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शाम को मम्मी के उठाने से मेरी आंख खुली।
मम्मी - उठ जा बेटी देख शाम हो गई है। अब ये बात गांठ बांध ले लड़कियां चाहें कितने भी बजे सोएं या पूरी रात जागें लेकिन घर का काम उन्हीं को करना पड़ता है। अब तेरी शादी हो गई है तेरा पति है। उसके सारे काम तुझे ही करने होंगे। फिर चाहें दिन हो या रात हो। उसकी जिम्मेदारी अब तुझ पर है।
फिर हम रूम से बाहर आए और चाय पी फिर डिनर की तैयारी शुरू हुई। जिसमे मम्मी ने मुझसे मीठा बनवाया। खाने की टेबल पर दादा, दादी, ताऊ जी, पापा, चाचा, कुमुद, अरुण, पीहू दीदी, रूही और सुशीला आंटी बैठे थे।
मम्मी - देख बेटा तेरी अब शादी हुई है एक बात और सुन ले अब से तू कुमुद के खाना खाने के बाद ही खाना खाएगी। अब ये सोंच रही है ना ऐसा क्यों तो पत्नियां हमेशा पति के बाद खाना खाती हैं। आज के लिए तुझे छूट है। अगर कुमुद तुझे साथ बिठा कर खाने के लिए कहता है तो अलग बात है। OK
मैं - जी मम्मी।
फिर हम खाना ले कर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगे। और मुझे कुमुद के पास बिठा दिया गया खाने के लिए।
दादी और मम्मी की बात इशारों में हुई पता नहीं क्या बात हुई पर दादी शांत हो गईं।
सबने खाना खाया तो मम्मी ने खीर दी सबको खाने के लिए।
मम्मी - ये खीर खा कर बताइए कैसी बनी है ये हमारी बेटी ने बनाई है।
सब बड़े एक्साइट हो गए खीर खाने के लिए। सबको खीर दी गई। सब कुमुद की तरफ देखने लगे कि कुमुद का क्या रिएक्शन है।
कुमुद - delicious taste. बहुत स्वादिष्ट बनी है खीर।
कुमुद के खीर की तारीफ करते ही सब खीर पर टूट पड़े।
दादी - सचमें बहुत स्वादिष्ट है खीर।
सभी के रिएक्शन सेम ही रहे। दादी ने, बड़ी मम्मी ने, चाची ने, सुशीला आंटी ने और मम्मी ने मुझे पैसे और गिफ्ट दिए। जब सबने कुछ न कुछ दे दिया तो सबकी नज़र कुमुद की तरफ गई।
रूही - ऐ जीजा जी मेरी बहन को क्या दे रहे हो इस खीर के लिए।
कुमुद - मेरा सब कुछ इसका ही है तो और क्या दूं।
रूही - ऐसा नहीं चलेगा। देना तो पड़ेगा।
मैं इन दोनो की नोक झोंक सुन कर मुस्कुरा रही थी।
कुमुद - अच्छा ठीक है मैं वो गिफ्ट रात में देने वाला था लेकिन अब इतनी जिद कर रही हो तो अभी दिए देता हूं। रात के लिए कुछ दूसरा देख लूंगा।
ये बोल वो मेरे कमरे में गए और कुछ पेपर्स ले कर आए।
कुमुद - ये मेरे घर के पेपर्स हैं और जितनी भी प्रॉपर्टी है मेरे पास सब मैने अवंतिका के नाम कर दी है।
ये सुन सबके मुंह खुल गए।
मम्मी - पर बेटा ये सब की क्या ज़रूरत थी।
मैं - मैं ये नहीं ले सकती।
कुमुद - ये मैं अपनी खुशी से दे रहा हूं बहुत पहले से मैने ये सब डॉक्यूमेंट्स बनवा लिए थे आज ही के लिए।
सुशीला आंटी - मेरे पास भी कुछ है देने के लिए वो तो मैं देना ही भूल गई थी।
मम्मी - तूने गिफ्ट दे तो दिया अब क्या बाकी है।
सुशीला आंटी - है कुछ।
ये बोल वो भी कोई पेपर्स ले कर आईं। मैं कुछ कुछ समझ गई थी कि हो न हो ये भी सुशीला आंटी के घर के पेपर्स हैं।
सुशीला आंटी - ये ले बेटा तेरे लिए मेरी तरफ से ये छोटा सा गिफ्ट।
मैं - ये किस के पेपर्स हैं आंटी।
सुशीला आंटी - खुद ही देख लो।
मैने पेपर एनवेलप से निकल कर देखे तो जो मैने सोंचा था वही हुआ। ये सुशीला आंटी के घर के पेपर्स थे वो भी मेरे नाम पर।
मैं - मैं ये नहीं ले सकती आंटी वो आपका घर है। आपकी और अंकल की यादें होंगी उसमें।
