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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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अपने तरह की सबसे अलग कहानी है फोरम की । अगले अपडेट की प्रतीक्षा है ।
कमेंट्स भी अगर जल्दी आएं तो अपडेट भी जल्दी आएंगे, कोशिश करिये अगला अपडेट थोड़ा जल्द्दी
 

komaalrani

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komaalrani

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भाग (१४ )

देवर मेरे

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नैना ने छुटकी से बोला , बस एक दो बात और समझ लो ,


लेकिन सास को हमारे कुछ जल्दी हो रही थी , बोली ,

तुम समझावा , हम ज़रा देख ले कउनो बाथरूम खाली है ,... आज तो हम इसको अपने हाथ से नहला धुला के तैयार करेंगे , जिससे गाँव में निकले तो दस गाँव में खबर हो जाय कउनो कली आयी है यहाँ
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सास की बात सुनते है बाहर से हट कर मैं सीधे बाथरूम में घुस गयी , लेकिन तब तक नैना की बात मैंने सुन ली ,

" अरे बस एक दो बात और ,... आप रहेंगी तो आप भी ,... तो पहली बात ये की दिन रात जब जहाँ मैं कहूंगी , जिसके साथ कहूँगी ,... जितनी बार ,... "
और सास की भी हलकी हलकी आवाज सुनाई दे रही थी

" एकदम देखो , ये तुम्हारी बड़ी ननद तो है ही , एक तरह से सहेली भी है ,... और असली चीज गुरुआइन है , सब रंग ढंग सीखा देगी , फिर तीन महीने मजे से ,... उसके बाद सावन में फिर आना ,... "


मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर दिया , और नहाना शुरू कर दिया , और उन लोगों की आवाजें आना भी बंद हो गयीं ,.... उफ्फ्फ कूँवे का ठंडा ठंडा पानी , देह एकदम सिहर गयी , ... और देह से ज्यादा जोबन मेरे , मेरी निगाह वहीँ ठहर गयी , हलके हलके भीगे , गीले उभारों को मैं सहला रही थी , और सोच रही थी कित्ते दीवाने हैं इसके इस गाँव में ,


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बस एक बार चोली के ऊपर से भी छूने को ललचाते रहते हैं , ...


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और जोबन मेरे हैं भी ऐसे गदराये , ... मेरी पतली छरहरी सुरु के पेड़ की तरह लम्बी देह पर , २६ की पतली कमर पर ३४ सी के ये उभार एकदम चोली फाड़ते रहते हैं , ...

मेरी उँगलियाँ हलके हलके मेरे जोबन पर साबुन लगा रही थीं और मैं सोच रही थी , पहले दिन से इन दोनों उभारों को लेकर ससुराल में छेड़छाड़ ,...

मुंह दिखाई के समय भी , ... देवर मेरे ,.. सब गाँव के लड़के ,..और देवर से कोई पर्दा तो होता नहीं ,... बार बार , ... मैं भी समझ रही थी , मेरी सास और ननदें भी , लेकिन सब रस ले रही थीं , ...

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लेकिन शाम को , गाँव में तो आठ बजे सोना हो जाता है ,... मेरी ननदे, मुझे लेकर सुहागरात के कमरे में जा रही थीं तो , सासू का पैर छूने को मैं रुक गयी , और मेरी सगी सास के अलावा आधी दर्जन से ज्यादा , चचिया सास , बुआ सास और गाँव की सास , ... मुझे देखते ही , मज़ाक क्या असली गाली गलौज ,... मेरी माँ को लेकर , ... और बुआ सास थीं तो मेरी सास उनकी भाभी हुईं , उन लोगों के बीच , लेकिन वहां भी मेरे जोबन का जलवा ,... पहले तो सास ने मेरी ननदों को हड़काया ,



" अरे बहुत घूँघट हो गया , मेरी बहु का चाँद सा मुखड़ा , खोलो घूंघट ,... आगे से घूंघट वुन्घट नहीं " और मेरा घूँघट खुद सास ने हटा दिया ,...


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तब तक मेरे किसी देवर को महक लग गयी , और किसी बहाने से वो आया , और समझ तो मैं भी रही थी लेकिन फर्श पर देखते अपनी मुस्कराहट मैंने किसी तरह रोकी ,...
मेरी जेठानी ने हड़का कर उसे भगा दिया और सब लोग जोर जोर से हंसने लगे , मेरी एक गाँव वाली सास मेरी सास से हँसते बोलीं , ...


"अयीसन चाँद जस बहू ले आयी हो , तो चांदनी देखने बहुत लोग चक्कर काटने लगेंगे ,... "

तो मेरी सास बोलीं , ... अरे गुड़ होता है , तो चींटे, चींटी आएंगे ही , लेकिन चींटे के खाने से कौन गुड़ कम होता है ,... " और मेरी ओर देख कर मुस्करा के पूछा , सही कह रही हूँ , ...

