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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग २३६ - मंगलवार, दिल्ली

अपडेट पोस्टड, पृष्ठ १४३३ फायनेंसियल थ्रिलर का नया मोड़,

कृपया पढ़ें, आंनद लें और कमेंट जरूर करें
 
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Shetan

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गुड्डी का पिछवाड़ा और गुड्डी के भैया


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रीनू ने शायद कमल जीजू को कुछ इशारा किया और कमल जीजू ने खुद ही कमल जीजू को इसी मौके का इंतजार था , उन्होंने पलटी मार दी।

अब गुड्डी ऊपर और वो नीचे , लेकिन अपने पैरों और हाथों दोनों से उन्होंने गुड्डी को कस के दबोच रखा था , खूंटा एकदम जड़ तक घुसा , वो सूत भर भी हिल नहीं सकती थी

और वैसे भी अभी भी रुक रुक कर के वो बार बार झड़ रही थी , और उसे देस दुनिया की खबर नहीं थी ,

रीनू जोर जोर से इनका खूंटा मुठिया रही थी , और इनकी निगाहें गुड्डी की दुबडुबाती , गोल गोल , अभी ताज़ी फटी गाँड़ के छेद पर चिपकी थी ,

रीनू ने अपने जीजू को चढ़ाया ,

" जीजू मौका अच्छा है चढ़ जाइये , देखिये गोल छेद आपके सामने है , अगर अब भी आपने इसकी नहीं ली तो ,... "
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सच में गुड्डी की ताज़ी मारी गयी गांड का छेद दुपुर दुपुर कर रहा था , ,...

" हे पिछली बार तो मेरी इस बहना की जबरदस्त सैंडविच बनी थी , काठमांडू में रोज मेरी और चीनू की सैंडविच बनती थी, और आज जब अपनी बहन का नंबर आया है तो कुंडली बिचार रहे हो ,... "

रीनू ने इन्हे हड़काया ,

और आग और लगाने के लिए मैंने अजय को चढ़ाया , रीनू से बोली

" हे अगर तेरे जीजू को चढ़ने में कुछ मुश्किल हो रही हो , ठीक से खड़ा न हो रहा हो या मेरी जवान टीनेजर ननद की कसी गाँड़ में पेलने में मुश्किल आ रही हो , तो मेरे जीजू हैं न , क्यों अजय जीजू ,...
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अजय जीजू तो चाहते ही थे,... और कौन मर्द नहीं चाहेगा इत्ती मस्त गांड मारना लेकिन प्लानिंग हम दोनों बहनों की कुछ और थी, अजय जीजू नहीं रीनू के जीजू, मेरे ये और मेरी ननद के बचपन के यार

और मौका देख कर मैंने रीनू को जबरदस्त आँख मारी , ... चाहती तो मैं भी यही थी , सब के सामने न सिर्फ ये अपनी 'सीधी साधी बहना की ' उस एलवल वाली की गाँड़ , बल्कि कमल जीजू के साथ मिलकर सैंडविच बनाएं ,...

" हे कमीनी साली , मेरे जीजू को समझती क्या है , देख कितना मस्त खूंटा खड़ा है इनका , तेरी इस ननद की गांड का गोल गोल छेद देख कर , देखना अभी मेरे जीजू तेरी उस एलवल वाली की गाँड़ के कैसे चीथड़े करते हैं , अपने गली के गदहों को भूल जायेगी मेरे जीजू का लौंडा गाँड़ मने खाकर , समझती क्या है मेरे जीजू को , ... क्यों जीजू , फाड़ दो यार , आप की साली की इज्जत का सवाल है ,... "

रीनू ने चढ़ाया इन्हे ,
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यह बड़े उहापोह में ,...

सामने गुड्डी के गदराये गोल गोल नितम्ब , कसी दरार , ... गोल गोल छेद


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…………………………………….



हाँ उन के उठने के पहले , ... रीनू ने इनका का हाथ पकड़ कर पहले एक ऊँगली चूमी , बल्कि कस कस कर चूसी ,.. अपने थूक से लबरेज कर दिया , फिर दूसरी भी ,और गुड्डी के पास पहुँच कर ,... पूरी ताकत से कमल जीजू के ऊपर चढ़ी ,... गुड्डी के दोनों नितम्ब अपने दोनों हाथों से कस कर चियारे , , थोड़ा और जोर लगा कर , एक बार फिर और अब पिछवाड़े का छेद साफ़ साफ़ खुला दिख रहा था।

गच्चाक , कलाई की पूरी ताकत लगा कर वो ऊँगली , जिसे थोड़ी देर पहले रीनू ने अपने थूक से लिथेड़ा था , गुड्डी की गांड में उन्होंने पेल दिया ,

एक पोर दो पोर नहीं पूरी ऊँगली , ... और मेरी ओर मुड़ कर देखा , मैंने जोर को थम्स अप साइन दी ,
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गच्चागच्च , गच्चागच्च , ... कभी अंदर बाहर कभी गोल गोल ,

पूरे चार पांच मिनट तक ,

और जो ऊँगली बाहर निकली , तो

मुझे और रीनू को तो मालुम ही था ये ऊँगली कहाँ जायेगी , ...सीधे गांड से निकली ऊँगली , गुड्डी रानी के मुंह में।
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" अरे जरा जोर से चूस जितना चूसेगी न उतना गांड में कम दरद होगा , तेरे ये कंजूस भैया लोग वैसलीन और तेल पर पैसा नहीं खर्च करने वाले। "

