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भाग ८३
महुआ चुये,
१६,५४,८००
मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।
मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी
लेकिन रेनू वहां नहीं थी,...
किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,...
उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.
कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुराने पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,
तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया,
बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी, जबरदस्त हाथ उसके सीधे उभारों पर,... जिस तरह से वो निप्स को छु रहा था,..
घने पेड़ों के झुरमुट के बीच,... वैसे ही अँधेरा हो रहा था,... और अब शाम की दस्तक भी शुरू हो गयी थी,... पकड़ इतनी तगड़ी की मैं मुड़ भी नहीं सकती थी,... तभी सामने से रेनू दिखी हंसती खिलखिलाती,... जैसे किसी बच्चे को खोया खिलौना अचानक मिल गया हो, उसकी हंसी मुझे चिढ़ा रही थी, छेड़ रही थी, उकसा रही थीं, असली ननद।
और मैं समझ गयी मुझे दबोचने वाला कौन है, उसका भाई भी भतार भी, ... और फिर उससे तो बिना गारी के बात करना उसकी और रिश्ते दोनों की बेइज्जती होती।
" हे अपनी महतारी के खसम, बहनचोद, तेरी बहिनिया की गाँड़ अपने देवर से मरवाऊँ,... वहां सरम लग रही थी की सबके सामने लेने में गांड फट रही थी. "
" अरे नहीं भौजी, वहां हिस्सा बंटाने वाले बहुत आ जाते हैं, और यहाँ केहू को अंदाज भी नहीं लगेगा,..."
और जैसे कोई फूलों की डोलची उठाये उसने मुझे बाहों में उठा लिया और सीधे महुए के पेड़ के नीचे, जहाँ ढेर सारा महुआ चूआ था,...
रेनुवा, पहले से वहीँ खड़ी खिलखिला रही थी,... वहीँ उसने लिटा दिया,... रेनू जैसे कोई बहुत खेली खायी हो अपनी गोद में मेरा सर रख लिया, साड़ी दोनों उभारों पर से सरका दी,...
और नीचे गिरे ढेर सारे ताजे महुए को मेरे जोबन पर मसल दिया।
सच में वहां कोई आवाज भी नहीं आ रही थी, लग रहा था हम तीनों किसी और दुनिया में हों,...
" हमार भौजी महुआ क सराब हैं एकदम, ... " रेनू बोली और झुक के उसने मुझे चूम लिया, ...
मैंने भी दोनों बाहों से उसे पकड़ के झुका लिया, जैसे कोई फूलों से लदी शाख हो,... और कस के चूम लिया,...
मेरी कल परसाद में मिली साड़ी छल्ले की तरह बस मेरी पतली कमर में लिपटी और दोनों लम्बी गोरी टाँगे,...
जहाँ होनी चाहिए, देवर के कंधे पर,...
कमल ने सीख लिया था जल्दी बाजी में कोई मजा नहीं, ...
और मेरे जोबन पर जो महुआ उसकी बहन ने मसला रगड़ा था, कभी झुक के उसे होंठों से चुनता तो कभी महुआ के बीच आँख मिचौली कर रहे मेरे निप्स को,...
मेरे होठ तो उसकी बहन के होंठों के साथ छल कबड्डी खेल रहे थे.
उस टीनेजर के होंठ आज पहली बार चूमे गए थे चूसे गए थे और अब सारी दुनिया का रस छलक रहा था उनमे,...
लेकिन रेनू उसकी आंखे तो अब अपने भाई से हट नहीं रही थीं, एक पल के लिए मेरे होंठों को आजाद कर के उसने अपने भाई के होंठों को चूम लिया,... और अपने भाई के होंठो का रस अपने होंठों से मेरे होंठों पर,,... लेकिन फिर रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,
बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,
और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...
महुआ चुये,
१६,५४,८००
मैंने आगे का काम सुगना के हवाले कर दिया,... अरे तोहरी पट्टी क है तोहार पड़ोसी, देवर, तो लड़का से मर्द बनाने का काम अब सुगना भौजी तोहरे जिम्मे,
एकदम अब किसी दिन नहीं छोडूंगी इसको रोज,... और नयको तू जा रेनुवा चोकर रही है।
मैं सुगना को बंटी के पास छोड़ कर रेनू के पास जहाँ बाकी भौजाई ननद और देवर थे, वहां आ गयी
लेकिन रेनू वहां नहीं थी,...
किसी ने बोला की आपको ढूंढते बँसवाड़ी की ओर गयी है,...
उधर तो बाग़ और गझिन थी, आम के साथ महुआ, पाकड़, और दो चार खूब पुरानी बँसवाड़ी, जल्दी उधर कोई नहीं आता था.