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मेरी ननद जेठानी जोर से हंसी , लेकिन तब तक मेरी चचिया सास ने दूसरा मोर्चा खोल दिया , ...
" समधिन चाँद जइसन ,... एकदम चनदा मामा क रूप ,... कहौ , कतौं , तोहरे मामा से तो न ,... "


लेकिन मेरी गाँव की सास ऐसा मौका छोड़ देती , ... मेरी सास से बोलीं ,
" अरे साफ़ साफ़ कहो न दुल्हिन क महतारी अपने भइया से चोदवाई को इहके पैदा की हैं ,... "
लेकिन मेरी सास फिर मैदान में आ गयीं , मेरे गाल पे प्यार से हाथ फिराते , सहलाते बोलीं

" अरे चाहे जेहसे चोदवायी हों , लेकिन बिटिया बहुत सुंदर निकाली हैं और ओहसे बड़ी बात हमरे गांव , हमरे घर दीन्हीं ,... "

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तब तक मेरी चचिया सास ने मेरा आँचल ढलका दिया , और मेरी कसी चोली में दोनों उभार साफ़ साफ दिखने लगे , वो बोलीं

" अरे चाँद तक मुंह तक ठीक है लेकिन जो ई अंचरा में दू दू चाँद छिपाये हैं न ओकरे लालच में , ... ई बेटहना सब ,... "

लेकिन इस बार फिर मेरी सास ने मामला साफ़ किया ,...

" अरे तो क्या हुआ सब देवर हैं , नयी नयी भौजाई है ,... फिर आम के मौसम में जब नयी नयी कच्ची अमिया लगती है तो कितने तोता आके चोंच मार जाते हैं , ... देवर नन्दोई का ,... तो "


और ऊपर से मेरी मंझली ननद बोलीं , " और भाभी , देवर नन्दोई का सास भर का फागुन होता है समझ लीजियेगा ,... "

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मेरी चचिया सास ने फिर एकदम से मेरा और मेरे देवरों का रास्ता साफ़ करते हुए समझा भी दिया

" और का रात में सैंया , ... और दिन में सैंया क भैया "

मैं साफ़ साफ समझ गयी , ... बस बड़ी मुश्किल से मुस्कान रोकी , ... यही बात तो मायके में मेरी भाभियों ने दस बार समझाया था , साजन तो रगड़ाईकरेंगे ही ही मौक़ा देख कर देवर नन्दोई भी ,...



लेकिन सच पूछूं , मुझे भी अच्छा लगता था , जिस तरह मुझे देख के ललचाते थे , छुप के देखते थे , ... उससे ज्यादा की उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी , ...
 

komaalrani

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देवर संग फागुन





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मेरी चचिया सास ने फिर एकदम से मेरा और मेरे देवरों का रास्ता साफ़ करते हुए समझा भी दिया


" और का रात में सैंया , ... और दिन में सैंया क भैया "



मैं साफ़ साफ समझ गयी , ... बस बड़ी मुश्किल से मुस्कान रोकी , ... यही बात तो मायके में मेरी भाभियों ने दस बार समझाया था , साजन तो रगड़ाई करेंगे ही मौक़ा देख कर देवर नन्दोई भी ,...



लेकिन सच पूछूं , मुझे भी अच्छा लगता था , जिस तरह मुझे देख के ललचाते थे , छुप के देखते थे , ... उससे ज्यादा की उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी , ...



और एक बार उन्होंने भी ,...



`अरे उसी दिन की बात , बताया तो था आप लोगों को , शादी के चार दिन बाद ही , उस दिन मैंने शलवार कुरता पहना था और वो भी खूब टाइट ,



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मेरे उभार और पिछवाड़ा दोनों ही खूब खुल के साफ़ साफ़ दिख रहा था , मेरी मंझली ननद मुझे चिढ़ा रही थी , भाभी आज आप का पिछवाड़ा नहीं बचेगा , ऐसे चूतड़ मटका मटका के चल रही हैं , आज आपकी गाँड़ जरूर मारी जाएगी , और मैंने उनके उभार दबा के उसी तरह जवाब दिया , मारेंगे तो मरवा लूंगी , आखिर जिस दिन से आयी दिन रात कोई टाइम छोड़ते तो हैं नहीं ,... "


उसी दिन , मैं छत पर कपडे फ़ैलाने गयी थी , तो मुंडेर के पास सट के खड़ी हो गयी ,

वहीँ सुनील देखा , मेरे पड़ोस का देवर ,... बस देख के उसकी हालत ख़राब , उसने अपने सीने पर हाथ फेरा ,


उसकी हालत खराब हो तो हो , भाभियों का काम ही है , देवर की हालत खराब करना ,... बस मैंने जो दुप्पट्टा ओढ़ रखा था उसे एकदम गले से चिपका लिया , अब दोनों कबूतर एकदम उड़ने को बेकाबू ,...


