नहीं दिया" बोलकर साष्टांग प्रणाम किया फिर उठाकर कमरे में गए, कपड़े इत्यादि पहनें फिर कुछ ढूंढ रहे थे जो मिल ही नहीं रहा था। तब ये बोले "भाग्यश्री कहा हों मेरी समय सूचक यंत्र नहीं मिल रहा "।


"जी वहीं रखा होगा ठीक से ढूंढिए" एक आवाज पण्डित जी को सुनाई दिया। अटल जी ठहरे अटल प्राणी इन्होंने अटल फैसला बना लिया इनकी समय सूचक यंत्र मतलब घड़ी नहीं मिलेगा तो मिलता कैसे? इन्होंने फिर से आवाज लगाया "भाग्यश्री जल्दी आओ न मुझे नहीं मिल रहा लगता हैं मेरा समय सूचक यंत्र मेरे साथ लुका छुपी खेल रहा हैं।"


"जी अभी आई" बोलकर एक महिला थोड़ी देर में कमरे में प्रवेश करती हैं।


ये हैं अटल जी की एक मात्र धर्मपत्नी कहे तो बीवी, प्रियतमा इनका नाम प्रगति पांडे जो की ग्रहणी हैं। इनके मां बाप ने उच्च शिक्षा देने में कोई कमी नहीं रखी मतलब इन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था। लेकिन इनका पोस्ट ग्रेजुएशन करना किसी काम नहीं आई सिर्फ इनके लिए एक उपाधि बनकर दीवार पर टांगी रह गईं। शादी से पहले इन्होंने ग्रेजुएट होने का बहुत फायदा लिया मतलब एक अच्छा संस्कारी जॉब करते थे। शादी होते ही सास - ससुर के उम्मीद अनुसार जॉब छोड़कर सामान्य ग्रहणी बनकर रह गई। इनके सास -ससुर अब नहीं रहे वे अपना बोरिया विस्तार इस धरा से समेत कर किसी ओर धरा में जमा लिया। प्रगति अपने एक मात्र बेटे और एक ही बेटी से बहुत प्यार करते हैं। ये उम्मीद लगाए बैठें हैं इनके बेटा और बेटी अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जिए लेकिन एक समय सीमा में रहकर जो कभी कभी इनके परेशानी का कारण बन जाता हैं और पंडित जी से इनकी तू तू मैं मैं बोले तो ग्रह युद्ध हों जाता हैं। बम गोले नहीं बरसते बस वाणी युद्ध होता हैं। पण्डित जी इन्हे प्यार से भाग्यश्री कहते हैं। क्यों कहते यहां तो पण्डित अटल पांडे जी ही जानते हैं।


प्रगति सीधा बेड के दूसरे सईद रखी एक छोटी मेज के पास गई। जहां पंडित अटल पांडे जी की घड़ी विराजमान थी। उठाकर पण्डित जी को "अपकी न आंखो का नंबर बड़ गया हैं। आप नंबरों वाला कांच आंखो पर चढ़ा लिजिए जिससे अपको बड़ा बड़ा और दूर तक दिखेगा"। बोलकर घड़ी उनके हाथ में थमा दिया।


घड़ी लेकर पहनते हुए " हमारे दोनों अलाद्दीन के जिन और जिनी चिराग से बाहर निकले की नहीं या उन्हें चिराग घिस कर बाहर निकलना पड़ेगा।"


पण्डित जी के बोलते ही प्रगति समझ नहीं पाई ऐसा क्यों बोला गया। जब समझ आया बिना कुछ बोले प्रगति कमरे से बाहर निकलने लगीं, प्रगति को जाते देखकर "तुम्हारा यूं चुप चाप जाना मतलब दोनों अभी तक उठे नहीं भाग्यश्री उन्हें सिखाओ सुबह जल्दी उठना सेहत के लिए लाभ दायक हैं न कि हानिकारक।"


प्रगति जाते जाते रुक गई, पलटी और बोली

"क्या आप भी सुबह सुबह अपना पोथी पुराण लेकर बैठ गए। प्रत्येक दिन समय से उठ जाते हैं। एक आध दिन लेट उठने से उनका सेहत बिगड़ नहीं जाएगा। आप ख़ुद को देखिए आप तो रोजाना समय से उठते हों फ़िर भी अपकी तोंद बुलेट ट्रेन की भाती फुल रफ्तार से बड़ी जा रही हैं।


पण्डित जी तोंद पर हाथ फिरते हुए " देखो भाग्यश्री मेरी बड़ी हुई तोंद को कुछ मत कहना ये मेरे प्रतिष्ठा की प्रतीक हैं। मेरे जीवन भर की जमा पूंजी इसी में कैद हैं। तुम मेरी तोंद की बुराई करना छोड़, जाकर जिन और जिनी को चिराग से बाहर निकालो।"