कहीं दिखी नहीं, हाँ उसकी कभी खिलखिलाहट कभी मुझे पुकारने की आवाज हलकी हलकी सुनाई दे रही थी। मैं बँसवाड़ी के झुरमुट के पास तक पहुंच गयी थी, पीछे बहुत घने पुराने दो पाकड़ के चार महुए के बहुत पुराने पेड़, महुए के फूलों की मादक महक आ रही थी, एकदम नशा सा हो रहा था,
तभी पीछे से मुझे किसी ने दबोच लिया,
बड़ी तगड़ी पकड़ थी, महक हलकी सी जानी पहचानी, जबरदस्त हाथ उसके सीधे उभारों पर,... जिस तरह से वो निप्स को छु रहा था,..
घने पेड़ों के झुरमुट के बीच,... वैसे ही अँधेरा हो रहा था,... और अब शाम की दस्तक भी शुरू हो गयी थी,... पकड़ इतनी तगड़ी की मैं मुड़ भी नहीं सकती थी,... तभी सामने से रेनू दिखी हंसती खिलखिलाती,... जैसे किसी बच्चे को खोया खिलौना अचानक मिल गया हो, उसकी हंसी मुझे चिढ़ा रही थी, छेड़ रही थी, उकसा रही थीं, असली ननद।
और मैं समझ गयी मुझे दबोचने वाला कौन है, उसका भाई भी भतार भी, ... और फिर उससे तो बिना गारी के बात करना उसकी और रिश्ते दोनों की बेइज्जती होती।
" हे अपनी महतारी के खसम, बहनचोद, तेरी बहिनिया की गाँड़ अपने देवर से मरवाऊँ,... वहां सरम लग रही थी की सबके सामने लेने में गांड फट रही थी. "
" अरे नहीं भौजी, वहां हिस्सा बंटाने वाले बहुत आ जाते हैं, और यहाँ केहू को अंदाज भी नहीं लगेगा,..."
और जैसे कोई फूलों की डोलची उठाये उसने मुझे बाहों में उठा लिया और सीधे महुए के पेड़ के नीचे, जहाँ ढेर सारा महुआ चूआ था,...
रेनुवा, पहले से वहीँ खड़ी खिलखिला रही थी,... वहीँ उसने लिटा दिया,... रेनू जैसे कोई बहुत खेली खायी हो अपनी गोद में मेरा सर रख लिया, साड़ी दोनों उभारों पर से सरका दी,...
और नीचे गिरे ढेर सारे ताजे महुए को मेरे जोबन पर मसल दिया।
सच में वहां कोई आवाज भी नहीं आ रही थी, लग रहा था हम तीनों किसी और दुनिया में हों,...
" हमार भौजी महुआ क सराब हैं एकदम, ... " रेनू बोली और झुक के उसने मुझे चूम लिया, ...
मैंने भी दोनों बाहों से उसे पकड़ के झुका लिया, जैसे कोई फूलों से लदी शाख हो,... और कस के चूम लिया,...
मेरी कल परसाद में मिली साड़ी छल्ले की तरह बस मेरी पतली कमर में लिपटी और दोनों लम्बी गोरी टाँगे,...
जहाँ होनी चाहिए, देवर के कंधे पर,...
कमल ने सीख लिया था जल्दी बाजी में कोई मजा नहीं, ...
और मेरे जोबन पर जो महुआ उसकी बहन ने मसला रगड़ा था, कभी झुक के उसे होंठों से चुनता तो कभी महुआ के बीच आँख मिचौली कर रहे मेरे निप्स को,...
मेरे होठ तो उसकी बहन के होंठों के साथ छल कबड्डी खेल रहे थे.
उस टीनेजर के होंठ आज पहली बार चूमे गए थे चूसे गए थे और अब सारी दुनिया का रस छलक रहा था उनमे,...
लेकिन रेनू उसकी आंखे तो अब अपने भाई से हट नहीं रही थीं, एक पल के लिए मेरे होंठों को आजाद कर के उसने अपने भाई के होंठों को चूम लिया,... और अपने भाई के होंठो का रस अपने होंठों से मेरे होंठों पर,,... लेकिन फिर रेनू के होठ मेरे होंठों से हटे तो कमल के होठ मेरे होंठों से चिपक गए, और रेनू के होंठ मेरे निप्स को चूस रहे थे,
बड़ी ताकत थी कमल के हाथों में,... मेरे उभारों पर झरते हुए महुआ के फूलों को उसने इस तरह मसला की जैसे वो शराब बन के मेरे शराब के दोनों प्यालों में,
और पीने वाला मेरा देवर तो था ही, कमल,... आज उसकी मैंने बरसों की साध पूरी की थी लेकिन उसने भी तो मेरी बात मानी, जो मैंने उसकी माँ से वादा किया था वो पूरा हुआ,...
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