रीनू ने छेड़ा ,

और गुड्डी सच में कस कस के चूसने लगी , और वो ऊँगली जब गांड में दुबारा घुसी तो साथ में दूसरी ऊँगली भी जिसे मैंने चाट चूट कर के चिकना किया था , खूब गीली ,

कमल जीजू ने कित्ती बार अपनी सालियों की सैंडविच बनाई थी, वो जानते थे उनका रोल अभी सिर्फ ये है की ऊपर चढ़ी घोड़ी छटकने न पाए , जब मोटा खूंटा अंदर उसके पिछवाड़े घुसे तो चूतड़ चाहे जितना पटके लेकिन खूंटे से बच न पाए , अभी वो पैसिव रोल में थे उनका काम सिर्फ अपने ऊपर चढ़ी गुड्डी को कस के रोकना था , और वो काम वो कर रहे थे, अपने दोनों हाथों से कस के उन्होंने गुड्डी को दबोच रखा था।

और अब रीनू की दोनों उँगलियाँ जैसे चम्मच , मोड़ के करोच के गांड की दीवालों के अंदर तक , ... और दो चार मिनट में बाहर आयीं तो एक बार फिर मेरी छोटी ननद के मुंह में , थोड़ा जबरदस्ती के साथ ,

चार पांच बार इस तरह मुंह से पिछवाड़े और पिछवाड़े के छेद से मुंह में ,...

गांड का छेद थोड़ा तो खुल गया था ,

इन्हों ने अपना सुपाड़ा उस टीनेजर के गोल छेद को दोनों हाथों के अंगूठों से खूब फैला कर , सेट कर दिया , और फिर कमर पकड़ कर एक करारा धक्का ,
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अपनी सगी एकलौती भौजाई की चौड़ी चाकर गाँड़ मारकर, ( उनकी भौजाई की बुरिया ने लंड तो अनगिनत खाये थे पर गाँड़ कुँवारी बचा के लायी थीं देवर के लिए) अब उनकी हिचक खुल गयी थी और हफ्ते भर के अंदर ही मिसेज मोइत्रा और उनके दोनों रसगुल्लों के भी कोरे पिछवाड़े का फीता उन्हें काटना था।

उईईईईईई उईईई ,... गुड्डी जोर से चीख उठी , वो तड़प रही थी , दर्द से पिघल रही थी ,

पर कमल जीजू ने नीचे से उसे इतनी कस के अपने हाथ और पैर दोनों से पूरी ताकत से बाँध रखा था ,

वो दर्द से छटपटा रही थी , छुड़ाने की कोशिश कर रही थी , पर ,...

धक्के पर धक्का , रीनू के जिज्जा

ठेलता रहा , पेलता रहा , धकेलता रहा ,

पहले सुपाड़ा घुसा

फिर गांड का छल्ला भी पार हो गया ,
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गुड्डी दर्द से दुहरी हो रही थी, तड़प रही थी। जब उसकी कसी गाँड़ में उसके भैया का मोटा खूंटा दरेरते, रगड़ते फाड़ते घुस रहा था। उसे लग रहा था कमल जीजू की गाँड़ मराई से तो गाँड़ बच गयी लेकिन अबकी बिना फटे नहीं बचेगी, जहाँ जहां कमल जीजू की गाँड़ मराई से अंदर गाँड़ छिली थी वहीँ पे जब रगड़ता हुआ इनका लंड घुस रहा था तो बस इतनी जोर से छरछरा रहा था जैसे कटे पर किसी ने नमक छिड़क दिया हो,

ओह्ह नहीं भैया उह बाहर दर्द हो रहा है , कभी रोती सुबकती कभी दांतों से होंठों को काट के दर्द रोकने की कोशिश करती

देह उसकी मरोड़ रही थी उछल रही थी,

कमल जीजू ने जो नीचे से पकड़ा था उससे ज्यादा कस के रीनू ने अपनी ननद को दबोच रखा था और अपने जीजू को चढ़ा रही थी,

" अरे जीजू, स्साली कोमल के जीजू से तो हंस के घोंट लिया इस स्साली ने और मेरे जीजू का घोंटने में नौ नौ आंसू बहा रही है, कोमल के जीजू का मखमल का था और मेरे जीजू में कांटे लगे हैं,... "
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Maza aa gaya. Jab tak vo bhenchod nahi bane koi bhouji ko chen na pade. Guddi rani bahar vale bhaiya(kamal jiju) ko pichhvada degi. Jiska tu bachpan ka yaar he use nahi. Jabardast

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motaalund

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पोलिस



दुकान के अन्दर घुस के मैंने अबकी गुड्डी से बोला- “हे तुम फोन लगाओ ना पोलिस वालों को…” और उसने 100 नंबर लगाया। बड़ी देर तक घंटी जाने के बाद फोन उठा।

सब सुनने के बाद कोई बोला- “अरे काहे जान ले रही हो बबुनी भेजते हैं। थे तो दू ठे ससुरे वहीं चौराहावे पे। कौनो कतल वतल त न हुआ है ना?”

