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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Rajizexy

❤ Raji❤️
Supreme
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देवर संग फागुन





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मेरी चचिया सास ने फिर एकदम से मेरा और मेरे देवरों का रास्ता साफ़ करते हुए समझा भी दिया


" और का रात में सैंया , ... और दिन में सैंया क भैया "



मैं साफ़ साफ समझ गयी , ... बस बड़ी मुश्किल से मुस्कान रोकी , ... यही बात तो मायके में मेरी भाभियों ने दस बार समझाया था , साजन तो रगड़ाई करेंगे ही मौक़ा देख कर देवर नन्दोई भी ,...



लेकिन सच पूछूं , मुझे भी अच्छा लगता था , जिस तरह मुझे देख के ललचाते थे , छुप के देखते थे , ... उससे ज्यादा की उनकी हिम्मत नहीं पड़ती थी , ...



और एक बार उन्होंने भी ,...



`अरे उसी दिन की बात , बताया तो था आप लोगों को , शादी के चार दिन बाद ही , उस दिन मैंने शलवार कुरता पहना था और वो भी खूब टाइट ,



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मेरे उभार और पिछवाड़ा दोनों ही खूब खुल के साफ़ साफ़ दिख रहा था , मेरी मंझली ननद मुझे चिढ़ा रही थी , भाभी आज आप का पिछवाड़ा नहीं बचेगा , ऐसे चूतड़ मटका मटका के चल रही हैं , आज आपकी गाँड़ जरूर मारी जाएगी , और मैंने उनके उभार दबा के उसी तरह जवाब दिया , मारेंगे तो मरवा लूंगी , आखिर जिस दिन से आयी दिन रात कोई टाइम छोड़ते तो हैं नहीं ,... "


उसी दिन , मैं छत पर कपडे फ़ैलाने गयी थी , तो मुंडेर के पास सट के खड़ी हो गयी ,

वहीँ सुनील देखा , मेरे पड़ोस का देवर ,... बस देख के उसकी हालत ख़राब , उसने अपने सीने पर हाथ फेरा ,


उसकी हालत खराब हो तो हो , भाभियों का काम ही है , देवर की हालत खराब करना ,... बस मैंने जो दुप्पट्टा ओढ़ रखा था उसे एकदम गले से चिपका लिया , अब दोनों कबूतर एकदम उड़ने को बेकाबू ,...


shalwar-shriya-actress-salwar-kameez.jpg


बेचारा सब कुछ भूल के एकदम एक टक उन्ही दोनों को देख रहा था , लेकिन मैं छुरी और अंदर घुसाना चाहती थी , बस मैंने जोर की अंगड़ाई ली ,



और वो दुष्ट , ... एकदम जैसे गिरने की एक्टिंग कर रहा हो बेहोश हो कर , और मुझे बहोत जोर की हंसी आ गयी , खिलखिलाती हुयी मैं नीचे आ गयी ,



मेरी छोटी ननद बाहर खड़ी थी , गाँव के एक दो लड़कों से बात कर रही थीं , .... मेरे तो देवर ही थे ,... और आज मेरा मन भी कुछ ज्यादा गरमा रहा था तो बस उन दोनों के साथ भी मैंने कुछ छेड़ खानी की ,

और जब मैं अंदर आयी तो , ये और इनकी निगाह मेरी टाइट शलवार में कसर मसर करते पिछवाड़े पर , इन्हे देख कर मैंने एक बार फिर से चूतड़ मटका दिए , तब तक मेरी ननद मुझे चिढ़ाती , इनसे बोली ,... भैया , भाभी के देवर कुछ ज्यादा ही चक्कर काट रहे हैं आजकल ,

पर उनकी निगाह तो मेरे पिछवाड़े चिपकी थी , उनकी पैंट टाइट हो रही थी , मुस्कराकर बोले ,


अपनी बहन से
" देख यार , मैं न तो ननद भाभी के बीच में बोलता हूँ , न देवर भाभी के बीच में ,... "