प्रगति बिना कुछ बोले अंचल में मुंह छुपाए हंसते हुए चल देती हैं। वही दुसरे कमरे में एक जवान लडका बोले तो 27-28 साल का एक लड़का दीन दुनिया के उल जुलूल रश्मो से बेखबर लवों पे मुस्कान और तकिए को बगल में दबाए, सपनों की दुनिया के खुबसूरत वादियों में खोकर सोया हुआ था। लडका ही जानें सपने में किसे देख रहा था। पारी थी या फ़िर कोई चुड़ैल लेकिन लवों की मुस्कान से इतना तो मालूम चलता हैं। भाई जी किसी खुबसूरत पारी की सपना देखने में खोया हुआ था।


प्रगति लडके के कमरे के पास पहुंच कर दरवाजे पर हाथ रखती हैं। दरवजा रूक रूक कर चायां….चायां….चायां की आवाज करते हुए खुल जाता हैं। जैसे दरवाजा कहना चहती हों "मेरे अस्ति पंजर सब कस गए हैं। मूझसे ओर कब तक काम करवाओगे अब तो मुझे छुट्टी दे दो।"


बिना जोर जबर्दस्ती के दरवाजा खुलते देखकर प्रगति बुदबुदाती हैं " ये लडका भी न इतना बड़ा हो गया हैं अकल दो कोड़ी की नहीं हैं। दरवजा खुला रखकर ही सो गया"।


पहला कदम अदंर रखते ही प्रगति की नजर लडके पर पड़ती हैं। लडके को बिंदास सोया हुआ देखकर प्रगति के लवों पर मंद मंद मुस्कान तैयर जाती। लडके के पास जाकर राघव….. राघव…. राघव…. उठ जा बेटा।


जी ये हैं श्रीमान राघव पांडे कहानी का हीरो, अटल और प्रगति जी का सुपुत्र इनके आदत का किया ही कहने चिराग लेकर ढूंढों तब भी इनके जैसा चरित्रवान और गुणी लडका नहीं मिलेगा। लेकिन महाशय बाप के नजरों में बिल्कुल भी चरित्रवान नहीं हैं। अटल जी को इसके सभी कामों में खामियां ही नजर आता हैं। आए भी क्यो न महाशय जो भी काम करने जाते हैं अच्छा करने के जगह ओर बिगड़ देते हैं। महाशय पेशे से इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं। जो की बाप से लड़ झगड़ कर बना था। अटल जी चहते थे महाशय ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई करके एक नामी विद्वान बाने और खानदानी पेशे को सुचारू रूप से चलाए लेकिन महाशय बाप की उम्मीद को किनारे रखकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर बन गए। अटल जी शक्त खिलाफ थे लेकिन प्रगति ने अपने बेटे का साथ दिया और भूख हड़ताल पर बैठ कर अटल जी से बाते मनवा ही लिया। अटल जी आज कल कुछ ज्यादा ही चिड़े रहते हैं कारण राघव अभी तक बेरोजगार बैठा हैं। जिसके लिए कभी कभी ताने भी सुनने को मिलता हैं। अब अटल जी को कौन समझाए इस जमने में नौकरी की इतनी मारा मारी चल रहा हैं। एक पोस्ट की वेकेंसी निकलता हैं तो अप्लाई करने वाले हजारों खड़े हों जाते हैं। नौकरी ढूंढते ढूंढते राघव की चप्पलें घिस चुका हैं। लेकिन नौकरी हैं कि राघव से दुर भागती जा रही हैं।


प्रगति बार बार हिला डुला कर राघव को आवाज देती हैं। लेकिन राघव बिना सुने बिना उठे सपनो की खूबसूरत वादी में खोया हुआ था। जगाने की इतनी कोशिश करने के बाद भी जब राघव नहीं उठता तब बेड के किनारे मेज पर रखा पानी से भरा जग उठाकर राघव के चहरे पर उड़ेल देती। पानी की धारा चहरे को छुने से राघव " क्या करती हों जानेंमन क्यों सुबह सुबह बिन बदल बरसात कर रही हों।"


प्रगति "आहां" मुंह पर हाथ रख मोटी मोटी आंखे बनाकर राघव को देखती है फ़िर कान पकड़कर " नालायक मां को जानेमन बोलता हैं शर्म हया सब बेच खाया हैं" बोलती हैं।


राघव जो अभी भी हल्की हल्की नींद में था। कान खींचे जाने से दर्द होता हैं। जिससे राघव की नीद पूरी तरह टूट जाता हैं। प्रगति को कान पकड़े देखकर " मां आप कब आए कान छोड़ो दर्द हों रहा हैं।"


प्रगति कान ओर कसकर खींचते हुए बोली " क्यों छोडूं ये बता तूने मुझे जानेमन क्यों कहा निर्लज बालक मां को जानेमन बोलता हैं।"


राघव " मां अपको क्यो कहूंगा आप तो मेरी मां जगद जननी हों, जानेंमन तो अपकी बहु को कहा था। कितनी अच्छी अच्छी बाते कर रहा था फिर अचानक उसे क्या सूजा मेरे चहरे पर पानी से भरा गिलास उड़ेल दिया।"


