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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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Aap sharahna ke kabil bhi ho komal story vakei bahot habardast heनहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है , आपने शायद गलत समझा,
लिखने वालों से पढ़ने वाले ज्यादा जरूरी होते हैं, कोई लाख कलम घसीटे,... मंच पर खड़ा होकर गाये, अभिनय करे, कविता पाठ करे,... अगर श्रोता न हों, दर्शक न हों,
मान तो पाठक बढ़ाते हैं और आप ऐसे रससिद्ध, विज्ञ उत्साहवर्धन करने वाले पाठक हों तो फिर कहना ही क्या,...
मज़बूरी मेरी कहानी की थी, ... कुछ कहानियां या कहानियों के प्रसंग ऐसे होते हैं की उनके साथ उनके विपरीत मनस्थिति वाले प्रसंगों पर लिखना कठिन हो जाता है, मैं एक उदाहरण देती हूँ , फागुन के दिन चार लम्बी कहानी या उपन्यासिका में , एक प्रसंग था, मुम्बई में रेलवे स्टेशन पर आतंकी हमले का,... और वह दृश्य इतना कारुणिक था,... एक माँ अपनी बेटी को हॉस्पिटल में , शवगृहों में , जगह जगह ढूंढती है, और उसी कहानी का वो प्रसंग जहाँ, रीत के माता पिता दोनों बॉम्ब ब्लास्ट में मारे जाते हैं , उसका बाल सखा भी,... लोग कहते हैं की स्टेशन पर हुए बॉम्ब ब्लास्ट में मारा गया, उसके भी माता पिता और वो , दोनों परिवारों में अकेली बची,... यंत्रवत,... सबके शवों का अग्निदाह करती हो, ... कई पाठकों ने कहा उनके आँखों में आंसू आ गए,... और मेरी हालत भी,... तो उस समय, ...मैंने श्रृंगारजन्य कहानियां जो उस फोरम में चल रही थीं, उन्हें रोक दिया क्योंकि उन्हें विजुलाइज कर पाना कठिन होता है।
मोहे रंग दे भी एक इंटेस स्टोरी थी ख़ास तौर से शुरू के भागों में , इरोटिका, रोमांस और बीच में विछोह साथ में आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस , कन्वर्जेंस ऐसी बातों का मानवीय प्रभाव और उन पर गहन चर्चा तो उस के साथ भी इस कहानी को सुमेलित कर पाना मेरे लिए दुष्कर था.
और जोरू का गुलाम और सोलहवां सावन चल ही रही थीं।
तो मोहे रंग दे को ख़तम करने के बाद मैंने इसे शुरू किया क्योंकि दोनों की भाव भूमि एकदम अलग है
अभी भी मैंने एक छोटी कहानी, होली के रंग जो शुरू की है , वो एकदम नागरी परिवेश की है , पर वह होली की एक छोटी कहानी है,
यह कहानी भी मैं कोशिश करुँगी छोटी ही रहे,...
तो आभार आपका इस सूत्र पर पधारने के लिए,... एक तो मैं देवनागरी लिपि में लिखती हूँ, दूसरे स्टोरी के डेवलप करने में बहुत टाइम लगता है, और कहानी घटना प्रधान भी नहीं होती, ... तो पढ़ने वालों की संख्या कम होना स्वाभाविक है , पर मैंने इस फोरम के मित्रों का आभार करती हूँ की इस कहानी को उन्होंने बहुत चाव से सराहा,
और आप आ गए तो,...
Matlab nandoi ji ke lie bachi rahegi." लोगे , ... "
ये कच्ची उमर की लड़कियां , ... पल में तोला पल में पल माशा , ... मेरी छोटी बहन अपने जीजू को देखते हुए कस कस के खिलखिला रही थी , ...
मेरी छोटी बहन की बात सुन के ये मुस्कराने लगे
और मुझे एक और शरारत सूझी , मैंने इनसे इशारा किया और ये बगल की सीट से , सारे तकिये छुटकी के चूतर के नीचे
छुटकी के नितम्ब अब अच्छी तरह उठे हुए थे , उसके छोटे छोटे लौंडे टाइप चूतड़ वैसे भी लौंडो के होश उड़ाए रहते थे और ये तो वैसे भी पिछवाड़े के प्रेमी थे ,
हालत तो इनकी खराब होनी ही थी ,
दोनों मुलायम गोरे गोरे मखमली नितम्बों के बीच , बस बहुत पतली सी दरार , वो भी मुश्किल से नजर आती ,
मैंने पूरी ताकत से उनकी साली के दोनों नितम्बों को फैलाया और उनकी आँखे एकदम उसकी कसी कोरी दरार पर चिपकी , ...
मेरी जो ऊँगली मेरी छोटी बहन की चूत में अंदर बाहर हो रही थी , चूत रस से एकदम गीली हो रही थी , उसे निकाल के मैंने उसी दरार पर रगड़ना शुरू कर दिया और वो दरार रस से एकदम गीली अब चमकने लगी , ... दोनों अंगूठों के सहारे एकदम पूरी ताकत से मैंने उसे फैलाने की कोशिश की , लेकिन सूत भर भी दोनों नितम्ब अलग नहीं हुए , ऐसी कसी चिपकी ,
लंड एकदम फनफनाया , मैंने उनकी ओर दरार को दिखाते इशारा किया जैसे पूछ रही होऊं ,
" लोगे , ... "
और कोई मौका होता तो अब तक कब ये , ... पिछवाड़े के लिए तो चीख पुकार रोने धोने से इन्हे कोई फरक नहीं पड़ता था , और पड़ना भी नहीं चाहिए
असली कारण मुझे मालूम था , पर इन्हे नहीं मालुम था की मुझे मालूम है ,
दरवाजे के पीछे से मैंने इनकी और नन्दोई जी की एक एक बात सुनी थी , इन्होने नन्दोई जी से प्रॉमिस किया था , मेरी छोटी बहन के कोरे पिछवाड़े का ,
और ये सोच के मेरी और धुकधुकी लगी थी , गांड मारने में तो नन्दोई जी इनसे भी , ...
