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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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क्योंकि कोमल जी...Aap jo hindi me likh chuki hai unhe bhi post kariye. Kyunki wo story to aoke system pr already hogi, sirf copy paste krna hai, kyun aap apne pathko ko apni kala se vanchit rakhna chahti hai. Jo bhi apne pichla likha hai, uska padhne ka saubhagya dijiye,
Welcome....Thanks so much for nice words, i at one time was thinking of re -posting phagun ke din chaar and may be a few short stories.
शुरुआत... अरे ये तीसरा पार्ट है...Achhi suruat ki hai kahani ki aapne
लेकिन वहाँ भी पुजारियों की जमात होती है...कोमल जी बहुत-बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिए बहुत आनंद आया यह पोस्ट पढ़ने के बाद जोरू के गुलाम जो पोस्ट की थी वह भी पढ़ने में बहुत मजा आया उसे पोस्ट के लिए बहुत धन्यवाद कोमल जी आपसे शिकायत है कि हम यह नहीं कहते कि एक ही पुरुष रखो हीरो एक होना चाहिए जो दूसरों पुरुष हैं हीरो को बराबरी मत रखो हीरो और दूसरे पुरुषों में कुछ तो अलग अलग रहना चाहिए कोमल जी जब तुम दूसरे पुरुषों के बारे में लिखना शुरु करती हो पर इतना बड़ा चढ़ा कर लिख देती हो कि जो इस कहानी का हीरो है हीरो कम गढ़वा ज्यादा लगने लगता है हीरो के बारे में ध्यान देना आपको बहुत जरूरी है कोमल जी कोमल जी ऐसा पोस्ट करिए की हर पोस्ट का आनंद और रस ले सकें जैसे मंदिर का हीरो पुजारी होता है जैसे शास्त्र और ज्ञान के बारे में पूर्ण होता है इस प्रकार इस कहानी का हीरो हर कला में न्यू पूर्ण होना चाहिए कोमल जी थोड़ा सा आपको ध्यान देना है जैसे लिंग के लंबाई और मोटी दूसरों पुरुषों से ज्यादा लंबा और मोटा सेक्स करने का टाइमिंग भी ज्यादा होना चाहिए तब जाकर हीरो हीरो वाली फीलिंग आती है बस आपसे आग्रह करता हूं इसलिए दोनों पोस्ट बहुत अच्छी लगी इसलिए कमेंट और लाइक दोनों कर दिया हूं बहुत-बहुत धन्यवाद
सीखने बजाय .. चाहतों का अंबार मिलता है...bahoot bahoot dhanyvad aap saath bnaaye rkahiye padhte rahiye aap ke comments se bahoot kuch sihne ko milata hai
शायद आपाधापी कुछ ज्यादा हीं हो गई....इस बार कुछ कारणों से शायद कमेंट्स बहुत कम आये
लेकिन पढ़ने वाले मेरी कहानियों के पाठकों की संख्या के हिसाब से काफी थे करीब २७ हजार और कमेंट कुल ६ मित्रों के, . १ प्रतिशत से भी कम
पर जीवन की आपधापी में ऐसा हो जाता है इसलिए बहुत इन्तजार न कराते हुए अगली पोस्ट आज ही
पहला आशीर्वाद .. और भी नशीला..भाग ६७ - होलिका माई
११,६१,६७५
मेरी सास ही नहीं गाँव की हर औरत मानती थीं, बुरा वो जिसमें जोर जबरदस्ती हो, लड़की को औरत को पसंद न आये,... उसको मजा न मिले,...
और अच्छा वो जिसमें दोनों की मर्जी हो , मजा मिले अच्छा लगे,... और बाकी सब के लिए आशा बहू थीं न उन्हें सब पता रहता था की गाँव में कौन लड़की स्कर्ट पसार रही है तो उसे खुद गोली खिलाने, … और अब तो इस्तेमाल के बाद बाली भी गोली मिलती है,... और किससे करवाना है नहीं करवाना है ये फैसला भी लड़की का, औरत का।
देवर नन्दोई जीजा का तो हक़ भी होता है लेकिन उसके साथ भी मर्जी वाली बात रहती थी.
