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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Update - 7


अटल जी घर पहुंच चुके थे। उनके घर पहुंचते ही मानो सब को सांप सूंघ गया हों ये अटल जी के धाक का कमाल था। जिसके दम पर घर के सदस्यों को दबाकर रखते थे। तन्नु चुप चाप कमरे में जाकर किताबों में उलझ गई थी और प्रगति किचन का कार्यभार संभाल लिया था। प्रगति किचन का कार्य भार नहीं संभालती तो कहीं अटल जी का पापी पेट जो हद से ज्यादा फुला हुआ था। कहीं कोई बवाल न मचा दे इसलिए प्रगति किचन का कार्य भार संभालते हुए चाकू छुरी तेज कर युद्ध स्तर पर सब्जियों को कटने में जुट गई। किचन भी किसी युद्ध के मैदान से कम थोड़ी न था। जहां महिलाओं को रोजाना युद्ध स्तर पर काम करना होता हैं। कभी भगोना में लगे कालिख पोत कमांडो बनना पड़ता हैं। तो कभी सब्जियों को कटने के लिए माहिर तलवार बाज की तरह चाकू छुरी चलाना पड़ता हैं। कुकर सिटी मरे तो उसे थपकी मार चुप कराना होता हैं चुप कर छिछोरा जब देखो सिटी मरता रहेगा। कभी गुब्बारे की तरह फूलती रोटी को जल्दी से उतर कर बिलास्ट होने से बचाना पड़ता था नहीं तो अगले दिन अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत ! ये हुआ तो हुआ कैसे ? रोटी फटने से मौत !

किचन में प्रगति का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था लेकिन उसे एक चिंता भी खाए जा रही थीं। चिंता का करण उनका सुपुत्र श्रीमान राघव ही था जो अभी तक घर नहीं लौटा था। इधर अटल जी को कोई टेंशन नहीं थी। घर का एक सदस्य कम हैं बजाय पूछने या ढूंढने के चने चवाये जा रहे थे। जैसे कल सुबह घोड़ों का रेस हों और घोड़े के बदले खुद दौड़ने वाले हों इसलिए चने खाकर खुद को और ताकतवर बना लेना चाहते हों।

अटल जी बड़े चाव से चने खाए जा रहे थे। बीच बीच में अकेले बडबडा भी रहे थे। "अरे इतना सख्त चना किस कमबख्त ने दे दिया इसे चबाने में मेरे दांत ही टूट जायेंगे। दांत टूट गया तो कल फिर से चना नहीं खा पाऊंगा।"

कोई सख्त चना मुंह में आता तो उसे थूक कर फेक देते फिर दूसरा मुंह में डालते। उसी वक्त राघव घर पहुंचता है। बाइक सही जगह खड़ा कर दरवजा ठोकता हैं। कईं बार दरवजा ठोकता हैं। दरवजा ठोकने की आवाज़ सुनाकर अटल जी बोलते है "भाग्य श्री देखो तो इतनी रात को कौन कमबख्त दरवजा ठोक रहा हैं। कोई पड़ोसी हो तो चूरन देकर वापस भेज देना। कोई अपना हो तो उसे एक गिलास पानी देकर टरका देना।"

प्रगति उस वक्त गोल गोल गुमाकर रोटी फूला रही थीं। माथे से पसीना टपक रहीं थी। पसीना पोछते हुऐ बोली "जी मैं इस वक्त रोटी फूलने में व्यस्त हूं आप जाकर देखिए न कौनननन…..

तभी प्रगति को याद आता हैं शायद राघव आया होगा। जल्दी से आधी फूली रोटी को उतर दरवजा खोलने भागती हैं। प्रगति को दरवाज़े की और भागते देख अटल जी उछल कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं "भाग्य श्री एक आध रोटी बोटी फट गई जो इस तरह भागे जा रहीं हों।"

प्रगति कुछ नहीं बोलती सीधा दरवाज़े की ओर बड़ जाती हैं तब अटल जी बोलते हैं "अजीव औरत है घर की मुखिया को कोई भाव ही नहीं दे रही लगता है धाक काम हो गया हैं फिर से धाक जमाना पड़ेगा।"

प्रगति दरवजा खोलती हैं सामने राघव को खड़ा देखकर बोलती हैं "तुझे जल्दी आने को कहा था फिर भी तू देर से आया खुद गलती करता हैं फिर बोलता हैं पापा मुझे बेवजह सुनते हैं।"

राघव "क्या पापा आ गए आज तो लग गई ढंग से।"

राघव अदंर आ जाता हैं। प्रगति किचन की और चल देती हैं। राघव अटल जी के पास जाता हैं। राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"

बाप की बात सुनाकर राघव एक पल के लिए ठिठक जाता हैं फिर आगे बड़ मिठाई का डब्बा खोल एक टुकड़ा मिठाई का निकल पापा की ओर बड़ते हुए बोला "पापा मुझे जॉब मिल गया हैं"

अटल जी मन में "मैं भी तो यही चाहता था में बहुत खुश हूं लेकिन अपनी ख़ुशी तेरे सामने जाहिर नहीं कर सकता।"

अटल जी राघव के हाथ से मिठाई का टुकड़ा ले लिया और मुंह भिचकाते हुए बोला "ओ तो मेरे घर के चिराग को रोशन होने का रस्ता मिल गया वैसे किस कमबख्त ने तुम जैसे नलायक को नौकरी दे दिया मैं होता तो जॉब न देकर धक्के मर कर बाहर निकाल देता।"

पापा की बात सुन राघव की खुशी पल भर में टूट गया। मिठाई का डिब्बा वहीं पटका और आंसू बहाते हुए रूम को भाग गया। अटल जी मुस्कुराते हुए गिरे मिठाई को उठाते हुए तेज आवाज में बोला "एक ढेला कमा नहीं पाते और गुस्सा देखो महाशय का, खरीदने मे पैसे नही लगे थे जो फेक कर चल दिया। फिर धीमी आवाज़ में बोला "बेटा तुम्हें ताने देते हुए मेरा दिल कितना दुखता हैं मैं ही जानता हूं। लेकिन मैं तुम्हे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते हुए देखना चाहता हु। मैं चाहता हु जो मैं नहीं कर पाया वो तुम करके दिखाओ यही उम्मीद तो मैं तुमसे करता हूं।"

मिठाई उठाकर अटल जी पलटे तो पीछे प्रगति को खड़ा देखकर उनकी मुस्कान फीका पड़ गया। प्रगति पास आकार बोली "मिल गई अपके दिल को शांति मेरा बेटा कितना खुश था अपने एक पल में ही उसकी सारी खुशी को चखना चूर कर दिया। क्यों करते हो? आपका दिल नहीं पसीजता किस मिट्टी के बने हो जो थोडा भी नहीं पिघलता।"

अटल "तुम्हारा भाषण खत्म हो गया हों तो कुछ खाने को दे दो या मिठाई खाकर ही सो जाऊ।"

प्रगति "बन गया है अभी देती हुं मन भर कर ठूस लेना न ठूस पाओ तो मूझसे कहना मैं मदद कर दूंगी।"

प्रगति किचन की और चल देती हैं। उनको ऐसे जाते देखकर अटल जी धीमे आवाज में बोलते हैं। "भाग्य श्री तुम भी मुझे समझ नहीं पाई क्यो करता हूं मैं ऐसा जिस दिन तुम जान पाओगे उस दिन सबसे ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा।"

प्रगति खाना लगा देती हैं। तन्नु को बुलाया जाता हैं। तन्नु के आने पर प्रगति दोनों को खाना देती हैं फिर एक थाली में खाना लगाकर जाने लगाती हैं तब अटल जी उन्हें रोकते हुए कहते हैं "थाली कहा लेकर जा रही हों थाली यह रखो और राघव को बुलाकर लाओ आज वो हमारे साथ बैठ कर खायेगा।"

प्रगति "लगता है सुनने में कुछ कमी रह गई जो उसे यह बुलाकर फिर से सुनना चाहते हों। बिना उसको खरी खोटी सुनाए अपका खाना नहीं पचता होगा।"

अटल "मुझे भाषण सुनाने के वजह जीतना कहा गया है करों।"

प्रगति जाकर राघव को आवाज देती हैं लेकिन राघव दरवजा नहीं खोलता तब प्रगति बोलती हैं "बेटा तेरे पापा साथ में खाना खाने बुला रहें हैं। जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से गुस्सा करेंगे।"

राघव "मुझे उनके गुस्सा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता आप जाकर उन्हे खिला कर खुद भी खा लेना मुझे भूख नहीं है मेरा पेट उनकी बातो से भर गया हैं।"

प्रगति कई बार आवाज देती हैं लेकिन राघव न कुछ बोलता हैं न ही बाहर आता हैं। थक हर कर प्रगति वापिस आ जाती हैं। खाली हाथ वापिस आया देखकर अटल जी पूछते हैं "राघव क्यो नहीं आया उसे भूख नहीं हैं क्या?