मैंने ननद को जीभ मुंह से निकाल के चिढ़ा दिया ,... ये बात अलग है की आधे घंटे के अंदर ही उन्होंने मेरे कुंवारे पिछवाड़े का बाजा बजा दिया , मेरी कसी गांड फाड़ दी , .... पर मैं समझ गयी की देवर भाभी के चक्कर में न सिर्फ मेरी सास ननद का बल्कि साजन का भी लाइन क्लियर है ,

नहाते अपने दोनों जोबन पर साबुन लगाते मैं सिर्फ अपने देवरों के बारे में सोच रही थी ,


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होली में जो दिन के लिए मायके गयी ,... इनका और मेरी बहनों का तो फायदा हो गया , लेकिन मेरा और मेरे देवरों का घाटा हो गया , ... होली के दिन सुनील और उसके दो दोस्त ,...

फिर गाँव में जो मेरी अकेली देवरानी थी कुसुमा , उसके घर जाकर उसके मरद के साथ ,...


पर बेचारे इतने देवर प्लान बना के बैठे थे होली नहीं तो पांच दिन रंग पंचमी के , ... पर उसमें दो दिन तो मेरे मायके में निकल गए ,... इनका तो फायदा हो गया , साला , सालियाँ , साली सहेलियां , सलहज और यहाँ तक की सास भी , अगवाड़ा , पिछवाड़ा ,... सब

लेकिन मेरा और मेरे देवरों का तो घाटा हो गया , दो दिन ,... अपने उभारों पर साबुन मलते हुए मैं सोच रही थी , बेचारे कितने ललचाते थे , इन्हे देख कर और मैंने भी सोचा था चलो इस होली में ,.... लेकिन



और अब मेरा हाथ सरक कर नीचे चला गया था चुनमुनिया में साबुन लगाते मैंने महसूस किया छोटे छोटे रोयें ,... मैंने हफ्ते भर पहले ' वहां साफ़ सूफ किया था ' पर , ... वीट दोनों उँगलियों में लगा कर मैंने लिथड़ लिया ,चारो ओर , ... और जब तक उसका असर होता मेरी ऊँगली , मेरी चुनमुनिया के अंदर ,.... मैं सोच रही थी लास्ट टाइम मेरी गुलाबो ने किसकी मलाई घोंटी थी ,



और मुझे याद आया , और किसकी मेरे देवर की , ...


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और सोच सोच के मेरी ऊँगली ,... अंदर बाहर , कुसुमा का मरद , इस गाँव में मेरी अकेली देवरानी ,.... और कितना लजा सरमा रहा था , लेकिन जब चढ़ा मेरे ऊपर , ... ओह्ह हड्डी चूर चूर कर दी ,... कटोरी नहीं कटोरा भर मलाई खिलाई होगी मेरी सहेली को ,... और उसके पहले भी मेरे देवर , सुनील और उसके दोस्त ,...



सोच सोच के मेरी ऊँगली तेज चलने लगी



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और मैंने तय कर लिया था दो दिन का मेरे देवरों का घाटा सूद सहित अगले तीन दिन में पूरा कर दूंगी , और किसी देवर ने थोड़ा बहुत ना नुकुर किया न तो खुद पटक के भोंसड़ी वाले को चोद दूंगी ,... रंग पंचमी के पांच दिन में से दो दिन तो निकल गए थे , पर असली हंगामा अगले तीन दिन में होना था ,... असल में आज का दिन ,... आज कुछ ऐसा हो गया था की आज के दिन गाँव में कुछ नहीं होता ,... लेकिन उस के बदले , एक दिन बढाकर , ... और वो भी तीनो दिन का हिसाब अलग अलग है।



कल का दिन सिर्फ औरतों लड़कियों , ननद भौजाई , लेकिन बाकी जैसे शुरुआत तो सास ही करती हैं , और कई बार जेठानी देवरानी भी आपस में चालू हो जाती है ,


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लेकिन मर्द या तो घर के बाहर , खेत में बाग़ में चले जाते हैं ,... या एकदम पूरे दिन औरतों लड़कियों का राज रहता है ,

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और अगला दिन यानी परसों का दिन , सिर्फ मर्द औरतों का यानी नन्दोई सलहज , ... देवर भाभी का ,... उस दिन ननदें भाभियों की होली नहीं होती ,... सिर्फ मरदों औरतों की


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और सबसे खतरनाक आखिरी दिन , फ्री फॉर ऑल , कोई किसी से भी और उस दिन जेठ ससुर का बिराव भी नहीं , बस एक रिश्ता मर्द औरत का , मस्ती का रिश्ता ,...