लेकिन फागुन लगते ही ऐसी फगुनाहट चढ़ती थी न,... जैसे आम बौराता है, जवान होती लड़कियां, भौजाइयां सब बौरा जाती थीं, अगर देवर कोई नखड़ा कर्रे तो भौजाई उसका पाजामा खोलती नहीं फाड़ देती थीं, और जीजा अगर गलती से थोड़ा सीधा मिल गया तो बस गाँव की सब लड़कियां मिल के चढ़ जाती थीं, और साली सलहज का तो रिश्ता लगता है सास उनसे भी दो हाथ आगे,
न रिश्ता न नाता, सिर्फ मस्ती।
जेठ ससुर जिनसे बाकी ११ महीने थोड़ा दूरी रहती है उनके साथ भी एकदम खुल के मजाक, छेड़छाड़,... और अगर कहीं रिश्ते में, गाँव के रिश्ते से देवर मिल गया, गली गैल में, कहीं नन्दोई आ गए, और लड़कियां भी अपने न हों तो सहेली के जी जीजा, गाँव में किसी के जीजा, और भाभी के भाई भी,...
( आखिर मेरे ममेरे भाई चुन्नू ने इनकी सबसे छोटी बहन की बिल का फीता काट दिया था, जब वो होली में लेने आया था मुझे,... और मंझली ननद ने खुद चढ़ के,... उसे ). जैसे जैसे होली नजदीक आती है चट चट कर के बंधन टूटने लगते हैं , फिर होली और रंग पंचमी के पांच दिन तो,... और सबसे बढ़कर औरतों और लड़कियों में रिश्तों का भी सिर्फ ननद भौजाई नहीं, सास बहू भी, सहेलियां भी आपस में,...
अगर पाहुन आये, और घर में साली सलहज है, फिर तो सलहज ही साली का नाड़ा अपने नन्दोई से खुलवाती थी नहीं तो खुद तोड़ देती थी , और अगर सलहज न हुयी तो सास ही अपनी बेटी का हाथ पीछे से पकड़ के आ रहे कच्चे टिकोरे, ऑफर कर देती थी
" अरे तनी ठीक से सही जगह पे रंग लगावा,... "
इसके बाद कौन जीजा चोली में हाथ डालने से अपने को रोक सकता था और एक बार चोली खुली तो नीचे का नंबर,...
पिछला हफ्ता इसी मस्ती में और कल का दिन भी, लेकिन अभी जो होना था उसके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम था,
सिवाय इसके की मिश्राइन भाभी पे होलिका माई आएंगी,
और सबको एकदम चुप रहना है, ये मेरी सास ने भी बताया था और दूबे भाभी ने भी। जो पुरानी लड़कियां औरतें थीं उन्हें तो सब मालूम ही था,...
अचानक सारी मस्ती बंद हो गयी, सब लोग मिश्राइन भौजी से दूर हाथ के आम की उस बगिया में सामने जमीन पर बैठ गए, अँधेरा हो रहा था, पश्चिम की ओर सूरज डूब रहा था, हलकी सी लाली अभी भी जैसे गौने की रात के बाद, रतजगा करने के बाद नयी दुल्हन की आँखों में रहती है,... बगिया वैसे भी गझिन थी अब और गझिन लग रही थी,...
हम सब जैसे कुछ होने का इन्तजार कर रहे थे,... और जैसे ही पश्चिम में सूरज डूबा, दूबे भाभी ने इशारा किया,...
पांच सुहागिने, मैं और चमेलिया जो साल भर के अंदर गौने उतरी थीं, और उनकी पहली होली थी, ... मोहिनी भौजी जो अभी लड़कोर नहीं हुयी थी, गौने के तीन साल हो गए थे,...
और दो ननदें बियाहता लेकिन जिनका गौना अभी नहीं हुआ था, नीलू और लीला,...
सबसे आगे मैं और चमेलिया,.... और मिश्राइन भाभी को पकड़ के, हम पांचो,... जैसे रास्ता अपने आप खुलता जा रहा था, एक बड़ा सा पाकुड़ का पेड़ था उसके साथ पांच महुवा के,... लोग दिन में भी उधर से नहीं जाते थे,... बस उधर ही, खूब घुप अँधेरा, हो रहा था,...
रात अभी नहीं हुयी थी लेकिन घने पेड़ कभी लगता था हमारा रास्ता रोक रहे हैं कभी लगता, डाल झुका के मिश्राइन भौजी को निहोरा कर रहे हैं. उन पेड़ों के पीछ सैकड़ों साल पुरानी बँसवाड़ी, ... जिसके बांस सिर्फ शादी में मंडप के लिए, किसी जाति की बाइस पुरवा में लड़की की शादी हो या लड़के की बांस यहीं से, लेकिन बांस काटने के पहले भी खूब पूजा विधान,... और शादी के अलावा कोई उस बँसवाड़ी की ओर मुंह भी नहीं करता था,... उसी बँसवाड़ी के घने झुरमुट में,....
मोहिनी भाभी ने इशारा किया हम सब वहीँ रुक जाएँ और फिर मुझे इशारा किया,... मैंने मिश्राइन भौजी की साड़ी खोली,... उसके बाद ब्लाउज, पेटीकोट,... एकदम निसुति,...