सुशीला आंटी - अब ये घर मेरा है बेटी, तूने बचपन में मेरा दूध पिया है तो इस नाते मैं भी तेरी मां जैसी हो गई। तेरे पापा मुझे रखी बंधवाते हैं वो मुझे बहन मानते हैं।और मां या बुआ कुछ भी दें चुपचाप ले लेना चाहिए। और वैसे भी तुम लोगों ने दिल से मुझे इस घर में पनाह दी है। मैने सिर्फ वो घर ही दिया है बाकी जो कुछ भी है मेरे नाम पर है। इसलिए चुपचाप रख लो वरना थप्पड़ खा कर लेना पड़ेगा।
सुशीला आंटी की बात सुन सब इमोशनल हो गए। मैं उठ कर सुशीला आंटी के गले लग गई। मम्मी भी उठ कर सुशीला आंटी के पास आ गईं।
अरुण - यार सच कहा है लोगों ने औरतें कितनी ड्रामेटिक होती हैं।
सब अरुण को घूरने लगे।
अरुण - क्या। सही तो कहा है मैने जहां देखो जब देखो रोना शुरू।
बड़ी मम्मी - चुप करके बैठ, तू बड़ा जानता है औरतों को हां। एक थप्पड़ मारूंगी अकल ठिकाने आ जायेगी।
बड़ी मम्मी की डांट सुन अरुण टेड़ा मुंह कर के बैठ गया।
खाना खा कर मम्मी और सुशीला आंटी बर्तन ले कर किचेन में रखने गईं। सब लोग उठ कर डाइनिंग हॉल में बैठ गए। मैं अपने कमरे में चली गई क्योंकि मुझे सबके साथ बैठने में शर्म आ रही थी।
किचन में बर्तन रखने के बाद मम्मी ने पीहू दीदी और रूही को मुझे तैयार करने के लिए कहा।
मम्मी - पीहू बेटा, रूही बेटा जाओ अवंतिका को तैयार करो जा कर।
दोनो - जी चाची।
फिर दोनो मेरे कमरे में आईं और मुझे वो साड़ी जो मैने शादी के टाइम पहनी थी फिर से पहनाई और मेकअप किया।
रूही - (मेकअप करते टाइम) देख ले उस दिन तूने मेरी चूत की सील तोडी थी मुझे बहुत दर्द हुआ था अब आज तेरी सुहागरात है। हमारे जीजा जी तेरी सील तोड़ेंगे। वहां पर पूरे फॉर्म हाउस पर सिर्फ हम लोग ही थे तो मेरी चीख कोई नहीं सुन पाया लेकिन तेरी चीख सब सुनेंगे।
पीहू दीदी - चुप कर क्यों डरा रही है उसे। देख अवंतिका दर्द तो होगा ही लेकिन सेक्स के फर्स्ट टाइम ही होता है। अगर तूने अपने पति के सामने खुद को मजबूत कर के दर्द को छुपा लिया तो पति के नज़र में तेरी इज्जत बढ़ जाएगी। बाद में फिर जब भी करोगी तो फिर कुछ नहीं होगा और मज़ा आएगा।
ये दोनो मुझे तैयार करते जा रहे थे और कभी समझाते तो कभी डराते जा रहे थे। मुझे उनकी बातें सुन कर डर भी लग रहा था और एक्सिटमेंट भी हो रही थी।
पीहू दीदी - (मुझे तैयार करने के बाद) तुम कुछ देर बैठो यहां हम तुम्हें कुछ देर बाद ले जाएंगे तुम्हारे नए कमरे में।
मैं - हम्म।
वो दोनो मुझे छोड़ चली गईं। मैं बैठी उनका इंतज़ार कर रही थी। शायद करीब दो घंटे हो गए थे क्योंकि रात के 9 बज गए थे। पीहू दीदी आईं मुझे लेने और मुझे कुमुद के कमरे में ले कर गईं। कुमुद का कमरा मेरे कमरे से बड़ा और सुव्यवस्थित होता था जो आज बहुत अच्छे से सजा हुआ भी था। पूरे बेड पर फूल्स बिछे हुए थे और बीच में गुलाब से दिल बना हुआ था।
दीदी ने मुझे बेड पर बिठा दिया और मेरी साड़ी का पल्लू मेरे सर पर रख दिया घूंघट बना के। दीदी ने मुझे एक ग्लास में दूध ला कर दिया।
पीहू दीदी - देख अवंतिका तुझे सेक्स के बारे में जानकारी है। बस फर्क इतना है कि पहले तू लड़का थी एक लड़के की तरह तूने सेक्स लाइफ जी थी लेकिन अब से तू एक लड़की की तरह सेक्स लाइफ जिएगी। रूही ने तेरे साथ सेक्स करते टाइम जो किया था अब तुझे वो सब करना होगा अपने पति के साथ।
मैं - जी। जब मैने रूही के साथ वो सब किया था तब उसको बहुत दर्द हुआ था तो अब जब मेरे साथ वो सब होने जा रहे है तो मुझे कितना दर्द होगा।
पीहू दीदी - क्यों डर लग रहा है?