हाँ चम्पा भाभी ने एक बात बतायी थी मेरे फायदे की , कल औरतों की होली भले हो , और कोई मर्द किसी लड़की औरत के साथ होली भले न खेल सके , पर भौजाई , सलहज को ये छूट है की अगर उसने किसी देवर नन्दोई को पकड़ लिया तो फिर उसकी मर्जी वो चाहे कुछ करे ,... हाँ जो होगा , वो सलहज , भौजाई ही करेगी ,... और खास तौर से नयी बहु को , यानी जिसकी शादी पिछली होली के जलने के बाद हुयी उसे पूरी छूट रहती है , ... तो तीन दिन तो है न मेरे पास देवरों के लिए ,... बता दूंगी उन सबको भी किस भौजाई से पाला पड़ा है ,

एक ऊँगली में साबुन लगा के मैंने पिछवाड़े वाले छेद में डाल कर अंदर तक साफ़ किया , ...


और पानी से आगे पीछे जहाँ हेयर रिमूविंग क्रीम लगायी थी सब साफ़ , बस मैं नहाना ख़तम ही कर रही थी , की उनकी आवाज सुनाई पड़ी ,... वो नहाने के लिए वेट कर रहे थे



जल्दी से नहाना ख़त्म करके मैं बाहर निकली और ये बाथरूम में ,...


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Fabulous update,kya story hai, shandar 👌👌👌👌👌👌👌💯
 

UDaykr

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Great...
 

Random2022

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मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|



लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी|




जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..|


मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई|

फिर मैंने दोनों हाथों में खूब गाढ़ा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के...उसके सामने जा के खड़ी हो गई और पूछा,

“क्यों लाला, अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”

“नहीं भौजी, अभी तो नहाने जा हीं रहा था...”


वो बोला|

“तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो? रंग नहीं लगवाया...”

“रंग...होली...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...?”



“औरों का तो मुझे नहीं पता, लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली|”


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दोनों हाथों में लाल पेंट मैंने कस के रगड़-रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया|

मैं उससे अब एकदम सट के खड़ी थी| सिर्फ धोती में उसकी एक-एक मसल्स साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे|

लेकिन वो अब भी झिझक रहा था|

मैंने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निप्पल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढ़ाते हुए बोली,


“देवरानी तो बहुत तारीफ करती है तुम्हारी| तो सिर्फ लगवाओगे हीं या लगाओगे भी|”

“भौजी, कहाँ लगाऊं...?”



अब पहली बार मुस्कुरा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला|

मैंने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद और फिर 'जो कुछ' नंदोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और उसके दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था, उसके बाद चंपा भाभी के यहाँ...मेरी देह का कोई हिस्सा बचा नहीं था|

“एक मिनट रुको...”

मैं बोली और फिर पेड़ के पीछे जा के मैंने सब कुछ उतार के सिर्फ साड़ी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बाँध के...रंगों और पेंट की झोली, कुएं के पास रख दी और कुएं पे जा के बैठ के बोली
,



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“रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी| आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी, धुलाओ भी|”

थोड़ी हीं देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंग धुल गया|

पतली गुलाबी साड़ी अच्छी तरह देह से चिपक गई थी|

गदराए जोबन के उभार, यहाँ तक की मेरे इरेक्ट निप्पल्स एकदम साफ साफ झलक रहे थे| दोनों जांघे फैला के मैं बोली,


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अरे देवर जी, जरा यहाँ भी तो डालो, साड़ी अपने आप सरक के मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ गई थी|


पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी| जवान मर्द और वो भी इतना तगड़ा...धोती के अंदर अब उसका भी खूंटा तन गया था|


“क्यों हो गई न अब डालने के लायक...”