गुड्डी ने फोन रख दिया।

थोड़ी देर में टहलते हुए वही दोनों पोलिस वाले आये- “का हउ सेठजी के हो। अरे कान्हे छोट-छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं। सलटा लिया करिए ना…”

फिर गुड्डी की ओर देखकर गन्दी सी मुश्कान देते बोले-

“कहो कतो रेप वेप की फरियाद तो नहीं थी। चलो थाने में पहले थानेदार साहब बयान लेंगे तोहार सरसों का तेल लगाकर, फिर हमरो नंबर आएगा। तब तक तो बिना तेलवे का काम चल जाएगा। थानेदार साहेब का डंडा बहुत लम्बा हउ और मजबूत भी। होली में थानेदारिन मायके भी गई हैं…”

मैंने तब तक उस बास उर्फ छोटा चेतन और दोनों मोहरों की फोटो मोबाइल पे ले ली थी।

मैं कुछ बोलता उसके पहले सेठजी बोले- “अरे इंस्पेक्टर साहब, बच्चे हैं, कानून कायदा नहीं मालूम फोन घुमाय दिए। हम समझा देंगे। कौनों खास बात नहीं है…”

फिर हम लोगों से मुखातिब होकर बोले- “अब जाओ तुम लोग ना…”

उनके काम करने वाले भी अब वापस आ गए थे और एक ने हम लोगों का सामान भी पकड़ा दिया था।

मैं अब बीच में आ गया- “देखिये बात ये है की। तीन लोगों ने यहाँ सेठजी पे …”

मेरी बात रोक के पोलिस वाला बोला-

“अरे आप हो कौन नाम पता। इ लौंडिया के साथ हो का। का रिश्ता है। राशन कार्ड है। वोटर आईडी। भगा के ले जा रहे हो?”

दूसरा पोलिस वाला भी अब बीच में आ गया-

“मालूम है। नाबालिग लग रही है अभी तो इसकी डागदरी होगी। साले, किडनैपिंग लगेगी, दफा 359, दफा 360 दफा 364 साले चक्की पीसोगे और अगर कहीं रेप का केस लग गया तो दफा, 376 375। डागदरी में साबित हो गया तो जमानतो नहीं होगी साल भर। "

“अरे जब एक बार हमारे थानेदार साहब का डंडा चल गया ना रात भर। तो डागदरी में तो रेप के कुल निशान मिलने ही वाला है। और कौनो कसर रही तो। डाक्टरों साहेब के थाने पे दावत पे बुलाये लेंगे। छमिया तो मस्त है…”


अब मैं आग बबूला हो रहा था, बहुत हो गया-

“हे कौन है तुम्हारा इन्स्पेक्टर? क्या नाम है, कौन थाना है? अभी मैं बात करता हूँ…” मैं गुस्से में बोला।

तब तक एक पोलिस वाले की निगाह जमीन पे पड़े छोटा चेतन, उन मोहरों के बास पे पड़ी। वो झुक के बोला-

“अरे बाबू साहब। कौन ससुरा। का हो सेठजी, इ का हो। जानते नहीं है आप…”

पड़े पड़े उसने मेरी ओर इशारा किया। मेरा एक पैर उसके मुँह पे भी पड़ गया था। बोलना मुश्किल हो रहा था।

मैंने फिर बोलने की कोशिश की-


“जी यही थे। एक्सटार्शन, हमला के लिए आप इन्हें पकड़िये। ये सेठजी को धमकी दे रहे थे और हम लोगों पे भी इनके साथियों ने। बताइए थाने का नाम, मैं ही इन्स्पेक्टर को फोन करता हूँ…”

वो बोला- “अब फोन मैं करूँगा और इन्स्पेक्टर साहेब यहीं आयेंगे…” और मोबाइल निकालकर लगाया।

मैं उसकी बात सुन रहा था-

“जी हाँ अरे अपने। उनके खास। हाँ हाँ वही। पता नहीं कैसे। अरे कौनो ससुरा लौड़ा लफाड़ी है स्टुडेंट छाप और साथ में एक ठो छमिया भी है। फोनवा वही किये थी। हाँ आइये। नहीं कहीं नहीं जाने देंगे। और एम्बुलेंस बाबू साहेब मना कर दिए। उनके कौनो खास डाक्टर हैं बस उन्हीं को फोन किये हैं प्राइवेट नर्सिंग होम है सिगरा पे। अउते होंगे वो भी। हाँ आपको याद कर रहे थे। बस आप आ जाइए तुरंत। अरे हम रोके हैं ले चलेंगे थाने उन दोनों को…”

अब मेरी हालत पतली हो रही थी। इन सिपाहियों से तो मैं निपट लेता लेकिन वो पता नहीं कौन थे?

गुड्डी भी मेरा हाथ पकड़कर खींच रही थी- “हे कुछ करो ना। अगर वो आ गया ना…”

मैं भी डर रहा था। अगर एक बार इन सबों ने मेरा मोबाइल ले लिया, तो फिर?

बिचारे सेठजी अपनी ओर से कोशिश कर रहे थे- “हे कुछ ले देकर मान जाइए। बच्चे हैं नहीं मालूम था किससे उलझ रहे हैं?”

अचानक बल्ब जला वो भी 250 वाट का। डी॰बी॰ दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में। मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी। अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई है नंबर भी लिया था। बस मैंने लगा दिया नंबर, 2-3-4-5 बार रिंग गई लेकिन कोई जवाब नहीं।

मैं समझ गया अब गई भैंस पानी में। हो सकता है। मेरा नंबर तो है नहीं उनके पास। इसलिए इस पोस्ट पे ना जाने कितने फोन आते होंगे? लेकिन कहीं वो सो रहे हों तो? खैर, मैंने एक मेसेज छोड़ दिया अपने नाम के साथ कोड नेम भी लिख दिया 44। हम दोनों का रूम नंबर हास्टल में एक ही था विंग अलग-अलग थे।

तुरंत रिस्पोंस आया- “बोलो कहाँ हो?”