एकदम बेरहम , बल्कि लड़की जितना चीखे चिल्लाये उतना ही उन्हें मजा आता था , और सबसे बड़ी बात ,... और सब बातों में इनके औजार का कोई मुकाबला नहीं था , लम्बाई में बित्ते भर का , आधे पौन घंटे से पहले कभी आज तक ,... बिना दो तीन बार झाड़े ये कभी झड़ते नहीं थे ,...
लेकिन मोटाई में नन्दोई जी का इनसे भी २२ था , ... जैसे कोई कोक का कैन हो , और ऊपर से सुपाड़ा भी बहुत मोटा , खूब कड़ा ,...
मैं तो शादी के तीसरे चौथे दिन से गाँड़ मरवा रही थी इनसे ,... लेकिन होली के दिन जब नन्दोई जी ने मेरी गांड मारी , मेरी आँख के आगे दिन में तारे नाच गए ,
ऊपर से उनकी बीबी , मेरी मंझली ननद और उन्हें चढ़ा रही थी , ... फिर थोड़ी देर गाँड़ मारते मारते पूरा पेल के जब वो गोल गोल घुमाते तो मेरी समझ में नहीं आ रहा था , लेकिन तब समझ में आया जब ननद ने मेरे नथुने बंद किये चूँची पे जोर से काटा , और नन्दोई ने गांड में , सब कुछ लिसड़ा लीपा पोता ,... और मुझे दिखा के मेरे मुंह में ,... जब तक सब चाट के मैंने चिकना नहीं किया तब तक नन्दोई ने निकाला नहीं और निकाल के फिर मेरी गाँड़ में ,...
और वही नन्दोई जी इस कच्ची कली की कोरी अनचुदी गाँड़ फाड़ने वाले थे ,
लेकिन आज मुझे ये जानते हुए इन्हे छेड़ने में ललचाने में मजा आ रहा था , कोरी कसी की गाँड़ मारने का मौका और ये ,...
मैंने साफ़ साफ़ पूछ लिया
" आपकी साली अगवाड़े के लिए मना कर रही है तो पिछवाड़े के लिए क्या ,.. आइडिया है "
" है तो स्साली की बहुत मस्त , एकदम ,... "
मारे जोश के उनकी बोली नहीं निकल पा रही थी , मेरी उँगलियाँ वो कोरी कोरी चिकनी दरार सहला रही थी , उन्हें दिखा रही थी ,
लेकिन मेरी बहन ही बीच में चीख पड़ी
" नहीं दी , अभी कुछ भी नहीं , प्लीज बहुत लग रहा है,... "
" अरे यार तेरे सामने तेरे जीजू ने तेरी सहेली लीला का लिया , देख उसने कैसे पूरा लंड लील लिया , ... और तुझे मालूम नहीं तेरे जीजू ने मंझली की ,... "
मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की मेरी छोटी बहन खिलखिलाते बोली , ...
" मुझे सब मालूम है , मंझली ने खुद बताया यहीं स्टेशन पर , मैं उसे खूब चिढ़ा रही थी देख मैं छोटी हूँ लेकिन जीजू के साथ जा रही हूँ उनके साथ आम के बाग़ में , गाँव में खूब मजे करुँगी , मिश्राइन भाभी ने तो अब तो मुझे इम्तहान देने भी भी नहीं आना पडेगा , और तू यहाँ बैठ के किताबों के बीच ,... तो मंझली चिढ के बोली , अरे तू क्या करेगी मजे , तेरे साथ तो जीजू ने सिर्फ आगे वाली होली खेली , मेरे साथ तो आगे वाली भी पीछे वाली भी , पीछे अभी भी जीजू की पिचकारी का सफ़ेद रंग भरा पड़ा है , अब बता जीजू से किसने ज्यादा मस्ती की , तूने की मैंने ,... "
" अरे इसी लिए तो कह रही हूँ , .. ले ले न पीछे वाले छेद में , तेरी मंझली की पट्टा पट्टी हो जाये , बुर मान लिया तेरी दुःख रही है लेकिन गाँड़ में क्या गया है , मरवा ले न जीजू से गाँड़ , देख तेरे जीजू ने कित्ता मस्त खड़ा किया है ,... "
मैंने उनका खूंटा अपनी छोटी बहन को दिखाते हुए एक बार फिर ललचाया ,
" नहीं दी , आज नहीं , बस आज रात नहीं मरवाउंगी , कल से मैं जीजू को एकदम मना नहीं करुँगी " छुटकी फिर बोली , लेकिन अबकी उसके मना करने में बहाना ज्यादा था ,
और अब मैं उनके पीछे पड़ गयी , ये जानते हुए भी उनका कितना भी मन कर रहा होगा , मेरी बहन का पिछवाड़ा आज रात कोरा ही रहेगा ,
" हे बोलो न , क्या तुझे छुटकी का पिछवाड़ा अच्छा नहीं लग रहा है या इसकी गाँड़ मारने का मन नहीं कर रहा है , एक बार तू हाँ कर दे तो फिर , ... '
" पिछवाड़ा तो मेरी स्साली का बहोत ही मस्त है ऐसी कसी कसी कुँवारी कच्ची गाँड़ , स्साली की तो कपडे के ऊपर से ही देख कर ततनतना जाता है , लेकिन ,... "
असली बात वो कैसे कहते , लेकिन मै चिढ़ाने का मौका क्यों छोड़ती , मैं फिर उनके पीछे पड़ गयी
" अरे साफ साफ़ बोलिये , गाँड़ मारने का मन कर रहा है की नहीं ,... "
लेकिन एक बार फिर उनकी साली ने उन्हें बचा लिया और साली जीजा की जुगलबंदी के आगे मेरी क्या चलती , छुटकी बोली
" जीजू , दी बार बार आपसे बोल रहीं हैं न गाँड़ मारने , गाँड़ मारने के लिए ,... तो मार लीजिये न ,... उनकी गांड , असल में दो दिन उनका उपवास रहा , इसलिए मेरे बहाने से वो अपनी बात कर रही हैं , शाम को वो और रीतु भाभी ने मिल कर मेरी ,... तो चलिए हम दोनों मिल कर ,... आज मेरे सामने एक बार हचक कर गाँड़ मार दीजिये न , प्लीज जीजू , स्साली की बात टालिएगा नहीं। "