प्रगति समझ जाती राघव सपने में प्रियतमा से मिलाप करने में व्यस्त था। इसलिए उठ नहीं रहा था। जब उठा तो उसके मूंह से जानेंमन निकाल गया। कान छोड़कर प्रगति बोलती " जा जल्दी तैयार होकर बाहर आ तेरा बाप उम्मीद का पिटारा लिए वेट कर रहा हैं। पाता नहीं तेरे लिए आज कौन कौन सी उम्मीदें उनके पिटारे से निकले।"


राघव " पापा के पिटारे में इतनी उम्मीदें आती कहा से, रस्ता पता होता तो एक बड़ा सा खड्डा खोद कर रस्ता ही बंद कर देता।"


राघव उठाकर बाथरूम जाता, प्रगति वह से निकलकर तीसरे कमरे की और जाती प्रगति के पहुंचते ही दरवाजा खुलता एक विश्व सुंदरी लडक़ी प्रगति को देखकर बोलती " गुड मॉर्निंग मम्मा,


प्रगति लडक़ी के माथे पर चुम्बन देकर बोली " वेरी वेरी गुड मॉर्निंग तन्नू बेटा"


जी ये है अटल और प्रगति की सुपुत्री तनुश्री पांडे दिखने में बला की खूबसूरती अटल जी ने पोथी खंगालकर इनकी खूबसूरती के साथ मेल करता हुआ नाम तनुश्री पांडे रखा। बाप को इनसे भी काम उम्मीद नहीं हैं। लेकिन बाप की उम्मीदों पर खरा उतरने में इनसे भी कभी कभी भूल हों जाती हैं। अभी पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं। कॉलेज गोइंग लडक़ी हैं तो लडके इनकी खूबसूरती के दीवाने बनकर इनके आगे पीछे भंवरे की तरह मंडराते रहते हैं। लेकिन मजाल जो कोई भांवरा इस फूल को छू पाए। ऐसा नहीं की इनका मन नहीं करता, करता हैं कोई इनका भी दीवाना परवाना हों जिसके साथ ये प्रेम की दो बोल बोले प्रेम गीत गुनगुनाए। लेकिन नए युग के लडको का किया ही कहना जब तक फूल का रस नहीं चूस लेते तब तक तू मेरी बाबू हैं, तू मेरी सोना हैं, तू ही दिल की धड़कन हैं, तू ही मेरी चलती सांसों की वजह हैं और एक दो बार रस का मजा ले लिए फिर चल हट पगली तू कौन हैं, तुझे जनता कौन हैं, तुझसे मेरा वास्ता किया हैं। इसलिए लडको से दूरी बनाकर रखती हैं। इसके पीछे एक और करण हैं वह हैं अटल जी, अटल जी को इनसे उम्मीद हैं कि ये कोई ऐसा काम न करें जिससे उनकी नाक पर बैठी मक्खी की तरह कोई काला धब्बा न लग जाएं। इसलिए तनुश्री बाप के नाक को काला होने से बचाने के लिए लडको से ओर ज्यादा दूरी बनाकर रखती हैं। तन्नू राघव से तीन साल छोटी हैं। तन्नू नाम इनको राघव ने दिया, राघव इनसे बहुत ज्यादा प्यार करता हैं और इनकी आंखो से बहते अंशु नहीं देख पाता। लेकिन राघव का दिया नाम अटल जी को मंजूर नहीं इसलिए उन्होंने शक्त चेतवानी दिया था। तनुश्री को तन्नू नाम से कोई न बुलाए। बस अटल जी के सामने तन्नू नाम से कोई नहीं बुलाता बाकी उनके पीछे सभी तन्नू नाम से बुलाते हैं।


तन्नू "मम्मा भईया उठ गए देर से उठे तो पापा बहुत डाटेंगे"।


प्रगति " बेटा तेरे भईया उठ गए हैं। तू चल राघव आ जाएगा।


तन्नू "मम्मा आप जाओ मैं भईया के साथ आती हूं."


प्रगति तन्नू के गाल पर एक ओर चुम्बन देती हैं और चाली जाती हैं। तन्नू राघव के रूम की ओर चल देती हैं।



अभी कुछ ओर किरदारों की एंट्री होगा जिनके इर्द गिर्द यह कहानी भंवर बनाएगी। जब उनका पार्ट आयेगा तब उनका भी इंट्रोडेक्शन ऐसे ही दूंगा। पत्रों के इंट्रोडेक्शन देने का यह तरीका आप पाठकों को कैसा लगा जरुर बताना। बताएंगे तभी आगे की कहानी पोस्ट करुंगा वरना कहानी यहीं पर ही दी एंड, फिनीश, टाटा बाय बाय,
Ati-romanchak : claps2:
Jitna ummeed that usse kahin badhkar paaya. Aapki jadui lekhni ne mera Mann bhaya. Paatron ka Parichay acha Raha aur Sahi puchhiye to yahi Sahi tarika hai paatra-parichay ka. Lekin Sabse badi khubi aapki lekhni mein jo mujhe Nazar aaya hai wo hai kahani ka dhara-parvaah. Jo ki bahut kam hi writers ke andar dekhne Ko multa hai.
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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: Congrats: for new thread
Bhai aapka Andaaz e bayan kaafi pasand aaya mujhe. Asha karta hun aapki kahani bhi itni hi prabhavshali hogi.