प्रगति "नहीं हैं भूख अपकी बातो से उसका पेट भर गया हैं। आप भी भर लो अपना पेट।"

प्रगति की बात सुनाकर अटल जी थाली धकेल कर उठ जाते हैं। हाथ धोकर कमरे में चले जाते हैं। प्रगति उनको जाते हुए देखती रह जाती ही। तन्नु ने जीतना खाया था उतने में ही विराम देकर उठ कर चाली जाती हैं। प्रगति एक बार और राघव को खिलाने की कोशिश करती हैं। लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता हैं। तब प्रगति सब कुछ बटोरकर किचन में रख कर सोने चाली जाती हैं।

विधि का विधान देखो जहां दिन हर्ष और उल्लास में बिता, रात होते ही रात के अंधकार में सब काला पड़ गया सारा हर्ष उल्लास रात्रि के सन्नाटे में खो गया। घर के चारों सदस्य में से किसी के आंखो में नीद नहीं था सब अपने अपने सोचो में गुम थे। ऐसे ही रात बीत जाता हैं। एक नई सुबह नई उम्मीद के साथ आता हैं। सुबह भी राघव कमरे से बाहर नहीं आता। अटल जी तोड़ा बहुत नाश्ता करके कहीं चले जाते हैं। जाते वक्त बोलकर जाते हैं राघव को खाना खिला देना कल से कुछ नहीं खाया हैं। अटल जी के मुंह से ये बात सुनाकर प्रगति और तन्नु भौचकी होकर उन्हे देखने लगती हैं। क्योंकि अटल जी के मुंह से यह बात बहुत दिनों बाद निकला था जब वो खुद से राघव को खान खिलाने के लिए कहा हों।

अटल जी के जाते ही प्रगति एक थाली में नाश्ता लगाकर राघव के कमरे की ओर जाती हैं तन्नु भी उनके पीछे पीछे जाती हैं। दोनों मां बेटी दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ठोकने लगती हैं। जैसे दोनों में प्रतियोगिता चल रहीं हों कौन पहले दरवाजा खुलवाती हैं। राघव अभी अभी सो कर उठा था और अंगड़ाई ले रहा था। आंख मलते हुए बोला "अजीब मुसीबत हैं दरवजा नहीं ढोल हों जिसे देखो बे सुर ताल बजाते रहते हैं। अभी आया दो पल वेट करों।"

तन्नु "भईया जल्दी दरवाजा खोलो देखो बाहर मदारी आया हैं। बंदर गुलाटी मार मार कर खेल दिखा रहा हैं।"

राघव दरवाजा खोल कर "कहा हैं बंदर चल मुझे भी खेल देखना हैं।"

तन्नु "हे हे हे बुधु बनाया बडा मजा आया बुधु बनाया……

राघव "तन्नु तू ये रोज रोज नए नए पैंतरे कह से लाती हैं।"

प्रगति "चुप कर कल रात से मैं भूखी हुं और तुम दोनों को अपनी अपनी पड़ी हैं। राधव तू दिन चढ़कर डूबने को हो रहीं हैं और अब उठा रहा हैं।"

राधव "दिन डूबा नहीं है अभी अभी उगा है रात देर से सोया था सो उठने में देर हों गईं। प्रगति के हाथ में रखी नाश्ते के प्लेट देखकर कहा "आप ये नाश्ते की प्लेट लेकर पक्षियों को खिलाने जा रहे हों।"

प्रगति मुंह भिचकाते हुए बोली " हुहुनन मैं तो अपने बेटे को खिलाने आई थी जो रात से भूखा हैं। फिर तन्नु से बोली चल तन्नु बेटा जब इसे ही भूख नहीं हैं तो हम क्यों भूखा रहे।"

राधव पेट पर हाथ रखा " मां भूख तो बहुत तेज लागी है तभी तो रात भर सोया नहीं अभी अभी सोया था और आप दोनों ने धाबा बोल दिया।"

तन्नु "खी खी खी….

प्रगति तन्नू को आंखे दिखाती हैं तन्नु चुप चाप खड़ी हों जाती हैं। जैसे वो कुछ जानती ही न हों बिल्कुल अबोध बालिका हों। तब जाकर कही राघव को जल्दी से तैयार होकर आने को कहती हैं। मां के कहते ही राघव "आप की आज्ञा का पालन अति शीघ्र होगा माते।"

राघव के कहने का ढंग निराला था इसी निराले पान ने दोनों मां बेटी के लवों पर मंद मंद चलती वायूरिया समान मुस्कान ला दिया। मुस्कुराते हुए दोनों चल दिए राघव सीधा बाथरूम में घुस गया। यहां प्रगति ने सारी तैयारी कर लिया था फिर बैठे बैठे प्रतिक्षा कर रहीं थीं। भूख बड़ी जोरो की लगी थी पर खां नहीं सकती थीं बेटा जो रात से भूखा था। बेटा आया उसको खिलाया तब जाकर निवाला प्रगति के पेट में उतरा। नाश्ते के दौरान विभिन्न विषय पर वार्तालाप हों रहा था। थोड़ी चुगली छीना झपटी हुआ और अटल भवन टहको से गूंज उठा हंसी ख़ुशी से तीनों ने पेट भर नाश्ता किया जो कल रात से अन्न के दाने के लिए तरस रहा था। विभिन्न प्रकार की क्रयकलाप करते हुए तीनों नाश्ते के काम से निपट चुके थे। राघव कहीं जा रहा था। तब प्रगति रोकते हुए बोली "पापा की डांट से बचना चाहते हों सुपुत्र, तो चरण को अपने कहीं बाहर न लेकर जाओ। घर की साफ सफाई में थोडा दो साथ, चलो मिलकर घर को चमकाए आज।"

प्रगति के कहने के स्टाइल से दोनों बेटा बेटी हंस हंस कर लोट पोट हों गए। कोई पेट पकड़ कर हंसे तो कोई रुक रूक कर हंसे एक बार फ़िर से अटल भवन हंसी ठहाकों से गूंज उठा। कुछ वक्त तक यह दृश्य चलता रहा फिर कही जाकर रुका। रुकते ही प्रगति झाड़ू पोछा बाल्टी लेकर आई, तीनों ने अपना अपना काम बांट लिया और शुरू कर दिया सफाई अभियान, कोई जाले निकले तो कोई झाड़ू मारे, दोनों भाई बहन बीच बीच में लड़ बैठे तब प्रगति उन पर भड़क जाए कुछ वक्त तक सही चले फिर वहीं मजरा शुरू हों जाए। प्रगति सर पर हाथ मार दोनों को आंख दिखाए और अपने काम में डाट जाएं। किया किया न किया दोनों भाई बहनों ने लेकिन अंत में घर को चमका ही दिया। कचरे का कहीं कोई नामों निशान नहीं जला कभी था की नहीं इसकी भी कोई निशानी नहीं पोछा ऐसा मारा मानो फर्श नहीं आईना लगा हों, फर्श में देखकर ही चहरे को संवारा जा सकता हैं।

सफाई का कार्य समाप्त हुआ जिसमें तीनों के बदन का कोना कोना गंदा हों गया। साथ ही थक भी बहुत गए थे आखिर धमाचोकड़ी जो इतनी मचाई थीं। घर की सफाई के बाद आई बदन की साफ सफाई की बारी तो तीनों बारी बारी बाथरूम गए और बदन को साफ कर बाहर आए।


घर और बदन की सफ़ाई के साथ आज की अपडेट की समाप्ति की घोषणा करता हूं। सांस रहीं तो फिर मिलेंगे कुछ ओर शब्दकोष के साथ तब तक के लिए मैं लेता हूं विदा। आप अपना काम करना न भूलिएगा मजा आए तो कुछ शब्द छोड़ जाइएगा।
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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कहानी अपनी लाईन पर शुरु हो गयी है

Nice and excellent update...

Nice story and nice plot

:congrats: for new story

चौथा भाग

बहुत ही बेहतरीन

ये किस्मत भी बहुत कुत्ती चीज़ होती है। ये ऐसे मौके पर ही धोखा देती है जब कुछ अच्छा होने का होता है। सार्थक मस्तमौला लौडा है और राघव का जिगरी दोस्त भी है। राघव को हर मुसीबत में उसका साथ देने के लिए जिन्न की तरह प्रकट हो जाता है। आज भी जब राघव की गाड़ी बन्द हुई तब सार्थक वहां पर आ गया और राघव की मुश्किल आसान हो गई।

साक्षात्कार लेने वाला बुजुर्ग आदमी था उसने राघव से कुछ माकूल सवाल पूछे। राघव ने अपने साक्षात्कार के बल पर ये नौकरी प्राप्त कर ली। लेकिन उस नौकरी का पूरा श्रेय सृष्टि को ही जाता है जिसने उसके लिए इस नौकरी को तलाश किया।।

: Congrats: for new thread
Bhai aapka Andaaz e bayan kaafi pasand aaya mujhe. Asha karta hun aapki kahani bhi itni hi prabhavshali hogi.

Superrbbb Updatee

Raghav ki baat toh sahi hai woh anjaan shaks kyo bina wajah uski madad kar raha hai. Kahi iske pichhe uski koi saazish toh nhi.

Aur cafe mein woh maskman aur woh anjaan shaks shayad dono ek hi insaan hai.

Dekhte hai aage kya hota hai.

Nice and superb update...