मिश्राइन भौजी ने वो अपनी पहनी साड़ी उठा के मुझे दे दी,... मुझे बाद में पता चला की वो कितनी बड़ी चीज है,... होलिका देवी का पहला आशीर्वाद,.... और जो औरत उस साड़ी को पहनती थीं अपने आप पूरे गाँव में उस का असर होता था,... ब्लाउज उन्होंने चमेलिया को दी और पेटीकोट मोहिनी भाभी को, महुआ के कुछ फूल थे चुवा हुआ महुवा, वो एक अंजुली में रख कर सबसे पहले उन्होंने गाँव की दोनों लड़कियों को नीलू और लीला को, फिर हम सब को,...
उसका मतलब बाद में समझ में आया, जिस जिस को मिला उसके जोबन का असर महुआ से भी तेज नशीला होगा, देख कर के लड़के, मरद सब झूमेंगे,...
हम सब मिश्राइन भाभी के पैरों की ओर देख रहे थे, उन से आँख मिलाने की ताकत किसी में नहीं थी,... और अब मोहिनी भाभी ने इशारा किया,... हम सब लोगों ने आँखे बंद कर ली,
एक अजीब सी महक, एक हलकी हलकी झिरझिराती हुयी हवा हम सब के पूरे देह में, हम सब सिहर रहे थे,... कोई कुछ बोलने को छोड़िये सोच भी नहीं रहा था बस जो हवा थी, महक थी, अजब सी मस्ती,.... पूरी देह में जैसे मदन रस,... और हलके हलके मिश्राइन भाभी के पायल के बिछुए के घुंघरू की आवाज, ... दूर होते पैरों की आहट,... हलकी और हलकी होती,... एक बहुत पतली सी पगडंडी, जिधर मैं कभी गयी नहीं थी, चारो ओर खूब घनी बँसवाड़ी,...
हां मालूम था उसके अंत में एक पोखर है लेकिन गाँव की बड़ी बूढ़ियों ने, गुलबिया की सास ने, सबने बरजा था, बल्कि कभी सपने में उसकी बात भी नहीं करनी थी,...
यह रास्ता शायद उसी ओर को जाता था,
हम पांचो की आँखे बंद, देह बस सिहर रही थी, पूरी देह में एक अजब सी तरंग उठ रही थी, जैसे चरम कामोत्तेजना के समय,... हम सब एक दूसरे के हाथ पकड़े, मैंने बाएं हाथ से लीला का हाथ पकड़ा था वो कस के मेरी मुट्ठी भींच रही थी और मेरे दाएं हाथ में चमेलिया का हाथ,... और जैसे उन उँगलियों से हमारी मस्ती दूसरे की देह में उतर रही थी,...
आँखे बंद होने पर भी लग गया था, सूरज गाँव के पिछवाड़े, एक चांदी की हँसुली सी मुड़ती लहराती नदी जो थी, बस उसमें उतर गया था, अपना काम चाँद को सम्हाल कर,... और वो अभी जम्हाई ले रहा था, आकाश के आँगन में उतरने के लिए,... तारे उसका इन्तजार कर रहे थे,
झपाक बड़ी जोर की आवाज, हुयी लगा जैसे सूरज रोज की तह नदी में उतरने की जगह आज उस पोखर में डूब गया,...
बिना आंख खोले मोहिनी भाभी ने इशारा किया मुड़ने का, और हम सब एक के पीछे एक, सब से आगे मोहिनी भाभी, उमर में भी बड़ी और ब्याहता भी और सबसे पीछे मैं और चमेलिया बीच में दोनों ननदें,... मजाक छेड़ छाड़ चाहे जितना हो, पर ननदो की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा जिसके ऊपर रहती है वो गाँव की भौजाई लोग ही होती हैं,..
पाकुड़ के उस बड़े से पेड़ के पास पहुँच के मोहिनी भाभी ने इशारा किया, हम सब रुक गए, फिर एक बार एक दूसरे का हाथ पकडे, लीला और नीलू बीच में दोनों ओर हम तीनो उनकी भौजाई
दस मिनट, पन्दरह मिनट
एकदम चुप हम सब,... हमारी तो छोड़िये घर लौट रहे चिड़िया चंगुर भी शांत,... वो मदन समीर उसी तरह चल रही थी, झिर झिर,... झिर झिर
क्या गूढ़ मर्म है... एकदम रहस्यमय पहेली की तरह.....होलिका
पाकुड़ के उस बड़े से पेड़ के पास पहुँच के मोहिनी भाभी ने इशारा किया, हम सब रुक गए, फिर एक बार एक दूसरे का हाथ पकडे, लीला और नीलू बीच में दोनों ओर हम तीनो उनकी भौजाई
दस मिनट, पन्दरह मिनट
एकदम चुप हम सब,... हमारी तो छोड़िये घर लौट रहे चिड़िया चंगुर भी शांत,... वो मदन समीर उसी तरह चल रही थी, झिर झिर,... झिर झिर
चांदनी की एकाध किरण बँसवाड़ी को पारकर के जमीन तक आ रही थी,...
