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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Sister_Lover

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कोमल जी, आप कहती हैं आपने पहले कभी इंसेस्ट नहीं लिखा पर इतना सब पढ़कर तो लगता है आप सर लेखन में पारंगत है। सबसे बड़ी बात जो यहाँ के अधिकतर राइटर नहीं समझते और इंस्टाग्राम पर भी इंसेस्ट पेज बनाकर पोस्ट करनेवाले भी नहीं समझते कि इंसेस्ट का मतलब बहन को पटाकर बस चूत में लंड डालने का दो चार सीन दिखा दिया और बात खत्म.... जबकि इसमें और भी बहुत कुछ होता है जो आपने बखूबी दिखाया है। बहन का छेड़ना, माँ की गालियां, सहेलियों के सामने गीता का भैया के लंड पर गर्व करना और भी काफी कुछ.... आप ने मस्तराम को बहुत पीछे छोड़ दिया कोमल जी.... और माफी सहित कहना चाहूंगा कि मैंने अपने इंस्टाग्राम इंसेस्ट पेज के लिये आपके लिखे कुछ संवादों का प्रयोग किया है वहाँ के लोगों के मनोरंजन के लिये, उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी। बाकी इंसेस्ट का तड़का आगे भी लगाते रहियेगा और कहानी तो कभी खत्म ही ना हो ऐसी मन में आशा है। 🙏
 

taamrambha

Sab kuch lover
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भाग ५४


चस्का - स्वाद पिछवाड़े का




ननदिया की हालत ख़राब हो रही थी वो चूतड़ पटक रही थी सिहर रही थी लेकिन जैसे ही वो झड़ने के नजदीक आती मैं रुक जाती और मेरी ये बदमाशियां देख के मेरा अरविन्द भैया भी खूब खुश, एक बार फिर से उसने ननदिया की टाँगे अपने कंधे पे सेट की और फिर क्या जबरदस्त धक्के ननद की गाँड़ में मारने शुरू किये, बचपन से वो गाँड़ मारने का रसिया आज एकदम कसी कच्ची कली मिली थी और वो भी अपनी सगी बहन के सामने उसकी ले रहा था था,...



" अरविन्द भइया और जोर से मार स्साली की कल तो चली ही जायेगी, इतने दिन से नौटंकी कर रही थी स्साली,... फाड़ के चीथड़े कर दे इसकी गाँड़ "

और ये कह के गितवा बोली और भैया को चूम लिया बस जैसे किसी ने एक्सीलेरेटर पर पूरी ताकत से पैर रख दिया हो, भैया ने चुम्मी का और जोश से जवाब दिया और दूनी तेजी से फच्चर फच्चर,... ननद की गाँड़ में और देखा देखी गितवा ने एक ऊँगली और ठेली, और चारो ऊँगली उसकी बुर में गोल गोल, अंगूठे से क्लिट और एक हाथ पीछे कर के उसकी बड़ी बड़ी चूँची दबा मसल रही थी, दूसरी चूँची चमेलिया के कब्जे में

और अबकी जब फुलवा की ननद झड़ी तो गितवा रुकी नहीं बल्कि और जोर से,... थोड़ी देर में ही दो बार, तीन बार,... झड़ झड़ के वो थेथर हो गयी थी लेकिन न भैया ने गाँड़ मारने की रफ्तार की न चमेलिया ने उसके मुंह पे अपनी गाँड़ रगड़ने की,...


ननद की कसी गाँड़ में अपने भाई के मोटे मूसल के अंदर बाहर होते देखने का मज़ा ही कुछ और है। लेकिन गितवा के मन में एक और शरारत आयी झुक के भैया के बांस के थोड़े से हिस्से को पकड़ के गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया जैसे कोई मथानी चल रहा हो और उसका असर ननद के पिछवाड़े वही होता जो मथानी चलने का होता है,...