बहुत बहुत शुक्रिया मैं आपको तह दिल से कहानी पर वेलकम करता हूं। यह सुनाकर भी इच्छा लागा मेरे बयां करने का अंदाज अपको अच्छा लगा।
 
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Dhaal Urph Pradeep

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Ati-romanchak : claps2:
Jitna ummeed that usse kahin badhkar paaya. Aapki jadui lekhni ne mera Mann bhaya. Paatron ka Parichay acha Raha aur Sahi puchhiye to yahi Sahi tarika hai paatra-parichay ka. Lekin Sabse badi khubi aapki lekhni mein jo mujhe Nazar aaya hai wo hai kahani ka dhara-parvaah. Jo ki bahut kam hi writers ke andar dekhne Ko multa hai.

ताली के साथ प्रोत्साहित शब्दों को सुरू करने के लिया मैं आपकोबहुत बहुत धन्यवाद देता हूं। पत्रों परिचय को एक नए ढंग से पेश करने का यह तरीका अपको अच्छा लगा यह जानकार मैं इतना हर्षित हों चुका हूं। शब्दों में बयां नहीं कर पा रहा हूं।
:thankyou::thankyou::thankyou:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Waise is baat pe gaur ki jaaye to raghav ki naukri lagne piche ek bada role atal ji ka bhi hai.... :D
Agar wo baat baat par khadi khoti na sunate to raghav is utsukta se jis kadar taiyar hoke interview dene jaa raha tha ,waise shayad us waqt us tarah se nahi jaata....
aur field wali naukri ka naam sun uske mann mein join kare ki na kare ye job...

sabse important baat wo zyada seriously nahi leta is job ko.... lekin ab lega.... kyunki Phir se apne pita ke dwara khadi khoti sunna uske liye nagawara hai....

udhar ghar wale bhi kaafi khush hai uski naukri lag jaane se....
Well best part ,sarthak ki comedy ..... kaafi dilchasp kirdaar hai ye bhi...


Khushiyon se bhara mahol ke sath sath kirdaaro ki dilkash vartalap ka bhi anokha sangam raha har update mein... ..
no doubt... comedy king raha sarthak apne rang birange hasyamay bhumika ke chalte....

Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Waise is baat pe gaur ki jaaye to raghav ki naukri lagne piche ek bada role atal ji ka bhi hai.... :D
Agar wo baat baat par khadi khoti na sunate to raghav is utsukta se jis kadar taiyar hoke interview dene jaa raha tha ,waise shayad us waqt us tarah se nahi jaata....
aur field wali naukri ka naam sun uske mann mein join kare ki na kare ye job...

sabse important baat wo zyada seriously nahi leta is job ko.... lekin ab lega.... kyunki Phir se apne pita ke dwara khadi khoti sunna uske liye nagawara hai....

udhar ghar wale bhi kaafi khush hai uski naukri lag jaane se....
Well best part ,sarthak ki comedy ..... kaafi dilchasp kirdaar hai ye bhi...


Khushiyon se bhara mahol ke sath sath kirdaaro ki dilkash vartalap ka bhi anokha sangam raha har update mein... ..
no doubt... comedy king raha sarthak apne rang birange hasyamay bhumika ke chalte....

Brilliant update with awesome writing skills :yourock: :yourock:

बहुत बहुत धन्यवाद इतना खुबसूरत रेवो देने के लिए

ये तो सच है कही न कही अटल जी के खरी खोटी के कारण ही राघव इस जॉब को करने के लिए राजी होगा। अमूमन देखा जाता हैं बाप की खारी खोटी के गलत नजरिए से देखते हैं। लेकिन इसी खारी खोटी सुनने के कारण ही जीवन को एक दिशा मिलता हैं। राघव को एक दिशा मिल चूका है। राघव इस दिशा को कितना आगे ले जाता हैं ये तो राघव ही जाने। बस ऐसे ही साथ बने रहिए और राघव के जीवन सफर का मजा लिजिए।
:thankyou::thankyou:
 