और उस की देखा देखी कुछ और लुका छिपी करती हुयी एक दूसरे का हाथ पकडे धवल ज्योत्स्ना, दो चार और किरणे अबकी हम सबकी मदन तप्त देह को शीतल करने की कोशिश करती, लेकिन वो आग और भड़क रही थी,...
अचानक बँसवाड़ी के पीछे से ढेर सारे बगुले एक साथ जैसे उसी पोखर से उड़े हों , पंख फड़फड़ाते हुए उड़े, पूरा आसमान भर गया,... और उन्ही के पंखो से होती हुयी चांदनी बस सिर्फ जहाँ हम हम खड़े थे, हमारी देह को नहलाती भिगोती जमीन पर पसर गयी। पूरी देह पर लग रहा था जैसे किसी अनुभवी काम कुशल पुरुष की अंगुलियां टहल रही हों,... योनि द्वार अपने आप संकुचित होने, खुलने लगे, उरोज पथरा गए,... और हम पांचों की यही हालत थी, ...
रुन झुन रुन झुन रुन झुन रुन झुन
पायल के घुंघरुओं की आवाज, साथ में बिछुओं की ताल,...
मानहुँ मदन दुंदुभि देना,...
और फिर एक अजीब सी फूलों की मिली जुली महक,.. किंशुक, आम के बौर और चमेली के साथ जैसे पोखर के ताजे कोपल खोल रहे, सरोज और कुमुदनियाँ हों,... वो महक तेज हो रही थी, सुहाग सेज पर बिछे फूल रात भर नयी दुल्हन की देह से रगड़ रगड़ कर, उसके नीचे नीचे पिस पिस कर एक अलग ही नशीली महक देते हैं, बस वही वाली, और धीरे धीरे तेज होती,... हम सब के नथुने से पूरी देह में फैलती हुयी,...
वह चांदनी, वह संगीत, वह फूलों की गमक, ... बढ़ती ही जा रही थी,...
हम सब लोगों ने कस के आँखे बंद कर ली, मैंने अपनी दोनों ननदों लीला और नीलू का हाथ कस के दबा दिया, जैसे कह रही हूँ, मैं हूँ न तेरी भाभी तेरे साथ,...
कभी कभी बिना देखे भी दिखाई पड़ता है और हम सबकी इन्द्रियां अपनी चरम सीमा पर थीं, बस वही हो रहा था,... बस लग रहा था की चांदनी का कोई गोला बस धवल शीतल, और उसके बीच में,...
रुन झुन रुन झुन रुन झुन रुन झुन और हलकी हलकी पदचाप
हमारे कान अब देख रहे थे, पीछे पीछे हम सब
और जहाँ कुछ देर पहले होली का कबड्डी का जश्न हो रहा था, वहीँ सब लड़कियां औरतें बैठीं जमीन पर चुपचाप, आगे आगे लड़कियां, ननदें साथ में भौजाइयां भी,... और सास सब पीछे,...
हम सब वहीँ, मेरे एक ओर लीला और दूसरी और चमेलिया, मेरी देह पर अभी भी प्रसाद की तरह दी हुयी वो साड़ी,...
और थोड़ी सी ऊँची जगह पर,... वो होलिका देवी,...
अब हम लोगों ने आँखे खोल ली थीं लेकिन एकटक सामने नहीं देख सकते थे, हलके से नीचे देखते हुए और हम सभी हमारी सास लोग भी,
एकदम निसूती, नहीं लेकिन ऐसा भी नहीं हो की उन्होंने कुछ धारण नहीं कर रखा हो, जो होलिका की राख थी बस वही उनके उरोजों को ढंके, योनि प्रदेश पर भी कोख पर,... हाथों में और आस पास भी,... दो चार अधजली होलिका की लकड़ियां,... वह एक आम के पेड़ के नीचे बैठी थीं और चांदनी के साथ उसके बौर भी उनके ऊपर झर रहे थे, एक जब सी तेज महक आम्र मंजरी से आ रही थी,... और वह सिद्धासन में
चेहरा रौद्र नहीं लग रहा था,... एक हलकी स्मित,...