मेरी जान में जान आई। सब मुझे ही देख रहे थे। छोटा चेतन। पोलिस वाले, सेठजी और गुड्डी। मोहरे अभी भी देखने की हालत में नहीं थे।

मैं दुकान के दूसरे कोने में चला गया। और फोन लगाया। उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई थी। एक महीने पहले एस॰पी॰ सिटी में। एस॰एस॰पी॰ कहीं बाहर गए थे तो पूरा चार्ज उन्हीं के पास था।

पूरी दास्तान सुनकर वो बोला- “चल यार तूने रायता फैला दिया है तो समेटना तो मुझे ही पड़ेगा न। वो हैं कैसे बता जरा?”

मैंने बोला-

“अरे मैं अभी फोटो एम॰एम॰एस॰ करता हूँ। लेकिन वो तुम्हारा इंस्पेक्टर आ गया तो?”

मैंने जानबूझ के उसे पोलिस वालों ने क्या बोला था मुझे और गुड्डी को नहीं बताया। उसका गुस्सा, खासतौर से अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करे तो जग जाहिर था।

थोड़ी देर में फिर फोन बजा, डी॰बी॰ का ही था।

“ये तूने क्या किया? तू ना। चल लेकिन। चाय बनती है। हाँ दो बात। पहली किसी को उन तीनों को ले मत जाने देना, खास तौर से उस इन्स्पेक्टर को या किसी डाक्टर को। और दूसरा सुन। अपने बारे में भी किसी को बताया तो नहीं। मत बताना। समझे?”

“लेकिन मैं कैसे रोक पाऊंगा…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“ये तेरा सिरदर्द है। हाँ असली बात तो मैंने बतायी नहीं। मैं एक सिद्दीकी नाम के इन्स्पेक्टर को भेज रहा हूँ। बस उसी को इन तीनों को, और मुझसे बात कराकर…” ये कहकर फोन काट दिया।

सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है। छोटा चेतन। उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था। बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।

हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे? तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।



धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ- “कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…” गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।



और पीछे से थानेदार साहब। पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।

“साल्ला मच्छर…” बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-

“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।

“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”

थानेदार जी बोले-

“सही आइडिया है तुम्हारा। ससुरी वो जो पिछले वाली सरकार में मंत्री की रखैल चलाती है क्या तो नाम है। जहाँ इ सब दालमंडी वालियों को…”

“वनिता सुधार गृह…” कोई पढ़ा लिखा पोलिस वाला पीछे से बोला।

“हाँ बस वहीं। अरे सरकार गई धन्धवा तो सब वही है। बस वहीं रख देंगे बस पूछताछ के लिए जब चाहेंगे बुलवा लेंगे…” थानेदार जी ने चर्चा जारी रखी।

अब उन्होंने अगले अजेंडे की ओर रुख किया यानी मेरी ओर- “ले आओ जरा साले को…” दो पोलिस वालों को उन्होंने आदेश दिया।

“अरे साहब अभी ले चलेंगे न साले को थाने में वहां आराम से। जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे। फिर आप आराम से दो-चार हाथ। अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा साल्ला, रेप, किडनैपिंग, ब्लू-फिल्म ड्रग्स, अपने हाथ से लौंडिया का नाड़ा खोलेगा…” एक पोलिस वाले ने समझाया।

वो बोले- “अरे जरा बात कर लें नाम पता पूछ लें बाकी तो थाने में ही होगा…”

दो पोलिस वाले मेरी ओर बढ़े।

तभी मेरे फोन की घंटी बजी। डी॰बी॰।

“सिद्दीकी पहुँचा?” वो बोले।

“नहीं, लेकिन वो थानेदार आ गया है और मुझे पकड़ने के चक्कर में है…”

“वो तो ठीक है, तुम्हारी ट्रेनिंग का पार्ट हो जाएगा। लेकिन सिद्दीकी पहुँचाने ही वाला है बस दो-वार मिनट, उन तीनों को उसी के हवाले करना।

मैंने फोन इस तरह किया था की दुकान में हो रही आवाजें भी उन्हें सुनाई पड़े।

“हे चल दरोगा साहेब बुला रहे हैं…” उन दोनों ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की।

“चल रहा हूँ साहब…” मैंने बोला और हाथ पकड़ने से रोक दिया।

“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…” वो गरजे।


( ये चुने हुए अंश " फागुन के दिन चार " के हैं लम्बी कहानी कहिये, उपन्यास कहिये। कुछ मित्रों का अनुरोध था इसे रिपोस्ट करने का।

कैसा लगेगा इसलिए एक छोटा सा दृश्य है अपनी राय जरूर बताइये, रिपोस्ट करूँ, न करूँ। अगर ८-१० नियमिंत पढ़ने वाले कमेंट देने वाले मिल गए तो,... अपनी राय जरूर बताइये। )





डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे- “वो वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
ये डायलॉग और सीन इतने रियलिस्टिक लगते हैं कि लगता है घटना कहीं आस-पास और सचमुच में घट रही हो...
 