सीना उभार कर मैंने पूछा|

और उसका इन्तजार किये बिना रंग उसके चेहरे, छाती हर जगह लगाने लगी|

अब वो भी जोश में आ गया था| कस-कस के मेरे गाल पे, चेहरे पे और जो भी रंग उसके देह पे मैं लगाती वो रगड़-रगड़ के मेरी देह पे...साड़ी के ऊपर से हीं कस-कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था|

“अरे सारी होली बाहर हीं खेल लोगे तुम दोनों, अंदर ले आओ भौजी को|”

अंदर से निकल के कुसुमा बोली| और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया| कुसुमा ने दरवाजा बंद कर दिया| उसके बाद तो...


पूरे आंगन में रंग बरसने लगा, हर पेड़ टेसू का हो गया|

बस लग रहा था कि सारा गाँव नगर छोड़ के फागुन यहीं आ गया हो|

कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से तो कभी उसकी| उसने अपने मरद को ललकारा,

Holi-hot-tumblr-p689im4ry-C1vllqj4o3-540.jpg




“हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो|”

मैं भी बोली


“हाँ देवर, जरा मैं भी तो देखूं कि मेरी देवरानी सही तारीफ करती थी या...अगर अपने बाप के हो तो...”

और मैंने उसकी धोती खींच दी|

मैंने अब तक जितने देखे थे, सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...


फिर वो मेरी साड़ी क्यों छोड़ता|



उसे मैंने अपने ऊपर खींच के कहा,

“देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ|”


पल भर में वो मेरे अंदर था| चुदाई और होली साथ-साथ चल रही थी|

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कुसुमा ने कहा, “जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना (और भी 'पता नहीं क्या-क्या' पड़ा था) मेरे ऊपर डाल दिया| मैंने उसके मर्द को उसके सामने कर दिया| क्या ताबड़ तोड़ चुदाई कर रहा था| मस्त हो कर मेरी चूत भी कस-कस के उसके लंड को भींच रही थी|


अब तक जितने भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा| जैसे हीं वो झड़ के अलग हुआ मैंने कुसुमा को धर दबोचा और रंग लगाने के साथ निहुरा कर, उसे पटक के, सीधे उसकी चूत कस-कस के चाटने लगी और बोली,


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“देखूं, इसने कितना मेरे देवर का माल घोंटा है|”


जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों, हम दोनों कस-कस के एक दूसरे की चूचियाँ रगड़ रहे थे, रंग, गोबर और कीचड़ लगा रहे थे| उधर मौका देख के वो पीछे से हीं कुतिया की तरह मुझे चोदने लगा|
मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी|



वो नीचे से चिल्लाई, “ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इसकी गांड़ में पेल दो|”

मैं डर गई पर बोली, “और क्या, अकेले तुम्हीं देवर से गांड़ मराने का मजा लोगी|”




लेकिन जैसे ही उसने गांड़ में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये| मैं भी हार मानने वाली नहीं थी| मेरी चूत खाली हो गई थी|




मैं उसे कुसुमा की झाँटों भारी बुर पे रगड़ने लगी|

कुछ हीं देर में हमलोग सिक्स्टी नाइन की पोज में थे लेकिन वो घचाघच मेरी गांड़ मारे जा रहा था|


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हम दोनों दो-दो बार झड़ चुके थे| उसने जैसे हीं गांड़ में झड़ने के बाद लंड निकाला, सीधे मैंने मुँह में गड़प कर लिया| वो लाख मना करता रहा लेकिन मैंने चाट चूट के हीं छोड़ा|

तीन बार मेरी बुर चुदी|
मैं उठने की हालत में नहीं थी|
Aa gya yaad. Hot update
 
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komaalrani

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whatever page i open post 658 comes on top, any way of undoing that?
 

komaalrani

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Waaah Maja aagya is update me b