Maza aa gya komal jiपिछवाड़े की कुटाई
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मुस्कराती ननद, नन्दोई के साथ अपने कमरे में, और ये बोले,
" तेरी ननद की तो कल देखी जायेगी, आज अभी तो ननद की भाभी अपना पिछवाड़ा बचाएं "
मैं भी जानती थी और ये भी जानते थी की न मैं बचाने वाली न ये छोड़ने वाले, अरे बचाने के लिए थोड़ी मेरी माँ ने इनके पास भेजा था, पर मैं बोली,
" तो कल ननद के पिछवाड़े पर ननद के भइया चढ़ेंगे, पक्का "
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और खिलखिलाते हुए अपने कमरे में इनके आगे आगे , मैं खुद पलंग को निहुर के पकड़ के,
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दरवाजा भी इन्होने नहीं बंद किया , इत्ती जल्दी मची थी इस जल्दबाज को,... बस मेरी साड़ी पकड़ के खींचनी शुरू की और उनसे तेज मैंने अपनी साड़ी उतारकर वहीँ फर्श पे, साया मोड़ के उन्होंने कमर तक कर दिया, ब्लाउज की आधी बहने तो छेड़छाड़ में इनकी बहना ही खोल देती थीं,... बाकी इन्होने, टाँगे मैंने खुद अच्छी तरह फैला दीं,...
और फिर क्या करारा धक्का लगा मेरे पिछवाड़े, इनके जीजा की मलाई अभी तक पिछवाड़े बजबजा रही थी, बस बिना किसी चिकनाई के मोटा मूसल पांच छह धक्कों में आधे से ज्यादा अंदर,...
बहुत ताकत थी इस स्साले सास के लौंडे में , सच में मेरी सास ने गदहे घोड़े से चुदवा चुदवा के इन्हे पैदा किया था , या क्या पता पंचायती सांड़ के पास गयी हों,... और जब आधे से ज्यादा करीब साढ़े चार पांच इंच घुस गया था, मेरी गाँड़ फ़टी जा रही थी,... परपरा रही थी ,
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तो बस उन्होंने मेरी दोनों चूँची कस के पकड़ ली , और लगे मीजने,
इतना मज़ा आ रहा था मैं बता नहीं सकती, जितना कस के ये मेरे जोबन मसलते थे उतना ही मजा आता था, शादी के पांच छह महीनों में ही मेरी कप साइज बढ़ के सी से डी हो गयी थी, ननद मुझे चिढ़ाती भी थी, भाभी यही हाल रही है तो साल भर में भैया एफ साइज कर देंगे,...
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कर दें तो कर दें न , मेरा साजन चाहे जो कुछ करे,... फिर मैं कौन सी ब्रा पहनती थी, न घर में न बाहर,...
उनकी उँगलियों का भरे भरे गदराये जोबन पर दबाव और जिस तरह से वो दुष्ट, अपनी तर्जनी और मंझली ऊँगली के बीच में कैंची की तरह फंसा फंसा के मेरे कंचे ऐसे बड़े कड़े निप्स को दबाता था,
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मस्ती से जान निकल जाती थी, लेकिन मैं कौन थी, थी तो अपने साजन की सजनी, अपनी माँ की बेटी,... तो अबकी मायके में माँ ने पिछवाड़े का जो गुन ढंग सिखाया था, वो सब, कैसे खूंटे को आराम से पहले हलके हलके दबाओ, फिर कस के निचोड़ो, खुद कैसे धक्के का जवाब धक्के से दो, बस कभी मैं धक्के मारती तो कभी वो, मैं कस के पलंग की पाटी पकडे थी, कभी मेरी चीख निकलती कभी सिसकी,
दरवाजा खुला हुआ था , बगल के कमरे से ननद रानी की सिसकियाँ सुनाई पड़ रही थी, उनकी भी चुदाई जबरदस्त हो रही थी.
धक्का दोनों और से लगने का असर हुआ की बस थोड़ी देर में इनका बित्ते भर का बांस जड़ तक मेरी गाँड़ में समा गया, गाँड़ फटी पड़ रही थी, पूरे जड़ तक मेरी ननद के यार ने धंसा रखा था, लेकिन जितना दर्द हो रहा था, उतना ही मजा आ रहा था,
पर उस बदमाश के तरकस में कोई एक दो तीर थे , हर रोज नयी स्टाइल, मेरे निप्स खींच खींच के उसने मूंगफली के दाने की तरह कर दिया था , और हरदम टनटनाया रहता था, बस दोनों हाथों से मेरे निपल को पकड़ के, जैसे ग्वाला गाय की छीमी पकड़ के खींच खींच के दूध दुहता है , बस एकदम उसी तरह,
एक नए तरह का दर्द , एक नए तरह का मज़ा और अब मुझसे नहीं रहा गया, मैं कस कस के गांड में घुसे मोटे लंड को कस कस के निचोड़ रही थी , गाँड़ अपनी कस कस के सिकोड़ रही थी और जवाब में वो कस के एकदम दूध दुहने की तरह मेरे निप्स पकड़ पकड़ के खींच रहे थे,
और अब न उनसे रहा गया, न मुझसे क्या मस्त गाँड़ मरौव्वल हुयी मेरी, लेकिन मैं भी , दस पांच धक्के वो मारते, तो एक दो मैं भी,...