Shetan

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डी लिट् -पिछवाड़े की




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ये बात सुन के गुड्डी हलके से मुस्करायी और मुड़ के इनको भी देखा लेकिन अगले ही पल खूब जोर से चिल्लाई,

नहीं भैया नहीं , ओह्ह्ह , जान गयी

गुड्डी के मुलायम मखमल से गाल पर नमकीन आंसू टपक रहे थे।

हुआ यह था की इन्होने आलमोस्ट पूरा निकाल के अपनी कमर का पूरा जोर लगा के एक बार में ही ठेला तो वो गांड का छल्ला जो छिल गया था बस वही,.. छिली चमड़ी पर कोई लोहे का रॉड रगड़े तो कांटे ऐसा ही लगेगा न।
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लेकिन रीनू पर कोई असर नहीं हुआ, किस भौजाई पर होता है ननद के चीखने चिल्लाने का असर,... उलटे उसने अपने जीजू को हड़काया
" ये आधा किस के लिए बचा रखा है अपनी महतारी के लिए, हम दोनों की सास के लिए , जिस भोंसडे से निकले हो उसके लिए "

अजय जीजू का खूंटा मुठियाते मैंने वहीं से अनाउंस किया आने वाली हैं वो,... जिनके भोंसडे से तेरे जीजू निकले थे। "
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" अरे आधे तीहै से क्या होगा हम सब की सास का, गदहा घोडा से चुदवा के तुम सबको जनी हैं तो उनके लिए गदहा ही ले आएंगे, अगर अगले चार धक्के में स्साले ये लंड पूरा अंदर नहीं गया तो सोच ले तेरी बहन की गाँड़ बाद में मारी जायेगी, पहले तेरी ही गाँड़ मारी जायेगी। तेरी स्साली की कसम पेल पूरी ताकत से .

उनकी बहन रोती रही चूतड़ पटकती रही लेकिन क्या ताकत दिखाई पता नहीं साली की कसम का असर या,

चार नहीं तीन धक्के में ही पूरा लंड उनकी बहन के गांड के अंदर, एकदम बॉल्स तक।
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मैं अजय को चिढ़ा रही थी

" क्यों जीजू न मैं छू रही हूँ न दबा रहीं हूँ , फिर भी तेरा खूंटा इतना कस के टनटनाया है , मजा आ रहा है न बहन को गांड मराते हुए देखने में ,. तेरा भी मन कर रहा है न इसकी गांड मारने का ,..अरे यार दिलवा दूंगी ,... तू भी क्या याद करेगा कैसी साली से पाला पड़ा है ,...,... बस जैसे ही मेरी इस कमीनी बहिना के जीजू हटेंगे न , बस मेरे जीजू चढ़ जाएंगे , हचक के मारना , बड़ा मजा देगी ये ,... मस्त चूतड़ हैं इसके ,... "

सच में गुड्डी की गांड मरौव्वल देख कर अजय का खूंटा एकदम पगलाया हुआ था ,...

पूरे दस मिनट तक कमल जीजू नीचे चुपचाप लेटे रहे और ऊपर से रीनू के जीजू , मेरी ननद की हचक हचक कर गांड मारते रहे , ,...
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ये बात नहीं की मेरी ननद दर्द से कराह नहीं रही थी लेकिन पहली बार की तरह अब लंड उतनी मुश्किल से नहीं घुस रहा था ,

लेकिन थोड़ी देर में मैं समझ गयी बात क्या ,थी दो बातें थीं एक तो अब गुड्डी को गाँड़ मराने का स्वाद मिल गया था, दूसरे ये उनके बचपन का यार जब उसके कच्चे टिकोरे आ ही रहे थे, वो हाईस्कूल में गयी ही थी, इन्हे लाइन मार रही थी, उस समय भी ये उसकी मार लेते तो खुद टांग फैला देती वो गाँड़ मरवाने के लिए निहुर जाती,.. लेकिन इनकी नथ तो मुझसे उतरनी लिखी थी तो सुहाग रात को ही इनका फर्स्ट टाइम हुआ,... और आज, गुड्डी भी वही सोच रही होगी, इसलिए अभी वो खुद इन्हे चिढ़ा रही थी उकसा रही थी गाँड़ मरवाने में इनका साथ दे रही थी,



और चिढ़ा रीनू को भी वो रही थी, रीनू ने गुड्डी से पूछा

" क्यों आ रहा है बहिनिया को भैया से गाँड़ मरवाने का मज़ा "

गुड्डी ने खुद कमर के धक्के से अपने किशोर चूतड़ों को पीछे ढकेलते हुए उनका लंड गपक लिया और रीनू से बोली

" अरे मीठी भौजी, मेलोडी खाओ खुद जान जाओ, वैसे भी भी मेरे भैया अपनी इस मीठी स्साली की नमकीन गाँड़ मारे बिना नहीं छोड़ेंगे। "
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फिर अपने भैया से बोली,

" भैया, मीठी भाभी की ऐसे कस के मारिएगा की मेरे भाई को याद रखें। बचपन से आज तक अपने जिन जिन भाइयों से मरवाई होंगी न भौजी सब भूल जाइयेगा। "

उसकी ऐसी मीठी बात सुन के उन्होंने झुक के कस के अपनी बहन का गाल पहले तो चूमा फिर काट लिया और लंड आधा निकाल के पेल दिया। क्या तूफानी गाँड़ मार रहे थे वो।

इनका लंड सटासट सटासट , पूरे जड़ तक गुड्डी की गांड में ,

दस मिनट के बाद ये रुके तो नीचे से कमल जीजू ने धक्के लगाने शुरू किये और अब वो पूरे दस मिनट तक
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ये नहीं की ये खाली…, गुड्डी की दोनों चूँचिया उस के हाथ में थीं और वो कस के मीज रहा था , रगड़ रहा था। बीच बीच में हाथ गुड्डी के जांघों के बीच कभी क्लिट छेड़ देता तो कभी बुर मसल देता ,



कुछ देर तक तो मेरे दोनों जीजू ने बारी बारी से मेरी बारी उमरिया वाली छुटकी ननद की कुटाई की , फिर एकदम साथ साथ

क्या कोई धुनिया रुई धुनेगा , जिस तरह से दोनों जीजू ,...