Me chud rhi thi wo Chhod rha tha wo mere andar tha uska kardiya naag meri gufa me naach rha tha aapke har ke words me kcuh alag hi Baat hoti h amazing wonderful
bahoooooooooooooooooooot bahoot tahnks, aapke comments padh ke, jitta aapko story padh ke maja aata hoga us ka 10 guna jyada mujhe aa jaata hai , Thanks sooooooooooooooo much, saath baanaye rakhiye
 
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komaalrani

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Aaj to aapne subah subah hi pajaama geela karva diya bheeg gya Mein poora haaaaaaaaye Jaan hi nhi nikli kya update thi komal
are issse acchi Good Morning kya hogi,..
 
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Luckyloda

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मैं एकदम पास पहुँच के, एक पेड़ की आड़ में खड़े होके देख रही थी|



लेकिन...लग रहा था जैसे होली उन लोगों के घर को बचा के निकल गई थी|




जहाँ चारों ओर फाग की धूम मची थी, वहीं उसके देह पे रंग के एक बूंद का भी निशान नहीं था| चारों ओर रंगों की बरसात और यहाँ एकदम सूखा...होली में तो कोई भेद भाव नहीं होता, कोई छोटा बड़ा नहीं...लेकिन..|


मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं समझ गई|

फिर मैंने दोनों हाथों में खूब गाढ़ा लाल पेंट लगाया और पीछे हाथ छिपा के...उसके सामने जा के खड़ी हो गई और पूछा,

“क्यों लाला, अभी से नहा धो के साफ वाफ हो के...”

“नहीं भौजी, अभी तो नहाने जा हीं रहा था...”


वो बोला|

“तो फिर होली के दिन इतने चिक्कन मुक्कन कैसे बचे हो? रंग नहीं लगवाया...”

“रंग...होली...हमसे कौन होली खेलेगा, कौन रंग लगायेगा...?”



“औरों का तो मुझे नहीं पता, लेकिन ये तेरी भौजी आज तुझे बिना रंग लगाये नहीं छोड़ने वाली|”


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दोनों हाथों में लाल पेंट मैंने कस के रगड़-रगड़ के उसके चेहरे पे लगा दिया|

मैं उससे अब एकदम सट के खड़ी थी| सिर्फ धोती में उसकी एक-एक मसल्स साफ दिख रही थीं, पूरी मर्दानगी की मूरत हो जैसे|

लेकिन वो अब भी झिझक रहा था|

मैंने बचा हुआ पेंट उसकी छाती पे लगा के, उसके निप्पल्स को कस के पिंच कर दिया और चिढ़ाते हुए बोली,


“देवरानी तो बहुत तारीफ करती है तुम्हारी| तो सिर्फ लगवाओगे हीं या लगाओगे भी|”

“भौजी, कहाँ लगाऊं...?”



अब पहली बार मुस्कुरा के मेरी देह की ओर देखता वो बोला|

मैंने भी अपनी देह की ओर देखा, सच में पहले तो मेरी सास, ननद और फिर 'जो कुछ' नंदोई और ननद ने मिल के लगाया था, फिर सुनील और उसके दोस्तों ने जिस तरह कीचड़ में रगड़ा था, उसके बाद चंपा भाभी के यहाँ...मेरी देह का कोई हिस्सा बचा नहीं था|

“एक मिनट रुको...”

मैं बोली और फिर पेड़ के पीछे जा के मैंने सब कुछ उतार के सिर्फ साड़ी लपेट ली, अपने स्तनों को कस के उसी में बाँध के...रंगों और पेंट की झोली, कुएं के पास रख दी और कुएं पे जा के बैठ के बोली
,



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“रोज तो तुम्हारे निकाले पानी से नहाती थी| आज अपने हाथ से पानी निकालो और मुझे नहलाओ भी, धुलाओ भी|”

थोड़ी हीं देर में पानी की धार से मेरा सारा रंग वंग धुल गया|

पतली गुलाबी साड़ी अच्छी तरह देह से चिपक गई थी|

गदराए जोबन के उभार, यहाँ तक की मेरे इरेक्ट निप्पल्स एकदम साफ साफ झलक रहे थे| दोनों जांघे फैला के मैं बोली,