GOOD ONE

Keep it continues

Intezaar agle update ke liye

अगला अपडेट पोस्ट कर दिया हैं। खुशी के पिटारे में सेंध कैसे लगती हैं और घर की सफाई का में लिजिए पसंद आई तो विचार स्वरूप कुछ शब्द छोड़ जाए।
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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Update - 7


अटल जी घर पहुंच चुके थे। उनके घर पहुंचते ही मानो सब को सांप सूंघ गया हों ये अटल जी के धाक का कमाल था। जिसके दम पर घर के सदस्यों को दबाकर रखते थे। तन्नु चुप चाप कमरे में जाकर किताबों में उलझ गई थी और प्रगति किचन का कार्यभार संभाल लिया था। प्रगति किचन का कार्य भार नहीं संभालती तो कहीं अटल जी का पापी पेट जो हद से ज्यादा फुला हुआ था। कहीं कोई बवाल न मचा दे इसलिए प्रगति किचन का कार्य भार संभालते हुए चाकू छुरी तेज कर युद्ध स्तर पर सब्जियों को कटने में जुट गई। किचन भी किसी युद्ध के मैदान से कम थोड़ी न था। जहां महिलाओं को रोजाना युद्ध स्तर पर काम करना होता हैं। कभी भगोना में लगे कालिख पोत कमांडो बनना पड़ता हैं। तो कभी सब्जियों को कटने के लिए माहिर तलवार बाज की तरह चाकू छुरी चलाना पड़ता हैं। कुकर सिटी मरे तो उसे थपकी मार चुप कराना होता हैं चुप कर छिछोरा जब देखो सिटी मरता रहेगा। कभी गुब्बारे की तरह फूलती रोटी को जल्दी से उतर कर बिलास्ट होने से बचाना पड़ता था नहीं तो अगले दिन अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत ! ये हुआ तो हुआ कैसे ? रोटी फटने से मौत !

किचन में प्रगति का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था लेकिन उसे एक चिंता भी खाए जा रही थीं। चिंता का करण उनका सुपुत्र श्रीमान राघव ही था जो अभी तक घर नहीं लौटा था। इधर अटल जी को कोई टेंशन नहीं थी। घर का एक सदस्य कम हैं बजाय पूछने या ढूंढने के चने चवाये जा रहे थे। जैसे कल सुबह घोड़ों का रेस हों और घोड़े के बदले खुद दौड़ने वाले हों इसलिए चने खाकर खुद को और ताकतवर बना लेना चाहते हों।

अटल जी बड़े चाव से चने खाए जा रहे थे। बीच बीच में अकेले बडबडा भी रहे थे। "अरे इतना सख्त चना किस कमबख्त ने दे दिया इसे चबाने में मेरे दांत ही टूट जायेंगे। दांत टूट गया तो कल फिर से चना नहीं खा पाऊंगा।"

कोई सख्त चना मुंह में आता तो उसे थूक कर फेक देते फिर दूसरा मुंह में डालते। उसी वक्त राघव घर पहुंचता है। बाइक सही जगह खड़ा कर दरवजा ठोकता हैं। कईं बार दरवजा ठोकता हैं। दरवजा ठोकने की आवाज़ सुनाकर अटल जी बोलते है "भाग्य श्री देखो तो इतनी रात को कौन कमबख्त दरवजा ठोक रहा हैं। कोई पड़ोसी हो तो चूरन देकर वापस भेज देना। कोई अपना हो तो उसे एक गिलास पानी देकर टरका देना।"

प्रगति उस वक्त गोल गोल गुमाकर रोटी फूला रही थीं। माथे से पसीना टपक रहीं थी। पसीना पोछते हुऐ बोली "जी मैं इस वक्त रोटी फूलने में व्यस्त हूं आप जाकर देखिए न कौनननन…..

तभी प्रगति को याद आता हैं शायद राघव आया होगा। जल्दी से आधी फूली रोटी को उतर दरवजा खोलने भागती हैं। प्रगति को दरवाज़े की और भागते देख अटल जी उछल कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं "भाग्य श्री एक आध रोटी बोटी फट गई जो इस तरह भागे जा रहीं हों।"

प्रगति कुछ नहीं बोलती सीधा दरवाज़े की ओर बड़ जाती हैं तब अटल जी बोलते हैं "अजीव औरत है घर की मुखिया को कोई भाव ही नहीं दे रही लगता है धाक काम हो गया हैं फिर से धाक जमाना पड़ेगा।"

प्रगति दरवजा खोलती हैं सामने राघव को खड़ा देखकर बोलती हैं "तुझे जल्दी आने को कहा था फिर भी तू देर से आया खुद गलती करता हैं फिर बोलता हैं पापा मुझे बेवजह सुनते हैं।"

राघव "क्या पापा आ गए आज तो लग गई ढंग से।"

राघव अदंर आ जाता हैं। प्रगति किचन की और चल देती हैं। राघव अटल जी के पास जाता हैं। राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"

बाप की बात सुनाकर राघव एक पल के लिए ठिठक जाता हैं फिर आगे बड़ मिठाई का डब्बा खोल एक टुकड़ा मिठाई का निकल पापा की ओर बड़ते हुए बोला "पापा मुझे जॉब मिल गया हैं"

अटल जी मन में "मैं भी तो यही चाहता था में बहुत खुश हूं लेकिन अपनी ख़ुशी तेरे सामने जाहिर नहीं कर सकता।"

अटल जी राघव के हाथ से मिठाई का टुकड़ा ले लिया और मुंह भिचकाते हुए बोला "ओ तो मेरे घर के चिराग को रोशन होने का रस्ता मिल गया वैसे किस कमबख्त ने तुम जैसे नलायक को नौकरी दे दिया मैं होता तो जॉब न देकर धक्के मर कर बाहर निकाल देता।"

पापा की बात सुन राघव की खुशी पल भर में टूट गया। मिठाई का डिब्बा वहीं पटका और आंसू बहाते हुए रूम को भाग गया। अटल जी मुस्कुराते हुए गिरे मिठाई को उठाते हुए तेज आवाज में बोला "एक ढेला कमा नहीं पाते और गुस्सा देखो महाशय का, खरीदने मे पैसे नही लगे थे जो फेक कर चल दिया। फिर धीमी आवाज़ में बोला "बेटा तुम्हें ताने देते हुए मेरा दिल कितना दुखता हैं मैं ही जानता हूं। लेकिन मैं तुम्हे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते हुए देखना चाहता हु। मैं चाहता हु जो मैं नहीं कर पाया वो तुम करके दिखाओ यही उम्मीद तो मैं तुमसे करता हूं।"

मिठाई उठाकर अटल जी पलटे तो पीछे प्रगति को खड़ा देखकर उनकी मुस्कान फीका पड़ गया। प्रगति पास आकार बोली "मिल गई अपके दिल को शांति मेरा बेटा कितना खुश था अपने एक पल में ही उसकी सारी खुशी को चखना चूर कर दिया। क्यों करते हो? आपका दिल नहीं पसीजता किस मिट्टी के बने हो जो थोडा भी नहीं पिघलता।"

अटल "तुम्हारा भाषण खत्म हो गया हों तो कुछ खाने को दे दो या मिठाई खाकर ही सो जाऊ।"

प्रगति "बन गया है अभी देती हुं मन भर कर ठूस लेना न ठूस पाओ तो मूझसे कहना मैं मदद कर दूंगी।"

प्रगति किचन की और चल देती हैं। उनको ऐसे जाते देखकर अटल जी धीमे आवाज में बोलते हैं। "भाग्य श्री तुम भी मुझे समझ नहीं पाई क्यो करता हूं मैं ऐसा जिस दिन तुम जान पाओगे उस दिन सबसे ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा।"

प्रगति खाना लगा देती हैं। तन्नु को बुलाया जाता हैं। तन्नु के आने पर प्रगति दोनों को खाना देती हैं फिर एक थाली में खाना लगाकर जाने लगाती हैं तब अटल जी उन्हें रोकते हुए कहते हैं "थाली कहा लेकर जा रही हों थाली यह रखो और राघव को बुलाकर लाओ आज वो हमारे साथ बैठ कर खायेगा।"

प्रगति "लगता है सुनने में कुछ कमी रह गई जो उसे यह बुलाकर फिर से सुनना चाहते हों। बिना उसको खरी खोटी सुनाए अपका खाना नहीं पचता होगा।"

अटल "मुझे भाषण सुनाने के वजह जीतना कहा गया है करों।"

प्रगति जाकर राघव को आवाज देती हैं लेकिन राघव दरवजा नहीं खोलता तब प्रगति बोलती हैं "बेटा तेरे पापा साथ में खाना खाने बुला रहें हैं। जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से गुस्सा करेंगे।"

राघव "मुझे उनके गुस्सा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता आप जाकर उन्हे खिला कर खुद भी खा लेना मुझे भूख नहीं है मेरा पेट उनकी बातो से भर गया हैं।"

प्रगति कई बार आवाज देती हैं लेकिन राघव न कुछ बोलता हैं न ही बाहर आता हैं। थक हर कर प्रगति वापिस आ जाती हैं। खाली हाथ वापिस आया देखकर अटल जी पूछते हैं "राघव क्यो नहीं आया उसे भूख नहीं हैं क्या?