कभी लंड पकड़ के गाँड़ में मेरा साजन गोल गोल घुमाता था, कभी हौले से पूरा मूसल बाहर निकाल के पूरी ताकत से वो धक्का मारते की बगल के कमरे में मेरी ननद को तो सुनाई ही पड़ता , सासू जी के कमरे में ,सासू जी और छुटकी बहिनिया को भी,...
एक बार तो अभी मेरी छुटकी बहिनिया की गाँड़ में वो झड़े ही थे , तो सेकेण्ड राउंड में टाइम तो लगना ही था, पूरे आधे घंटे,.... नान स्टॉप तूफ़ान मेल मात और जब झड़ना शुरू हुए तो बस, जैसे गर्मी के बाद सावन भादो में बादल बरसे, सूखी धरती की तरह मैं रोप रही थी , और गिरना ख़तम होने की बाद भी बड़ी देर तक मैं वैसे निहुरी रही और वो मेरे अंदर धंसे, ...
और उसी तरह मुझे उठा के पलंग पर,
बड़ी देर तक बिना बोले हम दोनों एक दूसरे से चिपके रहे, लेकिन फिर शुरुआत भी मैंने की , बस छोटे छोटे चुम्मे, उनके चेहरे पर , ईयर लोब्स पर, ... उँगलियों से उनकी छाती सहलाती रही,
वो बस ललचायी नज़रों से मुझे देखते रहे,
बाहर रात झर रही थी, चन्द्रमा पश्चिम की ओर जल्दी जल्दी डग भर रहा था, ...
Komal ji , apne to gadar macha rakha hai, seema nhi hai apke adbhut lekhan kiआत्मनिर्भर
पर मेरी हालत कम खराब थी, पिछवाड़े तो आज खूब मजा आया, पहले नन्दोई जी ने हचक के मारी, और फिर उस नन्दोई के साले ने,...
लेकिन मेरी रामपियारी अभी भी आठ आठ आंसू रो रही थी, आज किसी ने उसे हाथ भी नहीं लगाया था, और तो उसे बस वो मोटा मूसल चाहिए था, ...
इसलिए मैंने सोचा बहुत हो गया चोर सिपाही का खेल , और मैं सीधे उनके ऊपर चढ़ गयी,...
वो कहते हैं न आज कल आत्मनिर्भर,... तो बस वही,... लेकिन इस लड़के को तड़पाने का मजा अलग है, थोड़ी देर तक तो मेरी गुलाबो उसके तड़पते बौराए पगलाए मोटे सुपाडे पर रगड़ती रही,... फिर जैसे कोई दया कर के जरा सा दरवाजा खोल दे दोनों फांके खुलीं , थोड़ा सा सुपाड़ा घुसा और दरवाजा फिर बंद,...
बरसो बाद मिले पाहुन से जैसे कोई बस गलबहियां भर भर मिले, बात करने का होश ही न रहे, वही हालत मेरी रामपियारी की हो रही थी, जोर से से वो अपने को सिकोड़ रही थीं , निचोड़ रही थीं,
बेचारे ये इन्होने नीचे से धक्का मारने की कोशिश की पर मैंने जोर से आँख तरेर कर बरज दिया,... आज मेरी बारी थी,... हाँ इतना जरूर किया , फांको को थोड़ा सा ढीला किया , हलका सा धक्का दिया और वो भूखा, नदीदा सुपाड़ा गप्प,
जैसे सुहागरात के दिन उन्होंने मेरी कलाई पकड़ के जोर जोर से धक्के मारे थे , मेरी कुंवारेपन की झिल्ली टूटी थी, वो तो ठीक, मेरी माँ ने भेजा ही इसलिए था, लेकिन मेरी मनपसंद लाल हरी दो दर्जन चूड़ियां , वो भी चुरूरमुरुर कर आधे से ज्यादा टूट गयीं,...
बस एकदम उसी तरह मैंने उनकी दोनों कलाइयां पकड़ रखी थी पर धक्के उनकी तरह तूफानी नहीं मार रही थी , बस हलके हलके सावन के झूले की तरह , खूब स्वाद ले ले के,
मेरी सहेली का मनपंसद भोजन इनका मोटा तगड़ा लंड,... अब पूरी तरह अंदर था, और मैं रुक गयी थी,
झुक के बस हलके हलके अपने दोनों जोबन उनकी छाती पर रगड़ रही थी, आँखों से उन्हें चिढ़ा रही थी, ...
मेरा साजन मैं चाहे जो करूँ, उनके साथ भी उनकी माँ बहन के साथ भी,...
कुछ देर में मैं मेले में जैसे नटिनी की लड़की बांस पर चढ़ जाती है न, बस उसी तरह इनके बांस पर मैं चढ़ी, इतरा रही थी, फिर धीरे धीरे अपनी छप्पन कला दिखाते, कभी ऊपर कभी नीचे, कभी हलके से अपनी योनि को दबा के उसे निचोड़ देती तो कभी ढीला कर के आजाद कर देती,... लेकिन वो रहता मेरे ही अंदर, कुछ देर ऊपर नीचे ऊपर नीचे करने के बाद, बस मैं रुक गयी, पूरा उसे अपने अंदर लेकर, झुक के मैंने उन्हें चूम लिया, ...
और
फिर जैसे कोई रॉकिंग चेयर पर बैठ के आगे पीछे , आगे पीछे करे,...