और उन्होंने मेरी सास की ओर देखा,... मेरी सास गाँव की सबसे बड़ी औरतों में थीं और उन्हें सब रीत रिवाज अच्छी तरह न सिर्फ मालूम थे बल्कि उनमें उन्हें विश्वास भी था, वो उठी और कुछ लड़कियों की ओर इशारा किया,... ये वह लड़कियां थीं जो पिछली होली के बाद रजस्वला हुयी थीं और उनका कामछिद्र अभी अक्षुण था,... पांच ननदें, उभार भी बस आ रहे थे, ... सिर्फ अपनी देह को धारण किये,... एक एक करके,
उन्होंने बहुत दुलार से पहली लड़की को अपनी बायीं जांघ पर बिठाया, अपनी बाएं हाथ की तर्जनी को अपनी योनि के अंदर पूरी तरह घुमाया थोड़ी देर तक,... और उसी योनि रस से डूबी ऊँगली में, चांदनी में चाशनी चमक रही थी,...
यही सब उद्धरण .. एक कहानी को कहानी का रूप देते हैं....असीस
और उन्होंने मेरी सास की ओर देखा,... मेरी सास गाँव की सबसे बड़ी औरतों में थीं और उन्हें सब रीत रिवाज अच्छी तरह न सिर्फ मालूम थे बल्कि उनमें उन्हें विश्वास भी था, वो उठी और कुछ लड़कियों की ओर इशारा किया,... ये वह लड़कियां थीं जो पिछली होली के बाद रजस्वला हुयी थीं और उनका कामछिद्र अभी अक्षुण था,... पांच ननदें, उभार भी बस आ रहे थे, ... सिर्फ अपनी देह को धारण किये,... एक एक करके,
उन्होंने बहुत दुलार से पहली लड़की को अपनी बायीं जांघ पर बिठाया, अपनी बाएं हाथ की तर्जनी को अपनी योनि के अंदर पूरी तरह घुमाया थोड़ी देर तक,... और उसी योनि रस से डूबी ऊँगली में, चांदनी में चाशनी चमक रही थी,...
मैं साँस बांधे देख रही थी,... उसी ऊँगली से उन्होंने उस कुँवारी कन्या के योनि के चारों ओर एक त्रिकोण की तरह बनाया,... फिर अपनी जांघ पे लगी होलिका की राख को उसकी कोख पे कुछ मसल दिया और बाकी उसके बस आ रहे उरोजों पर होली की राख लगा कर मसल दिया,,...
बिना बोले हम सब देख रहे थे और मैं धीरे धीरे होलिका देवी का आशीष समझ रही थी, योनि पर त्रिकोण, मतलब अब वो पूरी तरह सुरक्षित है कोई रोग दोष अवांछित गर्भ कुछ नहीं होगा,... और कोख पर आशीष तो सबसे बड़ा, वो उर्वरा होगी, जब चाहे तब,... और जोबन पर होली की राख लग गयी तो अब अगली होली जलने तक उसके जोबन पूरी तरह गद्दर,
एक बात मेरी समझ में तुरंत नहीं आयी लेकिन थोड़ी देर में ही आ गयी, जो योनि में चूत रस से सिक्त की थी उँगलियाँ,... होलिका हम लोग प्रह्लाद, होलिका और हिरण्यकश्यप के तौर पर मनाते हैं, होलिका, प्रहलाद की बूआ,... लेकिन एक और रूप है इस कथा का होली से जोड़ कर, होलिका दहन से जुडी, उसी दिन कामदेव शिव के तीसरी नेत्र से भस्म हुए थे, लेकिन रति के प्रलाप से महादेव ने यह आशीष जरूर दिया की कामदेव को अब शरीर तो नहीं मिल सकता क्योंकि वो भस्म हो चुके हैं,... लेकिन दो बातें जरूर होंगी, अनंग रूप में बिना अंग के और मन्मथ के रूप में सबके मन में रहेंगे, और तो होलिका देवी रति के रूप में भी देखी जाती हैं और भस्म भी काम देव के देह की,... तो जो रति रूपी हो उसके योनिकुंड का स्त्राव जिसके योनि पर लग जाए, ... उसका आकर्षण बढ़ेगा, उसके योनि के जाल में वो जिसे चाहे उसे,... और सौंदर्य की कोई कमी नहीं होगी,...
उस कुछ दिन पहले रजस्वला हुयी लड़की को उन्होंने अपने बाएं अपनी तरह सिद्धासन में बैठा दिया पर इस तरह की उसके योनि ओष्ठ पूरी तरह खुले और बस आ रहे उरोज एकदम तने,... लड़की होने का, जोबन आने का, योनि के परिपक्व होने का गर्व होना चाहिए उसमें शर्म क्या, वह धात्री है, सृष्टि की वाहिका है।
एक एक कर के सद्य रजस्वला कन्याएं तीन उनके बाएं दो दाएं, और सब को उन्होंने उसी तरह आशीषा,...
