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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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मेरी छुटकी बहिनिया, ...







हम दोनों एक दूसरे में मगन,... पर तभी दरवाजा खुला,... और उनकी छोटी साली, ...



मेरी छुटकी बहिनिया, ... पर स्साली छिनार, उसकी चूत में अपनी ससुराल के सारे मर्दों का लंड घुसवाऊँ,... चूतमरानो,... मेरी ओर देखा भी नहीं, सीधे अपने जीजा की ओर,... और खाली उसे क्यों गरियॉंउ, मेरी छिनार माँ, बहन, सब की सब असली रंडी की जनी, मेरी शादी के बाद एकदम मुझे भूल गयीं, माँ को सिर्फ दामाद नजर आता है और बहनों को जीजू, जैसे बेटी बहन थी ही नहीं कभी,...



और मैं कुछ बोलती तो उलटे हंस के मुझसे कहते अरे मैं बेटी और माँ, बहन -बहन के बीच में कैसे फर्क करूँ,... और उस हंसी पर तो मेरी जान न्यौछावर थी।

और वो भी कस के उसे अपनी बाहों में बाँध के,

लेकिन ऐसी खटमिठ्वा कच्ची अमिया हो और कुतरी न जाए, ... तो बस उनके होंठ मेरी छुटकी के बस मटर के जो कच्चे दाने होते हैं, बस अभी आना शुरू किये हों, ऐसे निप्स को लेकर चुसूर चुसूर,...






मैं इनकी चुदाई रोक के, कुछ देर तक मस्ती में जीजा साली की मस्ती देखती रही, फिर मैंने भी सोचा, चल यार, आज इन्हे भी,... हम दोनों बहने मिल कर इनकी ऐसी की तैसी करते हैं, और किस मरद की फैंटेसी नहीं होगी,... एक साथ दो दो ,


एक कच्ची कली बस अभी खिलती हुयी, किशोरी , और दूसरी तरुणी एक छोटी साली और दूसरी उसकी बहन, पत्नी , एक दूसरे से चोरी छुपे नहीं बल्कि साथ साथ,...

और मैं माँ से कह के, छुटकी को साथ लायी भी इसलिए थी,.. इनके लिए अपने मस्त नन्दोई के लिए और गाँव के सारे देवरों, नन्दोईयों के लिये।



तो बस,... मैं उस मीनार से उतर गयी और अपनी छुटकी बहिनिया को मीठी शूली पे चढाने के लिए,... वो टुकुर टुकुर देख रही थी की कैसे मैं कुतबमीनार पर चढ़ी मजे ले रही थी, ऊपर नीचे ऊपर नीचे हो के.... मैं समझ गयी उसका मन ललचा रहा था, बस अपने साजन के मीनार से उतर कर उनकी गोद में दुबकी उनकी साली को पकड़ के खींच लिया ,

वो लगी लाख बहाने बनाने, लेकिन मैं उसकी बड़ी बहिन थी, मैंने हड़काया, लगाउंगी दस हाथ कस कस के गिनूँगी एक, पिछवाड़े मान सकती हूँ मैं, लेकिन आगे क्या हुआ है, ... चल चढ़ जा,...


बड़ी मुश्किल से वो चढ़ी, लेकिन दो दिन भी नहीं हुए थे उसकी सील टूटे, वैसे भी एकदम कच्ची कली,... लेकिन लग रही थी मस्त,... उसके छोटे छोटे लौंडा छाप चूतड़ों को मैंने फैलाया, इनकी गाढ़ी मलाई अभी भी बजबजा रही थी उसके पिछवाड़े, बस थोड़ी सी उसके आगे लगा के पूरी ताकत से चूत की दोनों फांको को मैंने फैलाया, और इनका सुपाड़ा सटाया, बस थोड़ा सा फंसा था।



" हे पुश कर पूरी ताकत लगा के , छिनरपन मत देखा, लगाउंगी एक हाथ, अपने जीजू की कमर पकड़ के पुश कर,... "



मैंने जोर से हड़काया, और वो समझ रही थी की मैं सच के दो चार चांटे लगा दूंगी, ...

कुछ उसने पुश किया , कुछ मैंने उसके कंधे पर पूरी ताकत से जोर लगाया,... मुझे मम्मी की बात याद आ रही थी की जो लड़की लंड घोंटने में नखड़ा करे न, अरे लंड कितना भी मोटा हो, कितना भी लम्बा हो, आखिर उसी चूत से बियाह के नौ महीने बाद इत्ते लम्बे मोटे बच्चे निकलते हैं,...

बस मैंने पूरी ताकत से दोनों हाथ से उसके कंधे पर रख के जोर लगाया सुपाड़ा अच्छी तरह से फंसा था,... बस चीरते फाड़ते, उसकी कसी कच्ची चूत में उनका पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा धंस गया, ...




वो चीखती बिसूरती रही,... पर मान गयी मैं अपनी छुटकी बहिनिया को इत्ते दर्द के बावजूद के वो अपनी ओर से भी घोंटने के लिए पुश कर रही थी,

उन्होंने भी उसे पकड़ने के लिए इशारा किया पर मैंने सख्ती से बरज दिया ,

अरे अगर स्साली उनकी साली चुदवासी है तो लंड पर चढ़ के चोदने का भी दम होना चाहिए,


रोते चीखते भी पूरी ताकत से उसने धकेलते हुए आधा बांस तो घोंट ही लिया पर अब उसके जीजू से नहीं रहा गया, ... वो उसकी कच्ची अमिया देख के ललचा रहे थे, बस ज़रा सा अपनी ओर खींच के, उसकी ललछौंहा बस आ रहे जस्ट छोटे छोटे निपल मुंह में भर लिए और लगे चुभलाने,
Dam h guddi m, adha nhi poora ghotegi
 

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एक से भले दो







अरे अगर स्साली उनकी साली चुदवासी है तो लंड पर चढ़ के चोदने का भी दम होना चाहिए,


रोते चीखते भी पूरी ताकत से उसने धकेलते हुए आधा बांस तो घोंट ही लिया पर अब उसके जीजू से नहीं रहा गया, ... वो उसकी कच्ची अमिया देख के ललचा रहे थे, बस ज़रा सा अपनी ओर खींच के, उसकी ललछौंहा बस आ रहे जस्ट छोटे छोटे निपल मुंह में भर लिए और लगे चुभलाने,


थोड़ी देर में जीजू साली मिल के, वो अपनी साली की पतली कमर पकड़ के खींच रहे थे और वो भी अपने जीजू का साथ दे रही थी, पुश कर रही थी मैं बगल में बैठी जीजा साली के खेल तमाशे का मजा ले रही थी।




"अगर तू असली स्साली है न अपने जीजू की, तो पूरी ताकत से १०० धक्के मार, "मैंने उसे उकसाया।

सौ तो नहीं लेकिन ६०-७० धक्के तो उसने मारे ही और दो तिहाई से ज्यादा सात साढ़े सात इंच लंड तो अपने जीजा का ऊपर चढ़ के घोंट ही लिया , ... लेकिन अब एकदम वो थक गयी तो मैंने उसे मीठी शूली के ऊपर से उतार लिया ,...

और गोद में लेकर मीठी मीठी चुम्मी उसके गालों पर, होंठों पर लेने लगी.

खूंटा उनका भी वैसे तना, कड़ा खड़ा था, और कौन लड़की होगी जो इत्ता मस्त मलखम्भ देख के न ललचाये, तो मुंह में पानी तो मेरे भी आ रहा था और इनकी साली के भी,तो बस पहल मैंने ही की,


इनका खुला सुपाड़ा, लीची की तरह रसीला, टमाटर की तरह मोटा,... नहीं मुँह में गप्प नहीं किया मैंने,... बस जीभ से चाटती रही थोड़ी देर तक,



फिर छुटकी का मुंह मैंने लगा दिया, ... अब हम दोनों बहने बारी बारी से उस खुले सुपाड़े को कभी साथ साथ कभी बारी बारी से चाट रही थीं ,



फिर सुपाड़ा उसके हिस्से में, और बाकी का लंड,... मेरे हिस्से में , वो सुपाड़ा चूस रही थी मुंह में ले कर कस कस के और मैं बाकी लंड का खम्भा चाट रही थी जीभ निकाल के,

सोचिये, अगर एक जस्ट जवान हो रही किशोरी साली और एक युवती साथ साथ किसी के चर्म दंड को चूसें चाटें, तो कैसा लगेगा, बस वही हालत इनकी हो रही थी,




लेकिन हम दोनों बहनें मिल के इनकी हालत और खराब करने वाली थीं, गन्ना मैंने पूरा का पूरा छुटकी के हवाले किया और मैं नीचे वाले दोनों रसगुल्लों को चूसने में लग गयी,... खूब मस्त , आखिर हम सब को गाभिन करने वाली मलाई तो उसी में से निकलती है,... थोड़ी देर बाद काम बदल गया, रसगुल्ले उनकी साली के हिस्से में और लंड मेरे हिस्से में,



असल में होली के पहले वाली रात यही किया था इन्होने मेरे साथ सारी रात चोदा,खूब हचक हचक के चोदा लेकिन मुझे झड़ने नहीं दिया, खुद भी सिर्फ दो बार झड़े, एक बारे आगे और दूसरी बार एकदम सुबह, पूरी ताकत से ये मेरी गाँड़ मार रहे थे, और उधर ननद खट खट कर रही थीं, दरवाजा खुलवाने के लिए होली खेलने के लिए, और जैसे ही उन्होंने कटोरी भर मलाई मेरी गाँड़ में छोड़ी,... मैंने किसी तरह बस साड़ी लपेट कर दरवाजा खोला, होली की सुबह थी। लेकिन असर मुझे बाद में पता चला, जो उन्होंने मुझे गरमा के, लेकिन बिना झड़े छोड़ दिया,

असर ये हुआ की दिन भर बस ये लगे की कोई चोद दे, कोई झाड़ दे , और मैं इतना गरमा गयी थी की रंग से पुते अपने ममेरे भाई को ही चढ़ के चोद दिया, वो बेचारा चिल्लाता रहा , लेकिन गरमाई औरत को तो सिर्फ लंड दिखता हैतो बस यही आज मैं इनके साथ करना चाहती थी, खूब गरमाऊँगी , झड़ने नहीं दूंगी, वैसे भी एक बारे मेरे और दूसरी बार मेरी छुटकी बहिनिया के पिछवाड़े तो ये झड़ ही चुके थे.