बेचारे, उनको तो आदत तूफानी चुदाई की थी , पर मैं क्या करूँ मेरी रामपियारी इत्ती देर से अपने पिया का इन्तजार कर रही थी, लेकिन पिया का मन पियारी नहीं समझेगी तो कौन समझेगा,
तो बस वो तूफानी धक्के पर धक्के वाली भी मैंने शुरू कर दी , पर मैंने उन्हें समझा दिया था , वो आज चुपचाप आराम करें, मेरी बहिनिया के पिछवाड़े बहुत ताकत खर्च की थी उन्होंने इत्ती कसी गांड मार मार् के चौड़ी कर दी थी उन्होंने,...
कोई जरूरी नहीं की मरद को ही सचित्र कोकशास्त्र बड़ी साइज के सारे आसन मालूम हों, कुंवारेपन में ही माँ की अलमारी से निकाल के छुप छुप के कोर्स की किताबों से ज्यादा बार मैंने उसका परायण किया था, और सहेलियों के साथ भी,...
तो वीमेन ऑन टॉप वाली पोजीशन में भी , और अभी दो रात पहले ही तो इनकी सास ने इनके ऊपर चढ़ कर न सिर्फ इनके कील पुर्जे ढीले किये थे बल्कि एक खूंख्वार दरोगा की तरह इनके सब राज, इनकी माँ, बुआ , बहन , सब के साथ कैसे कबड्डी खेली इन्होने वो सब भी,...
हाँ अब वो भी साथ दे रहे थे कभी नीचे से कस कस के धक्के मारते तो कभी, मेरी कमर पकड़ के ऊपर नीचे उछालते और जब मैं नीचे होती तो उनकी मनपसन्द दोनों गेंदे , कभी हाथ से खेलते तो कभी मुंह उठा के उन लड्डुओं का स्वाद भी ले लेते,...
दस बारह मिनट तो हो ही गया होगा , पर ऐसे समय, समय कौन देखता है.
हम दोनों एक दूसरे में मगन,... पर तभी दरवाजा खुला,... और उनकी छोटी साली, ...
मेरी छुटकी बहिनिया, ... पर स्साली छिनार, उसकी चूत में अपनी ससुराल के सारे मर्दों का लंड घुसवाऊँ,... चूतमरानो,...
मेरी ओर देखा भी नहीं, सीधे अपने जीजा की ओर,... और खाली उसे क्यों गरियॉंउ, मेरी छिनार माँ, बहन, सब की सब असली रंडी की जनी, मेरी शादी के बाद एकदम मुझे भूल गयीं, माँ को सिर्फ दामाद नजर आता है और बहनों को जीजू, जैसे बेटी बहन थी ही नहीं कभी,...
Besabri se intjar rahega kmalji. Please is story ke har update me sath chalna heमेरी अगली कहानी,
मज़े बनारस के,....
कुछ अंश
आलमोस्ट खुला मैदान, कुछ पुराने पेड़ , और दो मकानों के बीच एक संकरी सी जगह थी , गली भी नहीं, बस हम दोनों का हाथ पकड़ के भाभी करीब करीब खींचते हुए उस दरार सी जगह से ले गयीं, करीब दो तीन सौ मीटर हम लोग ऐसे ही चले, फिर एक एकदम खुले मैदान में हम तीनों, कुछ भी नहीं था, बस कुछ टूटी दीवालें , ढेर सारे पेड़ थोड़े दूर दूर, और एक दो पेड़ों के नीचे कुछ साधू गांजे का दम लगाते, लेकिन एकदम अलग ढंग के, बहुत पुराने बाल जटा जूट से , भभूत लपेटे,... और जब वो चिलम खींचते तो आग की लपट ऊपर तक उठती,
भाभी ने हम दोनों को इशारे से बताया की हम उधर न देखें, और हम दोनों का हाथ पकडे पकडे, एक टूटी बहुत पुरानी दीवाल के सहारे, दीवाल में जगह जगह पेड़ उगे हुए थे, ईंटे गिर रही थीं
भाभी ने एक बार पीछे मुड़ कर देखा, तो सूरज बस अस्तांचल की ओर , एक पीले आग के गोले की तरह, आसमान एकदम साफ़,
हम दोनों भाभी का हाथ पकडे पकडे,... और जहाँ वो दीवाल ख़तम हो रही थी, कुछ बहुत पुराने खडंहर, बरगद के पाकुड़ के पेड़ , पेड़ों के खोटर , और जैसे ही हम खंडहर में घुसे,... ढेर सारे चमगादड़, ... उड़ गए, गुड्डो डर के मुझसे चिपक गयी.
लेकिन भाभी मेरा हाथ पकड़ के करीब खींचते हुए, गुड्डो मुझसे चिपकी दुबकी, आलमोस्ट अँधेरा और चमगादड़ों के फड़फाड़ने की जोर जोर आवाज, और उसी खंडहर की एक टूटी दीवार, और वो भी एक पेड़ की ओट में, दीवार में जैसे कोई ईंटों के ढहने से दो ढाई फीट का एक छेद सा बन गया था, नीचे दो ढाई फीट ईंटे थे उसके बाद वो टूटा हिस्सा, और उसके पीछे भी कोई बड़ा पेड़,
भाभी ने मुझे इशारा किया और गुड्डो को हाथ में उठा के आलमोस्ट कूद के उस टूटी जगह से मैं और पीछे पीछे भाभी,... गुड्डो मेरी गोद में चढ़ी दुबकी, कस के चिपकी,...
एक बार फिर भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और उस पेड़ के पीछे,.... अब जैसे हम किसी पुराने खंडहर के आंगन में पहुँच गए थे, एकदम सन्नाटा, शाम अब गहरा रही थी , और भाभी ने चारो ओर देखा, एक ओर उन्हे पीली सी रौशनी आती दिखी,... रौशनी कहीं दूर से आ रही थी झिलमिल झिलमिल,..