कुछ भौजाइयों में खुसफुस, कुछ इन्तजार हो रहा था बियहिता ननदों के बीच भी, मुझे बाद में समझ में आया,...
रजस्वला ननदों के बाद बियाहिता का नंबर आया,... सब लोग अब एकटक देख रहे थे, ... किसपर कृपा बरसेगी,...
और उन्होंने सबसे पहले मेरी ननद को बुलाया, सर पर हाथ फेरा फिर कोख पर,... मेरी सास खूब खुश,... और अब ननद को उन्होंने इशारा किया की वो अपनी जाँघे अच्छी तरह फैला के खड़ी हो जाएँ,... सबकी तरह मेरी निगाह भी ननद की खुली चिकनी मांसल जाँघों के बीच फूले हुए भगोष्ठों पर थी,...
उन्होंने उसे बस छुआ था की मेरी ननद गीली हो गयीं, योनि से हल्का स्त्राव निकलने लगा,... और उन्होंने होलिका की वो अधजली लकड़ी,... सीधे ननद की खुली गीली बुर में पेल दिया, ननद ने किसी तरह सिसकी रोकी,... पूरे चार पांच अंगुल तक, ननद की जाँघे और फ़ैल गयीं, बुर सिकुड़ने फैलने लगी,...
फिर उन्होंने अपनी गोद में गिरे आम के बौरों को उठाया, थोड़ा सा मसला और मेरी ननद की कोख पर मसल दिया,... और साथ में दाएं हाथ को खोल के पांच उँगलियाँ दिखायीं,...
वैसे तो कोई बोलता नहीं था लेकिन मेरी सास के मुंह से हलके से निकल गया महीना,.. तो उन्होंने सर हिला के मना कर दिया और कुछ इशारा किया जो मेरी सास समझ गयीं और झुकी निगाह से पूछा
" दिन ? "
और अबकी मुस्करा के उन्होंने हां में सर हिलाया, थोड़ा सा होली की राख निकाल के ननद की कोख पे और कुछ उनके जोबन पर मला और फिर प्यार से उनके गाल पर हाथ फेरा,
अब मैं समझ गयी, पूरी बात ,... मेरी ननद पांच दिन के अंदर गाभिन होंगी, उनकी कोख पर देवी की कृपा होगी देवी रक्षा करेंगी, और जोबन से दूध बहेगा,... चेहरे पर हाथ फेरने का मतलब, की होगी उनकी तरह सुन्दर गोरी मस्त लड़की,... मेरी ननद की शादी के तीन साल हो गए थे, अब मेरी सास भी नानी और ननद की सास दादी बनने का इन्तजार कर रहे थीं।
और ये मुझे मालूम था ये बातें जो अभी हो रही हैं चंद्र टरे सूरज टरे तब भी नहीं टलने वाली हैं.
अगला नंबर मोहिनी भाभी का लगा, और दो महीने का इशारा मिला, फिर एक और मेरी जेठानी थीं चार साल से ऊपर होगया लेकिन अभी भी कोख हरी नहीं हुयी दो बार गर्भपात हो गया था, डाकटर हकीम को दिखाया,... चार महीने का आशीष मिला और उनकी कोख पे बहुत देर उन्होंने आम का बौर और भभूत मला, कोई रोग दोष हो,.... कोई बुरी नजर हो किसी का साया हो तो ये उससे रक्षा करेगा,... वो बहुत खुश,..
फिर उन्होंने मेरी दो ब्याहता ननदों को भी बुलाया जिनका अभी गौना भी नहीं हुआ था, ढाई - तीन महीने में जेठ में साइत निकली थी , नीलू और लीला,... दोनों को उन्होंने आशीष दिया और इशारा किया तीन महीने,
गुलबिया मुझे देख कर मुस्करायी,... मैं समझ गयी, तीन महीने का मतलब तीन महीने नहीं तीन महीने के अंदर, ... तो गौने की रात भी गाभिन हो सकती हैं दोनों या गौने के पहले ही,...
ये मानसिक भूख को शांत करने वाला अपडेट था...
देवी क आसीरबाद
फिर उन्होंने मेरी दो ब्याहता ननदों को भी बुलाया जिनका अभी गौना भी नहीं हुआ था, ढाई - तीन महीने में जेठ में साइत निकली थी , नीलू और लीला,... दोनों को उन्होंने आशीष दिया और इशारा किया तीन महीने,
गुलबिया मुझे देख कर मुस्करायी,... मैं समझ गयी, तीन महीने का मतलब तीन महीने नहीं तीन महीने के अंदर, ... तो गौने की रात भी गाभिन हो सकती हैं दोनों या गौने के पहले ही,...