और मैं और छुटकी मिल के इन्हे तंग कर रहे थे।

जैसे कोई शेरनी अपनी शाविका को शिकार सिखाती है बस उसी तरह मैं भी छुटकी को सिखा रही थी, और बहुत ही नेचुरल थी,... बहुत जल्द मेरा कान काटने वाली थी,... एक बार वो फिर साइड में बैठ के अपने जीजू का लंड आधे से ज्यादा मुंह में लेकर सड़प सड़प चूस रही थी और मैं इनकी एक बॉल्स मुंह में लेकर , तभी मुझे एक बदमाशी सूझी,...

बस मैंने जितनी भी तकिया थी बिस्तर पे , सब इनके चूतड़ों के नीचे लगा दी, इनके नितम्बो को सहलाने लगी , और बॉल्स चूसते चूसते, मेरी जीभ नीचे उतरी, ... और फिर इनके गोलकुंडा के किले का गोल गोल चक्कर काटने लगी, कभी कभी गोल दरवाजे की सांकल भी अपनी जीभ की टिप से खटखटा देती,...




ये बेचारे कसमसा रहे थे, मस्ती से पागल हो रहे थे, ...

फिर दोनों हाथों से मैंने इनके नितम्बों को पूरी ताकत से फैलाया, उस गोल छेद पर अपने होंठों को लगाया और लगी कस कस के चूसने, कभी जीभ अंदर भी पेल देती,... धीरे धीरे छेद पिछवाड़े का थोड़ा थोड़ा इनका खुलने लग गया था, ...

छुटकी चूस तो इनका लंड रही थी , साथ साथ हलके हलके अपने टीनेज हाथों से मुठिया भी रही थी,... पर निगाहें उसकी मेरी हरकतों पर टिकी,... मैंने इशारे से उसे बुला लिया, फिर उससे मैं जोर से हड़का के बोली,

"अपनी आँखे बंद कर,... और जीभ निकाल पूरी लम्बी "





उसने जोर से आँखे बंद कर ली, बस मैंने एक बार फिर एक हाथ से उनके नितम्बो को फैला के, उनके गुदा छिद्र पे अपनी छुटकी बहिनिया का मुंह सटा दिया , उसकी किशोर जीभ इनके पिछवाड़े,,

" हे पेल दे जीभ पूरी अंदर, अरे जीजू ने तेरी गाँड़ मारी थी न कस कस के , बस बदला ले ले कस के , मार ले गाँड़ पाने जिज्जा की जीभ से "


और दोनों हाथों से उसका सर मैंने कस के पकड़ रखा था, हड़का रही थी मैं,...


" स्साली, ठेल कस के , जीभ अंदर घुसेड़ के, वरना लगाउंगी दो हाथ कस के,... "

उसकी थोड़ी सी जीभ पिछवाड़े घुसी और इनकी हालत खराब, खूंटा मेरे कब्जे में था , मैं हलके हलके सहला रही थी , कभी उसके बेस पे कस के दबा देती जिससे वो झड न पाएं,

उनकी देह तड़प रही थी, मचल रही थी,... जैसे मैं तड़पती थी जैसे मेरे क्लिट पर जीभ के टिप से छू छू कर , सहला कर,... तड़पाते थे. बस उसी तरह,

पर आज तड़पाने का दिन हम दोनों बहनों का था,... और मैंने एक नयी शैतानी शुरू कर दी,...
Sahi me aap tadpa rahi ko, jiju ko bhi or readers ko bhi
 

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रीत रिवाज







बताया तो था आपको, ... रीत रिवाज के बारे में , कल के दिन गाँव में सिर्फ औरतें लड़कियां रहती थी और उन्ही की होली होती थी, तो जितने मर्द थे उन्हें घंटा भर रात रहते ही, गाँव छोड़ के जाना होता था, और पास में ही १२-१४ किलोमीटर पर एक हम लोगों की छावनी थी, वहां भी ट्यूबवेल, बाग़, खेत थे हमी लोगों के तो तय ये हुआ था की बस ये और नन्दोई जी वहीँ चले जाएंगे, एक घंटा रात रहते, और अगले दिन रात में आ जाएंगे, ...

तो बस उसी में आधा घंटा बचा था,....

छुटकी बांस पे उतरने चढ़ने में अब थक रही थी, चेहरे पर उसके पसीना साफ़ साफ़ छलकता दिख रहा था, जाँघे उसकी फटी पड़ रही थी, अभी कल ही तो उसकी नथ उतरी थी, झिल्ली फटी थी,

आज इतनी ह्च्चक ह्च्चक के उसके जीजू और डबल जीजू ने उसकी कच्ची गाँड़ मार के पूरा खोल दिया था , उसके बाद भी अपने जीजा के लिए कुछ भी कर सकती थी वो इसलिए पूरी ताकत से,...

और सच पूछूं तो उस मोटे लंड को देख के मेरी चूत मचल रही थी और कुछ लंड पे दया भी आ रही थी, बस हम दोनों बहनों ने जगह बदल ली,... और के फायदा ये भी था की छुटकी सीख भी रही थी, ...

और अब मैं कुछ देर में उनके लंड पर चढ़ी उन्हें हचक के चोद रही थी,



और वो अपनी छोटी साली की कसी कसी मीठी मीठी चूत चाट रहे थे, एकदम चाशनी में रसी बसी थी,...


चोदने के साथ मैं उनकी माँ बहिन का नाम ले ले कर जोर जोर रही थी , कभी एक हाथ से उनके निप्स स्क्रैच कर लेती तो दूसरे हाथ से कभी उनके बॉल्स सहला देती तो कभी मेरी बहिन की गाँड़ मारने की सजा देते, उनकी गाँड़ में ऊँगली कर देती, और एक नहीं दो दो,... अंदर तक करोच लेती,... और वो भी चूतड़ उचका के मेरा साथ देते,...



बस पांच मिनट, बगल के कमरे से नन्दोई जी के तैयार होने की आवाजें आनी शुरू हो गयी थीं,... उसी समय



छुटकी ने जीजू के ऊपर से उठने की कोशिश की तो मैंने पहले तो हड़काया,... पर उस बेचारी ने पहले तो बार बार एक ऊँगली दिखाकर सिग्नल दिया की उसे ,.. ' आ रही है ",...

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान रोकी, इस घर में ये सब इशारे बाजी नहीं चलती, ... यहाँ तो सब के सामने सब बातें सब लोग खुल्ल्म खुल्ला बोलते हैं.

" बोल न " मैंने हड़काया।

झुंझला के वो बोली, दी आ रही है बड़ी जोर से ,... हो जाएगी अभी , जीजू को बोलिये जाने दे न। "


जीजू महा दुष्ट , उन्होंने उस छोटी साली को और कस के पकड़ लिया,... और अपना मुंह उस पनाली के पास,... और उन की पकड़ से तो मैं नहीं छूट पाती थी ये तो कल की ,...




' तो कर ले न ,... जीजू के,... " हँसते हुए मैं बोली,...

वो छटपटा रही थी , ये कस के पकडे थे,... मैं समझ गयी इनका भी मन कर रहा है साली की सुनहरी शराब पीने का , फिर छुटकी बेचारी को, कल दिन भर तो यही सब होगा , मेरी ननद ने बोल रखा था ,


सीधे कुप्पी से पिलाऊंगी,... मेरी जेठानी ने मरे सामने छुटकी से भी छोटी उम्र वाली को, मैंने भी अपनी छोटी ननद को,..

बस मैंने अपनी ऊँगली के टिप को उसके मूत्र छिद्र पर , योनि छिद्र के ऊपर, पहले तो कस कस के रगड़ा फिर अपने नाख़ून से सुरसुरी कर दी,...

बस पहले तो सुनहली पिघलती एक बूँद,... फिर,...

और उसके बाद तो छुटकी भी कुछ नहीं कर सकती थी,...



उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...



और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,




थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...

आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,... और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...