और एक सरसराती हुयी ठंडी हवा पता नहीं किधर से आ रही थी, चारो ओर एक चुप्पी सी छायी थी, बस वही हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी,
गुड्डो का डर अब ख़तम हो चुका था, वो मेरे सामने खड़ी मुझे देख रही थी, मुस्कराते और अचानक उसने मुझे अपनी बांहों में दुबका लिया और उसके होंठ मेरे होंठों पर चिपक गए, मुझे भी एक अलग ढंग का अहसास हो रहा था अच्छा अच्छा , कोमल सा मीठा।
तभी मैंने देखा, भाभी आंगन के दूसरे किनारे से जहाँ से वो झिलमिल झिलमिल रोशनी आ रही थी, वहीं खड़ी इशारे से हम दोनों को बुला रही थीं,...
वह पीली रोशनी एक ताखे में रखे बड़े से कडुवे तेल के दीये से आ रही थी और लग रहा था जैसे जमाने से इसी ताखे में वो दीया जल रहा हो. उसकी कालिख से पूरा ताखा काला हो गया था। और उस ताखे के बगल में एक खूब बड़ा सा पुराना दरवाजा बंद था, उसमें लेकिन कोई सांकल नहीं थी, एक चौड़ी सी चौखट और खूब ऊँची, फीट . डेढ़ फीट ऊँची, दरवाजे के चारो ओर लगता है लकड़ी के चौखटों पर किसी जमाने में चांदी का काम रहा होगा लेकिन अब सब धुंधला गया था।
दरवाजे के ऊपर कुछ मिथुन आकृतियां बनी थीं, और दरवाजे के दोनों ओर लगता है चांदी के रहे होंगे या चांदी मढ़े नाग नागिन का जोड़ा, ...
Ye update ne to jaan hi nikal di. Sach me komalji. Is chudel ka salam he aap ko( भाग ६ -पिछले पृष्ठ से शुरू )
चुस्सम चुस्सवल
और मेरी और मेरी बहन की परफेक्ट समझ थी बस आँखों के ईशारे
हम दोनों फर्श पर और ये सीट पर बैठे , ... जैसे दो सहेलियां मिल बाँट के लॉलीपॉप चूसें ,
शुरआत मैंने की , होंठों के सहारे से इनके सुपाड़े का चमड़ा बहुत धीमे धीमे हटाया , छुटकी बगल में बैठे देख रही थी , सीख रही थी , .... फिर ढेर सारा थूक मैंने अपने इकट्ठा किया और सब इनके सुपाड़े पर ,
मोटा भी कितना था , एकदम लाल , बड़े पहाड़ी आलू सा , फिर सिर्फ थोड़ी देर जीभ की टिप से उनके पेशाब के छेद में सुरसुरी की , और
गप्प ,
अब मुझे आदत हो गयी थी , एक बार में पूरा सुपाड़ा गपक कर लेने की , थोड़ी देर चुसला चुभला के मैंने उसे अपनी ललचाती , नदीदी लार टपकाती अपनी छोटी बहन को दे दिया
और फिर एक बार अपने मुंह में ढेर सारा थूक इकठा किया , और अबकी सब थूक मेरी हथेली में
छुटकी ने बड़ी कोशिश कर के अपने जीजू का आधा से ज्यादा सुपाड़ा अपने किशोर मुंह में घोंट लिया था और हलके हलके चूस रही थी , ....
मैंने सब थूक अब उनके चर्म दंड पर लगाया और उसी थूक लगी मुट्ठी से मालिश करने लगी ,... पूरा लंड चमक रहा था ,
फिर हम दोनों बहनों ने इन्हे बाँट लिया , सुपाड़ा छोटी के मुंह में और बाकी का मेरे हिस्से में , मैं जीभ से बॉल्स से लेकर सुपाड़े तक तेजी से सपड़ सपड़ चाट रही थी ,
अब इनकी हालत खराब हो रही थी , लेकिन हम दोनों बहने यही चाहती भी थीं , लेकिन तब तक ट्रेन धीमी होने लगी , ... रात भी अब ख़तम होने के कगार पर थी ,
कोई बड़ा स्टेशन आ रहा था , ... और मैंने रुक के एक पल इनकी ओर देखा इन्होने छुटकी का सर पकड़ा
कोई भोसड़े में क्या लंड पेलेगा , जिस तरह इन्होने अपनी साली के मुंह में लंड ठेल दिया , अब पूरा ढाई इंच का सुपाड़ा उस छोटी साली के मुंह में धंसा घुसा और वो कस के उसके सर को दोनों हाथों से जकड रखा था ,
बचपन में मेरी भोंसड़ी वाली सास ने अच्छी ट्रेनिंग दी है अपने मुन्ने को , रुक के मैंने थोड़ा उन्हें चिढ़ाया
ट्रेन रुक चुकी थी , बाहर से चाय चाय की आवाज स्टेशन की हलचल सब कुछ सुनाई पड़ रहा था , खिड़की खुली हुयी थी ,
लेकिन न इन्हे फर्क पड़ रहा था न हम दोनों बहनों को ,
पूरे पांच मिनट तक ट्रेन खड़ी रही , और हम दोनों , हाँ ट्रेन चलने के पहले मैंने अपनी छोटी बहन को उसके जीजू का पूरा मोटा गन्ना दे दिया ,
उसके जीजू कस कस के उसका मुंह चोद रहे थे सुपाडा उन्होंने उस कली के हलक में उतार दिया था , वो गों गों कर रही थी , लेकिन उनकी पकड़
और मैंने अब दोनों रसगुल्लों की ओर रुख किया आखिर सारा माल पानी बनता भी तो वहीँ है , बस मैं जोर जोर से चूसने लगी एक एक बॉल्स को लेकर बारी बारी से , ...
