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बहुत बढ़िया और आखिरी लाइन तो
और फिर मांग में भर दी मलाई
देवर भाभी की मस्ती की यह पूरी कविता बहुत ही सुंदर और इसकी ये लाइनें क्राऊनिंग ग्लोरी हैं।
बहुत बढ़िया और आखिरी लाइन तो
चित्र बहुत अच्छे हैंनीचे देवर और भाभी के बीच इंटरकोर्स के दौरान चैट के कुछ अंश दिए गए हैं। आपकी प्रतिक्रिया जानना अच्छा लगेगा…
आह आ,,आ,,आह आराम से चोदो देवर जी आह आह बहुत दर्द हो रहा है, मेरी तो गांड फटी जा रही है, ऊफ़्फ़फ़ .. आज तो मेरी जान ही निकल रही है "
★ भाभी तुझे तो दर्द में मज़ा आता है ★
" आह उफ्फ्फ इतना भी दर्द ना दो राजा कि सुबह बैठा भी ना जाये, थोड़ा सरसों का तेल लगा ले ताकि दर्द ना हो "
देवर जी जब तेरे लंड पर बैठ उछलने लग जाऊं तो मेरी लटकती चुंचियो को सहलाया कर,इनको खूब दबाया कर, इनको पीया कर ओर हाथों से इन पर थपेड़े मारता मेरी चुंचियो की निप्पलों को छेड़ा कर,
इससे क्या होगा
मुझे मज़ा आयेगा, जब मुझे मज़ा आयेगा तो तुझे भी तो मज़ा दूँगी, ले अब वही कर जो बताया है "
हाय देवर जी तुम्हारा लोड़ा तो बहुत मस्त है,चूसकर मज़ा तो लेने दो, ऐसे लंड की बहुत प्यासी हूँ,आहह राजा तेरा टोपा तो बड़ा मस्त है पूरा गले तक जा रहा है, चुत में जायेगा तो पता नही कहाँ तक जायेगा और क्या क्या करेगा"
भाभी खोल दो अपनी सलवार
देवर जी पहली बार चुद रही हूँ तुमसे बड़ा मोटा है... जरा धीरे से घुसाना
नायिका की चर्चा कामशास्त्र के पश्चात् अग्निपुराण में है, भरतमुनि के मत का अनुसरण करते हुए भोजदेव ने नायिका भेद का निरूपण सविस्तार किया है। भोज ने भी यह भेद स्वीकारा है-धन्यवाद कोमल जी। आपके द्वारा की गई सराहना आपकी सज्जनता को दर्शाता है
मैं साहित्य के इस क्षेत्र में अभी शुरुआत कर रही हूं और आप एक चमकता हुआ सूरज हैं। हमारे पथ पर आगे बढ़ने के लिए आपकी चमक की हमेशा आवश्यकता है
नायिका की चर्चा कामशास्त्र के पश्चात् अग्निपुराण में है, भरतमुनि के मत का अनुसरण करते हुए भोजदेव ने नायिका भेद का निरूपण सविस्तार किया है। भोज ने भी यह भेद स्वीकारा है-
गुणतो नायिका अपि स्यादुत्तमामध्यमाधमा।
मुग्धा मध्या प्रगल्भा च वयसा कौशलेन वा।।
अर्थात आयु के आधार पर नायिका के तीन भेद किये गए गए हैं , मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा, और इसी प्रगल्भा को प्रौढ़ा भी कहा गया।
श्रृंगारप्रकाश‘ में नायिका भेद अधिक विस्तार के साथ वर्णित है। यहाँ भी आयु के अनुसार मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा भेद किया गया है।
काव्यानुशासन में हेमचन्द्र ने भी नायिका-विवेचन किया है, किन्तु यहां अत्यन्त संक्षिप्त विवरण है। मध्या, मुग्धा औश्र प्रगल्भा तीनों के दो-दो भेद वय एवं कौशल के आधार पर किया गया है.
कामचेष्टारहित अंकुरितयौवना को मुग्धा कहते हैं जो दो प्रकार की कही गई है—अज्ञातयोवना और ज्ञातयौवना ।
अज्ञात यौवना यानी जहाँ उसके अलावा सारे मोहल्ले वालों को मालूम हो की रेशमा जवान हो गयी है और सहेलियां , भाभियाँ और सबसे बढ़ के लड़के जवानी के आने का उसे अहसास कराने लगें।
ज्ञातयौवना के भी दो भेद भेद किए गए हैं—नवोढ़ा जो लज्जा और भय से पतिसमागम की इच्छा न करे ओर विश्रब्धनवोढ़ा जिसे कुछ अनुराग और विश्वास पति पर हो.
अवस्था के कारण जिस नायिका में लज्जा और कामवासना समान हो उसे मध्या कहते हैं ।
कामकला मे पूर्ण रूप से कुशल स्त्री कौ प्रौढ़ा कहते हैं ।
अगर प्रौढ़ा में भी आयु के हिसाब से दो भेद करने हों तो भाभियाँ पहली श्रेणी में आएँगी और एम् आई एल ऍफ़ कैटगरी वाली दूसरी श्रेणी में। लेकिन होती दोनों कामकला में पूर्ण रूप से कुशल है
अगर हम उस कहानी की बात करें तो अरविन्द को सम्भोग कला के गुण जिसने सबसे पहले सिखाये, उसकी चाची वो प्रौढ़ा की श्रेणी में आएँगी और भाभियाँ ( उनका उल्लेख है लेकिन विस्तृत वर्णन नहीं ) वही भी प्रौढ़ा की श्रेणी में लेकिन पहली श्रेणी में।
फुलवा, गीता और उसकी सहेलियां सब ज्ञात यौवना की श्रेणी में
इसलिए मैंने कहा की भाभी का जो निरूपण आपने किया है वह भारतीय साहित्य की परम्परा के अनुरूप है और वो किसी भी कसौटी पर प्रशंसा के अनुकूल है।
Bahut badiya. Maja aa gaya
गुणी जन के संपर्क में आने से ज्ञान खुद ब खुद आपको भी मिलने लगता है...sab aap asar hai aap is thread par aayin aur kavita ko kitana badhava mila