तबतक चमेलिया भी उतर के आ गयी, और वो काम उसने अपने जिम्मे ले लिया और गितवा एक बार फिर से ननद को झाड़ने,... और अब जब वो झड़ी तो फिर झड़ती रही देर तक और साथ में भैया भी ,


चमेलिया गोल गोल घुमाती रही और भैया का खूंटा पकड़ के सीधे फुलवा की ननद के मुंह की ओर




लेकिन फुलवा की ननद कम खिलाडी नहीं थी, वो समझ रही थी चमेलिया का करने वाली है उसकी गाँड़ से निकला सब कुछ उसी के मुंह में,... फिर सब चिढ़ातीं उसको,... कैसा स्वाद लगा,... पूछतीं,... उसने कस के मुँह भींच के बंद कर लिया, लेकिन अपनी भौजाई की फुलवा की गाँव वालियों को उसने कम समझा था, गितवा थी न उसके साथ. वो भी कम जब्बर नहीं थी.

बस गितवा ने झट से पूरी ताकत से एक हाथ से ननद के नथुने भींच लिए और दूसरे हाथ से गाल कस के दबा दिया और लगी गरियाने,

" खोल ससुरी, हमरे भैया के आगे बुर खोलने में लाज नहीं, गाँड़ फैलाने में शरम नहीं और साली तोर सारी बहिन महतारी को अपने भैया से चोदवाउ, .... मुंह खोलने में छिनरपना,... खोल नहीं तो मार मार के,... "



सांस ननद के लिए लेना मुश्किल हो गया था, एक पल के लिए उसने जरा सा होंठ खोला होगा,

बस गीता ने उसके दोनों गालों को इत्ती कस के दबाया की मुंह उसने चियार दिया और चमेलिया तो तैयार बैठी बस फुलवा की ननदिया की गाँड़ से निकला लिथड़ा चुपड़ा सुपाड़ा उसने अंदर ठेल दिया,... और बस एक बार मरद का सुपाड़ा अंदर जाने की देर होती है उसके बाद तो बस, कउनो छेद हो वो बिना पूरा पेले छोड़ता नहीं और अरविंदवा तो पंचायती सांड़, और मुंह भी फुलवा की ननद का जो महीने भर से नौटंकी कर रही थी गाँड़ मरवाने के नाम पर, उसने भी जोर लगा दिया और सुपाड़ा पूरा अंदर,...




फुलवा की ननद ने दूसरी नौटंकी चालू कर दी,... आँख बंद कर ली, .. लेकिन जब तक खुद अपने आँख से न देखे की उसके मुंह में क्या जा रहा है क्या चाट रही है क्या चुपड़ा,...

और अब चमेलिया चालू हो गयी, उसके हाथ तो खाली हो गए थे और गारी देने में उससे आगे खाली उसकी माँ थी पूरे गाँव में,...

पहले तो उसने कस के नन्द के निपल मरोड़ने शुरू किये फिर गरियाना



" अरे छिनार रंडी की जनी. आँख खोल तोहरी गाँड़ का ही तो माल है, अभी मेरे पिछवाड़े का तो अंदर तक जीभ डाल डाल के चाट रही थी चूस थी तो कउनो बात नहीं और अपने बारी में,... खोल स्साली वरना मार मार के तोहार चूँची और चूतड़ दोनों लाल कर दूंगी ,"

गितवा को अब नथुने दबाने में मजा आने लगा था उसने वही काम किया और अब तो मुंह में मोटा मूसल धंसा,

झट से उसने आँखे खोल लीं और अब चमेलिया और गितवा दोनों चिढ़ाने लगी,

" अरे लजा काहे रही हो तोहरे हैं , देख लो कौन रंग हो गया का का,... बस थोड़ी देर में चिकना चुपड़ा कर दो पहले जैसा, चाट चाट के तो फिर निहुरा के, कल भिन्सारे तो जाना ही है ये भी स्वाद ले लो "

और अब अरविन्द भैया भी मूड में आ गया था, कस के फुलवा की ननद का सर पकड़ के उसके मुंह में ठेलते बोला,

" अरे आधे तीहे में का मज़ा, अपने मायके जाके शिकायत करोगी, भौजी के गाँव में कंजूसी कर दिया,... "




बेचारी फुलवा की ननद बोल तो सकती नहीं थी मुंह में ठूंसा हुआ, अब वो भी चूसने चाटने लगी, और कुछ देर में ही अरविन्द फुलवा की ननद का मुंह कस कस के चोद रहा था, वो लेटी हुयी और वो ऊपर से चढ़ा,...