जबरदस्त डबल चुदाई का असर हुआ की मेरी ननद फिर झड़ रही थी और उसका झड़ना ख़तम हुआ तो नीचे से कमल जीजू ने फवारा छोड़ दिया।

मारी गुड्डी की जा रही थी, मारने वाले उसके भैया, और फट मेरी बहिनिया की रही थी, रीनू उनकी स्साली की।

कमल जीजू थोड़ी देर पहले ही झड़ के अलग हो गए थे


और इन्होने अब आसन बदल दिया था, अब गुड्डी अपनी पीठ के बल लेटी थी थोड़ी आराम से, इन्होने सब कुशन तकिया लगा के उसके चूतड़ों को खूब ऊँचा कर दिया था, गुड्डी की दोनों लम्बी गोरी टाँगे इनके कंधे पर और सटासट सटासट, साथ में दोनों हाथ अपनी बहन की छोटी छोटी चूँची पर क्या मस्त मसल रहे थे
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" यार ये तेरा वाला तो बड़ा छुपा रस्तम निकला, स्साला नम्बरी,... " रीनू की निगाह इनकी बहन के पिछवाड़े से निकलते इनके मोटे पिस्टन पर चिपकी थी।

लेकिन मैंने रीनू को घूर के देखा,... पति की तारीफ़ सुन के कौन पत्नी खुश नहीं होगी, खास तौर पर जब पति अपनी जस्ट इंटर पास टीनेजर बहन की कसी कसी गाँड़ मार रहा हो,...

लेकिन मैंने घूर के इसलिए देखा की हम तीनो मौसेरी बहनों का बचपन का करार था ' तेरा वाला' मेरा वाला ' नहीं चलेगा। और साली के रहते बीबी के पहले साली का हक़ होगा,


रीनू मुस्करायी और बोली

मेरा मतलब मेरा वाला, अब तीन दिन तो स्साली कमीनी तुझे इसे छूने नहीं दूंगी हाँ अनारकली ऑफ़ आजमगढ़ की बात और है, ऐसी ननद पर सौ लंड कुर्बान, लेकिन यार मेरा वाला अपनी बहन का यार मार मस्त रहा है गाँड़ अपनी छोटी बहिनिया की, देख कैसे मस्त हो रही है।

सच में अपनी भौजाई की गाँड़ मारने के बाद इस इलाके में भी इन्हे महारत हो गयी थी। और औजार तो कुछ गीता की पहलौठी के दूध का कमाल कुछ मंजू के जड़ी बूटी का, और तलवारबाजी कुछ इनकी सास ने सिखाई कुछ खुद सीख ली।

" आज पता चलेगा जब रात को तेरी गाँड़ मारेगा,... कल मेरी बहिनिया दीवाल पकड़ पकड़ के चलेगी, ... " मैंने अपनी बहिनिया को चिढ़ाया

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" बात तो तेरी सही लग रही है लेकिन बिन मरवाये मैं छोडूंगी भी नहीं " रीनू बोली।

कमल जीजू दो बार झड़ने के बाद वाशरूम चले गए थे, मैं अजय जीजू ( रीनू के मरद ) के साथ। और ये अपनी बहन गुड्डी की गाँड़ मारने में लगे। और ये भी बात नहीं की अंदर कमल जीजू की मलाई हो इसलिए उन्हें आसानी हो रही हो, रीनू कमीनी थी न उसने एक एक बूँद अंदर तक गुड्डी की ही स्कूल की स्कर्ट दो ऊँगली में लपेट के पूरी तरह साफ़ कर दी थी. और एक बार मारने में गांड कोई इत्ती ढीली नहीं हो जाती।

अब ये न गुड्डी की चूँची छू रहे थे न चूत , लेकिन गुड्डी मस्त हो रही थी, अपनी नीमबाज आँखों से अपने बचपन के यार को देख रही थी। और अब वो भी चूतड़ उठा उठा के धक्को का जवाब धक्के से दे रही थी. और थोड़ी देर में जब वो झड़ने के कगार पर पहुंची तो इन्होने धक्को की रफ्तार बढ़ा दी। कुछ देर में ही गुड्डी तूफ़ान की तरह काँप रही थी झड़ रही थी।

और रीनू बस कभी झड़ती हुयी गुड्डी को देखती कभी इन्हे, फिर उसके मुंह से निकला " स्साला, बहनचोद,... देख अपनी बहिनिया को सिर्फ गाँड़ मार के झाड़ दिया, क्या मस्त झड़ रही है साली,... "
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रीनू की निगाहों से अपने जीजू के लिए तारीफ़ झलक रही थी पर मैं मौका क्यों छोड़ती, उसे चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए बोली,...