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बेचारा सब कुछ भूल के एकदम एक टक उन्ही दोनों को देख रहा था , लेकिन मैं छुरी और अंदर घुसाना चाहती थी , बस मैंने जोर की अंगड़ाई ली ,



और वो दुष्ट , ... एकदम जैसे गिरने की एक्टिंग कर रहा हो बेहोश हो कर , और मुझे बहोत जोर की हंसी आ गयी , खिलखिलाती हुयी मैं नीचे आ गयी ,



मेरी छोटी ननद बाहर खड़ी थी , गाँव के एक दो लड़कों से बात कर रही थीं , .... मेरे तो देवर ही थे ,... और आज मेरा मन भी कुछ ज्यादा गरमा रहा था तो बस उन दोनों के साथ भी मैंने कुछ छेड़ खानी की ,

और जब मैं अंदर आयी तो , ये और इनकी निगाह मेरी टाइट शलवार में कसर मसर करते पिछवाड़े पर , इन्हे देख कर मैंने एक बार फिर से चूतड़ मटका दिए , तब तक मेरी ननद मुझे चिढ़ाती , इनसे बोली ,... भैया , भाभी के देवर कुछ ज्यादा ही चक्कर काट रहे हैं आजकल ,

पर उनकी निगाह तो मेरे पिछवाड़े चिपकी थी , उनकी पैंट टाइट हो रही थी , मुस्कराकर बोले ,


अपनी बहन से
" देख यार , मैं न तो ननद भाभी के बीच में बोलता हूँ , न देवर भाभी के बीच में ,... "



मैंने ननद को जीभ मुंह से निकाल के चिढ़ा दिया ,... ये बात अलग है की आधे घंटे के अंदर ही उन्होंने मेरे कुंवारे पिछवाड़े का बाजा बजा दिया , मेरी कसी गांड फाड़ दी , .... पर मैं समझ गयी की देवर भाभी के चक्कर में न सिर्फ मेरी सास ननद का बल्कि साजन का भी लाइन क्लियर है ,

नहाते अपने दोनों जोबन पर साबुन लगाते मैं सिर्फ अपने देवरों के बारे में सोच रही थी ,

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होली में जो दिन के लिए मायके गयी ,... इनका और मेरी बहनों का तो फायदा हो गया , लेकिन मेरा और मेरे देवरों का घाटा हो गया , ... होली के दिन सुनील और उसके दो दोस्त ,...

फिर गाँव में जो मेरी अकेली देवरानी थी कुसुमा , उसके घर जाकर उसके मरद के साथ ,...


पर बेचारे इतने देवर प्लान बना के बैठे थे होली नहीं तो पांच दिन रंग पंचमी के , ... पर उसमें दो दिन तो मेरे मायके में निकल गए ,... इनका तो फायदा हो गया , साला , सालियाँ , साली सहेलियां , सलहज और यहाँ तक की सास भी , अगवाड़ा , पिछवाड़ा ,... सब

लेकिन मेरा और मेरे देवरों का तो घाटा हो गया , दो दिन ,... अपने उभारों पर साबुन मलते हुए मैं सोच रही थी , बेचारे कितने ललचाते थे , इन्हे देख कर और मैंने भी सोचा था चलो इस होली में ,.... लेकिन



और अब मेरा हाथ सरक कर नीचे चला गया था चुनमुनिया में साबुन लगाते मैंने महसूस किया छोटे छोटे रोयें ,... मैंने हफ्ते भर पहले ' वहां साफ़ सूफ किया था ' पर , ... वीट दोनों उँगलियों में लगा कर मैंने लिथड़ लिया ,चारो ओर , ... और जब तक उसका असर होता मेरी ऊँगली , मेरी चुनमुनिया के अंदर ,.... मैं सोच रही थी लास्ट टाइम मेरी गुलाबो ने किसकी मलाई घोंटी थी ,



और मुझे याद आया , और किसकी मेरे देवर की , ...


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और सोच सोच के मेरी ऊँगली ,... अंदर बाहर , कुसुमा का मरद , इस गाँव में मेरी अकेली देवरानी ,.... और कितना लजा सरमा रहा था , लेकिन जब चढ़ा मेरे ऊपर , ... ओह्ह हड्डी चूर चूर कर दी ,... कटोरी नहीं कटोरा भर मलाई खिलाई होगी मेरी सहेली को ,... और उसके पहले भी मेरे देवर , सुनील और उसके दोस्त ,...



सोच सोच के मेरी ऊँगली तेज चलने लगी



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और मैंने तय कर लिया था दो दिन का मेरे देवरों का घाटा सूद सहित अगले तीन दिन में पूरा कर दूंगी , और किसी देवर ने थोड़ा बहुत ना नुकुर किया न तो खुद पटक के भोंसड़ी वाले को चोद दूंगी ,... रंग पंचमी के पांच दिन में से दो दिन तो निकल गए थे , पर असली हंगामा अगले तीन दिन में होना था ,... असल में आज का दिन ,... आज कुछ ऐसा हो गया था की आज के दिन गाँव में कुछ नहीं होता ,... लेकिन उस के बदले , एक दिन बढाकर , ... और वो भी तीनो दिन का हिसाब अलग अलग है।



कल का दिन सिर्फ औरतों लड़कियों , ननद भौजाई , लेकिन बाकी जैसे शुरुआत तो सास ही करती हैं , और कई बार जेठानी देवरानी भी आपस में चालू हो जाती है ,


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लेकिन मर्द या तो घर के बाहर , खेत में बाग़ में चले जाते हैं ,... या एकदम पूरे दिन औरतों लड़कियों का राज रहता है ,

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और अगला दिन यानी परसों का दिन , सिर्फ मर्द औरतों का यानी नन्दोई सलहज , ... देवर भाभी का ,... उस दिन ननदें भाभियों की होली नहीं होती ,... सिर्फ मरदों औरतों की


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और सबसे खतरनाक आखिरी दिन , फ्री फॉर ऑल , कोई किसी से भी और उस दिन जेठ ससुर का बिराव भी नहीं , बस एक रिश्ता मर्द औरत का , मस्ती का रिश्ता ,...