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रीत रिवाज







बताया तो था आपको, ... रीत रिवाज के बारे में , कल के दिन गाँव में सिर्फ औरतें लड़कियां रहती थी और उन्ही की होली होती थी, तो जितने मर्द थे उन्हें घंटा भर रात रहते ही, गाँव छोड़ के जाना होता था, और पास में ही १२-१४ किलोमीटर पर एक हम लोगों की छावनी थी, वहां भी ट्यूबवेल, बाग़, खेत थे हमी लोगों के तो तय ये हुआ था की बस ये और नन्दोई जी वहीँ चले जाएंगे, एक घंटा रात रहते, और अगले दिन रात में आ जाएंगे, ...

तो बस उसी में आधा घंटा बचा था,....

छुटकी बांस पे उतरने चढ़ने में अब थक रही थी, चेहरे पर उसके पसीना साफ़ साफ़ छलकता दिख रहा था, जाँघे उसकी फटी पड़ रही थी, अभी कल ही तो उसकी नथ उतरी थी, झिल्ली फटी थी,

आज इतनी ह्च्चक ह्च्चक के उसके जीजू और डबल जीजू ने उसकी कच्ची गाँड़ मार के पूरा खोल दिया था , उसके बाद भी अपने जीजा के लिए कुछ भी कर सकती थी वो इसलिए पूरी ताकत से,...

और सच पूछूं तो उस मोटे लंड को देख के मेरी चूत मचल रही थी और कुछ लंड पे दया भी आ रही थी, बस हम दोनों बहनों ने जगह बदल ली,... और के फायदा ये भी था की छुटकी सीख भी रही थी, ...

और अब मैं कुछ देर में उनके लंड पर चढ़ी उन्हें हचक के चोद रही थी,



और वो अपनी छोटी साली की कसी कसी मीठी मीठी चूत चाट रहे थे, एकदम चाशनी में रसी बसी थी,...


चोदने के साथ मैं उनकी माँ बहिन का नाम ले ले कर जोर जोर रही थी , कभी एक हाथ से उनके निप्स स्क्रैच कर लेती तो दूसरे हाथ से कभी उनके बॉल्स सहला देती तो कभी मेरी बहिन की गाँड़ मारने की सजा देते, उनकी गाँड़ में ऊँगली कर देती, और एक नहीं दो दो,... अंदर तक करोच लेती,... और वो भी चूतड़ उचका के मेरा साथ देते,...



बस पांच मिनट, बगल के कमरे से नन्दोई जी के तैयार होने की आवाजें आनी शुरू हो गयी थीं,... उसी समय



छुटकी ने जीजू के ऊपर से उठने की कोशिश की तो मैंने पहले तो हड़काया,... पर उस बेचारी ने पहले तो बार बार एक ऊँगली दिखाकर सिग्नल दिया की उसे ,.. ' आ रही है ",...

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी मुस्कान रोकी, इस घर में ये सब इशारे बाजी नहीं चलती, ... यहाँ तो सब के सामने सब बातें सब लोग खुल्ल्म खुल्ला बोलते हैं.

" बोल न " मैंने हड़काया।

झुंझला के वो बोली, दी आ रही है बड़ी जोर से ,... हो जाएगी अभी , जीजू को बोलिये जाने दे न। "


जीजू महा दुष्ट , उन्होंने उस छोटी साली को और कस के पकड़ लिया,... और अपना मुंह उस पनाली के पास,... और उन की पकड़ से तो मैं नहीं छूट पाती थी ये तो कल की ,...




' तो कर ले न ,... जीजू के,... " हँसते हुए मैं बोली,...

वो छटपटा रही थी , ये कस के पकडे थे,... मैं समझ गयी इनका भी मन कर रहा है साली की सुनहरी शराब पीने का , फिर छुटकी बेचारी को, कल दिन भर तो यही सब होगा , मेरी ननद ने बोल रखा था ,


सीधे कुप्पी से पिलाऊंगी,... मेरी जेठानी ने मरे सामने छुटकी से भी छोटी उम्र वाली को, मैंने भी अपनी छोटी ननद को,..

बस मैंने अपनी ऊँगली के टिप को उसके मूत्र छिद्र पर , योनि छिद्र के ऊपर, पहले तो कस कस के रगड़ा फिर अपने नाख़ून से सुरसुरी कर दी,...

बस पहले तो सुनहली पिघलती एक बूँद,... फिर,...

और उसके बाद तो छुटकी भी कुछ नहीं कर सकती थी,...



उसी समय ननदोई जी ने दरवाजा खटखटाया,... नहीं नहीं बिना बिना झड़े नहीं गए , मैं तो बिदा कर भी देती उनको खड़े लंड के साथ पर उनकी छोटी स्साली , उससे नहीं रहा गया,...



और बाहर नन्दोई जी खटखट कर रहे थे और वो मेरी बहन पर चढ़े हुए थे,... जब मैंने दरवाजा खोला उस समय भी उनका खूंटा अंदर धंसा अपनी साली के निचले मुंह को रबड़ी मलाई खिला रहा था,




थोड़ी देर में वो और नन्दोई जी निकल गए , मैं छुटकी को दुबका के सो गयी , घंटे आध घंटे की जो नींद मिल जाए,...

आधी नींद में मैं सोच रही थी पहले दिन मेरी सास, जेठानी और नंदों ने मिल के,... क्या क्या नहीं ,... और इन्ही ननद ने साफ़ साफ़ बोला था की भौजी ये तो ट्रेलर है, असली तो उस दिन होगा जब आप मायके से लौट आइयेगा, जिस दिन गाँव में सिर्फ औरतें होती है, पर उस दिन भी,...



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समझदार, बहन ...ते हैं,









गीता बाहर गयी और उसका भाई अरविन्द, स्टोर से सब लालटेन ढिबरी निकाल के साफ़ कर के पूरा तेल भर के जलाने में लगा गया.

तूफ़ान आने वाला था लेकिन उस के मन में एक दूसरा तूफ़ान चल रहा था उसकी बहन को लेकर,

करे न करे,

मन तो उसका काबू में एकदम नहीं था और ललचाता तो कब से उसको देख के था लेकिन जब एक दिन नहीं रहा गया और उसने बाथरूम में छेद करके, ...


उफ़ उफ़ क्या जोबन उभरा था, आस पड़ोस के चालीस पचास गाँव में ऐसी कोई नहीं ,...




और जब एक दिन उसने उसकी चूत देख ले , ..एकदम चिकनी, जैसे झांटे आयी ही नहीं हो, संतरे की फांकों की तरह रसीली


और फिर उस दिन से , कोई दिन बाकी नहीं गया,... जब उसका नाम ले के दो तीन बार वो मुट्ठ नहीं मारता था,...


भाई बहन के रिश्ते का भी ख्याल था, लेकिन उसकी बातों से ,..और इतना बुद्धू भी नहीं था की उसकी बातें इशारे न समझता हो , वो जान गया था की वो गरमा रही है

और गाँव का , उसके स्कूल के आसपास का , किसी सहेली का भाई उसे ठोंक ही देगा , अभी नहीं तो महीने दो महीने के अंदर ही , और बाहर वाले से पेलवा के वो कहीं बदनाम न करे और उसको सब में बांटे,... उससे अच्छा तो वही,

घर का माल घर में इस्तेमाल होगा,


परेशानी उसको दूसरी हो रही थी. बचपन से वो गीता को बहुत प्यार करता था और अब न जाने कब से वो प्यार जवानी के प्यार में बदल गया था और अब गीता खुद भी,..

लेकिन वो गीता के चेहरे पे दर्द नहीं देख सकता था और उसका थोड़ा ज्यादा,...




और वैसे भी उसने अब उसकी कच्ची कली को देख लिया था, एकदम कसी चिपकी कोरी, लेने में तो बहुत मजा आएगा, आज के पहले भी उसने बहुत सी कच्ची कलियों की, लेकिन जैसा मज़ा इसके साथ आएगा , न कभी आया था न कभी आएगा,



पर उसे दर्द बहुत होगा, वो दर्द पीने की कोशिश करेगी, पर,...

लेकिन और कोई करेगा तो भी गितवा को दर्द होगा और वो पता नहीं कहाँ कैसे फाड़े उसकी, गन्ने के खेत में खाली थूक लगा के,... और वो कितना रोयेगी , चूतड़ पटकेगी वो और जोर जोर से, बिना फाड़े कौन छोड़ता है,...

और वो करेगा तो घर के कोल्हू में पेरा कडुवा तेल लगा के,



और लंड में भी अपना अच्छी तरह चुपड़ के , खूब सम्हाल के और पहली बार में बस थोड़ा सा,... घर की चीज कहाँ जा रही है, दूसरी तीसरी बार में ही पूरा पेलेगा। तो वो अगर उसका ख़याल करता है तो अब उसे, बस और आज माँ भी नहीं है,...

आज अगर उसने और इशारा किया तो रात में जब वो सो जायेगी, नहीं तो सबेरे होने के पहले तीन चार बजे,उस समय चीख पुकार होगी भी तो कोई सुनेगा नहीं , और फिर उस समय उसका,.... लेकिन आज की रात,... बहुत मन कर रहा था,

उसे दो ऊँटो वाला एक विज्ञापन याद आया और उसने अपने आप से मुस्कराते हुए बोला,...