प्रगति "नहीं हैं भूख अपकी बातो से उसका पेट भर गया हैं। आप भी भर लो अपना पेट।"

प्रगति की बात सुनाकर अटल जी थाली धकेल कर उठ जाते हैं। हाथ धोकर कमरे में चले जाते हैं। प्रगति उनको जाते हुए देखती रह जाती ही। तन्नु ने जीतना खाया था उतने में ही विराम देकर उठ कर चाली जाती हैं। प्रगति एक बार और राघव को खिलाने की कोशिश करती हैं। लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता हैं। तब प्रगति सब कुछ बटोरकर किचन में रख कर सोने चाली जाती हैं।

विधि का विधान देखो जहां दिन हर्ष और उल्लास में बिता, रात होते ही रात के अंधकार में सब काला पड़ गया सारा हर्ष उल्लास रात्रि के सन्नाटे में खो गया। घर के चारों सदस्य में से किसी के आंखो में नीद नहीं था सब अपने अपने सोचो में गुम थे। ऐसे ही रात बीत जाता हैं। एक नई सुबह नई उम्मीद के साथ आता हैं। सुबह भी राघव कमरे से बाहर नहीं आता। अटल जी तोड़ा बहुत नाश्ता करके कहीं चले जाते हैं। जाते वक्त बोलकर जाते हैं राघव को खाना खिला देना कल से कुछ नहीं खाया हैं। अटल जी के मुंह से ये बात सुनाकर प्रगति और तन्नु भौचकी होकर उन्हे देखने लगती हैं। क्योंकि अटल जी के मुंह से यह बात बहुत दिनों बाद निकला था जब वो खुद से राघव को खान खिलाने के लिए कहा हों।

अटल जी के जाते ही प्रगति एक थाली में नाश्ता लगाकर राघव के कमरे की ओर जाती हैं तन्नु भी उनके पीछे पीछे जाती हैं। दोनों मां बेटी दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ठोकने लगती हैं। जैसे दोनों में प्रतियोगिता चल रहीं हों कौन पहले दरवाजा खुलवाती हैं। राघव अभी अभी सो कर उठा था और अंगड़ाई ले रहा था। आंख मलते हुए बोला "अजीब मुसीबत हैं दरवजा नहीं ढोल हों जिसे देखो बे सुर ताल बजाते रहते हैं। अभी आया दो पल वेट करों।"

तन्नु "भईया जल्दी दरवाजा खोलो देखो बाहर मदारी आया हैं। बंदर गुलाटी मार मार कर खेल दिखा रहा हैं।"

राघव दरवाजा खोल कर "कहा हैं बंदर चल मुझे भी खेल देखना हैं।"

तन्नु "हे हे हे बुधु बनाया बडा मजा आया बुधु बनाया……

राघव "तन्नु तू ये रोज रोज नए नए पैंतरे कह से लाती हैं।"

प्रगति "चुप कर कल रात से मैं भूखी हुं और तुम दोनों को अपनी अपनी पड़ी हैं। राधव तू दिन चढ़कर डूबने को हो रहीं हैं और अब उठा रहा हैं।"

राधव "दिन डूबा नहीं है अभी अभी उगा है रात देर से सोया था सो उठने में देर हों गईं। प्रगति के हाथ में रखी नाश्ते के प्लेट देखकर कहा "आप ये नाश्ते की प्लेट लेकर पक्षियों को खिलाने जा रहे हों।"

प्रगति मुंह भिचकाते हुए बोली " हुहुनन मैं तो अपने बेटे को खिलाने आई थी जो रात से भूखा हैं। फिर तन्नु से बोली चल तन्नु बेटा जब इसे ही भूख नहीं हैं तो हम क्यों भूखा रहे।"

राधव पेट पर हाथ रखा " मां भूख तो बहुत तेज लागी है तभी तो रात भर सोया नहीं अभी अभी सोया था और आप दोनों ने धाबा बोल दिया।"

तन्नु "खी खी खी….

प्रगति तन्नू को आंखे दिखाती हैं तन्नु चुप चाप खड़ी हों जाती हैं। जैसे वो कुछ जानती ही न हों बिल्कुल अबोध बालिका हों। तब जाकर कही राघव को जल्दी से तैयार होकर आने को कहती हैं। मां के कहते ही राघव "आप की आज्ञा का पालन अति शीघ्र होगा माते।"

राघव के कहने का ढंग निराला था इसी निराले पान ने दोनों मां बेटी के लवों पर मंद मंद चलती वायूरिया समान मुस्कान ला दिया। मुस्कुराते हुए दोनों चल दिए राघव सीधा बाथरूम में घुस गया। यहां प्रगति ने सारी तैयारी कर लिया था फिर बैठे बैठे प्रतिक्षा कर रहीं थीं। भूख बड़ी जोरो की लगी थी पर खां नहीं सकती थीं बेटा जो रात से भूखा था। बेटा आया उसको खिलाया तब जाकर निवाला प्रगति के पेट में उतरा। नाश्ते के दौरान विभिन्न विषय पर वार्तालाप हों रहा था। थोड़ी चुगली छीना झपटी हुआ और अटल भवन टहको से गूंज उठा हंसी ख़ुशी से तीनों ने पेट भर नाश्ता किया जो कल रात से अन्न के दाने के लिए तरस रहा था। विभिन्न प्रकार की क्रयकलाप करते हुए तीनों नाश्ते के काम से निपट चुके थे। राघव कहीं जा रहा था। तब प्रगति रोकते हुए बोली "पापा की डांट से बचना चाहते हों सुपुत्र, तो चरण को अपने कहीं बाहर न लेकर जाओ। घर की साफ सफाई में थोडा दो साथ, चलो मिलकर घर को चमकाए आज।"

प्रगति के कहने के स्टाइल से दोनों बेटा बेटी हंस हंस कर लोट पोट हों गए। कोई पेट पकड़ कर हंसे तो कोई रुक रूक कर हंसे एक बार फ़िर से अटल भवन हंसी ठहाकों से गूंज उठा। कुछ वक्त तक यह दृश्य चलता रहा फिर कही जाकर रुका। रुकते ही प्रगति झाड़ू पोछा बाल्टी लेकर आई, तीनों ने अपना अपना काम बांट लिया और शुरू कर दिया सफाई अभियान, कोई जाले निकले तो कोई झाड़ू मारे, दोनों भाई बहन बीच बीच में लड़ बैठे तब प्रगति उन पर भड़क जाए कुछ वक्त तक सही चले फिर वहीं मजरा शुरू हों जाए। प्रगति सर पर हाथ मार दोनों को आंख दिखाए और अपने काम में डाट जाएं। किया किया न किया दोनों भाई बहनों ने लेकिन अंत में घर को चमका ही दिया। कचरे का कहीं कोई नामों निशान नहीं जला कभी था की नहीं इसकी भी कोई निशानी नहीं पोछा ऐसा मारा मानो फर्श नहीं आईना लगा हों, फर्श में देखकर ही चहरे को संवारा जा सकता हैं।

सफाई का कार्य समाप्त हुआ जिसमें तीनों के बदन का कोना कोना गंदा हों गया। साथ ही थक भी बहुत गए थे आखिर धमाचोकड़ी जो इतनी मचाई थीं। घर की सफाई के बाद आई बदन की साफ सफाई की बारी तो तीनों बारी बारी बाथरूम गए और बदन को साफ कर बाहर आए।



घर और बदन की सफ़ाई के साथ आज की अपडेट की समाप्ति की घोषणा करता हूं। सांस रहीं तो फिर मिलेंगे कुछ ओर शब्दकोष के साथ तब तक के लिए मैं लेता हूं विदा। आप अपना काम करना न भूलिएगा मजा आए तो कुछ शब्द छोड़ जाइएगा।

अप्रतिम अप्रतिम अप्रतिम

बिना अटल जी के करारे तानो के तसल्ली सी नही हो रही थी पिछ्ले दो अपडेट मे 😝😝😝
अटल जी भी बडे अटल है , इतने अटल की भावनाओ को जाहिर तक नही होने देते

राघव जी के उम्मीद की मिठाई अटल जी को पसंद तो आई लेकिन शादी वाले फूफा के नखरे दिखाते हुए मिठाई खा कर भी कडवा उगल दिये
खैर पिता के प्यार का अपना तरीका होता है , लेकिन अटल जी की सख्ती कुछ ज्यादा ही है ।

आज छूटकी की मस्तियाँ और मा का अपने लिये इतराना ,, बहुत ही मनमोहक दृश्य रहा हो

अब जो दिवाली की सफाई हो गयी है तो हम भी उम्मीद करते है कि अटल जी के अकल पर पोछा लग जाये तो ये दिवाली होगी खुशियो वाली

कुल मिला कर बहुत ही मजेदार अपडेट
वही ताजगी वही अह्सास , और रसोई का युद्ध बहुत ही उत्तम
कहानी मजा तब ही है जब लेखक किरदार को उसकी भुमिका मे सजीव कर दे , कुछ ऐसा ही हुआ आज ,,हर किरदार ठीक उसी रूप मे मिला जैसा कहानी के सुरु मे उनका विवरण मिला था ।


ऐसी ही अपने निराले अंदाज मे लिखते रहिये दोस्त
बहुत खुब 😍
 

parkas

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Update - 7


अटल जी घर पहुंच चुके थे। उनके घर पहुंचते ही मानो सब को सांप सूंघ गया हों ये अटल जी के धाक का कमाल था। जिसके दम पर घर के सदस्यों को दबाकर रखते थे। तन्नु चुप चाप कमरे में जाकर किताबों में उलझ गई थी और प्रगति किचन का कार्यभार संभाल लिया था। प्रगति किचन का कार्य भार नहीं संभालती तो कहीं अटल जी का पापी पेट जो हद से ज्यादा फुला हुआ था। कहीं कोई बवाल न मचा दे इसलिए प्रगति किचन का कार्य भार संभालते हुए चाकू छुरी तेज कर युद्ध स्तर पर सब्जियों को कटने में जुट गई। किचन भी किसी युद्ध के मैदान से कम थोड़ी न था। जहां महिलाओं को रोजाना युद्ध स्तर पर काम करना होता हैं। कभी भगोना में लगे कालिख पोत कमांडो बनना पड़ता हैं। तो कभी सब्जियों को कटने के लिए माहिर तलवार बाज की तरह चाकू छुरी चलाना पड़ता हैं। कुकर सिटी मरे तो उसे थपकी मार चुप कराना होता हैं चुप कर छिछोरा जब देखो सिटी मरता रहेगा। कभी गुब्बारे की तरह फूलती रोटी को जल्दी से उतर कर बिलास्ट होने से बचाना पड़ता था नहीं तो अगले दिन अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत ! ये हुआ तो हुआ कैसे ? रोटी फटने से मौत !