Dhaal Urph Pradeep

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Update - 6



सृष्टि के बाईक पर बैठते ही राघव बाईक चला दिया। सृष्टि एक तरफ पैर करके बैठी थी। जो राघव को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए कुछ दूर बाईक चलाने के बाद बाइक रोक सृष्टि को दोनों तरफ पैर रख कर बैठने को कहता हैं। सृष्टि एक मस्त स्माइल 🤗 देकर बैठ जाती हैं। सृष्टि राघव के कंधे को पकड़ कर बैठी थी। राघव हाथ कंधे से हटाकर निचे कर देता हैं। सृष्टि फिर कंधे पर रखता हैं। राघव फिर हटा देता हैं बार बार ऐसा करने पर सृष्टि राघव के मंशा को समझकर दोनों हाथ राधव के बागलो से होते हुए ले जाकर छीने को कसकर पकड़ लेती हैं और राधव से चिपककर बैठ जाती हैं। जिससे राघव का तन गुदगुदा उठता हैं। राघव गुदगुदाती अहसास में खोने लगता हैं। जिससे बाइक का संतुलन बिगड़ने लगता हैं। तब सृष्टि के चीखने पर राघव बाईक को संतुलित करता हैं। तब सृष्टि राघव को दो तीन थप्पड उसके कंधे पर मरती हैं और फ़िर से पकड़ कर बैठ जाती हैं। राधव शहर के बाहर की ओर बाईक दौड़ाए जाता हैं। कुछ दूर ओर बाइक चलाने के बाद राघव एक कैफे कम रेस्टोरेंट के सामने बाईक को रोकता हैं। सृष्टि इस कैफे को देखकर हर्षित हो जाती हैं और मंद मंद मुस्कान😙 के साथ राधव को देखती हैं तो कभी कैफे को देखती हैं। हर्षित भाव से कैफे को देखते देखकर राघव बोलता हैं " ऐसे ही देखते रहोगे या अदंर भी चलोगे।"

राधव सृष्टि को साथ लेकर अदंर जाता हैं। कॉर्नर की एक टेबल पर बैठ जाता हैं फिर राधव मेनू कार्ड सृष्टि को देते हुए कहता हैं "जो तुम्हे पसंद हों ऑर्डर कर दो।

सृष्टि "यहां का लवर कॉफी सबसे मशहूर हैं क्यो न हम उस कॉफी को पीकर सेलीब्रेट करे।"

राधव " तुम्हें अब भी याद हैं जब की हम कितने दिनों बाद यहां आए हैं।"

सृष्टि "इस जगह को मैं कैसे भूल सकती हूं। यहां बिताया हुआ पल मेरे जीवन के बेहतरीन पालो में से एक हैं। न ही मैं उस दिन को, न ही उस डेट को कभी भूल सकती हूं। जब तुमने मुझे यहां बुलबाकर खचाखच भरी भीड़ के सामने प्रपोज किया था। मुझे ये अहसास कराया था। इस दुनिया में कोई हैं जो भीड़ में भी कभी तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ेगा। तुमने इस अनाथ का हाथ थामा था। ये वादा भी किया था मुझे एक भरा पूरा परिवार दोगे जो सिर्फ़ मेरा होगा । जिसमें एक स्नेह और ममता को निछावर करने वाली मां होगी। एक बाप होगा जिसके डांट में संस्कारो वाला प्यार होगा। एक नंद जैसी बहन होगी। जिसकी कमी मुझे हमेशा खालती थी। लेकिन उस दिन के बाद यह कमी भी तुमने भर दिया। तुम ही बताओ मैं उस दिन को उस पल को कैसे भूल सकती हु। जो मेरे जीवन में एक नया सवेरा लेकर आई। एक नई उम्मीद को मेरे अदंर जन्म दिया और उसी उम्मीद को मैं थोडा ही सही पल पल जीती आ रही हूं। आज इस जगह पर वापस लाकर तुमने मुझे उस पल का उस दिन का फिर से अहसास करा दिया। मैं जिन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करू वो शब्द भी काम होंगे।😰

कहते हुए सृष्टि रो दिया एक एक शब्द उसके अंतरात्मा से निकाल रहीं थीं। उसके कहे एक एक शब्द उसके अनाथ होने की दर्द को बयां कर रही थीं। राघव जो हमेशा सृष्टि की आंखो में निश्छल भाव और लबों पर लुभावनी मुस्कान देखता था। आज उसे सिर्फ दर्द और दर्द के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। जहां उसे अपने लिए अपर प्यार दिखता था आज उसे उम्मीद दिख रहा था। जैसे उसकी आंखे कह रहीं हों मुझे उम्मीद हैं। तुम मुझे इस बेरहम और बेदर्द दुनिया में कभी अकेले नहीं छोड़ोगे। मेरे निश्छल प्रेम को निराशा में बदलने नहीं दोगे। मेरे प्यार का सही मोल दोगे जो मैंने तुमसे किया।