हाँ चम्पा भाभी ने एक बात बतायी थी मेरे फायदे की , कल औरतों की होली भले हो , और कोई मर्द किसी लड़की औरत के साथ होली भले न खेल सके , पर भौजाई , सलहज को ये छूट है की अगर उसने किसी देवर नन्दोई को पकड़ लिया तो फिर उसकी मर्जी वो चाहे कुछ करे ,... हाँ जो होगा , वो सलहज , भौजाई ही करेगी ,... और खास तौर से नयी बहु को , यानी जिसकी शादी पिछली होली के जलने के बाद हुयी उसे पूरी छूट रहती है , ... तो तीन दिन तो है न मेरे पास देवरों के लिए ,... बता दूंगी उन सबको भी किस भौजाई से पाला पड़ा है ,

एक ऊँगली में साबुन लगा के मैंने पिछवाड़े वाले छेद में डाल कर अंदर तक साफ़ किया , ...


और पानी से आगे पीछे जहाँ हेयर रिमूविंग क्रीम लगायी थी सब साफ़ , बस मैं नहाना ख़तम ही कर रही थी , की उनकी आवाज सुनाई पड़ी ,... वो नहाने के लिए वेट कर रहे थे



जल्दी से नहाना ख़त्म करके मैं बाहर निकली और ये बाथरूम में ,...


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देवर संग फागुन





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मेरी चचिया सास ने फिर एकदम से मेरा और मेरे देवरों का रास्ता साफ़ करते हुए समझा भी दिया


" और का रात में सैंया , ... और दिन में सैंया क भैया "



मैं साफ़ साफ समझ गयी , ... बस बड़ी मुश्किल से मुस्कान रोकी , ... यही बात तो मायके में मेरी भाभियों ने दस बार समझाया था , साजन तो रगड़ाई करेंगे ही मौक़ा देख कर देवर नन्दोई भी ,...



लेकिन सच पूछूं , मुझे भी अच्छा लगता था , जिस तरह मुझे देख के ललचाते थे , छुप के देखते थे , ... उससे ज्यादा की उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी , ...



और एक बार उन्होंने भी ,...



`अरे उसी दिन की बात , बताया तो था आप लोगों को , शादी के चार दिन बाद ही , उस दिन मैंने शलवार कुरता पहना था और वो भी खूब टाइट ,



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मेरे उभार और पिछवाड़ा दोनों ही खूब खुल के साफ़ साफ़ दिख रहा था , मेरी मंझली ननद मुझे चिढ़ा रही थी , भाभी आज आप का पिछवाड़ा नहीं बचेगा , ऐसे चूतड़ मटका मटका के चल रही हैं , आज आपकी गाँड़ जरूर मारी जाएगी , और मैंने उनके उभार दबा के उसी तरह जवाब दिया , मारेंगे तो मरवा लूंगी , आखिर जिस दिन से आयी दिन रात कोई टाइम छोड़ते तो हैं नहीं ,... "


उसी दिन , मैं छत पर कपडे फ़ैलाने गयी थी , तो मुंडेर के पास सट के खड़ी हो गयी ,

वहीँ सुनील देखा , मेरे पड़ोस का देवर ,... बस देख के उसकी हालत ख़राब , उसने अपने सीने पर हाथ फेरा ,


उसकी हालत खराब हो तो हो , भाभियों का काम ही है , देवर की हालत खराब करना ,... बस मैंने जो दुप्पट्टा ओढ़ रखा था उसे एकदम गले से चिपका लिया , अब दोनों कबूतर एकदम उड़ने को बेकाबू ,...


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बेचारा सब कुछ भूल के एकदम एक टक उन्ही दोनों को देख रहा था , लेकिन मैं छुरी और अंदर घुसाना चाहती थी , बस मैंने जोर की अंगड़ाई ली ,



और वो दुष्ट , ... एकदम जैसे गिरने की एक्टिंग कर रहा हो बेहोश हो कर , और मुझे बहोत जोर की हंसी आ गयी , खिलखिलाती हुयी मैं नीचे आ गयी ,



मेरी छोटी ननद बाहर खड़ी थी , गाँव के एक दो लड़कों से बात कर रही थीं , .... मेरे तो देवर ही थे ,... और आज मेरा मन भी कुछ ज्यादा गरमा रहा था तो बस उन दोनों के साथ भी मैंने कुछ छेड़ खानी की ,

और जब मैं अंदर आयी तो , ये और इनकी निगाह मेरी टाइट शलवार में कसर मसर करते पिछवाड़े पर , इन्हे देख कर मैंने एक बार फिर से चूतड़ मटका दिए , तब तक मेरी ननद मुझे चिढ़ाती , इनसे बोली ,... भैया , भाभी के देवर कुछ ज्यादा ही चक्कर काट रहे हैं आजकल ,

पर उनकी निगाह तो मेरे पिछवाड़े चिपकी थी , उनकी पैंट टाइट हो रही थी , मुस्कराकर बोले ,