किचन में प्रगति का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था लेकिन उसे एक चिंता भी खाए जा रही थीं। चिंता का करण उनका सुपुत्र श्रीमान राघव ही था जो अभी तक घर नहीं लौटा था। इधर अटल जी को कोई टेंशन नहीं थी। घर का एक सदस्य कम हैं बजाय पूछने या ढूंढने के चने चवाये जा रहे थे। जैसे कल सुबह घोड़ों का रेस हों और घोड़े के बदले खुद दौड़ने वाले हों इसलिए चने खाकर खुद को और ताकतवर बना लेना चाहते हों।

अटल जी बड़े चाव से चने खाए जा रहे थे। बीच बीच में अकेले बडबडा भी रहे थे। "अरे इतना सख्त चना किस कमबख्त ने दे दिया इसे चबाने में मेरे दांत ही टूट जायेंगे। दांत टूट गया तो कल फिर से चना नहीं खा पाऊंगा।"

कोई सख्त चना मुंह में आता तो उसे थूक कर फेक देते फिर दूसरा मुंह में डालते। उसी वक्त राघव घर पहुंचता है। बाइक सही जगह खड़ा कर दरवजा ठोकता हैं। कईं बार दरवजा ठोकता हैं। दरवजा ठोकने की आवाज़ सुनाकर अटल जी बोलते है "भाग्य श्री देखो तो इतनी रात को कौन कमबख्त दरवजा ठोक रहा हैं। कोई पड़ोसी हो तो चूरन देकर वापस भेज देना। कोई अपना हो तो उसे एक गिलास पानी देकर टरका देना।"

प्रगति उस वक्त गोल गोल गुमाकर रोटी फूला रही थीं। माथे से पसीना टपक रहीं थी। पसीना पोछते हुऐ बोली "जी मैं इस वक्त रोटी फूलने में व्यस्त हूं आप जाकर देखिए न कौनननन…..

तभी प्रगति को याद आता हैं शायद राघव आया होगा। जल्दी से आधी फूली रोटी को उतर दरवजा खोलने भागती हैं। प्रगति को दरवाज़े की और भागते देख अटल जी उछल कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं "भाग्य श्री एक आध रोटी बोटी फट गई जो इस तरह भागे जा रहीं हों।"

प्रगति कुछ नहीं बोलती सीधा दरवाज़े की ओर बड़ जाती हैं तब अटल जी बोलते हैं "अजीव औरत है घर की मुखिया को कोई भाव ही नहीं दे रही लगता है धाक काम हो गया हैं फिर से धाक जमाना पड़ेगा।"

प्रगति दरवजा खोलती हैं सामने राघव को खड़ा देखकर बोलती हैं "तुझे जल्दी आने को कहा था फिर भी तू देर से आया खुद गलती करता हैं फिर बोलता हैं पापा मुझे बेवजह सुनते हैं।"

राघव "क्या पापा आ गए आज तो लग गई ढंग से।"

राघव अदंर आ जाता हैं। प्रगति किचन की और चल देती हैं। राघव अटल जी के पास जाता हैं। राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"

बाप की बात सुनाकर राघव एक पल के लिए ठिठक जाता हैं फिर आगे बड़ मिठाई का डब्बा खोल एक टुकड़ा मिठाई का निकल पापा की ओर बड़ते हुए बोला "पापा मुझे जॉब मिल गया हैं"

अटल जी मन में "मैं भी तो यही चाहता था में बहुत खुश हूं लेकिन अपनी ख़ुशी तेरे सामने जाहिर नहीं कर सकता।"

अटल जी राघव के हाथ से मिठाई का टुकड़ा ले लिया और मुंह भिचकाते हुए बोला "ओ तो मेरे घर के चिराग को रोशन होने का रस्ता मिल गया वैसे किस कमबख्त ने तुम जैसे नलायक को नौकरी दे दिया मैं होता तो जॉब न देकर धक्के मर कर बाहर निकाल देता।"

पापा की बात सुन राघव की खुशी पल भर में टूट गया। मिठाई का डिब्बा वहीं पटका और आंसू बहाते हुए रूम को भाग गया। अटल जी मुस्कुराते हुए गिरे मिठाई को उठाते हुए तेज आवाज में बोला "एक ढेला कमा नहीं पाते और गुस्सा देखो महाशय का, खरीदने मे पैसे नही लगे थे जो फेक कर चल दिया। फिर धीमी आवाज़ में बोला "बेटा तुम्हें ताने देते हुए मेरा दिल कितना दुखता हैं मैं ही जानता हूं। लेकिन मैं तुम्हे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते हुए देखना चाहता हु। मैं चाहता हु जो मैं नहीं कर पाया वो तुम करके दिखाओ यही उम्मीद तो मैं तुमसे करता हूं।"

मिठाई उठाकर अटल जी पलटे तो पीछे प्रगति को खड़ा देखकर उनकी मुस्कान फीका पड़ गया। प्रगति पास आकार बोली "मिल गई अपके दिल को शांति मेरा बेटा कितना खुश था अपने एक पल में ही उसकी सारी खुशी को चखना चूर कर दिया। क्यों करते हो? आपका दिल नहीं पसीजता किस मिट्टी के बने हो जो थोडा भी नहीं पिघलता।"

अटल "तुम्हारा भाषण खत्म हो गया हों तो कुछ खाने को दे दो या मिठाई खाकर ही सो जाऊ।"

प्रगति "बन गया है अभी देती हुं मन भर कर ठूस लेना न ठूस पाओ तो मूझसे कहना मैं मदद कर दूंगी।"

प्रगति किचन की और चल देती हैं। उनको ऐसे जाते देखकर अटल जी धीमे आवाज में बोलते हैं। "भाग्य श्री तुम भी मुझे समझ नहीं पाई क्यो करता हूं मैं ऐसा जिस दिन तुम जान पाओगे उस दिन सबसे ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा।"

प्रगति खाना लगा देती हैं। तन्नु को बुलाया जाता हैं। तन्नु के आने पर प्रगति दोनों को खाना देती हैं फिर एक थाली में खाना लगाकर जाने लगाती हैं तब अटल जी उन्हें रोकते हुए कहते हैं "थाली कहा लेकर जा रही हों थाली यह रखो और राघव को बुलाकर लाओ आज वो हमारे साथ बैठ कर खायेगा।"

प्रगति "लगता है सुनने में कुछ कमी रह गई जो उसे यह बुलाकर फिर से सुनना चाहते हों। बिना उसको खरी खोटी सुनाए अपका खाना नहीं पचता होगा।"

अटल "मुझे भाषण सुनाने के वजह जीतना कहा गया है करों।"

प्रगति जाकर राघव को आवाज देती हैं लेकिन राघव दरवजा नहीं खोलता तब प्रगति बोलती हैं "बेटा तेरे पापा साथ में खाना खाने बुला रहें हैं। जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से गुस्सा करेंगे।"

राघव "मुझे उनके गुस्सा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता आप जाकर उन्हे खिला कर खुद भी खा लेना मुझे भूख नहीं है मेरा पेट उनकी बातो से भर गया हैं।"

प्रगति कई बार आवाज देती हैं लेकिन राघव न कुछ बोलता हैं न ही बाहर आता हैं। थक हर कर प्रगति वापिस आ जाती हैं। खाली हाथ वापिस आया देखकर अटल जी पूछते हैं "राघव क्यो नहीं आया उसे भूख नहीं हैं क्या?