सृष्टि फफक फफक कर रो रहीं थीं आसपास बैठें लोग सिर्फ़ उन दोनों को ही देख रहे थे। लेकिन राघव का ध्यान सिर्फ सृष्टि पर था। सृष्टि को ऐसे रोते हुए देखकर राधव का दिल भी रो दिया। राधव उठाकर सृष्टि के पास गया और बोला "सृष्टि मत रो मैं हु तुम्हारे साथ तुम्हे कभी अकेला छोड़ कर नहीं जाउंगा। मैं किसी की उम्मीद न पुरी करू लेकिन तुम्हारे उम्मीद को कभी टूटने नहीं दुंगा। मत रो सृष्टि देखो मेरे आंखे से भी आंसू निकाल रहे हैं। तुम कहती हों न तुम मेरे बहते आंसू नहीं देख पाती हों देखो आज सिर्फ तुम्हारे लिए मेरे आंसू बह रहे हैं। देखो न सृष्टि।"😭


सृष्टि ने आंसू को पोछा लेकिन ये आंसू न बहने से कहा मानने वाले थे फिर से बह निकला, सृष्टि ने ओझल दृष्टी से राधव की और देखा। उठाकर राधव से लिपट गई और रोते हुए बोली "राधव तुम कभी मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी। तभी भीड़ में से किसी ने कहा "अरे बोल दे भाई जहां रिश्ते पल भर में टूट जाते हैं। सुबह प्यार की आस जागती हैं और शाम को आस टूट जाती हैं। वहा ये लडक़ी तुझसे उम्मीद लगाएं तुझसे सिर्फ प्यार मांग रहीं हैं। हां बोल दे, बोल दे हां।

बोलने वाला शख्स सृष्टि के पीठ की ओर था। इसलिए सृष्टि देख नहीं पाई लेकिन राधव ने देख लिया था। शख्स का सिर्फ आंखे ही दिख रहा था। बाकी चेहरा नकाब से ढका हुआ था। राघव उसकी और देख रहा था। अपनी ओर देखते देखकर शख्स जल्दी से बाहर निकल गया जब तक सृष्टि पलट कर उसको देखती तब तक वह शख्स जा चूका था। तब राघव सृष्टि को अपनी और घुमा कर उसकी आंखो में देखकर कहता हैं "सृष्टि मैं तुम्हें कभी छोड़कर नही जाऊंगा न ही तुम्हारी उम्मीद को कभी टूटने दूंगा ये वादा हैं मेरा।"

राघव के कहते ही कैफे तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता हैं कोई सिटी बजता हैं तो कोई हुर्रे हुर्रे की हूटिंग करता हैं। वह मौजुद लोग दोनों प्रेमी जोड़े को बधाई देते हैं ताली बजाते हैं और हूटिंग भी करते हैं। कुछ वक्त में सब शांत होकर बैठ जाते हैं। सृष्टि और राघव दोनों एक दुसरे के आंसू पूछते हैं और अपनी अपनी जगह बैठ जाते हैं। तब सृष्टि कहती हैं "राधव कुछ याद आया उस दिन भी तुम्हारे प्रपोज करने पर लोगों ने ऐसे ही तालियां बजाईं थी, हुटिग किया था, सिटी बजाई थी।"

राधव "मुझे सब याद हैं सृष्टि जब तुम्हें प्रपोज किया था। वो दिन साल का अखरी था तुमने कुछ वक्त लिया था मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट करने में, तुम्हारे एक्सेप्ट करने के लामशम दो घंटे बाद नए साल का वेलकम किया गया था। हम दोनों ने साथ में लवर की तरह नए साल सेलीब्रेट किया था। नए साल की शुरुवात के साथ हम दोनों ने एक नए सफर की शुरवात किया था जो आज तक जारी हैं और आगे भी चलता रहेगा। कुछ दिन बाद मेरा एक और सफर शुरू होने वाला हैं जो मुझे मेरे मुकाम तक पहुंचाएगा। इसलिए मैं तुम्हें आज यह लाया हू। जॉब मिलने की खुशी तुम्हारे साथ सेलिब्रेट कर मुकाम तक पहुंचने का जो रास्ता मैं तय करना चहता हूं उसमे तुम भी मेरे साथ रहो।

सृष्टि "सच्ची में"

राधव "हां सृष्टि यह सफर मैं अकेले तय नहीं कर सकता जो मुझे मेरे सपनों की मंजिल तक पहुंचाएगा जिसका पहला कदम रखने में तुमने ही मेरी मदद की, तुम्हारी वजह से ही मुझे जॉब मिला हैं। मन तो कह रहा है तुम्हे बहुत सारा थैंक you कहूं लेकिन नहीं कहूंगा क्योंकि तुम मुंह फुला लोगी।

सृष्टि "thank You कहना चाहते हो, पर मुझे नहीं इस thank you का हकदार कोई और हैं। तुम्हें उसे कहना चाहिए।

राधव कुछ सोचकर "कौन वो रिसेप्शन वाली जिससे तुम्हे बात कराया था।"

सृष्टि "नहीं रे बाबा ! वो तो एक अनजान शख्स है

राघव "अनजान शख्स ये कैसा नाम हैं।"😄

सृष्टि "ये नाम नहीं ये उसका पहचान हैं।"😏

राघव "ये कैसा पहचान अनजान शख्स"🤪

सृष्टि "तुम मेरी खिंचाई कर रहें हों। करों खिचाई और सेलिब्रेशन मैं चाली।"😡

सृष्टि उठाकर जाने लगीं, राघव उसे पकड़ कर बैठाते हुए बोला "अजीब gf हों मजाक भी नहीं कर सकता। थोडा सा मजाक किया तो बुरा मान गई।