" घबड़ा मत मेरी बहिनिया को भी सिर्फ गाँड़ मार मार के झड़ायेगा वो. वो मेरी बहन और अपनी बहन में फर्क नहीं करता "

रीनू की एक निगाह अपने जीजू पर दूसरी घडी पर थी, फुसफुसा के बोली, " यार तेरे मेरे जीजू ( कमल जीजू ) ने साढ़े चौदह मिनट इस कच्ची कली की गांड मारी थी और झड़ गए थे लेकिन मेरे जीजू ने तो सवा सोलह मिनट हो गए हैं और अभी तक सांड चढ़ा हुआ है। "

हाँ ये बताना मैं भूल गयी थी की रीनू का एक सब्जेक्ट स्टैटिस्टिक्स भी था इसलिए आंकड़े उसकी जुबान पे होते थे।

गुड्डी का झड़ना रुक गया था पर गाँड़ मराई बदस्तूर चालू थी।

" मैं हम दोनों के जीजू ( कमल जीजू ) को गाँड़ मारने में पी एच डी समझती थी लेकिन मेरा वाला, मेरा जीजू तो, पी एच डी के आगे कोई डिग्री होती है क्या,... "

रीनू ने फुसफुसा के मुझसे पूछा।

" डी लिट् " मैंने उसी तरह से जवाब दिया।
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" मेरा वाला, मेरा जीजू वही है "

रीनू ने उन्हें डिग्री अवार्ड कर दी। लेकिन एक चीज रीनू को अच्छी नहीं लग रही थी, ननद की गाँड़ मारी जा रही थी उसका भाई मार रहा था लेकिन वह न रो रही थी न चिल्ला रही थी। किस भौजाई को अच्छा लगेगा। असली मजा तो ननद की रुलाई धुलाई सुनने का है।

" हे जीजू, जरा रेडियो मिर्ची लगाओ न "
रीनू इनसे अपने जीजू से बोली और ये समझ गए। कौन जीजा होगा जो साली की बात टाल दे।
अपनी जाँघों के बीच उन्होंने गुड्डी की जाँघे दबोच लीं, टांगों में टाँगे कैंची मार के फंसा ली। मोटा लंड इनका पूरा अंदर धंसा हुआ था, उस समय तो गुड्डी को कुछ नहीं पता चला लेकिन जब धीरे धीरे उन्होंने बाहर निकाला, गाँड़ के छल्ले के भी बाहर बस सुपाड़ा फंसा हुआ था और अब गांड एकदम टाइट हो गयी थी, जाँघों और पैर के बीच फंसी दबी,
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जब उन्होंने अंदर ठेलना शुरू किया, जहाँ जहाँ हल्का सा भी छिला था अब सुपाड़ा उसे रगड़ते दरेरते जा रहा था, गाँड़ इनकी बहन की सच में फटी पड़ रही थी, और जितना वो चिल्लाती रोती उतना उन्हें और उनसे ज्यादा उनकी साली को रीनू को और मजा आ रहा था।

" हाँ जीजू हाँ , जरा रेडियो मिर्ची का वॉल्यूम बढ़ा दीजिये "

और रीनू के जीजू अपनी बहन के आये आये निपल को नाख़ून से नोंच देते

" ओह्ह भैया नाहीइइइइइइ उफ्फ्फफ्फ्फ़ नहीं दर्द हो रहा है जान गयी "

और ये उसके निपल का दर्द का फायदा उठा के एकदम कसी सटी गांड के छेद में और कस के पेल देते और अब दर्द दूसरी जगह होने लगता। पांच सात मिनट तक इसी तरह वो रगड़ के गुड्डी की मारते रहे। और रीनू बस झड़ी नहीं इत्ती मस्त हो गयी अपने जीजू का गाँड़ मारना देख के

पर इनकी बहन झड़ गयी।

गुड्डी तो पता नहीं कितनी बार झड़ी पर ,... रीनू के जीजू ये आधे घंटे तक हचक कर चोदने के बाद ही झड़े ,

कुछ देर तक तो ,रीनू के जीजू ये वैसे ही इनकी ममेरी बहन को दबोचे , उसके अंदर घुसेड़े पड़े रहे, और जब बाहर निकाला तो इनकी बहन की गाँड़ से कटोरी भर तो इनकी मलाई बाहर निकली ही होगी।
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और कहने की बात नहीं की निकालने के बाद एक बार फिर , मेरी ननद से चुसवाया , चटवाया।


उसके बाद अजय जीजू ने गुड्डी की गांड पर नंबर लगाया और झड़ने के बाद चटवाया भी


एक बार गुड्डी गिंंनगिनाइ जरूर , मुंह भी बनाया , पर कोई रास्ता था क्या उसके पास , ... तो मुंह में भी लिया और चाट चूट के फिर से चिक्कन भी किया।

गुड्डी वहीँ गद्दे पर , पेट के बल पड़ी रही , और दोनों जीजू हम लोगो के पास आकर दीवाल के सहारे लगे कुशन पर ,... सहारा लेकर ,



बहुत से मर्दों को आदत होती है , सेक्स के बाद स्मोक की , अजय जीजू को भी थी , और उन्होंने अपनी सिगी निकाल ली ,

और मुझसे गाली भी खायी ,

" जीजू अकेले अकेले , और मौंकों पर तो साली याद आती है , लेकिन ऐसे समय , बस अकेले , ... एकदम स्वार्थी हो आप ,.. " और जो उन्होंने सुलगायी थी वो मेरे मुंह से खोंस दी , फिर रीनू चढ़ गयी उनके ऊपर और थोड़ी देर में हम दोनों बहनें ,

और मैं पहले से जानती थी अजय जीजू की पसंद ,

सिगी पेसल थी , और उसके अंदर का 'मसाला ' महा पेसल , ... एकदम इम्पोर्टेड, एक सुट्टे ने बुर में आग लगा दी ,



भाभियाँ सुट्टे मारें और ननद बैठी रहे , ये कैसे हो सकता है , तो रीनू भी थकी दर्द में डूबी , गुड्डी के पास , जो पेट के बल अभी भी लेटी थी ,