अपनी बहन से
" देख यार , मैं न तो ननद भाभी के बीच में बोलता हूँ , न देवर भाभी के बीच में ,... "



मैंने ननद को जीभ मुंह से निकाल के चिढ़ा दिया ,... ये बात अलग है की आधे घंटे के अंदर ही उन्होंने मेरे कुंवारे पिछवाड़े का बाजा बजा दिया , मेरी कसी गांड फाड़ दी , .... पर मैं समझ गयी की देवर भाभी के चक्कर में न सिर्फ मेरी सास ननद का बल्कि साजन का भी लाइन क्लियर है ,

नहाते अपने दोनों जोबन पर साबुन लगाते मैं सिर्फ अपने देवरों के बारे में सोच रही थी ,


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होली में जो दिन के लिए मायके गयी ,... इनका और मेरी बहनों का तो फायदा हो गया , लेकिन मेरा और मेरे देवरों का घाटा हो गया , ... होली के दिन सुनील और उसके दो दोस्त ,...

फिर गाँव में जो मेरी अकेली देवरानी थी कुसुमा , उसके घर जाकर उसके मरद के साथ ,...


पर बेचारे इतने देवर प्लान बना के बैठे थे होली नहीं तो पांच दिन रंग पंचमी के , ... पर उसमें दो दिन तो मेरे मायके में निकल गए ,... इनका तो फायदा हो गया , साला , सालियाँ , साली सहेलियां , सलहज और यहाँ तक की सास भी , अगवाड़ा , पिछवाड़ा ,... सब

लेकिन मेरा और मेरे देवरों का तो घाटा हो गया , दो दिन ,... अपने उभारों पर साबुन मलते हुए मैं सोच रही थी , बेचारे कितने ललचाते थे , इन्हे देख कर और मैंने भी सोचा था चलो इस होली में ,.... लेकिन



और अब मेरा हाथ सरक कर नीचे चला गया था चुनमुनिया में साबुन लगाते मैंने महसूस किया छोटे छोटे रोयें ,... मैंने हफ्ते भर पहले ' वहां साफ़ सूफ किया था ' पर , ... वीट दोनों उँगलियों में लगा कर मैंने लिथड़ लिया ,चारो ओर , ... और जब तक उसका असर होता मेरी ऊँगली , मेरी चुनमुनिया के अंदर ,.... मैं सोच रही थी लास्ट टाइम मेरी गुलाबो ने किसकी मलाई घोंटी थी ,



और मुझे याद आया , और किसकी मेरे देवर की , ...


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और सोच सोच के मेरी ऊँगली ,... अंदर बाहर , कुसुमा का मरद , इस गाँव में मेरी अकेली देवरानी ,.... और कितना लजा सरमा रहा था , लेकिन जब चढ़ा मेरे ऊपर , ... ओह्ह हड्डी चूर चूर कर दी ,... कटोरी नहीं कटोरा भर मलाई खिलाई होगी मेरी सहेली को ,... और उसके पहले भी मेरे देवर , सुनील और उसके दोस्त ,...



सोच सोच के मेरी ऊँगली तेज चलने लगी



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और मैंने तय कर लिया था दो दिन का मेरे देवरों का घाटा सूद सहित अगले तीन दिन में पूरा कर दूंगी , और किसी देवर ने थोड़ा बहुत ना नुकुर किया न तो खुद पटक के भोंसड़ी वाले को चोद दूंगी ,... रंग पंचमी के पांच दिन में से दो दिन तो निकल गए थे , पर असली हंगामा अगले तीन दिन में होना था ,... असल में आज का दिन ,... आज कुछ ऐसा हो गया था की आज के दिन गाँव में कुछ नहीं होता ,... लेकिन उस के बदले , एक दिन बढाकर , ... और वो भी तीनो दिन का हिसाब अलग अलग है।



कल का दिन सिर्फ औरतों लड़कियों , ननद भौजाई , लेकिन बाकी जैसे शुरुआत तो सास ही करती हैं , और कई बार जेठानी देवरानी भी आपस में चालू हो जाती है ,


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लेकिन मर्द या तो घर के बाहर , खेत में बाग़ में चले जाते हैं ,... या एकदम पूरे दिन औरतों लड़कियों का राज रहता है ,

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और अगला दिन यानी परसों का दिन , सिर्फ मर्द औरतों का यानी नन्दोई सलहज , ... देवर भाभी का ,... उस दिन ननदें भाभियों की होली नहीं होती ,... सिर्फ मरदों औरतों की


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और सबसे खतरनाक आखिरी दिन , फ्री फॉर ऑल , कोई किसी से भी और उस दिन जेठ ससुर का बिराव भी नहीं , बस एक रिश्ता मर्द औरत का , मस्ती का रिश्ता ,...



हाँ चम्पा भाभी ने एक बात बतायी थी मेरे फायदे की , कल औरतों की होली भले हो , और कोई मर्द किसी लड़की औरत के साथ होली भले न खेल सके , पर भौजाई , सलहज को ये छूट है की अगर उसने किसी देवर नन्दोई को पकड़ लिया तो फिर उसकी मर्जी वो चाहे कुछ करे ,... हाँ जो होगा , वो सलहज , भौजाई ही करेगी ,... और खास तौर से नयी बहु को , यानी जिसकी शादी पिछली होली के जलने के बाद हुयी उसे पूरी छूट रहती है , ... तो तीन दिन तो है न मेरे पास देवरों के लिए ,... बता दूंगी उन सबको भी किस भौजाई से पाला पड़ा है ,

एक ऊँगली में साबुन लगा के मैंने पिछवाड़े वाले छेद में डाल कर अंदर तक साफ़ किया , ...