सृष्टि "तुम मजाक कहा कर रहे थे तुम तो मेरी खिंचाई कर रहें थे।😠

राघव हाथ जोड़कर "जैसा तुम कहो मोहतरमा।"

सृष्टि "तुम्हारा सही हैं कुछ भी बोल दो फिर हाथ जोड़कर कन्नी काट लो।"

राघव " लग रहा हैं। तुम आज लड़ाई करने के फूल मुड़ में कमर कस लिया हैं। तुम्हारे मन में ऐसा कुछ हैं तो बता दो।

सृष्टि "हां आज मैं लड़ाई के फूल मुड़ में हूं और तुम्हारा ये कद्दू जैसा सर फोड़ना चहती हूं।:bat1:

राघव उठाकर सृष्टि के पास गया। मेज से एक गिलास उठाकर सृष्टि की ओर बडकर अपना सर आगे कर दिया और बोला "लो मैडम ये कद्दू हाजिर हैं शवख से फोड़ों काटो जो मन हो वो करों।"

सृष्टि गिलास परे हटकर राघव के सर को चूम लिया फिर राघव को बैठने के लिए कहा। बैठते ही राघव बोला " सृष्टि ये किया था फोड़ने के वजह चूम लिया कुछ समझ नहीं पाया।"😉

सृष्टि "तुमने अभी अभी तो कह था जो मन आए वो करों। मेरा मान किया इस कद्दू को न फोड़कर चूम लूं तो चूम लिया।"🤪

राघव "मन बदल कर अच्छा किया नहीं तो कद्दू फूटते ही यहां भाग दौड़ मच जाता।"😁

राघव की बात सुनाकर सृष्टि हंस दिया। संग संग राघव भी हंसने लगा। तभी एक वेटर ऑर्डर लेने आया। सृष्टि ने ऑर्डर दिया फिर वेटर चला गया। जब तक ऑर्डर नहीं आया तब तक दोनों तरह तरह की बाते करते रहे। एक वेटर आकार उन्हें उनका कॉफी दे गया। कॉफी पीते हुए राघव बोला "सृष्टि तुमने उस अनजान शख्स के बरे में कुछ नहीं बताए। उसका पता ठिकाना जानते हों तो बता दो उससे मिलकर उसे भी thank You बोल दू।"

सृष्टि "उसका पता ठिकाना मालूम होता तो मैं उसे अनजान शख्स क्यों कहती। मैं तो यह भी नहीं जानती वो दिखता कैसा हैं।"

राघव "अजीब हों तुम न जान न पहचान फिर भी तुम कहती हों मैं उसे thank You बोलूं अब तुम ही बोलों उसे thank you बोलूं तो कैसे बोलूं।"🤔

सृष्टि "thank you कैसे बोलोगे ये तुम्हारा कम हैं। मेरा काम बताना था सो बता दिया अब तुम सोचो क्या करना हैं और कैसे करना हैं।

राघव "ये भी एक झमेला हैं अब उस शख्स को ढूंढो जिसकी कोई पहचान नहीं, गौर करने वाली बात ये हैं जिसे न हम जानते हैं न पहचानते हैं लेकिन वह कैसे जनता हैं मुझे जॉब चाहिए मैं जॉब की खोज में हूं।"

सृष्टि "कहा तो तुमने ठीक हैं न जान न पहचान फिर भी वो जॉब की ख़बर देता हैं और कहता हैं मैं सिफारिश कर दुंगा तुम अपने bf Ko भेज देना।"

सिफारिश की बात सुनाकर राघव चौक गया और बोला "क्या कहा रहीं हों कहीं ये कोई साजिश तो नहीं हैं। कहीं मुझे किसी गलत काम में फंसना तो नहीं चहता हैं।"

सृष्टि "तुम्हें कोई क्यों फंसना चाहेगा। तुम्हारा किसी के साथ कोई दुश्मनी थोड़ी न हैं।"

राघव "दुश्मनी नहीं हैं लेकिन एक बात सोचो बिना कारण कोई अनजान मेरे लिए जॉब खोजता हैं तुम्हारे जरिए मुझ तक ख़बर पहुंचता हैं। सृष्टि बिना कारण कोई किसी की मदद नहीं करता वह ये अनजान शख्स मेरी मदद कर रहा हैं। लेकिन एक बात गौर करने की हैं उसने कैसे जाना मुझे जॉब की जरूरत हैं।"