अब सब लोग हुकुमनामे का इन्तजार कर रहे थे लेकिन उन्होंने इशारे से मुझे बुलाया,
सब लोग चकित, ये तो आज तक हुआ नहीं था,...होली के बाद रजस्वला हुयी लड़कियों के आशीर्वाद के बाद कौन कौन सी बहू,शादी शुदा बेटियां गाभिन होंगी ये आशीष तो हर साल मिलता था लेकिन उसके बाद अलग से देवी किसी को बुलाएँ, अपना ख़ास वर, अपनी किरपा,...
मेरी आंखे झुकीं, वो सिद्धासन में बैठीं, उनकी नाभि तक देख रही थी, फिर थोड़ा सा सर उठाया तो उन्नत उरोज भभूत ऐसे होली की राख में लपटे जैसे दग्ध मन्मथ का देहांश हो, ...
एक बार वही फूलों की महक, किंशुक, आम्र मंजरी, चमेली,... भीनी भीनी,... मेरी देह मेरे काबू में नहीं थी, और भीतर से कोई बोल रहा था कोमल अब इसे काबू में करने की जरूरत भी नहीं,... जैसे माँ की गोद में बचपन में, अभी भी सहज हो जाती हूँ, बिलकुल वैसे ही,...
उन्होंने दुलार से मेरे सर पर हाथ फेरा,... फिर ठुड्डी पकड़ कर मेरा चेहरा हलके से ऊपर किया,... मेरी आँखे अभी भी नीचे लेकिन तब भी मैं उनकी ग्रीवा तक देख रही थी, एक दिव्य रूप,... वह स्पर्श, जैसे मस्तिष्क, मन से लेकर पूरे तन में एक फुरहरी सी फ़ैल गयी, रोम सारे खड़े,... मेरी सारी इन्द्रियाँ चैतन्य, जैसे बारिश हो रही हो और मैंने एक छोटी बच्ची की तरह अंजुरी रोपे अमृत बूंदो को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रही हूँ,...
बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे, मेरी आँखे धीरे धीरे मूंदती जा रही थीं,
कोई आवाज नहीं सिर्फ हलकी हलकी हवा देह को सहला रही थी, आम के बौर झर रहे थे,... बस उनकी की बहुत धीमी धीमी आवाज उस सन्नाटे को भंग कर रही थी, मेरा बायां हाथ बहुत हलके से पकड़ा उन्होंने और सिद्धासन में बैठी हुयी,.... दोनों जाँघों के बीच गुह्य स्थल पर,...
जैसे आग की भट्ठी,... कितनी ऊर्जा, लेकिन गर्मी ऐसी जो शीतलता दे,... बर्फ को छूने पर जैसे कई बार हाथ जलता लेकिन धीरे धीरे मेरा हाथ भी उसी तरह,... और उनकी उँगलियों ने मेरी उँगलियों को अपने भगोष्ठों पर,.... अमृत कुंड में कोई स्नान कर ले, रति रस का वो स्पर्श,... निर्झर स्रोत,... और मेरी उँगलियों से होते हुए मेरे तन मन में , बसे ज्यादा मेरे दोनों उरोजों में, योनि में एक अलग तरह की संवेदना,...
स्मृति के कमल दल खुल रहे थे,... पहली बार जब मैं रजस्वला हुयी, पी के संग सेज पर कुछ डरी सकुची, कुछ ललचाती,... और योनि में पहले प्रवेश और कामछिद्र के खुलने का दर्द, असीम दर्द, और असीम आनंद, सब कुछ एक बार फिर, ... और पहली बार जब चरम सुख मिला था, योनि का वो संकुचन , खुलना, एक बार फिर से पर उस से हजार गुना तेजी से,... जैसे काम सरोवर में कमल खिल रहे हों,...
और मेरी रति रस में भीगी उँगलियों को पकड़कर उन्होंने अपने हाथों से पहले मेरे अधरों पर,... एक अद्भुत स्वाद, फिर मेरे दोनों उरोज कलश के शीर्ष पर,
नाभि पर और सबसे अंत में मेरी योनि पर, भगोष्ठों के चारों ओर क्लिट पर, और मेरे वाम हस्त को वहीँ छोड़ दिया, मैं संज्ञा शून्य, अपनी हथेली, वो रस से भीगी उँगलियाँ अपनी योनि के ऊपर,....
पूरी देह में एक अलग सा आनंद लग रहा था,...