अरविन्द फुलवा की ननद का मुंह हचक हचक कर चोद रहा था उसी मूसल से जो थोड़ी देर पहले ही फुलवा की ननद की गाँड़ में जम के मथानी चला रहा था और अब फुलवा की ननद के पिछवाड़े का, उसी के मुंह में

और जब ननद के साथ ये हो रहा हो तो चिढ़ाने छेड़ने का मौका कौन छोड़ता है और गितवा और चमेलिया दोनों ही फुलवा की ननद के पीछे,


" अरे ननद रानी घबड़ा मत, अभी अपने पिछवाड़े का स्वाद चख रही हो तो थोड़ी देर बाद हम दुनो भी अपने अपने पिछवाड़े क स्वाद अच्छी तरह चखाएंगे, ये नहीं कह पाओगी की भौजी के गांव गए और उनकी छुटकी बहिनिया सब खातिर नहीं की "

चमेलिया चिढ़ाते हुए बोली।



गितवा क्यों पीछे रहती, दो दिन रोपनी में रह के फिर रोपनी वालियों से दोस्ती के बाद गारी देने में अब वो भी नंबरी, और सामने ननद हो तो कोई भी बिना गरियाये कैसे बात करेगा, ननद बुरा न मान जायेगी,...

" अरे ननदो आराम से धीरे धीरे चाट चाट के चूस के अच्छी तरह से स्वाद ले लो। अपने मायके जाओगी महतारी पूछेंगी की तोहरे भौजी क बहिन लोग का का खियाईन कैसा स्वाद था तो कैसे बताओगी, आराम से चाटा भैया निकालेंगे नहीं "

फिर गितवा ने अरविन्द की ओर रुख किया और एक असली सगी छोटी बहन की तरह लगी हड़काने,... "

" भैया दो इंच हमरे ननदिया के मुंह से बाहर काहें रखे हो। एकरी महतारी के भोंसडे के लिए लेकिन वो तो कातिक भर गांव क,... पेला पूरा कस के, अरे बेचारी बड़ी दुखी थी। बोल रही थी हम तो सोच रहे थे तोहार भैया, हमरे भैया क सार रोपनी में ही अगवाड़े पिछवाड़े दोनों की रोपनी करेंगे लेकिन मैं तो पिछवाड़ा कोरा का कोरा लेकर जा रही हूँ का मुंह दिखाउंगी अपने गाँव में जा के,... "

बस यह सुन के अरविन्द अलफ़, पूरी ताकत से उसने धक्का मारा और सुपाड़ा सीधे हलक में जा के लगा , और गितवा चमेलिया यही तो चाह रही थीं, दोनों ने कस के फुलवा की ननद का सर पकड़ लिया और अरविन्द पूरा का पूरा बित्ते से बड़ा खूंटा मुंह में पेले हुए और अब उसकी बारी थी फुलवा की ननद को छेड़ने की,



" बहुत भैया क सार बोल रही थी न जा के बोलना अपने भाई से अब ऊ हमार सार हैं, ओनकर बहिनी को चोदा भी गांड भी मारा,... अब आगे से कभी जाना भौजी के गाँव तो उनके भैया को जीजा कह के बोलना "

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Jkg se kamuk bahot jyada hai lekin Komal ki baat hi alag hai, shayad femdom ko Hindi Stories me nahi dikhaya jata isliye komal kuch alag lagti hai ,vo ekdum mommy hai , 💜❤️❤️💜💜
but iski kahani ki baat Karu to isme har koi free hai jaise koi alag duniya ho, aur north backdrop aur rishtedaro ki jaise sas-bahu ,nanad -bhabhi ki khichatani jkg ki tarah hi isme ho rahi hai .ise bahut erotic banati hai .pics upar se tadka marte hai ,
Aur mujhe ye jkg se erotic is liye lagi kyuki isme planning nahi thi jyadatr interaction the dialogue the jo ki do different stories bhi hai .
Phir bhi komal hi meri mommy hai .
 

arushi_dayal

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कोमल जी क्या आपकी ये सभी कहानियां इस फोरम पर मिल सकती है या कैसे मिल सकती है ?? बताइए

सादर
Komal ji..