प्रगति "नहीं हैं भूख अपकी बातो से उसका पेट भर गया हैं। आप भी भर लो अपना पेट।"

प्रगति की बात सुनाकर अटल जी थाली धकेल कर उठ जाते हैं। हाथ धोकर कमरे में चले जाते हैं। प्रगति उनको जाते हुए देखती रह जाती ही। तन्नु ने जीतना खाया था उतने में ही विराम देकर उठ कर चाली जाती हैं। प्रगति एक बार और राघव को खिलाने की कोशिश करती हैं। लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता हैं। तब प्रगति सब कुछ बटोरकर किचन में रख कर सोने चाली जाती हैं।

विधि का विधान देखो जहां दिन हर्ष और उल्लास में बिता, रात होते ही रात के अंधकार में सब काला पड़ गया सारा हर्ष उल्लास रात्रि के सन्नाटे में खो गया। घर के चारों सदस्य में से किसी के आंखो में नीद नहीं था सब अपने अपने सोचो में गुम थे। ऐसे ही रात बीत जाता हैं। एक नई सुबह नई उम्मीद के साथ आता हैं। सुबह भी राघव कमरे से बाहर नहीं आता। अटल जी तोड़ा बहुत नाश्ता करके कहीं चले जाते हैं। जाते वक्त बोलकर जाते हैं राघव को खाना खिला देना कल से कुछ नहीं खाया हैं। अटल जी के मुंह से ये बात सुनाकर प्रगति और तन्नु भौचकी होकर उन्हे देखने लगती हैं। क्योंकि अटल जी के मुंह से यह बात बहुत दिनों बाद निकला था जब वो खुद से राघव को खान खिलाने के लिए कहा हों।

अटल जी के जाते ही प्रगति एक थाली में नाश्ता लगाकर राघव के कमरे की ओर जाती हैं तन्नु भी उनके पीछे पीछे जाती हैं। दोनों मां बेटी दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ठोकने लगती हैं। जैसे दोनों में प्रतियोगिता चल रहीं हों कौन पहले दरवाजा खुलवाती हैं। राघव अभी अभी सो कर उठा था और अंगड़ाई ले रहा था। आंख मलते हुए बोला "अजीब मुसीबत हैं दरवजा नहीं ढोल हों जिसे देखो बे सुर ताल बजाते रहते हैं। अभी आया दो पल वेट करों।"

तन्नु "भईया जल्दी दरवाजा खोलो देखो बाहर मदारी आया हैं। बंदर गुलाटी मार मार कर खेल दिखा रहा हैं।"

राघव दरवाजा खोल कर "कहा हैं बंदर चल मुझे भी खेल देखना हैं।"

तन्नु "हे हे हे बुधु बनाया बडा मजा आया बुधु बनाया……

राघव "तन्नु तू ये रोज रोज नए नए पैंतरे कह से लाती हैं।"

प्रगति "चुप कर कल रात से मैं भूखी हुं और तुम दोनों को अपनी अपनी पड़ी हैं। राधव तू दिन चढ़कर डूबने को हो रहीं हैं और अब उठा रहा हैं।"

राधव "दिन डूबा नहीं है अभी अभी उगा है रात देर से सोया था सो उठने में देर हों गईं। प्रगति के हाथ में रखी नाश्ते के प्लेट देखकर कहा "आप ये नाश्ते की प्लेट लेकर पक्षियों को खिलाने जा रहे हों।"

प्रगति मुंह भिचकाते हुए बोली " हुहुनन मैं तो अपने बेटे को खिलाने आई थी जो रात से भूखा हैं। फिर तन्नु से बोली चल तन्नु बेटा जब इसे ही भूख नहीं हैं तो हम क्यों भूखा रहे।"

राधव पेट पर हाथ रखा " मां भूख तो बहुत तेज लागी है तभी तो रात भर सोया नहीं अभी अभी सोया था और आप दोनों ने धाबा बोल दिया।"

तन्नु "खी खी खी….

प्रगति तन्नू को आंखे दिखाती हैं तन्नु चुप चाप खड़ी हों जाती हैं। जैसे वो कुछ जानती ही न हों बिल्कुल अबोध बालिका हों। तब जाकर कही राघव को जल्दी से तैयार होकर आने को कहती हैं। मां के कहते ही राघव "आप की आज्ञा का पालन अति शीघ्र होगा माते।"

राघव के कहने का ढंग निराला था इसी निराले पान ने दोनों मां बेटी के लवों पर मंद मंद चलती वायूरिया समान मुस्कान ला दिया। मुस्कुराते हुए दोनों चल दिए राघव सीधा बाथरूम में घुस गया। यहां प्रगति ने सारी तैयारी कर लिया था फिर बैठे बैठे प्रतिक्षा कर रहीं थीं। भूख बड़ी जोरो की लगी थी पर खां नहीं सकती थीं बेटा जो रात से भूखा था। बेटा आया उसको खिलाया तब जाकर निवाला प्रगति के पेट में उतरा। नाश्ते के दौरान विभिन्न विषय पर वार्तालाप हों रहा था। थोड़ी चुगली छीना झपटी हुआ और अटल भवन टहको से गूंज उठा हंसी ख़ुशी से तीनों ने पेट भर नाश्ता किया जो कल रात से अन्न के दाने के लिए तरस रहा था। विभिन्न प्रकार की क्रयकलाप करते हुए तीनों नाश्ते के काम से निपट चुके थे। राघव कहीं जा रहा था। तब प्रगति रोकते हुए बोली "पापा की डांट से बचना चाहते हों सुपुत्र, तो चरण को अपने कहीं बाहर न लेकर जाओ। घर की साफ सफाई में थोडा दो साथ, चलो मिलकर घर को चमकाए आज।"

प्रगति के कहने के स्टाइल से दोनों बेटा बेटी हंस हंस कर लोट पोट हों गए। कोई पेट पकड़ कर हंसे तो कोई रुक रूक कर हंसे एक बार फ़िर से अटल भवन हंसी ठहाकों से गूंज उठा। कुछ वक्त तक यह दृश्य चलता रहा फिर कही जाकर रुका। रुकते ही प्रगति झाड़ू पोछा बाल्टी लेकर आई, तीनों ने अपना अपना काम बांट लिया और शुरू कर दिया सफाई अभियान, कोई जाले निकले तो कोई झाड़ू मारे, दोनों भाई बहन बीच बीच में लड़ बैठे तब प्रगति उन पर भड़क जाए कुछ वक्त तक सही चले फिर वहीं मजरा शुरू हों जाए। प्रगति सर पर हाथ मार दोनों को आंख दिखाए और अपने काम में डाट जाएं। किया किया न किया दोनों भाई बहनों ने लेकिन अंत में घर को चमका ही दिया। कचरे का कहीं कोई नामों निशान नहीं जला कभी था की नहीं इसकी भी कोई निशानी नहीं पोछा ऐसा मारा मानो फर्श नहीं आईना लगा हों, फर्श में देखकर ही चहरे को संवारा जा सकता हैं।

सफाई का कार्य समाप्त हुआ जिसमें तीनों के बदन का कोना कोना गंदा हों गया। साथ ही थक भी बहुत गए थे आखिर धमाचोकड़ी जो इतनी मचाई थीं। घर की सफाई के बाद आई बदन की साफ सफाई की बारी तो तीनों बारी बारी बाथरूम गए और बदन को साफ कर बाहर आए।



घर और बदन की सफ़ाई के साथ आज की अपडेट की समाप्ति की घोषणा करता हूं। सांस रहीं तो फिर मिलेंगे कुछ ओर शब्दकोष के साथ तब तक के लिए मैं लेता हूं विदा। आप अपना काम करना न भूलिएगा मजा आए तो कुछ शब्द छोड़ जाइएगा।
Nice and excellent update...
 

Jaguaar

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Update - 7


अटल जी घर पहुंच चुके थे। उनके घर पहुंचते ही मानो सब को सांप सूंघ गया हों ये अटल जी के धाक का कमाल था। जिसके दम पर घर के सदस्यों को दबाकर रखते थे। तन्नु चुप चाप कमरे में जाकर किताबों में उलझ गई थी और प्रगति किचन का कार्यभार संभाल लिया था। प्रगति किचन का कार्य भार नहीं संभालती तो कहीं अटल जी का पापी पेट जो हद से ज्यादा फुला हुआ था। कहीं कोई बवाल न मचा दे इसलिए प्रगति किचन का कार्य भार संभालते हुए चाकू छुरी तेज कर युद्ध स्तर पर सब्जियों को कटने में जुट गई। किचन भी किसी युद्ध के मैदान से कम थोड़ी न था। जहां महिलाओं को रोजाना युद्ध स्तर पर काम करना होता हैं। कभी भगोना में लगे कालिख पोत कमांडो बनना पड़ता हैं। तो कभी सब्जियों को कटने के लिए माहिर तलवार बाज की तरह चाकू छुरी चलाना पड़ता हैं। कुकर सिटी मरे तो उसे थपकी मार चुप कराना होता हैं चुप कर छिछोरा जब देखो सिटी मरता रहेगा। कभी गुब्बारे की तरह फूलती रोटी को जल्दी से उतर कर बिलास्ट होने से बचाना पड़ता था नहीं तो अगले दिन अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत ! ये हुआ तो हुआ कैसे ? रोटी फटने से मौत !