समझदार बहन चोदते हैं,







और उधर सब दरवाजे खिड़की देख के बाहर गाय गोरु देख के किचेन में खाना लगाते गीता मन ही मन में मुस्करा रही थी, जिस तरह से भैया आज खुल के जोबन दबा रहा था , जिस तरह से उसका लंड फनफनाया था , और माँ भी नहीं थी आज लग रहा था उसकी सहेली का दरवज्जा खुल जाएगा।
अति कामुक अपडेट

“”और वो करेगा तो घर के कोल्हू में पेरा कडुवा तेल लगा के””

घर के कोल्हू में पेरा हुआ तेल इस्तेमाल कर के , घर का बेटा घर की बेटी और अपनी सगी बहन को रात के अंधेरे में कली से खिला हुआ फूल बनाएगा

समझदार बहन चोदते हैं……… waaah
 

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तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए



और उधर सब दरवाजे खिड़की देख के बाहर गाय गोरु देख के किचेन में खाना लगाते गीता मन ही मन में मुस्करा रही थी, जिस तरह से भैया आज खुल के जोबन दबा रहा था , जिस तरह से उसका लंड फनफनाया था , और माँ भी नहीं थी आज लग रहा था उसकी सहेली का दरवज्जा खुल जाएगा।

खाना खाते समय भी दोनों की छेड़ छाड़ चालू रही।

उसके भाई अरविन्द ने अपनी बहन गीता की आँख में आँख डाल के बोला,

आज लगता है जबरदस्त बारिश होगी,
थोड़ा मुस्करा के, थोड़ा उदास चेहरा बना के गीता खाना निकालते बोली,

" हो जाने दे न बारिश , लेकिन, कहाँ भैया, मेरा सावन तो सूखा सूखा जा रहा है, "





और ये बोलते गीता के एक हाथ की उँगलियाँ उसकी दोनों जाँघों के बीच, जिससे किसी को अंदाज भी न लगाने को बाकी रहे,' कहाँ की बारिश' की बात हो रही है। उसका भाई अरविन्द भी बहुत गरमाया था, खूंटा उसका भी खड़ा था. उसे चिपकाता बोला,

" अरे बहना सोलहवां सावन में बारिश नहीं होगी तब कब होगी, इस बार देखना तुम्हारा ताल पोखर सब भर जाएगा, पानी से हरदम छलकता रहेगा,. "

" भैया इस बात पे तेरे मुंह में गुड़ खीर,... और अपने हाथ से गुड़ का पूआ और गन्ने के रस की खीर खिला दी, , और जब उसके भाई ने हाथ पकड़ने की कोशिश की तो झिड़क दिया,


" भैया तू भी न , अपने हाथ में खीर लगा लोगे, फिर उसी हाथ से मेरे इधर उधर छुओगे, दे तो रही हूँ , आज लेने का काम तेरा देने का मेरा , तू मन भर के ले मैं एकदम मना नहीं करुँगी "




और अब सरक कर वो सीधे अपने भैया के गोद में, जहाँ खड़ा मोटा खूंटा उसकी छोटी छोटी किशोर गाँड़ में धंस रहा था, पर यही तो वो चाहती थी।

सहेली की भौजी ने यही तो सिखाया था की,


"जब तेरे अरविन्द भैया का खूंटा तुझे देख के, छू के, रगड़ के खड़ा हो जाए तो समझ ले अब अरविंदवा तुझे चोदना चाहता है, तुझे अब वो माल की तरह देखने लगा है और दूसरी बात खूंटा, जितना बड़ा हो,कड़ा हो, और मोटा हो, उत्ता ही मजा आएगा।"



और भैया का खूंटा खड़ा कौन कहे, एकदम बौरा रहा था, उसके चूतड़ पे रगड़ खा के, ... बस वो कौन कम गरमा रही थी, वो भी अपने छोटे छोटे चूतड़ उसके मोटे पागल मूसल पे रगड़ने लगी. और अपने भाई अरविन्द का हाथ पकड़ के अपने दोनों जोबन पे रख के दबाते हुए कहने लगी,

" भैया ठीक से पकड़ न, तुझे जवान लड़की को पकड़ना भी नहीं आता। "

बस पकड़ने के साथ गदराते उभरते उभारों को अरविन्द ने पहले हलके हलके फिर कस के मसलना शुरू कर दिया, और गीता की जाँघों के बीच लसलसाने लगा।
अबकी गीता ने ललचाते हुए पूए का एक टुकड़ा खीर में लगा के पहले अपने भैया को दिखाया फिर खुद गड़प कर लिया और कस कस के अपने छोटे नितम्बों से उसके खूंटे को दबा के बोली,

" भैया, तुम खाली बोलते हो बहिन का ख्याल नहीं करते, तेरी दो टकिया की नौकरी मेरा लाखों का सावन जाए
जो बादल गरजते हैं वो बरसते नहीं। "

अंगूठे और तर्जनी के बीच एक निपल को पकड़ के मसलते उसके भाई ने कहा,

" करिया बादर जी डरवाये,भूरा बादर पानी लाये,... तो गितवा ये भूरा बादल है सिर्फ बरसेगा नहीं बाढ़ आ जायेगी तेरी ताल तलैया में, बस आज रात."





और अपना एक हाथ उभार से हटा के लसलसाती जाँघों के बीच सीधे वहीँ रख दिया। गीता गिनगीना गयी।

उसने अपनी दोनों जाँघों को कस के भैया के हाथों के ऊपर सिकोड़ लिया और ऐसे भींच लिया जैसे वो उसका हाथ नहीं मस्ताना लंड हो।

इसी छेड़छाड़ और डबल मीनिंग बात में खाना खत्म होगया और गीता बर्तन लेकर किचेन में,


भाई का मन वो जान रही थी थी , उसके शार्ट में खूंटा एकदम तना था , बित्ते भर का तो होगा,... लेकिन वही झिझक,...
“”

" भैया तू भी न , अपने हाथ में खीर लगा लोगे, फिर उसी हाथ से मेरे इधर उधर छुओगे, दे तो रही हूँ , आज लेने का काम तेरा देने का मेरा , तू मन भर के ले मैं एकदम मना नहीं करुँगी "

" करिया बादर जी डरवाये,भूरा बादर पानी लाये,... तो गितवा ये भूरा बादल है सिर्फ बरसेगा नहीं बाढ़ आ जायेगी तेरी ताल तलैया में, बस आज रात."

“”

बहुत मस्ट मज़ा आ गया
 

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.....घुस गया









गीता ने अपना दूसरा हाथ , भैया के जांघिये में डाल के उस मोटू को पकड़ लिया जिसे देख के वो रोज रोज ललचाती थी। और आज पकड़ने पर ,... डरते हुए हिम्मत कर के छुआ था गीता ने, कितना कड़ा, एकदम लोहा,... मुश्किल से मुट्ठी में समा रहा था , वो कितना सोचती थी, छूने में पकड़ने में कैसा लगेगा,... और आज ,...

सोचने से भी ज्यादा अच्छा लग रहा था , हिम्मत कर के धीरे धीरे उसने अपनी टीनेजर मुट्ठी का दबाव बढ़ाया,... और अंगूठे से , मोटू के मुंह के पास , ... थोड़ा खुला थोड़ा बंद,... वो रोज तो देखती थी , भइया उसकी ब्रा से पकड़ के कैसे आगे पीछे करते हैं , बस वही सोच के एकदम उसी तरह उसने धीरे अपने भैया के 'उसको' आगे पीछे करना शुरू किया , हलके हलके,





और जैसे ही गीता ने अपने भैया के ' औजार ' पर हाथ का दबाव बढ़ाया, उसके भैया के हाथ का दबाव उसके उभारों पर भी बढ़ने लगा ,

और अब वो खुल के कच्ची अमिया का रस ले रहे थे , मुट्ठ मारते समय , उसकी २८ नंबर की ब्रा में झड़ते समय जो कच्चे टिकोरे उसकी आँखों के सामने मन में रहते थे आज उसके हाथ में थे ,

पहले खाली धीरे धीरे छू छू के वो रस लेता रहा, फिर नहीं रहा गया उससे , हलके हलके दबाने लगा , इत्ता अच्छा लग रहा था, छोटे छोटे मस्त जोबन, बाथरूम के छेद में देख के ही अपना बहन की उभरती चूँचियाँ उसकी हालत खराब हो जाती थी और आज तो उसके हाथों में ,... अब वो कस कस के दबाने मसलने लगा, ....




आखिर वो भी तो कस कस के उसके लंड को पकड़ के मुठिया रही है,...



और पता नहीं क्यों अचानक , गीता ने अपने होंठ एकदम कस के अपने भाई के होंठों पर , हलके से नहीं कस के ,... और कस कस के चुम्मी लेने लगी हलके से नहीं , जैसे वो भैया के मोबाइल में देखती थी वैसे ही , अपने होंठों के बीच भैया के होंठों को दबा के कस कस के वो चूस रही थी , और साथ में मुठियाने की रफ़्तार भी उसने तेज कर दी थी, ... और फिर जब गीता से नहीं रह गया तो भैया के सर को पकड़ के जबरदस्ती , अपने दोनों चूजों की ओर , उसके भइया के होंठ अब अब बहन के उरोज की घुंडी पे,...


बस कच्ची मटर की छीमी के जो दाने आते हैं नाख़ून से पकड़ने लायक, बस उत्ते ही बड़े थी उसके निपल , लेकिन इस समय एकदम तने , खड़े.,... और भैया के होंठ उसने पकड़ के वहीँ ,...