रीनू ने एक बार फिर उसे पलटा नहीं लेकिन गुड्डी के पेट के नीचे कमर के नीचे कुशन , तकिये लगाकर म कुछ उसे आराम का सहारा दिया , और बिना बोले , उसका चेहरा , लम्बे बाल सहलाते ,... अपनी मुँह की सिगरेट बिना बोले गुड्डी के मुंह में खोंस दी ,
Are wah man gae. Nanand chhinar ho to esi. Dugne tigne kisi ko bhi na na kahe. Gach se le le. Superb

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motaalund

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कोमल जी प्लीज. ऐसे टुकड़ो मे वो मज़ा नहीं आएगा. ये मैजिक कहानी होंगी. प्लीज आप प्रोपर लॉन्च करो. आप जानते हो आप की स्किल के दीवानो की कमी नहीं. पूरा उपन्यास इत्मीनान से पढ़ने मे मज़ा आएगा. ऐसे इन मोतियों को मत बिखेरो. हम परा हार पहेन ना चाहेंगे. प्लीज कोमल जी. लॉन्च कर दो.

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अब तो इस जर्नी के लिए राकेट लॉन्च कर हीं दें...
 

motaalund

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Komal ji, let me admit that your command on language, both English and Hindi, is superb. I occasionally keep on visiting your thread. Somehow, the story content is too raw for my taste. This is an individual choice, and not an adverse comment on your style. Your knowledge of eastern UP/ Bihar rural culture and also complex corporate culture, specially club life and ladies jealousies and there desperate attempt to be closer to the Madam (President/ CEO's wife) are worth mentioning. The snippets you have posted above promise an interesting story, and I would recommend you to go ahead with it. One thing more, sometime back you had posted another snippet of a story where bhabhi leads hero and guddi to some place where some sadhus are meditating. That also looked interesting.
शायद वो कहानी कहीं नेपथ्य में है...
 

motaalund

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Please Komalji. Aap ek thriller story platform par use lonch karo. Aap ke pas puri kahani taiyar he. Aap anuchit samay ke hishab se update de sakti he..sayad sirf sex padhne vale logo ke alava story padhne valo ki tadad bhi bahot he. Aap ki skill ka loha har koi manta bhi he. Aap propar is story ko lonch kare. Baki kahene ko mere pas sabad nahi. Par kahena bahot kuchh he. Request he ki aap der na kare.

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सही कहा आपने...
A complete entertainer thriller.
 

motaalund

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Guilty as charged.

yes many times or mostly, language is raw, rusting and may i say coarse too. and yes may not be comfortable sometimes and even to some people. You must have noticed in my comments I meticulously avoid such lingo. Language is more in the realm of rustic fantasy but sometimes ( not many times i admit ) I do love to use, some sensuous language. just sharing an example from my latest post from my other story. This is in the last part of the story


हिना का बदन, उसके जोबन पलाश की तरह दहक रहे थे।

हिना का मन चावल चुगती कभी इस मुंडेर पर कभी उस मुंडेर पर फुदकती गौरेया की तरह, कभी चंदा की ख़ुशी में डूबी देह को देखता तो कभी सोचता साल दो साल पहले ही तो इस गाँव के लड़के लड़कियों के साथ बिना हिचक वो खेलती, झगड़ा करती, लड़ती, बारिश आने पे पहली बूँद के साथ ही अपनी इन्ही सहेलियों के साथ कभी अपने आंगन में कभी कम्मो के घर, अरई परई गोल गोल चक्कर काटती, सब सहेलिया देखतीं किसके ऊपर कितनी बूंदे पड़ी , सबकी मायें डांटती, लड़की सब पागल हो गयी हैं का,

सावन आता तो झूला झूलने इसी बगिया में आती, भाभियों की चिकोटियां, किसका झूला कितना ऊपर जाता है बस मन करता सावन को लपेट ले, ओढ़ ले और साल के बारहो महीने सावन के हो जाए, हरे भरे,

सावन में पूरे गाँव में उसके अपने टोले में भी नयी नयी सुहागने गौने के बाद पहली बार मायके आतीं और भौजाइयां घेर के उनसे गौने की रात का हाल बार बार पूछतीं, ... चिकोटियां काटतीं और जब हिना ऐसे कुंवारियां भी चिपक के हाल सुनती तो कोई भौजाई उन कुंवारियों को छेड़ती भी

" सुन ले, सुन ले तेरे भी काम आएगा " .

और जब वो लड़कियां बिदा होती, किसी भी पुरवा की, पठानटोली वाई हो या पंडिताने की, जाने के पहले सब से, काकी ताई से भौजी से सब से, मिल के भेंट के, दिन कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता,



पिछले सावन ही अजरा उदास की चादर हटाने के चक्कर में बात बदलने के लिए पंडिताइन चाची से भेंटते हुए छत पर चढ़े कद्दू की बेल को देखते हुए बोली,

" चाची, पिछली बार तो एकदम बतिया थी ये "

" अरे पगली खाली बेटियां थोड़ी बड़ी होती हैं, " पंडिताइन चाची हंसने की कोशिश करते बोलीं और आँचल की कोर से आंसू का एक कतरा पोंछ लिया.

Thanks for your suggestion to repost Phagun ke din chaar.

Thanks again.
आस-पास के माहौल, मौसम और वातावरण का वर्णन वास्तविकता के करीब लगता है...
और डायलॉग मानवीय पक्ष को उजागर करते प्रतीत होते हैं...
 
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