और पानी से आगे पीछे जहाँ हेयर रिमूविंग क्रीम लगायी थी सब साफ़ , बस मैं नहाना ख़तम ही कर रही थी , की उनकी आवाज सुनाई पड़ी ,... वो नहाने के लिए वेट कर रहे थे



जल्दी से नहाना ख़त्म करके मैं बाहर निकली और ये बाथरूम में ,...


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Yeh kusuma ke pati ke sath kab ho gya, yeh update hamne kab miss kar diya komal Ji
 
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komaalrani

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Yeh kusuma ke pati ke sath kab ho gya, yeh update hamne kab miss kar diya komal Ji
आपने अच्छा याद दिलाया ,असल में ये कहानी , मजा पहली होली का ससुराल में का सीक्वेल है तो कुछ पात्र उस भाग के आ के तांक झाँक तो करेंगे ही न, तो बस , लेकिन ,... सालों पुरानी कहानी ,... मैं लिंक दे देती हूँ उस प्रसंग का,... पर कुछ लोग अलसा भी जाएंगे तो फ्लैश बैक की तरह वो प्रसंग एक बार फिर पोस्ट कर देती हूँ , कुसुमा की भूमिका इस कहानी में आगे भी आएंगे , देवर भी आएंगे इसलिए,...

 

komaalrani

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थोड़ा सा फ्लैश बैक , थोड़े से यादों के पन्ने पलटती हूँ , उस भाग में जाने के लिए जहाँ उस अनोखे देवर के साथ होली खेली थी

...............................



एक अनूठा




तिजहरिया के समय तक होली खेल के सब वापस लौट रही थीं|






चंपा भाभी और कई औरतें अपने घर रास्ते में रुक गईं| हमलोग दो तीन हीं बचे थे कि रास्ते में एक मर्दों का झुंड दिखा, शराब के नशे में चूर, शायद दूसरे गाँव के थे|

एक तो हमलोग कम रह गये थे, दूसरा उनका भाव देख के हम डर से तितर बितर हो गये| थोड़ी देर में मैंने देखा तो मैं अब गाँव के एकदम बाहरी हिस्से में आ गई थी|





मुख्य बस्ती से थोड़ा दूर, चारों ओर गन्ने और अरहर के खेत और बगीचे थे| तभी मैंने देखा कि वहाँ एक कुआं और घर है|


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उसे पहचान के मेरी हिम्मत बढ़ गई, वो मेरी कहारिन कुसुमा का घर था| और उसका मरद कल्लू कुएं पे पानी भर रहा था|

कुसुमा गाँव में मेरी अकेली देवरानी लगती थी|


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उसकी शादी मेरी शादी के दो तीन महीने बाद हीं हुई थी|









गोरी, छुई मुई सी, छरहरी, लेकिन बहुत ताकत थी उसमें, छातियाँ छोटी छोटी, लेकिन बहुत सख्त, पतली कमर, भरे चूतड़| लेकिन मरद का हाथ लगते हीं वो एकदम गदरा गई|



कहते हैं कि मरद का रस सोखने के बाद हीं औरत की असली जवानी चढ़ती है|



घर में वो काम करती थी, नहाने के लिए पानी लाने से देह दबाने तक|



पानी बाहर कुएं पे उसका मरद भरता था और अंदर वो लाती थी| हम दोनों की लगभग साथ हीं शादी हुई थी इसलिए दोस्ती भी हो गई थी| रोज तेल लगवाते समय मैं उसे छेड़-छेड़ के रात की कहानी पूछती, पहले कुछ दिन तो शर्माई, लेकिन मैंने सब उगलवा हीं लिया|

रात भर चढ़ा रहता है वो, वो बोली|

मैंने हँस के कहा,

“हे मेरे देवर को कुछ मत कहना, मेरी देवरानी का जोबन हीं ऐसा है| क्यों दो बार किया या तीन बार?”

मेरी जाँघें दबाती बोली,

“अरे दो तीन बार की बात हीं नहीं, झड़ने के बाद वो बाहर हीं नहीं निकालता मुआ, थोड़ी देर में फिर डंडे ऐसा और फिर चोदना चालू,


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कभी चार बार तो कभी पाँच बार और घर में और कोई तो है नहीं, ना पास पड़ोसी, इसलिए जब चाहे तब, दिन दहाड़े भी|”

सुन के मैं गिनगिना गई| उसको 'माला डी' भी मैंने हीं दी|


एक बार वो आंगन में मुझे नहला रही थी| मैंने उसे छेड़ा,

“अरे अपने मरद से बोल ना, एक बार उसके असली पानी से नहाउंगी|


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तो वो हँस के बोली,

“हाँ ठीक है, मैं बोल दूंगी, लेकिन वो शर्माता बहुत है|”
ठसके से वो बोली|

“अरे मेरा देवर लगता है, मेरा हक है, क्या रोज-रोज सिर्फ देवरानी को हीं...”


