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भाग ९६
ननद की सास, और सास का प्लान
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ननद की सास, और सास का प्लान
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एकदम असली बात तो गाभिन हो नौ महीने बाद बिटिया होऔर क्या बिलकुल छिनार नांदिया के मन की करना. बेटी और उसकी माँ से भी बड़ी छिनार पैदा करना. जो अपने पापा मामा से भी चुदवाई और सिर्फ पापा से भी. टॉप की रंडी पैदा करेंगी हमारी नांदिया रानी.
जिस तरह भाभी ने बताया जो कहानी ये भी बिलकुल वैसी ही होंगी. शास्त्र ज्योतिष शास्त्र विज्ञानं सब के हिसाब से. कुंडली ही देख कर पंडितो का खड़ा हो जाए.
अरे भई उसके मायके वालों का बीज है. रंडी तो पैदा होंगी ही.
माझा आ गया. आज कल क्या है. जवान हुई तो गांव के भैया. जीजा. ब्याह गई तो देवर नन्दोई. अब तो ससुर और पापा भी चढ़ने लगे है. बस जोबन झलक ना चाहिये.
धन्यवादकोमल जी
खेल खिलौने में आपका ज्ञान धन्य है। "फागुन के दिन चार" के पूर्व संस्करण का अनुभव है लेकिन ये तो और आगे की बात है।
सादर
Wowपूर्वाभास 1
छुटकी
“अरे तो इसमें क्या? कल होली भी है और रिश्ता भी.”
बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर नंदोई जी भी बहुत रसीले थे.
“तेरे तो मज़े हैं यार....कल यहाँ होली और परसों ससुराल में...कैसी हैं तेरी सालियाँ?”
नंदोई जी अब पूरे रंग में थे.
‘इन्होंने’ बोला
“बड़ी वाली बोर्ड का इम्तहान दे रही है है और दूसरी थोड़ी छोटी है...(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) ...उसके बराबर होगी.”
“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है.” हँस के नंदोई जी बोले.
अबतक ‘इन्होंने’ और नंदोई ने मिल के उसे ८-१० घूंट पिला हीं दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज खो चुका था.
“अरे हाँ...साले साहब से हीं पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा?” ‘ये’ बोले.
“बोल साल्ले... बड़ी वाली की चूचियाँ कितनी बड़ी हैं?”
“वो...वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी...उसकी अच्छी है....थोड़ी..दीदी के इतनी तो नहीं... दीदी से थोड़ी छोटी....”
हाथ के इशारे से उसने बताया.
मैं शर्मा गई...लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है.
“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन दबा-दबा के रंग लगाने में...”
नंदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा,
“और छुटकी की?”
“वो उसकी...उसकी अभी...”
नंदोई बेताब हो रहे थे. वो बोले,
“अरे साफ-साफ बता, उसकी चूचियाँ अभी आयी हैं कि नहीं?”
“आयीं तो है बस अभी..... लेकिन उभर रही हैं... छोटी है बहुत....”
वो बेचारा बोला.
“अरे उसी में तो असली मज़ा है...चूचियाँ उठान में...मींजने में, पकड़ के पेलने में... चूतड़ कैसे हैं?”
“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी हैं... बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे... मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों साल्लियों की कच-कचा के गांड़ ना मारी.”
“हे तुम जब होली से लौट के आओगे तो अपनी एक साली को साथ ले आना...उसी छुटकी को...फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमें जम के होली खेलेंगे साल्ली के साथ.”
आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गई थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी.
“एकदम जीजा... ये अच्छा आइडिया दिया आपने. बड़ी वाली का तो बोर्ड का इम्तिहान है, लेकिन छुटकी,... पंद्रह दिन के लिये ले आयेंगे उसको.”
“अभी वो छोटी है.”
वो फिर जैसे किसी रिकार्ड की सुई अटक गई हो बोला.
“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है? उस कच्ची कली की कसी फुद्दी को पूरा भोंसड़ा बना के पंद्रह दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चाहे तो तुम फ्रॉक उठा के खुद देख लेना.”
बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.
“और क्या... जो अभी शर्मा रही होगी ना...जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साल्ली....”
नंदोई बोले.
मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, फिर उन लोगों की बातें सुन के मेरा भी मन करने लगा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है!”
वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ... ननदों ने जम के मेरे भाई को गालियां सुनाई, खास कर छोटी ननद ने.
मैंने भी नंदोई को नहीं बख्शा और खाना परसने के साथ में जान-बूझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती...कभी कस के झुक के दोनों जोबन लो कट चोली से... नंदोई की हालत खराब थी.
जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा हीं मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे... मुझे पता थी उनकी हालत. और जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली,
“सदा सुहागन रहो, बुरा ना मानो होली है.”
( पेज २ पोस्ट २०)
Are muje samazne me galti hui. To fayda to fir bhi unka hai. Vese dono ke mayke par unka hak hai. Apni behen par to fir komal ki bahen par bhi. Amezing.लालच अपने मायके वालियों का नहीं दिया,
सैंया जी के मायके वालियों का दिया है सैयां जी की बहन महतारी का, बूआ, चाची, मौसी और उनकी बेटियों का
Wowबस निकल गया .. चिढ़ाना.. 'भाई क सार'
अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे...
मतलब अब आई है ननदिया की गांड़ लंड के नीचे....
अब सब दरवाजे खुला करवा के जाएगी...
Are muje samazne me galti hui. To fayda to fir bhi unka hai. Vese dono ke mayke par unka hak hai. Apni behen par to fir komal ki bahen par bhi. Amezing.
धन्यवाद
लेकिन ये जोरू का गुलाम का कमेंट आपने यहाँ
यहाँ कहाँ स्ट्रेप ऑन मिलेगा, हाँ कबड्डी के बाद गुलबिया चमेलिया गाय बैल बांधने वाला खूंटा जरूर ले आयी थीं , आइडिया दूबे भाभी का था, कंडोम चढ़ा के,
एकदम नहीं कोमल मैम
रंजी को गुड्डी जो अनुगृहित करने वाली है, ये उसकी प्रतिध्वनि है।
सादर
एकदम सही कहा आपने मायके का रिवाज,
यही उतार चढ़ाव तो जीवन के लिए चुनौती लाते हैं..और मौज मस्ती के बीच ये दुःख कहानी में भी छलक आता है और मेरी बाकी दो कहानियों के मुकाबले यह कहानी गाँव पर बेस्ड हैं तो यहाँ ज्यादा