किचन में प्रगति का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था लेकिन उसे एक चिंता भी खाए जा रही थीं। चिंता का करण उनका सुपुत्र श्रीमान राघव ही था जो अभी तक घर नहीं लौटा था। इधर अटल जी को कोई टेंशन नहीं थी। घर का एक सदस्य कम हैं बजाय पूछने या ढूंढने के चने चवाये जा रहे थे। जैसे कल सुबह घोड़ों का रेस हों और घोड़े के बदले खुद दौड़ने वाले हों इसलिए चने खाकर खुद को और ताकतवर बना लेना चाहते हों।

अटल जी बड़े चाव से चने खाए जा रहे थे। बीच बीच में अकेले बडबडा भी रहे थे। "अरे इतना सख्त चना किस कमबख्त ने दे दिया इसे चबाने में मेरे दांत ही टूट जायेंगे। दांत टूट गया तो कल फिर से चना नहीं खा पाऊंगा।"

कोई सख्त चना मुंह में आता तो उसे थूक कर फेक देते फिर दूसरा मुंह में डालते। उसी वक्त राघव घर पहुंचता है। बाइक सही जगह खड़ा कर दरवजा ठोकता हैं। कईं बार दरवजा ठोकता हैं। दरवजा ठोकने की आवाज़ सुनाकर अटल जी बोलते है "भाग्य श्री देखो तो इतनी रात को कौन कमबख्त दरवजा ठोक रहा हैं। कोई पड़ोसी हो तो चूरन देकर वापस भेज देना। कोई अपना हो तो उसे एक गिलास पानी देकर टरका देना।"

प्रगति उस वक्त गोल गोल गुमाकर रोटी फूला रही थीं। माथे से पसीना टपक रहीं थी। पसीना पोछते हुऐ बोली "जी मैं इस वक्त रोटी फूलने में व्यस्त हूं आप जाकर देखिए न कौनननन…..

तभी प्रगति को याद आता हैं शायद राघव आया होगा। जल्दी से आधी फूली रोटी को उतर दरवजा खोलने भागती हैं। प्रगति को दरवाज़े की और भागते देख अटल जी उछल कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं "भाग्य श्री एक आध रोटी बोटी फट गई जो इस तरह भागे जा रहीं हों।"

प्रगति कुछ नहीं बोलती सीधा दरवाज़े की ओर बड़ जाती हैं तब अटल जी बोलते हैं "अजीव औरत है घर की मुखिया को कोई भाव ही नहीं दे रही लगता है धाक काम हो गया हैं फिर से धाक जमाना पड़ेगा।"

प्रगति दरवजा खोलती हैं सामने राघव को खड़ा देखकर बोलती हैं "तुझे जल्दी आने को कहा था फिर भी तू देर से आया खुद गलती करता हैं फिर बोलता हैं पापा मुझे बेवजह सुनते हैं।"

राघव "क्या पापा आ गए आज तो लग गई ढंग से।"

राघव अदंर आ जाता हैं। प्रगति किचन की और चल देती हैं। राघव अटल जी के पास जाता हैं। राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"

बाप की बात सुनाकर राघव एक पल के लिए ठिठक जाता हैं फिर आगे बड़ मिठाई का डब्बा खोल एक टुकड़ा मिठाई का निकल पापा की ओर बड़ते हुए बोला "पापा मुझे जॉब मिल गया हैं"

अटल जी मन में "मैं भी तो यही चाहता था में बहुत खुश हूं लेकिन अपनी ख़ुशी तेरे सामने जाहिर नहीं कर सकता।"

अटल जी राघव के हाथ से मिठाई का टुकड़ा ले लिया और मुंह भिचकाते हुए बोला "ओ तो मेरे घर के चिराग को रोशन होने का रस्ता मिल गया वैसे किस कमबख्त ने तुम जैसे नलायक को नौकरी दे दिया मैं होता तो जॉब न देकर धक्के मर कर बाहर निकाल देता।"

पापा की बात सुन राघव की खुशी पल भर में टूट गया। मिठाई का डिब्बा वहीं पटका और आंसू बहाते हुए रूम को भाग गया। अटल जी मुस्कुराते हुए गिरे मिठाई को उठाते हुए तेज आवाज में बोला "एक ढेला कमा नहीं पाते और गुस्सा देखो महाशय का, खरीदने मे पैसे नही लगे थे जो फेक कर चल दिया। फिर धीमी आवाज़ में बोला "बेटा तुम्हें ताने देते हुए मेरा दिल कितना दुखता हैं मैं ही जानता हूं। लेकिन मैं तुम्हे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते हुए देखना चाहता हु। मैं चाहता हु जो मैं नहीं कर पाया वो तुम करके दिखाओ यही उम्मीद तो मैं तुमसे करता हूं।"

मिठाई उठाकर अटल जी पलटे तो पीछे प्रगति को खड़ा देखकर उनकी मुस्कान फीका पड़ गया। प्रगति पास आकार बोली "मिल गई अपके दिल को शांति मेरा बेटा कितना खुश था अपने एक पल में ही उसकी सारी खुशी को चखना चूर कर दिया। क्यों करते हो? आपका दिल नहीं पसीजता किस मिट्टी के बने हो जो थोडा भी नहीं पिघलता।"

अटल "तुम्हारा भाषण खत्म हो गया हों तो कुछ खाने को दे दो या मिठाई खाकर ही सो जाऊ।"

प्रगति "बन गया है अभी देती हुं मन भर कर ठूस लेना न ठूस पाओ तो मूझसे कहना मैं मदद कर दूंगी।"

प्रगति किचन की और चल देती हैं। उनको ऐसे जाते देखकर अटल जी धीमे आवाज में बोलते हैं। "भाग्य श्री तुम भी मुझे समझ नहीं पाई क्यो करता हूं मैं ऐसा जिस दिन तुम जान पाओगे उस दिन सबसे ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा।"

प्रगति खाना लगा देती हैं। तन्नु को बुलाया जाता हैं। तन्नु के आने पर प्रगति दोनों को खाना देती हैं फिर एक थाली में खाना लगाकर जाने लगाती हैं तब अटल जी उन्हें रोकते हुए कहते हैं "थाली कहा लेकर जा रही हों थाली यह रखो और राघव को बुलाकर लाओ आज वो हमारे साथ बैठ कर खायेगा।"

प्रगति "लगता है सुनने में कुछ कमी रह गई जो उसे यह बुलाकर फिर से सुनना चाहते हों। बिना उसको खरी खोटी सुनाए अपका खाना नहीं पचता होगा।"

अटल "मुझे भाषण सुनाने के वजह जीतना कहा गया है करों।"

प्रगति जाकर राघव को आवाज देती हैं लेकिन राघव दरवजा नहीं खोलता तब प्रगति बोलती हैं "बेटा तेरे पापा साथ में खाना खाने बुला रहें हैं। जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से गुस्सा करेंगे।"

राघव "मुझे उनके गुस्सा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता आप जाकर उन्हे खिला कर खुद भी खा लेना मुझे भूख नहीं है मेरा पेट उनकी बातो से भर गया हैं।"

प्रगति कई बार आवाज देती हैं लेकिन राघव न कुछ बोलता हैं न ही बाहर आता हैं। थक हर कर प्रगति वापिस आ जाती हैं। खाली हाथ वापिस आया देखकर अटल जी पूछते हैं "राघव क्यो नहीं आया उसे भूख नहीं हैं क्या?

प्रगति "नहीं हैं भूख अपकी बातो से उसका पेट भर गया हैं। आप भी भर लो अपना पेट।"

प्रगति की बात सुनाकर अटल जी थाली धकेल कर उठ जाते हैं। हाथ धोकर कमरे में चले जाते हैं। प्रगति उनको जाते हुए देखती रह जाती ही। तन्नु ने जीतना खाया था उतने में ही विराम देकर उठ कर चाली जाती हैं। प्रगति एक बार और राघव को खिलाने की कोशिश करती हैं। लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता हैं। तब प्रगति सब कुछ बटोरकर किचन में रख कर सोने चाली जाती हैं।

विधि का विधान देखो जहां दिन हर्ष और उल्लास में बिता, रात होते ही रात के अंधकार में सब काला पड़ गया सारा हर्ष उल्लास रात्रि के सन्नाटे में खो गया। घर के चारों सदस्य में से किसी के आंखो में नीद नहीं था सब अपने अपने सोचो में गुम थे। ऐसे ही रात बीत जाता हैं। एक नई सुबह नई उम्मीद के साथ आता हैं। सुबह भी राघव कमरे से बाहर नहीं आता। अटल जी तोड़ा बहुत नाश्ता करके कहीं चले जाते हैं। जाते वक्त बोलकर जाते हैं राघव को खाना खिला देना कल से कुछ नहीं खाया हैं। अटल जी के मुंह से ये बात सुनाकर प्रगति और तन्नु भौचकी होकर उन्हे देखने लगती हैं। क्योंकि अटल जी के मुंह से यह बात बहुत दिनों बाद निकला था जब वो खुद से राघव को खान खिलाने के लिए कहा हों।

अटल जी के जाते ही प्रगति एक थाली में नाश्ता लगाकर राघव के कमरे की ओर जाती हैं तन्नु भी उनके पीछे पीछे जाती हैं। दोनों मां बेटी दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ठोकने लगती हैं। जैसे दोनों में प्रतियोगिता चल रहीं हों कौन पहले दरवाजा खुलवाती हैं। राघव अभी अभी सो कर उठा था और अंगड़ाई ले रहा था। आंख मलते हुए बोला "अजीब मुसीबत हैं दरवजा नहीं ढोल हों जिसे देखो बे सुर ताल बजाते रहते हैं। अभी आया दो पल वेट करों।"