एक तकिया लेकर मैंने उनके चूतड़ों को थोड़ा उचकाया और अब मेरी जीभ बॉल्स से लेकर पिछवाड़े के छेद तक
ट्रेन चल दी थी और हम दोनों बहनों ने आँखों ही आँखों में
और हम दोनों ने मिल के उन्हें बर्थ पर ही , पीठ के बल धक्का देकर ,... छुटकी एक बार साइड से उन्हें चूस रही थी और दूसरी साइड से मैं
कभी हम दोनों मिल के सुपाड़ा उनका चाटती चुसतीं , कभी लंड उसके हिस्से में सुपाड़ा मेरे हिस्से में ,
फिर मैंने एक और तकिया उनके चूतड़ के नीचे लगाया ,
छुटकी चूसना छोड़ के देख रही थी मैं क्या कर रही हूँ ,
मैंने इनके दोनों नितम्ब फैला के छुटकी को इनके पिछवाड़े का छेद दिखाया , और उससे कहा इसे फैलाये रहे ,
बस अब मेरी जीभ ने शरारत शुरू कर दी , पहले जीभ गोलकुंडा का चक्कर काटती रही , फिर जीभ की टिप सीधे गोल छेद के अंदर , मैं रीमिंग कर रही थी , चपड़ चपड़ चाट रही थी ,
इनकी रीमिंग करवाने में हालत खराब हो जाती थी , और यही तो मैं चाहती थी ,...
और अब छुटकी भी अपने काम में लग गयी , पिछवाड़े का छेद बड़ी बहन के हिस्से में , और मोटा तन्नाया लंड छोटी बहन के हिस्से में ,...
दो चार मिनट में ही इनकी हालत खराब हो गयी , ...
तभी मैं चौंकी ,... जो स्टेशन गुजरा था ,... कोई उसका नाम ले रहा था ,... वो हमारे गाँव के पहले का आखिरी बड़ा स्टेशन था यहाँ से एक घंटे पूरा लगता था यानी एक घंटे में हमें उतरना होगा , और तब तक ,... शाम से इनका मन कर रहा था ,...
अरे छुटको कहाँ बिसराय दिहे रहो.ऐ जिज्जी... कैसी हौ
Kab aaegi ye story. Kya banaras ki holi bhi dikhaogi naफोन -फोन
माँ को फोन लग गया था , बल्कि मैंने ही लगा के दिया था और गुड्डो की मम्मी चालू हो गयीं,...
" अरे मैं बोल रही हूँ , गुड्डो की मम्मी, दो ख़ुशख़बरी बतानी थी आपको, एक तो जो हमरे मरद और तोहरे भैया के बीज से जनमा तोहार बेटा है न उनके बारे में,.. "
स्पीकर फोन गुड्डी ने हाथ बढाकर आन कर दिया था,... और उधर से खिलखिलाहट की आवाज आ रही थी जोर जोर से हंसने की और फिर बात काट के माँ की आवाज आयी
" अरे तो कौन गलत किये थे, भुलाय गयी गवने में जब तू बिदा करा के आय रहू,... हमहीं ले गए थे सेज सेजरिया पे,... और आधे घंटे में अइसन चीख पुकार मचाई , ऊ तो हम बाहर से कुण्डी लगा दिए थे पहले, केतना खून खच्चर हुआ था, हमरे भैया अइसन फाड़े थे, रात भर,... और फिर को कउनो दिन नागा भया हो , रात तो रात कितनी बार दिन में भी,... और जउन हमरे भैया के बीज क बात कर रही हो न, तो भुलाय गयी तोहार पांच दिन वाली छुट्टी चल रही थी, तो बेचारे कहाँ इधर उधर तो हम सोचे की चला हमहीं,... अरे तोहार सैंया बनने के पहले से हमरे भैया थे , तो उस मूसल पे हमार हक कउनो कम नहीं था,... फिर पांच दिन क उपवास वो थोड़ी करते
लेकिन पहले खुसखबरी की बात बतावा और, वो कहाँ है, ... " माँ ने पूछा
उनका इशारा मेरी ओर था लेकिन गुड्डो की मम्मी ने वो रास्ता बंद कर दिया,... ये बोल के की मेरे मुंह में कचौड़ी भरी है , इसलिए मैं अभी बात नहीं कर पाउँगा।
पर मेरी चमकी। गुड्डो की मम्मी और मेरी मॉम में ननद भौजाई का भी रिश्ता था और बहुत करीब का. गुड्डो की मम्मी की जो ससुराल थी, गुड्डो की ददिहाल, उसी गाँव की मॉम थीं, और पडोसी भी रिश्ते में भी, तो पहले दिन से ही वो ननद भौजाई का रिश्ता और वो मजाक चिढ़ाना,... और बुआ भतीजी में भी मजाक खूब होता है एकदम असली वाला तो गुड्डो की भी रगड़ाई में वो,...
लेकिन थोड़ी देर में मुझे पता पता चल गया मामला मज़ाक से बहुत ज्यादा है , पर गुड्डो की मम्मी जिस तरह से मेरी तारीफ़ कर रही थीं, उससे में और शरमा रहा था,... वो बोल रही थीं,...
" अरे अपने मायके ससुरारी, नाउ कहांर, अहिरौटी चमरौटी हर जगह टंगिया भले उठावत रहू, जाँघियां फैलावत रहु,... लेकिन एक काम बढ़िया किया आपने किया कि गाभिन, अपने भैया , गुड्डो के पापा के बीज से हुईं,...
" अरे उ भैया कौन जो बहिन को न चोदे,... "
उधर से खिलखलाती आवाज आयी , और मैं समझ गया वो गुड्डो की मम्मी के बात के जवाब के साथ साथ मेरे और गुड्डो के रिश्ते के बारे में भी बोल रही हैं, ... और मैंने भी कस के एक बार फिर से गुड्डो के उभारों को दबा दिया और गुड्डो ने खुली जिप में ऊँगली डाल के मेरे तन्नाए मोटू को रगड़ दिया।
" और उ बेटा कौन जो महतारी को न चोदे "
मुझे आँख मारते हुए गुड्डो की मम्मी इधर से बोलीं,
पर जो जवाब उधर से आया वो अप्रत्यशित था,...