अब वो चूस रहा था कस के , एक निपल को , दूसरा निपल अपने हाथों से कभी पुल कर रहा था, कभी फ्लिक,


गीता ने एक झटके में भैया का जांघिया सरका के फर्श पर , और अपनी समीज को भी सरका के बाहर ,... और अब वह पीठ के बल लेटी थी, गहरी साँसे लेती और हर सांस के साथ उसकी छोटी छोटी गोलाइयाँ ऊपर नीचे हो रही थीं ,... उसने भैया के खूंटे को भी छोड़ दिया था और जैसे पूरी तरह सरेंडर कर दिया हो , दोनों हाथ सर के ऊपर,...

अब मोर्चा पूरी तरह से भैया ने सम्हाल लिया था , वो सिर्फ सिसक रही थी, मचल रही थी, बार बार अपने छोटे छोटे चूतड़ उठा रही थी जांघें रगड़ रही थी आपस में,...




भैया एक हाथ से उसके जोबन का रस ले रहे थे और दूसरा हाथ बहन की जाँघों के बीचबीच,... मलमल , ऐसा चिक्क्न , हलके हलके हथेली से उसने भरत पुर को सहलाना रगड़ना शुरू कर दिया और बहन की सिसकियाँ बढ़ गयीं ,...



बाहर का तूफान हल्का पड़ रहा था पर कमरे के अंदर का तूफ़ान धीरे धीरे तेज हो रहा था।



बहुत सी लड़कियों की तरह , गीता भी जब ज्यादा मस्ताती थी तो उसकी आँखे बंद हो जाती थी और कोई भी कुँवारी कोरी कली, और उसके सग्गे भैया का हाथ उसके जस्ट आते हुए जुबना पर पड़े , वो उसे आंटे की तरह मसल रहा हो, उसकी बिनचुदी चूत को जहाँ झांटें भी बस आ ही रही हों , अपनी हथेली से सहला रहा हो , जैसे वो मस्ती गिनगीना जाती , वही हालत उसका भी हो रहा था। उसकी जाँघे अपने आप फ़ैल गयीं, दोनों रसीली फांके गीली होने लगी, फुद्दी फड़फड़ाने लगी,...



उसके भैया ने कुछ बोलना चाहा , शायद होने वाले दर्द के बारे में लेकिन छोटी बहन ने अपने छोटे छोटे हाथ उसके मुंह पर रख कर चुप करा दिया,.. और बुदबुदाते हुए बोली,...



" भैया , चुप, बोलो मत,... " और कस के अपनी बाहों में, अपने आलिंगन में भींच लिया, इससे ज्यादा कोई लड़की क्या आमंत्रण देती,... और उसी पल भैया का उत्थित शिश्न , उसके योनि को बस सहला सा गया और जो तरंगे उठीं वहां से की ,... पूरी देह में झंकार मच उठी, जैसे सोये तालाब में कोई शैतान बच्चा , चिकने पत्थर से छिछली मार दे,... स्पर्श योनि पर हुआ पथरा उसके उरोज गए,... भाई ने दोनों फांको को हलके से अलग करने की कोशिश की पर,...



कुछ देर तक गीता इन्तजार करती रही , अब होगा वो दर्द जिसके बारे में सब बात करते हैं की बिना उस दर्द की दरिया में नहाये , मज़े के महासागर में गोते लेने का सुख नहीं मिल सकता, लेकिन भैया, मछली की तरह फिसलकर कहीं,...



और कुछ देर बाद,... टप टप टप , बूंदे ,... उसके आनंद उपवन के द्वार पर,



कडुवे तेल की झार वो साफ़ साफ़ सूंघ रही थी , लेकिन चुप चाप टाँगे फैलाये , जाँघे खोले पड़ी थी , भैया के इंतजार में



और भैया की उँगलियाँ उसकी दोनों निचली संतरें की फांको पर , जबरन दोनों फांको को उन्होंने एक से दूर किया ,.... वो होना ही था बीच में भैया के मोटू को जो घुसना था ,... और नहीं , उसे लगा की उन जबरन फैलाई फांको के बीच सीधे सरसों के तेल की बोतल, ...



टप टप टप



तेल की बूंदे उस प्रेम सुरंग की अंदरूनी दीवालों पर फिसलते सरकते,... थोड़ी देर तक बल्कि देर तक



टप टप टप




और उसके बाद भैया ने अपने हाथ पर तेल लगाके दोनों फांकों को मिला दिया और अपनी हथेली में लगे तेल से अच्छी तरह से मालिश करने लगे , फिर दोनों फांको पर भी, और एक ऊँगली एकदम तेल में डूबी अंदर तक ,... पहले तो जरा भी नहीं घुस पा रही थी, ऊँगली लेकिन बहुत कोशिश करने पर एक पोर तक अंदर ,... और उसे थोड़ी देर तक वो गोल गोल घुमाते रहे,...



फिर,...



बहना ने हलके से आँखो को खोल के देखा,...






भैया उसका अपने मोटू में वही तेल की बोतल से उसके खुले मुंह पे , सुपाडे पर और फिर हाथ में लगा सारा तेल,... चुपड़ चुपड़ के ,... कितना चिकना , कितना प्यारा कितना खतरनाक ,... कनखियों से उसने देखा की पानी तो अभी भी बरस रहा था हाँ तूफ़ान कुछ थम सा गया था, उसने फिर आँखे बंद कर ली, और अब दोनों हाथों से बिस्तर को कस के पकड़ लिया, ...



उसके भाई ने पहले तो अपनी बहन के चूतड़ के नीचे जितने भी तकिये पलंग पे थे उसे लगाकर ऊंचा किया , फिर लम्बी छरहरी गोरी गोरी टाँगे अपने कंधो पर लेकर ,... पहले तो दोनों हाथों से फांको को फैला के मोटे सुपाडे को सेट किया, और अब दोनों हाथों को बहन की पतली कटीली कमर पे ,... जितना भी उछले छटक कर अलग न होने पाए , बस एक बार पूरा सुपाड़ा घुस गया , उसके बाद तो लाख चूतड़ पटके , बिन चुदे,...



बहन अपनी सारी सीख , सहेलियों की बातें , और उस से बढ़ के गाँव के भौजाइयों की बातें,... ढीली रखना, देह खूब ढीली रखना , उधर से ध्यान हटा के एक बार मूसल चलना शुरू हो गया उसके बाद उसके बारे में,...



और अचानक,.... बादल जोर से कड़के ,... गड़ गड़ गड़ गड़ जैसे इंद्र के हाथी आपस में भिड़ गये हों , खूब तक गर्जन, उसने कस के पलंग को थाम रखा था,... कनखियों से उसने देखा,



बहुत जोर से बिजली चमकी , कमरे के अंदर तक कौंध गयी,...


उसके भाई ने पहले तो अपनी बहन के चूतड़ के नीचे जितने भी तकिये पलंग पे थे उसे लगाकर ऊंचा किया , फिर लम्बी छरहरी गोरी गोरी टाँगे अपने कंधो पर लेकर ,... पहले तो दोनों हाथों से फांको को फैला के मोटे सुपाडे को सेट किया, और अब दोनों हाथों को बहन की पतली कटीली कमर पे ,... जितना भी उछले छटक कर अलग न होने पाए , बस एक बार पूरा सुपाड़ा घुस गया , उसके बाद तो लाख चूतड़ पटके , बिन चुदे,...

Bahut hi mast detail mei explain kiya hai 🔥🔥🔥🔥🔥💦💦💦
 

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उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ,

फ़ट गयी





बहन अपनी सारी सीख , सहेलियों की बातें , और उस से बढ़ के गाँव के भौजाइयों की बातें,... ढीली रखना, देह खूब ढीली रखना , उधर से ध्यान हटा के एक बार मूसल चलना शुरू हो गया उसके बाद उसके बारे में,...लेकिन फटते समय सब ज्ञान भूल जाता है, सिर्फ दर्द, और,... दर्द, चीख और चिलख

और अचानक,.... बादल जोर से कड़के ,... गड़ गड़ गड़ गड़ जैसे इंद्र के हाथी आपस में भिड़ गये हों , खूब तक गर्जन, उसने कस के पलंग को थाम रखा था,... कनखियों से उसने देखा,


बहुत जोर से बिजली चमकी , कमरे के अंदर तक कौंध गयी,...




और फिर बादलों की गड़गड़ , उसकी चीख बहुत रोकने के बाद भी निकल गयी, लगा की गरम भाला उसकी जाँघों के बीच घुस गया है ,... बिजली बाहर नहीं उसकी जाँघों के बीच गिरी है , ... उसने तय किया था वो नहीं चीखेगी पर फिर भी ,... पर उस गड़गड़ाहट और बिजली की चमक के बीच...

सुपाड़ा अभी भी पूरी तरह नहीं घुस पाया था , हाँ अच्छी तरह फंस गया था , धंस गया था , एक पल रुक के ,... उसके भैया ने गहरी साँस ली, हलका सा बाहर खींचा,...




