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भाग ९८
अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६
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धान के पौधों का वो नरम अहसास ... शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता....Bade khatrnak exp diya he.
फुलवा की माँ और चम्मो बो, कोयराने वाली भौजी ने मिल के गीता को रोपनी सिखा दिया था, कैसे कोमल कोमल नवजात शिशु की तरह के धान के पौधों को अपने मुलायम हाथों से हलके हलके,... अभी बहुत सम्हाल के धीमे धीमे वो कर रही थी, पर दिमाग उसका अभी भी अपने भाई पे लगा था, ...
Kya sabad istmal kiye he.
अरे अभी कहाँ, ... अभी तो ई गितवा के खसम का मोटा सुपाड़ा घुसा होगा,... अभी तो पहली चीख है " ज्यादा समझदार फुलवा की माँ बोली ,
ऐसे वर्णन जो न जाने कहाँ-कहाँ से उपजते हैं...Ye bade jan leva sabad he.
1) अरे जउन ताकत बहन चोदने से लंड में आती है, वो भी सगी, वो कउनो चीज से नहीं आ सकती,... अरे महीने भर का कहते हैं , उ शिलाजीत, ... असली वाला, ... खाये, सांडे क तेल लगाए उतनी ताकत तो एक बार बहिनिया चोदने से आ जाती है,... "
2) हाँ उसका भाई अरविंदवा उसे चोदता है , दिन रात चोदता है, गाँड़ भी मारता है, ... वो भाई चोद है , ...
3) अरे भौजी, तबे तो,... यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे के , ...चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "
Kya sabdo ka prayog kiya he. Maza aa gaya. Chhutki ki utsukhta ab bhi nahi ruki. Full masti bhara update
सबका अलग अलग थीम है.. अलग अलग ट्रीटमेंट.. भी...Ye to mohe rang de me padhne me maza aaya tha. Us kahani jesi or koi kahani nahi. Us jese sabad nahi or us jesi feelings kahi nahi. Komalji vo pyas bhujna ab kisi or kahani ke bas ki nahi.
अरे सौ मस्तराम भी बराबरी नहीं कर सकते....मस्तराम को फेल कर दिया लेखनी में कोमल बहिनी.... वैसे होली आ रही, अरविंदवा की पिचकारी सबसे ज्यादा कहाँ चलेगी? गितवा
हाँ... जो प्रतिबंधित या निषेध हो... उसे करने पर एक अलग हीं रोमांच पैदा होता है...एकदम सही और साथ में रिश्तों की भी तो बात है , क्या है वो, हाँ, ' ये रिश्ता कुछ कहता है " वाली बात भी तो है।
सही कहा... जो गाँव की दिनचर्या से परिचित हैं वो ये भली भांति जानते होंगे....यही तो गाँव में सुबह का समय थोड़ा बिजी -बिजी होता है. औरतों के लिए घर का काम, झाड़ू बहारु दूध गरम करना, दही बिलोड़ना, खाना पीना बनाना, और यही हालत मर्दों की होती है सुबह सुबह भोर में ही खेत, और काम करने वाले हों तो भी जा के देखना पड़ता है, फिर जानवरों का भी काम धाम, सानी पानी,... हाँ दोपहर के बाद तिझरिया में और तबतक गीता भी स्कूल से आती थी और अरविन्द भी खेत से,...
सचमुच अब फूहड़ता आ गई है....अब तो सब मिल जुल गया है हाँ मैं फ़िल्मी भोजपुरी ( आज कल की भोजपुरी फिल्मों की ) और भोजपुरी नेता अभिनेता के गानों वाली भोजपुरी से बचती हूँ, क्योंकि न उसमे लोकोक्तियाँ होती हैं न मुहावरे न गाँव की महक।
हमारे यहाँ कहते हैं, जबरा मारे रोये न देय, बस यही हालत है। न लिखने देंगे न लाइक करने देंगे।
इस दर्द की दवा नहीं है, कह सुन के बस हम बाँट लेते हैं।
मैंने इनकी USC वाली कहानी पढ़ी.. अच्छी लगी...ये कहानी भी बढ़िया लिखती हैं और चित्र भी बढ़िया और सबसे बढ़कर ऐसी दोस्ती निभाने वाली कम मिलेंगी इस फोरम पे