फिर उन्होंने अपने बाएं हाथ की एक ऊँगली अपनी योनि के ऊपर जहाँ स्पर्श करा कर उन्होंने नयी रजस्वला हुयी बालिकाओं के योनि के ऊपर आशीष के चिन्ह बनाये थे , ... लेकिन इस बार ऊँगली रस कूप के पूरी तरह अंदर थी, एक बाद दूसरी, तर्जनी और मध्यमा दोनों,... जैसे अमृत मंथन हो रहा हो, ... मेरी निगाहें एक बार फिर बंद हो रही थीं सिर्फ मुझे अपनी रससिक्त उँगलियों का अहसास हो रहा था था जो मेरी योनि पर थीं,... वो अत्यंत संवेदन शील हो गयी थी,... और उनकी दोनों उँगलियाँ योनि कूप से निकली, सीधे मेरी योनि पर और रस कूप के अमृत से उन्होंने पहले एक बड़ा त्रिकोण बनाया उलटा, ...
मेरी योनि के चारों ओर, रस की बूंदे उनकी मेरी त्वचा से होते हुए सीधे मेरी देह मन में समा रही थीं,... हम दोनों जिस तरह बैठे थे यह सब कोई और नहीं देख सकता था, वैसे भी जब वो किसी को आशीर्वाद देती थीं तो बाकी लोगों की निगाह जमीन पर ही होती थी,...
यह बड़ा त्रिकोण मेरी भगनासा ( क्लिट ) के बाहर से शुरू हुआ और वहीँ समाप्त हुआ, फिर उस त्रिकोण के अंदर एक छोटा त्रिकोण सीधे योनि द्वार पर वह भी उसी तरह उलटा, लेकिन दोनों उँगलियों के सम्पुट से,... और दुहरी लाइन से, फिर एक बिंदु उस बड़े उलटे त्रिकोण के ठीक ऊपर , वो रस का मंथन कर के निकली उँगलियाँ फिर मेरी नाभि पर, और वहां एक कमल दल और उसके बीच दो त्रिकोण एक उल्टा, एक सीधा, उसके बाद मेरे उरोजों का नंबर था। उस समय मैं कुछ भी नहीं सोच रही थी, लेकिन बाद में कुछ समझ में आया,
उलटा त्रिकोण यानि फेमिनिन पावर, सृजन की, प्रजनन की शक्ति, फेमिनिन पावर, और सीधे रति स्वरूपा के रति रस से खिँचित,... नाभिं पर उन्होंने अष्टदल कमल बनाया था, ... और दो त्रिकोण, एक सीधा एक उलटा, पुरुष और प्रकृति, एक के बिना दूसरे की गति नहीं,... और शायद दो बच्चे एक लड़का एक लड़की,...
लेकिन मैं उस समय कुछ सोच नहीं रही थी,... सिर्फ महसूस कर रही थी,
फिर उन्होंने पास में गिरी आम्र मंजरी को उठाया, मैं एक पल के लिए सिहरी ये आशीष तो उसी के लिए है जो गर्भवती होने वाली हो, ... पर मेरे सोचने का वह समय नहीं था, दोनों हाथों में उन्होंने उसे मसल कर उसके लेप को मेरे उरोजों पर लगाया और फिर योनि पर,... और सबसे अंत में जिस सरोवर में उन्होंने स्नान किया था शायद वहीँ का एक कमल दल, उसकी कमल नाल को मेरी योनि छिद्र पर और अबकी अंदर तक,...
खूब जबरदस्त संकुचन हुआ,...
और अब हलकी सी उनकी आवाज सुनाई पड़ी, बल्कि शायद इशारा था, जो अपनी साड़ी उन्होंने दी थी, उसकी ओर, पास पड़ी होली की राख उठा के होने आशीष की तरह बाँध लेने को , मैं समझ गयी वह उसके लिए है जो इस समय यहाँ नहीं है, हो भी नहीं सकती, यह भाग सिर्फ इस गाँव की बेटी और बहुओं के लिए है और वह न इस गाँव की बेटी है न बहू. पर सबकी प्यारी दुलारी। उस छुटकी के लिए. सबके लिए वह चुटकी भर देती थीं पर उसके लिए अंजुरी भर. फिर थोड़ा सा, एक पास में ही फटा सा कपड़ा था शायद किसी ननद की शार्ट भाभियों ने फाड़ी थी,... उसमे,... बाकी ननदों की ओर इशारा करके,...
जो अभी रजस्वला हुयी थीं या गर्भवती होने वाली थीं, उन्हें तो उन्होंने आशीष दे दिया था बाकी ननदों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर,...
और उसके बाद जो कभी मैंने क्या किसी ने नहीं सोचा था, अपने उरोजों में लगी होली की राख झाड़ कर मेरे उरोजों पर और योनि पर,...
और उन्होंने जाने का इशारा किया मैं फिर ननदो के बीच बैठ गयी, सब लोग चुप थे।