और कैसे कोई कुशल धनुर्धर बाण संधान के पहले प्रत्यंचा को अपने कंधे तक पूरी ताकत से खींचता और फिर बाण छोड़ता है , एकदम उसी तरह , पूरी ताकत से , उसके भैया ने पुश किया , वो ठेलते गए , धकलते गए,

बाण बांकी हिरणिया को लग चुका था , एकदम अंदर तक , वो सारंग नयनी , जीवन का प्रथम पुरुष संसर्ग का सुख, दर्द के सम्पुट में बंधा,... उसे मिल चुका था


, सुपाड़ा पूरी तरह अंदर पैबस्त हो गया था।


शायद, नारी जीवन के सारे सुःख, दर्द की पोटली में बंधे आते हैं. यौवन का प्रथम कदम , जब वह कन्या से नारी बनने की दिशा में पहला कदम उठाती है , चमेली से जवाकुसुम, पहला रक्तस्त्राव, घबड़ाहट भी पीड़ा भी,... लेकिन उसके यौवन की सीढ़ी का वह प्रथम सोपान भी तो होता है, ...

और पिया से मिलन, प्रथम समागम, मधुर चुम्बन, मिलन की अकुलाहट और फिर वो तीव्र पीड़ा, और फिर रक्तस्त्राव,... लेकिन तब तक वह सीख चुंकी होती है , दर्द के कपाट के पीछे ही सुख का आगार छिपा है,...

और चेहरे की सारी पीड़ा, दुखते बदन का दर्द मीठी मुस्कान में घोल के पिया से बिन बोले बोलती है, ' कुछ भी तो नहीं'. आंसू तिरती दिए सी बड़ी बड़ी आँखों में ख़ुशी की बाती जलाती है,... और शायद जीवन का सबसे बड़ा सुख,नारी जीवन की परणिति, सृष्टि के क्रम को आगे चलाने में उसका योगदान, ...


कितनी पीड़ा,... प्रसव पीड़ा से शायद बड़ी कोई पीड़ा नहीं और नए जन्में बच्चे का मुंह देखने से बड़ा कोई सुख नहीं स्त्री के लिए,

और उसके बदलाव के हर क्रम का साक्ष्य रहती हैं रक्त की बूंदे , यौवन के कपाट खुलने की पहली आहट, प्रथम मिलन,... और स्त्री से माँ बनना,... लेकिन लड़कियों के लिए ख़ास तौर से गाँव की लड़कियों के लिए ये कोई अचरज नहीं है ,

वो हुंडाती बछिया पर सांड़ को चढ़ते हुए , कातिक में कुत्ते और कुतिया को , गाय को बछड़ा जनते,...

और सबसे बढ़कर जब हलधर धरती में हल गड़ाते हैं , चीर कर बीज आरोपित करते हैं तो धरती के दर्द को नारी ही समझती है , और जब कुछ दिनों बाद धानी चूनर पहन , धरती शष्य श्यामला हो गाने गुनगुनाने लगती है तो उसके सुख की सहेली भी नारी होती है,...



और यह हलधर, अनुभवी था , कोई पहली बार खेत नहीं जोत रहा था , उसे मालूम था कैसे खेत में कैसे हल चलाना चाहिए, कब कितनी फाल अंदर तक,...


कब रुकना चाहिए और कब पूरी ताकत के साथ,...


और वह रुक गया, उसे मालूम था न सिर्फ सुपाड़ा बल्कि एक दो इंच और अंदर चला गया है , और इतना तेल लगाने के बाद भी कितनी जलन चुभन हो रही होगी,... और असली दर्द तो अभी बाकी थी,... बस वह रुक गया, ... नहीं , निकाला नहीं उसने ,

बस झुक के बहुत हलके से अपनी छोटी बहन के दर्द से भरी बड़ी बड़ी बंद आँखों को बस हलके से चूम लिया,...

और फिर तो जैसे कोई भौरां कली से छुआ छुववल खेले, उसके होंठ , कभी गालों को हलके से ,.. तो कभी होंठों को सील कर देते और धीरे धीरे उन गुलाबी कलियों का रस लेते,...


और जिसका वो दीवाना था , वो उरोज, आज उसके सामने उसकी छोटी बहन ने खुद परोस दिए थे, ...




कभी उरोजों के बेस पर तो कभी जस्ट आ रहे, स्तनाग्रों पर बस हलकी सी चुम्मी , कच्चे टिकोरों पर आज पहली बार किसी तोते की ठोर लग रही थी, हलके हलके कुतरने में वो मजा आ रहा था , एकदम गूंगे का गुड़, जिसने कच्ची अमिया कभी कुतरी होंगी , वही उनका स्वाद समझ सकता है,...

कुतरवाने वाली को भी मज़ा आ रहा था, झप्प से उसने आँखें खोल दी , उसे लगा तीर पूरा धंस गया , दर्द का अध्याय खत्म हो गया है ,


उस बेचारी को क्या मालूम था , अभी तो तीर की पूरी नोंक भी नहीं ठीक से घुसी थी।

भैया के चेहरे को अपने सामने देख वो शर्मीली शर्मा गयी और झट्ट से आँखों के दरवाजे बंद कर दिए, ... और भैया के सिर्फ होंठ ही नहीं , उनके हाथ भी, पूरी देह सुख ले रही थी दे रही थी , जब होंठ भैया के बहना के गालों का रस लेते तो हाथ जुबना को मसलते रगड़ते और जब होंठ निप्प्स पर आके जीभ से फ्लिक करते तो, भैया के हाथ रेशमी मख़मली जाँघों पर फिसलते, सिर्फ सुपाड़ा धंसा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा था और वो जल्द आ गया.

एक बार फिर उस हलधर ने अपने हल की फाल को ठीक किया, नीचे लेटी भले ही पहली बार,



लेकिन वो नया खिलाड़ी नहीं थी, ... हर उमर वाली के साथ, उसकी माँ की उमर वाली काम वालियों के साथ भी और,... जिनका गौना नहीं हुआ वैसी, ... झिल्लियां भी कितनी की फाड़ी थी उसने लेकिन ऐसी कच्ची कोरी, और वो भी सगी छोटी बहन,...

एक बार फिर से उसने उन छोटे छोटे मस्त चूतड़ों के नीचे तकिये को ठीक से लगाया और अबकी दोनों टांगों को मोड़ के दुहरा कर दिया , ... हल एकदम अंदर तक धँसाना पड़ता है , ऐसी जमीन जहाँ पहली बार खेती हो रही हो, बीज डालना हो खूब अंदर,... और बगल में रखी तेल की बोतल के ढक्क्न को खोल के , बाहर बचे मोटे मूसल को तेल से नहला दिया,... और अबकी बहन की दोनों मेंहदी लगी हथेलियों को कस के दबोच के,... अपनी पूरी ताकत से ठेल दिया, ...




मोटा लिंग , सूत सूत करके , धीमे धीमे रगड़ते दरेरते, फाड़ते अंदर जा रहा था ,

वो छटपटा रही थी , किसी तरह दांतों से काट के अपने होंठों को , चीखें निकलने से रोक रही थी , फिर चेहरे पर दर्द के भाव एक बार फिर से उभरने लगे थे,...

लेकिन वो हलधर अबकी रुकने वाला नहीं था,... उसकी कमर में , उसके नितम्बों में बहुत जोर था , जिस जिस पे वो चढ़ा था सब उसे 'सांड़ ' कहती थीं,... अपनी दोनों जाँघों के बीच कसके उसने अपनी बछिया को दबोच रखा था,...

इधर उधर हिलने को वो लाख कोशिश करे, चूतड़ पटके पर ज़रा भी अब उसके नीचे से सरक नहीं सकती थी , उस कोरी के दोनों नरम मुलायम हाथ उसके हाथों में जकड़े थे, उसकी पूरी देह का बोझ उसके ऊपर था और अपनी तगड़ी कसरती जाँघों से नीचे दबी उस गुड़िया की जाँघों को उसने पूरी ताकत से दबा रखा था, और मोटा लंड आधा तो घुस ही गया था,



बाहर बारिश एक बार फिर तेज हो गयी थी, बादल भी फिर से गरज रहे थे और घने घुप्प अँधेरे में भी बीच बीच में चमकती दामिनी उसे , उसके नीचे बहन की दबी देह, उसके छोटे छोटे मस्त जुबना और गोरे प्यारे चेहरे को दिखा दे रहे थे , उसका जोश एकदम दूना हो जाता था , लेकिन




लेकिन उसका अंदर घुसना अब रुक गया था , थोड़ा सा अवरोध बहुत हल्का सा, एक पतला सा पर्दा , लेकिन बिना उसे परदे के खुले, लड़की जवान नहीं हो सकती, ... और बहुत कम लोग होते हैं जिन्हे यह सुख मिलता है की खुद अपनी सगी बहन को उस चौखट के पार ले जा सकें,... वो समझ गया था की अब जो दर्द होगा उसे वह पी नहीं पाएगी, ... चीखेगी चिल्लायेगी, पर उस दर्द का इन्तजार और बाद में उस दर्द की याद, हर लड़की को तड़पाती है,...


भाई ने एक बार फिर से बहन के होंठों को चूमना शुरू किया लेकिन अब लक्ष्य कुछ और था , थोड़ी देर में बहन के गुलाबी मखमली अधरों के सम्पुट अलग अलग करके अपनी जीभ अंदर तक घुसा दी और उसकी जीभ के साथ छल कबड्डी खेलना शुरू कर दिया और साथ ही अपने दोनों होंठों के बीच उस किशोरी के होंठों को कस के भींच लिया, ....




