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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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komaalrani

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और जब एक बार हल का फाल घुस गया ..
तो फिर जुताई के साथ साथ बीज पानी ..
सबकुछ डाल के हीं...
और क्या,

हल के बाद पाटा भी चलेगा, खेत में

और एक बार जिसने ओपन एयर का मज़ा ले लिया, इसलिए किसी कवि ने कहा है

अहा, ग्राम्य जीवन भी क्या है

ऐसी सुविधा और कहाँ है
 

komaalrani

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My entire comments .. more than 3000 (in four figures).. are on your stories only...
I enjoy not only story and comments but also your replies on those comments and sometimes clarifications too.
If you were not here, I may be a silent reader.
Take A Bow Thank You GIF by Iliza
Thanks Thank You GIF by 大姚Dayao
Lisa Kudrow Reaction GIF by The Comeback HBO
Thank God GIF by Originals
Happy Rainbow GIF
aur uske bina ye itti lambi ho bhi nahi paati
 
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komaalrani

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Kahani to Apke perspective se hi sunni hai, male character ke perspective se wo maja nhi ata. Me to bus isiliye bol raha hai taki bus family ke baare me pta chal. Ki pitaji / sasur ji kahin ghar se baahar gaye hai ya alag rehte hai ya bhagwan ke pass chale gaye, bus isse jyda or kuch nahi, apki story sabse jyada to isliye achhi lagti gai kyun female side padhne ko milta hai
आपने बात ठीक उठायी है

गीता के पिता का जिक्र आया है इस कहानी में कई बार

पेज ३१७ भाग ४२ में


किस्से माँ के

उसी के दूसरी पोस्ट जिसकी हेडिंग है किस्सा माँ की होली का

उसमें

बुआ का गौना तीन चार महीने पहले ही हुआ था और उन्होंने फूफा जी को खूब गन्दी वाली गारियाँ और कोहबर में उन्होंने और रगड़ाई की, फूफा जी ने भी मौका पा के जोबन नापा और बोल के गए थे होली में आयंगे, तो माँ ने खुद उनको सुना के कहा, आपकी पिचकारी पिचका के रख दूंगी।


बस सुबह सुबह, बुद्धू बना के माँ की ननद और सास ने, माँ को डबल भांग वाली ठंडाई पिला दी,... वैसे भी वो गरमाई थीं,

पति उनके १५ दिन से गायब थे, बंबई और बोल के गए थे होली में आएंगे , दो चार दिन पहले, लेकिन,....


( गितवा की जुबानी है ये कहानी )

और फिर

और मेरे बाबू भी, पता चला की कोई मालगाड़ी गिर गयी थी तो उनकी ट्रेन घूम घाम के डेढ़ दिन लेट,...


तो रात को तो उन्होंने माँ की क्लास ली ही,


तो बस दो तीन पोस्ट और इन्तजार कर लीजिये

हाल खुलासा बयान होगा अभी से कुछ बोलने से गड़बड़ा जाएगा,... बहुत सी बातें आएँगी लेकिन अभी


अगली पोस्ट में फुलवा की ननद का किस्सा
 

komaalrani

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बहुत ज्यादा प्रभावित करती है जुताई
जुताई वो भी सही समय पर सही ढंग से होनी बहुत जरूरी है आपने एकदम सही कहा वैसे भी भारत कृषि प्रधान देश है
 

komaalrani

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भाग ५३ - पृष्ठ ४९५

फुलवा की ननद
 

komaalrani

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भाग ५३ -

फुलवा की ननद-अमराई का किस्सा



छुटकी से नहीं रहा गया वो उछल गयी

" सच में ये तो बहुत नाइंसाफी है क्या अरविन्द भैया ने उसकी गाँड़ नहीं मारी थी , आप कह रही थी चुदवाती तो भैया से खूब चूतड़ मटका मटका के तो पिछवाड़े के मामले"