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अरे देवर जी, जरा यहाँ भी तो डालो, साड़ी अपने आप सरक के मेरी जाँघों के ऊपरी हिस्से तक आ गई थी|


पूरे डोल भर पानी उसने सीधे वहीं डाला और अब मेरी चूत की फांक तक झलक रही थी| जवान मर्द और वो भी इतना तगड़ा...धोती के अंदर अब उसका भी खूंटा तन गया था|


“क्यों हो गई न अब डालने के लायक...”

सीना उभार कर मैंने पूछा|

और उसका इन्तजार किये बिना रंग उसके चेहरे, छाती हर जगह लगाने लगी|

अब वो भी जोश में आ गया था| कस-कस के मेरे गाल पे, चेहरे पे और जो भी रंग उसके देह पे मैं लगाती वो रगड़-रगड़ के मेरी देह पे...साड़ी के ऊपर से हीं कस-कस के मेरे रसीले जोबन पे भी...

लेकिन अभी भी उसका हाथ मेरी साड़ी के अंदर नहीं जा रहा था|

“अरे सारी होली बाहर हीं खेल लोगे तुम दोनों, अंदर ले आओ भौजी को|”

अंदर से निकल के कुसुमा बोली| और वो मुझे गोद में उठा के अंदर आंगन में ले आया| कुसुमा ने दरवाजा बंद कर दिया| उसके बाद तो...


पूरे आंगन में रंग बरसने लगा, हर पेड़ टेसू का हो गया|

बस लग रहा था कि सारा गाँव नगर छोड़ के फागुन यहीं आ गया हो|

कुसुमा भी हमारे साथ, कभी मेरी तरफ से तो कभी उसकी| उसने अपने मरद को ललकारा,

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“हे अगर सच्चे मर्द हो तो आज भौजी को पूरी ताकत दिखा दो|”

मैं भी बोली


“हाँ देवर, जरा मैं भी तो देखूं कि मेरी देवरानी सही तारीफ करती थी या...अगर अपने बाप के हो तो...”

और मैंने उसकी धोती खींच दी|

मैंने अब तक जितने देखे थे, सबसे ज्यादा लंबा और मोटा...


फिर वो मेरी साड़ी क्यों छोड़ता|



उसे मैंने अपने ऊपर खींच के कहा,

“देवर जरा आज फागुन में भाभी को इस पिचकारी का रंग तो बरसा के दिखाओ|”


पल भर में वो मेरे अंदर था| चुदाई और होली साथ-साथ चल रही थी|

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कुसुमा ने कहा, “जरा हम लोगों का रंग तो देख लो और एक घड़े में गोबर और कीचड़ के घोल से बना (और भी 'पता नहीं क्या-क्या' पड़ा था) मेरे ऊपर डाल दिया| मैंने उसके मर्द को उसके सामने कर दिया| क्या ताबड़ तोड़ चुदाई कर रहा था| मस्त हो कर मेरी चूत भी कस-कस के उसके लंड को भींच रही थी|


अब तक जितने भी लंड से मैं चुदी थी उनसे ये २० नहीं २२ रहा होगा| जैसे हीं वो झड़ के अलग हुआ मैंने कुसुमा को धर दबोचा और रंग लगाने के साथ निहुरा कर, उसे पटक के, सीधे उसकी चूत कस-कस के चाटने लगी और बोली,


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“देखूं, इसने कितना मेरे देवर का माल घोंटा है|”


जैसे दो पहलवान अखाड़े में लड़ रहे हों, हम दोनों कस-कस के एक दूसरे की चूचियाँ रगड़ रहे थे, रंग, गोबर और कीचड़ लगा रहे थे| उधर मौका देख के वो पीछे से हीं कुतिया की तरह मुझे चोदने लगा|
मैं उसे कस के हुचुक हुचुक कर कुसुमा की चूत अपनी जीभ से चोद रही थी|