एक बार फिर से कस के उसके हाथों को पकड़ के, अपनी तगड़ी मस्क्युलर जाँघों को बहन की खुली फैली जाँघों के बीच ,


और,.. और पूरी ताकत से उसने पेल दिया,... पेलता रहा ठेलता रहा धकेलता रहा,... बिना इस बात की परवाह किये की जो उसके नीचे है , कितना तड़प रही है , छटपटा रही है , पर न अपने हाथों की पकड़ उसने ढीली की न होंठों की जकड़ , न धक्कों की ताकत,... हाँ बस, ... दस बार जोरदार धक्कों के बाद , थोड़ा सा उसने अपने मोटू को बाहर खींचा,... पल भर के लिए गहरी साँस ली, और अबकी दूनी ताकत से ठेल दिया, ...

शुरू में तो बस दो चार बूंदे, लेकिन थोड़ी देर में उसके लिंग के मुंड पर रक्त का अहसास,...

बस अब काम हो गया था , नहीं बल्कि शुरू हुआ था, ...


झिल्ली फट तो चुकी थी लेकिन उसकी चुभन , चिलख ,... और दर्द का इलाज और दर्द होता है , ये खिलाड़ी चुदक्कड़ के अलावा और किस को मालूम होगा, ... बस एक बार लिंग हलके से बाहर निकल के , फिर वहीँ रगड़ते हुए , ... अंदर तक और फिर बाहर ,.. और फिर दरेरते , घिसटते हुए अंदर , चुदाई का असल मजा तो यही अंदर बाहर है और जब कुँवारी चूत मिले फाड़ने को तो ये मज़ा न लेना गुनाह है,...


बाहर बादल तेजी से गरज रहे थे बीच बीच में बिजली भी तेजी से चमक रही थी कभी कभी पानी की एकाध बौछार दोनों को भीगा भी देती थी,...




वो तड़प रही थी , पानी से बाहर निकली मछली से भी ज्यादा, जहां झिल्ली फटी थी वहां जब भी भैया का लंड रगड़ता ,... जैसे घाव पर कोई नमक छिड़क दे,... और होंठ अपने छुड़ा के , जोर की चीख,...

उईईईईई नहीं ओह्ह्ह्हह्ह भैयाआ उईईईई जान गईइइइइइइइ

पर अब बिना उस चीख की परवाह किये उसका सगा भाई अरविन्द चोदता रहा,


उईईईईई उईईईईई ओह्ह्ह्ह रुको , ओह्ह उफ्फफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ नहीं जान गईइइइइइइइइ




बादलो की जोरदार गरज के बीच भी वो चीख सुनाई दे रही थी,....



उह्ह्ह उह्ह नहीं बहुत दर्द हो रहा है ,....



और धीरे धीरे वो चीख हलके हलके बिसूरने में बदल गयी,... थक के तड़पन भी थोड़ी कम हो गयी ,... तो वो रुका,... दो इंच के करीब और बाकी था , था भी तो उसका मोटा लम्बा बांस,...

लेकिन अब दर्द के बाद सहलाने का टाइम था और उस खिलाडी के पास बहुत से हथियार थे , होंठ, जीभ, उँगलियाँ , ....

बाहर मेघ की झड़ी लगी थी और अंदर भैया के चुंबनों की कभी बहन के गाल पे तो कभी होंठो पे तो कभी उभरते उरोजों पे,... और साथ में संगत करतीं उँगलियाँ,...

भैया के होंठों ने जैसे दो चार मिनटों में ही बहन का सारा दर्द पी लिया और दर्द की जगह उन शबनमी होंठों पर हल्की सी मुस्कान फ़ैल गयी,... और यही तो वो चाहता था ,

अब उसकी उँगलियों ने बहन की जाँघों पर , निचले फैले होंठों के ऊपर जादुई बटन को, क्लिट को छूना सहलाना शुरू कर दिया,



और एक निपल अगर होंठों की गिरफ्त में तो दूसरे को भैया की उँगलियाँ तंग करती, साथ में अंदर आलमोस्ट जड़ तक पैबस्त , भैया का मोटा खूंटा,... बस दो चार मिनट में ही तूफ़ान में पत्ते की तरह वो कांपने लगी,... भैया ने उसके देह के सितार के तार अब द्रुत में छेड़ने शुरू दिए

उह्ह्ह ओह्ह्ह उफ़ रुको न ,...

आह से आहा तक


चीखें अब मजे की सिसकियों में बदल गयी थीं दर्द का द्वार पर कर उस आनंद में वो गोते लगा रही थी जिसके बारे में वो सिर्फ सोचती थी ,


कभी अपनी हथेली को जाँघों के बीच घिसती, भैया के मोटे मूसल को सोचते वो झड़ी थी , कभी उसकी सहेली की भाभी की जबरदस्त उँगलियाँ,.... उनकी गारंटी थी किसी ही ननद को वो चार मिनट में झाड़ सकती थीं,..

लेकिन आज ऐसा पहले कभी नहीं हुआ,...

जैसे दिवाली में अनार फुटते हैं , ख़ुशी के मजे के अनार ,... एक लहर ख़तम भी नहीं होती थी की दूसरी चालू हो जाती थी , कभी मन करता की भैया रुक जाएँ , कभी मन करता नहीं करते रहें


वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,..... फिर तेजी से , सट सट
“”

और यह हलधर, अनुभवी था , कोई पहली बार खेत नहीं जोत रहा था , उसे मालूम था कैसे खेत में कैसे हल चलाना चाहिए, कब कितनी फाल अंदर तक,...

लेकिन वो नया खिलाड़ी नहीं थी, ... हर उमर वाली के साथ, उसकी माँ की उमर वाली काम वालियों के साथ भी और,... जिनका गौना नहीं हुआ वैसी, ... झिल्लियां भी कितनी की फाड़ी थी उसने लेकिन ऐसी कच्ची कोरी, और वो भी सगी छोटी बहन,...

एक बार फिर से उसने उन छोटे छोटे मस्त चूतड़ों के नीचे तकिये को ठीक से लगाया और अबकी दोनों टांगों को मोड़ के दुहरा कर दिया , ... हल एकदम अंदर तक धँसाना पड़ता है , ऐसी जमीन जहाँ पहली बार खेती हो रही हो, बीज डालना हो खूब अंदर,... और बगल में रखी तेल की बोतल के ढक्क्न को खोल के , बाहर बचे मोटे मूसल को तेल से नहला दिया,... और अबकी बहन की दोनों मेंहदी लगी हथेलियों को कस के दबोच के,... अपनी पूरी ताकत से ठेल दिया, ...

“”

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मलाई








वो झड़ती रही , झड़ती रही , और भैया के हाथ, होंठ रुक गए और बिल में घुसा मोटा डंडा चालू हो गया जैसे ट्रेन के इंजन का पिस्टन , स्टेशन से गाड़ी चलते समय पिस्टन जैसे पहले धीरे धीरे ,.....



फिर तेजी से , सट सट ,सटासट सट , एक बार फिर भैया के कंधे पर बहन की टाँगे और अब कभी दोनों चूतड़ पकड़ के वो कसके धक्के मारता तो कभी एक हाथ छोटी छोटी टेनिस के बाल की साइज की चूँची पर और दूसरा पतली कमरिया पर , थोड़े ही देर में धक्क्के चौथे गियर में पहुँच गए,...

उसके सगे भाई अरविन्द का का लंड अब छुटकी बहिनिया की चूत में पैबस्त हो गया था , बहन कभी दर्द से चीखती , कभी मजे से सिसकती,



और जैसे ही लंड जड़ तक घुसा उस कच्ची चूत में, जैसे किसी संकरी बोतल में जबरदस्ती कोई मोटी डॉट ठूंस दे और वो बाहर न आये पाए बस, वही हालत थी , चूत ने लंड को एकदम दबोच लिया था,....

लेकिन भैया ने अब लंड के बेस से ही चूत के ऊपरी हिस्से में कस कस के रगड़ना, घिस के जुबना को निचोड़ रहा था और दूसरे उभार को कस के चूस रहा था,...



कुछ देर में छुटकी बहिनिया फिर से कगार पे पहुँच गयी और अब भाई ने हल्का हलका बाहर निकाल के पूरी तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिए ,


पलंग हिल रही थी , और बहिनिया झड़ रही थी लेकिन उसने चोदना नहीं रोका, हाँ अब चूमना चूसना सब बंद कर के बस धुआंधार चुदाई,



" नहीं, बस एक मिनट , अब और नहीं , रुक जाओ भैया , ओह्ह्ह्हह्ह उफ्फ्फफ्फ्फ़ उईईईईई "




वो सिसक रही थी , मजे से चीख रही थी , तूफ़ान रुकने के पहले नया तूफ़ान आ जाता , वो अपने छोटे छोटे नितम्ब उछाल रही थी , रुका तो नहीं वो लेकिन स्पीड जरूर धीमी कर दी और अब गुदगुदी लगा के चिकोटी काट के , ... उसके सगे भाई अरविन्द ने गीता की आँखे खुलवा ली, कभी वो शरम से आँखे बंद कर लेती कभी मजे से



बाहर बादलो को चीर कर चाँद बाहर निकल आया था और चाँद की चांदनी में वो बहुत सुंदर लग रही थी, ....