एक बार फिर फिर उसके रसीले होंठों को चूम के गितवा बोली,

" एक बात समझ ले की ननद का मतलब छिनार, और फुलवा की ननद तो हम सब की,पूरे गाँव की लड़कियों की ननद, छिनार नहीं जब्बर छिनार। स्साली नौटंकी करती थी, लेकिन गलती वो स्साले तेरे भाई की,अरविन्द की भी कम नहीं। लंड उसका जितना सख्त है दिल उतना मुलायम है और बहनचोद बुद्धू भी बहुत है कोई भी लड़की उसे चरा देगी। मैंने भैया से पूछा भी कई बार , कहा भी,


तो वो बोला की,, अरे वो बहुत चिल्लाती है , नौ नौ टसुए बहाने लगती है। जैसे ही मैं पिछवाड़े छुआता भी हूँ एकदम उछल जाती है, और टाइट है भी उसकी बहुत। अब वहां खेत में कहाँ तेल "

छुटकी वैसे तो बड़ी बहन की बात कभी नहीं काटती थी लेकिन अब उससे नहीं रहा गया, उफनती हुयी बोली,

" स्साली छिनार, अरे पटक के सूखे पेलना चाहिए था,... "



" यही तो , मैं भी भैया से बार बार कहती थी लेकिन वो सुने तब ना"


गीता ने अपना दुख सुनाया।
" तो क्या फुलवा की ननद अपना पिछवाड़ा कोरा लेकर चली गयी। " छुटकी उदास हो के बोली।

" अरे नहीं यार तेरी बड़ी बहन किस लिए हैं हम लड़कियों की नाक कट जाती अगर उसकी फटती नहीं और फिर मेरी पक्की सहेली चमेलिया थी न ,... लेकिन तू अब बीच में मत बोलना , वरना नहीं सुनाऊँगी अमराई का किस्सा। "

छुटकी ने दोनों कान पकडे और होंठ पे ऊँगली लगा के चुप रहने का इशारा किया और गितवा ने अमराई का किस्सा आगे बढ़ाया।

चमेलिया ने मुझसे कहा " सुन गितवा ये बिना गाँड़ फड़वाये चली जायेगी तो पूरे गाँव की नाक कटेगी. चल हम दोनों मिल के ही इसकी फाड़ देते हैं लंड से नहीं मुट्ठी से ही सही,.. "



और ये कह के चमेलिया ने फुलवा की ननद के दोनों हाथ कस के जकड़ लिए और मैंने आराम से उस की साड़ी पहले पेटीकोट से खोल के अलग की और खींच के एक ओर,

लेकिन फुलवा की ननद हंस रही थी, खिलखिला रही थी मुझे और चमेलिया को चिढ़ा रही थी,

" अरे जा जा , हमरे भैया के सारे में ताकत ही नहीं थी हमार गाँड़ मारने की ( अरविन्द को वो ' भैया क सार ' ही कहती थी और फुलवा उसके सगे भाई को बियाही थी, हमारे गाँव की लड़की, तो उस हिसाब से सही ही बोलती थी ), ... तू दोनों चला कल हमरे साथे हमरे गाँव, तोहरे बहिनी के देवर से मरवाइब तोहं दोनों की गाँड़,... "



मुझे बुरा लगा अरविन्द के बारे में जैसे वो बोल रही थी , उसकी साड़ी दोनों हाथों में कस के पकड़ते मैंने भी जवाब दिया,

" अरे जब हमार भाई मारना चाहता था तो दस बहाना तुंही बनायीं थी मार जोर जोर से चिल्ला रही थी, और जहाँ तोहरे गाँव के लौंडन क सवाल है तो भेज देना हमार भैया उनकी भी गाँड़ मार के भाड़ बना देगा तोहरे महतारी के भोंसडे से भी चाकर, ... उ सब खुदे गांडू,... "

लेकिन फुलवा की ननदिया, हँसते हुए बोली,

" हमरे भैया क सार और तोहार भाई एकदम बुद्धू हैं लड़की का तो काम रोना चिल्लाना मना करना है , मारने वाला मार लेता है अर्जी नहीं देता। "



और ये बात उस की एकदम सही थी, अगर मैं पहल न करती तो मेरी झिल्ली अबतक वैसे ही रहती , गीता ने हँसते हुए छुटकी से कबूला।

" फिर क्या हुआ " छुटकी अमराई का वो किस्सा बहुत ध्यान लगा के सुन रही थी।

" अरे वो फुलवा की ननदिया पक्की छिनार, हंस के गितवा बोली,...