वो नीचे से चिल्लाई, “ये तेरी भौजी छिनाल ऐसे नहीं मानेगी, हुमच के अपना लंड इसकी गांड़ में पेल दो|”

मैं डर गई पर बोली, “और क्या, अकेले तुम्हीं देवर से गांड़ मराने का मजा लोगी|”




लेकिन जैसे ही उसने गांड़ में मूसल पेला, दिन में तारे दिख गये| मैं भी हार मानने वाली नहीं थी| मेरी चूत खाली हो गई थी|




मैं उसे कुसुमा की झाँटों भारी बुर पे रगड़ने लगी|

कुछ हीं देर में हमलोग सिक्स्टी नाइन की पोज में थे लेकिन वो घचाघच मेरी गांड़ मारे जा रहा था|


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हम दोनों दो-दो बार झड़ चुके थे| उसने जैसे हीं गांड़ में झड़ने के बाद लंड निकाला, सीधे मैंने मुँह में गड़प कर लिया| वो लाख मना करता रहा लेकिन मैंने चाट चूट के हीं छोड़ा|

तीन बार मेरी बुर चुदी|
मैं उठने की हालत में नहीं थी|
Aap itne shnaadr tarike se deti h ki.... land khada rakh k aapka aane ka intjaar karte hai.....




Kasam se maja aa gya bhabhi ji😘😘😘😘
 
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SultanTipu40

🐬🐬🐬🐬🐬🐬🐬
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214
( भाग ६ -पिछले पृष्ठ से शुरू )



चुस्सम चुस्सवल

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और मेरी और मेरी बहन की परफेक्ट समझ थी बस आँखों के ईशारे

हम दोनों फर्श पर और ये सीट पर बैठे , ... जैसे दो सहेलियां मिल बाँट के लॉलीपॉप चूसें ,

शुरआत मैंने की , होंठों के सहारे से इनके सुपाड़े का चमड़ा बहुत धीमे धीमे हटाया , छुटकी बगल में बैठे देख रही थी , सीख रही थी , .... फिर ढेर सारा थूक मैंने अपने इकट्ठा किया और सब इनके सुपाड़े पर ,

मोटा भी कितना था , एकदम लाल , बड़े पहाड़ी आलू सा , फिर सिर्फ थोड़ी देर जीभ की टिप से उनके पेशाब के छेद में सुरसुरी की , और

गप्प ,

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अब मुझे आदत हो गयी थी , एक बार में पूरा सुपाड़ा गपक कर लेने की , थोड़ी देर चुसला चुभला के मैंने उसे अपनी ललचाती , नदीदी लार टपकाती अपनी छोटी बहन को दे दिया
और फिर एक बार अपने मुंह में ढेर सारा थूक इकठा किया , और अबकी सब थूक मेरी हथेली में

छुटकी ने बड़ी कोशिश कर के अपने जीजू का आधा से ज्यादा सुपाड़ा अपने किशोर मुंह में घोंट लिया था और हलके हलके चूस रही थी , ....


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मैंने सब थूक अब उनके चर्म दंड पर लगाया और उसी थूक लगी मुट्ठी से मालिश करने लगी ,... पूरा लंड चमक रहा था ,

फिर हम दोनों बहनों ने इन्हे बाँट लिया , सुपाड़ा छोटी के मुंह में और बाकी का मेरे हिस्से में , मैं जीभ से बॉल्स से लेकर सुपाड़े तक तेजी से सपड़ सपड़ चाट रही थी ,

अब इनकी हालत खराब हो रही थी , लेकिन हम दोनों बहने यही चाहती भी थीं , लेकिन तब तक ट्रेन धीमी होने लगी , ... रात भी अब ख़तम होने के कगार पर थी ,

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कोई बड़ा स्टेशन आ रहा था , ... और मैंने रुक के एक पल इनकी ओर देखा इन्होने छुटकी का सर पकड़ा

कोई भोसड़े में क्या लंड पेलेगा , जिस तरह इन्होने अपनी साली के मुंह में लंड ठेल दिया , अब पूरा ढाई इंच का सुपाड़ा उस छोटी साली के मुंह में धंसा घुसा और वो कस के उसके सर को दोनों हाथों से जकड रखा था ,