मैं - हां शायद।
पीहू दीदी - मुझे विश्वास है तुझ पर सब हैंडल कर लेगी तू। और कुमुद सब संभाल लेगा। तुझे भी। चल मैं चलती हूं। थोड़ी देर में आएगा कुमुद।
पीहू दीदी मुझे समझा कर चलीं गईं। मैं अपने आने वाले समय के लिए खुद को तैयार करने लगी। मैं पहले लड़का थी तो ये सोंचती थी कि कोई लड़की मेरे लिए ऐसे घूंघट में बैठ मेरा इंतज़ार करेगी। लेकिन किसे पता था कि घूंघट में बैठ मैं ही किसी का इंतज़ार करूंगी कि इस घूंघट को वो आकर उठाएगा और मेरे शरीर पर और मेरे जीवन पर पूर्ण अधिकार स्थापित करेगा। मम्मी ने आज कहा था कि आज के बाद मेरे जीवन में उसकी इजाज़त के विना कुछ भी नहीं होगा। अगर उसने किसी काम के लिए मना कर दिया तो मैं वो काम नहीं कर सकती हूं। मेरे गलत करने पर उसका मुझे डांटने का या फिर मारने का भी अधिकार होगा।
मैं ये सब सोंच ही रही थी कि कुमुद कमरे में आ गए। कुमुद को देख कर मैं कुछ सिमट गई थी।
मम्मी - उठ जा बेटी देख शाम हो गई है। अब ये बात गांठ बांध ले लड़कियां चाहें कितने भी बजे सोएं या पूरी रात जागें लेकिन घर का काम उन्हीं को करना पड़ता है। अब तेरी शादी हो गई है तेरा पति है। उसके सारे काम तुझे ही करने होंगे। फिर चाहें दिन हो या रात हो। उसकी जिम्मेदारी अब तुझ पर है।
फिर हम रूम से बाहर आए और चाय पी फिर डिनर की तैयारी शुरू हुई। जिसमे मम्मी ने मुझसे मीठा बनवाया। खाने की टेबल पर दादा, दादी, ताऊ जी, पापा, चाचा, कुमुद, अरुण, पीहू दीदी, रूही और सुशीला आंटी बैठे थे।
मम्मी - देख बेटा तेरी अब शादी हुई है एक बात और सुन ले अब से तू कुमुद के खाना खाने के बाद ही खाना खाएगी। अब ये सोंच रही है ना ऐसा क्यों तो पत्नियां हमेशा पति के बाद खाना खाती हैं। आज के लिए तुझे छूट है। अगर कुमुद तुझे साथ बिठा कर खाने के लिए कहता है तो अलग बात है। OK
मैं - जी मम्मी।
फिर हम खाना ले कर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगे। और मुझे कुमुद के पास बिठा दिया गया खाने के लिए।
दादी और मम्मी की बात इशारों में हुई पता नहीं क्या बात हुई पर दादी शांत हो गईं।
सबने खाना खाया तो मम्मी ने खीर दी सबको खाने के लिए।
मम्मी - ये खीर खा कर बताइए कैसी बनी है ये हमारी बेटी ने बनाई है।
सब बड़े एक्साइट हो गए खीर खाने के लिए। सबको खीर दी गई। सब कुमुद की तरफ देखने लगे कि कुमुद का क्या रिएक्शन है।
कुमुद - delicious taste. बहुत स्वादिष्ट बनी है खीर।
कुमुद के खीर की तारीफ करते ही सब खीर पर टूट पड़े।
दादी - सचमें बहुत स्वादिष्ट है खीर।
सभी के रिएक्शन सेम ही रहे। दादी ने, बड़ी मम्मी ने, चाची ने, सुशीला आंटी ने और मम्मी ने मुझे पैसे और गिफ्ट दिए। जब सबने कुछ न कुछ दे दिया तो सबकी नज़र कुमुद की तरफ गई।
रूही - ऐ जीजा जी मेरी बहन को क्या दे रहे हो इस खीर के लिए।
कुमुद - मेरा सब कुछ इसका ही है तो और क्या दूं।
रूही - ऐसा नहीं चलेगा। देना तो पड़ेगा।