मैंने उसकी साड़ी जो मैंने खींच के उतार ली थी पेड़ के ऊपर फेंकने के लिए हाथ दोनों ऊपर किये लेकिन रोकने के बजाय वो खिलखिला रही थी और मैं तब समझी जब मेरे फेंकते फेंकते, उसने मेरी साड़ी भी पेटीकोट से खींच दी और आँचल हाथ में पकड़ के वो चक्कर घिन्नी खायी की पूरी साड़ी उसके हाथ में और उसने मेरी साड़ी भी वहीँ फेंक दी जहाँ मैंने उसकी फेंकी थी अब हम दोनों ब्लाउज पेटीकोट में,... "


छुटकी जोर से मुस्करायी और गितवा बोली,...

और चमेलिया हम दोनों को पेटीकोट ब्लाउज में देख के हंस रही थी बोली, बड़ी अच्छी लग रही हो तुम दोनों,... बस हम दोनों ने मिल के उस की साड़ी खींच के आम के पेड़ पर फेंक दी और अब हम तीनों हंस रहे थे. लेकिन ये पहली बार नहीं हो रहा था हम तीनो आपस में खूब मस्ती करते थे, किसी दिन मैं अरविन्द से चुदवा के उन दोनों के पास पहुंचती थी, और मैं और चमेलिया उसे पटक के,... फिर मैं अपनी बिल फुलवा की ननदिया के मुंह पे रगड़ रगड़ के चटाती थी और पूछती थी बोल किसकी मलाई है


वो स्साली हंस के बोलती, अरे हमारे भैया क साले की और किसकी, ऐसी गाढ़ी स्वादिष्ट मलाई और कहाँ मिलेगी, और बची खुची होंठ पे चिपकी जीभ से चाट लेती,

चमेलिया उसे और चिढ़ाती, जउने दिन तोहरे भैया के सार गाँड़ मारेंगे न गितवा की तो सीधे अपने पिछवाड़े से खिलाएगी।

लेकिन उस दिन तो मामला कुछ और था हम दोनों ने तय किया था की फुलवा की ननद का पिछवाड़ा बिना फटे नहीं जाएगा , तो बस हम दोनों ने मिल के पहले तो पकड़ के उसकी चोली खोली,... और वो गरिया रही थी

" अरे हमरे भैया क सारे क रखैल,... तोहरे भाई का तो ताकत थी नहीं गाँड़ मारने की. महीना भर तोहरे गाँव में रह के कोरी गाँड़ ले के लौटेंगे तो तू लोग कहाँ से मारोगी,... हाँ बहुत मरवाने क मन कर रहा हो चला हमरे साथ फुलवा से मुलाकात भी कर लेना और अगवाड़ा पिछवाड़ा का स्वाद भी बदल लेना। "



लेकिन गलती से उससे ये हुयी की वो जोर जोर से बोल रही थी और उसी समय अरविन्द भैया बाग़ में पीछे से आये , मैंने और चमेलिया ने तो देख लिया पर फुलवा की ननदिया की पीठ उनकी ओर थी उसने नहीं देखा और वो बोलती रही,...



" हमारे भैया क सार वैसे तो बहुत निक है आपन बहिन दिए हैं हमरे भैया को, औजार भी तगड़ा है, ओनकर माई जरूर गदहा घोडा से चुदवाए होंगी लेकिन गाँड़ फाड़े वाली हिम्मत नहीं है . देखा हम कोरी गाँड़ लिए आये, कोरी लिए जा रहे हैं और वो मुंह से लार टपकावत,..."



तबतक भैया ने पीछे से उसे दबोच लिया और मैंने और चमेलिया ने भी,
 
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