" एकदम सोलहो आना सच, तोहरे मुंहे में घी गुड़,... आप हमरे मुंह की बात छीन ली,... लेकिन आप कुछ कह रही थीं, गुड्डो के पापा,... "
और अबकी बात काट के जो गुड्डो की मम्मी ने बोलना शुरू किया बल्कि मेरी तारीफ़ के पुल बाँधने शुरू किये,...
" अरे, अपने मामा के जामल, हमरे मरद के, गुड्डो के पापा के बीज क असर, आज इम्तहान था न तो हम और गुड्डो गए थे, बहुत मेहनत किया था लड़के ने,... "
" कैसा हुआ परचा,... " अब उधर से आयी आवाज में चिंता परेशानी सब थी,... "
अब गुड्डो की मम्मी ख़ुशी से खिलखिला रही थीं, बोलीं, ...
" अरे पहले ये बोला की अपने चोली के भीतर के दुनो गुलगुला है हमरे मरद के जनमल के खिलाएंगी न, गोल गोल मीठ मीठ."
"हाँ खिलाऊंगी, अपने हाथ से पकड़ के खिलाऊंगी लेकिन,... " उधर से भी खिलखिलाती आवाज आयी.
" अरे हमरे मरद क बीज है , फाड़ दिया, अपने महतारी के भतार ने,... इतनी तारीफ़, इतनी तारीफ़,... हम और गुड्डो तो कोचिंग में भी गए थे,... ई इम्तहान में तो पक्का हो जाएगा , बल्कि कोचिंग वाले जोड़ के बताये की पूरे बनारस में टॉप,... नहीं पूरे यूपी में सबसे ज्यादा,... और हफ्ते भर बाद एक कोचिंग हैं उसमें तो फ्री एडमिशन और इनाम भी दिए हैं, अगला इम्तहान में भी पक्का सेलेक्शन,... गंगा मैया का आशिर्बाद है,... गुड्डो बोल रही थी अखबार में भी फोटो निकलेगी और बोर्ड के ऊपर भी फोटो लगाएंगे,... "
गुड्डो की मम्मी बोल रही थीं, उनकी आँखों में जो चमक, चेहरे पर जो ख़ुशी थी,...वो आवाज में भी छलक रही थी,...
लेकिन अब शर्मा मैं रहा था, और ये गुड्डो भी न, ... क्या जरूरत थी वो अखबार और बोर्ड वाली बात मम्मी को बताने की,... फिर उन माँ बेटी ने तो मुझसे भी ज्यादा मेहनत की, रात भर जगना, पूजा, आज सुबह से भूखे रह के,... अगर मेरा बी एच यू में एडमिशन हुआ तो मुझसे ज्यादा इन दोनों लोगों की मेहनत का नतीजा,...
तबतक गुड्डो की मम्मी खिलखिलाने लगी और वो पन्ना उन्होंने खोल दिया जो बंद रहना ही ठीक होता,...
" लेकिन पढ़ने लिखने में जितना तेज है, उतना ही,... वो तो आज हम कोचिंग में देखे, अरे एक से एक लड़कियां, पीछे पड़ी, एकदम चिपकी, अइसन तारीफ़,... दूसरा कोई होता तो कब का उन सबों को निबटा दिया होता, लेकिन ऐसे लजाय रहा था, आज कल तो लड़कियां भी इतना नहीं लजाती,... "
अब उधर से खिलखिलाने की आवाज आयी, " अरे तो अब तो इम्तहान हो गया न , अब आप किस लिए हैं , लाज शरम मिटाने के लिए,... अरे जरा उसको फोन दीजिये अभी हड़काती हूँ, ... "
और अगली आवाज में मेरे लिए इंस्ट्रक्शन था,
" अरे बोलने की जरूरत नहीं है मालूम है बनारस की कचौड़ी क स्वाद ले रहे हो, मुंह भरा है, खाओ खाओ,... लेकिन एक बात सुन लो, गुड्डो क मम्मी क कुल बात मानना, कुल बात मतलब कुल बात, और भले बड़े हो गए हो लेकिन हम दोनों के लिए बड़े नहीं हुए हो, तो मैं उनको बोल दे रही हूँ , अगर उनका मन करे तो एकाध हाथ लगावे के तो कस के लगाय भी देंगी, जउन सजा देना चाहेंगी, देंगी अगर तनिको ना नुकुर किया न,... "
लेकिन गुड्डो की मम्मी ने बात दूसरी ओर मोड़ दिया,
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तो बीच में बात काट के गुड्डो की मम्मी बोलीं,
" अरे हमरे मरद, अपने भैया क चोदी, बहुत लंड घोंटी होगी, ... लेकिन ऐसा लंड,... अरे जिस भोंसडे से निकला है न उसी भोंसडे में जाएगा और ऐसे फाड़ेगा न की जैसे कुंवारे में जब गन्ने के खेत में पहली बार फटी होगी, उससे ज्यादा दर्द होगा, भोंसड़ा एकदम से कच्ची चूत का मजा देगा, "
मुझे लग गया की अब उधर से फोन कट जाएगा, एक पल के लिए जवाब भी नहीं आया , लेकिन जब जवाब आया भी तो ऐसा, ईंट का जवाब पत्थर टाइप,...
" अरे आपके मुंह में घी गुड़,अब तो मैं आज से दिन गिनूँगी, लेकिन अगर वो आपके मरद के बीज का जना,... अरे उसके बाप का,अपने भैया का लंड घोंट के अपने भैया का पैदा किया, आपके मर्द का, अपने भैया का लंड घोंट के गाभिन हुयी, बियाई,... तो उसका लंड भी घोंट लूँगी, और ज़रा भी हिचकिचाया न तो चढ़ के चोद दूंगी उसको। "