मैं इन दोनो की नोक झोंक सुन कर मुस्कुरा रही थी।
कुमुद - अच्छा ठीक है मैं वो गिफ्ट रात में देने वाला था लेकिन अब इतनी जिद कर रही हो तो अभी दिए देता हूं। रात के लिए कुछ दूसरा देख लूंगा।
ये बोल वो मेरे कमरे में गए और कुछ पेपर्स ले कर आए।
कुमुद - ये मेरे घर के पेपर्स हैं और जितनी भी प्रॉपर्टी है मेरे पास सब मैने अवंतिका के नाम कर दी है।
ये सुन सबके मुंह खुल गए।
मम्मी - पर बेटा ये सब की क्या ज़रूरत थी।
मैं - मैं ये नहीं ले सकती।
कुमुद - ये मैं अपनी खुशी से दे रहा हूं बहुत पहले से मैने ये सब डॉक्यूमेंट्स बनवा लिए थे आज ही के लिए।
सुशीला आंटी - मेरे पास भी कुछ है देने के लिए वो तो मैं देना ही भूल गई थी।
मम्मी - तूने गिफ्ट दे तो दिया अब क्या बाकी है।
सुशीला आंटी - है कुछ।
ये बोल वो भी कोई पेपर्स ले कर आईं। मैं कुछ कुछ समझ गई थी कि हो न हो ये भी सुशीला आंटी के घर के पेपर्स हैं।
सुशीला आंटी - ये ले बेटा तेरे लिए मेरी तरफ से ये छोटा सा गिफ्ट।
मैं - ये किस के पेपर्स हैं आंटी।
सुशीला आंटी - खुद ही देख लो।
मैने पेपर एनवेलप से निकल कर देखे तो जो मैने सोंचा था वही हुआ। ये सुशीला आंटी के घर के पेपर्स थे वो भी मेरे नाम पर।
मैं - मैं ये नहीं ले सकती आंटी वो आपका घर है। आपकी और अंकल की यादें होंगी उसमें।
सुशीला आंटी - अब ये घर मेरा है बेटी, तूने बचपन में मेरा दूध पिया है तो इस नाते मैं भी तेरी मां जैसी हो गई। तेरे पापा मुझे रखी बंधवाते हैं वो मुझे बहन मानते हैं।और मां या बुआ कुछ भी दें चुपचाप ले लेना चाहिए। और वैसे भी तुम लोगों ने दिल से मुझे इस घर में पनाह दी है। मैने सिर्फ वो घर ही दिया है बाकी जो कुछ भी है मेरे नाम पर है। इसलिए चुपचाप रख लो वरना थप्पड़ खा कर लेना पड़ेगा।
सुशीला आंटी की बात सुन सब इमोशनल हो गए। मैं उठ कर सुशीला आंटी के गले लग गई। मम्मी भी उठ कर सुशीला आंटी के पास आ गईं।
अरुण - यार सच कहा है लोगों ने औरतें कितनी ड्रामेटिक होती हैं।
सब अरुण को घूरने लगे।
अरुण - क्या। सही तो कहा है मैने जहां देखो जब देखो रोना शुरू।
बड़ी मम्मी - चुप करके बैठ, तू बड़ा जानता है औरतों को हां। एक थप्पड़ मारूंगी अकल ठिकाने आ जायेगी।
बड़ी मम्मी की डांट सुन अरुण टेड़ा मुंह कर के बैठ गया।
खाना खा कर मम्मी और सुशीला आंटी बर्तन ले कर किचेन में रखने गईं। सब लोग उठ कर डाइनिंग हॉल में बैठ गए। मैं अपने कमरे में चली गई क्योंकि मुझे सबके साथ बैठने में शर्म आ रही थी।
किचन में बर्तन रखने के बाद मम्मी ने पीहू दीदी और रूही को मुझे तैयार करने के लिए कहा।
मम्मी - पीहू बेटा, रूही बेटा जाओ अवंतिका को तैयार करो जा कर।
दोनो - जी चाची।
फिर दोनो मेरे कमरे में आईं और मुझे वो साड़ी जो मैने शादी के टाइम पहनी थी फिर से पहनाई और मेकअप किया।