Can you post or send me folliwing stories

चांदनी चली गाँव
 

Shetan

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Ab dobara kahani asli mere matlab aur fantacy ki he. Me aage be sabri se intjar kar rahi hu.
 

Sutradhar

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सोलहवां सावन, गुड्डी, उसकी भाभियों और अजय, रविंद्र से बढ़कर कहानी थी,

सावन की खासतौर से सोलहवें सावन की, और साथ में गांव की,...

मेरी कोशिश थी की एक किशोरी की तरुणी बनने की,... जैसे एक कली चटक के फूल बनती है उस पल को , संजोने की,...

कभी आपने देखा होगा जब एकदम सूखी मिट्टी पर बारिश की पहली बूंदे पड़ती हैं तो कित्ती सोंधी सोंधी सी खुशबू आती है,... तो बस उसी खुशबू को कैप्चर करने की,...

और उसके बाद कितनी भी बारिश हो , परनाले बहें, मेंड़ टूट जाए पर वो खुशबू दुबारा नहीं आती,... तो बस

रक्षाबंधन के साथ सावन की समाप्ति करना मुझे श्रेयस्कर लगा

क्योंकि उसके बाद एक तो दुहराव होता,.. दूसरे कहानी लिखने में मुझे सबसे अच्छा लगता है चेंज को दर्शाना, एटीट्यूड में नजरिये में

और रविन्द के साथ,.. आपने देखा होगा वो चेंज गुड्डी में हो गया था, पहल उसी ने किया, अब देह के सुख के लिए उसे घबड़ाहट झिझक नहीं हो रही थी, हाँ उसे अहसास था रविन्द की झिझक का,..

जबकि गाँव में वो शुरू में झिझकती थी , वहां आग लगाने वाली उसकी समौरिया चंदा थी, भाभियाँ थीं,... और अजय के साथ भी पहले मिलन की झिझक साफ़ साफ है , गाँव के रतजगे में गानों में सब खुल जाती है धीरे धीरे


तो बस मुझे लगा की अब कहानी को आगे बढ़ाने से एक तो दुहराव होगा दूसरे अब पहली बारिश की खुशबू नहीं रहेगी ,... और कहानी लिखने में कहाँ रुका जाए , किस टर्न पे ये एक बड़ा मुश्किल चैलेन्ज रहता है , तो बस मेरी सोच यही थी

पूर्णतया सहमत कोमल जी

वस्तुत पाठक अपने तरीके से सोचता है और लेखक का नजरिया जरूरी नहीं है कि उससे मिलता हो।

आपके कमेंट से आपका नजरिया स्पष्ट हुआ । किसी भी कहानी का आरंभ और अंत उसके सृजक का प्राकर्तिक अधिकार है।

फिर भी रविंद्र वाला प्रकरण पूर्ण हो ऐसी आकांक्षा है।

बाकी आप जैसा चाहेंगी मुझ जैसे पाठक उसी में संतोष कर लेंगे।

क्योंकि मेरा ऐसा मानना है कि लेखक का दृष्टिकोण पाठक की तुलना में अधिक व्यापक होता है।

सादर
 

Random2022

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bahut jordaar planning hai, bus match ka intejar hai ab,. IPL to nhi dekha is baar but yeh match ka intejaar h
 

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग १९३

बिजनेस कोचिंग का



update posted, please read, enjoy and comment,

 

komaalrani

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IMG-20230604-192808
Guess who?​
Thanks so much after a few posts ( if the story continues ) the pic may find a place in the story. i am going to write a part around this pic.
 

komaalrani

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bahut jordaar planning hai, bus match ka intejar hai ab,. IPL to nhi dekha is baar but yeh match ka intejaar h
thode se comment aa jayen kuch log pdh len . I posted this part on page 557 and in almost a week it has moved to page 558. 4-5 comments in 5-6 days. lack of comments are also a comment and only deaf writers (like me) sometimes ignore them and keep on writing posting, without listening to surrounding. I have already written next few parts, and hope to post them soon. just keeping my fingers crossed.
 
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