तन्नु "भईया जल्दी दरवाजा खोलो देखो बाहर मदारी आया हैं। बंदर गुलाटी मार मार कर खेल दिखा रहा हैं।"

राघव दरवाजा खोल कर "कहा हैं बंदर चल मुझे भी खेल देखना हैं।"

तन्नु "हे हे हे बुधु बनाया बडा मजा आया बुधु बनाया……

राघव "तन्नु तू ये रोज रोज नए नए पैंतरे कह से लाती हैं।"

प्रगति "चुप कर कल रात से मैं भूखी हुं और तुम दोनों को अपनी अपनी पड़ी हैं। राधव तू दिन चढ़कर डूबने को हो रहीं हैं और अब उठा रहा हैं।"

राधव "दिन डूबा नहीं है अभी अभी उगा है रात देर से सोया था सो उठने में देर हों गईं। प्रगति के हाथ में रखी नाश्ते के प्लेट देखकर कहा "आप ये नाश्ते की प्लेट लेकर पक्षियों को खिलाने जा रहे हों।"

प्रगति मुंह भिचकाते हुए बोली " हुहुनन मैं तो अपने बेटे को खिलाने आई थी जो रात से भूखा हैं। फिर तन्नु से बोली चल तन्नु बेटा जब इसे ही भूख नहीं हैं तो हम क्यों भूखा रहे।"

राधव पेट पर हाथ रखा " मां भूख तो बहुत तेज लागी है तभी तो रात भर सोया नहीं अभी अभी सोया था और आप दोनों ने धाबा बोल दिया।"

तन्नु "खी खी खी….

प्रगति तन्नू को आंखे दिखाती हैं तन्नु चुप चाप खड़ी हों जाती हैं। जैसे वो कुछ जानती ही न हों बिल्कुल अबोध बालिका हों। तब जाकर कही राघव को जल्दी से तैयार होकर आने को कहती हैं। मां के कहते ही राघव "आप की आज्ञा का पालन अति शीघ्र होगा माते।"

राघव के कहने का ढंग निराला था इसी निराले पान ने दोनों मां बेटी के लवों पर मंद मंद चलती वायूरिया समान मुस्कान ला दिया। मुस्कुराते हुए दोनों चल दिए राघव सीधा बाथरूम में घुस गया। यहां प्रगति ने सारी तैयारी कर लिया था फिर बैठे बैठे प्रतिक्षा कर रहीं थीं। भूख बड़ी जोरो की लगी थी पर खां नहीं सकती थीं बेटा जो रात से भूखा था। बेटा आया उसको खिलाया तब जाकर निवाला प्रगति के पेट में उतरा। नाश्ते के दौरान विभिन्न विषय पर वार्तालाप हों रहा था। थोड़ी चुगली छीना झपटी हुआ और अटल भवन टहको से गूंज उठा हंसी ख़ुशी से तीनों ने पेट भर नाश्ता किया जो कल रात से अन्न के दाने के लिए तरस रहा था। विभिन्न प्रकार की क्रयकलाप करते हुए तीनों नाश्ते के काम से निपट चुके थे। राघव कहीं जा रहा था। तब प्रगति रोकते हुए बोली "पापा की डांट से बचना चाहते हों सुपुत्र, तो चरण को अपने कहीं बाहर न लेकर जाओ। घर की साफ सफाई में थोडा दो साथ, चलो मिलकर घर को चमकाए आज।"

प्रगति के कहने के स्टाइल से दोनों बेटा बेटी हंस हंस कर लोट पोट हों गए। कोई पेट पकड़ कर हंसे तो कोई रुक रूक कर हंसे एक बार फ़िर से अटल भवन हंसी ठहाकों से गूंज उठा। कुछ वक्त तक यह दृश्य चलता रहा फिर कही जाकर रुका। रुकते ही प्रगति झाड़ू पोछा बाल्टी लेकर आई, तीनों ने अपना अपना काम बांट लिया और शुरू कर दिया सफाई अभियान, कोई जाले निकले तो कोई झाड़ू मारे, दोनों भाई बहन बीच बीच में लड़ बैठे तब प्रगति उन पर भड़क जाए कुछ वक्त तक सही चले फिर वहीं मजरा शुरू हों जाए। प्रगति सर पर हाथ मार दोनों को आंख दिखाए और अपने काम में डाट जाएं। किया किया न किया दोनों भाई बहनों ने लेकिन अंत में घर को चमका ही दिया। कचरे का कहीं कोई नामों निशान नहीं जला कभी था की नहीं इसकी भी कोई निशानी नहीं पोछा ऐसा मारा मानो फर्श नहीं आईना लगा हों, फर्श में देखकर ही चहरे को संवारा जा सकता हैं।

सफाई का कार्य समाप्त हुआ जिसमें तीनों के बदन का कोना कोना गंदा हों गया। साथ ही थक भी बहुत गए थे आखिर धमाचोकड़ी जो इतनी मचाई थीं। घर की सफाई के बाद आई बदन की साफ सफाई की बारी तो तीनों बारी बारी बाथरूम गए और बदन को साफ कर बाहर आए।



घर और बदन की सफ़ाई के साथ आज की अपडेट की समाप्ति की घोषणा करता हूं। सांस रहीं तो फिर मिलेंगे कुछ ओर शब्दकोष के साथ तब तक के लिए मैं लेता हूं विदा। आप अपना काम करना न भूलिएगा मजा आए तो कुछ शब्द छोड़ जाइएगा।
Awesome Updateee

Atal ji apne bete ke saamne apni khushi jaahir nhi karna chahte hai.

Baap kabhi bhi bete ke saamne apni khushi jaahir nhi karta par ek samay mein kar bhi dena chahiye. Har ek bachha chahta hai ke uske maa baap usse din mein 1 baar hi sahi usse pyaar se baat karle aur yehi chiz Raghav chahta tha par usko woh nhi mila.

Raghav ko dukhi dekh kar Atal ji ko bhi bura laga par woh shakt rahe.

Dekhte hai aage kyaa hota hai.
 

Jaguaar

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अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत !
:lol1: :lol1: :lol: :lol:
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अप्रतिम अप्रतिम अप्रतिम

बिना अटल जी के करारे तानो के तसल्ली सी नही हो रही थी पिछ्ले दो अपडेट मे 😝😝😝
अटल जी भी बडे अटल है , इतने अटल की भावनाओ को जाहिर तक नही होने देते

राघव जी के उम्मीद की मिठाई अटल जी को पसंद तो आई लेकिन शादी वाले फूफा के नखरे दिखाते हुए मिठाई खा कर भी कडवा उगल दिये
खैर पिता के प्यार का अपना तरीका होता है , लेकिन अटल जी की सख्ती कुछ ज्यादा ही है ।

आज छूटकी की मस्तियाँ और मा का अपने लिये इतराना ,, बहुत ही मनमोहक दृश्य रहा हो

अब जो दिवाली की सफाई हो गयी है तो हम भी उम्मीद करते है कि अटल जी के अकल पर पोछा लग जाये तो ये दिवाली होगी खुशियो वाली

कुल मिला कर बहुत ही मजेदार अपडेट
वही ताजगी वही अह्सास , और रसोई का युद्ध बहुत ही उत्तम
कहानी मजा तब ही है जब लेखक किरदार को उसकी भुमिका मे सजीव कर दे , कुछ ऐसा ही हुआ आज ,,हर किरदार ठीक उसी रूप मे मिला जैसा कहानी के सुरु मे उनका विवरण मिला था ।


ऐसी ही अपने निराले अंदाज मे लिखते रहिये दोस्त
बहुत खुब 😍

बहुत बहुत शुक्रिया बड़े भाई

आप भी अटल के ताने सुनना चाहते थे ये अच्छी बात हैं। मैं भी ढूंढ रहा था लेकिन अटल जी कहीं मिल ही नहीं रहें थे बड़े मुस्किल से पकड़ कर लाया हूं 🤪🤪

ये तो जग जाहिर हैं पापा कभी कभी चाहकर अपनो प्यार दिख नहीं पाता वैसा ही व्यवहार अटल जी ने किए हां मिट्ठी खाकर कड़वी बातें उगल दी ये सही नहीं किया 😁

दिवाली का पोछा घर में लग गया यह पोछा अटल जी दिमाग पर कितना लगेगा यह तो आगे पता चलेगा।

बहुत बहुत शुक्रिया बड़े भाई
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Awesome Updateee

Atal ji apne bete ke saamne apni khushi jaahir nhi karna chahte hai.

Baap kabhi bhi bete ke saamne apni khushi jaahir nhi karta par ek samay mein kar bhi dena chahiye. Har ek bachha chahta hai ke uske maa baap usse din mein 1 baar hi sahi usse pyaar se baat karle aur yehi chiz Raghav chahta tha par usko woh nhi mila.

Raghav ko dukhi dekh kar Atal ji ko bhi bura laga par woh shakt rahe.

Dekhte hai aage kyaa hota hai.

अटल जी को शक्त रहना ही था आखिर उन्होंने उम्मीद ही इतनी बड़ी जो लगा रखी हैं। अटल जी अटल न रहते तो शायद राघव जिस ख़ुशी की मिठाई बांटे फिर रहा हैं वो नही बांट पता।

बहुत बहुत शुक्रिया बड़े भाई ऐसे ही साथ बने रहिए।
 
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