और एक चुम्मे के साथ,... गीता ने कुछ बोलने की कोशिश की तो चूम के भाई ने होंठ बंद कर दिए और इशारे से कहा बस चुप,... और अब कभी धीमे कभी तेज


गीता की देह में अभी भी दर्द था , चिलख जोर से जाँघों के बीच में से उठ रही थी लेकिन जैसे कोई झूले की पेंग पर , बस वो भी अब अपने भैया के धक्को के साथ, ... चांदनी पूरे बिस्तर पर पसरी थी, और उसका भाई, अरविन्द उसकी फैली खुली जाँघों के बीच हचक हचक के ,... अब वो साथ देने की कोशिश कर रही थी ,...लेकिन थोड़ी देर में फिर पूरी देह में तूफ़ान ,


और जब वो तीसरी बार झड़ी तो साथ में उसका भाई भी, ...


लेकिन उसे लगा कहीं उसका भाई कुछ डर के सोच के बाहर न निकाल ले झड़ने के पहले,...

उसने खुद कस के पानी बाहों में पकड़ के उसे अपनी ओर खींचा, अपनी टांगो को कस के भाई के कमर पर बाँध लिया , उसके अंदर भैया का सिकुड़ , फ़ैल रहा था ,...

और फिर जब फव्वारा छूटना शुरू हुआ तो बड़ी देर तक,... कटोरी भर से ज्यादा रबड़ी मलाई, और उसकी प्रेम गली से निकल के ,... बाहर उसकी जाँघों पे ,... लेकिन उसका उठने का
मन नहीं कर रहा था और उसने कस के अपने भाई,अरविन्द को को अपनी बाँहों में बाँध रखा था




बाहर बारिश रुक गयी थी, लेकिन अभी भी घर की छत की ओरी से, पेड़ों की पत्तियों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे चू रहीं थीं



टप टप टप



आधे घंटे के बाद बांहपाश से दोनों अलग हुए और एक दूसरे को देख के कस कर मुस्कराये फिर छोटी बहिनिया लजा गयी और अपना सर भाई के सीने में छुपा लिया।
🔥🔥🔥🔥🔥
 
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आधा -तिहा नहीं,... पूरा, जड़ तक




और भैया ने पूछ लिया,

" गीता, तुझे दर्द तो नहीं हुआ, ज्यादा "

गीता क्या बोले क्या न बोले कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कुछ लोग न हरदम बुद्धू रहते हैं, ये भी कोई पूछने की बात थी. बस दर्द के मारे जान नहीं निकली थी. अब तक जाँघे फटी पड़ रही हैं, 'वहां' ऐसी छरछराहट मची, परपरा रहा है कस कस के,...

बचपन में जब कान माँ ने अपनी गोद में बिठाकर छिदाया था, क्या चीख चिल्लाहट मचाई थी, उसने। वो तो माँ ने झट से एक बड़ा सा लड्डू उसके मुंह में ठूंस दिया और उसकी आवाज बंद हो गयी, फिर सौ रुपये देने का लालच भी दिया था, जो आज तक नहीं दिया। झुमके भी बोला था, लेकिन नीम की सींक पहना दी, हाँ भैया ने मेले में बाली जरूर खरीदवा दी थी। लेकिन वो दर्द कुछ भी नहीं था, कुछ भी नहीं,जो अभी हुआ,... उसके आगे



उस समय वो चीखना नहीं चाहती थी, उसे मालूम था की उसका दर्द भैया से देखा नहीं जाता, उ

सने कस के दांतों से अपने होंठों को दबोच रखा था, पर इत्ती जोर की टीस उठी, की रोकते रोकते भी चीख निकल गयी, वो तो बादलों की गड़गड़ाहट इत्ती जोर की थी और भैया इत्ते जोश में थे की उसकी चीख,



वो चीखती रही,

वो पेलते रहे, ठेलते रहे, धकेलते रहे, चोदते रहे,...





और वो,...वो भी तो कब से यही चाहती थी, भाभी ने भी तो उसे यही सिखाया था, बस किसी तरह भाई को पटा ले , फिर तो जब चाहे तब, गपागप घोंट लेगी, बस एक बार भाई की मोटी बुध्दि में घुस जाए ये बात, घर का माल घर में,...

तो वो कैसे कबूल कर लेती की दर्द के मारे जान निकल गयी थी,... हाँ बस खिस्स से मुस्का दी,


पर बचपन से वो भाई की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी तो आज कैसे छोड़ती, भले रिश्तों में एक हसीन बदलाव आ गया हो,... तो मुस्करा के हलके से उसके मोटे मूसल को सहलाते बोली,...

" लेकिन भैया, एक बार में इस मोटू को पूरा अंदर ढकेलना जरूरी था,... क्या। मैं कहाँ भागी जा रही थी, जब चाहते, जितनी बार चाहते,.... जहाँ चाहते, मैंने न तो पहले मना किया था न, न आगे. "

लेकिन जो उसके भइया ने, अरविन्द ने जवाब दिया वो सुन के तो वो और आग बबूला हो गयी.

" अरे बुद्धू मैंने तो आधा, से बस थोड़ा सा ज्यादा डाला होगा," और अपने खड़े तने लंड पे उसने निशान सा लगा के बताया।



गीता को अंक गणित और रेखा गणित दोनों में अच्छे नंबर मिलते थे उसने अंदाज लगा लिया, ७ इंच के करीब यानी दो इंच से ज्यादा बाहर था. मुठियाते हुए ही उसने बित्ता फैला के नापने की कोशिश चुपके से की थी, पूरा फैला हुआ बित्ता भी उसका वो लीची की तरह रसीला मोटा सुपाड़ा जहाँ शुरू होता है वहां तक मुश्किल से पहुंचा,



और सब जानते हैं की बित्ता नौ इंच का होता है तो भैया का भी उससे कम तो कत्तई नहीं,... तो जहाँ तक वो बता रहे हैं वो भी सात इंच के आसपास,

पर अगर कोई लड़की पल में रत्ती पल में माशा न हो तो वो लड़की नहीं, अगर अंदाज हो जाय की वो कब किस बात से खुश होगी,किस बात से नाराज तो स्कर्ट, साया उठा के झांक लेना चाहिए, कत्तई लड़की नहीं निकलेगी।


बस वो गुस्से में अलफ़, और मारे गुस्से के बोल नहीं निकल रही थे,चेहरा तमतमा गया, बड़ी मुश्किल से बोली,...



" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? "




" कोई नहीं, "

लेकिन अरविन्द समझ गया की उसकी छुटकी बहिनिया उसकी किसी बात पे जोर से गुस्सा है, तो ५०० ग्राम मक्खन एक साथ लगाते हुए फुसलाया,...

" तू मेरी प्यारी प्यारी सेक्सी सेक्सी , एकलौती बहिन है, खूब मीठी " और उसकी नाक पकड़ के चूम लिया,...

पर गीता ने अपने भाई अरविन्द को झिड़क के दूर हटा दिया,...

" तो अरविन्द जी , ये बाकी का आपने अपनी किस दूसरी बहन या महबूबा के लिए रख छोड़ा था "

झट से अरविन्द ने अपने दोनों कानों पे हाथ रख के गलती कबूल कर लिया और गीता ने अपनी डिमांड रख दी,



" चल माफ़ करती हूँ, लेकिन आगे से मुझे ये पूरा चाहिए , पूरा मतलब एकदम पूरा, यहाँ तक " और लंड के बेस पर ऊँगली रख गीता ने अपना इरादा और डिमांड दोनों बता दी.





उसके भाई अरविंद ने हाथ जोड़ा कान पकड़ा झुक के माफ़ी मांगी, तो वो मानी और बोली,


" देख मैं तेरी इकलौती बहन हूँ, अगर तूने एक सूत के बराबर भी बेईमानी की न तो हरदम के लिए कुट्टी,... और कुछ रुक के संगीता ने अपना इरादा साफ़ कर दिया ,


" सुन लो कान खोल के ये सब बहाना नहीं चलेगा की तुझे दर्द होगा, तुझे मेरी कसम, तेरी एकलौती बहन की कसम, चाहे मैं जितना चीखूँ, चिल्लाऊं, रोऊँ , तेरी दुहाई दूँ, हाथ पैर जोड़ूँ, खून खच्चर हो जाए, मैं दर्द से बेहोश हो जाऊं , तू भी तू रुकेगा नहीं, अगर रुका, स्साले तूने पूरा लंड नहीं ठेला तो बस एकदम कुट्टी, पक्की वाली, बात भी नहीं करुँगी। "




और भाई ने फिर हाथ जोड़ के कान पकड़ के अपनी सहमति जताई , लेकिन गीता अरविन्द को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली थी , बोली,

" और ये बहाना नहीं चलेगा की अच्छा कल, अगली बार , आगे से ,... अभी और अभी का मतलब तुरंत, पूरा जड़ तक चाहिए मुझे, मैं चाहे जितना भी चिल्लाऊं , रोऊँ,... मेरी बात मानोगे तो तेरी हर बात मानेगी ये बहना,... जब चाहोगे, जहाँ चाहोगे, जैसे चाहोगे, जितनी बार चाहोगे,... अभी से हाँ एडवांस में , आगे से पूछने की जरूरत नहीं, लेकिन अगर जरा भी बाहर रह गया तो कोई बहाना नहीं चलेगा , फिर तो कुट्टी। "



और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,
" तुम्हारी मेरे अलावा और कितनी बहिन हैं ? " waaaah 🔥🔥🔥🔥🔥
 
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