“और क्या फागुन लग गया है|”
पीठ मलते वो बोली|
"एकदम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो पूरे गाँव में तो मैं और सबको भले छोड़ दूं, लेकिन उसको नहीं छोड़ने वाली|
 

komaalrani

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मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|



लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी|




जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..|


मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई|

फिर मैंने दोनों हाथों में खूब गाढ़ा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के...उसके सामने जा के खड़ी हो गई और पूछा,

“क्यों लाला, अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”

“नहीं भौजी, अभी तो नहाने जा हीं रहा था...”


वो बोला|

“तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो? रंग नहीं लगवाया...”

“रंग...होली...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...?”



“औरों का तो मुझे नहीं पता, लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली|”


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दोनों हाथों में लाल पेंट मैंने कस के रगड़-रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया|

मैं उससे अब एकदम सट के खड़ी थी| सिर्फ धोती में उसकी एक-एक मसल्स साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे|

लेकिन वो अब भी झिझक रहा था|

मैंने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निप्पल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढ़ाते हुए बोली,


“देवरानी तो बहुत तारीफ करती है तुम्हारी| तो सिर्फ लगवाओगे हीं या लगाओगे भी|”

“भौजी, कहाँ लगाऊं...?”



अब पहली बार मुस्कुरा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला|

मैंने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद और फिर 'जो कुछ' नंदोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और उसके दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था, उसके बाद चंपा भाभी के यहाँ...मेरी देह का कोई हिस्सा बचा नहीं था|

“एक मिनट रुको...”

मैं बोली और फिर पेड़ के पीछे जा के मैंने सब कुछ उतार के सिर्फ साड़ी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बाँध के...रंगों और पेंट की झोली, कुएं के पास रख दी और कुएं पे जा के बैठ के बोली
,



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“रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी| आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी, धुलाओ भी|”

थोड़ी हीं देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंग धुल गया|

पतली गुलाबी साड़ी अच्छी तरह देह से चिपक गई थी|

गदराए जोबन के उभार, यहाँ तक की मेरे इरेक्ट निप्पल्स एकदम साफ साफ झलक रहे थे| दोनों जांघे फैला के मैं बोली,


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अरे देवर जी, जरा यहाँ भी तो डालो, साड़ी अपने आप सरक के मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ गई थी|


पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी| जवान मर्द और वो भी इतना तगड़ा...धोती के अंदर अब उसका भी खूंटा तन गया था|


“क्यों हो गई न अब डालने के लायक...”

सीना उभार कर मैंने पूछा|

और उसका इन्तजार किये बिना रंग उसके चेहरे, छाती हर जगह लगाने लगी|

अब वो भी जोश में आ गया था| कस-कस के मेरे गाल पे, चेहरे पे और जो भी रंग उसके देह पे मैं लगाती वो रगड़-रगड़ के मेरी देह पे...साड़ी के ऊपर से हीं कस-कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था|

“अरे सारी होली बाहर हीं खेल लोगे तुम दोनों, अंदर ले आओ भौजी को|”

अंदर से निकल के कुसुमा बोली| और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया| कुसुमा ने दरवाजा बंद कर दिया| उसके बाद तो...


पूरे आंगन में रंग बरसने लगा, हर पेड़ टेसू का हो गया|

बस लग रहा था कि सारा गाँव नगर छोड़ के फागुन यहीं आ गया हो|

कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से तो कभी उसकी| उसने अपने मरद को ललकारा,

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“हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो|”

मैं भी बोली


“हाँ देवर, जरा मैं भी तो देखूं कि मेरी देवरानी सही तारीफ करती थी या...अगर अपने बाप के हो तो...”

और मैंने उसकी धोती खींच दी|

मैंने अब तक जितने देखे थे, सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...


फिर वो मेरी साड़ी क्यों छोड़ता|



उसे मैंने अपने ऊपर खींच के कहा,

“देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ|”


पल भर में वो मेरे अंदर था| चुदाई और होली साथ-साथ चल रही थी|

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कुसुमा ने कहा, “जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना (और भी 'पता नहीं क्या-क्या' पड़ा था) मेरे ऊपर डाल दिया| मैंने उसके मर्द को उसके सामने कर दिया| क्या ताबड़ तोड़ चुदाई कर रहा था| मस्त हो कर मेरी चूत भी कस-कस के उसके लंड को भींच रही थी|


अब तक जितने भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा| जैसे हीं वो झड़ के अलग हुआ मैंने कुसुमा को धर दबोचा और रंग लगाने के साथ निहुरा कर, उसे पटक के, सीधे उसकी चूत कस-कस के चाटने लगी और बोली,


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“देखूं, इसने कितना मेरे देवर का माल घोंटा है|”


जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों, हम दोनों कस-कस के एक दूसरे की चूचियाँ रगड़ रहे थे, रंग, गोबर और कीचड़ लगा रहे थे| उधर मौका देख के वो पीछे से हीं कुतिया की तरह मुझे चोदने लगा|
मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी|