रूही - (मेकअप करते टाइम) देख ले उस दिन तूने मेरी चूत की सील तोडी थी मुझे बहुत दर्द हुआ था अब आज तेरी सुहागरात है। हमारे जीजा जी तेरी सील तोड़ेंगे। वहां पर पूरे फॉर्म हाउस पर सिर्फ हम लोग ही थे तो मेरी चीख कोई नहीं सुन पाया लेकिन तेरी चीख सब सुनेंगे।
पीहू दीदी - चुप कर क्यों डरा रही है उसे। देख अवंतिका दर्द तो होगा ही लेकिन सेक्स के फर्स्ट टाइम ही होता है। अगर तूने अपने पति के सामने खुद को मजबूत कर के दर्द को छुपा लिया तो पति के नज़र में तेरी इज्जत बढ़ जाएगी। बाद में फिर जब भी करोगी तो फिर कुछ नहीं होगा और मज़ा आएगा।
ये दोनो मुझे तैयार करते जा रहे थे और कभी समझाते तो कभी डराते जा रहे थे। मुझे उनकी बातें सुन कर डर भी लग रहा था और एक्सिटमेंट भी हो रही थी।
पीहू दीदी - (मुझे तैयार करने के बाद) तुम कुछ देर बैठो यहां हम तुम्हें कुछ देर बाद ले जाएंगे तुम्हारे नए कमरे में।
मैं - हम्म।
वो दोनो मुझे छोड़ चली गईं। मैं बैठी उनका इंतज़ार कर रही थी। शायद करीब दो घंटे हो गए थे क्योंकि रात के 9 बज गए थे। पीहू दीदी आईं मुझे लेने और मुझे कुमुद के कमरे में ले कर गईं। कुमुद का कमरा मेरे कमरे से बड़ा और सुव्यवस्थित होता था जो आज बहुत अच्छे से सजा हुआ भी था। पूरे बेड पर फूल्स बिछे हुए थे और बीच में गुलाब से दिल बना हुआ था।
दीदी ने मुझे बेड पर बिठा दिया और मेरी साड़ी का पल्लू मेरे सर पर रख दिया घूंघट बना के। दीदी ने मुझे एक ग्लास में दूध ला कर दिया।
पीहू दीदी - देख अवंतिका तुझे सेक्स के बारे में जानकारी है। बस फर्क इतना है कि पहले तू लड़का थी एक लड़के की तरह तूने सेक्स लाइफ जी थी लेकिन अब से तू एक लड़की की तरह सेक्स लाइफ जिएगी। रूही ने तेरे साथ सेक्स करते टाइम जो किया था अब तुझे वो सब करना होगा अपने पति के साथ।
मैं - जी। जब मैने रूही के साथ वो सब किया था तब उसको बहुत दर्द हुआ था तो अब जब मेरे साथ वो सब होने जा रहे है तो मुझे कितना दर्द होगा।
पीहू दीदी - क्यों डर लग रहा है?
मैं - हां शायद।
पीहू दीदी - मुझे विश्वास है तुझ पर सब हैंडल कर लेगी तू। और कुमुद सब संभाल लेगा। तुझे भी। चल मैं चलती हूं। थोड़ी देर में आएगा कुमुद।
पीहू दीदी मुझे समझा कर चलीं गईं। मैं अपने आने वाले समय के लिए खुद को तैयार करने लगी। मैं पहले लड़का थी तो ये सोंचती थी कि कोई लड़की मेरे लिए ऐसे घूंघट में बैठ मेरा इंतज़ार करेगी। लेकिन किसे पता था कि घूंघट में बैठ मैं ही किसी का इंतज़ार करूंगी कि इस घूंघट को वो आकर उठाएगा और मेरे शरीर पर और मेरे जीवन पर पूर्ण अधिकार स्थापित करेगा। मम्मी ने आज कहा था कि आज के बाद मेरे जीवन में उसकी इजाज़त के विना कुछ भी नहीं होगा। अगर उसने किसी काम के लिए मना कर दिया तो मैं वो काम नहीं कर सकती हूं। मेरे गलत करने पर उसका मुझे डांटने का या फिर मारने का भी अधिकार होगा।
मैं ये सब सोंच ही रही थी कि कुमुद कमरे में आ गए। कुमुद को देख कर मैं कुछ सिमट गई थी।