सृष्टि "मैं नहीं जानती वो अनजान शख्स क्यों तुम्हारा मदद कर रहा हैं इसके पीछे मकसद किया हैं लेकिन ये बता सकती हु उसे कैसे पता चला अभी तीन चार दिन पहले मेरे रूम के पास वाले पार्क में हम दोनों मिले थे। बातों बातों में तुम्हारी जॉब की बात छिड़ी यह बात उस अनजान शख्स ने सुन लिया। तुम्हारे जाने के बाद वह शख्स मेरे पास आया और जॉब कहा मिल सकता हैं उसका एड्रेस दिया और तुम्हें वह भेजने को कहा। लेकिन मुझे उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ। जब मैंने एड्रेस को ध्यान से देखा तो जाना वह मेरी सहेली साक्षी काम करती हैं। तब मैंने उसे फोन किया उसने बताया वह कोई जॉब खाली नहीं हैं तब मैंने उससे रिक्वेस्ट किया बहुत मनाया तब जाकर उसने कहा मैं तुम्हें वह भेज दूं। वो अपने बॉस से बात कर लेगी तब जाकर मैंने तुम्हें वह का पता दिया।

राघव "तुमने भी मेरी सिफारिश की , ये करके तुमने जो किया उसके लिए मैं जो बोलना चहता हूं। उसे सुनाकर तुम नाराज हों जाओगी। इसलिए नहीं बोल रहा हूं। लेकिन ये अनजान शख्स मेरे लिए अबूझ पहेली जैसी बनता जा रहा हैं न जाने उसके मन में किया हैं न जाने क्यो वो मेरी मदद कर रहा हैं। कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। पहले जॉब नहीं थी तो न मिलने की टेंशन थी अब मिल गई तो क्यों मिली ये टेंशन बना हुआ हैं।

सृष्टि "जॉब करते समय ध्यान से करना कुछ भी गलत लगे तो जॉब छोड़ देना। जॉब दूसरी मिल जाएगी लेकिन तुम्हें कुछ हों……

राघव "चुप बिल्कुल चुप एक शब्द भी उटपटांग नहीं बोलना कुछ भी हो जाय सृष्टि तुमसे किया वादा निभाया बिना मैं अपनी सांसों को जबरदस्ती रोक कर रखूंगा ये कहकर मैंने अपनी सृष्टि से किया वादा अभी तक नहीं निभाया इसलिए तेरे निकलने का टाइम नहीं हुआ हैं।"

सृष्टि "मुझे बोलने से रोकते हों और खुद बोलते हों ये कैसा इंसाफ हैं। तुम्हारे इंशाफ का तराजू डामाडोल हों रहा हैं। उसे सही वजन देकर बैलेंस करों नहीं तो……

राघव "आगे कुछ बोलने की जरूरत नहीं हैं। मैं समझ गया हूं तुम कहना किया चहते हों।"

सृष्टि "समझ गए हों तो अच्छी बात हैं नहीं तो मैं तुम्हें अच्छे से समझती। अच्छा सुनो अब हमें घर चलना चाहिए देर हों रहीं हैं।"

राघव "देर तो हों रहा हैं लेकिन जाने का मान नहीं कर रहा हैं। मन कर रहा हैं तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करता जाऊ करता ही जाऊ यह बातों का सिलसिला कभी खत्म ही न करूं।"

सृष्टि "अच्छा तो जल्दी से शादी कर लो फिर इतनी बाते करूंगी इतनी बाते करूंगी तुम पाक कर पिलपिला हों जाओगे।"☺️

राघव "तुम्हारी बातों से नहीं पकूंगा क्योंकि तुम मुझे बीच बीच में अपने लवों की मिठास जो चखने दोगी। मेरा मान कर रहा हैं अभी तुम्हारे इन लबों का मिठास चख लू 😘

सृष्टि " चुप करों और चुप चाप बिना इधर उधार देखे बाहर जाओ मैं बिल पे करके आती हूं।"

बिल पे करने को लेकर दोनों में नोक झोंक होने लगता हैं लेकिन सृष्टि किसी भीं हाल में माने को तैयार नहीं होती वो तरह तरह के तर्क देती हैं थक हर कर राघव हां कर देता हैं। तब जाकर कहीं कैफे का बिल पे होता हैं फिर जैसे आए थे वैसे ही सृष्टि राघव से चिपक कर बैठ जाती हैं। एक बर फिर से राघव का तन मन झनझना उठता हैं लेकिन खुद को काबू कर सृष्टि के रूम तक पहुंचता हैं। सृष्टि को बाइक से उतर कर राघव सृष्टि को किस 😘 करता हैं जो थोडा लंबा चलता हैं फिर सृष्टि अदंर चाली जाती हैं और राघव वह से बाजार जाता हैं एक और डब्बा मिटाई का लेता हैं और घर को चाल देता हैं।



आज के लिए इतना ही आगे के अपडेट में जानेंगे राघव ने दुबारा मिठाई किस लिए लिया। अपडेट में मजा आए तो अपना सुंदर सुंदर रेवो से अलंकृत करना न भूलिएगा। सांस रहीं तो फिर मुलाकात होगी। सांसों का किया आती जाती हवा का झोंका हैं।
 
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