वो नीचे से चिल्लाई, “ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इसकी गांड़ में पेल दो|”

मैं डर गई पर बोली, “और क्या, अकेले तुम्हीं देवर से गांड़ मराने का मजा लोगी|”




लेकिन जैसे ही उसने गांड़ में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये| मैं भी हार मानने वाली नहीं थी| मेरी चूत खाली हो गई थी|




मैं उसे कुसुमा की झाँटों भारी बुर पे रगड़ने लगी|

कुछ हीं देर में हमलोग सिक्स्टी नाइन की पोज में थे लेकिन वो घचाघच मेरी गांड़ मारे जा रहा था|


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हम दोनों दो-दो बार झड़ चुके थे| उसने जैसे हीं गांड़ में झड़ने के बाद लंड निकाला, सीधे मैंने मुँह में गड़प कर लिया| वो लाख मना करता रहा लेकिन मैंने चाट चूट के हीं छोड़ा|

तीन बार मेरी बुर चुदी|
मैं उठने की हालत में नहीं थी|
 
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Kattu5464

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थोड़ा सा फ्लैश बैक , थोड़े से यादों के पन्ने पलटती हूँ , उस भाग में जाने के लिए जहाँ उस अनोखे देवर के साथ होली खेली थी

...............................



एक अनूठा




तिजहरिया के समय तक होली खेल के सब वापस लौट रही थीं|






चंपा भाभी और कई औरतें अपने घर रास्ते में रुक गईं| हमलोग दो तीन हीं बचे थे कि रास्ते में एक मर्दों का झुंड दिखा, शराब के नशे में चूर, शायद दूसरे गाँव के थे|

एक तो हमलोग कम रह गये थे, दूसरा उनका भाव देख के हम डर से तितर बितर हो गये| थोड़ी देर में मैंने देखा तो मैं अब गाँव के एकदम बाहरी हिस्से में आ गई थी|





मुख्य बस्ती से थोड़ा दूर, चारों ओर गन्ने और अरहर के खेत और बगीचे थे| तभी मैंने देखा कि वहाँ एक कुआं और घर है|


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उसे पहचान के मेरी हिम्मत बढ़ गई, वो मेरी कहारिन कुसुमा का घर था| और उसका मरद कल्लू कुएं पे पानी भर रहा था|

कुसुमा गाँव में मेरी अकेली देवरानी लगती थी|


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उसकी शादी मेरी शादी के दो तीन महीने बाद हीं हुई थी|









गोरी, छुई मुई सी, छरहरी, लेकिन बहुत ताकत थी उसमें, छातियाँ छोटी छोटी, लेकिन बहुत सख्त, पतली कमर, भरे चूतड़| लेकिन मरद का हाथ लगते हीं वो एकदम गदरा गई|



कहते हैं कि मरद का रस सोखने के बाद हीं औरत की असली जवानी चढ़ती है|



घर में वो काम करती थी, नहाने के लिए पानी लाने से देह दबाने तक|



पानी बाहर कुएं पे उसका मरद भरता था और अंदर वो लाती थी| हम दोनों की लगभग साथ हीं शादी हुई थी इसलिए दोस्ती भी हो गई थी| रोज तेल लगवाते समय मैं उसे छेड़-छेड़ के रात की कहानी पूछती, पहले कुछ दिन तो शर्माई, लेकिन मैंने सब उगलवा हीं लिया|

रात भर चढ़ा रहता है वो, वो बोली|

मैंने हँस के कहा,

“हे मेरे देवर को कुछ मत कहना, मेरी देवरानी का जोबन हीं ऐसा है| क्यों दो बार किया या तीन बार?”

मेरी जाँघें दबाती बोली,

“अरे दो तीन बार की बात हीं नहीं, झड़ने के बाद वो बाहर हीं नहीं निकालता मुआ, थोड़ी देर में फिर डंडे ऐसा और फिर चोदना चालू,


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कभी चार बार तो कभी पाँच बार और घर में और कोई तो है नहीं, ना पास पड़ोसी, इसलिए जब चाहे तब, दिन दहाड़े भी|”

सुन के मैं गिनगिना गई| उसको 'माला डी' भी मैंने हीं दी|


एक बार वो आंगन में मुझे नहला रही थी| मैंने उसे छेड़ा,

“अरे अपने मरद से बोल ना, एक बार उसके असली पानी से नहाउंगी|


boobs-wet-2.jpg




तो वो हँस के बोली,

“हाँ ठीक है, मैं बोल दूंगी, लेकिन वो शर्माता बहुत है|”
ठसके से वो बोली|

“अरे मेरा देवर लगता है, मेरा हक है, क्या रोज-रोज सिर्फ देवरानी को हीं...”


“और क्या फागुन लग गया है|”
पीठ मलते वो बोली|
"एकदम और उसको ये भी बोल देना इस होली में ना, तुम मेरी अकेली देवरानी हो पूरे गाँव में तो मैं और सबको भले छोड़ दूं, लेकिन उसको नहीं छोड़ने वाली|
Waaah Maja aagya is update me b

Me chud rhi thi wo Chhod rha tha wo mere andar tha uska kardiya naag meri gufa me naach rha tha aapke har ke words me kcuh alag hi Baat hoti h amazing wonderful
 
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