बचपन में मेरी भोंसड़ी वाली सास ने अच्छी ट्रेनिंग दी है अपने मुन्ने को , रुक के मैंने थोड़ा उन्हें चिढ़ाया

ट्रेन रुक चुकी थी , बाहर से चाय चाय की आवाज स्टेशन की हलचल सब कुछ सुनाई पड़ रहा था , खिड़की खुली हुयी थी ,

लेकिन न इन्हे फर्क पड़ रहा था न हम दोनों बहनों को ,

पूरे पांच मिनट तक ट्रेन खड़ी रही , और हम दोनों , हाँ ट्रेन चलने के पहले मैंने अपनी छोटी बहन को उसके जीजू का पूरा मोटा गन्ना दे दिया ,


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उसके जीजू कस कस के उसका मुंह चोद रहे थे सुपाडा उन्होंने उस कली के हलक में उतार दिया था , वो गों गों कर रही थी , लेकिन उनकी पकड़

और मैंने अब दोनों रसगुल्लों की ओर रुख किया आखिर सारा माल पानी बनता भी तो वहीँ है , बस मैं जोर जोर से चूसने लगी एक एक बॉल्स को लेकर बारी बारी से , ...

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एक तकिया लेकर मैंने उनके चूतड़ों को थोड़ा उचकाया और अब मेरी जीभ बॉल्स से लेकर पिछवाड़े के छेद तक
ट्रेन चल दी थी और हम दोनों बहनों ने आँखों ही आँखों में
और हम दोनों ने मिल के उन्हें बर्थ पर ही , पीठ के बल धक्का देकर ,... छुटकी एक बार साइड से उन्हें चूस रही थी और दूसरी साइड से मैं

कभी हम दोनों मिल के सुपाड़ा उनका चाटती चुसतीं , कभी लंड उसके हिस्से में सुपाड़ा मेरे हिस्से में ,


फिर मैंने एक और तकिया उनके चूतड़ के नीचे लगाया ,

छुटकी चूसना छोड़ के देख रही थी मैं क्या कर रही हूँ ,



मैंने इनके दोनों नितम्ब फैला के छुटकी को इनके पिछवाड़े का छेद दिखाया , और उससे कहा इसे फैलाये रहे ,

बस अब मेरी जीभ ने शरारत शुरू कर दी , पहले जीभ गोलकुंडा का चक्कर काटती रही , फिर जीभ की टिप सीधे गोल छेद के अंदर , मैं रीमिंग कर रही थी , चपड़ चपड़ चाट रही थी ,
इनकी रीमिंग करवाने में हालत खराब हो जाती थी , और यही तो मैं चाहती थी ,...

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और अब छुटकी भी अपने काम में लग गयी , पिछवाड़े का छेद बड़ी बहन के हिस्से में , और मोटा तन्नाया लंड छोटी बहन के हिस्से में ,...
दो चार मिनट में ही इनकी हालत खराब हो गयी , ...

तभी मैं चौंकी ,... जो स्टेशन गुजरा था ,... कोई उसका नाम ले रहा था ,... वो हमारे गाँव के पहले का आखिरी बड़ा स्टेशन था यहाँ से एक घंटे पूरा लगता था यानी एक घंटे में हमें उतरना होगा , और तब तक ,... शाम से इनका मन कर रहा था ,...
Nice Update Komal

Dono bahanon ne badi masti kar liya gadi main ab dekhte hai ek ghante main kya kya karti hai kya didi chhotki ki gand marwa deti hai ki nahi
 

Kattu5464

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bahoooooooooooooooooooot bahoot tahnks, aapke comments padh ke, jitta aapko story padh ke maja aata hoga us ka 10 guna jyada mujhe aa jaata hai , Thanks sooooooooooooooo much, saath baanaye rakhiye
Hum aapke Saath Hai jaha tak aap bolo waha tak hum sath denge aapka hame itna maja diya h aapne uske liye thank you soo soo much
 
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