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सही कहा...
बाकी साल हँसी-ठिठोली में हीं निकल जाता है...
ये फगुआ हीं मन के चाहत को पूरा करता है... sparsh sukh ka sukh
सही कहा...
बाकी साल हँसी-ठिठोली में हीं निकल जाता है...
ये फगुआ हीं मन के चाहत को पूरा करता है... sparsh sukh ka sukh
भौजाइयां देवरों और ननदों दोनों को सिखाती हैंएक पंथ दो काज...
एकदम इस्तेमाल न हो तो कोई भी मशीन खराब हो जायेगीलेकिन बीच बीच में मशीन को आयल वगैरह डाल कर चकाचक रखना होगा...
दोनों सन्नद्ध अपनी अपनी अपनी बन्दूक ताने तैयार,पति युद्ध के मैदान पर...
देवर भौजी के मैदान पर...
और जब तक देवरानी नहीं आती पूरी तरह काबू में रहता है और कई बारी समझदार भौजाई अपनी ही कोई चचेरी, मौसेरी, पड़ोस की बहन देवरानी बना के ले आती है,और काबू भी जल्दी में आ जाता है...
आपने दो लाइन में सब बात कह दी जब पलाश फूलते हैं आम बौराते हैं तो भौजाइयां भी बौराने लगती है।फागुन का खुमार .. तन बदन में एक ऐंठन सी ला देता है...
जी करता है कोई आके भींच ले...
सुगना जानती थी, जबतक इमरतिया रहेगी, ससुर जी का काम चलता रहेगा, और वो मन करने पर भी मन मारे बैठे रहेंगे झिझक और लोकलाज से, सुगना को देख के ललचाते रहेंगे,आखिर सुगना के सुग्गा उड़ने का टाइम आ हीं गया...
लेकिन इमरतिया को हटा कर दूर का सोची वो...
साथ में लालच भी कि सबकुछ मिलता रहेगा...
और इशारों इशारों में ससुर को अपनी जवानी से थकने की बात भी बता दी...
मजा आग को धीरे धीरे सुलगाने का ही हैजवानी के चुदास की आग दोनों तरफ बराबर लगी है...
लेकिन खेल-खेल में हीं सुगना धीरे-धीरे रिझा रही है...
और समधन का सहारा लेके समधी को भी सुना दिया....
जवान होती बेटी की सबसे बड़ी सहेली उसकी माँ ही होती है, खास तौर से अगर कोई भौजाई न हो और देह के रहस्य वही खोल के उसे बताती है समझाती है। कभी चोटी गूंथते, कभी रसोई में साथ काम करते, कभी चिढ़ाते, खिजाते," अरे फिर तो कुछ भी करो, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, कुछ भी करके पटाओ, मनाओ,... लेकिन कउनो मरद हो बहिन महतारी की गारी जरूर अच्छी लगती है, और उहो मेहरारू के मुंह से, देखो सादी बियाह में जब तक बरतीयंन क नाम ले लेके बहिन महतारी न गरियाओ,... "
सुगना कि माँ ... एक खुला सीक्रेट बता दिया...
" अरे मोटा पतला मत देखना, ... खाली पूरी ताकत से जांघ फैला देना, हाथ से पलंग क पाटी, जो भी पकड़ में आये पकड़ लेना,... आँख बंद,... बस पेलना मरद का काम है धकेलेगा, ठेलेगा, कोई मरद सामने छेद हो बिना घुसेड़े छोड़ता नहीं, स्कूल के लौंडो को तो छोड़ते नहीं,... आखिर एही हमरी बुरिया से तू निकली थी की नहीं, और तोहरे बिलिया से हमार नाती नतिनी सब निकलेंगे, कम से कम पांच,... तो कौन लंड केतनो मोट हो बच्चे से तो पतला ही होगा, तो जउन बुरिया से पूरी दुनिया निकली ओके मोट पातर से कौन डरे की जरूरत, हाँ मोट होगा कड़ा होगा लम्बा होगा तो मजा बहुत आएगा, लेकिन घुस सब जाते हैं अंदर। :"
और सुगना के जन्म का राज भी खोल दिया...
और बचपन में हीं आगे की जिंदगी की नसीहत भी दे दी...
एकदम और सुगना भौजी ने मेहनत भी की हिना को पटाने में, गरमाने में और उसके बहाने गिन गिन के एक एक कली को फूल बनाने की जिम्मेदारी भी उनके जिम्मे वो भी महीने भर के अंदर,कबड्डी तो केवल बहाना था...
सुगना को तो चुदवाना था..